एक भाषा के रूप में हिंदी भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्य व संस्कृति एवं संस्कारों की अच्छी संवाहक संप्रेषण और परिचायक भी है। बहुत सरल और सुगम भाषा होने के साथ ही विश्व की संभवत सबसे वैज्ञानिक भाषा है जिसे दुनिया भर में बोलने और चाहने वाले लोग बड़ी संख्या में मौजूद है। देश में तकनीकी और आर्थिक समृद्धि के साथ साथ अंग्रेजी पूरे देश पर हावी होती जा रही है। हिंदी देश की राजभाषा होने के बावजूद हर जगह अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है। हिंदी जानते हुए भी लोग हिंदी में बोलने, पढ़ने या काम करने में हिचकने लगे हैं। हिंदी के विकास के लिए खासतौर से राजभाषा विभाग का गठन किया गया। इस विभाग द्वारा प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस समारोह का आयोजन किया जाता है। 14 सितंबर 1949 का दिन स्वतंत्र भारत के इतिहास बहुत महत्वपूर्ण है। इसी दिन संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। इस निर्णय को महत्व देने के लिए और हिंदी के उपयोग को प्रचलित करने के लिए 1953 के उपरांत हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए कहा था और काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।
जब राजभाषा हिंदी रूप में चुनी गई और लागू की गई तो गैर हिंदी भाषी राज्य के लोगों के विरोध के स्वर उठने लगे जिसके कारण अंग्रेजी भाषा को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा। यही वजह है कि हिंदी में अंग्रेजी भाषा का प्रभाव पड़ने लगा। अंग्रेजी भाषा के अलावा किसी दूसरे भाषा की पढ़ाई को समय की बर्बादी समझा जाने लगा। हिंदी भाषी घरों में बच्चे हिंदी बोलने से कतराने लगे या अशुद्ध बोलने लगे। तब कुछ विवेकी अभिभावकों के समुदाय को एहसास होने लगा कि घर परिवार में नई पीढ़ियों के जुबान से मातृभाषा खत्म होने लगी है इसीलिए हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए राजभाषा सप्ताह मनाया जाता है। हिंदी भाषा केबल भाषा नहीं है वरन संस्कृति, परंपरा और मूल्य भी होती है और यह संस्कृति और परंपराओं का मूल्य तब तक सुरक्षित है जब तक भाषा सुरक्षित है। संविधान में भारत को राज्यों का संघ माना गया इसीलिए राजभाषा की जरूरत महसूस हुई।
आज तो यह देखा जा रहा है कि हिंदी पढ़ाने वाले शिक्षक अपने बच्चे को ही हिंदी नहीं पढ़ाते। हिंदी के प्रति हमारी प्रतिबद्धता अब दिखाई नहीं देती । आज जरूरी है कि आप हिंदी खुद बोले और अपने बच्चों को अधिक से अधिक अपनी भाषा सिखाए। आज स्कूल और कॉलेज में हिंदी को बस प्राथमिक तौर पर महत्व दिया जाता है। अधिकतर स्कूल भी इंग्लिश मीडियम वाले है। शिक्षाओं के विकल्प भाषा के महत्व को कम कर रहे हैं। आज हिंदी को महत्व न देकर अन्य विदेशी भाषाओं को सीखने के लिए ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। आजकल माता पिता भी अपने स्टेटस सिंबल बनाए रखने के लिए हिंदी को नजरअंदाज कर रहे है। उन्हें इंग्लिश बोलते बच्चे ज्यादा गौरवान्वित लगते हैं।
किसी भी भाषा का विकास उसके साहित्य पर निर्भर करता है आज के तकनीकी युग में विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी हिंदी में काम को बढ़ावा देना चाहिए ताकि देश की प्रगति में ग्रामीण जनसंख्या की भागीदारी सुनिश्चित हो सके। इसके लिए अनिवार्य है और अन्य भारतीय भाषाओं में तकनीकी ज्ञान से संबंधित साहित्य का अनुवाद किया जाए।
यूं तो पूरे देश की भाषा हिंदी है। हम साधारण बोलचाल की भाषा में हिंदी भाषा का ही इस्तेमाल करते हैं। जनमानस को जोड़ने वाली भाषा का प्रभाव समाज में आजकल कम होते जा रहा है। भाषा वही जीवित रहती है जिसका प्रयोग जनता करती है। भारत में लोगों के बीच संवाद का सबसे बेहतर माध्यम हिंदी है इसके लिए इसको एक दूसरे में प्रचारित करना चाहिए। आज दुनिया भर में बोली जाने वाली सभी भाषाओं में हिंदी तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। वर्ल्ड लैंग्वेज डेटाबेस के 22वें संस्करण इथोनोलॉज मैं बताया गया है कि दुनिया भर की 20 सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में 6 भारतीय भाषाएं हैं जिनमें हिंदी तीसरे स्थान पर है। अपनी मातृभाषा को सम्मान दें पर इसका महत्त्व बनाए रखने में अपना योगदान दें।* प्रियंका वर्मा महेश्वरी