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प्रधानमंत्री ने नई शिक्षा नीति–2020 के तहत ‘21वीं सदी में स्कूली शिक्षा’ विषय पर संगोष्ठी को संबोधित किया

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज यहां वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 21वीं सदी में स्कूली शिक्षा विषय पर एकसंगोष्ठी को संबोधित किया। शिक्षक पर्व 2020 के एक हिस्से के तौर पर शिक्षा मंत्रालय द्वारा ‘21वीं सदी में स्कूली शिक्षा’ विषय पर आयोजित एक दो-दिवसीय संगोष्ठी की आभासी शुरुआत 10 सितंबर 2020 को हुई। इस संगोष्ठी का आयोजन शिक्षा मंत्रालय द्वारा शिक्षक पर्व के एक हिस्से के तौर पर किया गया। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल; केन्द्रीय शिक्षा राज्यमंत्री श्री संजय धोत्रे; उच्च शिक्षा विभाग के सचिव श्री अमित खरे तथा स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की सचिव श्रीमती अनीता करवाल ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया। इस अवसर पर नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. कस्तूरीरंगन, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मसौदा समिति के सदस्य प्रोफेसर एम. के. श्रीधर, नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति के सदस्य प्रोफेसर मंजुल भार्गव तथा नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति की सदस्य डॉ. शकीला शम्सु भी उपस्थित थीं।

इस अवसर पर बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21वीं सदी के भारत को एक नई दिशा देने जा रही है और हम एक ऐसे क्षण का हिस्सा बन रहे हैं जो हमारे देश के भविष्य के निर्माण की नींव रख रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशकों में हमारे जीवन का शायद ही कोई पहलू पहले जैसा रहा हो, फिर भी हमारी शिक्षा प्रणाली अभी भी पुरानी व्यवस्था के तहत चल रही है। उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति नई आकांक्षाओं, एक नए भारत के नए अवसरों को पूरा करने का एक साधन है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पिछले 3 से 4 वर्षों में हर इलाके, हर क्षेत्र एवं हर भाषा के लोगों की कड़ी मेहनत का परिणाम है। उन्होंने कहा कि इस नीति के कार्यान्वयन के साथ वास्तविक कार्य अब शुरू होगा। उन्होंने शिक्षकों से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी नीति की घोषणा के बाद कई सवालों का उठना जायज है और  आगे बढ़ने के लिए इस संगोष्ठी में वैसे मुद्दों पर चर्चा करना आवश्यक है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के लिए प्रधानाध्यापक एवं शिक्षक इस चर्चा में उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के बारे में देशभर के शिक्षकों से एक सप्ताह के भीतर 1.5 मिलियन से अधिक सुझाव प्राप्त हुए हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ऊर्जावान युवा किसी देश के विकास के साधन होते हैं, लेकिन उनका विकास उनके बचपन से शुरू हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों की शिक्षा, उन्हें मिलने वाला सही माहौल, काफी हद तक यह निर्धारित करता है कि वह व्यक्ति अपने भविष्य में क्या बनेगा और उसका व्यक्तित्व कैसा होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 इस पर बहुत जोर देती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि प्री–स्कूल वह अवस्था है, जहां बच्चे अपनी इंद्रियों, अपने कौशल को बेहतर ढंग से समझने लगते हैं। इसके लिए, स्कूलों एवं शिक्षकों को बच्चों को मजेदार तरीके से  सीखने, खेल के साथ सीखने, गतिविधि आधारित सीखने तथा खोज आधारित सीखने का माहौल प्रदान करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है, उसमें अधिक से अधिक सीखने की भावना, वैज्ञानिक एवं तार्किक सोच, गणितीय सोच तथा वैज्ञानिक चेतना विकसित करना बहुत आवश्यक है।

प्रधानमंत्री ने पुरानी 10 प्लस 2 की प्रणाली को  राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 5 प्लस 3 प्लस 3 प्लस 4 की प्रणाली से बदलने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अब प्री-स्कूल की खेल के साथ शिक्षा, जो शहरों में निजी स्कूलों तक सीमित है, इस नीति के लागू होने के बाद गांवों में भी पहुंचेगी।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बुनियादी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना इस नीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत, बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक साक्षरता के विकास को एक राष्ट्रीय मिशन के तौर पर लिया जाएगा। एक बच्चे को आगे बढ़ना चाहिए और  सीखने के लिए पढ़ना चाहिए, इसके लिए यह आवश्यक है कि वह शुरुआत में पढ़ना सीखे। पढ़ना सीखने से लेकर सीखने के लिए पढ़ने की यह विकास यात्रा बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक साक्षरता के माध्यम से पूरी होगी।

प्रधानमंत्री ने देश के बच्चों के धाराप्रवाह मौखिक पठन के लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि तीसरी कक्षा को पार करने वाला प्रत्येक बच्चा एक मिनट में सहजता से 30 से 35 शब्द पढ़ सके। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इससे उन्हें अन्य विषयों की सामग्री को आसानी से समझने में मदद मिलेगी। उन्होंने आगे कहा कि यह सब तभी होगा जब पढ़ाई वास्तविक दुनिया से, हमारे जीवन एवं आसपास के वातावरण से जुड़ी हो।

उन्होंने यह भी कहा कि जब शिक्षा आसपास के वातावरण से जुड़ी होती है, तो इसका प्रभाव छात्र के पूरे जीवन पर पड़ता है और साथ ही पूरे समाज पर भी पड़ता है। उन्होंने अपने गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के समय की एक पहल का भी उल्लेख किया। सभी स्कूलों के छात्रों को अपने गांव के सबसे पुराने पेड़ की पहचान करने का काम दिया गया, और फिर उनसे उस पेड़ एवं अपने गांव पर आधारित एक निबंध लिखने को कहा गया। उन्होंने कहा कि यह प्रयोग बहुत सफल रहा क्योंकि एक तरफ बच्चों को पर्यावरण के बारे में जानकारी मिली और साथ ही उन्हें अपने गांव के बारे में बहुत सारी जानकारी प्राप्त करने का मौका मिला।

प्रधानमंत्री ने ऐसे आसान एवं मौलिक तरीकों को बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया। इन प्रयोगों को हमारे नए युग के सीखने के केंद्र में होना चाहिए- संलग्नता, अन्वेषण, अनुभव, अभिव्यक्ति तथा श्रेष्ठता।

श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि छात्र अपनी रुचि के अनुसार गतिविधियों, कार्यक्रमों, परियोजनाओं में संलग्न हों। तभी बच्चे रचनात्मक तरीके से अभिव्यक्त करना सीखते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों को स्टडी टूर पर ऐतिहासिक स्थानों, रुचि वाले स्थानों, खेतों, उद्योगों आदि में ले जाना चाहिए, क्योंकि यह उन्हें व्यावहारिक ज्ञान देगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसा अब सभी स्कूलों में नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस वजह से कई छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान से सामना कराने से उनकी जिज्ञासा बढ़ेगी और उनका ज्ञान भी बढ़ेगा। यदि छात्र कुशल पेशेवरों को देखेंगे तो एक प्रकार का भावनात्मक संबंध जुड़ेगा, वे कौशल को समझेंगे और उनका सम्मान करेंगे। यह संभव है कि इनमें से कई बच्चे बड़े होकर ऐसे उद्योगों में शामिल होंगे या फिर अगर वे कोई अन्य पेशा चुनते हैं तो यह बात  उनके दिमाग में रहेगी कि इस पेशे को बेहतर बनाने के लिए क्या नया किया जाये।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस तरह से तैयार की गई है कि पाठ्यक्रम को घटाया जा सकता है और बुनियादी चीजों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। सीखने को एकीकृत एवं अंतःविषयी, मजेदार और संपूर्ण अनुभव वाला बनाने के लिए एक नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क विकसित किया जाएगा। इसके लिए सुझाव लिए जायेंगे और सभी सिफारिशों एवं आधुनिक शिक्षा प्रणालियों को इसमें शामिल किया जाएगा। भविष्य की दुनिया आज की हमारी दुनिया से काफी अलग होने जा रही है।

उन्होंने 21 वीं सदी के कौशल के साथ हमारे छात्रों को आगे बढ़ाने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने 21 वीं सदी के कौशल– तार्किक सोच, रचनात्मकता, सहकार्यता, जिज्ञासा एवं संचार- को सूचीबद्ध किया। उन्होंने कहा कि छात्रों को शुरू से ही कोडिंग सीखनी चाहिए, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को समझना चाहिए और इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्लाउड कंप्यूटिंग, डेटा साइंस एवं रोबोटिक्स से जुड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारी पहले वाली शिक्षा नीति प्रतिबंधात्मक थी। लेकिन वास्तविक दुनिया में, सभी विषय एक-दूसरे से जुड़े हैं। लेकिन वर्तमान प्रणाली ने क्षेत्र बदलने एवं  नई संभावनाओं से जुड़ने के अवसर प्रदान नहीं किए। यह भी कई बच्चों के स्कूल छोड़ने का एक प्रमुख कारण रहा है। इसलिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में छात्रों को किसी भी विषय को चुनने की स्वतंत्रता दी गयी है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक अन्य बड़े मुद्दे को भी संबोधित करती है – हमारे देश में सीखने से संचालित शिक्षा के स्थान पर अंकपत्र (मार्कशीट) संचालित शिक्षा का हावी होना। उन्होंने कहा कि अंकपत्र अब मानसिक दबाव के एक पत्र की तरह हो गये हैं। शिक्षा से इस तनाव को दूर करना राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मुख्य उद्देश्यों में से एक है। परीक्षा ऐसी होनी चाहिए जो छात्रों पर अनावश्यक दबाव न डाले। और प्रयास यह है कि छात्रों का मूल्यांकन केवल एक परीक्षा से नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उसे आत्म-मूल्यांकन, सहकर्मी से सहकर्मी मूल्यांकन जैसे छात्रों के विकास के विभिन्न पहलुओं पर आधारित होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में एक मार्कशीट के बजाय एक समग्र रिपोर्ट कार्ड का प्रस्ताव दिया गया है जो छात्रों की अनूठी क्षमता, योग्यता, दृष्टिकोण, प्रतिभा, कौशल, दक्षता एवं संभावनाओं की एक विस्तृत शीट होगी। उन्होंने कहा कि मूल्यांकन प्रणाली के समग्र सुधार के लिए एक नये राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र “परख” की भी स्थापना की जायेगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि यह समझने की जरूरत है कि भाषा शिक्षा का माध्यम है, भाषा ही संपूर्ण शिक्षा नहीं है। कुछ लोग इस अंतर को भूल जाते हैं। इसलिए जो भी भाषा बच्चा आसानी से सीख सकता है, वही भाषा सीखने की भाषा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस बात को ध्यान में रखते हुए यह प्रस्तावित किया गया है कि अधिकांश अन्य देशों की तरह प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। अन्यथा जब बच्चे किसी अन्य भाषा में कुछ सुनेंगे, तो वे पहले इसे अपनी भाषा में अनुवाद करेंगे और  फिर इसे समझेंगे। इससे बच्चों के मन में बहुत भ्रम पैदा होता है, यह बहुत तनावपूर्ण होता है। इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में, जहां तक संभव हो, कक्षा पांच तक, कम से कम पांचवीं कक्षा तक शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा, मातृभाषा में रखने को कहा गया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा के अलावा कोई एक अन्य भाषा सीखने और सिखाने पर कुछ प्रतिबंध हैं। यद्यपि अंग्रेजी के साथ-साथ विदेशी भाषाएं अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सहायक होती हैं, लेकिन बच्चे उन्हें पढ़ने और सीखने में सक्षम होंगे। उन्होंने कहा कि इसके साथ–साथ सभी भारतीय भाषाओं को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि हमारे युवा विभिन्न राज्यों की भाषा और वहां की संस्कृति से परिचित हो सकें।

प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षक राष्ट्रीय शिक्षा नीति के इस सफ़र के अग्रदूत हैं। इसलिए, सभी शिक्षकों को बहुत सी नई चीजें सीखनी पड़ेगी और कई पुरानी चीजों को भुलाना भी पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब 2022 में आजादी के 75 साल पूरे होंगे, तब यह सुनिश्चित करना  हमारी सामूहिक जिम्मेदारी होगी कि भारत का प्रत्येक छात्र राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार पढ़े।