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सम्पादकीय

भारतीय पुनर्जागरण के पुरोधा पुरुष, देशभक्त संत एवं विनम्रता की बेमिसाल नजीर थे स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवोकानन्द की शिक्षाएँ आज भी राह दिखाती हैं, नयी ऊर्जा प्रदान करती हैं

महापुरुषों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती। उनका मानवहितकारी चिन्तन एवं कर्म कालजयी होता है और युगों-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता है। स्वामी विवेकानंद हमारे ऐसे ही एक प्रकाश-स्तंभ हैं, वे भारतीय संस्कृति एवं भारतीयता के प्रखर प्रवक्ता, युगीन समस्याओं के समाधायक, अध्यात्म और विज्ञान के समन्वयक एवं आध्यात्मिक सोच के साथ पूरी दुनिया को वेदों और शास्त्रों का ज्ञान देने वाले एक महामनीषी युगपुरुष थे। जिन्होंने 4 जुलाई 1902 को महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए थे। स्वामी विवेकानन्द का संन्यास एवं संतता संसार की चिन्ताओं से मुक्ति या पलायन नहीं था। वे अच्छे दार्शनिक, अध्येता, विचारक, समाज-सुधारक एवं प्राचीन परम्परा के भाष्यकार थे। काल के भाल पर कुंकुम उकेरने वाले वे सिद्धपुरुष हैं। वे नैतिक मूल्यों के विकास एवं युवा चेतना के जागरण हेतु कटिबद्ध, मानवीय मूल्यों के पुनरुत्थान के सजग प्रहरी, अध्यात्म दर्शन और संस्कृति को जीवंतता देने वाली संजीवनी बूटी, वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु हैं। वे अनावश्यक कर्मकांडों के विरुद्ध थे और हिन्दू उपासना को व्यर्थ के अनेक कृत्यों से मुक्त कराना चाहते थे। उन्होंने समाज की कपट वृत्ति, दंभ, क्रूरता, आडम्बर और अनाचार की भर्त्सना करने में संकोच नहीं किया। इन्हीं कारण वे तत्कालीन युवापीढ़ी के आकर्षण का केन्द्र बने, इसमें कोई शक नहीं कि वे आज भी अधिकांश युवाओं के आदर्श हैं। उनकी हमेशा यही शिक्षा रही कि आज के युवक को शारीरिक प्रगति से ज्यादा आंतरिक प्रगति की जरूरत है। वे युवकों में जोश भरते हुए कहा करते थे कि उठो मेरे शेरों ! इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो। वे एक बात और कहते थे कि जो तुम सोचते हो वह हो जाओगे। ऐसी ही कुछ प्रेरणाएं हैं जो आज भी युवकों को आन्दोलित करती हैं, पथ दिखाती हैं और जीने का दर्शन प्रदत्त करती हैं। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नया भारत निर्मित करने की बात कर रहे हैं, उसका आधार स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाएं एवं प्रेरणाएं ही हैं।

स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में उनके प्रयासों एवं प्रस्तुति के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक मूल्यों को सुदृढ़ कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीव स्वयं परमात्मा का ही एक अवतार हैं। इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है।

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तनाव पूर्ण और चुनोतियों भरे इस वक़्त में आपस में एक दूसरे का हौसला बढ़ाएं

अतुल दीक्षित ग्रुप एडिटर भारतीय स्वरुप समाचार पत्र

समय बहुत ही तनावपूर्ण चल रहा है। किसी को भी पारिवारिक या व्यवसायिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है तो कृपया एक दूसरे से जरूर साझा करें और बात करें। ग्रुप में मैसेज के जरिए ही नहीं बल्कि फोन पर भी एक दूसरे से बात करें। यह साल नफा नुकसान देखने का नहीं है बल्कि अपने मनोबल को बनाए रखने का और अपनी सेहत को बचाए रखने का है। नौकरी में या अपने काम धंधे में बेशक नुकसान हो रहा हो लेकिन यदि आपने अपनी सेहत बचा ली तो यह इस समय का सबसे बड़ा मुनाफा है। एक दूसरे से बात करते रहिए और आपस में सब का हौसला बढ़ाते रहिए। अभी हम सब की जरूरत और जिम्मेदारी है कि एक दूसरे के साथ सकारात्मक चीजों को साझा करें।

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संपादक की कलम से:- कोरोना वारियर्स पे हमले कहीँ साजिश तो नहीँ

साजिश तो नहीं प्राण बचाने वालों पर ही प्राणघातक हमले। पूरे भारत में जिस तरह कोरोना फाइटर्स के ऊपर कुछ लोग गोलियों, तेजाब की बोतलों,ईंट- पत्थरों, लाठी-डंडों से जानलेवा हमला कर रहे हैं, बिना वस्त्र के सामने आ रहे हैं, अन्नपूर्णा का अपमान कर रहे हैं, कहीं यह कोई बड़ी साजिश का हिस्सा तो नहीं। यह लोग ऐसी स्थितियां पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना फाइटर्स अपना आपा खो कर इनके प्रश्न का उत्तर उस भाषा में दें जिसमें यह चाहते हैं। या फिर यह चंद लोग यह चाहते हो कि यह लोग धैर्य खोकर इनकी मदद करना बंद कर दें, जिससे यह राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर यह कह सकें देखो हम लोगों के साथ अत्याचार हो रहा है। हमारे साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है। कोरोना जैसी महामारी के दौरान भारतीय हमारा इलाज भी ठीक ढंग से नहीं कर रहे हैं। इलाज की बात करने पर हमारे साथ यहां अत्याचार होता है। टेलीविजन चैनलों पर डिबेट में जिस तरह की भाषा का यह उपयोग कर रहे हैं उससे इनके दो मकसद पूरे होते हैं जो हमें पूरे नहीं होने देने हैं।पहली इनके विचारों को सुनकर कोरोना फाइटर्स ही नहीं आम जनता नाराज होकर कोई ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त करें जिससे देश में स्थितियां बिगड़े दूसरी इनकी ना सुनने वाली बातें को सुनकर भी लोग शांत रहें, जिससे यह अपने लोगों से यह कह सकें इनसे और भी ज्यादा अभद्रता आक्रामकता के साथ पेश आओ। इनमें हिम्मत नहीं कि यह हमारा कुछ बिगाड़ सकें। कहीं ऐसा तो नहीं ऐसा करने के लिए हमारे देश के अंदर ही कुछ लोग अपने राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए इन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रहे हों। यदि ऐसा हो रहा है तो यह अगर भी दुर्भाग्यपूर्ण है। इन विषम परिस्थितियों में हमारे कोरोना फाइटर्स के साथ-साथ शासन प्रशासन को भी बड़े धैर्य के साथ निर्णय लेते हुए मानसिक, शारीरिक रूप से बीमार लोगों के लिए काम करना है। इनके पर्दे के पीछे के आकाओ के जो मंसूबे हैं उन्हें कतई नहीं पूरे होने देना है। यह जो कर रहे हैं यह इनकी संस्कृति संस्कार हैं हमें अपने संस्कृति, संस्कारों के अनुसार कार्य करना है। मैं मानता हूं जो यह हरकतें कर रहे हैं कतई बर्दाश्त करने योग्य नहीं है, लोगों का आक्रोशित होना स्वाभाविक है।लेकिन फिर भी यह मानते हुए कि यह नादान है, नासमझ है इनके जीवन रक्षा के लिए जो भी संभव है वह हमें कार्य करने हैं। ऐसा करके इनके पर्दे के पीछे जो आका बैठे हैं जो अपने राजनीतिक फायदे के लिए भारत में अस्थिरता फैलाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं उनके विचारों, मंसूबों को हमें पूरा नहीं होने देना है। हां यह जो कोरोना फाइटर्स के साथ लगातार घटनाएं हो रही हैं उसकी गहन जांच होनी चाहिए, कहीं यह राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय साजिश तो नहीं।

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