दीर्घकालिक और संक्रामक रोगों में बढ़ोतरी के कारण, शोधकर्ता लगातार उपचार की प्रभावशीलता में सुधार के लिए दवा की उपलब्धता के नए तरीकों की तलाश कर रहे हैं। हाइड्रोजैल को उनके सूजन व्यवहार, यांत्रिक शक्ति और जैव-संगतता के गुणों के कारण दवा उपलब्धता के लिए उपयुक्त माना जाता है।
छोटे पेप्टाइड-आधारित हाइड्रोजैल में कई तरह के अनुप्रयोगों के लिए अपार संभावनाएं हैं। हालांकि, शोधकर्ताओं ने इन प्रणालियों के जेलेशन को नियंत्रित करना बहुत चुनौतीपूर्ण पाया है, क्योंकि पेप्टाइड अनुक्रम में किया गया मामूली बदलाव भी स्व-संयोजन तंत्र और जेलेशन प्रवृत्ति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है।
वायरस के संयोजन और विमोचन में एसएआरएस सीओवी ई प्रोटीन की संलिप्तता के बाद, कोलकाता में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान बोस इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि इसमें अंतर्निहित स्व-संयोजन गुण हाइड्रोजैल के विकास में योगदान दे सकते हैं।
बोस इंस्टीट्यूट में रासायनिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर अनिरबन भुनिया और उनकी टीम ने इस संभावना का पता लगाया और उपयोगी जेल सामग्री बनाने के एक नये तरीके की खोज की।
हाल ही में प्रतिष्ठित जर्नल स्मॉल (विली) में प्रकाशित एक पेपर में, प्रो. भुनिया और भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर, यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास रियो ग्रांडे वैली, यूएसए और इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस, कोलकाता के उनके सहयोगियों ने दर्शाया कि एसएआरएस सीओवी-1 वायरस के केवल पांच अमीनो एसिड को पुनर्व्यवस्थित करके, अद्वितीय गुणों वाले पेंटापेप्टाइड्स से बने जैल बनाए जा सकते हैं। इनमें से कुछ गर्म होने पर जैल बनते हैं और कुछ अन्य कमरे के तापमान पर जैल में परिवर्तित हो जाते हैं।
इस अनूठी खोज से अनुकूलन योग्य हाइड्रोजैल जैसी महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रगति हो सकती है। इससे लक्षित दवा उपलब्धता में सुधार हो सकता है, जिससे दवा के दुष्प्रभावों को कम करके उपचार प्रभावकारिता को बढ़ाया जा सकता है।
यह हाइड्रोजैल सामग्री ऊतक इंजीनियरिंग में क्रांति ला सकती हैं, संभावित रूप से अंग पुनर्जनन में सहायता कर सकती हैं। ये जैल घाव भरने के उपचार को भी आगे बढ़ा सकते हैं और अनुसंधान के लिए अधिक सटीक रोग मॉडलिंग को सक्षम बना सकते हैं।