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प्रज्ञा परिवार द्वारा कुटुम्ब प्रबोधन गतिविधि एवं IMA के सहयोग से स्वैच्छिक रक्तदान शिविर आयोजित

भारतीय स्वरूप संवाददाता, प्रज्ञा परिवार द्वारा कुटुम्ब प्रबोधन गतिविधि, कानपुर पूर्व भाग एवं IMA के सहयोग से स्वैच्छिक रक्तदान शिविर का आयोजन
आज IMA, कानपुर के सहयोग से प्रज्ञा परिवार (संबद्ध अखिल विश्व गायत्री परिवार) श्याम नगर कानपुर द्वारा लगाए गए रक्तदान शिविर में कुल 56 यूनिट रक्तदान हुआ। सर्वप्रथम भारत माता के चित्र एवं परम पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा के चित्र पर माल्यार्पण एवम दीपक प्रज्वलन कर गायत्री परिवार के उप जोन समन्वयक आर सी गुप्ता, जिला समन्वयक आर पी लाल ने रक्तदान शिविर का शुभारंभ किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, कुटुंब प्रबोधन के सह प्रांत संयोजक, विनोद शंकर दीक्षित(विशिष्ट अतिथि) ने रक्तदान के फायदे बताकर लोगों का मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन किया।
प्रज्ञा परिवार ने सभी रक्तदानियों को “रक्तदानी कर्ण” की उपाधि वाला प्रमाण पत्र दिया। कर्ण ने कभी भी अपने दरवाजे से किसी को खाली हाथ नहीं जाने दिया। प्रज्ञा परिवार भी जरूरत पड़ने पर जरूरतमंद के लिए रक्तदान की व्यवस्था करता है।
IMA की ओर से सभी रक्तदानियों को उपहार स्वरूप मिल्टन की बोतल एवं प्रमाण पत्र दिया गया।राष्ट्र सेवा के अंतर्गत प्रज्ञा परिवार प्रत्येक 15 अगस्त एवं 26 जनवरी या पास के रविवार को रक्तदान शिविर का आयोजन करता रहता है। रक्तदान शिविर में सहयोग करने वालों में प्रमुख रूप से चेयरमैन अशोक कुमार पांडे, अध्यक्ष आर जे मिश्रा, अजय अग्रवाल, सुनील विश्वकर्मा, दिवाकर दीक्षित , शिवानंद गुप्ता, अच्छेलाल, सुरेश चंद्र जोशी, प्रमोद मिश्रा, लाल प्रताप सिंह, अनिल त्रिपाठी आदि थे।
लोहिया भवन के ट्रस्टी अमित कुमार जैन को रक्तदान शिविर हेतु निशुल्क स्थान देने पर धन्यवाद एवं आभार व्यक्त किया।

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सम्पादक, मुद्रक, स्वामी ~अतुल दीक्षित 

संपर्क सूत्र ~ 9696469699

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महानिदेशक प्रान्तीय रक्षक दल/विकास दल एवं युवा कल्याण उ0प्र0 ने जनपद कानपुर नगर में 28वें युवा उत्सव 2024 के आयोजन हेतु दिशा- निर्देश जारी किए

कानपुर नगर (सू0वि0)* मुख्य विकास अधिकारी दीक्षा जैन ने बताया कि महानिदेशक प्रान्तीय रक्षक दल/विकास दल एवं युवा कल्याण उ0प्र0 के द्वारा जनपद कानपुर नगर में 28वें युवा उत्सव 2024 के आयोजन हेतु दिशा- निर्देश दिये गये है।
राष्ट्रीय युवा उत्सव- 2024 हेतु युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय भारत सरकार द्वारा राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों को Innovation in Science and Technology की थीम आवंटित की गयी है। जिसमें निम्न प्रतियोगिताओं का आयोजन जनपद स्तर से लेकर राज्य स्तर तक किया जायेगा।
उन्होंने बताया कि थीमेटिक अवयव के अन्तर्गत प्रतिभागियों द्वारा Innovation in Science and Technology की थीम पर आधारित प्रोजेक्ट का प्रदर्शन किया जायेगा, जिसमें एकल एवं समूह दोनों अलग-अलग रूप में प्रतियोगिता आयोजित की जायेगी।
सांस्कृतिक अवयव के अन्तर्गत 04 प्रतियोगिताओं Group Folk Dance, Group Folk Song, Solo Folk Dance, Solo Folk Song का आयोजन जनपद से राज्य स्तर पर कराया जायेगा। इसके अतिरिक्त जीवन कौशल अवयव के अन्तर्गत 04 प्रतियोगिताओं Story Writing, Poetry, Declamation, Painting का आयोजन जनपद स्तर से लेकर राज्य स्तर तक किया जायेगा।
उन्होंने बताया कि युवा उत्सव 2024 के आयोजन के सम्बन्ध में भारत सरकार की गाईड लाइन के अनुसार प्रतियोगिता में प्रतिभागियों की आयु 12 जनवरी, 2025 को 15 वर्ष से 29 वर्ष होनी अनिवार्य है एवं जनपद स्तर पर विजेता प्रतिभागी मण्डल स्तर पर प्रतिभाग करेंगें। जनपद स्तर के युवा उत्सव का आयोजन माह सितम्बर, 2024 में कराया जाना प्रस्तावित है।
उन्होंने बताया कि जनपद में आयोजित होने वाले युवा उत्सव में आयोजित होने वाली विधाओं का व्यापक प्रचार-प्रसार अपने स्तर से कराकर अधिक से अधिक युवाओं की प्रतिभागिता आपसे अपेक्षित है। युवा उत्सव में प्रतिभागिता हेतु प्रतिभागियों के आवेदन दिनांक 10 सितम्बर, 2024 तक कार्यालय जिला युवा कल्याण एवं प्रा०वि०द० अधिकारी, विकास भवन, कानपुर नगर अथवा dywokanpurnagar@gmail.com पर प्रेषित कराना सुनिश्चित करें। जिससे कि इच्छुक प्रतिभागी जनपद स्तरीय युवा उत्सव कार्यक्रम में प्रतिभाग कर सकें।

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अत्यधिक छिद्रपूर्ण (हाइली पोरस) ज़ेरोजेल ड्रेसिंग रक्त का तेजी से थक्का (क्लोटिंग) बनाकर जीवन बचा सकती है

शोधकर्ताओं ने सिलिका नैनोकणों और कैल्शियम को शामिल करते हुए एक छिद्रपूर्ण समग्र ज़ेरोजेल ड्रेसिंग विकसित की है जो रक्त को तेजी से जमने में मदद कर सकती है और अनियंत्रित रक्तस्राव से राहत प्रदान कर सकती है। व्यावसायिक ड्रेसिंग की तुलना में इस मिश्रण ने रक्त के थक्के जमने (ब्लड क्लोटिंग) की दर में महत्वपूर्ण सुधार दिखाया है । अनियंत्रित रक्तस्राव दुर्घटनाओं या चोटों और सैन्य या सर्जिकल ऑपरेशन के दौरान होने वाली दर्दनाक मृत्यु  के प्रमुख कारणों में से एक है। आघात से होने वाली 40% से अधिक मौतें गंभीर रक्त हानि के कारण होती हैं। रूई  (गॉज), सामान्यतः प्रयोग की जाने  वाली रूई (गॉज)  अथवा ऐसी ही अन्य  प्राथमिक चिकित्सा सामग्री या चोट वाली जगह पर रक्त के प्रवाह में कमी, फाइब्रिन सक्रियण द्वारा प्लेटलेट के थक्के प्लग) का  गठन और रक्त के अन्य थक्के मार्गों के सक्रियण के माध्यम से काम करने वाली मानव शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा गंभीर रक्तस्राव को रोकने के लिए अपर्याप्त है।  इसलिए, रक्त  की कमी को घटाने  के लिए बेहतर हेमोस्टैटिक सामग्रियों की तत्काल आवश्यकता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट (एआरआई) पुणे ने एक अत्यधिक छिद्रपूर्ण (हाइली पोरस) स्पंजी ज़ेरोजेल हेमोस्टैटिक ड्रेसिंग विकसित की है जो सिलिका नैनोकणों (सिलिकॉन नैनोपार्टिकल्स –  एसआईएनपीएस) और कैल्शियम जैसे सेल (एगोनिस्ट) के अंदर एक प्राप्तकर्ता (रिसेप्टर) से बंधने वाले पदार्थों के साथ पूरक है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने मिश्रित सामग्री का अध्ययन किया और पाया कि इसने व्यावसायिक ड्रेसिंग क्लॉटिंग क्षमता की तुलना में रक्त के थक्के बनने के सूचकांक को 13 गुना बढ़ा दिया। अच्छी तरह से विशेषता वाले ज़ेरोजेल ने लगभग 30 माइक्रोन आकार के कई छिद्रों की उपस्थिति दिखाई जो ड्रेसिंग की उच्च अवशोषण क्षमता में योगदान करती है। इन पूरकों ने थक्के जमने की क्षमता में सुधार किया और परिणामस्वरूप रक्त का त्वरित अवशोषण (क्विक अब्सोर्बेंस) हुआ। प्लेटलेट्स रक्त का एक महत्वपूर्ण घटक हैं और रक्त के थक्के बनने की प्रक्रिया में योगदान करते हैं। प्लेटलेट आकार में परिवर्तन, कैल्शियम का स्राव और प्लेटलेट सतह पर रिसेप्टर्स की सक्रियता जैसे कई कारक रक्त के थक्के जमने की  जटिल प्रक्रिया  में महती भूमिका निभाते हैं। ज़ेरोजेल हेमोस्टैटिक ड्रेसिंग ने सक्रिय प्लेटलेट्स में अच्छी तरह से निर्मित  स्यूडोपोडिया के विकास के कारण प्लेटलेट एकत्रीकरण को बढ़ाया, जिसके परिणामस्वरूप एग्लूटिनेशन हुआ जो थक्के बनने की प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका निभाता है। इसके अलावा, इस मिश्रित पदार्थ   ने कैल्शियम उत्सर्जन  और इसके निष्कासन को बढ़ाया। इसके अलावा, मानव प्लेटलेट्स में प्रोटीज सक्रिय (एक्टिव) रिसेप्टर जीन (प्लेटलेट झिल्ली में मौजूद पीएआर 1 जीन – थ्रोम्बिन सिग्नलिंग की सुविधा देता है) के सक्रिय रूप में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।  प्लेटलेट कैल्शियम रिलीज और प्लेटलेट सतह पर पीएआर 1 का उन्नत होना (अपग्रेडेशन) प्लेटलेट के  आकार परिवर्तन और एकत्रीकरण के लिए महत्वपूर्ण है। जर्नल ऑफ एप्लाइड पॉलिमर साइंस में प्रकाशित एक अध्ययन से संकेत मिलता है कि पीएआर 1 जीन सक्रियण और कैल्शियम स्टोर रिलीज के माध्यम से प्लेटलेट सक्रियण के अंतरकोशिकीय आणविक तंत्र (इंट्रासेल्युलर मॉलिक्यूलर मैकेनिज्म) – प्लेटलेट्स के सक्रियण (एक्टिवेशन) में एक महत्वपूर्ण घटना, ज़ेरोगेल कंपोजिट की हेमोस्टैटिक दक्षता के लिए उत्तरदायी हैं। ऐसी ड्रेसिंग सर्जरी और आघात देखभाल के दौरान रक्त की हानि, विकलांगता और मृत्यु दर को कम करने के लिए एक संभावित हेमोस्टैटिक समाधान प्रदान कर सकती है।

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मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा0 आलोक रंजन ने कहा जिला दिव्यांग बोर्ड, कानपुर के समक्ष शारीरिक परीक्षण हेतु उपस्थित हों

कानपुर 13 अगस्त  (सू0वि0) मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा0 आलोक रंजन ने जन साधारण को सूचित किया है कि कानपुर नगर के ऐसे दिव्यांगजन लाभार्थी, जिन्होंने अपना पंजीकरण https://swavlambancard.gov.in/ पर तो करा लिया है, किन्तु जिला दिव्यांग बोर्ड, कानपुर नगर के समक्ष शारीरिक परीक्षण हेतु उपस्थित नहीं हुए हैं।
उन्होंने ऐसे समस्त सम्मानित पंजीकृत दिव्यांगजनों से यह अपेक्षा की है कि आप यथाशीघ्र किसी भी कार्यदिवस के सोमवार को जिला दिव्यांग बोर्ड, कार्यालय मुख्य चिकित्सा अधिकारी, कानपुर नगर एवं किसी भी बृहस्पतिवार को जिला दिव्यांग बोर्ड यू०एच०एम० चिकित्सालय कैम्पस कानपुर नगर में पूर्व में कराये जा चुके ऑनलाइन आवेदन के साथ 02 फोटो एवं आधार कार्ड की छायाप्रति लेकर शारीरिक परीक्षण हेतु उपस्थित हों, ताकि सम्बन्धित लाभार्थियों का यू०डी०आई०डी० निर्गत किया जा सके।

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भारतीय मानक ब्यूरो ने आयुष क्षेत्र में मानकीकरण के लिए विभाग का गठन किया

भारत के राष्ट्रीय मानक निकाय का भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) आयुष क्षेत्र में मानकीकरण को आगे बढ़ाने की दिशा में तत्‍पर है। ब्यूरो ने एक समर्पित मानकीकरण विभाग की स्थापना के साथ-साथ इस क्षेत्र में मानकीकरण गतिविधियों को गति दी है। नया विभाग आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, सोवा-रिग्पा और होम्योपैथी जैसी पारंपरिक भारतीय चिकित्सा प्रणालियों को शामिल करते हुए आयुष उत्पादों और कार्य प्रणालियों की सुरक्षा, प्रभावकारिता और गुणवत्ता को प्रोत्‍साहन देने पर केंदित है।

आयुष के लिए मानकीकरण गतिविधि की प्रक्रिया और संरचना की जानकारी देते हुए, बीआईएस के महानिदेशक श्री प्रमोद कुमार तिवारी ने कहा कि प्रसिद्ध विशेषज्ञों के नेतृत्व में, बीआईएस में आयुष विभाग ने सात अनुभागीय समितियों का गठन किया है, जिनमें से प्रत्येक एक विशिष्ट आयुष प्रणाली की देखरेख करती है। ये समितियाँ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों के अनुरूप व्यापक, साक्ष्य-आधारित मानकों को सुनिश्चित करने के लिए विशेषज्ञों, वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों, उद्योग प्रतिनिधियों एवं नियामक निकायों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ मिलकर कार्य करती है।

अद्यतन बीआईएस ने एकल जड़ी-बूटियों, आयुर्वेद और योग शब्दावली, पंचकर्म उपकरणों, योग सहायक उपकरणों और जड़ी-बूटियों में कीटनाशक अवशेषों के परीक्षण विधियों जैसे विविध विषयों को शामिल करते हुए 91 मानक प्रकाशित किए हैं। उल्लेखनीय रूप से, पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग की जाने वाली आषधियों के लिए 80 स्वदेशी भारतीय मानकों का प्रकाशन उनके सुरक्षित और प्रभावी उपयोग को बढ़ावा देता है, जिससे उपभोक्ताओं और उद्योग दोनों को लाभ होता है। इसके अतिरिक्त, पंचकर्म उपकरणों के लिए पहले राष्ट्रीय मानक रोगनिरोधी और चिकित्सीय प्रक्रियाओं में एकरूपता सुनिश्चित करते हैं, जिससे आयुष स्वास्थ्य सेवा प्रथाओं की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में पहल करते हुए, बीआईएस ने घरेलू निर्माताओं और किसानों का समर्थन करने के साथ कॉटन योगा मैट के लिए एक स्वदेशी भारतीय मानक तैयार किया है। विभाग ने भविष्य के मानकीकरण क्षेत्रों की भी पहचान की है, जिसमें शब्दावली, एकल औषधियां, योग पोशाक, सिद्धा निदान और होम्योपैथिक तैयारियाँ शामिल हैं।

बीआईएस की पहल की सराहना करते हुए आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा कि जैसे-जैसे अधिकतर लोगों की रूचि पारंपरिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के प्रति बढ़ रही है, आयुष उत्पादों और सेवाओं में निरंतर गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता की आवश्यकता अनिवार्य है। बीआईएस ने इस क्षेत्र में इस समर्पित विभाग की स्थापना करते हुए आईएस: 17873 ‘कॉटन योगा मैट’ जैसे महत्वपूर्ण मानकों को विकसित करके अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाया है। ये पारंपरिक भारतीय चिकित्सा को बढ़ावा देने और विकसित करने में महत्वपूर्ण उपलब्धि है। कठोर मानकों और नवाचार के माध्यम से, बीआईएस राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयुष प्रणालियों की स्वीकृति और विकास को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।

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योग गठिया के रोगियों को राहत पहुंचा सकता है

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि योगाभ्यास से गठिया (रूमेटाइड अर्थराइटिस-आरए) के रोगियों के स्वास्थ्य में काफी सुधार आ सकता है।

आरए एक पुरानी ऑटोइम्यून बीमारी है जो जोड़ों में सूजन का कारण बनती है। यह जोड़ों को नुकसान पहुंचाती है और इस रोग में दर्द होता है। इसके कारण फेफड़े, हृदय और मस्तिष्क जैसे अन्य अंग प्रणालियां भी प्रभावित हो सकती हैं। परंपरागत रूप से, योग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है।

डीएसटी द्वारा समर्थित, मोलेक्यूलर री-प्रोडक्शन एंड जेनेटिक्स प्रयोगशाला, एनाटॉमी विभाग और रुमेटोलॉजी विभाग एम्स, नई दिल्ली द्वारा एक सहयोगी अध्ययन ने गठिया के रोगियों में सेलुलर और मोलेक्यूलर स्तर पर योग के प्रभावों की खोज की है। इससे पता चला है कि कैसे योग पीड़ा से राहत देकर गठिया के मरीजों को लाभ पहुंचा सकता है।

पता चला है कि योग सेलुलर क्षति और ऑक्सीडेटिव तनाव (ओएस) को नियंत्रित करके सूजन को कम करता है। यह प्रो- और एंटी-इंफ्लेमेटरी साइटोकिन्स को संतुलित करता है, एंडोर्फिन के स्तर को बढ़ाता है, कोर्टिसोल और सीआरपी के स्तर को कम करता है तथा मेलाटोनिन के स्तर को बनाए रखता है। इसके जरिये सूजन और अतिसक्रिय प्रतिरक्षा प्रणाली चक्र का विघटन रुक जाता है।

मोलेक्यूलर स्तर पर, टेलोमेरेज़ एंजाइम और डीएनए में सुधार तथा कोशिका चक्र विनियमन में शामिल जीन की गतिविधि को बढ़ाकर, यह कोशिकाओं की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है। इसके अतिरिक्त, योग माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन को बेहतर बनाता है, जो ऊर्जा चयापचय को बढ़ाकर और ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करके टेलोमेर एट्रिशन व डीएनए क्षति से बचाता है।

डीएसटी द्वारा समर्थित, एम्स के एनाटॉमी विभाग के मोलेक्यूलर री-प्रोडक्शन एंड जेनेटिक्स प्रयोगशाला में डॉ. रीमा दादा और उनकी टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन में दर्द में कमी, जोड़ों की गतिशीलता में सुधार, चलने-फिरने की कठिनाई में कमी और योग करने वाले रोगियों के लिए जीवन की समग्र गुणवत्ता में वृद्धि दर्ज की गई। ये समस्त लाभ योग की प्रतिरक्षात्मक सहनशीलता और मोलेक्यूलर रेमिशन स्थापित करने की क्षमता में निहित हैं।

साइंटिफिक रिपोर्ट्स, 2023 में प्रकाशित अध्ययन https://www.nature.com/articles/s41598-023-42231-w से पता चलता है कि योग तनाव को कम करने में मदद कर सकता है, जो गठिया  के लक्षणों के लिए एक ज्ञात कारण है। कोर्टिसोल जैसे तनाव हार्मोन को कम करके, योग अप्रत्यक्ष रूप से सूजन को कम कर सकता है, माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन में सुधार कर सकता है, जो ऊर्जा उत्पादन और सेलुलर स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और -एंडोर्फिन, मस्तिष्क-व्युत्पन्न न्यूरोट्रॉफ़िक कारक (बीडीएनएफ), डीहाइड्रोएपियनड्रोस्टेरोन (डीएचईए), मेलाटोनिन और सिरटुइन-1 (एसआईआरटी-1) के बढ़े हुए स्तरों से को-मॉर्बिड डिप्रेशन की गंभीरता को कम कर सकता है। योग न्यूरोप्लास्टिसिटी को बढ़ावा देता है और इस प्रकार रोग निवारण रणनीतियों में सहायता करता है तथा को-मॉर्बिड डिप्रेशन की गंभीरता को कम करता है।

इस शोध से गठिया रोगियों के लिए पूरक चिकित्सा के रूप में योग की क्षमता का प्रमाण मिलता है। योग न केवल दर्द और जकड़न जैसे लक्षणों को कम कर सकता है, बल्कि रोग नियंत्रण और जीवन की बेहतर गुणवत्ता में भी योगदान दे सकता है। दवाओं के विपरीत, योग के कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं और यह गंभीर ऑटोइम्यून स्थितियों के प्रबंधन के लिए एक सस्ता व प्रभावी तथा स्वाभाविक विकल्प प्रदान करता है।

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फाइलेरिया उन्मूलन कार्यशाला आयोजित

भारत सरकार के युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय के एनएसएस क्षेत्रीय निदेशालय लखनऊ और एनएसएस प्रकोष्ठ उच्च शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश शासन लखनऊ द्वारा पी सी आई तथा ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज के सहयोग से फाइलेरिया उन्मूलन के लिए युवाओं की प्रतिभागिता के उद्देश से एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई । कार्यक्रम का शुभारंभ राज्य सम्पर्क अधिकारी प्रो. मंजू सिंह और युवा अधिकारी समरदीप सक्सेना एवं राजेश तिवारी  के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय, पी सी आई एवम् जी एच एस के अधिकारियो द्वारा किया गया । इस कार्यक्रम में प्रदेश के 10 विश्वविद्यालयों के 27 जनपदों से 70 से अधिक कार्यक्रम अधिकारियों ने प्रतिभाग किया । इस कार्यक्रम में कानपुर विश्वविद्यालय के कार्यक्रम समन्वयक डॉ श्याम मिश्रा जी के नेतृत्व में सर्वाधिक 13 कार्यक्रम अधिकारियों ने प्रतिभाग किया । जनपद कानपुर नगर से जिला नोडल अधिकारी डॉ संगीता सिरोही के साथ डी ए वी कॉलेज से डॉ चंद्र सौरभ एवम् बी एन डी कॉलेज से डॉ प्रमोद ने प्रतिभाग किया।

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने महाराष्ट्र में जीका वायरस के मामलों को देखते हुए राज्यों को परामर्श जारी किया है

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) डॉ. अतुल गोयल ने महाराष्ट्र में जीका वायरस के कुछ दर्ज किए गए मामलों को देखते हुए राज्यों को एक परामर्श जारी किया है। इसमें देश में जीका वायरस की स्थिति पर निरंतर सतर्कता बनाए रखने की जरूरत पर प्रकाश डाला गया है।

चूंकि जीका संक्रमित गर्भवती महिला के भ्रूण में माइक्रोसेफली और न्यूरोलॉजिकल प्रभाव आ जाता है, इसलिए राज्यों को सलाह दी गई है कि वे चिकित्सकों को कड़ी निगरानी के लिए सचेत करें। राज्यों से आग्रह किया गया है कि वे संक्रमित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं या प्रभावित क्षेत्रों से आने वाले मामलों की देखभाल करने वाले लोगों को निर्देश दें कि वे गर्भवती महिलाओं की जीका वायरस संक्रमण के लिए जांच करें, जीका से संक्रमित पाई गईं गर्भवती माताओं के भ्रूण के विकास की निगरानी करें और केंद्र सरकार के दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्य करें। राज्यों को यह भी निर्देश दिया गया है कि वे स्वास्थ्य सुविधाओं/अस्पतालों को एक नोडल अधिकारी की पहचान करने की सलाह दें जो अस्पताल परिसर को एडीज मच्छर से मुक्त रखने के लिए निगरानी और कार्य करें।

राज्यों को कीट विज्ञान निगरानी को मजबूत करने और आवासीय क्षेत्रों, कार्यस्थलों, स्कूलों, निर्माण स्थलों, संस्थानों और स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों में वेक्टर नियंत्रण गतिविधियों को तेज करने के महत्व पर जोर देते हुए निर्देश दिया गया है। राज्यों से समुदाय के बीच घबराहट को कम करने के लिए सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्मों पर एहतियाती आईईसी संदेशों के माध्यम से जागरूकता को बढ़ावा देने का भी आग्रह किया गया है, क्योंकि जीका किसी भी अन्य वायरल संक्रमण की तरह ही है जिसके अधिकांश मामले लक्षणहीन और हल्के होते हैं। हालांकि, इसे माइक्रोसेफली से जुड़ा मामला बताया जाता है, लेकिन 2016 के बाद से देश में जीका से जुड़े माइक्रोसेफली की कोई रिपोर्ट नहीं आई है।

किसी भी आसन्न उछाल/प्रकोप का समय पर पता लगाने और नियंत्रण के लिए, राज्य अधिकारियों को सतर्क रहने, तैयार रहने और सभी स्तरों पर उचित रसद की उपलब्धता सुनिश्चित करने की सलाह दी गई है। राज्यों से यह भी आग्रह किया गया है कि वे पहचान में आए जीका के किसी भी मामले के बारे में तुरंत एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) और राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीवीबीडीसी) को बताएं।

जीका परीक्षण सुविधा राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी), पुणे; राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी), दिल्ली और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की कुछ चुनिंदा वायरस अनुसंधान और नैदानिक ​​प्रयोगशालाओं में उपलब्ध है। जीका संक्रमण के बारे में उच्च स्तर पर समीक्षा की जा रही है।

डीजीएचएस ने इस साल की शुरुआत में 26 अप्रैल को एक एडवाइजरी भी जारी की थी। एनसीवीबीडीसी के निदेशक ने भी फरवरी और अप्रैल, 2024 में दो एडवाइजरी जारी की हैं ताकि राज्यों को एक ही वेक्टर मच्छर से फैलने वाली जीका, डेंगू और चिकनगुनिया बीमारी के बारे में पहले से चेतावनी दी जा सके।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय स्थिति पर लगातार नज़र रख रहा है।

पृष्ठभूमि:

डेंगू और चिकनगुनिया की तरह जीका भी एडीज मच्छर जनित वायरल बीमारी है। यह एक गैर-घातक बीमारी है। हालांकि, जीका संक्रमित गर्भवती महिलाओं से पैदा होने वाले शिशुओं में माइक्रोसेफली (सिर का आकार कम होना) से जुड़ा है, जो इसे एक बड़ी चिंता का विषय बनाता है।

भारत में 2016 में गुजरात राज्य में जीका का पहला मामला सामने आया था। तब से, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, राजस्थान, केरल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और कर्नाटक जैसे कई अन्य राज्यों में भी बाद में जीका मामले दर्ज किए हैं।

वर्ष 2024 में (2 जुलाई तक), महाराष्ट्र के पुणे में 6, कोल्हापुर में 1 और संगमनेर 1 यानी पूरे आठ मामले दर्ज किए गए हैं।

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केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रतापराव गणपतराव जाधव और अनुप्रिया सिंह पटेल ने ‘आयुष्मान भारत, गुणवत्त स्वास्थ्य’ कार्यक्रम में तीन पहलों का शुभारंभ किया

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री श्री प्रतापराव गणपतराव जाधव और श्रीमती अनुप्रिया सिंह पटेल ने आज ‘आयुष्मान भारत, गुणवत्त स्वास्थ्य’ कार्यक्रम में तीन पहलों का शुभारंभ किया। ये पहल भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को बेहतरीन करने एवं कारोबार करने को और भी अधिक आसान बनाने में प्रमुख भूमिका निभाएंगी।

केंद्रीय मंत्रियों ने आयुष्मान आरोग्य मंदिरों (एएएम) के लिए वर्चुअल राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक (एनक्यूएएस) आकलन; एक डैशबोर्ड, जो राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्वास्थ्य संस्थानों व केंद्रों को भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों (आईपीएचएस) के अनुपालन की त्वरित निगरानी करने और तदनुसार ठोस कदम उठाने में मदद करेगा; और फूड वेंडर्स के लिए स्पॉट फूड लाइसेंस एवं पंजीकरण पहल का शुभारंभ किया।

केंद्रीय मंत्रियों ने इस कार्यक्रम के दौरान वर्चुअली निर्धारित किए गए स्वास्थ्य एएएम-एससी को राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक प्रमाण पत्र प्रदान किये।

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image003LGH4.jpgइसी कार्यक्रम में एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं (आईपीएचएल) के लिए राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक भी जारी किये गए। ये मानक एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं में प्रबंधन एवं परीक्षण प्रणालियों की गुणवत्ता और क्षमता में सुधार करेंगे, जो परीक्षण के परिणामों की विश्वसनीयता पर सकारात्मक रूप से असर डालेंगे। इनसे प्रयोगशाला से प्राप्त होने वाले परिणामों के संबंध में चिकित्सकों, रोगियों और आम जनता का भरोसा बढ़ जाएगा। इसके अलावा, कायाकल्प के लिए संशोधित दिशा-निर्देश भी जारी किए गए।

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स्पॉट फूड लाइसेंस पहल का प्रारंभ होना खाद्य सुरक्षा एवं अनुपालन प्रणाली (एफओएससीओएस) के माध्यम से तत्काल लाइसेंस जारी करने और पंजीकरण सेवा प्रदान करने के लिए एक नई व्यवस्था है। खाद्य सुरक्षा एवं अनुपालन प्रणाली एक अत्याधुनिक, अखिल भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी वाला प्लेटफार्म है, जिसे सभी खाद्य सुरक्षा विनियामक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयार किया गया है। यह अभिनव प्रणाली लाइसेंसिंग तथा पंजीकरण की प्रक्रियाओं को सरल बनाती है, जिससे उपयोगकर्ता को बेहतर अनुभव प्राप्त होता है।

श्री प्रतापराव जाधव ने सत्र को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि इन महत्वपूर्ण पहलों की शुरुआत “सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा” प्रदान करने और कल्याण को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयास की निरंतरता का हिस्सा है। उन्होंने 1.73 लाख से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिर स्थापित करने, साल 2014 से मेडिकल कॉलेजों की संख्या दोगुनी करने, एम्स की संख्या 7 से बढ़ाकर 23 करने और 2014 से पीजी और एमबीबीएस सीटों की संख्या दोगुनी से अधिक करने को लेकर केंद्र सरकार की उपलब्धियों को रेखांकित किया। उन्होंने आगे कहा, “सरकार अधिक कुशल मानव संसाधन और गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे के साथ स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो वर्तमान और भविष्य की चिकित्सा संबंधी चुनौतियों से निपट सकती है।” अनुप्रिया पटेल ने कहा कि वर्चुअल एनक्यूएएस मूल्यांकन और डैशबोर्ड की शुरुआत के साथ-साथ दो दस्तावेजों के जारी होने से सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता में सुधार होगा। वहीं, स्पॉट फूड लाइसेंस की शुरुआत से भारत में व्यापार करने में सुगमता बढ़ेगी।

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image006NJXS.jpgउन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार का ध्यान सस्ती स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच प्रदान करने के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने पर भी है। श्रीमती पटेल ने बताया कि सरकार माननीय प्रधानमंत्री की सोच के अनुरूप साल 2047 तक एक सुदृढ़ और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना के निर्माण के लिए काफी परिश्रम कर रही है।

केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव श्री अपूर्व चंद्रा ने सरकार की ओर से गुणवत्ता और अपने नागरिकों के लिए कारोबार में सुगमता प्रदान करने पर निरंतर ध्यान दिए जाने को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि जहां केंद्र सरकार राज्यों को एनक्यूएएस प्रमाणन प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करती है, वहीं उन स्वास्थ्य केंद्रों को हतोत्साहित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जो स्वास्थ्य सेवाओं में गुणवत्ता के न्यूनतम मानक को सुनिश्चित नहीं करते हैं।

एफएसएसएआई के सीईओ श्री जी कमला वर्धन राव ने कहा कि एफओएससीएस के माध्यम से लाइसेंस व पंजीकरण तत्काल जारी करने से भारत में व्यापार करने को लेकर सुगमता में उल्लेखनीय सुधार होगा और माननीय प्रधानमंत्री के सबका साथ, सबका विश्वास की सोच में योगदान करने में सहायता मिलेगी। इससे पहले पूरे भारत में विभिन्न स्वास्थ्य केंद्रों से आए स्वास्थ्य कर्मियों ने एनक्यूएएस प्रशिक्षण के अपने अनुभव और अपने केंद्रों को एनक्यूएएस प्रमाणित करवाने की यात्रा के साथ-साथ प्रमाणन के कारण आए बदलावों को साझा किया। इसके अलावा देश भर से आए खाद्य विक्रेताओं ने भी अपने स्टॉल के लिए एफएसएसएआई लाइसेंस और पंजीकरण प्राप्त करने के अपने अनुभव को साझा किया।

पृष्ठभूमि:

आयुष्मान आरोग्य मंदिर के लिए वर्चुअल मूल्यांकन

आयुष्मान आरोग्य मंदिर उप-केंद्रों (एएएम-एससी) का वर्चुअल प्रमाणन सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए गुणवत्ता आश्वासन संबंधी संरचना में एक महत्वपूर्ण नवाचार का प्रतिनिधित्व करता है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू की गई आयुष्मान भारत योजना के तहत, सभी नागरिकों के लिए व्यापक, सुलभ स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए आयुष्मान आरोग्य मंदिर (एएएम) की स्थापना और संचालन किया गया है। वर्तमान में, देश भर में 170,000 से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिर संचालित हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों के नेतृत्व में, एएएम में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की टीमों को प्रारंभिक देखभाल, ट्राइएज का प्रबंधन करने और आगे के उपचार के लिए रोगियों को उपयुक्त सुविधाओं के लिए संदर्भित करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। यह दृष्टिकोण पर्याप्त रेफरल लिंकेज के साथ समुदाय के निकट प्राथमिक देखभाल सेवाएं प्रदान करके माध्यमिक और तृतीयक देखभाल सुविधाओं पर बोझ को कम करता है। स्वास्थ्य समस्याओं की प्रारंभिक पहचान और प्रबंधन रोग को बढ़ने से रोकने में मदद करता है। इसके लिए उन्नत देखभाल की आवश्यकता होती है।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रत्येक नागरिक को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त हों, जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, ग्रामीण और शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और आयुष्मान आरोग्य मंदिरों (उप केंद्रों) के लिए राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक (एनक्यूएएस) विकसित किए गए, जिसका लक्ष्य 2026 तक पूर्ण अनुपालन करना था। मूल्यांकन प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए ऑनलाइन मूल्यांकन शुरू किए गए हैं, जिसमें वर्चुअल टूर और रोगियों, कर्मचारियों और समुदाय के सदस्यों के साथ बातचीत शामिल है। प्रत्येक स्वास्थ्य सेवा सुविधा गुणवत्ता प्रमाणन प्राप्त करने के लिए एक कठोर बहु-स्तरीय मूल्यांकन प्रक्रिया से गुज़रेगी, जिसका मूल्यांकन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के पैनल में शामिल राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक मूल्यांकनकर्ताओं द्वारा किया जाएगा।

एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाएं (आईपीएचएल)

जीवन रक्षक उपचार और बीमारी की कारगर रोकथाम करने के लिए उच्च-गुणवत्ता वाले नैदानिक परीक्षणों तक पहुंच सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में सशक्त प्रयोगशाला सेवाओं के बिना, रोगी अक्सर निजी सुविधाओं का सहारा लेते हैं, जिससे उन्हें काफी ज़्यादा खर्च और वित्तीय भार उठाना पड़ता है। इसलिए, भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय ने एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं (आईपीएचएल) की स्थापना करके पीएम-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन (पीएम-एबीएचआईएम) के तहत प्रयोगशाला प्रणालियों को मजबूत किया है। ये प्रयोगशालाएं नैदानिक सेवाओं में पहुंच, दक्षता और गुणवत्ता सुनिश्चित करती हैं, जो प्रभावी स्वास्थ्य सेवा वितरण के लिए मौलिक हैं।

आईपीएचएल के लिए राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक (एनक्यूएएस) को सुसंगत, सटीक और सुरक्षित प्रयोगशाला परीक्षण प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने के लिए विकसित किया गया है। इन मानकों का उद्देश्य रोगियों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को गुणवत्तापूर्ण सेवाएं प्रदान करना, जिला और ब्लॉक-स्तरीय सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं को सक्षमता प्रदर्शित करने के लिए प्रोत्साहित करना और गुणवत्ता मानकों को लगातार बनाए रखना और सुधारना है। सटीक परीक्षण परिणाम प्रदान करने, त्रुटियों को कम करने और तेज, विश्वसनीय और सस्ती नैदानिक सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए प्रयोगशालाओं के लिए इन मानकों का पालन करना आवश्यक है। आईपीएचएल मानक जिला अस्पताल के भीतर या एक स्वतंत्र इकाई के रूप में स्थित पूरी तरह कार्यात्मक प्रयोगशालाओं पर लागू होते हैं। यह परिकल्पना की गई है कि राज्य और जिला स्तर पर गुणवत्ता आश्वासन टीम जिले में आईपीएचएल में एनक्यूएएस के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार होगी।

सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की वास्तविक समय पर निगरानी के लिए एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली (आईपीएचएस) डैशबोर्ड का शुभारंभ

एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली (आईपीएचएस) अनुपालन डैशबोर्ड का शुभारम्भ  भारत के स्वास्थ्य सेवा विकास में एक क्रांतिकारी रणनीति का प्रतिनिधित्व करता है। आईपीएचएस दिशानिर्देशों के साथ उन्नत डिजिटल उपकरणों को एकीकृत करके, मंत्रालय सार्वजनिक स्वास्थ्य में उत्कृष्टता लाने और यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि प्रत्येक व्यक्ति को सर्वोत्तम संभव स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच प्राप्त हो। यह पहल राष्ट्र के स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार के लिए सरकार के अटूट समर्पण का एक प्रमाण है।

आईपीएचएस डैशबोर्ड सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की वास्तविक समय की निगरानी के लिए एक ऐसा अग्रणी डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म है जो जिला अस्पतालों, उप-जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और आयुष्मान आरोग्य मंदिर सहित सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के मूल्यांकन और अनुपालन स्थिति का व्यापक अवलोकन प्रदान करता है। मंत्रालय का लक्ष्य इस अत्याधुनिक डिजिटल उपकरण का लाभ उठाकर यह सुनिश्चित करना है कि सभी स्वास्थ्य सेवा संस्थान आईपीएचएस 2022 द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करें, जिससे प्रत्येक नागरिक को उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं की डिलीवरी की गारंटी मिले।
यह डैशबोर्ड ओपन डेटा किट (ओडीके) टूल के माध्यम से वास्तविक समय डेटा संग्रह और विश्लेषण की सुविधा प्रदान करता है, जिससे स्वास्थ्य अधिकारियों को गहन मूल्यांकन करने, अंतराल की पहचान करने और आवश्यक सुधारों को तुरंत लागू करने में सक्षम बनाया सके । यह पहल सुनिश्चित करती है कि स्वास्थ्य सुविधाएं बुनियादी ढांचे, उपकरण और मानव संसाधनों के आवश्यक मानकों को बनाए रखें, जिससे बेहतर स्वास्थ्य परिणाम प्राप्त होंगे और एक स्वस्थ और अधिक न्यायसंगत समाज को बढ़ावा मिलेगा।
14 जून, 2024 तक, 216,062 सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में से 36,730 से अधिक का मूल्यांकन किया गया है, जिनमें से 8,562 पूरी तरह से आईपीएचएस मानकों के अनुरूप हैं। नई सरकार के गठन के पहले 100 दिनों के भीतर 70,000 स्वास्थ्य संस्थानों को अनुपालन के अनुरूप बनाने का लक्ष्य है।
अधिक जानकारी के लिए कृपया स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएँ।

एफओएससीओएस :

एफओएससीओएस एक अत्याधुनिक, अखिल भारतीय आईटी प्लेटफ़ॉर्म है जिसे सभी खाद्य सुरक्षा नियामक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयार किया गया है। यह अभिनव प्रणाली लाइसेंसिंग और पंजीकरण प्रक्रियाओं को सरल बनाती है, जिससे उपयोगकर्ता को बेहतर अनुभव मिलता है। लाइसेंसिंग और पंजीकरण से परे, एफओएससीओएस ऑनलाइन रिटर्न फाइलिंग, खाद्य सेवा प्रतिष्ठानों के लिए स्वच्छता रेटिंग, सुरक्षा मापदंडों के लिए तीसरे पक्ष के ऑडिट के माध्‍यम से स्व-अनुपालन की सुविधा प्रदान करता है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के अन्य आईटी प्लेटफ़ॉर्म से जुड़ा, एफओएससीओएस खाद्य व्यवसाय संचालकों के लिए एक व्यापक समाधान प्रदान करता है।

कारोबार में सुगमता में और सुधार लाने के एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में, एफएसएसएआई ने काम में आने लायक एक नई व्‍यवस्‍था शुरू की है जो खाद्य व्यवसायों की कम जोखिम वाली श्रेणियों के लिए लाइसेंस और पंजीकरण को तुरंत जारी करने में सक्षम बनाती है। इसे डिजिटल सत्यापन के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा, यह सुनिश्चित करते हुए कि खाद्य सुरक्षा से समझौता नहीं किया जाए। यह नया प्रावधान खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य व्यवसायों का लाइसेंस और पंजीकरण) विनियमन, 2011 के तहत निर्धारित लाइसेंस और पंजीकरण के लिए आवेदन करने और प्राप्त करने की मौजूदा प्रक्रियाओं का पूरक है।

वर्तमान में, एफएसएसएआई लाइसेंस प्राप्त करने में पूर्ण आवेदन जमा करने की तिथि से 30 से 60 दिन लग सकते हैं। लाइसेंस के लिए, इसमें आम तौर पर 60 दिन लगते हैं, जबकि यदि निरीक्षण की आवश्यकता नहीं है तो पंजीकरण में 7 दिन और यदि निरीक्षण की आवश्यकता है तो 30 दिन तक का समय लग सकता है।

लाइसेंसिंग प्राधिकरण के हस्तक्षेप के बिना लाइसेंस जारी करने की सुविधा चुनिंदा श्रेणियों जैसे थोक विक्रेताओं, वितरकों, खुदरा विक्रेताओं, ट्रांसपोर्टरों, वायुमंडलीय नियंत्रण + ठंड के बिना भंडारण, आयातकों, खाद्य वेंडिंग एजेंसियों, प्रत्यक्ष विक्रेताओं और व्यापारी-निर्यातकों के लिए उपलब्ध होगी। पंजीकरण के तत्काल अनुदान के लिए, ऊपर बताई गई श्रेणियों में आवेदन करने वाले छोटे खाद्य व्यवसायों के साथ-साथ स्नैक्स/चाय की दुकानों और फेरीवालों (घुमंतू/चलते खाद्य विक्रेता) के छोटे खुदरा विक्रेताओं को प्रमाण पत्र दिए जाएंगे। यह योजना दूध, मांस और मछली जैसी उच्च जोखिम वाली खाद्य श्रेणियों में शामिल व्यवसायों पर लागू नहीं होगी।

भारत में विकसित हो रहा खाद्य सुरक्षा इकोसिस्‍टम खाद्य व्यवसायों पर निगरानी रखने पर केन्‍द्रित पारंपरिक प्रथाओं से खाद्य सुरक्षा और मानक (एफएसएस) कानून, 2006 के तहत विश्वास-निर्माण, आत्म-अनुपालन व्यवस्था में परिवर्तित हो रहा है। इन पहलों का उद्देश्य नियामक प्रक्रियाओं को डिजिटल बनाकर और विभिन्न अनुपालन मॉड्यूलों तक आसान पहुंच प्रदान करके खाद्य सुरक्षा नेटवर्क का विस्तार करना है, जिससे व्यापार करने में आसानी बढ़े।

इस नई कार्यक्षमता का शुभारंभ भारत की अधिक कुशल और व्यापार-अनुकूल वातावरण बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो नवाचार, उद्यमशीलता और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है।

इस कार्यक्रम में स्वास्थ्य मंत्रालय में अपर सचिव श्रीमती आराधना पटनायक; केन्‍द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, राज्य सरकारों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठनों के वरिष्ठ अधिकारियों सहित प्रमुख हितधारकों ने भाग लिया।

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मृत एंजाइम वीईजीएफआर1 का परिवर्तित रूप कोलोन और गुर्दे के कैंसर के चिकित्सा समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण आधार है

शोधकर्ताओं ने एक ऐसी सूक्ष्म अणु प्रक्रिया की महत्वपूर्ण खोज की है जिसमें वृद्धि कारकों को इकट्ठा रखने, सेल विविधताओं के प्रसार, अस्तित्व, चयापचय और आवागमन को नियमित करने के साथ-साथ कैंसर को रोकने में सक्षम एंजाइम संरचना से संबंधित एक सेल सरफेस रिसैप्टर शामिल है।

वीईजीएफआर1 नामक यह एंजाइम उदाहरण के तौर पर हार्मोन जैसे एक लिगैंड की अनुपस्थिति में इसे स्वयं बढ़ने से रोकता है। यह शोध उन अणुओं का उपयोग करके कोलन और गुर्दे के कैंसर के लिए चिकित्सा समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण रूप से मार्ग प्रशस्त कर सकता है जो मुख्य तौर पर वीईजीएफआर1 की निष्क्रिय अवस्था को स्थिर करते हैं।

रिसेप्टर टायरोसिन किनेसेस (आरटीके) जैसे सेल सरफेस रिसेप्टर्स बाह्यकोशिकीय संकेतों (विकास कारकों जैसे रासायनिक संकेतों से, जिन्हें आमतौर पर लिगैंड के रूप में संदर्भित किया जाता है) को विनियमित सेलुलर प्रतिक्रिया में बदलने के लिए महत्वपूर्ण हैं। बाह्यकोशिकीय रिसेप्टर्स से लिगैंड वाईडिंग इंट्रासेल्युलर युग्मित एंजाइम (टायरोसिन किनेसेस) को सक्रिय करता है। सक्रिय एंजाइम, बदले में, कई टायरोसिन अणुओं में फॉस्फेट समूह जोड़ता है जो सिग्नलिंग कॉम्प्लेक्स को एकत्र करने के लिए एक एडेप्टर के रूप में कार्य करते हैं। सिग्नलिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण सेल वृद्धि, विकास और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया जैसे विविध सेलुलर कार्यों को नियंत्रित करता है। लिगैंड की अनुपस्थिति में आरटीके की सहज सक्रियता अक्सर कैंसर, मधुमेह और स्व-प्रतिरक्षित विकारों जैसे कई मानव विकृति से जुड़ी होते हैं। शोधकर्ता यह पता लगा रहे हैं कि एक कोशिका एंजाइम की ऑटोइनहिबिटेड स्थिति को कैसे बनाए रखती है और मानव विकृति के बढ़ने के दौरान इस तरह का ऑटोइनहिबेशन क्यों होता है।

कोलकाता के भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) के शोधकर्ताओं ने वैस्कुलर एंडोथेलियल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर (वीईजीएफआर) नामक एक ऐसे आरटीके की जांच की। रिसेप्टर्स का वीईजीएफआर परिवार नई रक्त वाहिकाओं के निर्माण प्रक्रिया का प्रमुख कारक है।

यह प्रक्रिया भ्रूण के विकास, घाव भरने, ऊतक पुनर्जनन और ट्यूमर बनने जैसे कार्यों के लिए आवश्यक है। वीईजीएफआर को लक्षित करके विभिन्न घातक और गैर-घातक बीमारियों का इलाज किया जा सकता है।

शोधकर्ता इस तथ्य से हैरान हैं कि इस परिवार के दो सदस्य वीईजीएफआर 1 और वीईजीएफआर 2 काफी अलग तरह से व्यवहार करते हैं जबकि वीईजीएफआर 2, नई रक्त वाहिकाओं के निर्माण की प्रक्रिया को विनियमित करने वाला प्राथमिक रिसेप्टर अपने लिगैंड के बिना, स्वतः सक्रिय हो सकता है, परिवार का दूसरा सदस्य वीईजीएफआर 1 कोशिकाओं में अत्यधिक क्रियाशीलता होने पर भी स्वतः सक्रिय नहीं हो सकता। यह एक मृत एंजाइम वीईजीएफआर 1 के रूप में छिप जाता है और वीईजीएफआर 2 की तुलना में अपने लिगैंड वीईजीएफ-ए से दस गुना अधिक निकटता के साथ मिल जाता है। यह लिगैंड वाईडिंग एक क्षणिक काइनेज (एंजाइम द्वारा शरीर में रासायनिक प्रतिक्रियाओं को तेज करना) सक्रियण को प्रेरित करता है।

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चित्र 1: वीईजीएफआर के लिगैंड-स्वतंत्र सक्रियण की जांच। एडी कम (एसीऔर उच्च (बीडीअभिव्यक्त सीएचओ सेल लाइनों में एमचैरी से जुड़े वीईजीएफआरया वीईजीएफआरकी कॉन्फ़ोकल छवियाँ। वीईजीएफआर का अभिव्यक्ति स्तर लाल रंग में हैऔर फॉस्फोराइलेशन स्थिति हरे रंग में हैस्केल बार=10यूएम। वीईजीएफआर 2 (पैनल ईया वीईजीएफआर1 (पैनल एफके अभिव्यक्ति स्तर को सीटर्मिनल टेल पर संबंधित टायरोसिन अवशेषों के फॉस्फोराइलेशन स्तर के विरुद्ध प्लॉट किया गया है

वीईजीएफआर1 के सक्रिय होने से कैंसर से संबंधित दर्द, स्तन कैंसर में ट्यूमर सेल का जीवित रहना और मानव कोलोरेक्टल कैंसर कोशिकाओं का स्थानांतरण होता है।

इस बात की जांच करते हुए कि परिवार का एक सदस्य इतना सहज रूप से सक्रिय क्यों होता है और दूसरा ऑटोइनहिबिटेड क्यों होता है, आईआईएसईआर कोलकाता के डॉ. राहुल दास और उनकी टीम ने पाया कि एक असाधारण आयनिक लैच, जो केवल वीईजीएफआर1 में मौजूद है, बेसल अवस्था में काइनेज को ऑटोइनहिबिटेड रखता है। आयनिक लैच जक्सटामेम्ब्रेन सेगमेंट को काइनेज डोमेन पर हुक करता है और वीईजीएफआर1 के ऑटोइनहिबिटेड कंफर्मेशन को स्थिर करता है।

वीईजीएफआर 1 की ऑटोइनहिबिटेड अवस्था की प्रक्रिया की खोज करते हुए शोधकर्ताओं ने वीईजीएफआर1 गतिविधि को मॉड्यूलेट करने में सेलुलर टायरोसिन फॉस्फेट की महत्वपूर्ण भूमिका का प्रस्ताव दिया। आईआईएसईआर कोलकाता में एनालिटिकल बायोलॉजी फैसिलिटी में डीएसटी-एफआईएसटी समर्थित आईटीसी और स्टॉप्ड-फ्लो फ्लोरीमीटर के साथ किए गए शोध ने कैंसर में होने वाली नई रक्त वाहिकाओं (एंजियोजेनेसिस) के वीईजीएफआर1-मध्यस्थ रोगात्मक गठन को विनियमित करने में फॉस्फेट मॉड्यूलेटर की चिकित्सीय क्षमता का भी उल्लेख किया।

नेचर कम्युनिकेशन जर्नल में प्रकाशित यह खोज वीईजीएफआर सिग्नलिंग के स्वयं सक्रिय होने के कारण रोग संबंधी स्थितियों के बारे चिकित्सीय समाधान निकालने की दिशा में नए मार्ग प्रशस्त कर सकती है। ऑटोइनहिबिटेड अवस्था को लक्षित करने वाले छोटे अणुओं में मानव कोलोरेक्टल कार्सिनोमा और गुर्दे के कैंसर जैसे कैंसर के इलाज की अधिक क्षमता होगी।

लेख का लिंक: https://doi.org/10.1038/s41467-024-45499-2

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चित्र 2: बाह्यकोशिकीय डोमेन (ईसीडीसे जुड़ने वाला लिगैंड रिसेप्टर डिमराइजेशन और टीएम-जेएम सेगमेंट के फिर से बनने को प्रेरित करता है। वीईजीएफआर में जेएम अवरोध का धीमी गति से होना सीटर्मिनल टेल पर क्षणिक टायरोसिन फॉस्फोराइलेशन की ओर ले जाता है। वीईजीएफआर या वीईजीएफआरम्यूटेंट में जेएम अवरोध की त्वरित रिलीज टायरोसिन फॉस्फोराइलेशन को बनाए रखने के लिए फिर से तैयार करती है। बाएँ: जेएम अवरोध की धीमी गति से रिलीज और प्रोटीन टायरोसिन फॉस्फेट (पीटीपीगतिविधि के बीच एक संवेदनशील संतुलन के कारण वीईजीएफआरकी लिगैंड-स्वतंत्र सक्रियता को रोक दिया जाता है

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