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लेख/विचार

स्वस्थ समाज के लिए मानसिक विकारों से छुटकारा जरूरी : डॉ अमरीन

भारतीय स्वरूप संवाददाता कानपुर। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर कानपुर प्रेस क्लब में एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सल रिलीफ ऐड (AURA) ट्रस्ट की संस्थापक डॉ अमरीन फातिमा ने प्रेसवार्ता करते हुए बताया, ” AURA ट्रस्ट के बैनर तले ट्रस्ट के सदस्यों के सहयोग से जमीनी स्तर पर कार्य किया जा रहा है। अनेक बच्चों को नशे की लत से छुटकारा दिलाया गया है और निरन्तर छुटकारा दिलाया जा रहा है। इसके साथ ही कई लोगों को मानसिक विकारों से उबारने का काम किया है। “

डॉ फातिमा ने यह भी बताया कि संस्था का उद्देश्य है कि लोगों के बेहतर जीवन के लिए कार्य करना है।
उन्होंने अपील की कि अगर किसी को मानसिक स्वास्थ्य की समस्या है तो वह कभी भी मुझसे या ट्रस्ट के सदस्यों से सम्पर्क कर सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि लोगो को अपने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए। भावनात्मक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक संतुलन बनाये रखना चाहिए। क्योंकि आत्महत्या का एक कारण यह भी है।
यह भी कहा कि मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा के मुताबिक, लोगों को मानसिक विकारों से ही मुक्ति नहीं बल्कि भावनात्मक रूप से स्वस्थ रहना, सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाना और मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत रहना भी मानसिक स्वास्थ्य का अभिन्न हिस्सा है।
प्रेस वार्ता में मौजूद फिजियोथेरेपिस्ट सौम्या बाजपेयी ने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहें और स्वस्थ समाज के निर्माण में अहम योगदान करें। उन्होंने लोगों से अपील की कि संस्था से जुड़ें और समाजहित में सहयोग करें।
प्रेस वार्ता में संस्था की संस्थापक डॉ अमरीन फातिमा, फिजियोथेरेपिस्ट सौम्या बाजपेयी, पत्रकार श्याम सिंह पंवार मौजूद रहे।

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जानिए क्या है कानपुर में सड़क के जर्जर होने कि असल वजह..क्या हो सकता है समाधान?

क्षेत्र कानपुर की सड़कों पर निकलते ही यह आभास हो जाता है कि सड़क पर गड्ढों का मौत रूपी मायाजाल फैला है …कानपुर में कई जगहों पर बनी सड़के कुछ ही समय बाद टूटकर चकनाचूर होने लगती हैं …और बनने के चंद समय बाद सीधी सपाट सड़के बड़े-बड़े गड्ढे में तब्दील हो जाती हैं …और इन्हीं कानपुर में सड़कों पर बने गड्ढे से होकर कई लोगों की मौत की खबर निकालती हैं …अब यह बात आम हो गई है कि कानपुर में सड़कों पर अचानक गाड़ी गड्ढे में गई और फिर बड़ी दुर्घटना हो गई ..कानपुर में यह हाल किसी गली कूचों का नहीं बल्कि बड़ी-बड़ी में सड़कों का भी है समस्या यह नहीं है कि यहां पर सड़कों का निर्माण नहीं होता है समस्या यह है कि यहां पर सड़के बनने के चंद समय बाद चकनाचूर होनी शुरू हो जाती हैं ..सरकार करोड़ों रुपए खर्च करके सड़कों का निर्माण करवाती है और फिर चंद समय बाद यही सड़के बड़े-बड़े गड्ढे में तब्दील होकर बदहाली का रोना रोने लगते हैं है यानी सरकार का किया गया खर्च चंद ही समय बाद पानी में डूब जाता है .. यहां पर असल समस्या यह बिल्कुल नहीं की सड़कों का निर्माण नहीं हो रहा है ?बल्कि यहां असल समस्या यह है सड़के बनने के बाद चंद समय में ही चकनाचूर हो जाती हैं …इसके पीछे एक नहीं कई कारण रहते हैं ..सबसे पहला कारण सड़के बनने के कुछ समय बाद सड़कों पर किसी नई पाइपलाइन को डालने के लिए सड़कों को खोदा जाता है ..

और फिर बिना किसी मानकता के इन गड्ढों को भर दिया जाता है …जिसके परिणाम स्वरूप चंद ही समय बाद यह गड्ढे बड़े-बड़े मौत रूपी तालाबों में तब्दील हो जाते है … अगर इन गड्ढों के कारण किसी कि मौत होती है तो यह मात्र दुर्घटना नहीं बल्कि मौत की साजिश है !और इस साजिश में गुनहगार एक नहीं बल्कि कई लोग हैं जैसे सबसे पहले गुनहगार वह है जिसने सड़क निर्माण में धांधली करी ,और दूसरा गुनहगार वह है जिसने सड़क खुदाई के दौरान किए गए गड्ढे से मिट्टी को चोरी कर मौत का तालाब बनाने में सहायता करी ..और अगले गुनहगार वह लोग हैं जो लोग कम भार वाली सड़कों पर अधिक भार वाली गाड़ी लेकर फर्राटा भरते हैं … जिस कारण भी सड़के जल्द से जल्द चकनाचूर होने लगती हैं ! फिलहाल यूपी कि तमाम सड़कों को सही करवाने के लिए मुख्यमंत्री योगी ने अभी अभी हाल ही में कहा है …”की सड़क निर्माण के लिए बजट कि कोई कमी नहीं है …सड़कों का निर्माण करवाया जाए व जर्जर सड़कों को ठीक करवाया जाए “लेकिन संभवत योगी का यह फरमान काम नहीं आएगा …ऐसा इसलिए क्योंकि इससे पहले भी कई बार सड़क निर्माण के लिए सरकार अच्छा खासा रुपए खर्च कर चुकी है …लेकिन फिर भी आज सड़के जर्जर पड़ी हैं ..ऐसे में आप सोच रहे होंगे कि आखिरकार इन सड़कों की हालत को सही करने का सही तरीका क्या है ?इस बात को अगर हम कम शब्दों में समझें तो इसका केवल एक उपचार है जिन लोगों ने सड़कों के निर्माण में धांधली करी है या जिन लोगों ने मिट्टी चोरी कर सड़कों को तालाब तब्दील कराया है उन लोगों के खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से हत्या करने वाला मुकदमा दर्ज होना चाहिए !~विश्लेषण:विकास बाजपेई

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नई पेंशन योजना कितनी कारगर?

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यूनिफाइड पेंशन योजना लागू की जिसके तहत इस योजना का लाभ सरकारी कर्मचारियों को दिया जाएगा साथ ही यह भी कहा गया कि 2004 के बाद रिटायर्ड   सरकारी कर्मचारियों को भी इसका लाभ मिलेगा। यह योजना एनडीए गवर्नमेंट की नई योजना है जिसे नेशनल पेंशन स्कीम एनपीएस के समांतर जारी किया गया है और यह योजना 1अप्रैल 2025 से लागू होगी। गौरतलब है कि सरकारी कर्मचारियों के लिए एनपीएस और यूपीएस में से एक को चुनने का विकल्प रखा गया है। वहीं देश के कई राज्यों में पुरानी पेंशन योजना ओपीएस अभी भी लागू है। अब ऐसे में लोगों को ओपीएस, एनपीएस और यूपीएस में अंतर करना मुश्किल हो रहा है, लोगों को यह समझ नहीं आ रहा कि कौन सी योजना उनके लिए लाभदायक है और उनके लिये अनुकूल होगी।

यूपीएस पेंशन योजना के तहत केंद्रीय कर्मचारियों को एक निश्चित पेंशन दिया जाएगा जो आखरी 12 महीने की औसत मूल वेतन का 50% होगा। कर्मचारियों को यह पेंशन पाने के लिए कम से कम 25 साल तक नौकरी करनी होगी। वहीं अगर किसी कर्मचारी की सेवा में रहते हुए मृत्यु होने की स्थिति में परिवार (पत्नी) को 60 प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलेगा। इसके अलावा 10 साल तक की न्यूनतम सेवा की स्थिति में कर्मचारी को कम से कम 10 हज़ार रुपये प्रति माह पेंशन के रूप में दिए जाएंगे। इसके अलावा कर्मचारी और फ़ैमिली पेंशन को महंगाई के साथ जोड़ा जाएगा। इसका लाभ सभी तरह की पेंशन में मिलेगा। वहीं ग्रैच्युटी के अलावा नौकरी छोड़ने पर एकमुश्त रकम दी जाएगी। इसकी गणना कर्मचारियों के हर छह महीने की सेवा पर मूल वेतन और महंगाई भत्ते के दसवें हिस्से के रूप में होगी।
सरकार का दावा है कि इससे 23 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को फायदा होगा। पहले कर्मचारी पेंशन के लिए 10 प्रतिशत का अंशदान करते थे और केंद्र सरकार भी इतना ही अंशदान करती थी, लेकिन 2019 में सरकार ने सरकारी योगदान को 14 प्रतिशत कर दिया था, जिसे बढ़ाकर अब 18.5 प्रतिशत कर दिया जाएगा। नयी एकीकृत पेंशन योजना 1अप्रैल 2025 से लागू होगी, तब तक इसके लिए संबंधित नियमों को बनाने के काम किया जाएगा और कर्मचारियों के पास एनपीएस यानी नेशनल पेंशन स्कीम या यूपीएस में रहने का विकल्प होगा।
एनपीएस के तहत दो अकाउंट होते हैं टायर 1 टायर 2 जिसे कोई भी खोल सकता है और निवेश कर सकता है। यूपीएस एक निश्चित पेंशन स्कीम है साथ ही फैमिली पेंशन भी मिलेगा। मिनिमम निश्चित पेंशन का भी प्रावधान है जबकि एनपीएस में ऐसा नहीं है। यूपीएस सुरक्षित पेंशन योजना है जबकि एनपीएस एक मार्केट लिंक योजना है लेकिन देश में सरकारी कर्मचारी काफी समय से पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग कर रहे हैं। पिछले 10 सालों से यह मसला उलझा हुआ है और कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है। इस योजना के लागू होने के साथ ही यह सवाल भी आने लगे हैं कि जब एनपीएस और यूपीएस का विकल्प है तो ओपीएस का विकल्प क्यों नहीं रखा गया? यदि यूपीएस में 50% देने की बात रखी गई है तो ओपीएस में भी तो यही 50% देने की बात कही गई है। फिर सरकार पुरानी पेंशन योजना लागू क्यों नहीं कर रही है?
दरअसल ओपीएस एक परिभाषित लाभ योजना है जो वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर समायोजन के साथ जीवन भर पेंशन के रूप में प्राप्त अंतिम वेतन के आधे हिस्से की गारंटी देती है। वहीं, एनपीएस एक परिभाषित योगदान योजना है जहां सरकारी कर्मचारी अपने मूल वेतन का 10 प्रतिशत योगदान करते हैं। इसके अलावा निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे कर्मचारियों के विषय में कुछ नहीं कहा गया है। यह कर्मचारी भी देश के विकास में टैक्स के रूप में रकम चुकाते हैं।
कई विधानसभा चुनाव में ओपीएस की मांग भाजपा पर भारी पड़ी है और वहां कांग्रेस को फायदा पहुंचा है। अब फिर से विधानसभा चुनाव का सिलसिला शुरू हो गया है ऐसे में भाजपा 370 जैसे कार्ड के अलावा नई पेंशन योजना द्वारा सरकारी कर्मचारियों को लुभा रही है। 23 लाख सरकारी कर्मचारियों को लाभान्वित होने की बात कही गई है और इन्हीं कर्मचारियों में से अधिकतर ने पुरानी पेंशन योजना की मांग रखी है। दूसरी ओर एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या यह चुनावी वादों से घिरे प्रधानमंत्री की छवि को सुधारने का प्रयास है?

~प्रियंका वर्मा माहेश्वरी

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चाटुकारिता करने वाला व्यक्ति ‘पत्रकार’ नहीं होता ~श्याम सिंह पंवार

किसी मीडिया संस्थान से मात्र ‘आईडेंडिटी कार्ड’ बनवा लेने से, हाँथ में माइक ले लेने से और वाहन पर ‘प्रेस’ का स्टीकर चिपका लेने से कोई ‘पत्रकार’ नहीं बन जाता है। ‘पत्रकार’ वह व्यक्ति नहीं होता है जो अपने मुहल्ले के लोगों के बीच धौंस जमाने के लिये रसूखदारों (कथित जनप्रतिनिधि, गैरजिम्मेदार अधिकारी आदि) के साथ बैठकर गप्पें बघारता है, उनके मनमुताबिक पेश किये गये खुलासों व विचारों को जनता के बीच परोसने के साथ-साथ उसके मनमस्तिष्क पर जबरिया थोपने में जुटा रहता है। ऐसा करने से ‘वह’ रसूखदारों के लिये तो चहेता बन जाता है जिनकी चाटुकारिता में वह लीन रहता है। वह व्यक्ति ‘पत्रकार’ नहीं होता है बल्कि एक चाटुकार ही होता है, लोग भले ही उसे पत्रकार कहते हैं और उसके बारे में उसके सामने खुलकर बोलने से कतराते रहते हैं, लेकिन देर-सबेर, उनकी सच्चाई सामने आ ही जाती है।
पत्रकारों से जुड़े ऐसे अनेक मामले प्रकाश में आ चुके हैं जिनसे सवाल पनपता है कि ‘पत्रकार’ ऐसे भी होते हैं क्या? तो मेरे नजरिये से जवाब यह है कि पत्रकार ऐसे नहीं होते हैं बल्कि पत्रकार का चोला ओढ़ कर पत्रकारिता के पेशे को कलंकित करने वाले वो शातिर लोग होते हैं जो निज स्वार्थ सिद्धि के लिये किसी भी सीमा तक गिर सकते हैं, उन्हें पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं होता है।
मेरे नजरिये से ‘पत्रकार’ देश का वह व्यक्ति है जो किसी रसूखदार की चाटुकारिता ना कर किसी भी मामले की सच्चाई की तह तक जाने में जुटा रहता है। जनता की समस्याओं को सरकारों तक पहुचाने व सरकारों की मंशा को जनता तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम बनता है। निष्पक्षता के साथ अपनी कलम चलाना अपना दायित्व समझता है।
लोकतांत्रिक देशों में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बाद ‘पत्रकारिता’ को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया है। ऐसे में देश की जनता की पत्रकारों से शुरू से ही यह अपेक्षा रहती है कि वे आमजन के साथ खड़े हों और जनता से जुड़े मसलों पर सरकारों से सवाल करें। हालांकि ऐसा करने से उनके सामने अनेक कठिनाइयाँ सामने आ सकती हैं और इसे नकारा भी नहीं जा सकता है।
विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका, जब अपने पथ से विचलित होता दिखता है, तब पत्रकार ही निष्पक्ष पत्रकारिता के माध्यम से तीनों को उनके ‘दायित्व का बोध’ कराने की जिम्मेदारी निभाता है। अतीत में जाकर इसके अनेक उदाहरण देखे जा सकते है और वर्तमान में भी शायद इसकी (निष्पक्ष पत्रकारिता) जरूरत है, लेकिन मौजूदा दौर में स्थिति बहुत बदल सी गई है और पत्रकारों की भूमिका अब सवालों के घेरे में आ गई है। जिनका उद्देश्य था, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका से सवाल करना आज वह खुद सवालों के घेरे में है। जिसका मुख्य उद्देश्य सच्चाई की तलाश करना, जनहित के मुद्दों पर सरकारों से सवाल करना था और आमजन के साथ खड़े रहना होता था, आज वह (पत्रकार) किसी भी सीमा तक गिर रहा है! पथप्रदर्शक की भूमिका निभाने वाला (पत्रकार) ही पथभ्रष्टक की भूमिका में पाया जा रहा है!
आखिरकार, यह स्थिति क्यों और कैसे बन रही है, इस ओर गंभीरता से विचार करना शायद समय की दरकार है जिससे कि पत्रकारिता की छवि धूमिल ना हो सके और पत्रकार को उसकी वास्तविक पहचान व सम्मान मिल सके।।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं भारतीय प्रेस परिषद के सदस्य हैं)

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दयानंद गर्ल्स पीजी कॉलेज में एक पेड़ मां के नाम तथा पेड़ लगाओ पेड़ बचाओ अभियान के अंतर्गत किया गया पौधारोपण

दयानंद गर्ल्स पीजी कॉलेज कानपुर में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के स्वयंसेवकों द्वारा एक पेड़ मां के नाम अभियान के अंतर्गत वृहद पौधारोपण किया गया । इस वर्ष की थीम “पेड़ लगाओ पेड़ बचाओ” के आधार पर समस्त वॉलिंटियर्स एवं प्राध्यापिकाओं ने पौधारोपण करते हुए निरंतर प्रयास से पेड़ो को बचाए रखने हेतु संकल्प लिया । इस अवसर पर उच्च शिक्षा निदेशालय, उत्तर प्रदेश शासन के निर्देशानुसार मातृ वाटिका का निर्माण भी किया गया। लगाए गए पौधों में मुख्यतः सागौन , आम , जामुन इमली, नीम , पीपल , पाखड़ , नींबू इत्यादि रहे। इस अवसर पर कुछ पौधे मातृ वाटिका में लगाए गए तथा कुछ पौधे छात्राओं को वितरित किए गए ताकि वह अपने घर, आंगन या प्रांगण में वह पौधा लगाकर उसकी रक्षा करें तथा उसे पाल पोसकर बड़ा करें।
इस अभियान के अंतर्गत आज यह दूसरा चरण था जिसमें कुल 50 पौधे लगाए गए प्रथम चरण में भी 50 पौधे स्वयं सेविकाओं को लगाने हेतु वितरित किए गए थे। महाविद्यालय प्राचार्य प्रो वंदना निगम में छात्राओं को वृक्ष लगाने तथा उनकी सुरक्षा करने के महत्व के बारे में विस्तार पूर्वक बताया। इस अवसर पर महाविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग, रसायन शास्त्र विभाग, भूगोल विभाग की समस्त प्राध्यापिकाओं समेत आइक्यूएसी इंचार्ज प्रो सुगंधा तिवारी एवं अलका श्रीवास्तव उपस्थिति रही। राष्ट्रीय सेवा योजना की 56 छात्राओं के द्वारा मातृ वाटिका के निर्माण में सक्रिय योगदान किया गया।

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योग गठिया के रोगियों को राहत पहुंचा सकता है

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि योगाभ्यास से गठिया (रूमेटाइड अर्थराइटिस-आरए) के रोगियों के स्वास्थ्य में काफी सुधार आ सकता है।

आरए एक पुरानी ऑटोइम्यून बीमारी है जो जोड़ों में सूजन का कारण बनती है। यह जोड़ों को नुकसान पहुंचाती है और इस रोग में दर्द होता है। इसके कारण फेफड़े, हृदय और मस्तिष्क जैसे अन्य अंग प्रणालियां भी प्रभावित हो सकती हैं। परंपरागत रूप से, योग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है।

डीएसटी द्वारा समर्थित, मोलेक्यूलर री-प्रोडक्शन एंड जेनेटिक्स प्रयोगशाला, एनाटॉमी विभाग और रुमेटोलॉजी विभाग एम्स, नई दिल्ली द्वारा एक सहयोगी अध्ययन ने गठिया के रोगियों में सेलुलर और मोलेक्यूलर स्तर पर योग के प्रभावों की खोज की है। इससे पता चला है कि कैसे योग पीड़ा से राहत देकर गठिया के मरीजों को लाभ पहुंचा सकता है।

पता चला है कि योग सेलुलर क्षति और ऑक्सीडेटिव तनाव (ओएस) को नियंत्रित करके सूजन को कम करता है। यह प्रो- और एंटी-इंफ्लेमेटरी साइटोकिन्स को संतुलित करता है, एंडोर्फिन के स्तर को बढ़ाता है, कोर्टिसोल और सीआरपी के स्तर को कम करता है तथा मेलाटोनिन के स्तर को बनाए रखता है। इसके जरिये सूजन और अतिसक्रिय प्रतिरक्षा प्रणाली चक्र का विघटन रुक जाता है।

मोलेक्यूलर स्तर पर, टेलोमेरेज़ एंजाइम और डीएनए में सुधार तथा कोशिका चक्र विनियमन में शामिल जीन की गतिविधि को बढ़ाकर, यह कोशिकाओं की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है। इसके अतिरिक्त, योग माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन को बेहतर बनाता है, जो ऊर्जा चयापचय को बढ़ाकर और ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करके टेलोमेर एट्रिशन व डीएनए क्षति से बचाता है।

डीएसटी द्वारा समर्थित, एम्स के एनाटॉमी विभाग के मोलेक्यूलर री-प्रोडक्शन एंड जेनेटिक्स प्रयोगशाला में डॉ. रीमा दादा और उनकी टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन में दर्द में कमी, जोड़ों की गतिशीलता में सुधार, चलने-फिरने की कठिनाई में कमी और योग करने वाले रोगियों के लिए जीवन की समग्र गुणवत्ता में वृद्धि दर्ज की गई। ये समस्त लाभ योग की प्रतिरक्षात्मक सहनशीलता और मोलेक्यूलर रेमिशन स्थापित करने की क्षमता में निहित हैं।

साइंटिफिक रिपोर्ट्स, 2023 में प्रकाशित अध्ययन https://www.nature.com/articles/s41598-023-42231-w से पता चलता है कि योग तनाव को कम करने में मदद कर सकता है, जो गठिया  के लक्षणों के लिए एक ज्ञात कारण है। कोर्टिसोल जैसे तनाव हार्मोन को कम करके, योग अप्रत्यक्ष रूप से सूजन को कम कर सकता है, माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन में सुधार कर सकता है, जो ऊर्जा उत्पादन और सेलुलर स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और -एंडोर्फिन, मस्तिष्क-व्युत्पन्न न्यूरोट्रॉफ़िक कारक (बीडीएनएफ), डीहाइड्रोएपियनड्रोस्टेरोन (डीएचईए), मेलाटोनिन और सिरटुइन-1 (एसआईआरटी-1) के बढ़े हुए स्तरों से को-मॉर्बिड डिप्रेशन की गंभीरता को कम कर सकता है। योग न्यूरोप्लास्टिसिटी को बढ़ावा देता है और इस प्रकार रोग निवारण रणनीतियों में सहायता करता है तथा को-मॉर्बिड डिप्रेशन की गंभीरता को कम करता है।

इस शोध से गठिया रोगियों के लिए पूरक चिकित्सा के रूप में योग की क्षमता का प्रमाण मिलता है। योग न केवल दर्द और जकड़न जैसे लक्षणों को कम कर सकता है, बल्कि रोग नियंत्रण और जीवन की बेहतर गुणवत्ता में भी योगदान दे सकता है। दवाओं के विपरीत, योग के कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं और यह गंभीर ऑटोइम्यून स्थितियों के प्रबंधन के लिए एक सस्ता व प्रभावी तथा स्वाभाविक विकल्प प्रदान करता है।

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हैरान हूँ मैं कभी इस बात पर कभी उस बात पर

आज कल यू ट्यूब पर लगातार तरहां तरहा के उपाय बताये जा रहे है।लोगों को कन्फ़्यूशज किया जा रहा है,अलग अलग बातें समझा कर।बेचारे लोग अपनी समस्याओं से परेशान हो कर पंडित ज्योतिषी से पूछते जा रहे हैं !!कि बताये हमारे कौन सा ग्रह अच्छा है कौन सा बुरा .. पंडित जी कोई ऐसा उपाय बता दीजिए ,बस पैसा सब तरफ़ से बरसना शुरू हो जाये।
मैं कहती हूँ अगर क़िस्मत मे पैसा होगा, तो आ ही जायेगा.. अगर पैसा क़िस्मत मे नही है तो जो हम पंडितों से पूछ पूछ कर, कभी ये उपाय तो कभी वो उपाय कर रहे होते है ,उससे मुझे नहीं लगता कि पैसा आ जायेगा .. चलो मान भी लें कि उपाय करने से कहीं से पैसा आ भी गया या किसी जप ,तप ,साम ,दाम ,दंड ,भेद से कहीं पैसा इकट्ठा हो भी गया तो दोस्तों ..
वो धन कुछ समय तो सुख दे सकता है हमेशा नही।कभी-कभी ऐसा धन दुख ही दे कर जाता है।
हैल्थ प्रोब्लम, बच्चों का बिगड़ना , क्लेश या कोई और समस्या ले कर आता क्योंकि इसे हमने अपनी ज़िद्द से अर्जित किया।
पैसा लम्बे समय तक वही फलता फूलता है जो नेक कमाई ,साफ़ मन से अर्जित किया हो। हम लोग व्रत भी करते है तो भी शर्तों पर।भगवान के सामने पहले बात रखी जाती है कि हे भगवान आप मेरा ये काम करें तो मैं आप का व्रत करूँगा।
ये तो ऐसी बात है कि हमारा बच्चा ज़िद्द करे, मां बाप से कि आप को मेरी बात माननी होगी …
नहीं तो मैं अन्न नहीं ग्रहण करूँगा।
जबकि बच्चे को तो पता भी नहीं कि वो उसकी वो माँग सही है भी या नही।
दूसरी बात ,जब हमारा बच्चा इस तरह की ज़िद्द ले कर बैठ जाता है तो हमें क़तई अच्छा नहीं लगता..कंयूकि माँ बाप को पता होता है क्या देना ज़रूरी है बच्चे के लिए ,वो तो वक़्त आने पर दे ही
देंगे ।अब किसी छोटे बच्चे को उसकी ज़िद्द पर कार तो नहीं दी सकती। वो तो जब वो उसके काबिल होगा तो उसका पिता उसे वक़्त आने पर ले भी देगा।
इक होड़ सी ..
इक भागदौड़ सी लगी हुई है हर कहीं।सब कुछ पाने की चाह रखे हुए है लोग।तुम उससे आगे और मैं तुम्हारे आगे।
ये कैसा जीवन है ?जिसमें शान्ति नही,सन्तोष नही ,इक दूसरे के सिर पर पैर रख कर आगे बढ़ने की चाहत हमें कहीं नहीं ले जा सकती।
अगर ग्रहों की बात करें तो हमें किसी से पूछने की ज़रूरत है तो ही नहीं।दोस्तों ।
सब उपाय हमारे ही आसपास है ।
हमारे अंदर ही है।
सिर्फ़ उन्हें साफ़ साफ़ देखने, समझने और व्यवहारिक जीवन में लाने की ही ज़रूरत है।
🌹
पिता ..” सूर्य ग्रह “का प्रतीक है।
जो व्यक्ति पिता की इज़्ज़त करता है,उनकी सेवा करता है उनपर किसी प्रकार का खर्च , उनके इलाज पर खर्च करता है
उनके पास वक़्त निकाल कर बैठता है ,पैरो को दबाता है …
अवश्य ही उसका सूर्य बलवान होता है। उसे सूर्य ग्रह को उंचा करने के लिए कोई उपाय की ज़रूरत है ही नही।अगर बाप क तकलीफ़ दोगे या उससे किसी तरह का छल करोगे ,तो कितना भी आप सूर्य को जल चढ़ा लें..
सूर्य नीच का ही रहेगा।
पिता को हर सुख, हर सुविधा दे कर ही हम अपना सूर्य बलवान कर सकते है।
🌹ऐसे ही चन्द्र ग्रह
इस ग्रह के नीच होने पर मन की कमजोरी ,बीमारी और उदासी घेरे रहती है “माता का रूप है “उसको शान्त करने के लिए माता की सेवा ,उसका सम्मान ,माता को सुन्दर कपड़ा ,उनको सुगन्धित फूल देना ।उसकी हर इच्छा को पूरा करना ही “चन्द्र को उंचा “करने के उपाय है 
🌹भाई ,दोस्त ,यार ये सब ही मंगल ग्रह के ही रूप है
इन सब से किया गया छल कपट ,निरादर ,हमारे मंगल ग्रह के दूषित कर देता है।पंडित कह देते है पीली या लाल दालों को पानी में डालो ..या किसी आनाथ आश्रम में पीली चीजो का दान कर दो ..
मैं तो बस यही कह रही हूँ अपने किसी आसपास नज़र घुमा कर देखिए ,
अपने किसी दोस्त को या अपने छोटे या बड़े भाई को ,..कहीं उसे तो हमारी सहायता की आवश्यकता नहीं।
उनको सहारा दो।कभी ऐसा भी होता है आप के घर राजाओं जैसा भोजन खाया जा रहा होता है और आप का भाई या कोई दोस्त या कोई आप का जानने वाले के यहाँ दाल खाना भी नसीब नहीं होता।
सो किसी ऐसे की मदद ही आप का मंगल को उंचा कर देगी।भगवान ने हमारे लिए सारे उपाय बहुत सरल और हमारे आसपास ही रखे हुए है।
मंगल को उंचा करने का यही सीधा सा तरीक़ा है अपने भाई ,यार ,दोस्तों से बना कर रखे बिना की छल कपट के। फिर देखिए मंगल आप का उंचा ही होगा।
🌹“बुध का रूप “बहन या बेटी ही है
अपनी बहन या किसी की बहन , अपनी बेटी या किसी की बेटी की इज़्ज़त करने से। उसके दुख सुख में खड़े होने से हमारा बुध ग्रह को ताकतवर बन जाता है पंडित भी हरी चीजों का दान बता देते है मगर कोशिश करें ,दान सब से पहले अपने आसपास के परिवारों से ही शुरू करे।
🌹“बृहस्पति ग्रह “
गुरू का रूप ही है
गुरू को सम्मान देना उसकी आज्ञा को मानना, उसकी सेवा मे लगना। बृहस्पति ग्रह को ख़ुश करने में सक्षम है
और हमारा उच्च का गुरू हो जायेगा 
🌹“शुक्र ग्रह का रूप “
पति या पत्नी ही है जिनके साथ हमारा सम्बंध जुड़ता है।
पति को ख़ुश रखना ,
उसका सम्मान करना ,
उसको अपने हाथों से भोजन बना कर खिलाना,उसके हर काम को ह्रदय से करना..,
उसके दुख सुख में साथ निभाना शुक्र ग्रह को उच्च कर देता है।
ऐसे ही पत्नियों को हर तरह का सुख देना पुरुषों का शुक्र ग्रह उच्च का कर देता है।
🌹“शनि ग्रह का रूप “
हमारे साथ जुड़े हुए पिता के रिश्तेदार जैसे
चाचा ,ताया ,बुआ
माँ से जुड़े रिश्तेदारों का सम्मान…बुजुर्गों का सम्मान ,उनकी सेवा से शनि उच्च के होते हैं ।
पक्षियों और जानवरों पर दया भाव रखना उनको पानी या खाने को कुछ देने से भी शनि उच्च के होते है नौकरों को नौकर न समझ कर उन्हें भी इज़्ज़त देना शनि ग्रह उच्च का कर देता है शनि आप के व्यवहार को देखता है कि आप किस के साथ क्या व्यवहार करते है सो अपनी सोच को साफ़ और सुव्यवस्थित रखने पर शनि की किरपा मिलती रहती है ।
🌹“राहू ग्रह “
ससुराल के रूप में होता है ।
उनसे बना कर रखिए।जो वो दे दे प्रसाद समझ कर ग्रहण कर लिया जाये ,
उनसे कभी माँगा नहीं जाना चाहिए बल्कि उनको देने की इच्छा ही राहू को उच्च का कर देती है।अपने शरीर की सफ़ाई ,अपने घर की सफ़ाई ,अपनी रसोई और अपने घर के शौचालय को साफ़ रखने से राहू उच्च का हो जाता है अपने घर में चीजों को सही तरीक़े सलीक़े से रखने से राहू उच्च का होता है।
🌹“केतु ग्रह..”
पंडित, महात्मा ,साधु या गुरू रूप है
उनकी सेवा करना ..
केतु को मोक्ष का कारक ग्रह भी माना जाता है इसीलिए इस मे सब से अच्छा बर्ताव .. साफ़ मन .. दया भाव .. छल कपट से दूर रहने पर ही केतु उच्च के होते है।
ग्रह कोई भी हो ,
अगर आप अच्छे हैं।
अच्छे विचार रखते है
सब की मदद कर रहे है।
यथा योग्य दान भी कर रहे है।
बुरे ग्रह का प्रभाव चाहे व्यक्ति पर पड़ तो सकता है मगर वो आप को नुक़सान नहीं पहुँचा पायेगा।
सब का भला करना
और सब के लिए मंगल की कामना करने वाले का कोई भी ग्रह कभी नुक़सान नहीं करता।
सब विकारों से दूर होने पर ही केतु हमें मोक्ष की ओर ले कर जायेगा
दोस्तों !!
बात बहुत सीधी और सरल है। अब सोचने की बात है ये सब उपाय इक सुलझा हुआ व्यक्ति बहुत आसानी से कर सकता है बस अपनी अन्तरात्मा को जगाने की ही ज़रूरत है।ये सब बातें तो हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बातें शामिल होनी ही चाहिए ।इसमें केवल अच्छा स्वभाव ही रखने की आवश्यकता है
इसमें न कोई पैसा ख़र्च करने की ज़रूरत है ,न किसी पंडितों को पैसा देने की । न ही किसी के पास जाने की ज़रूरत है यहाँ तो अपने आप को और अपनी द्वारा की गई हर गतिविधियों पर नज़र रखने की ज़रूरत है 
✍️ लेखिका स्मिता

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मज़े की लाइफ

दैनिक भारतीय स्वरूप, कुछ ख्याल अक्सर अचानक आते हैं यूंकि बेमतलब से लगते हैं लेकिन सोचने पर मजबूर करते हैं कि हम जिंदगी को किस नजर से देखते हैं और शायद हमारा नजरिया हमारी जिंदगी के रास्ते भी तय करता है। कितने ही दुख सुख आते जाते हैं, कितने ही लोग मिलते बिछड़ते हैं जिंदगी में, पता नहीं कब कौन दोस्त बन जाता है और कब किसका साथ छूट जाता है। ये वक्त, ये पल ऐसे होते हैं जिनमें डूबकर हम बह जाते हैं या फिर मौन साधकर तटस्थ हो जाते हैं। कुछ ऐसे अपनों से भी वास्ता रहता है जो जिंदगी में नमक और शक्कर की तरह घुले से रहते हैं लेकिन फिर भी जिंदगी नींबू निचोड़ कर शरबत बना ही देती है क्योंकि हमेशा मुस्कुराते हुए हमें संबंधों को स्वीकारना होता है। कभी-कभी लगता है कि यह सब प्रपंच छोड़कर “मजे की लाइफ” का आनंद लेना चाहिए कोई कुछ बोल रहा हो तो बोलने दो उसे हम अपने ही गीत में मगन रहें, कोई पैर खींचना चाहे तो उसके साथ बैठकर बतिया ही लिया जाए। यह रफ्तार भरी जिंदगी कब थम जाती है यह भी हमें देर से मालूम पड़ता है। लब्बोलुआब कुछ यूं है कि पंचायती स्वभाव वाले प्राणी हमेशा खुश रहते हैं। तांक – झांक, लगाई – बुझाई शगल रहता है उनका और कुछ नहीं तो मनोरंजन ही हो जाता है। मोहल्ले में सबसे ज्ञानी भी वही रहते हैं।

“मोहल्ले में सबसे ज्ञानी हम ही हैं ऐसा हम मानते हैं अब क्या करें सबको मालूम हो या ना हो हमारा काम है ज्ञान बांटना और कुछ इधर-उधर करना। अब घर में बहुरिया है तो घर की चिंता से हम मुक्त है सारा जीवन खट लिया तो अब हम मजे से अपनी लाइफ जिएंगे।”
“पता नहीं लड़कियाँ एक ही शहर में शादी करके मायके में काहे पड़ी रहती है, समझ में नहीं आया आज तक। अब हम पूछे तो बुरे बन जाए फिर भी मन की कुलबुलाहट पर काबू कैसे पाएं तो पूछ ही लेते हैं कि का हो लल्लन की दुल्हिन बिटिया घर में है? सब कुसल मंगल तो है ना ?”
सवाल हम पूछा तो जवाब मा सवाल हम ही से पूछ लिया गया।
“अरे चाची! तुमका काहे चिंता हो रही है?”
चाची:- “अरे कुछू नाहीं! मुन्नी को देखा तो पूछ लिया। कौउनो बात नहीं सुखी रहो। रामदुलारी हमका मिलीं रहीं तो उनहीं बताइन कि मुन्नी आई है तो हाल-चाल लेक खातिर आए गयन और तुमरी सहेली बबीता के घर से झगड़े की आवाज आवत रही। लागत भय कि बहुरिया सास का खूब खरीखोटी बोलत रही। रोना धोना मचा रहै खूब, आवाज आवत रही।”
“अरे चाची! सब घर में कुछ ना कुछ होत है तुम काहे परेसान होती हो? घर मा बैइठ के भजन किया करो।”
चाची:- “हां बिटिया! अब यही करना ही है मगर आंख कान नाक बंद थोड़ी कर लेंगे।”
“चाची तुम तुमरी कहो कल तुम्हार बिटेवा तुमका का बोलत रहै ? काहे डांटत रहै?”
अरे कुछ नहीं! चलो हम जा रहे हैं, देर हो रही है। बिटिया लोगन का बहुत दिन मायका मा नाही रहेक चाही। ससुराल मा ही नीक लगतीं हैं और सुनो लल्लन की दुल्हिन हम अपना समझ कै बोलत हन नहीं तो हमका का पड़ी है। राधे-राधे..”
गली के नुक्कड़ पर सहेली नंदा मिल गई दोनों बतियाने लगी। कहां से आ रही हो जी?
“अरे लल्लन के घर पर रुक गये रहन पता है पंदर दिन से घर पर है मुन्नी, हमका तो दाल में कुछ काला नजर आ रहा है?”
“अरे कुछ नहीं! सब कामचोरी है ससुराल में काम करना पड़ता है तो भाग कर मायके आ जाती हैं।”
“हम्म यही बात होई! अच्छा सुनो तुम मंदिर गई रहौ का? बहुत चोट्टा पंडित है सब डकार लेत है फिर भी पेट नहीं भरत है उका ऊपर से ही – ही करत रहत है बस।”
“ऐजी तुम फालतू ना बोला करो उ अपना काम करत हय बेचारा, जो बुलावत है तय कर लेत है उतना मा ही सब होई जात है।”
“का हमका कुत्ता काटा है जो हम ई मेर बोलब? हंय?. हम देखा है कल रजनी कहत रही।”
“अच्छा छोड़ो तुम जाय के खुदही तय कर लो हम का देर हो रही है राधे-राधे।”
चाची:- “ठीक है! राधे-राधे। आजकल कौउनो से कुछू कहे वाला नहीं उल्टे हमरे ऊपर बरस पड़त हैं।”
घर पहुंचते ही… अम्मा जी आ गई? चौधरी वाले काम हो गए हों आपके तो जरा सब्जी काट दो हमको!”
“हां! लाओ दे दो अब यही करेंगे!”
कहने का मतलब यही है कि आप अपनी जिंदगी को अपने मनमुताबिक जियें। जिंदगी में कुछ हासिल करें या ना करें मगर सुकून जरूर हासिल करें। लोगों से जुड़ाव लगाव और संबंध इस जीवन की कमाई है और इसे निभाना वास्तव में कसौटी है कसौटी पर खरा उतरना भी कसौटी ही है आसान नहीं होता मगर यही हमारी पूंजी भी है। अपनी इच्छाओं अपनी भावनाओं और खुद अपने आप को नकारात्मकता से दूर रख कर जीवन का आनंद लेना चाहिए।- – प्रियंका वर्मा माहेश्वरी 

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राजनीतिक महाभारत…. जीत किसकी?

देश में चल रहे 2024 लोकसभा चुनाव का सियासी घमासान खत्म हो गया है और अब सबकी नजरें प्रधानमंत्री के शपथ समारोह पर है। सियासी युद्ध के परिणाम लोगों की सोच से परे रहा हालांकि साम दाम दंड भेद वाली नीति भाजपा की हमेशा से रही है मगर इस बार भाजपा की पकड़ कमजोर साबित हुई। इस चुनाव के नतीजों ने जहां बीजेपी की हार ने लोगों को चौकाया वहीं कांग्रेस का मजबूती से खड़ा होना और सत्तारूढ़ दल को टक्कर देना लोगों को आश्चर्य में डाल गया।

ये दीगर बात है कि कांग्रेस बहुमत नहीं ला पाई लेकिन एक मजबूत विपक्ष के रूप में खड़ी हुई है हालांकि सत्ता तक पहुंच बनाने के लिए उसे अभी कड़ी मेहनत की जरूरत है।
उत्तर प्रदेश में भाजपा ने जिन प्रदेशों पर आंख मूंद कर भरोसा किया था इस बार वहीं से इन्हें मुंह की खानी पड़ी। अयोध्या जैसे शहर से हार जाना जरा अविश्वसनीय लगता है। जो शहर राम मंदिर के प्रचार और जय श्री राम के नारों से गूंजता था वहां भाजपा की हार अप्रत्याशित है हालांकि कई कारण बताए जा रहे हैं।
फैजाबाद लोकसभा सीट के नतीजे से हर कोई हैरान है जहां सरकार द्वारा राम मंदिर का निर्माण कराया गया था और मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी ऐसे समय  की गई जब इसी साल देश में लोकसभा चुनाव होने वाले थे। यह दीगर बात है कि यह कार्य भी चुनावी रणनीति के तहत ही किया गया था मगर इन सब के बावजूद भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। ध्यान दें कि यहां साल 2022 की विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की जमीन दरक चुकी थी और 2024 के लोकसभा चुनाव आते-आते पूरी तरह खिसक गई। 2022 के चुनाव में भाजपा ने जिले में पांच विधानसभा सीटों में से 2 सीटें गंवा दी थी फिर भी भाजपा सजग नहीं हुई और 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने है।
हिंदुत्व के रथ पर सवार भाजपा ने स्थानीय मुद्दों और मसलों को दरकिनार किया। 2020 में जब विकास कार्य शुरू हुआ तो सड़कों के चौड़ीकरण के दौरान बड़ी संख्या में मकान और दुकान टूटे। बड़ी संख्या में लोगों के घर उजड़े लोगों के रोजगार छिनें। व्यापारी वर्ग का आरोप है कि उन्हें मकान और दुकानों के अधिग्रहण का उचित मुआवजा नहीं मिला। जो लोग अपनी जमीन से संबंधित कागज पेश नहीं कर सके बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को मुआवजा नहीं मिला। अयोध्या के हाई प्रोफाइल बनने की वजह से यहां आम लोगों की सुनवाई ना तो भाजपा के नेताओं ने की और ना ही यहां के अधिकारियों ने की यही वजह है कि भाजपा से लोगों का मोह भंग होने लगा।
अयोध्या में करीब 84% हिंदू और 13% मुसलमान है। इसके बावजूद यहां पर भाजपा का हिंदुत्व का कार्ड फेल हो गया। स्थानीय हिंदू मुसलमानों ने खुलकर कहा कि बाबरी की घटना के बाद यहां पर लगातार भाईचारे को बिगड़ने का काम किया गया है एक समय था कि जब मुसलमानों के बनाये खड़ाऊं वहां के साधू संतों के पैर में सजते थे।
अयोध्या के आसपास के इलाकों में ज्यादातर किसान है और जो खेती किसानी से अपना जीवन यापन करते हैं। ऐसे में आवारा पशुओं की समस्या को भाजपा ने नजरअंदाज किया। खेतीबाड़ी से हुए नुकसान के चलते किसानों ने अपने खेत कई सालों तक खाली छोड़ रखे थे। किसानी से लागत नहीं निकलती थी और आवारा पशुओं द्वारा नुकसान अलग होता था। समाजवादी पार्टी ने इन मुद्दों पर  मोर्चा संभाला और जन समर्थन हासिल किया।
दूसरी बात महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त जनता ना तो कांग्रेस को वोट देना चाह रही थी और ना ही भाजपा को देना चाह रही थी ऐसे में लोगों ने नोटा को अपनाया और बड़ी संख्या में ऐसे लोग वोट देने नहीं गए। यह चुनाव इस बात का प्रमाण है कि धर्म से देश नहीं चलता बल्कि बुनियादी मुद्दे ज्यादा जरूरी होते है।

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साहित्यिक संस्था ‘श्यामार्चना फाउंडेशन’ का सातवां स्मृति सम्मान समारोह व काव्य संगमन संपन्न

कानपुर 1 जून भारतीय स्वरूप संवाददाता,bकानपुर शहर की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ‘श्यामार्चना फाउंडेशन’ का सातवां स्मृति सम्मान समारोह व काव्य संगमन आज दिनांक 1 जून 2024 को संस्था के प्रधान कार्यालय जवाहर नगर में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में लखनऊ, कानपुर, उन्नाव आदि शहरों के साहित्यकार उपस्थित रहे। इस वर्ष का स्मृति सम्मान प्रख्यात साहित्यकार व अंतरराष्ट्रीय कवि डॉक्टर सुरेश अवस्थी जी(कानपुर) प्रसिद्ध कथा वाचक डॉक्टर संत शरण त्रिपाठी जी ( लखनऊ) ख्यातिप्राप्त कवयित्री डॉ कमल मुसद्दी जी( कानपुर) व इं श्रवण कुमार मिश्रा ( लखनऊ)जी को दिया गया ।यह कार्यक्रम दो सत्रों में हुआ । प्रथम सत्र में श्यामार्चना फाउंडेशन के संस्थापक डॉ प्रदीप अवस्थी, अध्यक्ष निरंजन अवस्थी व कोषाध्यक्ष रेखा अवस्थी जी ने सभी साहित्यकारों को अंग वस्त्र,स्मृति चिन्ह, मोती माल, व श्रीफल भेंट कर उनका सम्मान किया व सभी का काव्यपाठ हुआ।द्वितीय सत्र में सभी साहित्यकारों के भोजन उपरांत काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसमे श्री अजीत सिंह राठौर (लुल्ल कानपुरी), अंशुमन दीक्षित,  मनीष रंजन त्रिपाठी ,डॉ कमलेश शुक्ला जी,  दिलीप दुबे,  अमित ओमर,डॉ नारायणी शुक्ला ,डॉ प्रमिला पांडे, अमित पांडे, डॉ दीप्ति मिश्रा, पी के शर्मा आदि सभी ने बेहतरीन काव्य पाठ किया। कार्यक्रम में डॉ अजीत सिंह राठौर (लुल्ल कानपुरी) की 14 वीं बाल गीत पुस्तक ‘कंचे’ का लोकार्पण भी हुआ। कार्यक्रम का शानदार संचालन स्वैच्छिक दुनिया के संस्थापक व प्रतिष्ठित कवि डॉ राजीव मिश्रा जी ने किया।

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