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प्रधानमंत्री बिहार में 14,000 करोड़ रुपए की 9 राजमार्ग परियोजनाओं की आधारशिला रखेंगे

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से 21 सितंबर, 2020 को बिहार में 9 राजमार्ग परियोजनाओं का शिलान्यास करेंगे।

श्री नरेन्द्र मोदी बिहार के सभी 45,945 गांवों को ऑप्टिकल फाइबर इंटरनेट सेवाओं से जोड़ने के लिए ऑप्टिकल फाइबर इंटरनेट सेवाओं का भी उद्घाटन करेंगे।

राजमार्गपरयोजनाएं

जिन 9 राजमार्ग परियोजनाओं का शिलान्यास होना है उनमें 350 किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण किया जाएगा जिन पर 14,258 करोड़ रुपए की लागत आएगी। इन सड़कों के निर्माण से बिहार के विकास को बढ़ावा मिलेगा, संपर्क बेहतर होगा और बिहार तथा इसके आसपास के क्षेत्रों में अर्थिक वृद्धि में तेजी आएगी। बिहार सहित पड़ोसी राज्यों झारखंड तथा उत्तर प्रदेश में लोगों और सामानों की आवाजाही आसान हो जाएगी।

प्रधानमंत्री ने वर्ष 2015 में बिहार के बुनियादी ढांचागत विकास के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की थी। 54,700 करोड़ रुपए की लागत से 15 परियोजनाओं पर काम होना था जिनमें से 13 परियोजनाएं पूर्ण हो चुकी हैं, 38 परियोजनाओं पर काम चल रहा है जबकि अन्य आवंटन या नीलामी की प्रक्रिया में हैं।

इन परियोजनाओं के पूर्ण होने पर बिहार में सभी नदियों पर पुल होंगे और राज्य के बड़े राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण की प्रक्रिया सम्पन्न हो जाएगी।

प्रधानमंत्री के इस पैकेज के अंतर्गत गंगा नदी पर पुलों की संख्या 17 हो जाएगी जिनकी कुल क्षमता 62 लेन की होगी। इस तरह से एक औसत अनुमान के अनुसार राज्य में नदियों पर प्रति 25 किलोमीटर पर एक पुल होगा।

राजमार्ग से जुड़ी परियोजनाओं में बख्तियारपुर-रजौली खंड पर राष्ट्रीय राजमार्ग 31 के 47.23 किलोमीटर लंबे खंड को चार लेन किया जाएगा, जिस पर 1149.55 करोड़ रुपए की लागत आएगी, इसी खंड पर 50.89 किलोमीटर सड़क को चार लेन किए जाने पर 2650.76 करोड़ रुपए की लागत आने की संभावना है, राष्ट्रीय राजमार्ग 30 के आरा-मोहनिया खंड पर 54.53 किलोमीटर के चार लेन के जाने की परियोजना पर ईपीसी मोड से 885.41 करोड रुपए की लागत आएगी, राष्ट्रीय राजमार्ग 31 पर आरा-मोहनिया खंड पर ही 60.80 किलोमीटर सड़क को चार लेन की जाने पर ईपीसी मोड से 855.93  करोड़ रुपए की लागत आएगी, नरेनपुर- पूर्णिया खंड पर राष्ट्रीय राजमार्ग 131ए, पर 49 किलोमीटर को चार लेन किए जाने पर एचएएम मोड से 2288 करोड रुपए की लागत आएगी, एनएच 131जी, पटना रिंग रोड (कन्हौली-रामनगर) खंड को छह लेन किए जाने पर 913.15 करोड रुपए की लागत आएगी, पटना में गंगा नदी पर महात्मा गांधी सेतु के समानांतर राष्ट्रीय राजमार्ग -19 पर 14.5 किलोमीटर चार लेन के पुल निर्माण पर 2926.42 करोड़ रुपये की लागत आएगी, कोसी नदी पर एनएच 106 पर 28.93 किलोमीटर लंबा चार लेन का नया पुल (2 लेन का पेव्ड शोल्डर भी होगी) ईपीसी मोड पर बनेगा, जिसमें 1478.40 करोड़ रुपये की लागत आएगी, और गंगा नदी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 131बी पर विक्रमशिला सेतु के समानांतर 4.445 किलोमीटर लंबा 4 लेन का पुल बनेगा जिस पर 1110.23 करोड़ रुपये की लागत आएगी।

ऑप्टिकलफाइबरइंटरनेटसेवाएं

बिहार के लिए यह एक सम्मानजनक परियोजना है जिसके अंतर्गत 45,945 गांवों को डिजिटल क्रांति से जोड़ने के लिए राज्य के कोने-कोने तक तेज गति कि इंटरनेट सुविधा पहुंचेगी।

यह परियोजना दूरसंचार विभाग, सूचना एवं तकनीकी मंत्रालय और सामान्य सेवा केंद्रों (सीएससी) के संयुक्त प्रयास से क्रियान्वित होगी।

बिहार राज्य में कुल 34,821 सीएससी यानी सामान्य सेवा केंद्र हैं, इन केंद्रों के साथ काम कर रहे लोग न केवल इंटरनेट परियोजना को क्रियान्वित करने में उपयोगी होने बल्कि इसे व्यवसायिक स्तर पर संचालित करने के प्रयास किए जाएंगे जिससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि बिहार के प्रत्येक गांव के प्रत्येक नागरिक को ऑप्टिकल फाइबर इंटरनेट की सेवाएं उपलब्ध हो सकें। इस परियोजना के अंतर्गत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि एक वाईफाई और 5 नि:शुल्क इंटरनेट कनेक्शन सरकारी संस्थानों जैसे प्राथमिक स्कूल, आंगनवाड़ी केंद्र, आशा कार्यकर्ता और जीविका दीदी इत्यादि को दिए जाएं।

इस परियोजना से ई-शिक्षा, ई-कृषि, टेलीमेडिसिन, टेली विधि सेवाओं सहित अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाएं बिहार के प्रत्येक नागरिक से सिर्फ एक क्लिक दूर होंगी।

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शिक्षक पर्व पहल के तहत ‘समग्र और बहुविषयी शिक्षा की ओर’ विषय पर वेबिनार

शिक्षा मंत्रालय ने शिक्षक पर्व के तहत नई शिक्षा नीति (एनईपी 2020) की प्रमुख विशेषताओं को उभारने के लिए यूजीसी के साथ संयुक्त रूप से “समग्र और बहुविषयी शिक्षा की ओर” विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया। अध्यापकों को सम्मानित करने और नई शिक्षा नीति-2020 को आगे ले जाने के लिए 8 सितंबर से 25 सितंबर, 2020 तक शिक्षक पर्व मनाया जा रहा है।

इसमें दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. अनु सिंह लाथेर, हरियाणा के केंद्रीय विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रो. आर. सी. कुहाड़, बीपीएस महिला विश्वविद्यालय की उपकुलपति प्रो. सुषमा यादव, पंजाब के केंद्रीय विश्वविद्यालय के उपकुलपति कुलपति प्रो. आर. पी. तिवारी और अंग्रेजी व विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रो. सुरेश कुमार ने समग्र और बहु-विषयी शिक्षा समेत विभिन्न उप-विषयों पर अपनी बातें रखीं।

“समग्र और बहु-विषयी शिक्षा” विषय पर प्रो. आरसी कुहाड़ ने कहा कि मूल्यों की व्यवस्था, जीवन के स्थायी दर्शन, बहुलता और बहु-विषयी चीजों के आदर जैसी विशिष्टताएं और समग्र शिक्षा प्रणाली ने ही वास्तव में प्राचीन काल में भारत को विश्वगुरु के रूप में स्थापित किया था। उन्होंने एनईपी 2020 के विभिन्न पहलुओं जैसे एसटीईएम विषयों के साथ मानविकी और कला विषयों के एकीकरण, प्रवेश लेने और बाहर निकलने की लचीली व्यवस्था, स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के पुनर्गठन, व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा में लाने और एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट आदि पर विस्तार से बातें रखीं। उन्होंने बताया कि कैसे इन सभी सिफारिशों ने समग्र और बहु-विषयी शिक्षा में नई रुचि जगाई है और भारत को एक बार फिर विश्वगुरु बनने के रास्ते पर ले आई है।

प्रो. सुषमा यादव ने “समग्र और बहुविषयी उच्च शिक्षा के माध्यम से ज्ञान (आधारित) समाज निर्माण” विषय पर एक गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान की। 2014 के बाद से सरकार की विभिन्न पहलों का उल्लेख करते हुए प्रो. सुषमा यादव ने बताया कि एनईपी-2020 में समग्र और बहु-विषयी सुधार सरकार के नवाचार, लचीलेपन और मुक्त पाठ्यक्रम की संस्कृति को विकसित करने के दृष्टिकोण के अनुरूप हैं। इसमें समग्र और बहु-विषयी शिक्षा को विकसित करने का जो तरीका है, वह शिक्षा को ज्यादा प्रयोगात्मक, रोचक, एकीकृत, जिज्ञासा निर्देशित, अन्वेषण उन्मुखी, सीखने पर केंद्रित, विमर्श आधारित, लचीला और आनंददायक बनाता है। प्राचीन काल में बेहतर शिक्षा प्रणाली के गठन में शामिल तत्वों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि विभिन्न कलाओं के ज्ञान और उनके आधुनिक इस्तेमाल की धारणा हमें 21वीं सदी में बढ़त दिलाने के लिए भारतीय उच्च शिक्षा को एक अलग क्षेत्र में स्थापित करेगी।

प्रो. आर. पी. तिवारी ने अपने भाषण में एनईपी 2020 में परिकल्पित समग्र और बहुविषयी शिक्षा की प्राचीन और मध्यकालीन भारत के गुरुकुलों में मिलने वाली शिक्षा से तुलना करते हुए “समग्र और बहुविषयी शिक्षा के साथ युवाओं के सशक्तिकरण” पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि उस दौर में कैसे गुरुकुलों ने मानवों और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई थी। अपने संबोधन में उन्होंने सभी हितधारकों से एनईपी 2020 को लागू करने में योगदान करने की अपील की, क्योंकि एनईपी 2020 में भारत को ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने की क्षमता है।

प्रो. सुरेश कुमार की बातें “बहु-विषयी और समग्र दृष्टिकोण के जरिए उच्च शिक्षा में बदलाव” पर केंद्रित रहीं, जो एनईपी 2020 के प्रस्तावित उद्देश्यों में से एक है। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि इस नीति के बारे में एक प्रमुख बात है कि यह एक व्यक्ति के सामने यह सीखने की जरूरत पैदा करती है कि उसे कैसे सीखना है। इसके अलावा उन्होंने 2030 तक सभी जिलों में एक बहु-विषयी संस्थान बनाने की योजना के बारे में विस्तार से बताया, जहां वैश्विक मांगों के अनुरूप मुक्त विषय संयोजनों को चुनने की छूट होगी। उनकी बातों ने अंतरराष्ट्रीयकरण के लक्ष्यों, शिक्षकों शिक्षा में सुधार और विनियामक सुधारों पर प्रकाश डाला और इन सुधारों को बहु-विषयी व्यवस्था के जरिए जैसे विभिन्न वैश्विक मांगों को पूरा करने के लिए सही दिशा में उठाया गया कदम माना।

प्रो. अनु सिंह लाथेर ने कहा कि यह केवल विषय विशेष के ज्ञान को ही नहीं, जो मायने रखता है, बल्कि यह भी मायने रखता है कि संवाद को कैसे चलाने की जरूरत है। उन्होंने समग्र और बहु-विषयी शिक्षा को अपनाने के अलावा शिक्षा को ज्यादा व्यापक बनाने और बहु-विषयी संस्कृति को प्राप्त करने के तरीकों के बारे में विस्तार से बताया।

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पहली बार, भारत के आठ सागर तटों को प्रतिष्ठित “ब्लू फ्लैग अंतरराष्ट्रीय ईको लेबल” दिए जाने की सिफारिश

अंतरराष्ट्रीय सागर तट स्वच्छता दिवस की पूर्व संध्या पर केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्री ने एक आभासी कार्यक्रम में घोषणा की कि पहली बार भारत के आठ सागर तटों की प्रतिष्ठित “अंतरराष्ट्रीय ईको लेबल ब्लू फ्लैग प्रमाणपत्र” के लिए सिफारिश की गई है ।

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प्रमुख पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों की एक स्वतंत्र राष्ट्रीय ज्यूरी ने यह सिफारिश की है। “ब्लू फ्लैग सागर तट” विश्व के सबसे स्वच्छ सागर तट माने जाते हैं। ये आठ सागर तट हैं -गुजरात का शिवराजपुर तट, दमण एवं दीव का घोघला तट, कर्नाटक का कासरगोड बीच और पदुबिरदी बीच, केरल का कप्पड बीच, आंध्र प्रदेश का रुषिकोंडा बीच, ओडिशा का गोल्डन बीच और अंडमान निकोबार का राधानगर बीच।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर, संसद के मौजूदा सत्र के जारी रहने के कारण इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके, लेकिन उन्होंने एक वीडियो संदेश में कहा कि सरकार देश भर के सागर तटों को स्वच्छ बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि तटवर्ती इलाकों के स्वच्छ सागर तट स्वच्छ पर्यावरण के प्रमाण हैं। उन्होंने कहा कि समुद्री कचरा और तेल के बिखरने से समुद्री जीव जंतुओं का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है और भारत सरकार सागर तटवर्ती इलाकों के सतत विकास के लिए महती प्रयास कर रही है।

इस कार्यक्रम में भारत के अपने ईको लेबल “बीम्स” का भी शुभारंभ किया गया और इसके लिए इन आठों सागर तटों पर एक साथ -#IAMSAVINGMYBEACH नाम का ई ध्वज लहराया गया। सीकॉम और मंत्रालय ने तटवर्ती इलाकों के सतत विकास के उद्देश्य से तैयार अपनी नीतियों को आगे बढ़ने के लक्ष्य को तेकर अपने समन्वित तटीय प्रबंधन परियोजना (आईसीजेडएम) के अंतर्गत एक उच्च गुणवत्ता वाला कार्यक्रम “बीम्स” (तटीय पर्यावरण एवं सुरुचिपूर्ण प्रबंधन सेवा) शुरू किया है। यह परियोजना आईसीजेडएम की कई अन्य परियोजनाओं में से एक परियोजना है जिसे भारत सरकार तटवर्ती इलाकों के सतत विकास के लिए लागू कर रही है ताकि वैश्विक रूप से मान्य प्रतिष्ठित ईको लेबल ब्लू फ्लैग को हासिल किया जा सके।

यह ध्वज लहराने का कार्यक्रम मंत्रालय द्वारा आठ सागर तटों पर आभासी तरीके से तो संबद्ध राज्य सरकारों अथवा केंद्र शासित प्रदेशों के विधायकों अथवा बीच प्रबंधन समितियों के अध्यक्षों द्वारा स्वयं उपस्थित होकर किया गया।

इस अवसर पर केंद्रीय पर्यावरण सचिव श्री आर पी गुप्ता ने कहा कि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सागर तटों को स्वच्छ रखने के उद्देश्य से ही उच्च मानक तय किए गए हैं और अगले चार से पांच वर्ष में 100 अन्य सागर तटों को पूरी तरह स्वच्छ बना दिया जाएगा।

एक वीडियो संदेश में विश्व बैंक के कंट्री निदेशक श्री जुनैद खान ने अपने सागर तटों को स्वच्छ बनाने के प्रयासों के लिए भारत की सराहना करते हुए कहा कि भारत की तटवर्ती इलाकों के प्रबंधन की सतत रणनीति क्षेत्र के अन्य देशों के लिए प्रकाशस्तंभ साबित होगी।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने समग्र तटवर्ती क्षेत्र प्रबंधन के माध्यम से तटवर्ती क्षेत्र और सागर की ईको व्यवस्था की सुरक्षा और संरक्षण के लिए एक समग्र तटीय प्रबंधन व्यवस्था शुरू की है जिसमें वह अपने सीकॉम विंग के माध्यम से एक परस्पर संपर्क, गतिशीलता, बहु अनुशासन और पुनरावृत्तिमूलक प्रक्रिया से तटीय इलाकों के सतत विकास और प्रबंधन को बढ़ावा देता है।

आईसीजेडएम की परिकल्पना 1992 में रियो दि जनेरियो में हुए पृथ्वी सम्मेलन के दौरान पेश की गई थी अब विश्व के लगभग सभी तटवर्ती देश अपने तटों के प्रबंधन का काम आईसीजेडएम के सिद्धांतों के अनुसार करते हैं। अतः अपने तटीय क्षेत्र के प्रबंधन और सतत विकास के लिए आईसीजेडएम के सिद्धांतों के पालन से भारत को इस अंतरराष्ट्रीय समझौते के प्रति व्यक्त प्रतिबद्धता को पूरा करने में मदद मिलती है।

बीम्स कार्यक्रम का उद्देश्य तटवर्ती क्षेत्र के जल को प्रदूषित होने से बचाना, तटों पर समस्त सुविधाओं का सतत विकास, तटीय ईको व्यवस्था और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण करने के साथ साथ स्थानीय प्रशासन और अन्य भागीदारों को बीच की स्वच्छता और वहां आने वालों के स्वास्थ्य और सुरक्षा का तटीय पर्यावरण और नियमों के अनुसार पालन सुनिश्चित करने को प्रेरित करना है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य प्रकृति के साथ पूर्ण तादात्म्य बनाकर तटीय मनोरंजन का विकास करना है। अंतरराष्ट्रीय तटीय स्वच्छता दिवस 1986 में शुरू हुआ था, जब लिंडा मरानिस की सागर संरक्षण के मामले को लेकर कैथी ओ हारा से मुलाकात हुई थी। ओ हारा ने तभी एक रिपोर्ट” प्लास्टिक इन दि ओशन: मोर दैन ए लिटिल प्राब्लम” पूरी की थी। ये दोनों इसके बाद अन्य सागर प्रेमियों के संपर्क में आईं और उन्होंने “क्लीन अप फार ओशन कंजर्वैंसी” का आयोजन किया। इस पहले क्लीन अप में 2,800 स्वयंसेवियों ने भाग लिया। उसी समय से ये क्लीन अप सौ से अधिक देशों में एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम बन गया।

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प्रधानमंत्री ने बिहार में पेट्रोलियम क्षेत्र से जुड़ी तीन प्रमुख परियोजनाएं राष्ट्र को समर्पित की

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प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज बिहार में पेट्रोलियम क्षेत्र से जुड़ी तीन प्रमुख परियोजनाओं को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से देश को समर्पित किया। परियोजनाओं में पारादीप-हल्दिया-दुर्गापुर पाइपलाइन विस्तार परियोजना का दुर्गापुर-बांका खंड और दो एलपीजी बॉटलिंग संयंत्र शामिल हैं। उन्हें पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तत्वावधान में इंडियनऑयल और एचपीसीएल, पीएसयू द्वारा अधिकृत किया गया है।

इस अवसर पर प्रधान मंत्री ने कहा कि कुछ साल पहले बिहार के लिए घोषित विशेष पैकेज ने राज्य के बुनियादी ढांचे पर ध्यान केन्‍द्रित किया। उन्होंने कहा कि बिहार के लिए दिए गए विशेष पैकेज में पेट्रोलियम और गैस से संबंधित 21 हजार करोड़ रुपये की 10 बड़ी परियोजनाएँ थीं। इनमें से आज यह सातवीं परियोजना है जो बिहार के लोगों को समर्पित की जा रही है। उन्होंने अन्य छह परियोजनाओं की भी सूची दी जो बिहार में पहले पूरी हो चुकी हैं। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि वह एक महत्वपूर्ण गैस पाइपलाइन परियोजना दुर्गापुर-बांका खंड (लगभग 200 किमी) का उद्घाटन कर रहे हैं, जिसकी उन्होंने लगभग डेढ़ साल पहले आधारशिला रखी थी। उन्होंने चुनौतीपूर्ण इलाका होने के बावजूद इस परियोजना को समय पर पूरा करने के लिए इंजीनियरों और मजदूरों की कड़ी मेहनत और राज्य सरकार की सक्रिय सहायता की सराहना की। उन्होंने बिहार को कार्य संस्कृति से बाहर लाने में एक बड़ी भूमिका निभाने के लिएबिहार के मुख्यमंत्री की बड़ी भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि पहले एक पीढ़ी काम शुरू करती थी और दूसरी पीढ़ी इसे पूरा करती थी। उन्होंने कहा कि इस नई कार्य संस्कृति को मजबूत करने की जरूरत है और यह बिहार और पूर्वी भारत को विकास के पथ पर ले जा सकती है।

प्रधानमंत्री ने शास्त्रों से उद्धृत किया, “सामर्थ्य मूलं स्वातंत्र्यम्, श्रम मूलं वैभवम्।” अर्थ शक्ति जिसका अर्थ है शक्ति स्वतंत्रता का स्रोत है और श्रम शक्ति किसी भी राष्ट्र के विकास का आधार है। उन्होंने कहा कि बिहार सहित पूर्वी भारत में न तो श्रम शक्ति की कमी है, और न ही इस स्थान पर प्राकृतिक संसाधनों की कमी है और इसके बावजूद, बिहार और पूर्वी भारत दशकों तक विकास के मामले में पीछे रहे और राजनीतिक, आर्थिक और अन्‍य प्राथमिकताओं के कारणों से उन्‍हें अंतहीन देरी का सामना करना पड़ा। और अन्य प्राथमिकताएं। उन्होंने कहा कि चूंकि सड़क संपर्क, रेल संपर्क, हवाई संपर्क, इंटरनेट कनेक्टिविटी पहले प्राथमिकता नहीं थी, इसलिए बिहार में गैस आधारित उद्योग और पेट्रो-कनेक्टिविटी की कल्पना नहीं की जा सकती थी। उन्होंने कहा कि भूमिबद्ध राज्‍य होने और पेट्रोलियम और गैस से संबंधित संसाधनों का अभाव होने के कारण गैस आधारित उद्योगों का विकास बिहार में एक बड़ी चुनौती था जो अन्यथा समुद्र से सटे राज्यों में उपलब्ध हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि गैस आधारित उद्योग और पेट्रो-कनेक्टिविटी का लोगों के जीवन पर, उनके जीवन स्तर पर सीधा प्रभाव पड़ता है और लाखों नए रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं। उन्होंने आज कहा, जब बिहार और पूर्वी भारत के कई शहरों में सीएनजी और पीएनजी पहुंच रही है, तो यहां के लोगों को ये सुविधाएं आसानी से मिल जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ऊर्जा गंगा योजना के अंतर्गत पूर्वी समुद्र तट और पश्चिमी समुद्री तट पर कांडला पर पूर्वी सागर पर पूर्वी भारत को पारादीप से जोड़ने का भगीरथ का प्रयास शुरू हुआ और सात राज्यों को इस पाइपलाइन के माध्यम से जोड़ा जाएगा, जो लगभग 3000 किलोमीटर लंबी है, जिसमें बिहार की भी प्रमुख भूमिका है। पारादीप – हल्दिया से जाने वाली लाइन को अब पटना, मुज़फ़्फ़रपुर तक बढ़ाया जाएगा और कांडला से आने वाली पाइपलाइन जो गोरखपुर तक पहुँच चुकी है, उसे भी इससे जोड़ा जाएगा। उन्होंने कहा कि जब पूरी परियोजना तैयार हो जाएगी, तो यह दुनिया की सबसे लंबी पाइपलाइन परियोजनाओं में से एक बन जाएगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इन गैस पाइपलाइनों के कारण, बिहार में बड़े बॉटलिंग प्लांट लगाए जा रहे हैं। जिनमें से बांका और चंपारण में आज दो नए बॉटलिंग प्लांट शुरू किए गए हैं। इन दोनों संयंत्रों में हर साल 125 मिलियन से अधिक सिलेंडर भरने की क्षमता है। ये संयंत्र गोड्डा, देवघर, दुमका, साहिबगंज, पाकुड़ जिलों और झारखंड में उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों की एलपीजी आवश्यकताओं को पूरा करेंगे। उन्होंने कहा कि गैस पाइपलाइन के बिछाने से पाइपलाइन से ऊर्जा के आधार पर नए उद्योगों के लिए बिहार हजारों नए रोजगार पैदा कर रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि बरौनी का उर्वरक कारखाना, जो पिछले दिनों बंद था, इस गैस पाइपलाइन के निर्माण के बाद जल्द ही काम करना शुरू कर देगा। उन्होंने कहा कि आज देश के आठ करोड़ गरीब परिवारों के पास उज्ज्वला योजना के कारण गैस कनेक्शन हैं। इसने कोरोना की अवधि के दौरान गरीबों के जीवन को बदल दिया क्योंकि उनके लिए घर पर रहना आवश्यक था और उन्हें लकड़ी या अन्य ईंधन इकट्ठा करने के लिए बाहर जाने की आवश्यकता नहीं थी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना की इस अवधि में, उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को लाखों सिलेंडर मुफ्त प्रदान किए गए हैं, जिससे लाखों गरीब परिवारों को लाभ हुआ है। उन्होंने संक्रमण के खतरों के बावजूद, पेट्रोलियम और गैस विभागों और कंपनियों के प्रयासों की सराहना की, साथ ही साथ उनके लाखों वितरण साझेदारों ने भी, कोरोना के समय में भी लोगों को गैस से बाहर नहीं निकलने दिया। उन्होंने कहा कि एक समय था जब बिहार में एलपीजी गैस कनेक्शन संपन्न लोगों की निशानी थी। लोगों को प्रत्येक गैस कनेक्शन के लिए सिफारिशें देनी पड़ती थी। लेकिन अब बिहार में यह स्थिति बदल चुकी है उज्जवला योजना के कारण, बिहार के लगभग 1.25 करोड़ गरीब परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन दिया गया है। घर में गैस कनेक्शन ने बिहार के करोड़ों गरीबों का जीवन बदल दिया है।

प्रधानमंत्री ने बिहार के युवाओं की प्रशंसा की और कहा कि बिहार देश की प्रतिभा का पावरहाउस है। उन्होंने कहा कि बिहार की ताकत और बिहार के श्रम की छाप हर राज्य के विकास में दिखाई देगी। उन्होंने कहा कि पिछले 15 वर्षों में, बिहार ने एक सही सरकार, सही निर्णय और एक स्पष्ट नीति के साथ दिखाया है, विकास होता है और हर एक तक पहुंचता है। एक सोच थी, शिक्षा जरूरी नहीं है क्योंकि बिहार के युवाओं को खेतों में काम करना पड़ता है। इस सोच के कारण, बिहार में बड़े शिक्षण संस्थानों को खोलने के लिए ज्यादा काम नहीं किया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि बिहार के युवाओं को पढ़ाई करने, काम करने के लिए बाहर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। खेत में काम करना, खेती करना बहुत मेहनत और गर्व का काम है, लेकिन युवाओं को अन्य अवसर न दें, और न ही ऐसी व्यवस्था करें, यह सही नहीं था।


प्रधानमंत्री ने कहा कि आज बिहार में शिक्षा के बड़े केन्‍द्र खुल रहे हैं। अब कृषि कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या बढ़ रही है। अब राज्य में आईआईटी, आईआईएम और आईआईआईटी बिहार के युवाओं के सपनों को साकार करने में मदद कर रहे हैं। उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री के पॉलिटेक्निक संस्थानों की संख्या को तीन गुना करने और दो बड़े विश्वविद्यालयों, एक आईआईटी, एक आईआईएम, एक निफ्ट और बिहार में एक राष्ट्रीय विधि संस्थान खोलने के प्रयासों की सराहना की।

प्रधानमंत्री ने कहा कि स्टार्ट अप इंडिया, मुद्रा योजना और ऐसी कई योजनाओं ने बिहार के युवाओं को स्वरोजगार की आवश्यक मात्रा प्रदान की है। उन्होंने कहा कि आज बिहार के शहरों और गांवों में बिजली की उपलब्धता पहले से कहीं अधिक है। बिजली, पेट्रोलियम और गैस क्षेत्रों में आधुनिक बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जा रहा है, सुधार लाए जा रहे हैं, उद्योगों और अर्थव्यवस्था को गति देने के साथ-साथ लोगों का जीवन आसान बन रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना की इस अवधि में, एक बार फिर पेट्रोलियम से संबंधित बुनियादी ढांचा रिफाइनरी परियोजनाओं, अन्वेषण या उत्पादन से संबंधित परियोजनाएं, पाइपलाइन, सिटी गैस वितरण परियोजनाओं जैसी कई परियोजनाओं ने गति प्राप्त की है। उन्होंने कहा कि 8 हजार से अधिक परियोजनाएं हैं, जिन पर आने वाले दिनों में 6 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रवासी मजदूर वापस आ गए हैं और रोजगार के नए अवसर भी पैदा हुए हैं। इतनी बड़ी वैश्विक महामारी के दौरान भी देश विशेष रूप से बिहार बंद नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि 100 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन परियोजना भी आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने में मदद करने वाली है। उन्होंने सभी से बिहार, पूर्वी भारत को विकास का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए तेजी से काम करने का आग्रह किया।

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डाक विभाग द्वारा हिन्दी पखवाड़ा आयोजन का मुख्य पोस्टमास्टर जनरल केके सिन्हा ने किया शुभारम्भ

डाक विभाग द्वारा मुख्य पोस्टमास्टर जनरल, उत्तर प्रदेश कार्यालय में हिन्दी पखवाडे़ का शुभारम्भ 14 सितम्बर को हुआ। मंथन सभागार में आयोजित कार्यक्रम में  उ.प्र. परिमंडल के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल, श्री कौशलेन्द्र कुमार सिन्हा ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर इसका शुभारंभ किया। लखनऊ मुख्यालय परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ, श्री कृष्ण कुमार यादव ने सचिव, डाक विभाग का संदेश पढ़कर लोगों को हिंदी के प्रति प्रेरित किया। निदेशक डाक सेवाएँ (मुख्यालय) मो. शाहनवाज अख्तर ने परिमंडलीय कार्यालय में पखवाड़े भर चलने वाले कार्यक्रमों के बारे में जानकारी दी।

इस अवसर पर मुख्य पोस्टमास्टर जनरल श्री कौशलेन्द्र कुमार सिन्हा ने अपनेे सम्बोधन में कहा कि हिंदी पूरे देश को जोड़ने वाली भाषा है और सरकारी कामकाज में भी इसे बहुतायत में अपनाया जाना चाहिये। हिन्दी हमारी मातृभाषा के साथ-साथ राजभाषा भी है, ऐसे में हम सभी को रोजमर्रा के सरकारी कार्यों में हिन्दी भाषा का प्रयोग करते हुए लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि, हिन्दी एकमात्र ऐसी भाषा है, जो जैसे लिखी जाती है वैसे ही पढ़ी और बोली जाती है। हिन्दी पखवाड़ा के दौरान डाक विभाग द्वारा मनाये जाने वाले कार्यक्रमों में ज्यादा से ज्यादा डाककर्मियों से भागीदारी की भी अपील की।

लखनऊ मुख्यालय परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने इस अवसर पर डाक विभाग के सचिव श्री प्रदीप्त कुमार बिशोई का संदेश पढ़ा, जिसमें उनके द्वारा इस बात पर जोर दिया गया कि डाक विभाग को अपनी नीतियों, योजनाओं एवं कार्यक्रमों का लाभ जन-जन तक पहुँचाने और इनके प्रभावी प्रसार – प्रचार एवं क्रियान्वयन के लिये राजभाषा हिन्दी के प्रयोग को और अधिक बढ़ाना होगा जो आज की एक बड़ी अनिवार्यता बन गई है।  

निदेशक डाक सेवाएँ (मुख्यालय) मो. शाहनवाज अख्तर ने परिमंडलीय कार्यालय में पखवाड़े भर चलने वाले कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देते हुए आभार ज्ञापन किया। इस दौरान निबंध लेखन, हिन्दी टंकण, हिन्दी काव्य पाठ, हिन्दी टिप्पण एवं आलेखन जैसी तमाम प्रतियोगितायें आयोजित की जाएँगी।

इस अवसर पर सहायक पोस्टमास्टर जनरल श्री वीके गुप्ता, श्री केएस वाजपेई, सहायक निदेशक सर्वश्री भोला शाह, सुशाील कुमार तिवारी, विनीत कुमार शुक्ला, एपी अस्थाना, विजेन्द्र, अवधेश मिश्रा, आरके अवस्थी, पंकज सिरोठिया सहित परिमण्डलीय कार्यालय के सभी अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे।  कार्यक्रम का संचालन श्री विजय कुमार द्वारा किया गया।

इस अवसर पर कार्यालय परिसर में मुख्य पोस्टमास्टर जनरल श्री कौशलेन्द्र कुमार सिन्हा एवं डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव व मो. शाहनवाज अख्तर ने  पौधारोपण करते हुए पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दिया।

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उम्मीदें

बदलते समय की धारा में क्या अपनी उम्मीदों को ठंडा होने दिया जाए, आखिर यह उम्मीदें हैं क्या।उम्मीदें किसी के प्यार की, उम्मीदें आगे बढ़ने की, उम्मीदें नई शुरुआत की,उम्मीदें कुछ हासिल करने की आखिर उम्मीदें ही तो हमें आगे बढ़ने का जज्बा देती हैं, और क्या-क्या नहीं दिया हमें इन उम्मीदों ने।एक नन्हे से बालक की उम्मीद ने एक को अल्बर्ट आइंस्टाइन बना दिया तो दूसरे को न्यूटन। एक की उम्मीद ने उसे कल्पना चावल तो दूसरे की उम्मीद ने माधुरी दीक्षित। देखा जाए तो उम्मीद से ही जिंदगी कायम  है अगर यह ना हो तो सृष्टि, जो कि परिवर्तनशील है वहीं जस की तस रह जाएगी, कोई बदलाव की संभावना ना होगी।

पूजा खत्री लखनऊ

जैसे एक कहावत कही जाती है कि दस मुलाकातों के लिए एक मुलाकात जरूरी है ऐसे ही किसी सफलता के लिए उम्मीद का होना अनिवार्य है।बिना आजादी की उम्मीद के क्या भारत को गुलामी की बेड़ियों से निकालना संभव था जो सपना स्वतंत्र भारत का क्रांतिकारियों ने देखा था,क्या संभव था? चरखा युग से औद्योगिक युग संभव था और तो और क्या एक चाय वाले का भारत का प्रधानमंत्री बनना संभव था,इन सपनों को पूरा करने का श्रेय किसको, उस उम्मीद को जिसने किसी भी दिल में एक छोटी सी बिसात के रूप में जन्म लिया और एक सफलता के रूप में सामने आकर पैरों को चूम लिया। क्या बिना किसी लक्ष्य को बांधे  किसी भी मुकाम पर सफलता पाना संभव है, आज भी महाभारत के अर्जुन अपनी बाण विद्या के  लिए याद किए जाते हैं, किंतु बिना किसी लक्ष्य को निर्धारित किए सर्वोच्च धनुर्धारी के रूप में विख्यात हो पाना संभव न था
उम्मीद का होना ही इस बात की तासीर है कि हम सपने देखते और पूरा करने का जज्बा भी रखते हैं, पर क्या केवल उम्मीद का होना ही सफलता का आधार है..? उम्मीद हमेशा से सकारात्मक और नकारात्मक सोच से प्रभावित होती है “हां होगा”, “अवश्य होगा”, यह सोच हमें सफलता के  बहुत पास “और क्या यह होगा” अथवा “क्या मैं कर पाऊंगा”असफलता की श्रेणी में खड़ा कर देती है। सफलता की इस कसौटी पर परिस्थितियों का भी विशेष प्रभाव होता है, उचित परिस्थिति में अपनी उम्मीदों को पूरा करना आसान होता है, हिमालय की चोटी पर अरुणिमा का साहस ले गया किंतु सत्यता यह भी है कि उम्मीद को जगाकर ही ऐसा कर पाना उसके लिए संभव हुआ, जहां यही उम्मीद जिंदगी में आशा के दीप जलाती है वहीं दूसरी और असफल होने का दुख का आधार बन जाती है, हम दुखी होते हैं, क्योंकि हम उम्मीद करते हैं और जब वह उम्मीद हमारी कसौटी पर खरी नहीं उतरती तो हम मायूस हो जाते हैं एक नये दुख का शिकार। जैसे आज हम इंसानों में दुख ज्यादा है क्यूंकि उम्मीदें हैं अपनों से और दुनिया बेगानी होती जा रही है सब भेड चाल में चल रहे है, एक दूजे से मुंह फाड़े अपेक्षाएं रख कर।
पर फिर भी तो देखना यह है कि यथार्थ के धरातल पर आधे भरे पानी के गिलास का कौन सा पहलू हमें लुभाता है आधा भरा उम्मीद का या आधा खाली मायूसी का।

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अमित शाह ने वीडियो कॉंफ्रेंसिंग के माध्यम से गांधीनगर ज़िले एवं नगर में 15.01 करोड़ रुपये की विकास योजनाओं का आगाज़ कर यह योजनाएं लोगों को समर्पित की ।

केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने आज वीडियो कॉंफ्रेंसिंग के माध्यम से गांधीनगर ज़िले एवं नगर में 15.01 करोड़ रुपये की विकास योजनाओं का आगाज़ कर यह योजनाएं लोगों को समर्पित की । उन्होंने 119.63 करोड़ रुपये की विभिन्न विकास परियोजनाओं की आधारशिला भी रखी । इनमें स्मार्ट सिटी परियोजनाएं, उद्यानों को उन्नत बनाने की योजना, सड़कों का चौड़ीकरण एवं लड़कियों के स्कूलों में नये कक्षा कक्षों का निर्माण शामिल है । यह विकासात्मक परियोजनाएं गांधीनगर के विकास को गति प्रदान करेंगी। गुजरात के उप मुख्यमंत्री श्री नितिन पटेल भी रूपल गांव से वीडियो कॉंफ्रेंसिंग के माध्मय से इस कार्यक्रम में उपस्थित हुए

इस अवसर पर श्री अमित शाह ने कहा कि “मुझे विश्वास है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी जी के नेतृत्व में हम सभी गांधीनगर को एक आदर्श लोकसभा क्षेत्र बनाने का प्रयास करेंगे ।”केंद्रीय गृह मंत्री ने यह भी कहा कि “प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व में राष्ट्र कोरोना महामारी के विरुद्ध एक युद्ध लड़ रहा है ।” इसके अतिरिक्त गुजरात में मुख्यमंत्री श्री विजय रुपाणी के नेतृत्व में कोरोना के विरुद्ध लड़ाई छेड़ी गई है । निरंतर किये गए इन प्रयासों के परिणामस्वरूप मृत्यु दर में एक गिरावट आई है एवं ठीक होने की दर में वृद्धि हुई है ।

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि “कोरोना के विरुद्ध युद्ध में जनता की जागरूकता ही एक समाधान है ।”उन्होंने लोगों से सामाजिक दूरी का कड़ाई से पालन करने की अपील भी की । केंद्रीय गृह मंत्री ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ज़रूरतमंदों को राशन, मास्क, सैनिटाइज़र एवं दवाएं वितरित कर मानवता की सेवा कर रहे गांधीनगर के स्वयंसेवकों का आभार व्यक्त किया

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प्रधानमंत्री ने नई शिक्षा नीति–2020 के तहत ‘21वीं सदी में स्कूली शिक्षा’ विषय पर संगोष्ठी को संबोधित किया

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज यहां वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 21वीं सदी में स्कूली शिक्षा विषय पर एकसंगोष्ठी को संबोधित किया। शिक्षक पर्व 2020 के एक हिस्से के तौर पर शिक्षा मंत्रालय द्वारा ‘21वीं सदी में स्कूली शिक्षा’ विषय पर आयोजित एक दो-दिवसीय संगोष्ठी की आभासी शुरुआत 10 सितंबर 2020 को हुई। इस संगोष्ठी का आयोजन शिक्षा मंत्रालय द्वारा शिक्षक पर्व के एक हिस्से के तौर पर किया गया। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल; केन्द्रीय शिक्षा राज्यमंत्री श्री संजय धोत्रे; उच्च शिक्षा विभाग के सचिव श्री अमित खरे तथा स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की सचिव श्रीमती अनीता करवाल ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया। इस अवसर पर नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. कस्तूरीरंगन, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मसौदा समिति के सदस्य प्रोफेसर एम. के. श्रीधर, नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति के सदस्य प्रोफेसर मंजुल भार्गव तथा नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति की सदस्य डॉ. शकीला शम्सु भी उपस्थित थीं।

इस अवसर पर बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21वीं सदी के भारत को एक नई दिशा देने जा रही है और हम एक ऐसे क्षण का हिस्सा बन रहे हैं जो हमारे देश के भविष्य के निर्माण की नींव रख रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशकों में हमारे जीवन का शायद ही कोई पहलू पहले जैसा रहा हो, फिर भी हमारी शिक्षा प्रणाली अभी भी पुरानी व्यवस्था के तहत चल रही है। उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति नई आकांक्षाओं, एक नए भारत के नए अवसरों को पूरा करने का एक साधन है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पिछले 3 से 4 वर्षों में हर इलाके, हर क्षेत्र एवं हर भाषा के लोगों की कड़ी मेहनत का परिणाम है। उन्होंने कहा कि इस नीति के कार्यान्वयन के साथ वास्तविक कार्य अब शुरू होगा। उन्होंने शिक्षकों से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी नीति की घोषणा के बाद कई सवालों का उठना जायज है और  आगे बढ़ने के लिए इस संगोष्ठी में वैसे मुद्दों पर चर्चा करना आवश्यक है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के लिए प्रधानाध्यापक एवं शिक्षक इस चर्चा में उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के बारे में देशभर के शिक्षकों से एक सप्ताह के भीतर 1.5 मिलियन से अधिक सुझाव प्राप्त हुए हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ऊर्जावान युवा किसी देश के विकास के साधन होते हैं, लेकिन उनका विकास उनके बचपन से शुरू हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों की शिक्षा, उन्हें मिलने वाला सही माहौल, काफी हद तक यह निर्धारित करता है कि वह व्यक्ति अपने भविष्य में क्या बनेगा और उसका व्यक्तित्व कैसा होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 इस पर बहुत जोर देती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि प्री–स्कूल वह अवस्था है, जहां बच्चे अपनी इंद्रियों, अपने कौशल को बेहतर ढंग से समझने लगते हैं। इसके लिए, स्कूलों एवं शिक्षकों को बच्चों को मजेदार तरीके से  सीखने, खेल के साथ सीखने, गतिविधि आधारित सीखने तथा खोज आधारित सीखने का माहौल प्रदान करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है, उसमें अधिक से अधिक सीखने की भावना, वैज्ञानिक एवं तार्किक सोच, गणितीय सोच तथा वैज्ञानिक चेतना विकसित करना बहुत आवश्यक है।

प्रधानमंत्री ने पुरानी 10 प्लस 2 की प्रणाली को  राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 5 प्लस 3 प्लस 3 प्लस 4 की प्रणाली से बदलने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अब प्री-स्कूल की खेल के साथ शिक्षा, जो शहरों में निजी स्कूलों तक सीमित है, इस नीति के लागू होने के बाद गांवों में भी पहुंचेगी।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बुनियादी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना इस नीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत, बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक साक्षरता के विकास को एक राष्ट्रीय मिशन के तौर पर लिया जाएगा। एक बच्चे को आगे बढ़ना चाहिए और  सीखने के लिए पढ़ना चाहिए, इसके लिए यह आवश्यक है कि वह शुरुआत में पढ़ना सीखे। पढ़ना सीखने से लेकर सीखने के लिए पढ़ने की यह विकास यात्रा बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक साक्षरता के माध्यम से पूरी होगी।

प्रधानमंत्री ने देश के बच्चों के धाराप्रवाह मौखिक पठन के लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि तीसरी कक्षा को पार करने वाला प्रत्येक बच्चा एक मिनट में सहजता से 30 से 35 शब्द पढ़ सके। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इससे उन्हें अन्य विषयों की सामग्री को आसानी से समझने में मदद मिलेगी। उन्होंने आगे कहा कि यह सब तभी होगा जब पढ़ाई वास्तविक दुनिया से, हमारे जीवन एवं आसपास के वातावरण से जुड़ी हो।

उन्होंने यह भी कहा कि जब शिक्षा आसपास के वातावरण से जुड़ी होती है, तो इसका प्रभाव छात्र के पूरे जीवन पर पड़ता है और साथ ही पूरे समाज पर भी पड़ता है। उन्होंने अपने गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के समय की एक पहल का भी उल्लेख किया। सभी स्कूलों के छात्रों को अपने गांव के सबसे पुराने पेड़ की पहचान करने का काम दिया गया, और फिर उनसे उस पेड़ एवं अपने गांव पर आधारित एक निबंध लिखने को कहा गया। उन्होंने कहा कि यह प्रयोग बहुत सफल रहा क्योंकि एक तरफ बच्चों को पर्यावरण के बारे में जानकारी मिली और साथ ही उन्हें अपने गांव के बारे में बहुत सारी जानकारी प्राप्त करने का मौका मिला।

प्रधानमंत्री ने ऐसे आसान एवं मौलिक तरीकों को बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया। इन प्रयोगों को हमारे नए युग के सीखने के केंद्र में होना चाहिए- संलग्नता, अन्वेषण, अनुभव, अभिव्यक्ति तथा श्रेष्ठता।

श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि छात्र अपनी रुचि के अनुसार गतिविधियों, कार्यक्रमों, परियोजनाओं में संलग्न हों। तभी बच्चे रचनात्मक तरीके से अभिव्यक्त करना सीखते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों को स्टडी टूर पर ऐतिहासिक स्थानों, रुचि वाले स्थानों, खेतों, उद्योगों आदि में ले जाना चाहिए, क्योंकि यह उन्हें व्यावहारिक ज्ञान देगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसा अब सभी स्कूलों में नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस वजह से कई छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान से सामना कराने से उनकी जिज्ञासा बढ़ेगी और उनका ज्ञान भी बढ़ेगा। यदि छात्र कुशल पेशेवरों को देखेंगे तो एक प्रकार का भावनात्मक संबंध जुड़ेगा, वे कौशल को समझेंगे और उनका सम्मान करेंगे। यह संभव है कि इनमें से कई बच्चे बड़े होकर ऐसे उद्योगों में शामिल होंगे या फिर अगर वे कोई अन्य पेशा चुनते हैं तो यह बात  उनके दिमाग में रहेगी कि इस पेशे को बेहतर बनाने के लिए क्या नया किया जाये।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस तरह से तैयार की गई है कि पाठ्यक्रम को घटाया जा सकता है और बुनियादी चीजों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। सीखने को एकीकृत एवं अंतःविषयी, मजेदार और संपूर्ण अनुभव वाला बनाने के लिए एक नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क विकसित किया जाएगा। इसके लिए सुझाव लिए जायेंगे और सभी सिफारिशों एवं आधुनिक शिक्षा प्रणालियों को इसमें शामिल किया जाएगा। भविष्य की दुनिया आज की हमारी दुनिया से काफी अलग होने जा रही है।

उन्होंने 21 वीं सदी के कौशल के साथ हमारे छात्रों को आगे बढ़ाने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने 21 वीं सदी के कौशल– तार्किक सोच, रचनात्मकता, सहकार्यता, जिज्ञासा एवं संचार- को सूचीबद्ध किया। उन्होंने कहा कि छात्रों को शुरू से ही कोडिंग सीखनी चाहिए, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को समझना चाहिए और इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्लाउड कंप्यूटिंग, डेटा साइंस एवं रोबोटिक्स से जुड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारी पहले वाली शिक्षा नीति प्रतिबंधात्मक थी। लेकिन वास्तविक दुनिया में, सभी विषय एक-दूसरे से जुड़े हैं। लेकिन वर्तमान प्रणाली ने क्षेत्र बदलने एवं  नई संभावनाओं से जुड़ने के अवसर प्रदान नहीं किए। यह भी कई बच्चों के स्कूल छोड़ने का एक प्रमुख कारण रहा है। इसलिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में छात्रों को किसी भी विषय को चुनने की स्वतंत्रता दी गयी है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक अन्य बड़े मुद्दे को भी संबोधित करती है – हमारे देश में सीखने से संचालित शिक्षा के स्थान पर अंकपत्र (मार्कशीट) संचालित शिक्षा का हावी होना। उन्होंने कहा कि अंकपत्र अब मानसिक दबाव के एक पत्र की तरह हो गये हैं। शिक्षा से इस तनाव को दूर करना राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मुख्य उद्देश्यों में से एक है। परीक्षा ऐसी होनी चाहिए जो छात्रों पर अनावश्यक दबाव न डाले। और प्रयास यह है कि छात्रों का मूल्यांकन केवल एक परीक्षा से नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उसे आत्म-मूल्यांकन, सहकर्मी से सहकर्मी मूल्यांकन जैसे छात्रों के विकास के विभिन्न पहलुओं पर आधारित होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में एक मार्कशीट के बजाय एक समग्र रिपोर्ट कार्ड का प्रस्ताव दिया गया है जो छात्रों की अनूठी क्षमता, योग्यता, दृष्टिकोण, प्रतिभा, कौशल, दक्षता एवं संभावनाओं की एक विस्तृत शीट होगी। उन्होंने कहा कि मूल्यांकन प्रणाली के समग्र सुधार के लिए एक नये राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र “परख” की भी स्थापना की जायेगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि यह समझने की जरूरत है कि भाषा शिक्षा का माध्यम है, भाषा ही संपूर्ण शिक्षा नहीं है। कुछ लोग इस अंतर को भूल जाते हैं। इसलिए जो भी भाषा बच्चा आसानी से सीख सकता है, वही भाषा सीखने की भाषा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस बात को ध्यान में रखते हुए यह प्रस्तावित किया गया है कि अधिकांश अन्य देशों की तरह प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। अन्यथा जब बच्चे किसी अन्य भाषा में कुछ सुनेंगे, तो वे पहले इसे अपनी भाषा में अनुवाद करेंगे और  फिर इसे समझेंगे। इससे बच्चों के मन में बहुत भ्रम पैदा होता है, यह बहुत तनावपूर्ण होता है। इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में, जहां तक संभव हो, कक्षा पांच तक, कम से कम पांचवीं कक्षा तक शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा, मातृभाषा में रखने को कहा गया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा के अलावा कोई एक अन्य भाषा सीखने और सिखाने पर कुछ प्रतिबंध हैं। यद्यपि अंग्रेजी के साथ-साथ विदेशी भाषाएं अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सहायक होती हैं, लेकिन बच्चे उन्हें पढ़ने और सीखने में सक्षम होंगे। उन्होंने कहा कि इसके साथ–साथ सभी भारतीय भाषाओं को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि हमारे युवा विभिन्न राज्यों की भाषा और वहां की संस्कृति से परिचित हो सकें।

प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षक राष्ट्रीय शिक्षा नीति के इस सफ़र के अग्रदूत हैं। इसलिए, सभी शिक्षकों को बहुत सी नई चीजें सीखनी पड़ेगी और कई पुरानी चीजों को भुलाना भी पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब 2022 में आजादी के 75 साल पूरे होंगे, तब यह सुनिश्चित करना  हमारी सामूहिक जिम्मेदारी होगी कि भारत का प्रत्येक छात्र राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार पढ़े।

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एस. एन. सेन बी.वी.पी.जी. काॅलेज के शिक्षाशास्त्र विभाग द्वारा “राष्ट्रिय शिक्षा नीति 2020 सकरात्मक भविष्य की और एक स्वागतयोग्यक्ष कदम” विषय पर ई-सेमिनार का आयोजन किया गया

एस. एन. सेन बी.वी.पी.जी. काॅलेज के शिक्षाशास्त्र विभाग द्वारा “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : सकारात्मक भविष्य की ओर एक स्वागतयोग्य कदम” विषय पर ई-सेमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम औपचारिक आरम्भ के साथ प्राचार्या डॉ. निशा अग्रवाल ने मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि, रिसोर्स पर्सन्स और सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। इसके पश्चात विशिष्ट अतिथि श्री शुभ्रो सेन जी ने कहा कि, नयी शिक्षा नीति युवा शिक्षा एवं रोजगारपरक शिक्षा के क्षेत्र में नवीन क्रांति लेकर आएगी । मुख्य अतिथि डॉ. रिपुदमन सिंह (आर.एच.ई.ओ. कानपुर) ने नयी शिक्षा नीति पर व्यापक चर्चा की बात की, जिसमें इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर बात की जा सके। पहले रिसोर्स पर्सन प्रो. के.सी. वशिष्ठ ने कहा कि, यह नीति हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी है। प्रो. विजय जायसवाल ने कहा कि, यह नीति ए.बी.सी. माॅडल के द्वारा विद्यार्थी की स्वायत्तता पर बल देती है। यह नीति एक बूम है, जिसके प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है। डॉ. महेश नारायण दीक्षित ने नयी शिक्षा नीति को गाँधी जी के बुनियादी शिक्षा से जोड़ा तथा कहा कि, यह शिक्षा नीति गाँधी जी के ‘हाथ, हृदय और मन की शिक्षा से समानता रखती है।
अन्त में संयोजिका डॉ. चित्रा सिंह तोमर ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया तथा कार्यक्रम के औपचारिक समापन की घोषणा की।

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राष्ट्रपति ने शिक्षक दिवस के अवसर पर देश भर के 47 शिक्षकों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया।

भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने शिक्षक दिवस के अवसर पर आज (5 सितंबर, 2020) पहली बार वर्चुअल तरीके से आयोजित पुरस्कार समारोह में देश भर के 47 शिक्षकों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। राष्ट्रपति ने अपने भाषण में पुरस्कार विजेताओं को बधाई दी और स्कूली शिक्षा में गुणात्मक रूप से सुधार लाने के लिए शिक्षकों द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पुरस्कार विजेताओं में लगभग 40 प्रतिशत महिलाएं है। उन्होंने शिक्षक के रूप में महिलाओं द्वारा निभाई गई भूमिका की सराहना की।

      पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि वह एक दूरदर्शी,राजनेता और इससे भी बढ़कर एक असाधारण शिक्षक थे। उन्होंने कहा कि शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने वाला उनका जन्मोत्सव राष्ट्र के विकास में उनके योगदान का महज प्रतीक है और पूरे शिक्षक समुदाय के लिए सम्मान की निशानी भी है। यह अवसर शिक्षकों की प्रतिबद्धता और छात्रों के जीवन में उनके सर्वोच्च योगदान के लिए हमारे शिक्षकों को सम्मान देने का अवसर भी प्रदान करता है। उन्होंने आगे कहा कि यह उनकी प्रतिबद्धता ही है जो किसी भी स्कूल की आधारशिला है क्योंकि शिक्षक राष्ट्र के सच्चे निर्माता हैं जो बच्चों के चरित्र और ज्ञान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

राष्ट्रपति कोविंद ने कोविड महामारी के चुनौतीपूर्ण समय में डिजिटल प्रौद्योगिकी के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हमारे शिक्षक इस तकनीक का सहारा बच्चों तक अपनी पहुंच बनाने में ले रहे हैं। इस नई तकनीक संचालित शिक्षण प्रक्रिया को अपनाने में शिक्षकों के कौशल की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि सभी शिक्षकों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे डिजिटल तकनीक के क्षेत्र में अपने कौशल को बढ़ाएं और इसे अपडेट करें ताकि शिक्षा को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके और छात्रों को भी नई तकनीकों में निपुण किया जा सके। राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली ने अभिभावकों के लिए शिक्षकों के साथ जुड़ना और बच्चों को सीखने के नए क्षेत्रों में रुचि जगाना अनिवार्य बना दिया है। समाज में डिजिटल सुविधा की ग़ैर-बराबरी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने चाहिए ताकि आदिवासी और दूर-दराज के क्षेत्रों के बच्चे भी लाभान्वित हो सकें।

राष्ट्रपति कोविंद ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बारे में बात करते हुएकहा कि शुरू की गई नई शिक्षा नीति हमारे बच्चों को भविष्य की जरूरतों के लिए तैयार करने का एक प्रयास है और इसे विभिन्न हितधारकों की राय पर विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि अब इस शिक्षा नीति को सफल और फलदायी बनाने की केंद्रीय भूमिका में शिक्षक ही हैं। राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के लिए शिक्षकों को सक्षम बनाने हेतु सभी प्रयास किए जा रहे हैं और शिक्षा क्षेत्र के लिए अब केवल सबसे अधिक सक्षम लोगों को ही चुना जाएगा।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने इस समारोह में स्वागत भाषण दिया,जबकि शिक्षा राज्य मंत्री श्री संजय धोत्रे ने सबको धन्यवाद दिया।

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