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भगवान बिरसा मुंडा जयंती – जनजातीय गौरव दिवस पर आयोजित हुई विभिन्न प्रतिस्पर्धाएं

भारतीय स्वरूप संवाददाता कानपुर, दयानंद गर्ल्स पी जी कॉलेज, कानपुर में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई की कार्यक्रम अधिकारी डॉ संगीता सिरोही के निर्देशन में भगवान बिरसा मुंडा जयंती – 2024 “जनजातीय गौरव दिवस” के उपलक्ष में छात्राओं एवं युवाओं में भगवान बिरसा मुंडा के जीवन एवं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तथा जनजातीय विकास में उनके योगदान के संबंध में जागरूकता लाने एवं व्यापक प्रचार प्रसार करने के उद्देश्य से विभिन्न प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की गई जिनमें भाषण प्रतियोगिता, कविता पाठ गीत, निबंध लेखन आदि प्रमुख रहे। इस कार्यक्रम में कुल 50 एन एस एस वॉलिंटियर्स ने उमंग एवं उत्साह के साथ हिस्सा लिया। कार्यक्रम को सफल बनाने में महाविद्यालय नॉलेज इंस्टीट्यूशन की प्रभारी डॉ ज्योत्सना पांडे, एनसीसी इंचार्ज प्रोफेसर शुभ्रा राजपूत तथा रेंजर्स सह-प्रभारी श्रीमती श्वेता गोंड का विशेष योगदान रहा।

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मिशन शक्ति के द्वारा विशाखा एक्ट 2013 गाइडलाइंस पर व्याख्यान आयोजित

भारतीय स्वरूप संवाददाता कानपुर दयानंद गर्ल्स पी जी कॉलेज कानपुर, मिशन शक्ति के द्वारा विशाखा एक्ट 2013 गाइडलाइंस पर व्याख्यान का आयोजन हुआ मिशन शक्ति फेज-5 के अंतर्गत दयानंद गर्ल्स पी जी कॉलेज, कानपुर में मिशन शक्ति प्रभारी डॉ संगीता सिरोही के निर्देशन में विशाखा एक्ट 2013 पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। यह व्याख्यान राजनीति विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अंशु पांडे के द्वारा दिया गया। उन्होंने अपने व्याख्यान में विशाखा एक्ट 2013 गाइडलाइंस, कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ जारी की गई दिशानिर्देश पर विस्तार पूर्वक जानकारियां दी। जो छात्रों के लिए आने वाले जीवन में अत्यधिक लाभदायक साबित होंगे। इस कार्यक्रम में कुल 40 छात्राओं ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम को सफल बनाने में एनसीसी इंचार्ज प्रोफेसर शुभ्रा राजपूत तथा रोमन रेंजर्स इंचार्ज श्वेता गोंड का विशेष योगदान रहा।

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केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति ने “राज्यों में अग्निशमन सेवाओं के विस्तार और आधुनिकीकरण” योजना के तहत छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के लिए 725.62 करोड़ रुपये की तीन परियोजनाओं को मंजूरी दी

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति ने “राज्यों में अग्निशमन सेवाओं के विस्तार और आधुनिकीकरण” योजना के तहत छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के लिए 725.62 करोड़ रुपये की तीन परियोजनाओं को मंजूरी दी है। समिति ने छत्तीसगढ़ के लिए 147.76 करोड़ रुपये, ओडिशा के लिए 201.10 करोड़ रुपये और पश्चिम बंगाल के लिए 376.76 करोड़ रुपये मंजूर किये हैं। उच्च स्तरीय समिति में केन्द्रीय वित्त मंत्री, कृषि मंत्री और नीति आयोग के उपाध्यक्ष सदस्य के रूप में शामिल होते हैं।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के Disaster Resilient भारत के विजन को पूरा करने के लिए केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह के मार्गदर्शन में गृह मंत्रालय ने देश में आपदाओं का प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए कई पहल की है।  भारत में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction) प्रणाली को मजबूत करके आपदाओं के दौरान जान-माल को होने वाले किसी भी बड़े नुकसान को रोकने के लिए कई कदम उठाए गए हैं।

केंद्र सरकार ने “राज्यों में अग्निशमन सेवाओं के विस्तार और आधुनिकीकरण” योजना के लिए राष्ट्रीय आपदा मोचन निधि (NDRF)  के तहत 5000 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं, 15 राज्यों के 2542.12 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के प्रस्तावों को पहले ही मंजूरी दे दी गई है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व और केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह के मार्गदर्शन में इस वर्ष के दौरान राज्यों को 21,026 करोड़ रुपये से अधिक की राशि पहले ही जारी की जा चुकी है। इसमें राज्य आपदा मोचन निधि (SDRF) से 26 राज्यों को 14,878.40 करोड़ रुपये, राष्ट्रीय आपदा मोचन निधि (NDRF) से 15 राज्यों को 4,637.66 करोड़ रुपये, राज्य आपदा शमन निधि (SDMF) से 11 राज्यों को 1,385.45 करोड़ रुपये और राष्ट्रीय आपदा शमन निधि (NDMF) से तीन राज्यों को 124.93 करोड़ रुपये शामिल हैं।

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संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ ने 5-6 नवंबर 2024 को नई दिल्ली में पहले एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन आयोजित किया

संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ ने 5-6 नवंबर 2024 को नई दिल्ली में पहले एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। इस शिखर सम्मेलन की उल्लेखनीय उपलब्धियों में दो समानांतर मंचों का सफल आयोजन था जिनमें कई तरह के व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए। इन मंचों के जरिए विचारों का समृद्ध आदान-प्रदान हुआ। जहां पहला मंच बुद्ध की मूलभूत शिक्षाओं और आधुनिक समय में उनके प्रयोगों पर केंद्रित था, दूसरे में उन तरीकों की खोज की गई जिनसे बौद्ध सिद्धांत सतत विकास, सामाजिक सद्भाव और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में योगदान दे सकते हैं।

कार्यक्रम में कई प्रस्तुतियाँ हुईं जिनके जरिये अद्वितीय विकल्प, दृष्टिकोण और कुछ अनोखे विचार प्रस्तुत किए गए ताकि समाज की भलाई के लिए इनका व्यावहारिक उपयोग किया जा सके। अब तक के सेमिनार और सम्मेलन मुख्य रूप से धार्मिक पहलुओं और उससे जुड़े प्रवचनों से संबंधित थे। इस शिखर सम्मेलन ने धम्म के प्राचीन दर्शन और विज्ञान से निकले कई नवीन विचारों को सामने रखा।

संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) द्वारा आयोजित यह एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन ‘एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका’ विषय पर आधारित था। इसमें 32 देशों के 160 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागियों ने भाग लिया। महासंघ के सदस्य, विभिन्न मठवासी परंपराओं के संरक्षक, भिक्षु, भिक्षुणियाँ, राजनयिक समुदाय के सदस्य, बौद्ध अध्ययन के प्रोफेसर, विशेषज्ञ और विद्वान समेत लगभग 700 प्रतिभागियों ने इस विषय पर चर्चा की।

अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. सीऑन रेमन ने न्यूरोसाइंस से मानसिक अनुभूति की अवधि और उनके नैदानिक ​​अनुप्रयोगों में ध्यान के बौद्ध दृष्टिकोण के बीच तुलना की। किसी विचार (ध्यान-क्षण) के जागने और समाप्ति की प्रकृति पर विचार करने पर पता चला कि ये समय-सीमाएँ वही हैं जो ध्यानियों ने बिना घड़ी के सदियों पहले अनुमान लगाया था। पारमिता और ध्यान जैसे बौद्ध प्रथाओं के साथ-साथ न्यूरोफीडबैक और विज़ुअलाइज़ेशन तकनीकों के आधार पर यह मानसिक विकारों के उपचार में उपयोगी हो सकता है।

मंगोलिया में विपश्यना अनुसंधान केंद्र के निदेशक श्री शिरेन्देव डोरलिग द्वारा मंगोलियाई जेलों में बौद्ध अभ्यास का एक अनूठा योगदान पेश किया गया। कुछ शुरुआती रुकावटों के बाद विपश्यना ध्यान पाठ्यक्रम घोर अपराधियों वाली जेलों में भी बहुत अच्छे परिणाम दे रहे हैं।

अपने प्रस्तुतीकरण में श्री डोरलिग ने कहा कि उन्होंने जेल अधिकारियों से पाठ्यक्रम शुरू करने से पहले कुछ निश्चित कार्य स्थितियों पर जोर दिया। इसमें जेल अधिकारियों को विपश्यना अभ्यास का प्रशिक्षण देना, अभ्यास और परंपरा के अनुरूप एक सख्त अनुशासित दिनचर्या और दिन के अंत में कैदियों के लिए एक दैनिक ‘समूह बैठक’ शामिल थी ताकि सफलता दर का वास्तविक आकलन किया जा सके।

अनेक प्रस्तुतियों के माध्य से मध्य एशिया, पूर्वी तुर्किस्तान और रूसी स्वायत्त गणराज्यों कलमीकिया, बुरातिया और तुवा के विशाल क्षेत्रों पर बौद्ध धर्म के प्रभाव पर प्रकाश डाला गया जैसे कि वास्तुकला, पूजा पद्धतियों और जीवन के दार्शनिक तरीके पर इसका प्रभाव, जिसके निशान पुरातात्विक दृष्टि से तथा प्राचीन ग्रंथों में आज भी मौजूद हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह इवनिंग कॉलेज के इतिहास विभाग के डॉ. जगबीर सिंह ने चीनी वास्तुकला के विकास पर बौद्ध प्रभावों के बारे में बात की। उन्होंने हान राजवंश से लेकर आज तक इसके विकास पर बात की।

पहली शताब्दी में हान सम्राट मिंग ने भारत से चीन गए पहले दो भारतीय भिक्षुओं-कश्यप मतंग और धर्मरत्न के सम्मान में व्हाइट हॉर्स मठ का निर्माण कराया था।

यह चीनी बौद्ध वास्तुकला का जन्म था। वास्तुकला के इस रूप को बाद में शुद्ध चीनी वास्तुकला में शामिल किया गया, जिसके परिणामस्वरूप एक अनूठी वास्तुकला विरासत सामने आई जो बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक और सौंदर्य मूल्यों को दर्शाती है।

जापान के क्योटो स्थित ओटानी विश्वविद्यालय में बौद्ध अध्ययन विभाग की प्रमुख प्रोफेसर डॉ. शोभा रानी दाश ने जापानी बौद्ध धर्म में पूजे जाने वाले हिंदू देवताओं के बारे में बताया। उन्होंने हिंदू देवताओं के समूह के बारे में बताया जिन्हें बौद्ध धर्म के साथ जापान में बौद्ध देवताओं के रूप में लाया गया था लेकिन धीरे-धीरे उनमें से कई को शिंतो धर्म के जापानी मूल पंथ के साथ भी आत्मसात कर लिया गया। उन्होंने देवी सरस्वती का विशेष उल्लेख किया जिन्हें जापान में बेंजाइटन के नाम से जाना जाता है और स्थानीय लोग उनकी पूजा करते हैं।

तुर्की के अंकारा विश्वविद्यालय में पूर्वी भाषाओं और साहित्य के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. यालसीन कायाली ने उइगर तुर्की सांस्कृतिक दुनिया में बौद्ध धर्म की मौजूदगी के बारे में कम ज्ञात तथ्य सामने लाए। यह अध्ययन संस्कृत में सुवर्णभास सूत्र के रूप में ज्ञात बौद्ध ग्रंथ पर केंद्रित था, जिसे धर्मक्षेम के चीनी अनुवाद से उइगर-तुर्की बौद्ध विरासत क्षेत्र में स्थानांतरित किया गया था और इसका नाम अल्तुनयारुक (स्वर्ण प्रकाश सूत्र) रखा गया था।

ऐसा माना जाता है कि चौथी शताब्दी में इसके चीनी अनुवाद तथा जापानी और अन्य यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद ने प्राचीन बौद्ध सिद्धांत को विश्व की सांस्कृतिक विरासत में शामिल करने में योगदान दिया।

इसी तरह, रूसी अकादमी के ओरिएंटल अध्ययन संस्थान के शोध फेलो डॉ. बाटर यू. किटिनोव ने बौद्ध धर्म कैसे पूर्वी तुर्किस्तान में फैल गया और लंबे समय तक बौद्ध धर्म को बनाए रखने में उइगरों की भूमिका क्या रही इस बारे में बताया। उन्होंने कहा कि पूर्वी तुर्किस्तान में कुछ छोटे जनसंख्या समूह अभी भी बौद्ध धर्म का पालन कर रहे हैं जिनकी संख्या में वृद्धि हो रही है।

श्रीलंका से एसआईबीए परिसर के पाली और बौद्ध अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. पोलगोले कुशलाधम्मा ने शारीरिक दुर्बलता और अन्य कष्टों, विशेष रूप से भावनाओं में नकारात्मक शक्तियों, जो मानसिक अशांति, दुःख, भय और हताशा आदि उत्पन्न करती हैं, पर काबू पाने के लिए माइंडफुलनेस अभ्यासों की उपयोगिता की पहचान करने के लिए बौद्ध ध्यान पर तंत्रिका विज्ञान संबंधी शोध की भूमिका की व्याख्या की।

उन्होंने विस्तार से बताया कि किस प्रकार बौद्ध धर्म मन की प्रकृति का अध्ययन करता है और मन के तर्कसंगत वर्णन की जांच करता है तथा अनुयायियों को मानसिक कष्टों को ठीक करने वाले स्वस्थ मानसिक व्यवहार विकसित करने के लिए मार्गदर्शन करता है।

भूटान में महाचुलालोंगकोर्न राजविद्यालय विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध अध्ययन महाविद्यालय (आईबीएससी) के व्याख्याता डॉ. उग्येन शेरिंग ने प्रसिद्ध अवधारणा सकल राष्ट्रीय खुशी (जीएनएच) के बारे में बात की और बताया कि कैसे बौद्ध दर्शन और सिद्धांत जीएनएच की अवधारणा को रेखांकित करते हैं, जो भूटान की नीतियों और सामाजिक मूल्यों को प्रभावित करते हैं। यह बौद्ध धर्म ही था जिसने भूटान को जीएनएच का उच्च स्तर प्राप्त करने में सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बताया कि कैसे अन्य लोग इस मॉडल का अनुकरण कर सकते हैं।

श्रीलंका के कोलंबो विश्वविद्यालय में वियतनामी पीएचडी विद्वान गुयेन न्गोक आन्ह ने वियतनाम में सामंतवाद, उपनिवेशवाद और आधुनिकीकरण के दौरान बौद्ध धर्म के सामने आईं चुनौतियों के बारे में बताया।

हालांकि बौद्ध धर्म का वियतनामी समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह देश कई संघर्षों से गुजरा है और इसलिए मुक्ति (मोक्ष), शांति और खुशी (निर्वाण) के दर्शन ने वियतनामी समाज को मजबूती से एक साथ रखा है। दूसरी शताब्दी ईस्वी में वियतनाम में शुरू किया गया बौद्ध धर्म वियतनामी समाज का मूल सार है।

कजाकिस्तान के श्री रुसलान काजकेनोव ने बताया कि भले ही कजाकिस्तान बौद्ध देश नहीं है लेकिन देश में बौद्ध धर्म और बौद्ध दर्शन के प्रति गहरी आस्था है। यह इसलिए भी है क्योंकि बौद्ध धर्म में टेंग्रियनवाद के साथ कई समानताएं हैं। इसके अलावा, बौद्ध धर्म ने इस क्षेत्र (मध्य एशिया) की कला, वास्तुकला और सांस्कृतिक परंपराओं को प्रभावित किया है, जिसमें बौद्ध कला और ऐतिहासिक स्मारकों के तत्व शामिल हैं। उन्होंने अगला एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन कजाकिस्तान में आयोजित करने का सुझाव दिया।

ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के विद्वानों ने भी इसी भावना के साथ बताया कि कैसे इन देशों के लोग अपनी बौद्ध विरासत के बारे में तेजी से जागरूक हो रहे हैं जिसे इस क्षेत्र में इसके प्रसार के शुरुआती वर्षों में स्थानीय लोगों द्वारा अच्छी तरह से स्वीकार किया गया था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इन दोनों देशों में अभी तक अज्ञात बौद्ध स्थलों की खुदाई की काफी गुंजाइश है। प्रतिनिधियों ने खुदाई पर भारतीय विशेषज्ञों और शिक्षाविदों को भी शामिल करने में उत्सुकता व्यक्त की जो बुद्ध की शिक्षाओं के सार और दुनिया के इस हिस्से में उनके प्रसार में मदद कर सकते हैं।

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भारत के उत्तरी पश्चिमी घाट में डिक्लिप्टेरा की एक नई अग्निरोधी, दोहरे खिलने वाली प्रजाति की वैज्ञानिकों ने खोज की

A close-up of a plantDescription automatically generatedचित्र 1: डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा 
भारत के पश्चिमी घाट में एक नई अग्निरोधी दोहरे खिलने वाली प्रजाति की खोज की गई है। यह एक ऐसी पुष्प संरचना है जो भारतीय प्रजातियों में दुर्लभ है। यह प्रजाति पश्चिमी घाट में पाई जाती है, जहां कई ऐसी प्रजातियां पाई जाती हैं जिनकी खोज अभी तक नहीं की गई है।

भारत के चार वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक पश्चिमी घाट, लंबे समय से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्वायत्त संस्थान, पुणे के अघारकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई) द्वारा अन्वेषण का केंद्र रहा है। पिछले कुछ दशकों से, एआरआई के वैज्ञानिक इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता का गहन अध्ययन कर रहे हैं।

डॉ. मंदार दातार के नेतृत्व में एक टीम द्वारा हाल ही में की गई खोज, जिसमें तलेगांव-दभाड़े के वनस्पतिशास्त्री आदित्य धरप और पीएचडी छात्र भूषण शिगवान शामिल हैं, ने डिक्लिप्टेरा जीनस में एक नई प्रजाति को जोड़ा है, जिसका नाम उन्होंने डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा रखा है। यह प्रजाति तलेगांव-दभाड़े से एकत्र की गई थी, जो अपने घास के मैदानों और चारा बाजारों के लिए जाना जाता है।

डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा एक विशिष्ट प्रजाति है, जो अपनी अग्निरोधी, पायरोफाइटिक प्रकृति और अपने असामान्य दोहरे खिलने के लिए उल्लेखनीय है। यह प्रजाति वर्गीकरण की दृष्टि से अद्वितीय है, जिसमें पुष्पक्रम इकाइयां (सिम्यूल्स) होती हैं जो स्पाइकेट पुष्पक्रम में विकसित होती हैं। यह स्पाइकेट पुष्पक्रम संरचना वाली एकमात्र ज्ञात भारतीय प्रजाति है, जिसका सबसे करीबी सहयोगी अफ्रीका में पाया जाता है।

इस प्रजाति का नाम इसके विविध रूपात्मक लक्षणों को दर्शाने के लिए डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा रखा गया था। पहले नमूने 2020 के मानसून के दौरान एकत्र किए गए थे। इसकी विशेषताओं की स्थिरता की पुष्टि करने के लिए अगले कुछ वर्षों तक आदित्य धरप द्वारा निगरानी की गई थी। लंदन के केव बोटेनिक गार्डन के अग्रणी वैश्विक विशेषज्ञ डॉ. आई. डार्बीशायर ने इस प्रजाति की नवीनता की पुष्टि की। इस प्रजाति के बारे में विस्तृत जानकारी देने वाला एक शोध पत्र हाल ही में प्रतिष्ठित पत्रिका केव बुलेटिन में प्रकाशित हुआ था।

डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा उत्तरी पश्चिमी घाट के खुले घास के मैदानों में ढलानों पर पनपता है, यह क्षेत्र गर्मियों में सूखे और अक्सर मानव-प्रेरित आग जैसी चरम जलवायु स्थितियों के संपर्क में आता है। इन कठोर परिस्थितियों के बावजूद यह प्रजाति अस्तित्व में रहने और साल में दो बार खिलने के लिए खुद को अनुकूलित किया है। पहला पुष्प चरण मानसून के बाद (नवंबर की शुरुआत) से मार्च या अप्रैल तक होता है, जबकि मई और जून में दूसरा पुष्प चरण आग से शुरू होता है। इस दूसरे चरण के दौरान, वुडी रूटस्टॉक्स छोटे पुष्पों की टहनियां पैदा करते हैं, जो अधिक प्रचुर मात्रा में लेकिन कम अवधि की होती है।

डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा की खोज संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। आग के प्रति इस प्रजाति का अनूठा अनुकूलन और पश्चिमी घाट में इसके सीमित उत्पत्ति स्थान घास के मैदानों के पारिस्थितिकी तंत्र के सावधानीपूर्वक प्रबंधन की आवश्यकता को उजागर करते हैं। बार-बार होने वाली मानव-प्रेरित आग, जो इस प्रजाति के जीवन चक्र का हिस्सा है, आवास क्षरण को रोकने के लिए संतुलित किया जाना चाहिए। घास के मैदानों को अत्यधिक उपयोग से बचाना और यह सुनिश्चित करना कि आग प्रबंधन प्रथाएं जैव विविधता का समर्थन करती हैं, इस नई खोजी गई प्रजाति के संरक्षण में महत्वपूर्ण कदम है।

यह खोज पश्चिमी घाटों के संकटपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों को संरक्षित करने के महत्व को प्रदर्शित करती है। इसमें अद्वितीय अनुकूलन वाली अभी कई और प्रजातियां खोजी जानी है

 

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आईआईटी रोपड़ ने घुटना रीहबिलटैशन के लिए किफायती और ऑफ-ग्रिड समाधान के साथ शल्य चिकित्सा में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला पेटेंटेड मैकेनिकल उपकरण विकसित किया

सर्जरी के बाद घुटने के रीहबिलटैशन के लिए एक महत्वपूर्ण सफलता के रूप में, आईआईटी रोपड़ के शोधकर्ताओं ने निरंतर निष्क्रिय गति (सीपीएम) थेरेपी को और अधिक सुलभ और किफायती बनाने के लिए एक अभिनव समाधान ढूंढ लिया है। आईआईटी रोपड़ की टीम ने घुटने के रीहबिलटैशन के लिए एक पूरी तरह से मैकेनिकल पैसिव मोशन मशीन विकसित की है और इसका पेटेंट कराया गया है, पेटेंट नम्बर 553407 है।

महंगी और बिजली से चलने वाली पारंपरिक मोटर चालित सीपीएम मशीनों से अलग, नव विकसित उपकरण पूरी तरह से यांत्रिक है। यह एक पिस्टन और पुली सिस्टम का उपयोग करता है, जो उपयोगकर्ता द्वारा हैंडल खींचने पर हवा को संग्रहीत करता है, जिससे घुटने के रीहबिलटैशन में सहायता के लिए सुचारू और नियंत्रित गति संभव होती है। यह सरल उपकरण हल्का और पोर्टेबल दोनों है और डिज़ाइन प्रभावी होने के कारण इसे बिजली, बैटरी या मोटर की कोई आवश्यकता नहीं है।

मैकेनिकल सीपीएम मशीन, कई रोगियों की पहुंच से बाहर महंगी इलेक्ट्रिक मशीनों के आशाजनक विकल्प प्रदान करती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां बिजली की आपूर्ति निरंतर नहीं रहती। बिजली पर निर्भरता को कम करके, यह ऑफ-ग्रिड स्थानों में भी सहज रूप से अनिवारक गति चिकित्सा को संभव बनाती है।

इसके अतिरिक्त, इसकी पोर्टेबिलिटी के कारण मरीज इसे घर में आराम से उपयोग कर सकते हैं, जिससे उन्हें अस्पताल में लंबे समय तक रहने और रीहबिलटैशन के लिए जाने की आवश्यकता कम हो जाती है।

घुटने की सर्जरी से ठीक होने वाले रोगियों के लिए निरंतर अनिवारक गति एक महत्वपूर्ण चिकित्सा है, जो जोड़ों की गतिशीलता में सुधार, कठोरता को कम करने और रिकवरी में तेजी लाने में मदद करती है। इस यांत्रिक मशीन की शुरूआत एक लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प है, जो घुटने के रीहबिलटैशन में किफायती स्वास्थ्य सेवा के लिए नई संभावनाओं का द्वार खोलती है।

इस अभिनव उपकरण का विकसित किया जाना सभी लोगों को स्वास्थ्य सेवा पहुँचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ संसाधन सीमित हैं। टीम की उपलब्धि से भारत के साथ ही और वैश्विक स्तर पर भी घुटने के रीहबिलटैशन के मामलों में स्थायी प्रभाव देखने को मिलेगा।

श्री सूरज भान मुंडोतिया और डॉ. समीर सी. रॉय की टीम के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. अभिषेक तिवारी ने कहा, “ये उपकरण भारत में घुटने के रीहबिलटैशन में क्रांति लाने की क्षमता वाला है, अभी इस क्षेत्र में उन्नत चिकित्सा तकनीक तक हमारी पहुँच सीमित है।” उन्होंने कहा, “इसे कम लागत वाला, टिकाऊ बनाया गया है जो न केवल रिकवरी में सहायता करता है बल्कि मोटर चालित उपकरणों से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने में भी मदद करता है।”

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एस एन सेन बालिका विद्यालय पीजी कॉलेज ने निकाली सड़क सुरक्षा जागरूकता रैली 

भारतीय स्वरूप संवाददाता कानपुर अक्टूबर से चल रहे सड़क सुरक्षा कार्यक्रमों के अंतर्गत एस एन सेन बीवीपीजी कॉलेज ने समान जनमानस में सड़क सुरक्षा संबंधी स्लोगन के साथ रैली निकाली। इस रैली में छात्राओं ने महाविद्यालय प्रांगण से लेकर नरोना चौराहा फूलबाग, गणेश पार्क , पनचक्की चौराहे से होते हुए महाविद्यालय प्रांगण में आकर समापन किया महाविद्यालय की प्राचार्य ने सभी छात्राओं की प्रशंसा की और रैली को हरी झंडी दिखाकर प्रस्थान के लिए अपनी सहमति दी रैली में रेंजर प्रभारी श्रीमती रिचा एवं रोड सेफ्टी क्लब की विद्यार्थी एवं रोड सेफ्टी क्लब की इंचार्ज प्रोफेसर डॉ प्रीति पांडे ने पूरे कार्यक्रम को रुकता प्रदान करते हुए संचालित किया प्रोफेसर पांडे ने प्रेस और मीडिया को इस रैली से जनमानस में सड़क सुरक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी एवं नियमों का पालन करने की अनिवार्यता के लिए छात्रों को प्रेरित किया ताकि वह समझ में प्रत्येक व्यक्ति को इसके प्रति जागृत कर पाऐ।

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क्राइस्ट चर्च कॉलेज में राइट साइड स्टोरी LLP एवं पीएनजी कम्पनी द्वारा वर्कशॉप आयोजित

भारतीय स्वरूप संवाददाता कानपुर, क्राइस्ट चर्च कॉलेज में राइट साइड स्टोरी LLP एवं पीएनजी कम्पनी द्वारा वर्कशॉप का का आयोजन किया गया। कॉलेज प्राचार्य डॉ जोसेफ डेनियल के दिशानिर्देशन में कार्यक्रम का संचालन कैरियर काउंसलिंग सेल की संयोजिका डॉ मीतकमल द्वारा किया। इस कार्यक्रम में छात्राओं को सेनेटरी नैपकिंस आदि का और छात्रों को जिलेट गार्ड सेविंग किट का वितरण किया गया। दीपाक्षी शेरावत द्वारा छात्रों को बताया कि be your own boss और छात्र छात्राओ को साक्षात्कार टिप्स और यह भी बताया कि हमें अपना श्रेष्ठ देना चाहिए और हमें हेल्पफु कम्युनिकेशन की टिप्स भी दी इस अवसर पर कॉलेज के डॉ अर्चना, डॉ हिमांशु दीक्षित, डॉ प्रेरणा, डॉ मीत कमल, डॉ मनीष कपूर,डॉ आशीष उपस्थित रहे।

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सकारात्मक मनोविज्ञान के द्वारा मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन” विषय पर अतिथि व्याख्यान तथा भाषण प्रतियोगिता आयोजित

भारतीय स्वरूप संवाददाता कानपुर, एस.एन. सेन बी.वी.पी.जी. कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग द्वारा एक अतिथि व्याख्यान तथा भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसका विषय *”सकारात्मक मनोविज्ञान के द्वारा मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन”* था। कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती पूजन एवं दीप प्रज्वलन से किया गया। इसके बाद अतिथि वक्ता डॉ आभा सक्सेना, कॉलेज की प्राचार्या व निर्णायक मंडल की सदस्य शिक्षिकाओं का स्वागत व सम्मान किया गया। स्वागत प्रक्रिया के बाद कॉलेज की प्राचार्य प्रो०डॉ सुमन ने अपने आशीर्वचनों से कार्यक्रम के सफल आयोजन की शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय के तनावपूर्ण प्रभाव को देखते हुए मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन के लिए प्रयास किया जाना अत्यंत आवश्यक है। इसके बाद मनोविज्ञान विभागाध्यक्षा डॉ मोनिका सहाय ने कार्यक्रम के विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि सकारात्मक मनोविज्ञान के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य में किस प्रकार वृद्धि की जा सकती है और व्यक्ति अपना जीवन और अधिक बेहतर व सकारात्मक बना सकते हैं। इसी क्रम को आगे बढ़ते हुए आमंत्रित मुख्य वक्ता ने सकारात्मक मनोविज्ञान तथा मानसिक स्वास्थ्य की महत्ता को स्पष्ट किया तथा दोनों के संबंध पर प्रकाश डाला। इसके बाद प्रतियोगिता प्रारंभ की गई जिसमें प्रतिभागी छात्राओं ने अपने भाषण प्रस्तुत किये। प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में डाॅ पूजा गुप्ता तथा डॉ अनामिका राजपूत सम्मिलित रहे। प्रतियोगिता के निर्णय इस प्रकार रहे –
प्रथम पुरस्कार – महिमा यादव
द्वितीय पुरस्कार – अंजलि
तृतीय पुरस्कार – स्नेहा सिंह
सांत्वना पुरस्कार – सुनीता शर्मा
प्रतियोगियों को पुरस्कार वितरण के बाद कार्यक्रम समापन प्रक्रिया व धन्यवाद ज्ञापन विभाग की प्रवक्ता असिस्टेंट प्रोफेसर सुश्री प्रीति यादव ने किया। कार्यक्रम संचालन में विभागीय प्रवक्ता असिस्टेंट प्रोफेसर सुश्री मयूरिका गुप्ता ने योगदान दिया। कार्यक्रम में कॉलेज की अन्य शिक्षिकाएं व छात्राएं उपस्थित रही जिससे कार्यक्रम गरिमामय तरीके से संपूर्ण हो सका।

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डाबर रेड पेस्ट, इंडियन डेंटल एसोसिएशन (आईडीए) से प्रतिष्ठित सील ऑफ एक्सेप्टेन्स हासिल करने वाला भारत का पहला स्वदेशी आयुर्वेदिक ब्राण्ड बना

भारतीय स्वरूप संवाददाता कानपुर : एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए डाबर रेड पेस्ट इंडियन डेंटल एसोसिएशन (आईडीए) से प्रतिष्ठित सील ऑफ एक्सेप्टेन्स हासिल करने वाला भारत का पहला स्वदेशी आयुर्वेदिक ब्राण्ड बन गया है। वर्ल्ड डेंटल शो के दौरान आईडीए और डाबर रैड पेस्ट के बीच इस साझेदारी की घोषणा की गई। शो में देश भर से 500 से अधिक डेंटिस्ट (दंत चिकित्सक) और डेंटिस्ट्री (दंत चिकित्सा) पढ़ने वाले छात्र शामिल हुए थे। डेंटिस्ट इस घोषणा का स्वागत कर रहे हैं क्योंकि वे अब आयुर्वेद के प्रमाणित फॉर्मूले को अब अपनी ओरल केयर प्रेक्टिस में शामिल कर सकते हैं। पिछले 5000 सालों से आयुर्वेदिक चिकित्सा को भरोसेमंद माना जाता रहा है। वैज्ञानिक जांच के आधार पर डाबर रेड पेस्ट को इंडियन डेंटल एसोसिएशन से यह एक्सेप्टेन्स मिली है जो इस बात को तय करती है कि प्रोडक्ट सुरक्षा और प्रभाविता के मानकों पर खरा उतरता है। जांच के परिणामों में साफ हो गया है कि यह प्रोडक्ट दांतों की समस्याओं को कम करने और ओरल हेल्थ को बनाए रखने में कारगर है, अगर इसे निर्देशानुसार इस्तेमाल किया जाए। ऐसे में यह सील ऑफ एक्सेप्टेन्स, विज्ञान और आयुर्वेद के रिश्ते को नया आयाम देगी। इसके अलावा यह डाबर के लिए बेहद गर्व की बात है जो इस बैज को हासिल करने वाला पहला स्वदेशी ब्राण्ड बन गया है।’ डॉ अशोक ढोबले, मानद महासचिव, आईडीए ने कहा। यह प्रमाणित हो चुका है कि भारत का नंबर 1 आयुर्वेदिक पेस्ट- डाबर रेड पेस्ट दांतों की 7 समस्याओं से निपटने में कारगर है जैसे दांत में दर्द, मसूड़ों से खून आना, सांस में बदबू, कैविटी, दांतों का पीलापन, जर्म्स और प्लॉक जमना। 13 शक्तिशाली आयुर्वेदिक अवयवों से बना यह अनूठा फॉर्मूला मुँह की सम्पूर्ण देखभाल करता है वर्ल्ड डेंटल शो के दौरान दंत चिकित्सकों ने डाबर रेड पेस्ट के पीछे मौजूद विज्ञान का समझने में उत्सुकता जताई। इस अवसर पर प्रोडक्ट के इन्ग्रीडिएन्ट्स, उनक वैज्ञानिक नामों और फायदों को डिस्प्ले किया गया, ताकि चिकित्सक इनके फायदों के बारे में जान सकें। अभिषेक जुगरान, ईवीपी मार्केटिंग, डाबर इंडिया लिमिटेड ने इस अवसर पर खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा, ‘‘आईडीए की सील डाबर रेड पेस्ट के पेटेंटेड फॉर्मूले की दक्षता और सुरक्षा का प्रमाण है। डाबर रेड पेस्ट इस सील को हासिल करने वाला भारत का पहला स्वदेशी ब्राण्ड बन गया है। इस अवसर पर हम आईडीए की सराहना करना चाहेंगे, जो आम लोगों के मुख के स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए प्रयासरत है और ऐसे टूथपेस्ट को स्वीकार्यता प्रदान दे रहा है, जो ओरल हेल्थ को सुनिश्चित करता है। उपभोक्ता पूरे भरोसे के साथ विज्ञान और आयुर्वेद के इस संयोजन डाबर रेड पेस्ट को चुन सकते हैं और किसी भी तरह की दांतों की समस्याओं से सुरक्षित रह सकते हैं।’ वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चुका है कि डाबर रेड पेस्ट दांतों की 7 समस्याओं से सुरक्षा प्रदान कर बेहतर ओरल हेल्थ को सुनिश्चित करता है

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