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डेल्टा और डेल्टा प्लस वेरिएंट: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

सचिव, बायोटेक्नोलॉजी विभाग; महानिदेशक, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद; और निदेशक, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र ने सार्स-सीओवी-2 वायरस के डेल्टा और डेल्टा प्लस वेरिएंट के बारे में कई सवालों के जवाब दिए हैं। 25 जून, 2021 को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आयोजित एक कोविड मीडिया ब्रीफिंग में दिए गए उत्तरों को पीआईबी ने प्रश्नोत्तर के रूप में तैयार कर पेश किया है।

प्रश्न: एक वायरस म्यूटेट क्यों होता है?

वायरस अपने स्वभाव की वजह से म्यूटेट हो जाता है। यह इसके विकास का हिस्सा है। सार्स-सीओवी-2 वायरस सिंगल-स्ट्रैन्डिड आरएनए वायरस है। तो, आरएनए के अनुवांशिक अनुक्रम में परिवर्तन ही म्यूटेशन हैं। जिस क्षण कोई वायरस अपने मेजबान कोशिका या अतिसंवेदनशील शरीर में प्रवेश करता है, वह अपनी प्रतिकृति बनाना शुरू कर देता है। जब संक्रमण का फैलाव बढ़ता है तो प्रतिकृति की दर भी बढ़ जाती है। एक वायरस जिसमें म्यूटेशन आ जाता है वो उसके वेरिएंट के रूप में जाना जाता है।

प्रश्न: म्यूटेशन का क्या असर होता है?

म्यूटेशन की सामान्य प्रक्रिया का हम पर तब असर पड़ता है जब इससे संक्रमण फैलने के स्तरों या उपचार में बदलाव देखने को मिलते हैं। म्यूटेशन इंसानों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक, नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है या प्रभावहीन रह सकता है।

नकारात्मक प्रभावों में किसी खास क्षेत्र में संक्रमण, प्रसार में तेजी, प्रतिरक्षा से बचने और किसी ऐसे व्यक्ति को संक्रमित करने की क्षमता , जिसके पास पहले से प्रतिरक्षा है, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी से बेअसर होना, फेफड़ों की कोशिकाओं पर ज्यादा असर और संक्रमण की गंभीरता में वृद्धि आदि शामिल है।

सकारात्मक प्रभाव यह हो सकता है कि वायरस निष्क्रिय हो जाए।

प्रश्न:  सार्स-सीओवी-2वायरस में बार-बार म्यूटेशन क्यों देखा जाता हैम्यूटेशन कब रुकेंगे?

सार्स-सीओवी-2 निम्नलिखित कारणों से म्यूटेट हो सकता है:

  • वायरस की प्रतिकृति के दौरान आई कोई गड़बड़ी
  • ठीक हो चुके लोगों के प्लाज्मा के जरिये इलाज, टीकाकरण या मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (समान एंटीबॉडी अणुओं के साथ कोशिकाओं के एक क्लोन द्वारा निर्मित एंटीबॉडी) जैसे उपचार के बाद वायरस पर पड़ने वाला प्रतिरक्षा दबाव
  • कोविड-उपयुक्त व्यवहार की कमी के कारण बिना प्रतिरोध के वायरस का फैलाव। यहां वायरस खुद को बढ़ने के लिए सबसे अच्छे मेजबान ढूंढता है और अधिक मजबूत और अधिक संक्रमणीय हो जाता है।

जब तक महामारी बनी रहेगी तब तक वायरस म्यूटेट होता रहेगा। इससे यह और आवश्यक हो जाता है कि कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन किया जाये।

प्रश्न:  वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट (वीओआई) और वैरिएंट ऑफ कंसर्न (वीओसी) क्या हैं?

जब म्यूटेशन होता है- यदि इसका किसी अन्य समान प्रकार वेरिएंट के साथ कोई पिछला संबंध है जिसके बारे में लगता है कि उसका सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ा है- तो यह वेरिएंट अंडर इन्वेस्टिगेशन बन जाता है।

एक बार आनुवंशिक चिन्हों की पहचान हो जाने के बाद, जिनका रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन के साथ संबंध हो सकता है या जिनका एंटीबॉडी या वायरस को निष्क्रिय करने वाली प्रक्रियाओं पर प्रभाव मिलता है, हम उन्हें वेरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट कहना शुरू करते हैं।

और जिस वक्त हमें क्षेत्रों से और नैदानिक ​​सहसंबंधों के माध्यम से बढ़े हुए संचरण के प्रमाण मिलते हैं, यह वेरिएंट ऑफ कंसर्न बन जाता है। वेरिएंट ऑफ कंसर्न वह हैं जिनमें निम्नलिखित में से एक या अधिक विशेषताएं हैं:

  • प्रसार में बढ़त
  • तीव्रता/रोग लक्षणों में परिवर्तन
  • निदान, दवाओं और टीकों से बचाव

पहला वेरिएंट ऑफ कंसर्न यूके द्वारा घोषित किया गया था जहां यह पाया गया था। वर्तमान में वैज्ञानिकों द्वारा पहचाने गए वेरिएंट ऑफ कंसर्न के चार प्रकार हैं- अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा।

प्रश्न:  डेल्टा और डेल्टा प्लस वेरिएंट क्या हैं?

ये सार्स-सीओवी-2 वायरस के वेरिएंट को दिए गए नाम हैं, जो उनमें पाए गए म्यूटेशन के आधार पर हैं। लोगों को आसानी से समझ में आने के लिये डब्ल्यूएचओ ने ग्रीक वर्णमाला के अक्षरों, यानी अल्फा (बी.1.1.7), बीटा (बी.1.351), गामा (पी.1), डेल्टा (बी.1.617), आदि का उपयोग करने की सिफारिश की है।

डेल्टा संस्करण, जिसे सार्स-सीओवी-2 बी.1.617 के रूप में भी जाना जाता है, में लगभग 15-17 म्यूटेशन होते हैं। यह पहली बार अक्टूबर 2020 में रिपोर्ट किया गया था। फरवरी 2021 में महाराष्ट्र में 60% से अधिक मामले डेल्टा वेरिएंट से संबंधित थे।

भारतीय वैज्ञानिकों ने ही डेल्टा वेरिएंट की पहचान की और इसे वैश्विक डेटाबेस में दर्ज कराया। डब्ल्यूएचओ के अनुसार डेल्टा संस्करण को वेरिएंट ऑफ कंसर्न में वर्गीकृत किया गया है और अब यह 80 देशों में फैल गया है।

डेल्टा संस्करण (बी.1.617) के तीन उपप्रकार बी.1.617.1, बी.1.617.2 और बी.1.617.3 हैं, जिनमें से बी.1.617.1 और बी.1.617.3 को वेरिएंट ऑफ इंट्रेस्ट के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जबकि बी. 1.617.2 (डेल्टा प्लस) को वेरिएंट ऑफ कंसर्न के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

डेल्टा प्लस वेरिएंट में डेल्टा वेरिएंट की तुलना में एक अतिरिक्त म्यूटेशन है; इस म्यूटेशन को के417एन म्यूटेशन नाम दिया गया है। ‘प्लस’ का अर्थ है कि डेल्टा संस्करण में एक अतिरिक्त म्यूटेशन हुआ है। इसका मतलब यह नहीं है कि डेल्टा प्लस वेरिएंट डेल्टा वेरिएंट की तुलना में अधिक गंभीर या अत्यधिक संचरण योग्य है।

प्रश्न:  डेल्टा प्लस वेरिएंट (B.1.617.2) को वेरिएंट ऑफ़ कंसर्न के रूप में क्यों वर्गीकृत किया गया है?

डेल्टा प्लस संस्करण को निम्नलिखित विशेषताओं के कारण वेरिएंट ऑफ़ कंसर्न के रूप में वर्गीकृत किया गया है:

  • प्रसार की बढ़ी हुई क्षमता
  • फेफड़ों की कोशिकाओं के रिसेप्टर्स के लिए मजबूत बंधन
  • मोनोक्लोनल एंटीबॉडी प्रतिक्रिया में संभावित कमी
  • टीकाकरण के बाद प्रतिरक्षा से बचाव का अनुमान

प्रश्न:  भारत में इन म्यूटेशन का कितनी बार अध्ययन किया जाता है?

भारतीय सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (आईएनएसएसीओजी), बायोटेक्नोलॉजी विभाग (डीबीटी) के समन्वय में और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, आईसीएमआर और सीएसआईआर के साथ पूरे देश में फैली प्रयोगशालाओं के नेटवर्क के जरिये सार्स-सीओवी-2 में जीनोमिक विविधताओं की नियमित आधार पर निगरानी करता है।इसे दिसंबर 2020 में 10 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं के साथ स्थापित किया गया था और अब इसका विस्तार 28 प्रयोगशालाओं और 300 निगरानी केंद्रों तक किया गया है जहाँ से जीनोमिक नमूने एकत्र किए जाते हैं। आईएनएसएसीओजी अस्पताल नेटवर्क नमूनों को देखता है और आईएनएसएसीओजी को गंभीरता, नैदानिक ​​​​सहसंबंध, संक्रमण पर अहम खोज और पुन: संक्रमण के बारे में सूचित करता है।

राज्यों से 65000 से अधिक नमूने लिए गए और संसाधित किए गए, जबकि लगभग 50000 नमूनों का विश्लेषण किया गया है, जिनमें से 50% वेरिएंट ऑफ कंसर्न बताए गए हैं।

प्रश्न:  किस आधार पर नमूनों का चयन जीनोम अनुक्रमण के लिये किया जाता है?

नमूना चयन तीन व्यापक श्रेणियों के तहत किया जाता है:

1) अंतर्राष्ट्रीय यात्री (महामारी की शुरुआत के दौरान)

2) सामुदायिक निगरानी (जहां आरटी-पीसीआर नमूने सीटी वैल्यू 25 से कम दर्ज होते हैं)

3) निगरानी केंद्र- नमूने प्रयोगशालाओं (प्रसार की जांच के लिए) और अस्पतालों (गंभीरता की जांच के लिए) से प्राप्त किए जाते हैं।

जब किसी जेनेटिक म्यूटेशन की वजह से सार्वजनिक स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव देखा जाता है, तो उसकी निगरानी की जाती है।

प्रश्न: भारत में फैल रहे वेरिएंट्स ऑफ कंसर्न के प्रसार के क्या संकेत देखने को मिल रहे हैं?

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, परीक्षण किए गए 90%नमूनों में डेल्टा वेरिएंट (B.1.617) पाए गए हैं। हालांकि, बी.1.1.7स्ट्रेन जो कि महामारी के शुरुआती दिनों में भारत में सबसे अधिक देखने को मिल रहा था, में कमी आई है।

प्रश्न: वायरस में म्यूटेशन देखने के तुरंत बाद सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है?

यह कहना संभव नहीं है कि देखा गया म्यूटेशन संचरण को बढ़ाएगा या नहीं। इसके अलावा, जब तक ऐसे वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिलेंगे जो मामलों की बढ़ती संख्या और मामलों में वेरिएंट के हिस्से के बीच संबंध साबित करते हैं, हम पुष्टि नहीं कर सकते कि विशेष प्रकार के वेरिएंट में तेजी दर्ज हुई है। एक बार म्यूटेशन पाए जाने के बाद, यह पता लगाने के लिए सप्ताह दर सप्ताह विश्लेषण किया जाता है कि क्या मामलों में वृद्धि और मामलों में वेरिएंट के हिस्से के बीच ऐसा कोई संबंध है। इस तरह के सहसंबंध के वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध होने के बाद ही सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्रवाई की जा सकती है।

एक बार इस तरह के सहसंबंध स्थापित हो जाने पर, यह  इस तरह के वेरिएंट को किसी अन्य क्षेत्र/प्रांतों में देखे जाने पर पहले से तैयारी करने में बहुत मदद करेगा।

प्रश्न: क्या कोविशील्ड और कोवैक्सीन सार्स-सीओवी-के वेरिएंट के खिलाफ काम करते हैं?

हां, कोवीशील्ड और कोवैक्सीन दोनों अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी हैं। डेल्टा प्लस वेरिएंट पर वैक्सीन की प्रभावशीलता की जांच के लिए लैब टेस्ट जारी हैं।

डेल्टा प्लस वेरिएंट: वायरस को अलग कर दिया गया है और अब आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे में संवर्धित किया जा रहा है। टीके की प्रभावशीलता की जांच के लिए प्रयोगशाला परीक्षण चल रहे हैं और परिणाम 7 से 10 दिनों में उपलब्ध होंगे। यह वेरिएंट पर दुनिया का पहला परिणाम होगा।

प्रश्न: इन वेरिएंट से निपटने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी क्या उपाय किए जा रहे हैं?

सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी कदम वहीं हैं, चाहे वेरिएंट किसी भी प्रकार के हों। निम्नलिखित उपाय किए जा रहे हैं:

  • एक जगह पर कई मामलों को लेकर जरूरी रोकथाम
  • मामलों का अलगाव और उपचार
  • संपर्क में आये लोगों को अलग रखना
  • टीकाकरण में तेजी लाना

प्रश्न: वायरस में म्यूटेशन होने और कई अन्य वेरिएंट सामने आने की वजह से क्या सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियाँ बदलती हैं?

नहीं, सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियाँ वेरिएंट्स के साथ-साथ नहीं बदलती हैं।

प्रश्न:  म्यूटेशन की निरंतर निगरानी क्यों महत्वपूर्ण है?

संभावित टीके से बचने की क्षमता, बढ़ी हुई प्रसार की क्षमता और रोग की गंभीरता पर नजर रखने के लिए म्यूटेशन की निरंतर निगरानी महत्वपूर्ण है।

प्रश्न: एक आम आदमी इन वेरिएंट ऑफ कंसर्न से सुरक्षित रहने के लिये क्या कर सकता है।

सभी को कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन करना चाहिए, जिसमें ठीक से मास्क पहनना, बार-बार हाथ धोना और सामाजिक दूरी बनाए रखना शामिल है।

दूसरी लहर अभी खत्म नहीं हुई है। एक बड़ी तीसरी लहर को रोकना संभव है बशर्ते व्यक्ति और समाज सुरक्षात्मक व्यवहार का अभ्यास करें।

इसके अलावा, प्रत्येक जिले द्वारा परीक्षण पॉजिटिविटी रेट की बारीकी से निगरानी की जानी चाहिए। यदि पॉजिटिविटी रेट 5% से ऊपर जाती है, तो सख्त प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए।

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राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने कानपुर में अपने पैतृक गांव परौंख और अपने पुश्तैनी घर का दौरा किया

 

भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद उत्तर प्रदेश की अपनी पांच दिवसीय यात्रा के दौरान आज (27 जून, 2021) उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में अपने पैतृक गांव परौंख पहुंचे। यह पहली बार है जब राष्ट्रपति अपना वर्तमान कार्यभार संभालने के बाद अपने जन्मस्थान का दौरा कर रहे हैं। राष्ट्रपति ने परौंख की अपनी यात्रा की शुरुआत पाथरी माता मंदिर को श्रद्धांजलि देकर की और उसके बाद डॉ. बी आर अंबेडकर को उनकी प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद, राष्ट्रपति ने अपने पैतृक घर का दौरा किया जिसे ग्रामीणों के लिए सामुदायिक केंद्र में बदल दिया गया है। उन्होंने गांव के वीरांगना झलकारी बाई इंटर कॉलेज का भी दौरा किया।President of India, Salary, Powers, Term and List of Presidents of India

बाद में, राष्ट्रपति ने परौंख गांव में एक सार्वजनिक अभिनंदन (जन अभिनंदन) समारोह में भाग लिया। इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि वह जहां भी रहते हैं, अपने गांव की मिट्टी की महक और ग्रामीणों की यादों को हमेशा देखते रहते हैं। उनके लिए परौंख उनका जन्मस्थान है जहां से उन्हें हमेशा आगे बढ़कर देश की सेवा करने की प्रेरणा मिलती है।

अपने सहपाठियों श्री जसवंत सिंह, श्री विजयपाल सिंह उर्फ सल्लू सिंह, श्री हरिराम, श्री चंद्रभान सिंह भदौरिया, श्री राजाराम और श्री दशरथ सिंह को याद करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने उनके साथ अध्ययन किया और भविष्य के सपने एक साथ साझा किए। एक-दूसरे की मदद करने जैसे मूल्यों का सृजन बचपन के दिनों में ही हुआ था। उनके जीवन में उन मित्रों और सहपाठियों का एक विशेष स्थान है। उन्होंने कहा कि इस गांव के पर्यावरण और लोगों ने भी जीवन के विभिन्न आयामों में उनकी मदद की है।

राष्ट्रपति ने अपने गांव के कई प्रमुख लोगों को भी याद किया जिन्होंने गांव के वातावरण में सामाजिक एकता, धार्मिक सहिष्णुता, सद्भाव, शिक्षा के प्रति जागरूकता और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता के आदर्शों को मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि इन मूल्यों ने उनकी सोच को प्रभावित किया।

राष्ट्रपति ने अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए कहा कि परौंख में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, वह जूनियर हाई स्कूल के लिए खानपुर गए। उस समय प्राथमिक शिक्षा के बाद कोई स्कूल नहीं था। उन्होंने कहा कि उन्हें उस समय लगा था कि यदि वहां माध्यमिक विद्यालय होता तो जिन बच्चों को शिक्षा का अवसर नहीं मिला वे भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाते और शिक्षा के लाभों से वंचित नहीं होते। उन दिनों लड़कियों को शिक्षा के लिए गांव से बाहर भेजना लगभग असंभव था। उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आज परौंख गांव के बच्चे वीरांगना झलकारी बाई इंटर कॉलेज में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

राष्ट्रपति ने शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि शिक्षा विकास के नए अवसर प्रदान करती है।

कोविड-19 महामारी के बारे में बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि इस महामारी ने मानव जीवन में बहुत व्यवधान पैदा किए हैं। महामारी का प्रतिकूल प्रभाव व्यापक और दुखद है। कई लोगों ने अपनों को खोया है। इस महामारी को पूरी तरह से खत्म करने के लिए हमें अभी भी बेहद सतर्क रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश ने कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए जांच, रोकथाम और टीकाकरण के लिए व्यापक और प्रभावी कदम उठाए हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि महामारी ने स्वास्थ्य और उपचार के प्रति जागरूकता बढ़ाई है। व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वच्छता पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इस महामारी से खुद को बचाने के लिए फिटनेस पर ध्यान देने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है।

राष्ट्रपति ने कहा कि पूरे देश में और उत्तर प्रदेश में भी टीकाकरण अभियान चल रहा है। उन्होंने कहा कि वैक्सीन कोरोना वायरस से बचाव के लिए ढाल की तरह है। इसलिए व्यक्ति को न केवल स्वयं टीका लगवाना चाहिए बल्कि दूसरों को भी टीका लगवाने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

दोपहर के बाद, राष्ट्रपति ने पुखरायण में एक अन्य सार्वजनिक अभिनंदन समारोह में भाग लिया। पुखरायण में सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि यद्यपि उनका जन्मस्थान परौंख है, पुखरायण का यह क्षेत्र उनका कार्यस्थल रहा है। यहीं से उनके सार्वजनिक जीवन की शुरुआत हुई। यही कारण है कि यह क्षेत्र उनके जीवन और उनके हृदय में एक विशेष स्थान रखता है। उन्होंने कहा कि उनके सार्वजनिक जीवन के शुरुआती दौर में इस क्षेत्र के लोगों ने उन्हें जो स्नेह और शक्ति दी, उसने उन्हें अपनी जीवन यात्रा में आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

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तुम्हें ग़रूर है कि तुम्हें चाहने वाले बहुत है मगर नाज़ हमें भी है कि हमारे जैसा दिल न होगा

हमने कहा तुम्हें ग़रूर तो है कि तुम्हें चाहने वाले बहुत है मगर नाज़ हमें भी है कि हमारे जैसा सादगी वाला दिल न होगा

हर किसी के पास हाँ जिस्म चाहते होगे लोग तेरा पर बता तो सही है ऐसा कोई जो तेरी रूह का ख़रीदार हो पहले तो लोगों को रूह का ही नही पता तेरे शहर मे अगर पता चल भी जाये तो लोग तेरी रूह की क़ीमत न लगा पायेंगे कहाँ है आज इतनी शिद्दत इतनी सादगी तेरे शहर में ? बता तो सही रूह और जिस्म में बहुत फ़र्क़ है साहेब रूह हर किसी की साफ़ पाक इक बच्चे की ही तरहा है ये जिस्म ही है जिस पर दुनिया की सोच का रंग चढ़ता है सादगी कोई कमजोरी नहीं बहुत बड़ी ताक़त होती हैं सादगी का अपना ही शृंगार होता है उसे कहा पड़ती है ज़रूरत किसी आईने की रूह की सादगी को पहचानने वाली आँख भी कोई कोई ही होती है सादगी से अछूता कोई नहीं रह सकता ये तो बिन छूये ही किसी की रूह को छूने की ताक़त रखती हैं सादगी वो बेशक़ीमती गहना है जो तुम से कोई छीन नही सकता ये वो लिबास है ख़ूबसूरत तो सब को लगता है मगर पहन कोई कोई ही पाता है ये तो वो शय है जो ख़ुदा अपनी रहमत से किसी किसी को ही इससे नवाज़ता है, दोस्तों दुनिया के साथ नई सोच के साथ चलना बहुत अच्छी बात है चलना भी चाहिये मगर ये कहना “सब चलता है आजकल“ ये सोच हमारे आने वाली पीड़ियो को सही दिशा नहीं दिखा पायेगी, दोस्तों लिबास की सादगी से ज़्यादा हम यहाँ मन की सादगी की बात कर रहे है जो आज के दौर मे बहुत कम देखने को मिलती है बहुत ख़ास लोग है जो इस बेशक़ीमती सोच को अपनाये हुए हैं सादगी की भीड़ नहीं मिलेगी ये कहीं कहीं ही मिलेगी ये तो वो ब्रांड है जो हर कोई इसे ख़रीद नहीं पाता और ये ब्रांड पैसो से तो ख़रीदा भी नही जा सकता सोचें दोस्तों आप इक आम सोच जो कहती है सब चलता है आजकल की भीड़ का हिस्सा बनना चाहेंगे, या कुछ अलग सा, कुछ ऐसा, जो बहुत प्रभावशाली हो, चुम्बकीय हो, जो अतुलनीय हो, सादगी से जीने के लिये केवल मन को साधना पड़ता है, अपनी जीवन शैली नहीं बदलनी पड़ती ज़रूर वक़्त के साथ चले नई सोच नये तरीक़े अपनाये मगर बेहद सादगी से इक सादा सा मन सादा तन इक दैविक आकर्षण रखता है इस की भी अपनी ही आभा इक मोहनी होती है ये एक ऐसी खुशबू हैं जिसकी महक हर कोई महसूस कर सकता है

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इश्क़ चाहे रब का हो या जग का .. दोनों की माँग केवल निष्ठा

हमने यू ही पूछ लिया …क्या प्यार बार बार होता है भला ? उसने भी बहुत लापरवाह हो कर कहा . हाँ बहुत बार हो सकता है .. अब वो क्या जाने …जो बार बार हो …वो दिल्लगी होती है और जो ज़िन्दगी मे सिर्फ़ इक ही बार हो ..वो दिल की लगी होती है … बहुत फ़र्क़ होता है दोनों मे दोस्तों …जो बार बार हो .. वो महज़ इक आकर्षण या मोह भी हो सकता है सच्चा इश्क़ तो जिस्मों से परे .. किसी की रूह को छू लेने का नाम है और जिस की नामौजूदगी से रूह जल उठती है ..वही है इश्क़.. इश्क़ चाहे रब से हो ..या जग से हो ..दोनों में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं होता ..
दोनों ही निष्ठा और
निःस्वार्थ प्रेम मागंते है ..
इश्क़ में हम देने लगते हैं चाहे वो हमारा वक़्त हो ..हमारी हर बात ..हर सोच .. हर ख़ुशी..हर अल्फ़ाज़.. तिनका तिनका हमारी रूह का इश्क़ को समर्पित होने लगता है ..

जब इन्सान खुद इश्क़ हो जाता है.. तो वो पूरी कायनात से प्यार करता है ..और तब .. रब की इबादत खुद ब खुद होने लगती है
“इश्क़ इश्क़ कहती है जिसे दुनिया ..कहां होता है वो इश्क़”.. .. इश्क़ इक पाक जज़्बा है जब कोई इन्सान इश्क़ से ..सच मे रूबरू होता है .. फिर उसकी नज़र किसी और को देखना भी नही चाहती .. इश्क़ की भी अपनी मर्यादाएँ होती है
अल्फ़ाज़ो से ज़्यादा .. सुन्दर मन और सादगी किसी की भी रूह को छू लेने की ताक़त रखती है वहाँ लफ़्ज़ों का जादू नही चलता …आँखें सब कह देती है …

इश्क़ जब तक ज़रूरत है वो कभी भी ख़ुशी नही देगा ..मगर जब इश्क़ ज़रूरत न हो कर इबादत हो जाये .. तो उस वक़्त रूह पाकीजा हो कर बेमिसाल ख़ुशी को अनुभव करती है ..
दोस्तों अगर हम सभी सोचें ..और अपने अन्दर झांक कर देखें क्या वाक़ई मे हम मर्यादाओं मे रह कर किसी एक की भी रूह को छू पाये है कभी ..अगर हाँ .. तो यक़ीन मानिये दोस्तों ..आप को सच मे रब का साक्षात्कार हुआ है क्योंकि रब ही इश्क़ है और इश्क़ ही रब हैं 🙏

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रसायन विभाग क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर और फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट्स ऑर्गनाइजेशन के संयुक्त तत्वाधान में विश्व पर्यावरण दिवस, “पारिस्थितिकी बहाली” पर एक वेबिनार आयोजित

 

कानपुर 6 जून भारतीय स्वरूप संवाददाता रसायनविज्ञान विभाग, क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर ने फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट्स ऑर्गनाइजेशन के सहयोग से, विश्व पर्यावरण दिवस, 5 जून, 2021 को अपराह्न 3:00 बजे (आईएसटी) जूम प्लेटफॉर्म पर “पारिस्थितिकी बहाली” पर एक वेबिनार का आयोजन किया। इस सम्मेलन का उद्देश्य छात्रों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और उद्योगपतियों को एक ई-प्लेटफॉर्म पर लाना है, जहाँ समाज के लाभ के लिए पर्यावरण की बहाली और स्थिरता पर प्रभावी विचार-विमर्श हो सके।
वेबिनार की शुरुआत डॉo श्वेता चंद, एसोसिएट प्रोफेसर, रसायन विज्ञान विभाग, द्वारा लोगों की भलाई और वेबिनार की कार्यवाही के निर्बाध प्रवाह के लिए की गई प्रार्थना के साथ हुई।
कॉलेज के सचिव, रेव. सैमुअल पॉल लाल ने सभा को संबोधित किया और उन्हें इस बात से अवगत कराया कि प्रत्येक क्षेत्र किस कठिन समय का सामना कर रहा है और कैसे सर्वशक्तिमान ईश्वर हमारी भलाई के लिए हम पर अपना हाथ रख रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि विश्व पर्यावरण दिवस 2021 में पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक की ओर से सभी के लिए एक वैश्विक रैली की शुरुआत होगी: सरकारों से लेकर निगमों और नागरिकों तक – हमारे बीमार ग्रह को ठीक करने में अपनी भूमिका को पूरा करने के लिए।
प्राचार्य डॉ. जोसेफ डेनियल ने कहा कि पारिस्थितिक तंत्र, जंगल जैसे बड़े भी हो सकते हैं, और तालाब की तरह छोटे भी। इनमे से कई मानव समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो लोगों को पानी, भोजन, निर्माण सामग्री और कई अन्य आवश्यक चीजें प्रदान करते हैं। वे जलवायु-संरक्षण और जैव विविधता संरक्षण जैसे ग्रह-व्यापी लाभ भी प्रदान करते हैं। लेकिन हाल के दशकों में, संसाधनों के लिए मानवता की भूख ने कई पारिस्थितिक तंत्रों को टूटने की ओर धकेल दिया है। इसलिए इस वर्ष, 5 जून, विश्व पर्यावरण दिवस, पारिस्थितिक तंत्र की बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक का आधिकारिक शुभारंभ, प्राकृतिक दुनिया की गिरावट को रोकने और सुधारने के लिए 10 साल आगे ले जाने का प्रतीक है।
सम्मेलन की संयोजिका, डॉ. अनिंदिता भट्टाचार्य, प्रोफेसर, रसायन विज्ञान विभाग ने सभा को बताया कि पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली बड़े पैमाने पर एक वैश्विक उपक्रम है। जंगलों से लेकर पीटलैंड (दलदलिय) -तटों तक, हम सभी अपने अस्तित्व के लिए स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र पर निर्भर हैं। पारिस्थितिक तंत्र को जीवित जीवों – पौधों, जानवरों, लोगों – के बीच उनके परिवेश के साथ बातचीत के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें प्रकृति एवं मानव निर्मित प्रणालियाँ जैसे शहर और खेत भी शामिल हैं। हम अपने अस्तित्व की नींव को खतरनाक दर से खो रहे हैं और नष्ट कर रहे हैं। पारिस्थितिक तंत्र का नुकसान दुनिया को जंगलों और पीटलैंड जैसे कार्बन सिंक से वंचित कर रहा है, जबकि मानवता इसे बिलकुल वहन नहीं कर सकती है। वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन लगातार तीन वर्षों से बढ़ा है और ग्रह संभावित विनाशकारी जलवायु परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है। COVID-19 के उद्भव ने यह भी दिखाया है कि पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान के परिणाम कितने विनाशकारी हो सकते हैं। जानवरों के लिए प्राकृतिक रहन-सहन को कम करके, हमने – कोरोनावायरस सहित – अन्य रोगजनकों के फैलने के लिए आदर्श परिस्थितियों का निर्माण किया है। लेकिन साथ में हम बेहतर तरीके से वापस निर्माण भी कर सकते हैं।
एफ.आई.इ.ओ. कानपुर के मुख्य सलाहकार, लायन वाई. एस. गर्ग ने इस तरह के एक खतरनाक मुद्दे को संबोधित करने के लिए कॉलेज को बधाई दी। पारिस्थितिक तंत्र और उसकी जैव विविधता आर्थिक विकास, सतत विकास और मानव कल्याण को रेखांकित करती है। फिर भी जैव विविधता का नुकसान जारी है, जिसके परिणामस्वरूप पारिस्थितिक तंत्र की वस्तुओं और सेवाओं में गंभीर कमी आई है, जो आर्थिक समृद्धि और पर्यावरणीय स्थिरता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है।
मुख्य वक्ता डॉ. दीपांकर साहा, पूर्व अतिरिक्त निदेशक, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नई दिल्ली; वर्तमान में वे पर्यावरण मूल्यांकन समिति, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के विशेषज्ञ सदस्य हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सतत विकास का मुख्य सिद्धांत निर्णय लेने के सभी पहलुओं में पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक चिंताओं का एकीकरण है। पर्यावरणीय स्थिरता प्राकृतिक पर्यावरण से संबंधित है – यह कैसे टिकती है और विविध और उत्पादक बनी रहती है, यह उस पर ही निर्भर करता है। चूंकि प्राकृतिक संसाधन पर्यावरण से प्राप्त होते हैं, इसलिए वायु, जल और जलवायु की स्थिति विशेष चिंता का विषय है। पर्यावरणीय स्थिरता के लिए समाज को ग्रह की जीवन-समर्थन प्रणालियों को संरक्षित करते हुए मानवीय जरूरतों को पूरा करने के लिए गतिविधियों को नियोजित करने की आवश्यकता होती है।
वेबिनार श्रृंखला की दूसरी वक्ता डॉ. अनिंदिता भट्टाचार्य लीड ऑडिटर – फॉरेस्ट सर्टिफिकेशन, डीआईएन सर्टको गेसेलशाफ्ट फर कोनफॉर्मिटैट्सबेवर्टुंग एमबीएच (TUVRheinland Group), जर्मनी थीं। उन्होंने कहा कि वन प्रमाणन को बेहतर वन प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए पिछले दशक की सबसे महत्वपूर्ण पहल के रूप में व्यापक रूप से देखा जाता है। जिम्मेदार वन प्रबंधन एक महत्वपूर्ण समाधान है और प्रमाणन की एक विश्वसनीय प्रणाली इन महत्वपूर्ण संसाधनों के सतत प्रबंधन को सुनिश्चित कर सकती है।
तीसरे वक्ता डॉ. सुदीप्तो घोष, सलाहकार, क्षेत्रीय-सह-सुविधा केंद्र, पूर्वी क्षेत्र, राष्ट्रीय औषधीय पौध बोर्ड, आयुष मंत्रालय थे। उन्होंने कहा कि सदियों से प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन ने पारिस्थितिक तंत्र के भीतर संतुलन को बुरी तरह से बाधित कर दिया है, जिससे दुनिया भर में पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव आया है। क्षति, सतत विकास और उनकी उत्पादकता, स्वास्थ्य और स्थिरता में निवेश और पुनर्निवेश करने में विफलता के परिणामस्वरूप पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र खराब हो रहे हैं। आने वाले दशकों में विश्व की आबादी की भलाई बड़े हिस्से में जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण और बहाली पर निर्भर करेगी, जिससे पर्यावरण से संबंधित जोखिमों को कम करते हुए सतत विकास में योगदान मिलेगा।
आयोजन सचिव प्रो. रवि प्रकाश महलवाला, एसोसिएट प्रोफेसर, भौतिक विज्ञान विभाग ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
सुश्री शेरोन लाल, व्याख्याता, अंग्रेजी विभाग ने पूरे सत्र का संचालन किया एवं डॉo मीतकमल, एसोसिएट प्रोफेसर, रसायन विज्ञान विभाग ने भी पूरा सहयोग किया|
वेबिनार में लगभग 350 प्रतिभागियों ने भाग लिया। सत्र बहुत ज्ञानवर्धक था और मंच पर मूल्यवान विचारों का आदान-प्रदान किया गया।

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अवेयरनेस ऑफ म्यूकार्माइकोसिस ब्लैक फंगस इन कोविड-19 विषय पर संगोष्ठी आयोजित

डॉ शालिनी मोहन, एसोसिएट प्रोफेसर ,आप्थाल्मालॉजी, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज,

आज  दिनांक 27 मई को वैल्यू एजुकेशन सेल  क्राइस्ट चर्च कॉलेज  द्वारा  एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका शीर्षक था अवेयरनेस ऑफ म्यूकार्माइकोसिस ब्लैक फंगस इन कोविड-19  इसमें मुख्य  वक्ता के रूप में डॉ शालिनी मोहन,  एसोसिएट प्रोफेसर , आप्थाल्मालॉजी  ,जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज,  कानपुर के रूप में आमंत्रित की गई/  डॉ मोहन ने सभी प्रतिभागियों को बताया कि फंगस से डरने की जरूरत नहीं है  बलिक की जागरूक रहने की जरूरत है  /  यह फंगस बहुत ही दुर्लभ हालात में होती है उन्हीं पेशंस में डेवलप हो रही है जिनमें डायबिटीज कंट्रोल  नहीं है या फिर जिन की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत ही कमजोर है डायलिसिस के पेशेंट में , पेशेंट्स जो कि अत्यधिक मात्रा में स्टेरॉइड्स का सेवन करते हैं या इम्यूनोसपरेसिव  ड्रग्स का सेवन करते हो / डॉ मोहन ने बताया कि स्वस्थ आहार ही आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है इसलिए उसका सेवन करें /साफ सफाई से रहे /धूप का सेवन अवश्य करें क्योंकि धूप एक नेचुरल सेंट्रलाइजर है/ कपड़ों को भी धोने के बाद धूप अच्छी तरह दिखाइए /कमरों में प्रॉपर वेंटिलेशन रखें अगर ऐसा करते हैं तो इस फंगस का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा /   कार्यक्रम का आरंभ डॉक्टर सबीना बोदरा ने प्रार्थना करके किया उसके बाद कॉलेज के प्राचार्य डॉ जोसेफ डेनियल ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया / मुख्य वक्ता का परिचय डॉ  मीत कमल द्वारा किया गया तथा कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ श्वेता चंद ने किया/  इस कार्यक्रम की संयोजिका डॉ थी राय ने अंत में सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापन दिया / कार्यक्रम में 100 से अधिक प्रतिभागी मौजूद रहे और यह कार्यक्रम जन समाज के लिए बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुआ / डॉ मोहन ने कॉलेज प्रशासन को धन्यवाद दिया तथा कहा कि इस तरह के जागरूकता कैंप अगर सभी लोग आयोजित करें तो आम आदमी को इस फंगस के बारे पूर्ण जानकारी दी जा सकती है/

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मीडिया को दिखाना चाहिए सकारात्मक खबरें

दोस्तों ..🙏मैं समिता जो इंग्लैंड मे रह रही हूँ अपने भारतीये परिवारों की हालात …इस महामारी मे देख कर बहुत दुख महसूस कर रही हूँ .. मैं ही नही ..हम सारे ही मानसिक तौर पर इस पीड़ा को महसूस कर रहे है
आज जो बात करने जा रही हूँ मुझे विश्वास है कि आप लोग सभी इससे सहमत होंगे

सब को पता है कि हमे महामारी
ने घेर रखा है चारों तरफ़ से ..
और हमारा न्यूज़ चैनल हमे सारा दिन सफ़ेद कपड़ों ने लिपटी लाशें ..जलते शव ..डरे हुये और
परेशान लोग .. मरीज़ों से भरे अस्पताल .. आर्थिक परेशानी दिखा कर जनता का मनोबल तोड़ रहे है जब कि वक़्त की माँग ये है .. सब इक दूसरे का साथ दे .. मीडिया न्यूज़ चैनलज को ये जानकारी उपलब्ध करने की कोशिश करनी चाहिये

कौन से अस्पताल मे जगह ख़ाली है ..ताकि लोग इधर उधर न भटके अपने मरीज़ को सीधा वही ले जाये .. और उनका वक़्त भी ख़राब न हो ..

लोगों को ऐंबुलेंस की जानकारी दी जाये ..जगह जगह लोगों को सेवा करने के लिये उकसाया जाये ..

जहाँ तक हो सके आकसीजन सिलेंडर के दाम कम से कम करने के लिये गोवरमैंट से सख़्त क़ानून बनाने के लिये मागं की जाये ..ताकि आम इन्सान इससे फ़ायदा उठा सके ..
कहाँ से मरीज़ों को आकसीजन सिलेंडर मिल सकता है .. इसकी भी जानकारी दी जाये

ऐसे लोगों की बात जनता तक पहुँचाये जो लोग इससे ठीक हो कर अपनो घरों मे सुरक्षित लौटे है ..

बहुत सी संस्थाये ..बहुत से धार्मिक सत्संग घर जो सेवा मे जुटे है सबसे ज़्यादा नाम बयास वाले राधासवामी का सुनने मे आया है .. जिन्होंने पहली बार भी देश को इस महामारी मे बहुत योगदान दिया है और अब भी उन्होंने अपने सत्संग घरों को मरीज़ों के लिये तैयार किया हुआ है और भी संस्थाय् है उनकी जानकारी लोगों तक न्यूज़ चैनल के दुआरा बार बार पहुँचाई जाये ..

ये वक़्त हिम्मत बँधाने का है न कि हिम्मत तोड़ने का ..

लोगों को २५ घण्टे ..डर ..या मौतों के आँकड़े बताने से कोई फ़ायदा नही होगा….

भारत इतना सक्षम देश है .. दूर के देशों मे इसने धाक जमा रखी है .. आज हमारा भारत धनवंता के लिये मशहूर है .. ऐसे मे कोई इलाज न हो सकने की वजह से अपनी जान गवाँ बैठे तो हम सब के लिये बेहद अफ़सोस की बात है ..

मेरी पूरे भारत के सक्षम लोगों से दरखास्त है .. जो कोई कुछ भी योगदान दे सकता है दे ..🙏 इस वक़्त के समय मे मीडिया बहुत लोगों को मदद कर सकती है दोस्तों ..🙏बहुत धन्यवाद जो लोग इस मुश्किल घड़ी में डट कर इक दूसरे का सहारा बने हुए हैं

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क्राईस्ट चर्च कॉलेज में व्याख्यान श्रृंखला “केमिस्ट्री इन एवरी डे लाइफ -4 “ कार्यक्रम आयोजित

क्राईस्ट चर्च कॉलेज में आज एक व्याख्यान श्रृंखला “केमिस्ट्री इन एवरी डे लाइफ -4 “ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में सभी छात्रों का स्वागत विभागाध्यक्ष डॉ सुधीर गुप्ता ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत एक प्रार्थना द्वारा डॉ ए के नैथेनियल ने की। क्राईस्ट चर्च कॉलेज के प्राचार्य डॉ जोसेफ डेनियल ने छात्रों को आज की श्रृंखला की अहमियत से अवगत कराया। इस श्रृंखला के अतिथि वक्ता रहे, एसोसिएट प्रो० डिपार्टमेंट ऑफ एंटोमोलॉजी यूनिवर्सिटी ऑफ अग्रीकल्चर & टेक्नोलॉजी, पंत नगर डॉ जय प्रकाश पंवार। प्रो० पंवार ने कीटनाशको की कार्य प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी, मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण के लिए कीटनाशक के प्रबंधन के बारे में जानकारी दी। परिचय का कार्यभार संभालते ही डॉ आनंदिता ने प्रश्नोत्तर में 30-40 मिनट का दौर तय कराया। तत्पश्चात छात्रों ने 5 मिनट का नाटक प्रस्तुत किया। इस श्रृंखला में डॉ श्रद्धा सिन्हा, ए सी टी वाइस प्रेसिडेंट नॉर्थ ज़ोन, श्रृंखला को महत्वपूर्ण बताया तथा क्राईस्ट चर्च कालेज के महत्वपूर्ण योगदान की सराहना की। इस कार्यक्रम की समन्वयक रहीं डॉ ज्योत्सना लाल पॉल। इस श्रृंखला का संचालन डॉ श्वेता चंद्रा द्वारा किया गया। अंत में रिपोर्ट
धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम की सयोजिका डॉ मीत कमल द्वारा किया गया।
इस कार्यक्रम में दीपेंद्र सोनी, वेदांत मिश्रा, अनुष्का पॉल, देवांश त्रिपाठी स्नातक प्रथम वर्ष के छात्रों ने नाटक के माध्यम से प्रतिभाग लिया, इस श्रृंखला में 100 छात्रों ने प्रतिभाग लिया।

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इस माहौल मे अपनी मैंटल हैल्थ को कैसे रखें पॉजिटिव

नमस्कार दोस्तों 🙏मैं समिता ..जो बहुत सालों से इंग्लैंड मे रह रही हूँ .. क्यूँकि भारत हमारा देश है हमारे परिवार वहाँ इस बिमारी से जूझ रहे है तो ये हम सब के लिये ही चिंता का कारण है ..दोस्तों ..
इस महामारी की वजह से हमारे अन्दर इक डर का होना बड़ा स्वाभाविक है सब डर रहे है चिंता कर रहे है इक असहाये सी स्थिति बनी हुई है बहुत ही गंभीर विषय है आज का ..

आज मैं बात करूँगी कि इस वक़्त के माहौल मे हम अपनी मैंटल हैल्थ को कैसे सही रख सकते है कैसे अपने को पाजीटिव रखा जा सकता है

बहुत से ऐसे लोग होंगे
जो बुजुर्ग है अकेले रह रहे है
जिनके बच्चे उन से दूर है
ऐसे वक़्त मे इन लोगों को ज़्यादा
डिप्रेशन होने की संभावना है .. अपने परिवारों को जो आप से दूर है आपके दोस्त सब से बात करे ..हो सके तो हर रोज किसी न किसी से संपर्क करे .. फ़ोन के ज़रिये आपस मे बातचीत करते रहे ..उनको भी अच्छा लगेगा और आप को भी …

अपने दिन को इस तरह से प्लान करे जिस मे आप को बोरियत के लिये कोई वक़्त न मिल सके ..
जैसे इक ख़ास वक़्त रखे हर इक चीज़ करने के लिये ..
अच्छी किताबो को पड़ने के लिये .आनलाइन भी बहुत कुछ पढ़ा जा सकता है ..कोई मूवी देख सकते है ..कोई खेल बच्चों के साथ खेल सकते है ये मैंटल हैल्थ के लिये बहुत अच्छा होता है .. कुछ पेंटिंग कर सकते है .. कुछ लिखना शुरू कर सकते है .. गाने सुनना सुनाना .. कुछ रीकोडिंग ..घरों के पौधों पर धयान दे सकते है ..कुछ नया सीख सकते है घर की साफ़ सफ़ाई मे हाथ बटा सकते है ..हलके व्यायाम कर सकते है रसोई मे कुछ नया बना कर सब को खिलाये ..
इस तरह कुछ गोल निर्धारित
किये जाये .. और जब आप ये करेंगे इससे इक तो आप को अच्छा लगेगा .. और आप बोर भी नही होंगे .. जब हम शारीरिक काम करते है तो दिमाग भी व्यस्त रहता और आप अच्छा महसूस करते है ..

अच्छा खाना पीने का पूरा धयान रखे आप के आसपास कोई ऐसा न हो जो भूखा सो जाये ..कुछ लोग ऐसे भी है जो हर रोज कमाते है तो उनका परिवार चलता है इस वक़्त मे बहुत मुश्किल होती होगी उनहे भी ..अगर कोई मुश्किल से जूझ रहा है तो उसकी मदद ज़रूर करे

सिगरेट तम्बाकू का प्रयोग न करे .. नशीली चीज़ों से दूर रहे ..इनसे सेहत तो ख़राब होगी ही .. पैसा भी ख़राब होगा ये सब मैंटल डिप्रेशन का कारण भी बनते है

नींद न आना .. ये सेहत के लिये बेहद नुक़सानदायक होता है .. जब हम नींद पूरी नही लेते ..तो हमारे हार्मोनस मे गड़बड़ी हो जाती है .. पेट ख़राब .. और बहुत कुछ और भी ..अच्छी नींद हमारे दिमाग और शरीर दोनों के लिये बहुत फ़ायदेमंद होती है ..

हर वक़्त न्यूज़ चैनल न देख कर ..दो या तीन बार ही.. समाचार सुने जाये .. बार बार न्यूज़ मे डर मौत और निगेटिव बातें सुनने से मन मे डर बैठ जाता है .. जो डिप्रेशन बढ़ा सकता है ..

डर को बढ़ावा न दे कर सब को सावधान करे .. शोशल डीसटैंस को बढ़ावा दे ..हर बात मे
पॉज़िटिव् सोच रखे ..सकारात्मक सोच ही हमे मानसिक तनाव से दूर रख सकती है अगर अच्छा सोचोगे तो अच्छा ही आकर्षित करोगे .. डर के बारे मे सोचते रहेंगे …तो डर ही आकर्षित करोअपना पूरा धयान अच्छी बातों पर ही दे जिनसे आप को ख़ुशी मिलती है ..दिन मे कुछ वक़्त मेडीटेशन को भी दे .. मेडीटेशन डिप्रेशन को दूर करने के लिये कही हद तक सहायक होती है ..जो होना है वो तो पहले से ही निशचित है दोस्तों ..हमे बस सावधानी बरतनी है

इस वक़्त हम लोग बाहर तो नही जा सकते मगर कुछ देर अपने घरों के बाहर चहलक़दमी करे या घरों की खिड़कियाँ खोले शुद्ध हवा के लिये ..एक ही कमरे मे न बैठे रहे दिन भर ..

सबसे बडी डिप्रेशन का कारण आर्थिक व्यवस्था भी हो सकेगी .. इस लिये जो कोई किसी की सहायता करने की क्षमता रखता है ज़रूर करे ..अपने को भी डिप्रेशन से बचाना है और सब को भी…

तुझ मे और मुझ मे सब मे ही तो
ईश्वर का वास है एक इन्सान दूसरे इन्सान के जब काम आये ..तो मुझे लगता है कि “रब इसमें पूरी तरह से राज़ी होता है .”… इक दूसरे का हाथ पकड़ कर किसी भी मुश्किल मे आसानी से निकला जा सकता है …

दोस्तों मुझे पता है आप लोग सब ही बहुत समझदार हो .. कुछ भी बताने की ज़रूरत नही .. और मैंने जो कुछ कहा भी है ..वो सिर्फ़ हम सब को बार बार याद दिलाने की चेष्टा ही है और कुछ नही .. नमस्कार 🙏

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नागालैंड की राज्य सरकार की मांग पर रेलवे ने आज दीमापुर में 10 आइसोलेशन कोच तैनात किया

कोविड के खिलाफ एकजुट लड़ाई में राष्ट्र की क्षमताओं को मजबूत करते हुए रेल मंत्रालय ने अपनी बहु-आयामी पहलों के बीच करीब 64,000 बेड साथ लगभग 4,000 आइसोलेशन कोचों को तैनात किया है।

राज्यों के साथ साझा रूप से काम करने और यथासंभव सामंजस्यपूर्ण जल्द कार्यवाही के लिए एक आदेश को लेकर अपने समझौता ज्ञापन को पूरा करने के लिए रेलवे ने जोनों और डिवीजनों को सशक्त बनाने की एक विकेंद्रीकृत कार्य योजना तैयार की है। इन आइसोलेशन कोचों को आसानी से स्थानांतरित और भारतीय रेल नेटवर्क पर मांग के स्थानों पर इन्हें तैनात किया जा सकता है।

वहीं राज्यों की मांग के अनुसार वर्तमान में कोविड मरीजों की देखभाल के लिए विभिन्न राज्यों कोलगभग 3400 बेड की क्षमता के साथ 213कोच सौंपे गए हैं। मौजूदा समय में आइसोलेशन कोचों का इस्तेमाल दिल्ली, महाराष्ट्र (अजनी आईसीडी, नंदुरबार), मध्य प्रदेश (इंदौर के करीब तीही) में किया जा रहा है। नवीनतम मांग नागालैंड की राज्य सरकार की ओर से आइसोलेशन कोचों के लिए आया है।इसके अनुरूप रेलवे ने दीमापुर में 10 आइसोलेशन कोचों को तैनात किया है।

इसके अलावा रेलवे ने उत्तर प्रदेश के बड़े शहरों जैसे; फैजाबाद, भदोही, वाराणसी, बरेली और नजीबाबाद में भी 50 कोच लगाए हैं। वहीं जिला प्राधिकारियों की मांग पर आइसोलेशन कोचों को नंदुरबार से पालघर स्थानांतरित किया गया है। जबलपुर के लिए भी आइसोलेशन कोच तैनात किए जा रहे हैं।

दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में तैनात इन कोचों की उपयोगिता की अद्यतन स्थिति निम्नलिखित है –

आज की तिथि में महाराष्ट्र के नंदुरूबार में पिछले कुछ दिनों में 6 नए मरीजों को भर्ती किया किया है, जबकि 3 मरीज को आइसोलेशन अवधि के बाद डिस्चार्ज कर दिया गया।अभी इस सुविधा में 35 कोविडमरीज आइसोलेशन में हैं। अब तक राज्य स्वास्थ्य प्राधिकारियों द्वारा 95 भर्ती पंजीकृत किए गए हैं, जबकि 60 मरीजों को डिस्चार्ज किया जा चुका है। अभी भी 330 बेड उपलब्ध हैं। इसके अलावा रेलवे ने अजनी इनलैंड कंटेनर डिपो (आईसीडी) में 11 कोविड केयर कोचों (चिकित्सा कर्मियों एवं आपूर्ति के लिए विशेष रूप से सेवा देने वाले एक कोच के साथ) को लगाया है।

मध्य प्रदेश राज्य सरकार द्वारा 2 कोचों की मांग के संबंध में पश्चिमी रेलवे के रतलाम डिवीजन ने इंदौर के पास तीही स्टेशन पर 320 बेड की क्षमता वाले 22 कोच तैनात किए हैं। अब तक यहां 12 मरीज भर्ती हो चुके हैं। इस सुविधा में अभी 308 बेड उपलब्ध हैं। वहीं भोपाल में 20 कोच तैनात किए गए हैं। नवीनतम आंकड़ों के अनुसारइनमें4 डिस्चार्ज के साथ 21मरीजों को भर्ती किया गया। यहां अभी 275बेड उपलब्ध हैं।

रेलवे ने दिल्ली में 1200 बिस्तरों की क्षमता के साथ 75 कोविड केयर कोचों की राज्य सरकार की मांग को पूरा किया है। इनमें से 50 कोच शकूरबस्ती और 25 कोच आनंद विहार स्टेशन पर तैनात हैं। अब तक इनमें 1 मरीज को डिस्चार्ज किए जाने के साथ 4भर्ती पंजीकृत किए गए हैं। 1196 बेड अभी भी उपलब्ध हैं।

नवीनतम रिकॉर्ड के अनुसार, उपरोक्त राज्यों में कुल मिलाकर 123 मरीजों को भर्ती किया गया। इनमें से 62को डिस्चार्ज किया जा चुका है। वर्तमान में 61कोविड मरीज इन आइसोलेशन कोचों का उपयोग कर रहे हैं। इन सुविधाओं में अभी भी 3200 बेड उपलब्ध हैं। इनमें दीमापुर में नए कोचों की तैनाती भी शामिल है।

हालांकि उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा अब तक कोचों की मांग नहीं की गई है, फैजाबाद, भदोही, वाराणसी, बरेली और नजीबाबाद में कुल 800 बिस्तरों (50 कोच) की क्षमता के साथ प्रत्येक स्थान में 10 कोच रखे गए हैं।

वहीं असम की सरकार ने भी विभिन्न स्टेशनों पर 150 कोविड कोचों को तैयार रखने के लिए अनुरोध किया है। हालांकि इन कोचों को छह स्टेशनों कामख्या/गुवाहाटी, लामडिंग, न्यू बंगाईगांव, सिलचर, बदरपुर और डिब्रुगढ़ के लिए अनुरोध नहीं किया है। इसकी जगह यह सुझाव दिया गया है कि जरूरत पड़ने पर इन कोचों को लगाया जाए।

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