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रेड क्रॉस सोसाइटी में ज्यादा से ज्यादा लोगों को सदस्य बनाया जाए। जिसके लिए दवा व्यापारियों, नर्सिंग होम एसोसिएशन तथा आई एम ए के पदाधिकारियों के साथ बैठक कर उन्हें सदस्य बनाने के लिए जागरूक किया जाए ।

जिलाधिकारी विशाख जी. ने आज कलेक्ट्रेट सभागार में रेड क्रॉस सोसाइटी के पदाधिकारियों के साथ बैठक की अध्यक्षता करते हुए समस्त संबंधित पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि रेड क्रॉस सोसाइटी में ज्यादा से ज्यादा लोगों को सदस्य बनाया जाए। जिसके लिए दवा व्यापारियों, नर्सिंग होम एसोसिएशन तथा आई एम ए के पदाधिकारियों के साथ बैठक कर उन्हें सदस्य बनाने के लिए जागरूक किया जाए ।

उन्होंने कहा कि रेड क्रॉस सोसाइटी द्वारा रक्तदान शिविरों का आयोजन किया जाता रहता है। उन्होंने कहा कि शहर के बीच में एक मॉर्डन डेडीकेटेड ब्लड बैंक एवं हेल्थ एटीएम की स्थापना का प्रस्ताव बनाने के लिए निर्देशित किया। जिसमें नार्मल खर्च पर तत्काल जांच कराने की सुविधा के साथ यह हेल्थ एटीएम कार्य करेगा । बैठक में रेड क्रॉस सोसाइटी के सदस्य उपस्थित रहे।

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शिक्षक दिवस के परिप्रेक्ष्य में 5 दिवसीय शिक्षक पर्व का शुभारंभ

कानपुर 6 सितंबर भारतीय स्वरूप संवाददाता, एस. एन. सेन बी. वी. पी. जी. कॉलेज कानपुर में उत्तर प्रदेश शासन के निर्देशानुसार शिक्षक दिवस के परिप्रेक्ष्य में दिनांक 5 सितंबर 2022 से 9 सितंबर 2022 तक मनाए जाने वाले शिक्षक पर्व के प्रथम दिवस का शुभारंभ आज के कार्यक्रम की अध्यक्षा एवम् प्राचार्या डॉ. सुमन, प्रभारी डॉ. निशी प्रकाश, शिक्षक पर्व की प्रभारी डॉ. रेखा चौबे, पूर्व प्राचार्या डॉ. निशा अग्रवाल एवम् कार्यक्रम संयोजिका डॉ. रचना निगम ने मां सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्वलन और माल्यार्पण कर किया। प्रसार प्रभारी डा प्रीति सिंह ने जानकारी देते हुए बताया अथिति स्वागत की परंपरा का निर्वहन करते हुए डॉ. निशी प्रकाश ने स्वागत उद्बोधन दिया एवम् डॉ. रेखा चौबे ने शिक्षक पर्व की महत्ता पर प्रकाश डाला। डॉ. सुमन ने अपनी ओजस्वी वाणी से सभागार में उपस्थित शिक्षकों तथा छात्राओं को लाभान्वित किया। उन्होंने तकनीकी के महत्त्व को नई शिक्षा नीति से जोड़ कर उसकी महती आवश्यकता को उल्लेखित किया। पंचदिवसीय पर्व की श्रृंखला में आज कानपुर विद्यामंदिर से आमंत्रित समाजशास्त्र की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. पूर्णिमा शुक्ला ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में परिकल्पित “युवाओं के व्यक्तित्व विकास में शिक्षकों का योगदान” विषय पर ज्ञानवर्धक व्याख्यान दिया। संगीत विभाग की छात्राओं द्वारा गुरु वंदना की मोहक प्रस्तुति ने वातावरण को संगीतमय कर दिया। प्राचार्या डॉ. सुमन ने सभी संकाय शिक्षकों को स्मृति चिन्ह प्रदान कर उनका अभिनंदन किया। कार्यक्रम श्रृंखला में अगली कड़ी के रूप में छात्राओं हेतु आशुवाचन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें भूमिका सिंह ने प्रथम स्थान, अस्मिता रावत ने द्वितीय स्थान, जायना ने तृतीय स्थान तथा अमरीन ने सांत्वना पुरुस्कार प्राप्त किया। कार्यक्रम के अंत में प्राचार्या डॉ. सुमन ने अथिति वक्ता डॉ. पूर्णिमा शुक्ला, महाविद्यालय एन. सी. सी. प्रभारी कैप्टन ममता अग्रवाल, एन. एस. एस. प्रभारी डॉ. चित्रा सिंह तोमर तथा रेंजर्स प्रभारी डॉ. प्रीति पांडे को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। डॉ. मीनाक्षी व्यास ने कार्यक्रम का समापन प्रभावशाली धन्यवाद ज्ञापित कर के दिया। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती ऋचा सिंह एवम् श्रीमती कोमल सरोज के द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इस अवसर पर महाविद्यालय परिवार ने सक्रिय भूमिका का निर्वहन किया।

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सह पाठयक्रम समिति एवं साहित्यिक गतिविधि क्लब, क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर के संयुक्त तत्वाधान में शिक्षक दिवस के अवसर पर लघु कार्यक्रम आयोजित

कानपुर 6 सितंबर भारतीय स्वरूप संवाददाता, सह पाठयक्रम समिति एवं साहित्यिक गतिविधि क्लब, क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर ने संयुक्त रूप से शिक्षक दिवस के अवसर पर एक लघु कार्यक्रम का आयोजन किया। इस अवसर को चिह्नित करने के लिए, कॉलेज हॉल का नाम भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने 7 जनवरी, 1961 को सभागार का उद्घाटन किया था। सभागार उन्हें समर्पित था और इसे “राधाकृष्णन सभागार” के रूप में जाना जाएगा।

कार्यक्रम की शुरुआत सभागार में रिबन काटने के साथ हुई, इसके बाद दीप प्रज्ज्वलित किया गया और डॉ राधाकृष्णन की तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया। इतिहास विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संजय सक्सेना ने कॉलेज के संकाय सदस्यों और छात्रों का स्वागत किया. इस अवसर का विषयगत परिचय प्रो. डी.सी. श्रीवास्तव, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, दर्शनशास्त्र द्वारा दिया गया। उन्होंने एक दार्शनिक-लेखक और भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन की रूपरेखा को रेखांकित किया, जिनकी जयंती (5 सितंबर) को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान अनुकरणीय है। शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा 1962 में देश के पूर्व राष्ट्रपति और सभी शिक्षकों को सम्मानित करने के लिए शुरू हुई थी। कॉलेज सचिव गवर्निंग बॉडी, प्रिंसिपल, प्रो. जोसेफ डैनियल ने डॉ राधाकृष्णन के जीवन की सामयिक प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला और जोर देकर कहा कि शिक्षकों को ऐसे मनुष्यों को ढालने पर ध्यान देना चाहिए जो जीवन की प्रतिकूलताओं का सामना कर सकें और देश के जिम्मेदार नागरिक बन सकें। बीएससी की छात्रा स्वीकृति सिंह ने गुरु वंदना की और बीकॉम की छात्रा स्तुति एंजेल ने एक सुंदर गीत से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। धन्यवाद प्रस्ताव हिन्दी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर अवधेश मिश्र ने प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन बीए के छात्र वेदांत मिश्रा ने किया। इस अवसर पर आयोजन समिति के सदस्यों सहित समस्त प्राध्यापक एवं महाविद्यालय के छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

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शिक्षकों को बारंबार नमन

शिक्षकों को मेरा नमन बार बार,

कराते वो अज्ञानता के सागर को पार।!
ज्ञान के चक्षुओं को है वो खोलते
अपने समृद्ध बोलो से कानों में अमृत घोलते।
आदर्शो की हैं वो जीती जागती मिसाल,
हर समस्या से बचाते बन हमारी ढाल।

कोरोना काल में भी उन्होंने हमें संभाला,
इतनी बड़ी जटिलताओं का भी हल निकाला।
निस्वार्थ भाव से वो हमे पढ़ते,
सफलता के पथ पर हमे बढ़ाते।
गुरु के आशीस में है इतना बल और मान,
कि चंद्रगुप्त भी बन सकता है सुलतान।
सफलता के पथ पर करते मार्गदर्शन,
उनके रूप में होते साक्षात प्रभु के दर्शन।
शिक्षकों को नमन मेरा बार बार,
कराते वो अज्ञानता के सागर को पार।!!
शौर्य मोहन
12 अ
वीरेन्द्र स्वरूप एजुकेशन सेंटर,श्याम नगर ,कानपुर

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प्रधानमंत्री ने पहले स्वदेशी विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत को राष्ट्र की सेवा में समर्पित किया

प्रधानमंत्री मोदी ने आज पहले स्वदेशी विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत को राष्ट्र की सेवा में समर्पित किया। इस कार्यक्रम के दौरान औपनिवेशिक अतीत से अलग तथा समृद्ध भारतीय सामुद्रिक विरासत के अनुरूप प्रधानमंत्री ने नौसेना के नये ध्वज (निशान) का भी अनावरण किया।उपस्थितजनों को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आज यहां केरल के समुद्री तट पर भारत, हर भारतवासी, एक नये भविष्य के सूर्योदय का साक्षी बन रहा है। आईएनएस विक्रांत पर हो रहा यह आयोजन विश्व क्षितिज पर भारत के बुलंद होते हौसलों की हुंकार है। उन्होंने कहा कि आज हम सब स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को सच होता देख रहे हैं, जिसमें उन्होंने सक्षम और शक्तिशाली भारत की परिकल्पना की थी। प्रधानमंत्री ने कहा, “विक्रांत विशाल, विराट और विहंगम है। विक्रांत विशिष्ट है, विक्रांत विशेष भी है। विक्रांत केवल एक युद्धपोत नहीं है। यह 21वीं सदी के भारत के परिश्रम, प्रतिभा, प्रभाव और प्रतिबद्धता का प्रमाण है। यदि लक्ष्य दूरंत हैं, यात्राएं दिगंत हैं, समंदर और चुनौतियां अनन्त हैं- तो भारत का उत्तर है विक्रांत। आजादी के अमृत महोत्सव का अतुलनीय अमृत है विक्रांत। आत्मनिर्भर होते भारत का अद्वितीय प्रतिबिंब है विक्रांत।”

राष्ट्र के नये माहौल पर टिप्पणी करते हुये प्रधानमंत्री ने कहा कि आज के भारत के लिये कोई भी चुनौती मुश्किल नहीं रही। उन्होंने कहा, “आज भारत विश्व के उन देशों में शामिल हो गया है, जो स्वदेशी तकनीक से इतने विशाल एयरक्राफ्ट कैरियर का निर्माण करते हैं। आज आईएनएस विक्रांत ने देश को एक नये विश्वास से भर दिया है, देश में एक नया भरोसा पैदा कर दिया है।” प्रधानमंत्री ने नौसेना, कोचीन शिपयार्ड के इंजीनियरों, वैज्ञानिकों और खासतौर से उन कामगारों के योगदान की सराहना की, जिन्होंने इस परियोजना पर काम किया है। उन्होंने कहा कि ओणम के आनन्ददायी और पवित्र अवसर ने आज के इस अवसर को और अधिक आनन्ददायी बना दिया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आईएनएस विक्रांत के हर भाग की अपनी एक खूबी है, एक ताकत है, अपनी एक विकासयात्रा भी है। उन्होंने कहा कि यह स्वदेशी सामर्थ्य, स्वदेशी संसाधन और स्वदेशी कौशल का प्रतीक है। इसके एयरबेस में जो इस्पात लगा है, वह इस्पात भी स्वदेशी है, जिसे डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है तथा भारतीय कंपनियों ने निर्मित किया है। विमान वाहक पोत की विशालता का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह एक तैरते हुए शहर की तरह है। यह इतनी बिजली पैदा करता है जो 5000 घरों के लिये पर्याप्त होगी और इसमें जितने तार का इस्तेमाल हुआ है, उसे फैलाया जाये, तो वह कोच्चि से काशी पहुंच जायेगा। उन्होंने यह भी कहा कि आईएनएस विक्रांत पांच प्रणों की भावना का समुच्चय है, जिसका उद्घोष उन्होंने लाल किले की प्राचीर से किया था।

प्रधानमंत्री ने भारतीय सामुद्रिक परंपरा और नौसैन्य क्षमताओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि छत्रपति वीर शिवाजी महाराज ने इस समुद्री सामर्थ्य के दम पर ऐसी नौसेना का निर्माण किया, जो दुश्मनों की नींद उड़ाकर रखती थी। जब अंग्रेज भारत आये, तो वे भारतीय जहाजों और उनके जरिये होने वाले व्यापार की ताकत से घबराये रहते थे, इसलिये उन्होंने भारत के समुद्री सामर्थ्य की कमर तोड़ने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि कैसे उस समय ब्रिटिश संसद में कानून बनाकर भारतीय जहाजों और व्यापारियों पर कड़े प्रतिबंध लगा दिये गये थे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज 2 सितंबर, 2022 वह ऐतिहासिक तारीख है, जब भारत ने गुलामी के एक निशान, गुलामी के एक बोझ को सीने से उतार दिया है। आज से भारतीय नौसेना को एक नया ध्वज मिला है। उन्होंने कहा कि अब तक भारतीय नौसेना के ध्वज पर गुलामी की पहचान बनी हुई थी, लेकिन अब आज से छत्रपति शिवाजी से प्रेरित, नौसेना का नया ध्वज समंदर और आसमान में लहरायेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि विक्रांत जब हमारे समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा के लिये उतरेगा, तो उस पर नौसेना की अनेक महिला सैनिक भी तैनात रहेंगी। समंदर की अथाह शक्ति के साथ असीम महिला शक्ति, ये नये भारत की बुलंद पहचान बन रही है। अब भारतीय नौसेना ने अपनी सभी शाखाओं को महिलाओं के लिये खोलने का फैसला किया है। जो पाबंदियां थीं, वे अब हट रही हैं। जैसे समर्थ लहरों के लिये कोई दायरे नहीं होते, वैसे ही भारत की बेटियों के लिये भी अब कोई दायरा या बंधन नहीं होंगे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि बूंद-बूंद जल से विराट समंदर बन जाता है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इस बार स्वतंत्रता दिवस पर स्वदेशी तोपों से सलामी दी गई थी। इसी तरह भारत का एक-एक नागरिक ‘वोकल फॉर लोकल’ के मंत्र को जीना प्रारंभ कर देगा, तो देश को आत्मनिर्भर बनने में अधिक समय नहीं लगेगा।

बदलती भू-रणनीतिक परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले समय भारत-प्रशांत क्षेत्र और हिंद महासागर में सुरक्षा चिंताओं को लंबे समय तक नजरअंदाज किया जाता रहा, लेकिन आज ये क्षेत्र हमारे लिये देश की बड़ी रक्षा प्राथमिकता हैं। इसलिये हम नौसेना के लिये बजट बढ़ाने से लेकर उसकी क्षमता बढ़ाने तक हर दिशा में काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि शक्तिशाली भारत शांतिपूर्ण और सुरक्षित विश्व का मार्ग प्रशस्त करेगा।

इस अवसर पर केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मुहम्मद खान, मुख्यमंत्री श्री पिनराई विजयन, केंद्रीय मंत्री श्री राजनाथ सिंह, श्री सर्बानन्द सोनोवाल, श्री वी. मुरलीधरन, श्री अजय भट्ट, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजीत डोभाल, नौसेनाध्यक्ष एडमिरल आर हरि कुमार तथा अन्य उपस्थित थे।

 

आईएनएस विक्रांत

आईएनएस विक्रांत का डिजाइन भारतीय नौसेना की अपनी संस्था वॉरशिप डिजाइन ब्यूरो ने तैयार किया है तथा इसका निर्माण पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र की शिपयार्ड कंपनी, कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड ने किया है। विक्रांत का निर्माण अत्याधुनिक स्वचालित विशेषताओं से लैस है और वह भारत के सामुद्रिक इतिहास में अब तक का सबसे विशाल निर्मित पोत है।

स्वदेशी वायुयान वाहक का नाम उसके विख्यात पूर्ववर्ती और भारत के पहले विमान वाहक पोत के नाम पर रखा गया है, जिसने 1971 के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह पोत तमाम स्वदेशी उपकरणों और यंत्रों से लैस है, जिनके निर्माण में देश के प्रमुख औद्योगिक घराने तथा 100 से अधिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम संलग्न थे। विक्रांत के लोकार्पण के साथ भारत के पास दो सक्रिय विमान वाहक पोत हो जायेंगे, जिनसे देश की समुद्री सुरक्षा को बहुत बल मिलेगा।

इस कार्यक्रम के दौरान औपनिवेशिक अतीत से अलग तथा समृद्ध भारतीय सामुद्रिक विरासत के अनुरूप प्रधानमंत्री ने नौसेना के नये ध्वज (निशान) का अनावरण किया।

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प्रधानमंत्री ने कोच्चि में भारतीय रेलवे और कोच्चि मेट्रो की 4500 करोड़ रुपये से अधिक की विभिन्न परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया

प्रधानमंत्री मोदी ने आज कोच्चि में कोच्चि मेट्रो और भारतीय रेलवे की 4500 करोड़ रुपये से अधिक की विभिन्न परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया। इससे पहले आज प्रधानमंत्री कोच्चि के कलाडी गांव स्थित श्री आदि शंकर जन्मभूमि क्षेत्र देखने गए थे।

उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि केरल का हरेक कोना ओणम के पवित्र त्योहार की खुशी से भर जाता है। उन्होंने इन परियोजनाओं के लिए सभी को बधाई दी, जो जीवनयापन की आसानी और व्यवसाय सुगमता को और सुविधाजनक बनाते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, “इस शुभअवसर पर, केरल को 4600 करोड़ रुपये से अधिक की कनेक्टिविटी परियोजनाओं का उपहार दिया जा रहा है।“

आजादी के अमृत काल के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीयों ने आने वाले 25 वर्षों में विकसित भारत के निर्माण के लिए एक विशाल संकल्प लिया है। उन्होंने कहा, “विकसित भारत के इस रोडमैप में आधुनिक अवसंरचना की बड़ी भूमिका है।” प्रधानमंत्री ने याद किया कि 2017 में उन्हें कोच्चि मेट्रो का उद्घाटन करने का सम्मान मिला था। आज कोच्चि मेट्रो के पहले चरण के विस्तार का उद्घाटन किया जा रहा है और कोच्चि मेट्रो के दूसरे चरण की आधारशिला भी रखी जा रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कोच्चि मेट्रो का दूसरा चरण युवाओं और पेशेवरों के लिए वरदान साबित होने वाला है। प्रधानमंत्री ने कहा, “जब परिवहन और शहरी विकास की बात आती है तो पूरे देश में तेजी से विकास हो रहा है और इस कार्य को प्रोत्साहन देते हुए गति दी जा रही है।“

कोच्चि में एकीकृत महानगर परिवहन प्राधिकरण के कार्यान्वयन के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि यह प्राधिकरण परिवहन के सभी साधनों, जैसे मेट्रो, बस, जलमार्ग आदि को एकीकृत करने के लिए काम करेगा। प्रधानमंत्री ने कहा, “आवागमन के विभिन्न साधनों के इस मॉडल के साथ, कोच्चि शहर को तीन प्रत्यक्ष लाभ होंगे। इससे शहर के लोगों के यात्रा समय में कमी आयेगी, सड़कों पर यातायात कम होगा और शहर में प्रदूषण में भी कमी आयेगी। भारत ने पर्यावरण की रक्षा के लिए नेट जीरो का विशाल संकल्प लिया है, इससे इस लक्ष्य को प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी। इससे कार्बन फुटप्रिंट में भी कमी आयेगी।“

प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले आठ वर्षों में केंद्र सरकार ने मेट्रो को शहरी परिवहन का सबसे प्रमुख साधन बनाने के लिए निरंतर काम किया है। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने राज्य के अन्य बड़े शहरों में भी मेट्रो का विस्तार किया है और यह सेवा केवल राजधानी तक ही सीमित नहीं रह गयी है। प्रधानमंत्री ने बताया कि देश में पहली मेट्रो लगभग 40 साल पहले चली थी और बाद के 30 वर्षों में केवल 250 किमी मेट्रो मार्ग जोड़े गए थे। पिछले 8 वर्षों के कार्यों पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में 500 किमी से अधिक मेट्रो मार्ग का निर्माण किया गया है और 1000 किमी से अधिक के नए मार्गों पर तेजी से काम चल रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा, “हम भारतीय रेलवे को पूरी तरह से बदल रहे हैं। आज देश में रेलवे स्टेशनों को भी एयरपोर्ट की तरह विकसित किया जा रहा है।“

लाखों भक्तों की लंबे समय से चली आ रही मांग के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि यह देश और दुनिया भर के सबरीमाला भक्तों के लिए, जो मंदिर की यात्रा करना चाहते हैं, एक खुशी का अवसर है। प्रधानमंत्री ने कहा, “एट्टूमानूर-चिंगवनम-कोट्टायम लाइन के दोहरीकरण से भगवान अयप्पा के दर्शन में काफी सुविधा होगी।”

केरल में चल रहे कार्यों पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि अभी 1 लाख करोड़ रुपये की विभिन्न अवसंरचना परियोजनाओं पर काम चल रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा, “कृषि से लेकर उद्योगों तक, यह आधुनिक अवसंरचना केरल में रोजगार के नए अवसर पैदा करेगी। केंद्र सरकार केरल की कनेक्टिविटी पर काफी जोर दे रही है। हमारी सरकार केरल की जीवन रेखा कहे जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 66 को भी 6 लेन में बदल रही है। इस पर 55 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए जा रहे हैं।’

इसके लाभों पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि पर्यटन और व्यापार क्षेत्र आधुनिक और बेहतर कनेक्टिविटी का अधिकतम लाभ उठाते हैं। पर्यटन एक ऐसा उद्योग है, जिसमें गरीब, मध्यम वर्ग, गांव, शहर सब जुड़ते हैं, सभी धन-अर्जन करते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, “अमृत काल में पर्यटन के विकास से देश के विकास में काफी मदद मिलेगी।”

केंद्र सरकार की भूमिका पर के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि पर्यटन क्षेत्र में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रोत्साहन प्रदान किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुद्रा योजना 10 लाख रुपये तक के ऋण से जरूरतमंदों की मदद कर रही है और वह भी बिना गारंटी के। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘केरल में इस योजना के तहत लाखों छोटे उद्यमियों को 70 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की सहायता दी गई है।”

केरल की विशेषता के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि लोगों की देखभाल और चिंता, यहाँ के समाज के जीवन का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा, “कुछ दिन पहले मुझे हरियाणा में मां अमृतानंदमयी जी के अमृता अस्पताल का उद्घाटन करने का अवसर मिला। करुणा से भरी अमृतानंदमयी अम्मा का आशीर्वाद पाकर मैं भी धन्य हो गया। आज मैं एक बार फिर केरल की धरती से उनके प्रति आभार व्यक्त करता हूं।“

प्रधानमंत्री ने सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के मूल मंत्र पर जोर देते हुए अपने संबोधन का समापन किया और कहा कि सरकार इन सिद्धांतों के आधार पर देश का विकास कर रही है। प्रधानमंत्री ने अमृत काल में विकसित भारत की राह को मजबूत करने का संकल्प लिया।

इस अवसर पर केरल के मुख्यमंत्री श्री पिनाराई विजयन; केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान; केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री श्री वी मुरलीधरन; केरल राज्य के मंत्री श्री पी राजीव और अधिवक्ता एंथनी राजू, संसद सदस्य, श्री हिबी ईडन और कोच्चि निगम के महापौर अधिवक्ता एम अनिलकुमार उपस्थित थे।

परियोजनाओं का विवरण

प्रधानमंत्री ने कोच्चि मेट्रो रेल परियोजना के पहले चरण के विस्तार – पेट्टा से एसएन जंक्शन तक – का उद्घाटन किया। परियोजना की कुल लागत 700 करोड़ रुपये से अधिक है। कोच्चि मेट्रो रेल परियोजना, सतत विकास पर आधारित देश की सबसे कुशल मेट्रो परियोजनाओं में से एक होगी और इसकी लगभग 55 प्रतिशत ऊर्जा जरूरतों को सौर ऊर्जा से पूरा किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने कोच्चि मेट्रो रेल परियोजना के दूसरे चरण – जेएलएन स्टेडियम से इन्फोपार्क तक – की आधारशिला रखी, जिसकी लंबाई 11.2 किमी है और इसमें 11 स्टेशन शामिल हैं। इस परियोजना की कुल अनुमानित लागत लगभग 1,950 करोड़ रुपये है। कोच्चि मेट्रो रेल परियोजना के प्रस्तावित चरण II कॉरिडोर का उद्देश्य कोच्चि शहर की बढ़ती परिवहन जरूरतों को पूरा करना है और इसकी योजना इस प्रकार तैयार की गई है कि यह शहर के जिला मुख्यालय, विशेष आर्थिक क्षेत्र और आईटी हब को मौजूदा मेट्रो रेल नेटवर्क से जोड़ती है। पूरा होने पर, संयुक्त रूप से चरण I और चरण II मेट्रो नेटवर्क; शहर के प्रमुख आवासीय और वाणिज्यिक केंद्रों को रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंड जैसे प्रमुख निकास हब से जोड़ेगा तथा इस प्रकार विभिन्न साधनों के एकीकरण और अंतिम सिरे तक परिवहन संपर्क की सुविधा की अवधारणा को मजबूत करेगा।

प्रधानमंत्री ने लगभग 750 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित कुरुप्पंथरा-कोट्टायम-चिंगवनम रेल खंड के दोहरीकरण को भी राष्ट्र को समर्पित किया। इसके साथ, तिरुवनंतपुरम से मंगलुरु तक का पूरा खंड पूरी तरह से दो लाइनों का हो गया है, जिससे तेज और निर्बाध कनेक्टिविटी की सुविधा मिलेगी। गौरतलब है कि सबरीमाला भगवान अयप्पा तीर्थ के लिए जाने वाले लाखों श्रद्धालु दोहरे लाइन खंड में कोट्टायम या चेंगन्नूर रेलवे स्टेशन पर आसानी से उतर सकते हैं और सड़क मार्ग से पंबा के लिए आगे जा सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कोल्लम-पुणालूर के बीच के रेल खंड, जिसका विद्युतीकरण कार्य पूरा किया गया है, का भी लोकार्पण किया।

प्रधानमंत्री ने केरल में तीन रेलवे स्टेशनों – एर्नाकुलम जंक्शन, एर्नाकुलम टाउन और कोल्लम के पुनर्विकास की आधारशिला भी रखी। इन स्टेशन पुनर्विकास परियोजनाओं की कुल अनुमानित लागत लगभग 1050 करोड़ रुपये है। ये रेलवे स्टेशन अत्याधुनिक और विश्व स्तरीय सुविधाओं, जैसे समर्पित आगमन/प्रस्थान कॉरिडोर, स्काईवॉक, सौर पैनल, सीवेज उपचार संयंत्र, ऊर्जा कुशल प्रकाश व्यवस्था, वर्षा जल संचयन और इंटरमॉडल परिवहन सुविधा आदि से परिपूर्ण होंगी।

 

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11 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में 5 अगस्त 2022 को शुरू होने के बाद से 13,000 लोगों ने कॉमन पंजीकरण सुविधा “मेरा राशन मेरा अधिकार” के तहत पंजीकरण कराया है

सुधांशु पांडे, सचिव (डीएफपीडी) की अध्यक्षता में आज 12 और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों यानी चंडीगढ़, डी एंड डी डी एंड एन, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, झारखंड, तेलंगाना, पुडुचेरी, सिक्किम और उत्तर प्रदेश के साथ सामान्य पंजीकरण सुविधा के कवरेज का विस्तार करने के लिए एक बैठक बुलाई गई । बैठक में इन राज्यों में सामान्य पंजीकरण सुविधा के आगे रोलआउट के लिए तैयारियों की भी समीक्षा की गई । सभी भाग लेने वाले राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने इस सुविधा के बोर्ड में आने की इच्छा दिखाई है ताकि इससे उन्हें एनएफएसए के तहत शामिल किए जाने के लिए संभावित लाभार्थियों का ताजा डेटा प्राप्त करने में मदद मिल सके । राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों से अनुरोध किया गया है कि वे एनएफएसए के तहत संबंधित कवरेज सीमा के अधीन राशन कार्ड जारी करने से पहले अपने स्तर पर सत्यापन की नियत प्रक्रिया का विधिवत पालन करते हुए इस सुविधा का पूरा उपयोग करें।

आजादी का अमृत महोत्सव (एकेएएम) के अवसर पर और एनएफएसए के तहत लाभ के सही लक्ष्यीकरण में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की सुविधा के लिए, सचिव (डीएफपीडी) ने दिनांक 5 अगस्त 2022 को 11 राज्य/संघ राज्य क्षेत्र अर्थात असम, गोवा, लक्षद्वीप, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, त्रिपुरा और उत्तराखंड के लिए एक वेब-आधारित सामान्य पंजीकरण सुविधा (मेरा राशन मेरा अधिकार) का शुभारंभ किया। यह सुविधा एनआईसी द्वारा विकसित की गई है और यह https://nfsa.gov.in पर उपलब्ध है।

इस सामान्य पंजीकरण सुविधा के प्रति प्रतिक्रिया काफी उत्साहजनक रही है, जैसा कि 11 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में इस सुविधा के शुरू होने के बाद से केवल 25 दिनों में लगभग 13,000 व्यक्तियों के पंजीकरण से देखा जा सकता है।

खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने एक कारगर सुविधा के रूप में काम करने के लिए इस पहल की शुरुआत की ताकि राज्य / केंद्र शासित प्रदेश एनएफएसए के तहत योग्य और निराश्रित व्यक्तियों को उनकी संबंधित सीमा तक कवरेज प्राप्त करने के लिए उचित प्रक्रिया शुरू करने के लिए डेटा के संग्रह में तेजी ला सकें।

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केंद्र ने हिमाचल प्रदेश, गुजरात और आंध्र प्रदेश में कुल तीन बल्क ड्रग पार्कों के निर्माण की ‘सैद्धांतिक’ मंजूरी दी

औषध विभाग ने “बल्क ड्रग पार्कों को बढ़ावा देने” की योजना के तहत तीन राज्यों- हिमाचल प्रदेश, गुजरात और आंध्र प्रदेश के प्रस्तावों को ‘सैद्धांतिक’ मंजूरी दी है। यह देश में बल्क ड्रग विनिर्माण को सहायता देने के लिए शुरू की गई एक प्रमुख पहल है। इस योजना को साल 2020 में 3,000 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ अधिसूचित किया गया था। यह बल्क ड्रग पार्कों की स्थापना के लिए तीन राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करेगा। इसका उद्देश्य केंद्र सरकार द्वारा समर्थित विश्व स्तरीय सामान्य बुनियादी सुविधाओं का निर्माण करके बल्क ड्रग के विनिर्माण की लागत को कम करना है और इसके माध्यम से घरेलू थोक दवा उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता में बढ़ोतरी करना है।

भारतीय औषध उद्योग आकार के आधार पर विश्व में तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है। भारत ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में 1,75,040 करोड़ रुपये के दवाओं का निर्यात किया, जिसमें बल्क ड्रग्स/ड्रग इंटरमीडिएट शामिल हैं। इसके अलावा भारत विश्व में सक्रिय औषधीय घटकों (एपीआई) या थोक दवाओं के प्रमुख उत्पादकों में से एक है। भारत ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में 33,320 करोड़ रुपये मूल्य की बल्क ड्रग्स/ड्रग इंटरमीडिएट्स का निर्यात किया।

हालांकि, भारत में कई देशों से दवाओं के विनिर्माण के लिए विभिन्न बल्क ड्रग्स/एपीआई का भी आयात किया जाता है। देश में बल्क ड्रग/एपीआई का अधिकांश आयात आर्थिक कारणों से किया जा रहा है।

सरकार, आयात पर देश की निर्भरता को कम करने और स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। औषध विभाग, देश को एपीआई और ड्रग इंटरमीडिएट्स में आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू कर रहा है। इसके तहत प्रमुख पहलों में से एक बल्क ड्रग पार्क की योजना भी है।

इस योजना के तहत विकसित किए जाने वाले बल्क ड्रग पार्क एक ही स्थान पर सामान्य बुनियादी सुविधाएं प्रदान करेंगे, जिससे देश में बल्क ड्रग विनिर्माण के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम का निर्माण होगा और विनिर्माण लागत में भी काफी कमी आएगी। इस योजना से आयात निर्भरता को कम करने के लिए थोक दवाओं के घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने और मानक परीक्षण व बुनियादी सुविधाओं तक आसान पहुंच प्रदान करके वैश्विक बाजार में एक पैंठ बनाने की उम्मीद है। यह योजना उद्योग को सामान्य अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली के अभिनव तरीकों के जरिए कम लागत पर पर्यावरण के मानकों को पूरा करने और संसाधनों के अनुकूलन व पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं के कारण उत्पन्न होने वाले लाभों को प्राप्त करने में भी सहायता करेगी।

इस योजना के तहत 13 राज्यों से प्रस्ताव प्राप्त हुए थे। इसके लिए विभाग को मात्रात्मक और साथ ही गुणात्मक पद्धति के आधार पर प्रस्तावों के मूल्यांकन में नीति आयोग के सीईओ के अधीन एक सलाहकार समिति की सहायता प्रदान की गई थी।

गुजरात और आंध्र प्रदेश में प्रस्तावित बल्क ड्रग पार्क के लिए वित्तीय सहायता सामान्य बुनियादी सुविधाओं की परियोजना लागत का 70 फीसदी होगा। वहीं, पहाड़ी राज्य होने के चलते हिमाचल प्रदेश के लिए वित्तीय सहायता कुल परियोजना लागत का 90 फीसदी होगा। एक बल्क ड्रग पार्क के लिए योजना के तहत अधिकतम सहायता 1,000 करोड़ रुपये तक सीमित होगी।

इन राज्यों की ओर से प्रस्तुत प्रस्तावों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में ऊना जिले के तहसील हरोली में 1402.44 एकड़ भूमि पर, गुजरात के भरूच जिले के जम्बूसर तहसील में 2015.02 एकड़ जमीन पर और आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के थोंडागी मंडल के केपी पुरम व कोढ़ाहा के 2000.45 एकड़ भूमि पर बल्क ड्रग्स पार्कों का निर्माण किया जाएगा। इन तीनों राज्यों को योजना के तहत अगले 90 दिनों में अपनी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट प्रस्तुत करने, उसका मूल्यांकन करने और अंतिम अनुमोदन के लिए प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया गया है।

यह योजना सहकारी संघवाद की भावना को दिखाती हैं, जहां केंद्र सरकार और राज्य सरकारें क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन के लिए बल्क ड्रग पार्क विकसित करने के लिए भागीदार होंगी। बल्क ड्रग्स के घरेलू विनिर्माण को सुनिश्चित करने में विभाग के अन्य पहलों में निम्नलिखित योजनाएं शामिल हैं :

  • केएसएम/ड्रग इंटरमीडिएट्स (डीआई) और एपीआई के घरेलू विनिर्माण के लिए उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना : इस योजना के तहत कुल 51 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिनमें से 14 परियोजनाएं पहले ही चालू हो चुकी हैं और दवाओं का विनिर्माण शुरू हो गया है।
  • औषध के लिए पीएलआई को तीन श्रेणियों के तहत चिह्नित किए गए उत्पादों के विनिर्माण के लिए 55 चयनित आवेदकों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है और इस योजना के तहत पात्र दवाओं में एपीआई शामिल हैं।

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एक ख्वाब से मुलाकात

ज की रात भारी थी शिफ़ा पर।शिफ़ा कभी करवट इधर ले रही थी कभी उधर।नींद का कोई नामों निशान नही था।आज बरसों के बाद मानवी की पार्टी मे उसने कबीर को देखा जो अपनी पत्नी के साथ था।जैसे ही शिफ़ा पार्टी मे पहुँची तो वो पार्टी से जा रहा था सिर्फ़ आँखे मिली और दोनो की धड़कनें जैसे रूक सी गई।बरसों बाद यू आमना सामना हुआ तो भरी आँखों से इक दूजे को देखते रह गए और बात भी नही हुई।आज शिफ़ा इस उदासी का कारण समझ नहीं पा रही थी।सोच रही थी ,आज कंयू बेचैन है वो।क्यों हलचल सी है उसके मन में।मगर कुछ बातों का कोई जवाब नहीं होता।शिफ़ा ने उठ कर खिड़की बंद कर दी।आज बाहर बिजली खूब गरज कर चमक रही थी और तेज बारिश की बौछारें खिड़कियों पर ज़ोर ज़ोर से दस्तक दे रही थी,ठीक उसके दिल की तरह ,जहां पुरानी यादें ज़ोरों से दस्तक देने को आतुर हो रही थी।बहुत कोशिश कर रही थी पुरानी यादो की भीड़ मे न जाये ,मगर हर कोशिश आज जैसे नाकाम हो रही थी।उसे याद आया कि वो कैसे कबीर को और कबीर उसे ,छत से देखा करते थे।कैसे वो दोनों इक दूजे को चाहते थे।कबीर उस के घर के पास ही रहता था।घर मे आना जाना भी था मगर दोनों ही कभी कुछ कह नही पायें।मगर अकसर वो कबीर को कालेज से आते वक़्त अपनी बस मे देखा करती, मगर कभी हिम्मत नही हुई कि दोनों बात करे।अक्सर कोई मंचला लड़का अगर शिफ़ा को तंग करने पीछे पीछे आ रहा होता और फिर कैसे कबीर बस से उतर कर शिफ़ा के पास पास चलना शुरू कर देता कि ताकि वो सही सलामत घर पहुँच जाये,और किस तरह उसे सुरक्षित होने का अहसास करवा दिया करता। इक ऐसा ही रिश्ता था जो बहुत गहरा तो था मगर ख़ामोश सा।जैसे तैसे सोचते सोचते शिफ़ा की आँख लग गई।सुबह रात न सोने की वजह से सिर भारी सा था।खिड़की के पास बैठी शिफ़ा, चाय पीते पीते सामने पहाड़ों को निहार रही थी।रात बारिश की वजह से पेड़ों से भरे पहाड़ और भी सुन्दर दिख रहे थे।इक सौंधी सौंधी सी महक पूरे वातावरण को महका रही थी,मगर सोच फिर कबीर से जा जुड़ी।सोचने लगी !
कैसे कालेज ख़त्म होते ही जल्दी ही उसकी शादी शुभम से हो गई और वो शुभम के साथ इन शिमला की पहाड़ियों में आ कर बस गई ।शुभम उसका पति उसे बहुत प्यार करता था।ख़ुश थी अपनी ज़िंदगी में ,शिफा ने शुभम को उठाया और चाय दे कर कहा! जल्दी उठ जायें,आज आप की मीटिंग भी है।शुभम जल्दी ही तैयार हो कर आफ़िस चला गया।शिफ़ा को पता ही नहीं चला कि कब से उसका मोबाइल फ़ोन बज रहा था।जब देखा तो कबीर का फ़ोन था,जैसे इन्तज़ार ही कर रही थी जब कि वो अच्छे से जानती भी थी कि कबीर के पास उसका फ़ोन नम्बर नही है।शिफ़ा ने धड़कते दिल से फ़ोन उठाया उधर कबीर ही था।कबीर की आवाज़ आज बरसों बाद सुन रही थी।
हैलो !हाय !से आगे बात बढ़ ही नही रही थी।तब शिफ़ा ने पूछा !तुम्हें मेरा नम्बर कहाँ से मिला।कबीर ने बताया कल तुम्हें देखा ,तो रहा नहीं गया और मैंने तुम्हारा नम्बर तुम्हारी सहेली मानवी से ले लिया।कबीर बोलता जा रहा था, सवाल पर सवाल करता जा रहा था और फिर शिफ़ा से पूछा ?तुम्हारे शहर में हूँ ,क्या आज दोपहर को मेरे साथ काफ़ी पी सकती हो।शिफ़ा को खुद भी ये अहसास नहीं हुआ कि कैसे,उसने कितनी सहजता से कबीर को मिलने के लिए हाँ कह दी।शिफ़ा फ़्री भी थी तो सोचा चली जाती
हूँ।झट से तैयार हुई और कैफ़े में पहुँच गई।शिफ़ा को आते देख कबीर की धड़कन बहुत तेज हो रही थी।बरसों बाद रूबरू हो रहे थे दोनों।शिफ़ा को देख कर उसे वही बचपन वाली शिफ़ा दिखाई दी।सुन्दर शान्त और साडी में लिपटी हुई।शिफ़ा की सादगी पर तो हमेशा से मरता था कबीर।आज भी जैसे उसके सादेपन ने कबीर को दिवाना बना दिया।शिफ़ा को बस देखता रह गया ,तो शिफ़ा भी थोड़ा झेंप सी गई।कबीर कहने लगा तुम बिलकुल नहीं बदली ,ठीक वैसी ही हो ,जैसे कालेज के दिनों में थी।शिफ़ा ने बड़ी हिम्मत करके कबीर की आँखों में देखा।कबीर की बड़ी बड़ी आँखें ,ये वही आँखे थी जो शिफ़ा को अक्सर बेचैन कर दिया करती थी कभी।कितनी दफ़ा शिफ़ा ने कबीर की आँखों को काग़ज़ पर पेंसिल से बना डाला था।देख रही थी, कुछ भी तो नहीं बदला।आज भी कबीर की आँखों में वही कशिश महसूस कर रही है।आज भी कबीर को देख कर उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा है।कुछ पल दोनों बेसुध से ,ख़ामोशी से इक दूजे को देखते रहे।समझ नहीं आ रहा था।कहाँ से बात शुरू करें क्योंकि कहने को बहुत कुछ था मगर, न तो पहले से हालात थे ,न ही पहले सा वक़्त।
फिर कबीर ने ही ख़ामोशी को तोड़ते हुए शिफ़ा से पूछा ?शिफ़ा !क्या पियोगी चाय या काफ़ी? शिफ़ा ने कहा ! काफ़ी ही ठीक रहेगी।आज ठण्ड भी बहुत है और शिफ़ा खुद में सिमटती हुई कबीर के पास बैठ गई।कबीर बोला ! शिफ़ा मैं आज इतना ख़ुश हूँ ,शायद पहले कभी नहीं हुआ मगर इक तुम्हारी शिकायत तुमसे ही करनी है ,वो ये ,तुमने शादी करके मुझे कितना पराया कर दिया।न ही कोई वजह बताई बस मुझे कुछ कहे बग़ैर ही शादी कर ली तुमने।तुम्हारा कभी मन नहीं हुआ मिलने को ?कभी याद नहीं आई मेरी ?शिफ़ा हम दोनो ही इक दूजे को चाहते थे।चाहते थे न ?ये बात तुम्हें भी और मुझे भी पता है तो फिर ये क्या हुआ? कंयू तुम न कह सकी ? कंयू मैं न कह सका ? क्यूं हम आज साथ नही ?कबीर दिवानों ने की तरहां कहे जा रहा था जैसे बरसों की सब बातों का जवाब माँग रहा था शिफ़ा से।शिफ़ा ख़ामोश नीची निगाहें किये सब सुन रही थी मगर कबीर की आँखों में झांकने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।डरती थी ,कि कहीं कबीर की आँखे उसके मन को कमजोर न कर दे।कहीं वो ख़ुद भी सारी मर्यादाएँ तोड़ कर ,कुछ ऐसा कह दे जो उसे अब कहने का अधिकार नहीं है शायद।कबीर बोलता जा रहा था तुम्हें याद है जब मैं तुम्हारे घर होली के दिन आया करता था।तुम्हारे चेहरे पर गुलाल लगाने के वक़्त कैसे मेरे दिल की धड़कन तेज हो ज़ाया करती थी ,तुम इस बात का अंदाज़ा भी नहीं लगा सकती।कबीर को शिफ़ा की ख़ामोशी जैसे खल सी रही थी।कबीर की बोलते बोलते आँखे नम हो गईं और उसका गला भर आया।इक तूफ़ान तो शिफ़ा के अन्दर भी था मगर शिफ़ा ने बहुत संजीदगी से कहा !कबीर बहुत कुछ ऐसा था जो मेरी ख़ामोशी के कारण थे।मैं अपने माँ बाप को कोई दुख नहीं देना चाहती थी।जैसा वो चाहते थे मैंने वही किया।कबीर बोला और मेरे बारे में कंयू नही सोचा ? शिफ़ा थोड़ा गंभीरता से बोली।कबीर मैं पापा का हाथ बटाना चाहती थी उनकी ज़िम्मेदारियाँ को बाँटना चाहती थी।कबीर बोला !मुझे कह कर देखती तो सही।मुझ पर यक़ीन नहीं था क्या ?मुझ से कहती ,हम दोनों मिल कर सारी ज़िम्मेवारी बाँट लेते।फिर गंभीर हो कर कबीर ने शिफ़ा के हाथ पर हाथ रख दिया।कबीर के इस स्पर्श से शिफ़ा के पूरे शरीर में इक कंपन सा हो गया।सीमाओं के बीच, लाज मे सिमटी शिफ़ा का सारा शरीर ,इतनी ठंडी में भी भीग सा गया क्योंकि आज तक उसे कबीर के स्पर्श का कोई अहसास नहीं था।सिहर सी गई थी शिफ़ा, और कबीर भी उसकी मनोदशा को उसके माथे पर आई पसीने की बूँदों से पढ़ पा रहा था।कबीर ने पूछा ! क्या ख़ुश हो उनके फ़ैसले पर।शिफ़ा ने कहा !जब फ़ैसला ही मान लिया तो मेरे ख़ुश या न ख़ुश होने का सवाल ही पैदा न हुआ।पिता के घर ,पिता के घर की इज़्ज़त का ख़्याल रहा।अब पति के घर ,पति की इज़्ज़त का ख़्याल रखना है बस।कबीर ने पूछा और तुम्हारी अपनी ख़ुशी का क्या ?
शिफ़ा कहने लगी अपने बारे में कभी सोचा ही नहीं। ज़िम्मेदारियाँ उठाते उठाते पता ही नहीं चला, कैसे वक़्त गुज़रता गया।हाँ ये सच है कि मैंने अक्सर तुम्हें याद किया है।जब भी कभी पहले प्यार का ज़िक्र हुआ तो तुम याद आये मुझे।कुछ शादियाँ समझौता ही होती है कबीर।दो लोगों के लेने देने का सम्बन्ध मात्र ही होती है।इससे ज़्यादा कुछ नहीं।कबीर ने अचानक से इक सवाल शिफ़ा के सामने रख दिया कि क्या वो अब भी उसे वैसे ही चाहती है?शिफ़ा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई और बोली बेशक !समाज में रहने के लिए उसके जिस्म को तो आगे बढ़ना पड़ा ,मगर उसकी रूह आगे कभी नहीं बढ पाई,वहीं रह गई तुम्हारे आसपास और हाँ कबीर ,किसी को चाहने के लिये सारी उम्र उस इन्सान के साथ रहना ज़रूरी तो नहीं।तुम्हारी जगह वहीं है जहां थी।शिफ़ा बहुत चाहती थी कि दिल की हर बात उससे कह दे ,मगर न कभी पहले कह सकी, न अब।फिर इकदम से उठ खड़ी हुई और
बोली !अच्छा अब मैं चलती हूँ ।चलने को कह तो रही थी मगर खुद के अल्फ़ाज़ जैसे साथ नहीं दे रहे थे।अभी और वक़्त कबीर के साथ बिताना चाह रही थी।मन ही मन सोच रही थी कि कबीर उसे रोक ले।मगर होंठ ख़ामोश थे।जाने से पहले दोनों ने इक दूजे को देखा।कबीर ने धीरे से कहा ! शिफ़ा कल मैं जा रहा हूँ और तुम्हें बहुत याद करूँगा।भूल तो मैं ,तुम्हें कभी पाया ही नही।अगर तुम कल न दिखती ,न हम मिलते तो अच्छा ही होता शायद ,और फिर इक लम्बी गहरी साँस ली कबीर ने।जो सीधा शिफ़ा की रूह के आरपार हो गई थी जैसे।शिफ़ा ने बड़ी संजीदगी से कबीर से कहा !अगर तुम्हारी और मेरी चाहत में पाकीज़गी है तो यकीनन हम अगले जन्म में ज़रूर मिलेंगे।मैं सब्र से तुम्हारा इन्तज़ार करूँगी तब तक।अच्छा अब मैं जाऊँ कबीर?ऐसा कह कर शायद शिफ़ा चाह रही थी कि कबीर उसे जाने की इजाज़त खुद दे दे तो शायद हल्के मन से वो वहाँ से जा सके। कबीर चाहते हुए भी उसे न रोक सका और सोच रहा कि मैं शिफ़ा को कभी रोक कंयू नहीं पाया।न पहले ,न आज ,और सोच रहा था किस हक़ से रोकूँ शिफ़ा को।इक ठण्डी आह लिए ,ख़ामोश सूनी निगाहों से अपने प्यार को बस जाते हुए देखता रहा। दोस्तों लोग प्यार करते हैं बिछड़ भी जाते है और कभी दोबारा ज़िन्दगी अगर उन्हें मिला भी देती है तो शिफ़ा और कबीर की तरह संयम में नहीं रह पाते।”संयम “जो बहुत ज़रूरी भी है “किसी को प्यार करना और फिर उसे पा लेना तो “आम सी बात है”अगर कुछ ख़ास है तो वो ये ,खुवाईशे को समेट लेना और रिश्ते को मर्यादाओं में रह कर स्वीकार करना।अतीत की भी अपनी जगह और अपना वक़्त होता है कुछ रिश्ते सिर्फ़ ख़्वाब ही रहते है हक़ीक़त नहीं मगर ये भी सच है कि कुछ ख़्वाब ,हक़ीक़त से भी ज़्यादा दिल के क़रीब होते है इसमें कोई शक है भी नहीं।

स्मिता 

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हिंदी का महत्व

एक भाषा के रूप में हिंदी भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्य व संस्कृति एवं संस्कारों की अच्छी संवाहक संप्रेषण और परिचायक भी है। बहुत सरल और सुगम भाषा होने के साथ ही विश्व की संभवत सबसे वैज्ञानिक भाषा है जिसे दुनिया भर में बोलने और चाहने वाले लोग बड़ी संख्या में मौजूद है। देश में तकनीकी और आर्थिक समृद्धि के साथ साथ अंग्रेजी पूरे देश पर हावी होती जा रही है। हिंदी देश की राजभाषा होने के बावजूद हर जगह अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है। हिंदी जानते हुए भी लोग हिंदी में बोलने, पढ़ने या काम करने में हिचकने लगे हैं। हिंदी के विकास के लिए खासतौर से राजभाषा विभाग का गठन किया गया। इस विभाग द्वारा प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस समारोह का आयोजन किया जाता है। 14 सितंबर 1949 का दिन स्वतंत्र भारत के इतिहास बहुत महत्वपूर्ण है। इसी दिन संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। इस निर्णय को महत्व देने के लिए और हिंदी के उपयोग को प्रचलित करने के लिए 1953 के उपरांत हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए कहा था और काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।
जब राजभाषा हिंदी रूप में चुनी गई और लागू की गई तो गैर हिंदी भाषी राज्य के लोगों के विरोध के स्वर उठने लगे जिसके कारण अंग्रेजी भाषा को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा। यही वजह है कि हिंदी में अंग्रेजी भाषा का प्रभाव पड़ने लगा। अंग्रेजी भाषा के अलावा किसी दूसरे भाषा की पढ़ाई को समय की बर्बादी समझा जाने लगा। हिंदी भाषी घरों में बच्चे हिंदी बोलने से कतराने लगे या अशुद्ध बोलने लगे। तब कुछ विवेकी अभिभावकों के समुदाय को एहसास होने लगा कि घर परिवार में नई पीढ़ियों के जुबान से मातृभाषा खत्म होने लगी है इसीलिए हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए राजभाषा सप्ताह मनाया जाता है। हिंदी भाषा केबल भाषा नहीं है वरन संस्कृति, परंपरा और मूल्य भी होती है और यह संस्कृति और परंपराओं का मूल्य तब तक सुरक्षित है जब तक भाषा सुरक्षित है। संविधान में भारत को राज्यों का संघ माना गया इसीलिए राजभाषा की जरूरत महसूस हुई।
आज तो यह देखा जा रहा है कि हिंदी पढ़ाने वाले शिक्षक अपने बच्चे को ही हिंदी नहीं पढ़ाते। हिंदी के प्रति हमारी प्रतिबद्धता अब दिखाई नहीं देती । आज जरूरी है कि आप हिंदी खुद बोले और अपने बच्चों को अधिक से अधिक अपनी भाषा सिखाए। आज स्कूल और कॉलेज में हिंदी को बस प्राथमिक तौर पर महत्व दिया जाता है। अधिकतर स्कूल भी इंग्लिश मीडियम वाले है। शिक्षाओं के विकल्प भाषा के महत्व को कम कर रहे हैं। आज हिंदी को महत्व न देकर अन्य विदेशी भाषाओं को सीखने के लिए ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। आजकल माता पिता भी अपने स्टेटस सिंबल बनाए रखने के लिए हिंदी को नजरअंदाज कर रहे है। उन्हें इंग्लिश बोलते बच्चे ज्यादा गौरवान्वित लगते हैं।
किसी भी भाषा का विकास उसके साहित्य पर निर्भर करता है आज के तकनीकी युग में विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी हिंदी में काम को बढ़ावा देना चाहिए ताकि देश की प्रगति में ग्रामीण जनसंख्या की भागीदारी सुनिश्चित हो सके। इसके लिए अनिवार्य है और अन्य भारतीय भाषाओं में तकनीकी ज्ञान से संबंधित साहित्य का अनुवाद किया जाए।
यूं तो पूरे देश की भाषा हिंदी है। हम साधारण बोलचाल की भाषा में हिंदी भाषा का ही इस्तेमाल करते हैं। जनमानस को जोड़ने वाली भाषा का प्रभाव समाज में आजकल कम होते जा रहा है। भाषा वही जीवित रहती है जिसका प्रयोग जनता करती है। भारत में लोगों के बीच संवाद का सबसे बेहतर माध्यम हिंदी है इसके लिए इसको एक दूसरे में प्रचारित करना चाहिए। आज दुनिया भर में बोली जाने वाली सभी भाषाओं में हिंदी तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। वर्ल्ड लैंग्वेज डेटाबेस के 22वें संस्करण इथोनोलॉज मैं बताया गया है कि दुनिया भर की 20 सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में 6 भारतीय भाषाएं हैं जिनमें हिंदी तीसरे स्थान पर है। अपनी मातृभाषा को सम्मान दें पर इसका महत्त्व बनाए रखने में अपना योगदान दें।* प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

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