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इश्क़ चाहे रब का हो या जग का .. दोनों की माँग केवल निष्ठा

हमने यू ही पूछ लिया …क्या प्यार बार बार होता है भला ? उसने भी बहुत लापरवाह हो कर कहा . हाँ बहुत बार हो सकता है .. अब वो क्या जाने …जो बार बार हो …वो दिल्लगी होती है और जो ज़िन्दगी मे सिर्फ़ इक ही बार हो ..वो दिल की लगी होती है … बहुत फ़र्क़ होता है दोनों मे दोस्तों …जो बार बार हो .. वो महज़ इक आकर्षण या मोह भी हो सकता है सच्चा इश्क़ तो जिस्मों से परे .. किसी की रूह को छू लेने का नाम है और जिस की नामौजूदगी से रूह जल उठती है ..वही है इश्क़.. इश्क़ चाहे रब से हो ..या जग से हो ..दोनों में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं होता ..
दोनों ही निष्ठा और
निःस्वार्थ प्रेम मागंते है ..
इश्क़ में हम देने लगते हैं चाहे वो हमारा वक़्त हो ..हमारी हर बात ..हर सोच .. हर ख़ुशी..हर अल्फ़ाज़.. तिनका तिनका हमारी रूह का इश्क़ को समर्पित होने लगता है ..

जब इन्सान खुद इश्क़ हो जाता है.. तो वो पूरी कायनात से प्यार करता है ..और तब .. रब की इबादत खुद ब खुद होने लगती है
“इश्क़ इश्क़ कहती है जिसे दुनिया ..कहां होता है वो इश्क़”.. .. इश्क़ इक पाक जज़्बा है जब कोई इन्सान इश्क़ से ..सच मे रूबरू होता है .. फिर उसकी नज़र किसी और को देखना भी नही चाहती .. इश्क़ की भी अपनी मर्यादाएँ होती है
अल्फ़ाज़ो से ज़्यादा .. सुन्दर मन और सादगी किसी की भी रूह को छू लेने की ताक़त रखती है वहाँ लफ़्ज़ों का जादू नही चलता …आँखें सब कह देती है …

इश्क़ जब तक ज़रूरत है वो कभी भी ख़ुशी नही देगा ..मगर जब इश्क़ ज़रूरत न हो कर इबादत हो जाये .. तो उस वक़्त रूह पाकीजा हो कर बेमिसाल ख़ुशी को अनुभव करती है ..
दोस्तों अगर हम सभी सोचें ..और अपने अन्दर झांक कर देखें क्या वाक़ई मे हम मर्यादाओं मे रह कर किसी एक की भी रूह को छू पाये है कभी ..अगर हाँ .. तो यक़ीन मानिये दोस्तों ..आप को सच मे रब का साक्षात्कार हुआ है क्योंकि रब ही इश्क़ है और इश्क़ ही रब हैं 🙏