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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने गैर-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग (एनएएफएलडी) के उपचार संबंधी संशोधित परिचालन और प्रशिक्षण दिशानिर्देश जारी किए

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने आज यहां गैर-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग (एनएएफएलडी) के उपचार संबंधी संशोधित परिचालन दिशानिर्देश और प्रशिक्षण मॉड्यूल जारी किए। ये दस्तावेज जानकारी, प्रमाण आधारित विधियों से एनएएफएलडी रोगियों की देखभाल और नतीजों को बेहतर बनाने के लिए तैयार किए गए हैं।

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केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव श्री अपूर्व चंद्रा ने सत्र को संबोधित करते हुए कहा, “भारत ने एनएएफएलडी को एक प्रमुख गैर संचारी रोग (एनसीडी) के रूप में मान्यता देने में अग्रणी भूमिका निभाई है।” उन्होंने कहा कि यह देश की आबादी में बहुत तेजी से एक प्रमुख स्वास्थ्य चिंता के रूप में उभर रहा है, जो चयापचय (मेटाबोलिक) विकारों जैसे मोटापे, मधुमेह और दिल की बीमारियों से निकटता से जुड़ा है। इस रोग की गंभीरता का पता इस बात से चलता है कि प्रत्येक 10 में से एक से तीन लोगों को एनएएफएलडी हो सकता है।

श्री चंद्रा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि संशोधित परिचालन दिशा-निर्देश और प्रशिक्षण मॉड्यूल जारी करना इस रोग पर अंकुश लगाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा रोग से निपटने  के महत्व को दर्शाता है।” उन्होंने कहा कि ये दस्तावेज सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से लेकर चिकित्सा अधिकारियों तक सभी स्तरों पर एक रूपरेखा प्रदान करेंगे। उन्होंने उन लोगों की निरंतर देखभाल पर भी जोर दिया, जिनमें इस रोग का पता चला था और इसके प्रसार को कम करने के लिए जीवनशैली में बदलाव लाने की बात भी कही।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की विशेष कार्य अधिकारी श्रीमती पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने इस मौके पर कहा, “इन दिशा-निर्देशों को जमीनी स्तर कार्य कर रहे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं तक पहुंचाने की आवश्यकता है ताकि बीमारी का जल्द पता लगाकर इसके बोझ को कम किया जा सके।” उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण मॉड्यूल को जारी किया जाना देश में एनसीडी के बढ़ते बोझ से निपटने के लिए चिकित्सकों की क्षमता निर्माण के देश के प्रयासों में एक महत्वपूर्ण अतिरिक्त कड़ी है।

इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज (आईएलबीएस) के निदेशक डॉ. एस.के. सरीन ने कहा कि दोनों दस्तावेजों का जारी किया जाना लिवर संबंधी बीमारियों की रोकथाम में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसके परिणाम अगले कुछ वर्षों में दिखाई देंगे। उन्होंने लीवर को स्वस्थ बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर जैसी कई गैर-संचारी बीमारियां (एनसीडी) लीवर के स्वास्थ्य से जुड़ी हैं।

देश में 66 प्रतिशत से ज़्यादा मौतें गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के कारण होती हैं। इन रोगों का तम्बाकू सेवन (धूम्रपान और धूम्रपान रहित), शराब पीना, खराब आहार संबंधी आदतें, अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि और वायु प्रदूषण के साथ गहरा संबंध है।

एनएएफएलडी भारत में लिवर रोग का एक महत्वपूर्ण कारण बनकर उभर रहा है। यह एक छिपी महामारी हो सकती है, जिसका सामुदायिक प्रसार 9 प्रतिशत से 32 प्रतिशत तक हो सकता है और आयु, लिंग, रहन-सहन संबंधी स्थितियां तथा सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि 10 में से 1 से 3 व्यक्ति फैटी लिवर या इससे संबंधित बीमारी से पीड़ित होंगे।

भारत में वैश्विक स्तर पर एनसीडी रोगियों की संख्या सबसे ज़्यादा है और मेटाबॉलिक बीमारियों का एक मुख्य कारण लिवर की कार्य प्रणाली से जुड़ा है। इस पर आने वाले खर्च के बढ़ते बोझ और इससे निपटने की आवश्यकता को देखते हुए, भारत 2021 में एनसीडी की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम में एनएएफएलडी को शामिल करने वाला पहला देश बन गया है।

एनएएफएलडी के क्षेत्र में हाल ही में प्रमाण-आधारित समाधानों को देखते हुए, देश में एनएएफएलडी के नियंत्रण और इसकी रोकथाम में चिकित्सा पेशेवरों की मदद करने और उनका बेहतर तरीके से प्रबंधन करने के लिए अद्यतन दिशानिर्देशों की सख्त आवश्यकता महसूस की जा रही थी।

ये दिशानिर्देश बेहतर स्वास्थ्य स्थितियों और इस रोग की शुरू में ही पहचान पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो एनएएफएलडी मरीजों की समय पर उचित देखभाल को सुनिश्चित करने की दिशा में अहम हैं। ये दिशानिर्देश बहु-विषयक दृष्टिकोण पर जोर देते हैं, जो एनएएफएलडी से प्रभावित व्यक्ति को पूर्ण उपचार प्रदान करने, बेहतर देखभाल करने संबंधी विभिन्न मुद्दों पर स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के प्रयासों को एकीकृत करता है।

एनएएफएलडी के प्रभावी प्रबंधन के लिए न केवल रोग की स्थिति की अच्छी समझ जरूरी है बल्कि स्वास्थ्य सेवा के सभी स्तरों पर साक्ष्य-आधारित कार्यक्रमों को लागू करने की क्षमता भी होनी चाहिए। एनएएफएलडी के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल परिचालन दिशानिर्देशों को पूरक के रूप में विकसित किया गया है और विशेष रूप से प्राथमिक स्तर पर एनएएफएलडी की पहचान, प्रबंधन, रोकथाम के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल के साथ स्वास्थ्य पेशेवरों की क्षमता निर्माण में मदद करता है। मॉड्यूल में महामारी विज्ञान, जोखिम कारक, स्क्रीनिंग, नैदानिक ​​प्रोटोकॉल और मानकीकृत उपचार दिशानिर्देशों सहित विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। यह स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने के लिए प्रारंभिक पहचान, रोगी शिक्षा, जीवन शैली में बदलाव और एकीकृत देखभाल नीतियों पर भी जोर देता है।

इस बैठक में स्वास्थ्य मंत्रालय के अपर सचिव और वित्तीय सलाहकार श्री जयदीप कुमार मिश्रा, अपर सचिव श्रीमती एल एस चांगसन, संयुक्त सचिव श्रीमती लता गणपति और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में सभी 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि, विकास साझेदार और विश्व स्वास्थ्य संगठन, आईएलबीएस, एम्स, सीएमसी वेल्लोर, जेआईपीएमईआर, एसजीपीजीआईएमएस, पीजीआईएमईआर और आरएमएल अस्पताल के विशेषज्ञ भी वर्चुअल माध्यम से शामिल हुए।

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शान ए अवध के बैनर तले संगीत का समागम हुआ

भारतीय स्वरूप संवाददाता लखनऊ स्थित होटल पिनेकल में शान ए अवध के बैनर तले नए पुराने गीतों के साथ संगीत की बेहतरीन महफिल सजी, जिसमे गायकी के शौकीनों ने अपनी कला से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

इस संगीतमय कार्यक्रम में हिंदुस्तान के विभिन्न कोनो से लोग आए और अपनी कला का जौहर दिखाया

संगीत के इस कार्यक्रम का शुभारम्भ माता सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया, सूरों  के महारथियों ने गायकी के जलवे बिखेरे। नए पुराने गीतों के साथ पूरे दिन सुरों की गंगा यमुना बही,

अत्यंत ही खुशनुमा माहौल में गायक गायिका अपने गीत गाने के बाद दूसरों के लिए श्रोता भी थे एक दूसरे की गायकी को मंत्रमुग्ध से सुनते साथ में नाचते गाते रहे, अलग अलग गायकों के गाए गीतों से पूरा प्रांगण संगीतमय हो गया लोगों से बात करने पे उन्होंने कहा कि वक्त का पता ही नहीं चला कब सुबह से रात हो गई।

 

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अतुल दीक्षित  “सम्पादक मुद्रक स्वामी”

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पी०के० इण्डस्ट्रीज में दादू ब्रांड नाम से बनाया जा रहा था अत्यंत गन्दगी के साथ सेंधा नमक, काला नमक एवं साधारण नमक

कानपुर 03 सितम्बर, (सू0वि0) सहायक आयुक्त खाद्य-II, कानपुर नगर संजय प्रताप सिंह ने बताया है कि खाद्य सुरक्षा अधिकारी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, संजय वर्मा एवं डा० अजय कुमार मौर्य के द्वारा हंसपुरम नौबस्ता कानपुर नगर स्थित पी०के० इण्डस्ट्रीज में औचक छापेमारी की गयी उक्त इण्डस्ट्री में अत्यन्त गन्दगी के साथ सेंधा नमक, काला नमक एवं साधारण नमक दादू ब्राण्ड के नाम से पैकिंग कर मानव उपभोग हेतु विक्रयार्थ भण्डारित करते हुए पाया गया। काला नमक में साधारण नमक की मिलावट की जा रही थी। कार्यस्थल पर कार्मिको द्वारा तैयार व पैक्ड नमक पर जूते पहनकर चला जा रहा था। तत्क्रम में उपरोक्त खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की टीम द्वारा मौके पर ही सेंधा नमक, काला नमक एवं साधारण नमक के तीन नमूने संग्रहित किये गये एवं साथ ही 25 कुन्टल काला नमक, कीमत 1,99,680/- (रू० एक लाख निन्याबे हजार छः सौ अस्सी) तथा 50 कुन्टल साधारण नमक कीमत 24,995/- (रू० चौबीस हजार नौ सौ पन्चानबे) को सीज कर दिया गया। निर्माणस्थल की साफ-सफाई व अन्य कार्यों के सुधार करने तक वहां पर निर्माण कार्य को रोक दिया गया।

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दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग द्वारा संचालित दिव्यांगजन शादी विवाह प्रोत्साहन पुरस्कार योजना के अन्तर्गत दी जाएगी प्रोतसाहन राशि

कानपुर 02 सितंबर (सू0वि0) जिला दिव्यांगजन सशक्तीकरण अधिकारी विनय उत्तम ने बताया कि दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग द्वारा संचालित दिव्यांगजन शादी विवाह प्रोत्साहन पुरस्कार योजना के अन्तर्गत दम्पत्ति मे से युवक के दिव्यांग होने की दशा मे रू0 15000/- युवती के दिव्यांग होने पर रू० 20000/- तथा युवक-युवती दोनों के दिव्यांग होने की दशा मे रू0 35000/- की धनराशि दिये जाने हेतु आवेदन पत्र आमंत्रण प्राप्त किये जा रहे है।
उन्होंने आवेदन के लिये पात्रता की शर्तों के बारे में बताया कि शादी के समय युवक की आयु 21 वर्ष से कम तथा 45 वर्ष से अधिक न हो, शादी के समय युवती की आयु 18 वर्ष से कम तथा 45 वर्ष से अधिक न हो, दम्पत्ति मे से कोई आयकर दाता न हो। (सम्बन्धित तहसीलदार द्वारा निर्गत पृथक-पृथक आय प्रमाण पत्र), मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा प्रदत्त दिव्यांगता प्रमाण पत्र के अनुसार स्थाई दिव्यांगता 40 प्रतिशत या उससे अधिक होनी चाहिए, सिर्फ ऐसे दिव्यांग दम्पत्ति पात्र होंगे जिनका विवाह गत वित्तीय वर्ष एवं वर्तमान वित्तीय वर्ष मे हुआ हो, दम्पत्ति में से कोई सदस्य किसी आपराधिक मामले में दंडित न किया गया हो, दम्पत्ति का विवाह रजिस्ट्रार के स्तर पर पंजीकृत होना अनिवार्य नही है विवाह का कोई प्रमाण पत्र संलग्न करें, जिसके पास पूर्व से कोई जीवित पति या पत्नी न हो और उनके ऊपर महिला उत्पीड़न या अन्य आपराधिक वाद न चल रहा हो।
उन्होंने बताया कि दिव्यांग शादी विवाह प्रोत्साहन पुरस्कार योजना के अन्तर्गत पात्र दम्पत्ति http://divyangjan.upsdc.gov.in पर आनलाइन आवेदन कर सकते है। उन्होंने आवेदन करने के लिये आवश्यक दस्तावेज के बारे में बताया कि दम्पत्ति का दिव्यांगता प्रदर्शित करने वाला संयुक्त नवीनतम फोटो, विवाह पंजीकरण/शादी का कार्ड अथवा विवाह/शादी का अन्य कोई प्रमाण पत्र जिससे विवाह होना प्रमाणित हो सके, युवक एवं युवती का आय प्रमाण पत्र (तहसील द्वारा निर्गत आय प्रमाण पत्र), युवक एवं युवती का आयु प्रमाण पत्र (हाई स्कूल की अंकतालिका अथवा परिवार रजिस्टर की नकल या चिकित्सक द्वारा प्रमाणित आयु प्रमाण पत्र), अनु०जाति/अनु०ज०जाति का होने की दशा मे जाति प्रमाण पत्र (तहसील द्वारा निर्गत जाति प्रमाण पत्र), मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा निर्गत स्थाई दिव्यांगता 40 प्रतिशत या उससे अधिक का दिव्यांगता प्रमाण पत्र, दम्पत्ति का राष्ट्रीयकृत बैंक में संचालित संयुक्त बैंक खाता, युवक एवं युवती का निवास प्रमाण पत्र, युवक एवं युवती का आधार कार्ड, आनलाइन भरे गये आवेदन पत्र की प्रिंट प्रति एवं वांछित अभिलेखों की स्वप्रमाणित हार्ड कापी कार्यालय जिला दिव्यांगजन सशक्तीकरण अधिकारी (सेवायोजन कार्यालय परिसर निकट जी०टी० रोड़ गोल चौराहा) कानपुर नगर मे जमा करे।

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प्रदेश सरकार के ‘‘हर घर को नल से जल’’ कार्यक्रम के अन्तर्गत लगभग 2.25 करोड़ आबादी को जलापूर्ति

लखनऊ: 02 सितम्बर, प्रदेश में ग्रामीण पेयजल आपूर्ति हेतु केन्द्र सहायतित राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम का संचालन केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा 50ः50 प्रतिशत वित्त पोषण के आधार पर किया जा रहा है, जिसके अन्तर्गत ‘‘हर घर को नल से जल‘‘ उपलब्ध कराये जाने की कार्यवाही तेजी से की जा रही है। भारत सरकार द्वारा प्रदेश के समस्त अनाच्छादित बस्तियों को पाइप पेयजल योजनाआंे से वर्ष 2024 तक आच्छादित किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन के क्षेत्र मंे तेजी से कार्य किये गये है। प्रदेश में कुल 2.6584 करोड़ घरों को वर्ष 2024 तक शुद्ध पाइप पेयजल से आच्छादित किया जाना लक्षित है।

प्रदेश में अब तक लगभग 2.2359 करोड़ (84.10ः) फन्कशनल हाउसहोल्ड टैप कनेक्शन (एफ0एच0टी0सी0) के माध्यम से ग्रामीण आबादी को पाइप पेयजल योजना से शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा चुका है तथा अवशेष लगभग 42.25 लाख घरों में एफ0एच0टी0सी0 का कार्य वर्ष 2024 तक पूर्ण किया जा रहा है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में 41 सतही स्रोत जल आधारित एवं 423 भूजल आधारित पाइप पेयजल परियोजना के माध्यम से कुल 3748 राजस्व ग्रामों में 11,22,994 एफ0एच0टी0सी0 के माध्यम से शुद्ध पेयजल की आपूर्ति किये जाने के सापेक्ष बुन्देलखण्ड क्षेत्र में अद्यतन 10,92,000 एफ0एच0टी0सी0 उपलब्ध कराया जा चुका है।
विन्ध्य क्षेत्र में 21 सतही स्रोत जल परियोजनाओं एवं 140 भूजल आधारित परियोजनाओं के माध्यम से 2998 राजस्व ग्रामों में 5,98,999 एफ0एच0टी0सी0 के माध्यम से शुद्ध पेयजल की आपूति दिसम्बर, 2024 तक किये जाने के सापेक्ष अद्यतन 5,27,230 एफ0एच0टी0सी0 उपलब्ध कराया जा चुका है। प्रदेश के अन्य जनपदों हेतु 33 कार्यदायी फर्मों को सूचीबद्ध करते हुए समस्त राजस्व ग्रामों में कार्य आवंटित किया गया है। प्रदेश के गुणता प्रभावित जनपदों आगरा, फिरोजाबाद, मथुरा, बलिया, उन्नाव, प्रयागराज एवं चन्दौली के 6439 राजस्व ग्रामों में 14 सतही स्त्रोत आधारित योजनाओं का कार्य चयनित फर्मों द्वारा किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश के समस्त 75 जनपदों की 58,287 ग्राम पंचायतों में कुल 163 आई0एस0ए0 संस्थाओं को कार्य आवंटित किया गया था। आई0एस0ए0 द्वारा तीन चरणों में जन जागरूकता संबंधित कार्य संपादित किए जा रहें है- योजना चरण, कार्यान्यवयन चरण, पोस्ट कार्यान्वयन चरण पर कार्य किये गये है।
जल जीवन मिशन के अन्तर्गत प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक राजस्व ग्राम में 05 महिलाओं को जल गुणवत्ता की जांच हेतु को एफ0टी0के0 के माध्यम से अब तक कुल 5,57,958 महिलाओें को प्रशिक्षित किया गया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में कुल 36,73,192 एवं चालू वित्तीय वर्ष 2024-25 में कुल 18,01,841 पेयजल स्रोतों की जांच की गयी है। प्रदेश में जल जीवन मिशन एवं अन्य योजनाओं के माध्यम से कुल 1,14,807 स्कूलों एवं 1,51,258 आंगनबाड़ी केन्द्रों मेें पाइप द्वारा पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित कराई गयी है।
योजना के सुचारू रूप से संचालन एवं रखरखाव हेतु प्रदेश में प्रति ग्राम पंचायत 06 ट्रेड मेें 13 व्यक्तियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। प्रदेश में अब तक 1,16,037 प्लम्बर, 116007 पम्प ओपरेटर, 1,15,505 मोटर मैकैनिक 1,16,078 फिटर, 1,16667 इलेक्ट्रीशियन तथा 175880 मेशन, कुल 756174 कर्मियों को प्रश्क्षिित करते हुये स्वरोजगार उपलब्ध कराने का कार्य किया जा रहा है।
योजना को भविष्य मेें सही दिशा में चलाये रखने हेतु पंचायती राज इंस्टीट्यूशन का प्रशिक्षण वर्तमान में चल रहा है जिसमें प्रधान, वार्ड मेम्बर्स, बी0डी0सी0 मेम्बर्स, जिला पंचायत सदस्य, सचिव, लेखपाल तथा रोजगार सेवक को प्रशिक्षित किया जा रहा है। अब तक 945959 हितग्राहियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
वित्तीय वर्ष 2024-25 में जल जीवन मिशन के अन्तर्गत राज्य सरकार द्वारा धनराशि रू0 22000.00 करोड़ का बजट प्राविधान किया गया है। भारत सरकार द्वाररा केन्द्रांश में आवंटित धनराशि रू012621.95 करोड़ के सापेक्ष वर्तमान वित्तीय वर्ष में धनराशि रू03786.58 करोड़ की धनराशि अवमुक्त की गयी है। राज्य सरकार द्वारा मैचिंग राज्यांश/शार्ट फॉल/सेन्टेज के सापेक्ष अब तक कुल धनराशि रू0 2498.80 करोड़ अवमुक्त की जा चुकी है। कुल उपलब्घ धनराशि के सापेक्ष अद्यतन रू0 4684.41 करोड़ व्यय किया गया है।

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कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय लगभग 1 एकड़ भूमि पर “मातृ वन” स्थापित करेगा-शिवराज सिंह चौहान

  केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आज #एक_पेड़_माँ_के_नाम #Plant4Mother अभियान के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) कैंपस पूसा में पौधारोपण किया। श्री चौहान ने बताया कि मंत्रालय लगभग 1 एकड़ भूमि में “मातृ वन” स्थापित करेगा। कार्यक्रम में राज्य मंत्री श्री रामनाथ ठाकुर, सचिव डेयर एवं महानिदेशक आईसीएआर डॉ. हिमांशु पाठक, कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय के लगभग 200 अधिकारी/कर्मचारी और स्कूली छात्र भी उपस्थित थे। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि देशभर में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्ल्यू) के सभी अधीनस्थ कार्यालय, आईसीएआर संस्थान, सीएयू, केवीके और एसएयू भी अपने-अपने स्थानों पर इसी तरह का वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित किया। श्री चौहान ने यह भी बताया कि आज कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत 800 से अधिक संस्थानों ने भाग लिया और उम्मीद है कि कार्यक्रम के दौरान 3000-4000 पौधे लगाए जाएंगे। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने 5 जून 2024 को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर वैश्विक अभियान #एक_पेड़_माँ_के_नाम #Plant4Mother का शुभारंभ किया था और प्रधानमंत्री के संकल्प को सुनिश्चित करने के लिए आज हमारे मंत्रालयों ने जन आंदोलन के रूप में #एक_पेड़_माँ_के_नाम #Plant4Mother अभियान की शुरुआत की है। चौहान ने इस अवसर पर उपस्थित सभी अधिकारियों/कर्मचारियों और स्कूली विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे इस अभियान में भाग लें और वृक्षारोपण करके अपनी माँ और धरती माँ के प्रति सम्मान प्रकट करें। वैश्विक अभियान के हिस्से के रूप में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय यह सुनिश्चित करने के प्रयास कर रहा है कि सितंबर 2024 तक देशभर में 80 करोड़ पौधे और मार्च 2025 तक 140 करोड़ पौधे लगाए जाएं। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 20 जून 2024 को असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य में वृक्षारोपण गतिविधि शुरू की, जिसमें व्यक्तियों ने अपनी माताओं के सम्मान में पेड़ लगाए। पेड़ लगाने से सरकार द्वारा शुरू किए गए मिशन लाइफ (Mission LiFE) के उद्देश्य को भी पूरा किया जाता है जो पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली का एक जन आंदोलन है। कृषि में, पेड़ उगाना टिकाऊ खेती को प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। पेड़ मिट्टी, पानी की गुणवत्ता में सुधार करके और जैव विविधता को बढ़ाकर कृषि उत्पादकता में सुधार करने में मदद करते हैं। पेड़ किसानों को लकड़ी और गैर-लकड़ी उत्पादों से अतिरिक्त आय का स्रोत भी प्रदान करते हैं। अभियान में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण को रोकने और उलटने की अपार क्षमता है।

 

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पार्किंसंस रोग के प्रबंधन के लिए दवा की खुराक के समायोजन के लिए नया स्मार्ट सेंसर विकसित

वैज्ञानिकों ने एक किफायती, उपयोगकर्ता के अनुकूल, पोर्टेबल स्मार्टफोन-आधारित फ्लोरोसेंस टर्न-ऑन सेंसर प्रणाली विकसित की है जो पार्किंसंस बीमारी की रोकथाम में सहायता प्रदान कर सकती है। यह सेंसर शरीर में एल-डोपा की सांद्रता का सटीक पता लगाने में मदद करेगा, जिससे इस रोग की प्रभावी रोकथाम के लिए आवश्यक सटीक खुराक का निर्धारण करने में मदद मिलेगी।

पार्किंसंस रोग को न्यूरॉन कोशिकाओं में लगातार गिरावट से पहचाना जाता है जिससे हमारे शरीर में डोपामाइन (न्यूरोट्रांसमीटर) के स्तर में काफी कमी आ जाती है। एल-डोपा एक रसायन है जो हमारे शरीर में डोपामाइन में परिवर्तित हो जाता है, इसलिए यह एंटी-पार्किंसंस दवाओं के रूप में कार्य करता है।

यह डोपामाइन की कमी को पूरा करने में मदद करता है। जब तक शरीर को एल-डोपा की सही मात्रा दी जाती है, तब तक यह रोग नियंत्रण में रहता है। हालांकि, पार्किंसंस की प्रगामी प्रकृति के कारण, जैसे-जैसे रोगी की उम्र बढ़ती है, न्यूरॉन्स की निरंतर हानि को पूरा करने के लिए अधिक एल-डोपा की आवश्यकता होती है।

हालांकि, एल-डोपा की अधिक मात्रा से रोगी में डिस्केनेसिया, गैस्ट्राइटिस, साइकोसिस, पैरानोया ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन जैसे गंभीर दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, जबकि एल-डोपा की बहुत कम मात्रा से पार्किंसंस के लक्षण वापस आ सकते हैं।

इस रोग की चिकित्सा में एल-डोपा के अधिकतम स्तर की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, जैविक तरल पदार्थों में एल-डोपा की निगरानी के लिए एक सरल, किफायती, संवेदनशील और त्वरित विधि विकसित करने की आवश्यकता है।

अभी हाल में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उन्नत अध्ययन संस्थान (आईएएसएसटी) ने जैविक नमूनों में एल-डोपा के निम्न स्तर का तुरंत पता लगाने के लिए फ्लोरोसेंस टर्न-ऑन मैकेनिज्म का उपयोग करते हुए एक किफायती, उपयोगकर्ता के अनुकूल, पोर्टेबल स्मार्टफोन-आधारित ऑप्टिकल सेंसर प्रणाली विकसित की है।

सेंसर को कम ग्रेफीन ऑक्साइड नैनोकणों की सतह पर बॉम्बेक्स मोरी सिल्क कोकून से प्राप्त किए गए सिल्क-फाइब्रोइन प्रोटीन नैनो-लेयर की कोटिंग करके बनाया गया है। यह प्रणाली उत्कृष्ट फोटोलुमिनेसेंस गुणों के साथ कोर-शेल ग्रेफीन-आधारित क्वांटम डॉट्स का निर्माण करती है, जो इसे 5 μM से 35 μM की रैखिक सीमा के अंदर रक्त प्लाज्मा, पसीने और मूत्र जैसे वास्तविक नमूनों में एल-डोपा का पता लगाने के लिए एक प्रभावी फ्लोरोसेंट टर्न-ऑन सेंसर जांच बनाती है। समतुल्‍य पहचान सीमा का निर्धारण क्रमशः 95.14 एनएम, 93.81 एनएम और 104.04 एनएम किया गया है।

शोधकर्ताओं ने एक स्मार्टफोन-आधारित इलेक्ट्रॉनिक उपकरण तैयार किया है जिसमें एक इलेक्ट्रिक सर्किट 5 वी स्मार्टफोन चार्जर द्वारा संचालित 365 एनएम एलईडी से जुड़ा है। पूरे सेटअप को बाहरी प्रकाश से अलग करने के लिए एक अंधेरे कक्ष में रखा जाता है। यह सरल, किफायती और त्वरित स्क्रीनिंग उपकरण उन्नत उपकरणों की कमी वाले दूरदराज के क्षेत्रों में मौके पर ही विश्लेषक का पता लगाने के लिए महत्वपूर्ण है।

रोगी के जैविक नमूनों में यह पता चलने पर कि क्या एल-डोपा का स्तर कम है, यह सेंसर रोग के प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक खुराक को समायोजित करने में मदद कर सकता है।

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केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और रसायन एवं उर्वरक मंत्री जेपी नड्डा ने नई दिल्ली में ‘प्रथम नीति निर्माता फोरम’ का उद्घाटन किया

 केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तथा रसायन एवं उर्वरक मंत्री श्री जे.पी.नड्डा ने आज यहां ‘प्रथम नीति निर्माता फोरम’ का उद्घाटन किया, जो 22 अगस्त 2024 तक चलेगा। वैश्विक फार्मास्युटिकल क्षेत्र में भारत की स्थिति को ऊंचा करने के लिए, भारतीय फार्माकोपिया आयोग (आईपीसी) ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के सहयोग से 15 देशों के नीति निर्माताओं और दवा नियामकों के एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल की मेजबानी की। फोरम में फार्माकोपिया और दवा सुरक्षा निगरानी के लिए नवीन डिजिटल प्लेटफॉर्म का शुभारंभ किया गया।

भारतीय फार्माकोपिया (आईपी) की वैश्विक मान्यता का विस्तार करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए, मंच में बुर्किना फासो, इक्वेटोरियल गिनी, घाना, गुयाना, जमैका, लाओ पीडीआर, लेबनान, मलावी, मोज़ाम्बिक, नाउरू, निकारागुआ, श्रीलंका, सीरिया, युगांडा और जाम्बिया सहित विभिन्न देशों की भागीदारी देखी गई। मंच का उद्देश्य आईपी की मान्यता और भारत की प्रमुख प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) के कार्यान्वयन पर सार्थक चर्चा को बढ़ावा देना है, जिसे जनऔषधि योजना के रूप में जाना जाता है।

कार्यक्रम में भाग लेने वाले लैटिन अमेरिकी, अफ्रीकी, दक्षिण पूर्व एशियाई और प्रशांत क्षेत्रों के दवा नियामक प्राधिकरणों और स्वास्थ्य मंत्रालयों के प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए, श्री जे पी नड्डा ने कहा कि “यह मंच सुरक्षा, प्रभावकारिता पर विचारों का आदान-प्रदान करने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करेगा।” और भाग लेने वाले देशों के बीच चिकित्सा फार्मास्युटिकल उत्पादों की गुणवत्ता यह सुनिश्चित करेगी कि हम रोगियों के लाभ के लिए उच्चतम मानकों को बनाए रखें। उन्होंने कहा, ”भारत की पहचान लंबे समय से ‘दुनिया की फार्मेसी’ के रूप में की गई है। हमें गर्व है कि हमारी जेनेरिक दवाएं मलेरिया, एचआईवी-एड्स और तपेदिक जैसी बीमारियों के इलाज में मदद करती हैं जिन्हें आमतौर पर विकासशील देशों की स्वास्थ्य समस्याएं माना जाता है।

इन बीमारियों के उन्मूलन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए, श्री नड्डा ने कहा कि “यह योगदान वैश्विक स्वास्थ्य के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और विकासशील देशों में स्वास्थ्य सेवा अंतर को पाटने में इसकी जिम्मेदारी को रेखांकित करता है”। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि “चूंकि एचआईवी-एड्स के लिए दवाएं देना बहुत महंगा है और यह विकासशील देशों के लिए बोझ बन गया है, इसलिए भारतीय निर्माता आगे आए और प्रभावी और सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया।”

नड्डा ने आगे कहा कि “भारत हमेशा टीकों के उत्पादन और आपूर्ति में विश्व में अग्रणी रहा है, जो टीकों की वैश्विक आपूर्ति में लगभग 60 प्रतिशत का योगदान देता है।” उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन अपनी वैक्सीन मांग का 70 प्रतिशत भारत से खरीदता है। उन्होंने कहा, “कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत ने वैक्सीन मैत्री कार्यक्रम के तहत दुनिया भर के कई देशों को कोविड-19 टीकों की आपूर्ति की। यह बिना किसी भेदभाव के मानवता की सेवा करने की भारत की प्रतिबद्धता को उजागर करता है”।

श्री नड्डा ने टिप्पणी की, “भारत ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण को मूर्त रूप देते हुए विभिन्न पहलों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोगों के माध्यम से वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति और फार्मास्युटिकल नेतृत्व में उल्लेखनीय प्रगति की है।” प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, भारत ने जन औषधि योजना सहित कई प्रमुख पहल शुरू की हैं। इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश भर में जन औषधि केंद्र स्थापित करके समाज के सभी वर्गों, विशेषकर वंचितों को उच्च गुणवत्ता वाली दवाएं उपलब्ध कराना है। ये केंद्र गुणवत्ता से समझौता किए बिना, अधिक किफायती कीमतों पर ब्रांडेड दवाओं के समान गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवाएं प्रदान करते हैं। इस योजना के माध्यम से आपूर्ति की जाने वाली सभी दवाएं भारतीय फार्माकोपिया द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा करती हैं। भारत में इस पहल की सफलता एक ऐसे मॉडल के रूप में खड़ी है जिसे अन्य देशों द्वारा किफायती स्वास्थ्य देखभाल तक वैश्विक पहुंच में सुधार के लिए अपनाया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त, भारत सरकार ने दवाओं और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने के लिए कई पहल शुरू की हैं। उदाहरण के लिए, आयुष्मान भारत योजना दुनिया का सबसे बड़ा सरकारी फंडेड स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम है, जो 6,000 अमेरिकी डॉलर की लागत पर 500 मिलियन से अधिक लोगों को आश्वासन और बीमा कवरेज प्रदान करता है। प्रधान मंत्री के नेतृत्व में, यह योजना “समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लिए स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने की हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है”।

कार्यक्रम में भाग लेने वाले लैटिन अमेरिकी, अफ्रीकी, दक्षिण पूर्व एशियाई और प्रशांत क्षेत्रों के दवा नियामक प्राधिकरणों और स्वास्थ्य मंत्रालयों के प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए, श्री जे पी नड्डा ने कहा कि “यह मंच सुरक्षा, प्रभावकारिता पर विचारों का आदान-प्रदान करने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करेगा” और भाग लेने वाले देशों के बीच चिकित्सा फार्मास्युटिकल उत्पादों की गुणवत्ता यह सुनिश्चित करेगी कि हम रोगियों के लाभ के लिए उच्चतम मानकों को बनाए रखें। उन्होंने कहा, ”भारत की पहचान लंबे समय से ‘दुनिया की फार्मेसी’ के रूप में की गई है। हमें गर्व है कि हमारी जेनेरिक दवाएं मलेरिया, एचआईवी-एड्स और तपेदिक जैसी बीमारियों के इलाज में मदद करती हैं जिन्हें आमतौर पर विकासशील देशों की स्वास्थ्य समस्याएं माना जाता है।

फार्मास्यूटिकल्स विभाग के सचिव डॉ. अरुणीश चावला ने कहा कि, “एक वैश्विक प्रवृत्ति उभर रही है क्योंकि मरीज़ तेजी से जेनेरिक दवाओं का विकल्प चुन रहे हैं। जेनेरिक दवाएं डब्ल्यूएचओ मानकों और प्रथाओं के समकक्ष नियामक मानकीकरण का पालन करती हैं और ब्रांडेड दवाओं की तुलना में कम से कम 50 से 90 प्रतिशत सस्ती होती हैं। दुनिया में जेनेरिक दवाओं की ओर बढ़ने की भावना बढ़ रही है।” जनऔषधि कार्यक्रम की सफलता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि, “सिर्फ 10 वर्षों की छोटी सी अवधि में, जेनेरिक दवाओं के कारण अपनी जेब से खर्च में 40% से अधिक की गिरावट आई है, जो जन आरोग्य कार्यक्रम की सफलता का प्रमाण है और देश के कोने-कोने में 10,000 से ज्यादा जनऔषधि केंद्र चल रहे हैं। जन आरोग्य एक सामाजिक सेवा है जिसे हम दुनिया के अन्य हिस्सों में अन्य देशों की मदद के लिए पेश करना चाहते हैं जहां स्वास्थ्य देखभाल व्यय एक प्रमुख चिंता का विषय है।

इस आयोजन का मुख्य आकर्षण माननीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और रसायन और उर्वरक मंत्री द्वारा दो महत्वपूर्ण डिजिटल प्लेटफार्मों- आईपी ऑनलाइन पोर्टल और प्रतिकूल दवा प्रतिक्रिया निगरानी प्रणाली (एडीआरएमएस) सॉफ्टवेयर। आईपी ऑनलाइन पोर्टल भारतीय फार्माकोपिया को डिजिटल बनाने की दिशा में एक बड़े कदम का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे दवा मानकों को दुनिया भर के हितधारकों के लिए अधिक सुलभ बनाया जा सके। यह पहल ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान के तहत पर्यावरण के अनुकूल समाधानों को बढ़ावा देने की भारत सरकार की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।

भारत के फार्माकोविजिलेंस कार्यक्रम के हिस्से के रूप में विकसित एडीआरएमएस सॉफ्टवेयर, भारतीय आबादी की जरूरतों के अनुरूप भारत का पहला स्वदेशी चिकित्सा उत्पाद सुरक्षा डेटाबेस है। यह दवाओं और चिकित्सा उपकरणों से संबंधित प्रतिकूल घटनाओं के संग्रह और विश्लेषण की सुविधा प्रदान करता है, जिससे देश के फार्माकोविजिलेंस बुनियादी ढांचे को काफी मजबूती मिलती है। यह सॉफ़्टवेयर न केवल रिपोर्टिंग प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करता है, बल्कि उपभोक्ताओं और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को सीधे प्रतिकूल घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए सशक्त बनाता है, जिससे सुरक्षा जानकारी का अधिक व्यापक कैप्चर सुनिश्चित होता है।

इन डिजिटल पहलों से दवा सुरक्षा निगरानी और मानकों के अनुपालन की पहुंच और दक्षता में वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे वैश्विक फार्मास्युटिकल परिदृश्य में एक नेता के रूप में भारत की स्थिति को और बढ़ावा मिलेगा।

इन डिजिटल प्लेटफार्मों का सफल लॉन्च और नीति निर्माताओं के फोरम में चल रही चर्चाएं यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार के निरंतर प्रयासों को दर्शाती हैं कि भारतीय फार्माकोपिया और स्वास्थ्य देखभाल मानकों को दुनिया भर में मान्यता और सम्मान मिले। यह फार्मास्युटिकल क्षेत्र में वैश्विक नेता के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करता है, जो सहयोग, नवाचार और नेतृत्व के माध्यम से वैश्विक स्वास्थ्य में सुधार के लिए प्रतिबद्ध है।

आज आयोजित फोरम सत्र के दौरान, विदेशी प्रतिनिधियों ने चिकित्सा उत्पादों की सुरक्षा, प्रभावकारिता और गुणवत्ता पर अपने भारतीय समकक्षों के साथ गहन चर्चा की। फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने जनऔषधि योजना पर केंद्रित चर्चा का नेतृत्व किया, जिसमें यह पता लगाया गया कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सस्ती दवाओं तक पहुंच में सुधार के लिए इस पहल को कैसे अपनाया जा सकता है, जो वैश्विक स्वास्थ्य समानता के लिए भारत की प्रतिबद्धता को और प्रदर्शित करता है।

यात्रा के हिस्से के रूप में, प्रतिनिधियों को आगरा में एक जन औषधि केंद्र का पता लगाने का कार्यक्रम है, जिससे सस्ती स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के भारत के प्रयासों की प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त होगी। वे हैदराबाद में जीनोम वैली में अत्याधुनिक वैक्सीन और दवा विनिर्माण सुविधाओं और अनुसंधान केंद्रों का भी दौरा करेंगे, जो दवा उत्पादन में भारत की क्षमताओं और वैश्विक स्वास्थ्य मानकों को आगे बढ़ाने के प्रति समर्पण की व्यापक समझ प्रदान करेंगे।

डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी, औषधि महानियंत्रक (भारत) और सचिव-सह-वैज्ञानिक निदेशक, आईपीसी; श्री राजीव वधावन, संयुक्त सचिव, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय; कार्यक्रम के दौरान विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री रोहित रथीश और केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा एमपॉक्स को अंतर्राष्ट्रीय चिंता के रूप में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किए जाने के मद्देनजर एमपॉक्स की स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए हैं

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एमपॉक्स की स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सलाह के अनुसार, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी.के. मिश्रा ने देश में एमपॉक्स को लेकर तैयारियों की स्थिति और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी उपायों की समीक्षा के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता की।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अफ्रीका के कई हिस्सों में इसके व्यापक प्रसार को देखते हुए 14 अगस्त, 2024 को एमपॉक्स को फिर से अंतर्राष्ट्रीय चिंता और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (पीएचईआईसी) घोषित किया है। डब्ल्यूएचओ के एक पूर्व वक्तव्य के अनुसार, 2022 से वैश्विक स्तर पर 116 देशों से एमपॉक्स के कारण 99,176 मामले और 208 मौतें दर्ज की गई थीं। इसके बाद, उन्होंने बताया है कि कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में एमपॉक्स के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। पिछले साल, रिपोर्ट किए गए मामलों में काफी वृद्धि हुई और इस साल अब तक दर्ज किए गए मामलों की संख्या पिछले साल की कुल संख्या से अधिक हो गई है, जिसमें 15, 600 से अधिक मामले और 537 मौतें शामिल हैं। डब्ल्यूएचओ द्वारा 2022 में अंतर्राष्ट्रीय चिंता से जुड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किए जाने के बाद से भारत में 30 मामले सामने आए हैं। एमपॉक्स का आखिरी मामला मार्च 2024 में पता चला था।

उच्चस्तरीय बैठक में बताया गया कि अभी तक देश में एमपॉक्स का कोई मामला सामने नहीं आया है। वर्तमान आकलन के अनुसार, निरंतर संक्रमण के साथ बड़े प्रकोप का जोखिम कम है।

प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव को बताया गया कि एमपॉक्स संक्रमण आम तौर पर अपने-आप में 2-4 सप्ताह तक चलने वाला संक्रमण है; एमपॉक्स के मरीज आमतौर पर सहायक चिकित्सा देखभाल और प्रबंधन से ठीक हो जाते हैं। एमपॉक्स से संक्रमित मरीज के साथ लंबे समय तक और निकट संपर्क के माध्यम से इसका संक्रमण होता है। यह मुख्य रूप से यौन मार्ग, मरीज के शरीर/घाव द्रव के साथ सीधे संपर्क या संक्रमित व्यक्ति के दूषित कपड़ों/लिनन के माध्यम से होता है।

स्वास्थ्य सचिव ने बताया कि पिछले एक सप्ताह में निम्नलिखित कदम उठाए जा चुके हैं:

o भारत के लिए जोखिम का आकलन करने के लिए 12 अगस्त, 2024 को राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) द्वारा विशेषज्ञों की एक बैठक बुलाई गई थी।

o एनसीडीसी द्वारा पहले जारी किए गए एमपॉक्स पर एक संक्रामक रोग (सीडी) अलर्ट को नए घटनाक्रमों का पता लगाने के लिए अद्यतन किया जा रहा है।

o अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों (प्रवेश के बंदरगाहों) पर स्वास्थ्य टीमों को संवेदनशील बनाया गया है।

यह भी बताया गया कि आज सुबह महानिदेशक स्वास्थ्य सेवा (डीजीएचएस) द्वारा 200 से अधिक प्रतिभागियों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस बुलाई गई थी। इस संबंध में राज्यों में एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) इकाइयों और प्रवेश के बंदरगाहों आदि सहित राज्य स्तर पर स्वास्थ्य अधिकारियों को संवेदनशील बनाया गया।

प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी. के. मिश्रा ने निर्देश दिया कि निगरानी बढ़ाई जाए और मामलों का शीघ्र पता लगाने के लिए प्रभावी उपाय किए जाएं। उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि प्रारंभिक निदान के लिए परीक्षण प्रयोगशालाओं के नेटवर्क को तैयार किया जाना चाहिए। वर्तमान में 32 प्रयोगशालाएं परीक्षण के लिए सुसज्जित हैं।

डॉ. पी.के. मिश्रा ने निर्देश दिया कि बीमारी की रोकथाम और उपचार के लिए प्रोटोकॉल बड़े पैमाने पर प्रसारित किए जा सकते हैं। इसके बाद उन्होंने स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच बीमारी के संकेतों और लक्षणों के बारे में जागरूकता अभियान एवं निगरानी प्रणाली को समय पर सूचित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

नीति के सदस्य डॉ. वी.के. पॉल, सचिव (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण) श्री अपूर्व चंद्रा, सचिव (स्वास्थ्य अनुसंधान) डॉ. राजीव बहल, सदस्य सचिव (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) श्री कृष्ण एस वत्स, सचिव (सूचना एवं प्रसारण) श्री संजय जाजू और मनोनीत गृह सचिव श्री गोविंद मोहन और अन्य मंत्रालयों के अधिकारियों ने बैठक में हिस्सा लिया।

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अंगदान मानव स्वभाव का सर्वोच्च नैतिक उदाहरण है – उपराष्ट्रपति

भारत के उपराष्ट्रपति, श्री धनखड़ ने आज अंगदान की गहन महत्वपूर्णता को उजागर करते हुए इसे “एक आध्यात्मिक गतिविधि और मानव स्वभाव की सर्वोच्च नैतिक अभिव्यक्ति” के रूप में वर्णित किया। उन्होंने कहा कि अंगदान केवल शारीरिक उदारता से परे जाता है और करुणा और निःस्वार्थता के गहरे गुणों को दर्शाता है।

जयपुर में आज जैन सोशल ग्रुप्स (JSG) सेंट्रल संथान और दधीचि देहदान समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अंगदाता परिवारों को सम्मानित करते हुए उपराष्ट्रपति ने नागरिकों से अंगदान की दिशा में सचेत प्रयास करने का आह्वान किया, इसे मानवता की सेवा की महान परंपरा से जोड़ते हुए एक मिशन बनाने की बात की।
विश्व अंगदान दिवस की थीम “Be the Reason for Someone’s Smile Today” पर प्रकाश डालते हुए श्री धनखड़ ने सभी से आह्वान किया है कि वे अपने समाज की परंपरा को कायम रखते हुए अंगदान को भी इसी भावना से जोड़ें। उन्होंने कहा, “आप ऐसे समाज के सदस्य हैं जो हर मौके पर हर किसी की मुस्कान का कारण बनते हैं। इस अवसर को भी इस भावना से जोड़ें और संकल्प लें कि हर सप्ताह आप कुछ ऐसा करेंगे जिससे आपका व्यक्तिगत और पारिवारिक योगदान अंगदान के इस पवित्र कारण में शामिल हो सके।”

प्राचीन ज्ञान, “इदम् शरीरम् परमार्थ साधनम्!” का उद्धरण देते हुए, श्री धनखड़ ने मानव शरीर की महत्ता को व्यापक सामाजिक भलाई के साधन के रूप में रेखांकित किया और कहा कि यह शरीर समाज के व्यापक कल्याण के लिए एक उपकरण बन सकता है।
प्रतिभाशाली व्यक्तियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए जो योगदान करने की मजबूत इच्छा से प्रेरित हैं लेकिन एक महत्वपूर्ण अंग की कमी के कारण पीछे रह जाते हैं, उपराष्ट्रपति ने कहा, “जब आप उनकी मदद करते हैं, तो हम उन्हें समाज के लिए एक बोझ से बदलकर एक संपत्ति बना देंगे,” जो अंग दान के महत्व को रेखांकित करता है।

अंग दान में बढ़ते ‘व्यावसायीकरण के वायरस’ पर चिंता व्यक्त करते हुए, श्री धनखड़ ने जोर दिया कि अंगों को आर्थिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए सोचकर दान किया जाना चाहिए। चिकित्सा पेशे को “दैवीय व्यवसाय” के रूप में संदर्भित करते हुए और कोविड महामारी के दौरान ‘स्वास्थ्य योद्धाओं’ की निःस्वार्थ सेवा को उजागर करते हुए, उन्होंने कहा कि चिकित्सा पेशे में कुछ व्यक्ति अंग दान के महान स्वभाव को कमजोर करते हैं। उन्होंने कहा, “हम अंग दान को कमजोर लोगों के शोषण का क्षेत्र नहीं बनने दे सकते जो चालाक तत्वों के व्यावसायिक लाभ के लिए हो।”
उपराष्ट्रपति ने भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर की याद दिलाते हुए, सभी से आग्रह किया कि वे हमारे शास्त्रों और वेदों में निहित ज्ञान पर विचार करें, जो ज्ञान और मार्गदर्शन का विशाल भंडार हैं।
लोकतंत्र में राजनीतिक भिन्नताओं को मान्यता देने के महत्व को रेखांकित करते हुए, श्री धनखड़ ने चेतावनी दी कि ये भिन्नताएँ राष्ट्रीय हित पर कभी भी हावी नहीं होने चाहिए। उन्होंने युवाओं को लोकतंत्र के प्रति पिछले खतरों, विशेषकर आपातकाल के दौरान, और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचने के लिए सतर्कता की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला।
उपराष्ट्रपति ने आज कहा कि कुछ लोग मानते हैं कि आपातकाल का काला अध्याय चुनावों के बाद समाप्त हो गया है, लेकिन ऐसा नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा, “आपातकाल के दौरान हुए अत्याचारों को याद रखना आवश्यक है। इसी उद्देश्य से भारत सरकार ने ‘संविधान हत्या दिवस’ की पहल की है, ताकि हमारी नई-पीढ़ी को यह पता चल सके कि एक ऐसा कालखंड था जब उनके मौलिक अधिकार नहीं थे और सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए थे।”
अपने संबोधन में, श्री धनखड़ ने विशेष रूप से कॉर्पोरेट्स, व्यापार संघों, और व्यापार नेताओं से स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने और आयात को केवल उन वस्तुओं तक सीमित करने का आह्वान किया जो अत्यावश्यक हैं।

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