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एस. एन. सेन बालिका विद्यालय पी. जी. कॉलेज के ट्रेंनिंग एंड प्लेसमेंट सेल द्वारा कैरियर वार्ता आयोजित

कानपुर 1 दिसंबर भारतीय स्वरूप संवादात, एस. एन. सेन बालिका विद्यालय पी. जी. कॉलेज कानपुर के ट्रेंनिंग एंड प्लेसमेंट सेल के द्वारा एक कैरियर वार्ता का आयोजन किया गया कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य वक्ता , प्रतियोगी परीक्षा विशेषज्ञ श्री राजेश गौतम जी , प्रबंध समिति के सचिव पी के सेन एवं प्राचार्य डॉ सुमन ने दीप प्रज्वलित कर किया।
मुख्य वक्ता राजेश जी व उनके सहयोगियों ने छात्राओं को संबोधित करते हुए बताया की वर्तमान समय में प्रतिस्पर्धा निरंतर बढ़ती जा रही है, किसी भी क्षेत्र में प्रवेश प्राप्त करनें के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है, और सफलता प्राप्त करनें के लिए एक अच्छी रणनीति बनानी पड़ती है साथ ही किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में परीक्षा पैटर्न और कठिनाई स्तर को समझने के लिए उसके सिलेबस का अध्ययन ध्यानपूर्वक आवश्यक है. प्राचार्या डॉ. सुमन ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत महाविद्यालय में स्थापित ट्रेंनिंग एंड प्लेसमेंट सेल द्वारा छात्राओं के ज्ञानवर्धन, विकास और रोजगार से संबंधित विभिन्न कार्यक्रम करवाता रहेगा जिससे छात्राओं का सर्वांगीण विकास हो सके।
कार्यक्रम का संचालन ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट सेल की प्रभारी डॉ. गार्गी यादव ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. निशा वर्मा ने किया। कार्यक्रम में प्लेसमेंट सेल की सदस्य डॉ. कोमल सरोज व समस्त प्रवक्ताए और छात्राएं उपस्थित रही।

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रक्षा मंत्रालय ने स्पर्श में स्थानांतरित हुए बैंकों के उन पेंशनभोगियों के लिए पेंशन भुगतान के तीन महीने के विस्तार को मंजूरी दी, जिनकी पहचान नवंबर 2022 में होनी थी

रक्षा मंत्रालय ने बैंकों के उन पेंशनभोगियों के लिए तीन महीने के लिए पेंशन भुगतान के विस्तार को मंजूरी दे दी है, जो स्पर्श, {सिस्टम फॉर पेंशन एडमिनिस्ट्रेशन (रक्षा)} में चले गए थे और जिनकी पहचान नवंबर 2022 में होनी थी। यह दोहराया जाता है कि वार्षिक पहचान की प्रक्रिया /जीवन प्रमाणन मासिक पेंशन के निरंतर और समयबद्ध क्रेडिट के लिए एक वैधानिक आवश्यकता है। इस प्रकार सभी रक्षा पेंशनभोगियों, जिन्होंने अभी तक अपनी वार्षिक पहचान पूरी नहीं की है, से अनुरोध है कि वे फरवरी 2023 तक अपनी वार्षिक पहचान/जीवन प्रमाणीकरण को पूरा करें ताकि उनकी पेंशन पात्रता को सुचारू रूप से दोबारा पक्का किए जाने का कार्य और उसका क्रेडिट सुनिश्चित किया जा सके।

वार्षिक पहचान/जीवन प्रमाणन निम्नलिखित माध्यमों से किया जा सकता है:

  1. एंड्रॉइड उपयोगकर्ताओं के लिए डिजिटल जीवन प्रमाण ऑनलाइन/जीवन प्रमाण फेस ऐप के माध्यम से।

· स्थापना और उपयोग का विवरण यहां पाया जा सकता है: https://jeevanpramaan.gov.in/package/documentdowload/JeevanPramaan_FaceApp_3.6_Installation

· स्पर्श पेंशनभोगी: कृपया स्वीकृति प्राधिकरण को “रक्षा – पीसीडीए (पी) इलाहाबाद” और वितरण प्राधिकरण को “स्पर्श – पीसीडीए (पेंशन) इलाहाबाद” के रूप में चुनें।

  1. पेंशनभोगी https://sparsh.defencepension.gov.in/ पर लॉग इन करके वार्षिक पहचान/जीवन प्रमाणन पूरा कर सकते हैं और निम्न का विकल्प चुन सकते हैं:

· अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता द्वारा विधिवत हस्ताक्षरित मैन्युअल लाइफ सर्टिफिकेट (एमएलसी) को डाउनलोड और अपलोड करें,

· आधार आधारित डिजिटल जीवन प्रमाणपत्र (डीएलसी) का चयन करके

  1. पेंशनभोगी अपनी वार्षिक पहचान/जीवन प्रमाणन को पूरा करने के लिए आ भी सकते हैं

निम्नलिखित एजेंसियों पर स्थापित निकटतम सेवा केंद्र पर प्रमाणन की सुविधा है:

· सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी) – अपने निकटतम सीएससी को खोजने के लिए यहां क्लिक करें: https://findmycsc.nic.in/

· निकटतम डीपीडीओ या रक्षा लेखा विभाग सेवा केंद्र।

· एसबीआई, पीएनबी, बैंक ऑफ बड़ौदा, एचडीएफसी बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक द्वारा स्थापित सेवा केंद्र ।

· रक्षा खाता विभाग या बैंकों में उपलब्ध स्पर्श सेवा केंद्रों का पता लगाने के लिए यहां क्लिक करें – https://sparsh.defencepension.gov.in/?page=serviceCentreLocator

  1. लेगेसी पेंशनभोगी (2016 से पूर्व सेवानिवृत्त) जो अभी तक स्पर्श में माइग्रेट नहीं हुए हैं, वे अपना जीवन प्रमाणन ठीक उसी तरह कर सकते हैं जैसा कि पिछले वर्षों में उनके द्वारा किया जा रहा था। जीवन प्रमाण के माध्यम से जीवन प्रमाणन करने के लिए, उन्हें संबंधित स्वीकृति प्राधिकरण को “रक्षा – संयुक्त सीडीए (एएफ) सुब्रतो पार्क” या रक्षा – पीसीडीए (पी) इलाहाबाद” या “रक्षा – पीसीडीए (नौसेना) मुंबई के रूप में तथा संवितरण प्राधिकरण संबंधित पेंशन संवितरण बैंक/डीपीडीओ इत्यादि को चुनना होगा ।

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गड्ढा मुक्त सड़कों का अभियान दोबारा फेल

*कानपुर

गड्ढा मुक्त सड़कों का अभियान एक बार फिर हुआ फेल

कमिश्नर राज शेखर और जिलाधिकारी विशाखा जी ने बैठक कर सभी अधिकरियों को 30 नवंबर तक टूटी सड़कों को ठीक करने के दिए थे दिशानिर्देश

गोविंद नगर विधानसभा पनकी क्षेत्र की पनकी थाना रोड और स्वराज नगर रोड समेत तमाम सड़के आज भी गड्डो में है तब्दील

आवागमन में कई बार बाइक सवार गिर के हो चुके है चुटहिल जिम्मेदारों को नही है जनता की फिक्र

पनकी क्षेत्र में नमामि गंगे परियोजना के तहत बिछाई जा रही है सीवर लाइन

सीवर लाइन को डालने के लिए सड़कों को खोदा गया, सीवर लाइन पड़ने के बाद बनाई गई कुछ सड़के चंद महीनों में गड्डो में हुई तब्दील

क्षेत्रीय जनता का आरोप, ठेकेदार ने सड़क निर्माण में घटिया निर्माण सामग्री का किया इस्तेमाल

मंत्री,सासंद,विधायक भ्रष्टाचार मुक्त उत्तर प्रदेश सरकार का देते करते रहे दावा, ठेकेदार ने सड़क निर्माण कार्य मे भ्रष्टाचार कर डाला

भ्रष्ट अधिकारियों से मिलीभगत कर ठेकेदार ने सड़क निर्माण कार्य मे भ्रष्टाचार कर योगी सरकार की भ्रष्टाचार मुक्त उत्तर प्रदेश की मंशा को दिखाया ठेंगा

तेजतर्रार कमिश्नर राज शेखर और जिलाधिकारी विशाखा जी ऐसे भ्रष्ट अधिकारी और ठेकेदार पर कब और क्या करेंगे कार्यवाही

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एस एन सेन बा• वि• पी• जी• कॉलेज के विज्ञान संकाय में अंतरविभागीय प्रतियोगिता आयोजित

कानपुर 1 दिसंबर भारतीय स्वरूप संवाददाता, एस एन सेन बा• वि• पी• जी• कॉलेज के विज्ञान संकाय में अंतरविभागीय प्रतियोगिता का आयोजन किया, जिसमें 18 छात्राओ ने भाषण प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया । भारत को विज्ञान के क्षेत्र में पहचान देने वाले डा जगदीश चंद्र बोस के १६४ वी जयंती के उपलक्ष्य में आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ• सुमन ने दीप प्रज्वलित करके किया।प्राचार्या डॉ• सुमन,ने छात्राओ को डॉ बोस के योगदान से अवगत कराया एवं उनके जैसा बनने के लिए प्रेरित किया ।रसायन विज्ञान की विभागाध्यक्षा डॉ• गार्गी यादव तथा वनस्पति विज्ञान की विभागाध्यक्षा डॉ• प्रीति सिंह ने माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि प्रेषित किया। सभी ने छात्रों के प्रयास की भूरि-भूरि प्रशंसा की।डॉ प्रीति सिंह ने वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में बोस के योगदान को याद करते हुए कहा यदि दो समान स्वस्थ पौधों में एक को अच्छा संगीत और दूसरे को भद्दी गलियाँ सुनायी जाये तो पहला पौधा स्वस्थ विकसित होगा और दूसरा सूख जाएगा यही बोस के योगदान को प्रदर्शित करता है

कार्यक्रम का संचालन डॉ• शिवंगी यादव ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन प्राचार्या डॉ• सुमन ने किया। डॉ• शैल वाजपाई, डॉ• शिवांगी यादव, डॉ• अमिता सिंह, डॉ• समीक्षा सिंह, कु• ज़ेबा आफरोज़ , वर्षा सिंह तैयबा तथा कु• स्नेह त्रिवेदी ने कार्यक्रम में सक्रिय योगदान दिया।

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मातृ मृत्यु दर(एमएमआर) में महत्वपूर्ण गिरावट आई, प्रति लाख 2014-16 में 130 से घटकर 2018-20 में 97 जीवित प्रसव: डॉ. मनसुख मांडविया

देश में एक नया मील का पत्थर हासिल किया गया है और मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) में महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज हुई है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने इस उपलब्धि पर देशवासियों को बधाई दी है। उन्होंने मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) को प्रभावी ढंग से कम करने में उल्लेखनीय प्रगति की प्रशंसा की और एक ट्वीट संदेश में कहा:
मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) में महत्वपूर्ण गिरावट आई, प्रति लाख 2014-16 में 130 से घटकर 2018-20 में 97 जीवित प्रसव हो रहे हैं। गुणवत्तापूर्ण मातृ और प्रसव देखभाल सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार की विभिन्न स्वास्थ्य नीतियों व पहल ने एमएमआर को नीचे लाने में जबरदस्त तरीके से सहायता की है। भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) द्वारा एमएमआर पर जारी विशेष बुलेटिन के अनुसार, भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) में 6 अंकों का शानदार सुधार हुआ है और अब यह प्रति लाख/97 जीवित प्रसव पर है। मातृ मृत्यु दर(एमएमआर) को प्रति 100,000 जीवित प्रसव पर एक निश्चित समय अवधि के दौरान मातृ मृत्यु की संख्या के रूप में परिभाषित किया गया है। नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, देश ने एमएमआर में प्रगतिशील तरीके से कमी देखी है। यह 2014-2016 में 130, 2015-17 में 122, 2016-18 में 113, 2017-19 में 103 और 2018-20 में 97 रहा है, जिस तरह से यह नीचे दर्शाया गया है:

चित्र 1: 2013 -2020 से एमएमआर दर में महत्वपूर्ण गिरावट

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इसे प्राप्त करने पर, भारत ने 100/लाख से कम जीवित प्रसव के एमएमआर के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी) लक्ष्य को हासिल कर लिया है और 2030 तक 70/लाख जीवित प्रसव से कम एमएमआर के एसडीजी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सही रास्ते पर है।
सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) लक्ष्य हासिल करने वाले राज्यों की संख्या के संदर्भ में हुई उत्कृष्ट प्रगति के बाद यह अब केरल (19) के साथ छह से बढ़कर आठ हो गई है, इसके बाद महाराष्ट्र (33), तेलंगाना (43), आंध्र प्रदेश (45), तमिलनाडु (54), झारखंड (56), गुजरात (57) और अंत में कर्नाटक (69) का स्थान है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत, वर्ष 2014 से भारत ने सुलभ गुणवत्ता वाली मातृ एवं नवजात स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने और रोकथाम योग्य मातृ मृत्यु अनुपात को कम करने के लिए एक ठोस प्रयास किया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने विशेष रूप से निर्दिष्ट एमएमआर लक्ष्यों को पूरा करने हेतु मातृ स्वास्थ्य कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण निवेश किया है। “जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम” और “जननी सुरक्षा योजना” जैसी सरकारी योजनाओं को संशोधित किया गया है और इन्हें सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (सुमन) जैसी अधिक सुनिश्चित एवं सम्मानजनक सेवा वितरण योजनाओं में अपग्रेड किया गया है। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए) विशेष रूप से उच्च जोखिम वाले गर्भधारण की पहचान करने और उनके उचित प्रबंधन को सुविधाजनक बनाने पर केंद्रित है। रोकी जा सकने वाली मृत्यु दर को कम करने पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। लक्ष्य और मिडवाइफरी पहल सभी गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित प्रसव कराने का विकल्प सुनिश्चित करते हुए एक सम्मानजनक तथा गरिमापूर्ण तरीके से गुणवत्तापूर्ण देखभाल को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
एमएमआर दर को सफलतापूर्वक कम करने में भारत के उत्कृष्ट प्रयास वर्ष 2030 के निर्धारित समय से पहले 70 से कम एमएमआर के एसडीजी लक्ष्य को प्राप्त करने और सम्मानजनक मातृ देखभाल प्रदान करने वाले राष्ट्र के रूप में माने जाने पर एक आशावादी दृष्टिकोण उपलब्ध कराते हैं।

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भारत का सारस रेडियो टेलीस्कोप खगोलशास्त्रियों को ब्रह्मांड के पहले सितारों और आकाशगंगाओं की प्रकृति के बारे में जानकारी देता है

वैज्ञानिकों ने बिग बैंग के सिर्फ 20 करोड़ वर्ष, एक अवधि जिसे अंतरिक्षीय प्रभात के रूप में जाना जाता है,  के बाद बनी चमकदार रेडियो आकाशगंगाओं के गुणों का निर्धारण किया है, जिससे सबसे शुरुआती रेडियो लाउड आकाशगंगाओं जो आमतौर पर बेहद विशाल ब्लैक होल द्वारा संचालित होती हैं, के गुणों के बारे में जानकारी मिली है ।

प्रारंभिक सितारों और आकाशगंगाओं का निर्माण कैसे हुआ और वे कैसे दिखते थे, इस बारे में अपनी जिज्ञासा की वजह से मानव ने ब्रह्मांड की गहराई से उत्पन्न होने वाले बेहद मंद संकेतों को जमीन और अंतरिक्ष- में स्थित आसमान पर लगातार नजर रखने वाली दूरबीनों के माध्यम से पकड़ने की कोशिश की है, जिससे ब्रह्माण्ड को लेकर बेहतर समझ हासिल हो सके।

रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के द्वारा स्वदेश में डिजाइन और विकसित शेप्ड एंटीना मेज़रमेंट ऑफ द बैकग्राउंड रेडियो स्पेक्ट्रम 3 (सारस टेलीस्कोप) को 2020 की शुरुआत में उत्तरी कर्नाटक में दंडिगनहल्ली झील और शरावती नदी के पास स्थापित किया गया था।

अपनी तरह के इस पहले कार्य में सरस 3 के आंकड़ों का उपयोग करते हुए रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) बेंगलुरु ,  द कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (सीएसआईआरओ), ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय और तेल-अवीव विश्वविद्यालय के सहयोगियों के साथ पहली पीढ़ी की आकाशगंगाएं जो रेडियो वेवलैंथ पर साफ दिखती हैं, की एनर्जी आउटपुट, चमक और द्रव्यमान का अनुमान लगाया ।

वैज्ञानिक बेहद पुरानी आकाशगंगाओं के गुणों का अध्ययन इन आकाशगंगाओं के अंदर और उसके आसपास हाइड्रोजन परमाणुओं से विकिरण को देखकर करते हैं, जो कि लगभग 1420 मेगाहर्ट्ज की आवृत्ति पर उत्सर्जित होती है। ब्रह्मांड के विस्तार के साथ विकिरण में खिंचाव आता है. क्योंकि ये हमारी तरफ समय और अंतरिक्ष को पार करते हुए बढ़ता है और कम आवृत्ति वाले रेडियो बैंड 50-200 मेगाहर्ट्ज के रूप में पृथ्वी पर पहुंचता है, जो कि एफएम और टीवी ट्रांसमिशन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। ब्रह्मांड से मिलने वाले सिग्नल बेहद धुँधले होते हैं और हमारी खुद की आकाशगंगा से निकलने वाले बेहद चमकीले विकरण और पृथ्वी पर इंसानों के द्वारा बनाए गए व्यवधानों के बीच दबे होते हैं। इसलिए, सबसे शक्तिशाली मौजूदा रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग करते हुए भी सिग्नल का पता लगाना खगोलशास्त्रियों के लिए एक चुनौती बना हुआ है।

आरआरआई के सौरभ सिंह और सीएसआईआरओ के रवि सुब्रह्मण्यन द्वारा 28 नवंबर, 2022 को नेचर एस्ट्रोनॉमी पत्रिका में प्रकाशित पेपर के परिणामों ने दिखाया है कि कैसे शुरुआती ब्रह्मांड से इस लाइन डिटेक्शन न होने पर भी खगोलशास्त्री असाधारण संवेदनशीलता के साथ शुरुआती आकाशगंगाओं के गुणों का अध्ययन कर सकते हैं।

“सारस 3 टेलीस्कोप से मिले परिणाम में पहली बार ऐसा हुआ है कि औसत 21-सेंटीमीटर लाइन का रेडियो ऑब्जर्वेशन सबसे शुरुआती रेडियो लाउड आकाशगंगाओं के गुणों के बारे में एक जानकारी प्रदान कर सकता है जो आमतौर पर बेहद विशाल ब्लैक होल द्वारा संचालित होती हैं” आरआरआई के पूर्व निदेशक और वर्तमान में अंतरिक्ष और खगोल विज्ञान सीएसआईआरओ, ऑस्ट्रेलिया के साथ जुड़े और इस शोध के लेखक श्री सुब्रह्मण्यन ने कहा “यह काम सारस 2 के परिणामों को और आगे ले जाता है जिसने पहली बार शुरुआती सितारों और आकाशगंगाओं की  विशेषताओं के बारे में जानकारी दी थी” ।

“सारस 3 ने अंतरिक्षीय प्रभात को लेकर खगोल भौतिकी के बारे में हमारी समझ में सुधार किया है, जिसने हमें यह बताया कि शुरुआती आकाशगंगाओं के भीतर मौजूद गैसीय पदार्थ का 3 प्रतिशत से भी कम हिस्सा सितारों में परिवर्तित हुआ, और यह कि शुरुआती आकाशगंगाएं जो रेडियो उत्सर्जन में उज्ज्वल थीं, एक्स-रे में भी मजबूत थीं, जिसने शुरुआती आकाशगंगाओं में और उसके आसपास ब्रह्मांडीय गैस को गर्म किया।” ‘एस्ट्रोफिजिकल कन्सट्रेंट फ्रॉम द सारस 3 नॉन डिटेक्शन ऑफ कास्मिक डान स्काई-एवरेज्ड 21 सीएम सिग्नल’ नामक पेपर लिखने वालों में से एक श्री सिंह ने जानकारी दी।

इस साल मार्च में, श्री सिंह ने श्री सुब्रह्मण्यन और सारस 3 टीम के साथ, एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी (एएसयू) और एमआईटी, यूएसए के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित ईडीजीईएस रेडियो टेलीस्कोप द्वारा ढूंढे गए अंतरिक्षीय प्रभात  से मिले 21-सेमी के असामान्य सिग्नल को पता लगाने के दावों को खारिज करने के लिए इन आंकड़ों का इस्तेमाल किया। इस कदम ने ब्रह्माण्ड विज्ञान के सुसंगत मॉडल में विश्वास को बहाल करने में मदद की, जिस पर नए दावे के साथ सवाल उठे थे ।

इस साल मार्च में, श्री सिंह ने श्री सुब्रह्मण्यन और सारस 3 टीम के साथ, एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी (एएसयू) और एमआईटी, यूएसए के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित ईडीजीईएस रेडियो टेलीस्कोप द्वारा ढूंढे गए अंतरिक्षीय प्रभात से मिले 21-सेमी के असामान्य सिग्नल को पता लगाने के दावों को खारिज करने के लिए इन आंकड़ों का इस्तेमाल किया।

‘अब हमारे पास शुरुआती आकाशगंगाओं के द्रव्यमान को लेकर सीमाएं हैं, इसके साथ ही रेडियो, एक्स-रे, और पराबैंगनी तरंग दैर्ध्य में उनके ऊर्जा उत्पादन की सीमाएं भी हैं’ श्री सिंह ने जानकारी दी। इसके अलावा, एक खास मॉडल का उपयोग करते हुए, सारस 3 रेडियो तरंग दैर्ध्य पर अतिरिक्त विकिरण की ऊपरी सीमा निर्धारित करने में सक्षम रहा है, जो की अमेरिका में एआरसीएडीई और लॉन्ग वेवलेंथ अरे (एलडब्लूए) प्रयोगों द्वारा निर्धारित की गई मौजूदा सीमाओं को और कम करता है।

‘विश्लेषण से पता चला है कि 21 सेंटीमीटर हाइड्रोजन सिग्नल शुरुआती सितारों और आकाशगंगाओं की संख्या के बारे में जानकारी दे सकता है’ एक अन्य लेखक कैंब्रिज विश्वविद्यालय के खगोल विज्ञान संस्थान की डॉ. अनास्तासिया फियाल्कोव ने साझा किया। हमारा विश्लेषण प्रकाश के पहले स्रोतों के कुछ प्रमुख गुणों की सीमाएं तय कर सकता है, जिसमें प्रारंभिक आकाशगंगाओं के द्रव्यमान और वो दक्षता जिससे ये आकाशगंगाएँ तारों का निर्माण कर सकती हैं, आदि शामिल हैं” फियाल्कोव ने कहा।

मार्च 2020 में अपनी अंतिम तैनाती के बाद से, सारस 3 को अपग्रेड की एक श्रृंखला से गुजारा गया है। इन सुधारों से 21-सेमी सिग्नल का पता लगाने की दिशा में और भी अधिक संवेदनशीलता प्राप्त होने की उम्मीद है। वर्तमान में, सारस टीम अपनी अगली तैनाती के लिए भारत में कई जगहों का आकलन कर रही है। “ये जगहें काफी दूरदराज में हैं और तैनाती के लिए लॉजिस्टिक से जुड़ी कई चुनौतियों सामने रखती हैं। हालाँकि, वे विज्ञान के हिसाब से आशाजनक हैं और नए अपग्रेड के साथ, हमारे प्रयोग के लिए आदर्श प्रतीत होते हैं” सारस टीम के एक सदस्य यश अग्रवाल ने जानकारी दी।

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जीवन के सिद्धांतों के बारे में बात करने का समय, बहुत कम लोग ऐसा जीवन जीते हैं: इफ्फी 53 में फिल्म ‘महानंदा’ के निर्देशक अरिंदम सिल

“हम जिस चीज के लिए संघर्ष करते हैं वह भारत के वास्तविक लोगों के लिए है। वे शायद नहीं जानते हैं कि देश का राष्ट्रपति कौन है या कोलकाता या मुंबई कहां है, लेकिन ये भारत के असली लोग हैं।” लेखिका-सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी के जीवन पर आधारित बायोपिक फिल्म ‘महानंदा’ इन शब्दों के पीछे की भावना को जीवंत करती है, जिसके निर्देशक अरिंदम सिल का मानना ​​है कि हर किसी को जीवंत रहना और उत्साह जारी रखना चाहिए।भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) के 53वें संस्करण के भारतीय पैनोरमा – फीचर फिल्म खंड में शामिल बंगाली फिल्म ‘महानंदा’ को महोत्सव के प्रतिनिधियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया।

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गोवा में आज इफ्फी टेबल वार्ता/प्रेस कॉन्फ्रेंस में फिल्म महोत्सव के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, निर्देशक अरिंदम सिल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस जटिल समय में इस पर काम करना कितना महत्वपूर्ण है। “यह जीवन के सिद्धांतों के बारे में बात करने का समय है, क्योंकि आजकल बहुत कम लोग वास्तव में सैद्धांतिक जीवन जीते हैं। महाश्वेता देवी उन गिने-चुने लोगों में से एक थीं, जो सिद्धांतों पर आधारित जीवन जीती थीं। मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हम अपने बच्चों को सिद्धांतों के आधार पर जीवन जीना सिखाएं।
तो, ऐसा क्या है जिसने उन्हें फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया? अरिंदम सिल ने कहा, नैतिक जिम्मेदारी की भावना से कम कुछ नहीं। “मैंने महसूस किया कि महाश्वेता देवी जैसी शख्सियत के बारे में बात करना और इसे आगे बढ़ाना हम जैसे फिल्म निर्माताओं की नैतिक जिम्मेदारी है, जिन्होंने सिद्धांतों के आधार पर जीवन जीया। वह कोई है जिसे हम सब भूलने की कोशिश कर रहे हैं। महाश्वेता देवी को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। हालाँकि, भारत के विश्वविद्यालयों में, हम उनके बारे में बात तक नहीं करते!”

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”तो वह महान कार्यकर्ता जिन सिद्धांतों के लिए जीती थीं, जिसने अब उनकी कहानी को बताना एक नैतिक अनिवार्यता बना दिया है? महाश्वेता देवी की जीवन गाथा का वर्णन करते हुए अरिंदम सिल बताते हैं कि उनकी यह कहानी अमीर से फकीर बनने की कहानी है। “एक पूंजीवादी परिवार से आने और एक कम्युनिस्ट परिवार से शादी करने के बाद, सिद्धांतवादी महिला ने अपने पति और कम्युनिस्ट नाटककार बिजन भट्टाचार्य को छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता किया और जीवन में अच्छा करने के लिए तुच्छ फिल्म पटकथा लिखीं। उन दिनों महाश्वेता देवी ने अपने पति और बच्चे को छोड़ने का साहस दिखाया था। मानसिक पीड़ा के चलते उसने आत्महत्या करने की कोशिश की थी। लेकिन वह बच गई और इस देश की अब तक की सबसे बड़ी सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक बन गई!

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निर्देशक ने जोर देकर कहा कि महाश्वेता देवी का पूरा जीवन उन लोगों के लिए लड़ने के लिए समर्पित रहा, जिन्हें वह भारत के वास्तविक लोगों के रूप में संदर्भित करती थीं। “इस देश में किसी ने भी आदिवासियों – साबर और मुंडाओं के लिए काम नहीं किया है – जैसा उन्होंने किया। मेधा पाटेकर और महाश्वेता देवी एक साथ कामरेड की तरह थीं। महाश्वेता देवी ने कहा था: ‘हम जिस चीज के लिए संघर्ष करते हैं, वह भारत के असली लोगों के लिए है। वे नहीं जानते कि देश का राष्ट्रपति कौन है या कोलकाता या मुंबई कहां है, लेकिन ये भारत के असली लोग हैं। ‘ अपने आखिरी दिन तक, वह संघर्ष करती रही और काम करती रही और उन लोगों के बारे में बात करती रही जिन्हें हम पिछड़ा वर्ग कहते हैं। लेकिन ये वे लोग थे जो वास्तव में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले भारतीयों में सबसे आगे थे।” निर्देशक ने कहा, “महाश्वेता देवी को बड़े पैमाने पर लोगों ने फॉलो किया; उन्हें आदिवासी क्षेत्रों में भगवान के रूप में माना जाता है।” उन्होंने कहा कि हमने फिल्म में इन सभी तथ्यों को सामने लाने की कोशिश की है। निर्देशक ने जोर देकर कहा कि फिल्म का फोकस महाश्वेता देवी की बात करना था। वह नहीं चाहते थे कि बायोपिक सिर्फ साहित्य अकादमी विजेता व रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता महाश्वेता देवी के बारे में बताए, बल्कि भारत के वास्तविक लोगों के लिए उनके वास्तविक संघर्षों के बारे में बताए। अरिंदम सिल ने बताया, तो, जैसा कि फिल्म के शीर्षक से पता चलता है? “महानंदा नदी की तरह, उनके सिद्धांतों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक प्रवाहित होना चाहिए।” संयोग से, फिल्म के संगीत निर्देशक पंडित बिक्रम घोष हैं, जिन्हें कल संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इफ्फी टेबल वार्ता के लिए अरिंदम सिल के साथ शामिल होने वाले कलाकार ने बताया कि संगीत की दृष्टि से यह परियोजना एक चुनौतीपूर्ण काम था। चुनौतियों में प्रमुख थी उस निरंतर भयावहता को सामने लाना, जिससे फिल्म ओतप्रोत थी। “फिल्म में त्रासदी, मृत्यु, दुःख और जीवन के अप्रत्याशित झटके को दिखाया गया है, जिससे उनका जीवन काफी प्रभावित था।
संगीत निर्देशक ने कहा कि इसको बाहर लाने के लिए पूरी तरह से आदिवासी संगीत बैकग्राउंड स्कोर का इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने कहा “उस भयावहता को फिल्म में पूरी तरह से आदिवासी स्कोर के साथ जोड़ा गया है। गाने सभी आदिवासी हैं। सुबीर दासमुंशी द्वारा लिखे गए गीत मुंडा जनजाति की भाषा में हैं। हमने ढोद्रो बनम और हड्डी की बांसुरी जैसे उनके वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया है।” हालाँकि, आदिवासी संगीत के बजाय शास्त्रीय संगीत और राग का उपयोग उस हिस्से को चित्रित करने के लिए किया गया है जहाँ उनके पैतृक परिवार को दिखाया गया है, जो उस समय समाज में बहुत ऊँचे थे। बिक्रम घोष ने बताया कि कैसे फिल्म की गैर-रैखिक संरचना को ध्यान में रखते हुए संगीत के दो रूपों को आपस में जोड़ा गया है। “वहां एक दृश्य है जहां महाश्वेता देवी 25 साल की हैं, और उसके ठीक बाद, कैमरा 75 वर्षीय महाश्वेता देवी को दिखाने के लिए पैन करता है। इसलिए, दृश्य के साथ जाने के लिए संगीत को एक साथ जोड़ना पड़ा। बिक्रम घोष ने फिल्म की संगीत यात्रा के बारे में बताते हुए कहा: “यह एक कठोर यथार्थ व वास्तविकता है। इसलिए संगीत को यथार्थपरक होना था, जिसके लिए मुझे संथाल और मुंडा जनजातियों के संगीतकार मिले, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संगीत असली लगे।”

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अरिंदम सिल ने इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए इफ्फी की सराहना की कि क्षेत्रीय फिल्म निर्माता वास्तव में भारतीय सिनेमा को विभिन्न भारतीय भाषाओं में बना रहे हैं। “हम वास्तव में छोटे बजट के साथ बड़ा सिनेमा बना रहे हैं।” 30 साल से 75 साल की उम्र की महाश्वेता देवी की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री गार्गी रॉयचौधरी ने कहा कि उन्होंने महाश्वेता देवी की यात्रा को महसूस किया और उनके किरदार को निभाने का आनंद लिया।

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इफ्फी-53 में सदाबहार क्लासिक फिल्म ‘कटी पतंग’ का प्रदर्शन आशा पारेख को अतीत की स्मृतियों में वापस ले गया

प्यार दीवाना होता हैमस्ताना होता है

हर खुशी से हर ग़म सेबेगाना होता है”

किशोर कुमार की दिव्य आवाज और राजेश खन्ना का दमदार चरित्र एक बार फिर इस सदाबहार गीत के साथ पणजी के मैकिनेज पैलेस ऑडिटोरियम के पर्दे पर जीवंत हो उठा, और ये दर्शकों के लिए एक सुनहरा क्षण था। गुजरे जमाने की अभिनेत्री और दर्शकों के दिल की धड़कन आशा पारेख, जिन्होंने इस फिल्म में मुख्य किरदार निभाया और इस गाने में भी नजर आई थीं, उनके लिए फिल्म कटी पतंग की स्क्रीनिंग में उपस्थित होना दिल को छू लेने वाले पलों से भरे अतीत की स्मृतियों की लौट जाने जैसा था। 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड रेट्रो सेक्शन में कटी पतंग को प्रदर्शित किया गया था। इफ्फी का ये खंड इस वर्ष आशा पारेख को समर्पित है जो साल 2020 के दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की विजेता हैं।

इस स्क्रीनिंग में भाग लेते हुए और इस महोत्सव के प्रतिनिधियों से बातचीत करते हुए आशा पारेख ने कहा कि बीते वर्षों में इफ्फी बहुत बड़ा हो गया है और ये निर्माताओं को अपनी फिल्मों को प्रदर्शित करने और बेचने का अवसर देता है। उन्होंने कहा, “मुझे अपनी फिल्म इंडस्ट्री से प्यार है। फिल्म प्रेमियों के लिए इफ्फी सबसे अच्छी जगह है, क्योंकि यहां देश भर के लोग एक साथ आते हैं। आशा पारेख ने सम्मानित किए जाने के लिए इफ्फी, एनएफडीसी और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को धन्यवाद दिया।

कई सुपरहिट फिल्मों में काम कर चुकीं आशा पारेख को प्यार से 1960 और 70 के दशक में हिंदी सिनेमा की ‘हिट गर्ल’ कहा जाता था। एक बाल कलाकार के रूप में शुरुआत करने वाली आशा पारेख की डेब्यू फिल्म दिल देके देखो (1959) थी, जो एक बड़ी हिट बन गई जिसने उन्हें स्टारडम की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। उन्होंने 95 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें कुछ तब के शीर्ष फिल्मकारों और उस समय के प्रमुख कलाकारों के साथ थीं, जैसे कि – शक्ति सामंत, राज खोसला, नासिर हुसैन, राजेश खन्ना, धर्मेंद्र, शम्मी कपूर, मनोज कुमार, देव आनंद और कई अन्य। उन्होंने कटी पतंग (1971) के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता और कई अन्य प्रतिष्ठित सम्मानों के साथ फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड (2002) भी पाया। आशा पारेख एक फिल्म निर्देशक, निर्माता और कुशल भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना भी हैं।

पद्म श्री (1992) से सम्मानित आशा पारेख ने 1998-2001 के दौरान केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के प्रमुख के रूप में भी काम किया।

शक्ति सामंत द्वारा निर्देशित कटी पतंग, गुलशन नंदा के इसी शीर्षक वाले सबसे अधिक बिकने वाले उपन्यास पर आधारित थी। इस फिल्म में केंद्रीय पात्र माधवी (आशा पारेख) कमल (राजेश खन्ना) के साथ अपनी शादी के दिन घर से दूर पतंग की तरह कट कर उड़ जाती है, लेकिन आगे उसे अपने ‘प्रेमी’ कैलाश (प्रेम चोपड़ा) के नापाक इरादे पता चलते हैं। परिस्थितियां माधवी को मजबूर कर देती हैं और उसे एक घर में शरण लेनी पड़ती है और उस घर की बहू होने का नाटक करना पड़ता है। असली बहू पूनम (नाज़) की रेल दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है, लेकिन मरने से पहले वो अपने बच्चे को माधवी के हाथों सौंप जाती है। आगे फिल्म की कहानी माधवी की जिदंगी दिखाती है, कैसे वो एक झूठी पहचान के साथ जीने लगती है। संगीतकार आरडी बर्मन और सुपरस्टार राजेश खन्ना को एक साथ लाने के लिए भी इस फिल्म को सबसे ज्यादा याद किया जाता है। इस फिल्म में ‘ये शाम मस्तानी’, ‘प्यार दीवाना होता है’ और ‘ये जो मोहब्बत है’ जैसे सदाबहार मधुर हिट गानों का संग्रह सुनने को मिलता है।

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संयुक्त सैन्य अभ्यास ”ऑस्‍ट्रा हिन्‍द–22” में भाग लेने के लिए ऑस्ट्रेलियाई सेना की टुकड़ी भारत पहुंची

”ऑस्‍ट्रा हिन्द–22” द्विपक्षीय सैन्य प्रशिक्षण अभ्यास भारतीय सेना और ऑस्ट्रेलियाई सेना की टुकड़ियों के बीच 28 नवंबर से 11 दिसंबर 2022 तक महाजन फील्ड फायरिंग रेंज (राजस्थान) में आयोजित होने वाला है। ऑस्‍ट्रा हिन्‍द श्रृंखला का यह पहला अभ्यास है, जिसमें दोनों देशों की सेनाओं के सभी अंगों एवं सेवाओं की टुकड़ियां हिस्सा लेंगी। ऑस्ट्रेलिया की सेना में सेकेंड डिवीजन की 13वीं ब्रिगेड के सैनिक अभ्‍यास स्थल पर पहुंच चुके हैं, जबकि भारतीय सेना का नेतृत्व डोगरा रेजिमेंट के सैनिक कर रहे हैं। ऑस्‍ट्रा हिन्द सैन्य अभ्यास प्रत्येक वर्ष भारत और ऑस्ट्रेलिया में बारी-बारी से आयोजित किया जाएगा।

इस द्विपक्षीय सैन्य प्रशिक्षण अभ्यास का उद्देश्‍य सकारात्‍मक सैन्‍य संबंध बढ़ाना और एक-दूसरे की बेहतरीन सैन्य कार्य-प्रणालियों को अपनाना है। साथ ही इसका लक्ष्‍य संयुक्‍त राष्‍ट्र शांति स्‍थापना प्रतिबद्धता के तहत अर्ध-मरूस्‍थलीय देशों में शांति अभियानों को चलाने के लिए एक साथ कार्य करने की क्षमता को बढ़ावा देना है। यह संयुक्त अभ्यास दोनों सेनाओं को शत्रुओं के खतरों को बेअसर करने के उद्देश्य से कंपनी और प्लाटून स्तर पर सामरिक संचालन करने के लिए रणनीति, तकनीक एवं प्रक्रियाओं हेतु सर्वोत्तम कार्य-प्रणालियों को साझा करने में सक्षम बनाएगा। बटालियन/कंपनी स्तर पर आकस्मिक दुर्घटना प्रबंधन, दुर्घटना से उबरना एवं रसद नियोजन के अलावा स्थितिजन्य जागरूकता के उच्च स्तर को प्राप्त करने के लिए स्निपर, निगरानी व संचार उपकरण सहित नई पीढ़ी के उपकरण तथा विशेषज्ञ हथियार संचालन के प्रशिक्षण की भी योजना है।

द्विपक्षीय सैन्य प्रशिक्षण अभ्यास के दौरान दोनों देशों के सैनिक संयुक्त योजना, संयुक्त सामरिक अभ्यास, विशेष हथियारों के कौशल की मूल बातें साझा करने और शत्रुओं के लक्ष्य पर हमला करने जैसी विभिन्न गतिविधियों में शामिल होंगे। संयुक्त अभ्यास, दोनों देशों की सेनाओं के बीच आपसी समझ एवं पारस्परिकता को बढ़ावा देने के अलावा, भारत तथा ऑस्ट्रेलिया के बीच संबंधों को मजबूत करने में और मदद करेगा।

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पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय के साथ साझेदारी में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के द्वारा महासागरों के अध्ययन के लिए तीसरी पीढ़ी के भारतीय उपग्रह, जिसे औपचारिक रूप से भू प्रेक्षण उपग्रह-6 (ईओएस-6) नाम दिया गया है, को लॉन्च किया गया

पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के साथ साझेदारी में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) के अपने फर्स्ट लॉन्च पैड से अन्य उपग्रहों के साथ महासागरों पर नजर रखने के लिए तीसरी पीढ़ी के भारतीय उपग्रह जिसे औपचारिक रूप से भू प्रेक्षण उपग्रह-6  (ईओएस-6) का नाम दिया गया है, को लॉन्च किया।

महासागरों के अध्ययन का ये मिशन क्रमशः 1999 और 2009 में लॉन्च किए गए ओशनसैट-1 या आईआरएस-पी4 ​​और ओशनसैट-2 का अगला कदम है। भरोसेमंद प्रक्षेपण यान पीएसएलवी (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन) की 56वीं उड़ान (पीएसएलवी-एक्सएल संस्करण की 24वीं उड़ान) के जरिए उपग्रह को प्रक्षेपित किया गया था। पीएसएलवी-सी54 के रूप में डिजाइन किए गए आज के प्रक्षेपण में ओशनसैट-3 के साथ अन्य छोटे उपग्रहों को भी भेजा गया।

ओशनसैट-3 को समुद्र तल से करीब 740 किलोमीटर की ऊंचाई पर ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया। करीब 1100 किलोग्राम के वजन के साथ जबकि यह ओशनसैट -1 की तुलना में सिर्फ थोड़ा सा ही भारी है, इस श्रृंखला में पहली बार इसमें 3 निगरानी सेंसर यानि ओशन कलर मॉनिटर (ओसीएम-3), सी सर्फेस टेंपरेचर मॉनिटर (एसएसटीएम) और केयू बैंड स्कैट्रोमीटर (एससीएटी-3) लगाए गए हैं। इसमें एक एआरजीओएस पेलोड भी है। भारत की ब्लू इकोनॉमी से जुड़ी आकांक्षाओं के लिए इन सभी सेंसर का अपना खास महत्व है।

360 मीटर स्थानिक रेज़लूशन और 1400 किमी चौड़ी पट्टी पर नजर रखने की क्षमता के साथ उन्नत 13 चैनल ओसीएम रोजाना पृथ्वी के दिन पक्ष का निरीक्षण करेगा और समुद्री शैवाल के वितरण पर महत्वपूर्ण आंकड़े प्रदान करेगा जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर खाद्य श्रृंखला का आधार है। उम्मीद है कि उच्च सिग्नल-टू-नॉइज अनुपात के साथ ओसीएम-3 फाइटोप्लांकटन की दैनिक निगरानी, मत्स्य संसाधन के प्रबंधन, महासागरों के द्वारा कार्बन अवशोषण, हानिकारक शैवाल में तेज बढ़त की चेतावनी और जलवायु अध्ययन सहित परिचालन और अनुसंधान संबधी अनुप्रयोगों की विस्तृत श्रृंखला में पहले से बेहतर सटीकता प्रदान करेगा।

एसएसटीएम समुद्र की सतह के तापमान की जानकारी देगा जो मछलियों के समूह से लेकर चक्रवात उत्पत्ति और उनकी चाल सहित विभिन्न पूर्वानुमान प्रदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण महासागरीय मानदंड है। प्रवाल भित्तियों के स्वास्थ्य की निगरानी और यदि आवश्यक हो, प्रवाल विरंजन की चेतावनी प्रदान करने के लिए तापमान एक प्रमुख मानदंड है। ईओएस-6 पर स्थापित केयू-बैंड पेंसिल बीम स्कैट्रोमीटर समुद्र की सतह पर उच्च रिजॉल्यूशन विंड वेक्टर (गति और दिशा) प्रदान करेगा, एक ऐसी जानकरी जिसके बारे में कोई भी नाविक जानना चाहेगा, चाहे वह मछुआरा हो या शिपिंग कंपनी। पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार के लिए समुद्र और मौसम के मॉडल में तापमान और हवा के आंकड़े जोड़ने बेहद महत्वपूर्ण हैं। एआरजीओएस एक संचार पेलोड है जिसे फ्रांस के साथ संयुक्त रूप से विकसित किया गया है और इसका उपयोग लो-पावर (ऊर्जा-कुशल) संचार के लिए किया जाता है, जिसमें समुद्र में मौजूद रोबोटिक फ़्लोट्स (ऑर्ग फ़्लोट्स), मछलियों पर लगने वाले टैग, ड्रिफ्टर्स और खोज और बचाव कार्यों के प्रभावी संचालन में उपयोगी संकट चेतावनी उपकरण शामिल हैं।

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्यमंत्री, डॉ जितेंद्र सिंह ने जम्मू से एक संदेश में सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो और एमओईएस टीमों को बधाई और धन्यवाद दिया।

माननीय मंत्री ने कहा, जबकि इसरो उपग्रह की कक्षा और आंकड़े पाने और उन्हे सुरक्षित रखने आदि से जुड़ी मानक प्रक्रियाओं को जारी रखेगा, इस उपग्रह के प्रमुख परिचालन उपयोगकर्ता एमओईएस के संस्थान जैसे भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस), हैदराबाद और राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र नोएडा होंगे जो कि देश भर में लाखों हितधारकों को हर दिन कई तरह की सेवाएं प्रदान करते हैं।

डॉ जितेंद्र सिंह ने जानकारी दी कि इस उद्देश्य के लिए, आईएनसीओआईएस ने राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केन्द्र (इसरो-एनआरएससी), हैदराबाद के तकनीकी सहयोग से अपने परिसर के भीतर एक अत्याधुनिक उपग्रह डेटा रिसेप्शन ग्राउंड स्टेशन भी स्थापित किया है। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह समुद्र का निरीक्षण भारत की ब्लू इकोनॉमी और ध्रुवीय क्षेत्र की नीतियों के लिए मजबूत आधार के रूप में काम करेगा।

एमओईएस के सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन ने इसरो को बधाई देते हुए कहा कि ओशनसैट-3 का आज का प्रक्षेपण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यूएन सतत विकास के लिए महासागर विज्ञान का दशक (यूएनडीओएसएसडी, 2021-2030) की शुरुआत के बाद से यह भारत की ओर से किया जाने वाला पहला प्रमुख महासागरीय उपग्रह प्रक्षेपण है। उन्होंने कहा, इस उपग्रह में महासागर के रंग, एसएसटी और समुद्री सतह की हवाओं का समवर्ती मापन करने की क्षमता होगी, और उम्मीद है कि ये महासागर दशक के उद्देश्यों को पूरा करने में दुनिया भर के वैज्ञानिक और परिचालन समुदायों की सागर को समझने की क्षमताओं को एक महत्वपूर्ण बढ़त प्रदान करेगा।

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