उन्नाव के इस मदरसे में भ्रष्टाचार “गुलजार” है.
जिस जिले और मंडल का मदरसा, वहीं की एक भी भर्तियां नहीं!
कानपुर 17 सितंबर भारतीय स्वरूप संवाददाता, उन्नाव/शुक्लागंज। जिला उन्नाव में यूं तो दर्जनों मदरसे हैं, लेकिन केवल दो ही मदरसे सरकार की ग्रांट-इन-ऐड की लिस्ट पर हैं। इनमें से एक बांगरमऊ में, तो दूसरा शुक्लागंज में है। दुख की बात ये कि उन्नाव के इन दोनों ही अनुदानित मदरसों में अनियमितताओं का अंबार है। शुक्लागंज स्थित “मदरसा गुलजार-ए-हिंद तालीमी मरकज” के प्रबंधक तो संचालन से लेकर शिक्षकों की भर्तियों तक में जबरदस्त अनियमितताएं बरतने के बावजूद बचते आ रहे हैं। इस कारण खुद को नियम-कानून और संविधान से ऊपर समझने की गलतफहमी पाल बैठे हैं। वो पूर्व सरकारों द्वारा दी गई “भ्रष्टाचार और लूट की खुली छूट” वाली मानसिकता से उबर नहीं पा रहे हैं, ओवर कॉन्फिडेंट हैं। दरअसल कानपुर के जूही निवासी प्रबंधक के इस मदरसे में केवल “भ्रष्टाचार ही गुलजार” है। जानकारों के अनुसार कानपुर के एक मदरसा माफिया और दामाद का शुक्लागंज के इस मदरसे की भर्तियों में बड़ा रोल है। माफिया और इनके दामाद ने अपने कन्नौज के रिश्तेदारों को यहां पर भर्ती करवाया है। बाद में “म्यूचुअल ट्रांसफर” करेंगे।
“मदरसा गुलजार-ए-हिंद तालीमी मरकज” में शिक्षकों व कर्मचारियों के लगभग 14 अनुदानित पदों पर भर्तियां में नियम कानून की धज्जियां उड़ा दी गईं। जिस उन्नाव जिले में ये मदरसा स्थित है, उस जिले को तो छोड़िए…पूरे लखनऊ मंडल का एक भी कैंडिडेट भर्ती नहीं किया गया। हैरतंगेज ढंग से मदरसे के 14 अनुदानित पदों में से 7 पदों पर जिला कन्नौज के और 5 पदों पर कानपुर नगर जिले के कैंडिडेट्स को नियम विरुद्ध भर्ती कर लिया गया। बड़ी हैरत है कि मदरसा संचालकों को उन्नाव सहित पूरे लखनऊ मंडल में एक भी ऐसा कैंडिडेट नहीं मिल पाया जो ठीक से उर्दू, अरबी पढ़ा सके! इसपर भी बड़ी हैरत की बात ये है की प्रबंधक ने “उर्दू एवं अरबी मदरसा भर्ती, मान्यता एवं सेवा नियमावली 1987” के पृ. 3, नियम संख्या 21 की धज्जियां उड़ाते हुए अपनी पत्नी को ही मदरसे का प्रिंसिपल बना डाला। बाकी की भर्तियों की प्रक्रिया में भी भारी अनियमितताएं बरती गईं, जिनका उल्लेख अगली खबरों में करेंगे।
मदरसा गुलजार ए हिंद में अनियमिततायें उजागर करने को जब उन्नाव जिला अल्पसंख्यक कार्यालय में आरटीआई दाखिल करके नियुक्ति पत्रावलियां मांगी गईं तो विभाग ने विचित्र जवाब दिया। लिखा कि “आवेदक खुद मदरसे से ही शिक्षकों की नियुक्ति पत्रावलियां ले लें, उनको निर्देशित कर दिया गया है..”। अब भला भ्रष्टाचारी खुद अपनी पोल क्यों खोलेगा..? सवाल ये खड़ा हुआ कि हर महीने मदरसे के शिक्षकों व स्टाफ की लाखों रुपए सैलरी और ग्रांट अनुमोदित करने वाले अल्पसंख्यक विभाग के पास मदरसे की नियुक्ति पत्रावलियां और रिकॉर्ड तक नहीं है क्या..? इसपर एक आरटीआई रिमाइंडर देकर विभाग से फिर से कहा गया की नियुक्ति पत्रावलियां नहीं हैं तो लिख कर दें…रिमाइंडर का जवाब विभाग से आने के बजाए मदरसे से आया कि ” नियुक्ति पत्रावलियां और शिक्षक व स्टाफ की डिटेल बेहद निजी मसला है, नहीं दे सकते..”। मतलब मदरसे ने खुद नया कानून बना कर नियुक्तियों को निजी मामला बता दिया, जिसके उसने विज्ञापन तक प्रकाशित नहीं किए थे।
स्पष्ट सरकारी नियम है कि मदरसों के अनुदानित पदों पर भर्ती के लिए प्रबंधन को एक जिला या मंडल स्तर के और एक राज्य स्तर के अखबार में वेकेंसी का विज्ञापन जारी करना पड़ेगा, जिससे कि भर्ती की सूचना उस जिले और मंडल के हर जिले के उपयुक्त और क्वालीफाइंग कैंडिडेट्स तक पहुंच पाए। सही युवाओं को सरकारी नौकरी पाने का मौका मिले और मदरसे में पढ़ाई का स्तर भी बेहतर रहे। लेकिन उन्नाव के इस मदरसे ने इस सरकारी नियम की धज्जियां उड़ाई। कोई पारदर्शिता नहीं बरती।