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Bharatiya Swaroop

भारतीय स्वरुप एक हिंदी दैनिक समाचार पत्र है। सम्पादक मुद्रक प्रकाशक अतुल दीक्षित (published from Uttar Pradesh, Uttrakhand & maharashtra) mobile number - 9696469699

बात इतनी बड़ी नही होती जितनी हम उसे बना लेते है

दोस्तों कई बार बात इतनी बड़ी नही होती जितनी हम उसे बना लेते है।कई बार तो ऐसा होता है इन्हीं छोटी छोटी बातों के कारण लोग अपना रिश्ता ही बिगाड़ या ख़त्म कर बैठते है। फिर वो बात सारी ज़िन्दगी नासूर बन कर दिल को चुंबती रहती है क्यूँकि किसी भी बात को सही वक़्त पर टाल कर ,माफ़ कर ,या भूल कर,ख़त्म कर उसे यकीनन ही सुन्दर अंजाम दिया जा सकता था।

दोस्तों आज कुछ शेयर करना चाहूँगी शायद किसी के काम आ सकता है।ये बात उन दिनों की है जब हमारी फ़ैक्ट्री हुआ करती थी जहां कपड़ा बनाया जाता था वहाँ बहुत से वर्कर मिलजुल कर काम किया करते थे।इक घर जैसा माहौल था। सब अपना काम करते और हफ़्ते के अन्त में अपनी तनख़्वाह ले कर वीकेंड ख़ुशी ख़ुशी मनाते। बहुत चहल पहल के दिन हुआ करते थे। इक बड़ी उम्र के बुजुर्ग भी वहां काम किया करती थी।मेरी आदत है अगर मेरे पास या मेरे सामने कोई उदासी में बैठा हो तो मैं रह नहीं पाती अकसर पूछ ही लेती हूँ !कि वो ऐसे कयू बैठे हैं? कई दिनों से वो बुजुर्ग उदास दिख रही थीं।एक दिन मुझ से रहा न गया और मैं अपनी आदत के अनुसार उनके पास गई और उनका हाथ अपने हाथ में लिया और धीरे-धीरे सहलाने लगी और पूछ ही लिया कि
कंयू चुप है आप?
क्या बात है ?
पहले तो उन्होंने टालने की कोशिश की,मगर मेरे बार बार पूछने पर कहने लगी।
बेटा क्या बताऊँ !
मेरा पोता अगले हफ़्ते शादी कर रहा है हम उस लड़की को या उसके घर वालों को जानते भी नहीं। हमारी जात बिरादरी की भी नहीं ,किसी गोरी “इंग्लिश लड़की “से शादी कर रहा है।मेरे पोते ने कोर्ट मैरिज अगले हफ़्ते करनी है सब घर वाले बहुत नाराज़ हैं कोई शादी पर नहीं जा रहा और मुझे भी जाने से मना कर रहे हैं ।घर में बहुत लड़ाई झगड़ा हो रहा है।मेरा बेटा ने सब को कह दिया ..कोई शादी में नहीं जायेगा। और बताने लगी कि मेरा पोता जो हमेशा मेरे बेहद क़रीब रहा है कहता है कि बीज़ी कोई आये न आये ,आप ज़रूर आना मेरी शादी में।हालाँकि मैं भी सख़्त नाराज़ हूँ उससे ।इसी सोच में हूँ क्या किया जाए।उसने कैसे बिना कुछ किसी को बताये सब तय कर लिया।घर में हर वक़्त क्लेश है।मैंने दोनों पहलुओं को समझते हुए कहा
आंटी बात को समझो तो कुछ भी नहीं ,बढ़ा लो ,तो बहुत कुछ है । हम बड़ो पर निर्भर करता है कि हम क्या और कैसी प्रतिक्रिया देते है मैंने कहा अगर आप चाहते हैं कि आप का पोता हमेशा आप की इज़्ज़त करें प्यार करें तो आप को उसके फ़ैसले को मान लेना चाहिए ।उसके साथ खड़े हो जाये ,अगर नहीं मानोगे शादी तो वैसे भी कर ही लेगा। रहना भी उन दोनों को ही है सारी उम्र साथ ।अगर वो ख़ुश है तो आप क्यों अड़चन डाल रहे हैं ।ख़ुशी ख़ुशी उनकी झोली में खुद से ख़ुशीया डाल दे ।हमेशा दिल से आप का सम्मान करेगा ।
अगर नहीं मानेंगे तो आप अपना पोता हमेशा के लिये खो देंगी और आप का बेटा अपना बेटा .. आप घर के बड़े है अगर आप राज़ी हो जाये और सब को हुक्म दे तो सब ठीक हो सकता है पहले तो वो घबराईं कि मेरी कौन सुनेगा ।जैसे तैसे कर मैंने उन्हें समझाया बुझाया कि आप ही कर सकते है आगे हो कर अपना फ़ैसला पोते के हक़ में दे और सब को कहे कि हम सब शादी में जायेंगे ।चलो उस दिन तो बात ख़त्म हो गई मैं अपने काम में बीज़ी हो गई वो अपने ,और मेरे दिमाग़ से बात भी निकल गई।हफ़्ते के बाद इक दिन मैंने देखा वो फ़ैक्ट्री में बड़ा सा मिठाई का डिब्बा और अपने बेटे के साथ मेरे पास आईं।मैंने कहा आंटी ये किस ख़ुशी में ।तब उन्होंने कहा हमारे पोते की शादी का मीठा ले कर आई हूँ जैसे तुमने मुझे कहा था न !!
मैंने ठीक वैसे ही किया सब को समझाया और सब फिर शादी पर जाने के लिए तैयार हो गये ।इतनी रौनक़ थी कि क्या बताऊँ।सब ख़ुश थे और मेरा पोता भी और मेरा बेटा भी।ख़ूब नाचे खूब हंसे ,सालों के बाद सारा परिवार मे ख़ुशी क
का माहौल था ।पोता भी ख़ुश था और नई नवेली दुल्हन भी ।फिर अचानक से
उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और मेरे सिर पर हाथ रख कर धीरे से मेरे कान मे बोली ..ये सब तेरी वजह से हुआ है तुमने जैसा कहा था न ,ठीक मैंने वैसे ही किया और बोली अगर तुम मुझे न समझाती तो मैं और मेरा परिवार इस ख़ुशी से महरूम रह जाते। ख़ैर मुझे तो पता था कि रब के तरीक़े होते है कुछ भी करने के ।जोड़ियों तो पहले ही बनी होती है क्या मैं या क्या कोई और ,इसके क्षेय का हक़दार हो सकते है ।बस ज़रिये बना देता है किसी न किसी को .. हम सब बहुत खुश हुए और सारी फ़ैक्ट्री में मिठाई बाँटी गई और उनकी ख़ुशी चौगुनी हो गई और मैं उनका चेहरा देख रही थी आँखे ख़ुशी से नम थीं और चेहरे पर संतोष के भाव।

दोस्तों अब इस हालात में दो बातें हो सकती थी ।या तो वो सारा परिवार अपनी अहम के कारण या कह लें पुराने सोच के कारण ,इस शादी में न जा कर बच्चों से सारे रिश्ते तोड़ लेते ,और अपना पोते को सदा के लिए खो सकते थे ..दूसरा रास्ता जो उन्होंने अपनाया।आज उनका पोता भी ख़ुश और बेटा भी ख़ुश और पूरा परिवार भी। किसी चीज़ को, रिश्तो को तोड़ना बेहद आसान है जोड़े रखना ही मुश्किल।बडो की समझदारी का एक कदम ,एक फ़ैसला बहुत सी बातो को सुलझा सकता है मगर कभी-कभी बड़े बुजुर्ग अपनी बात किसी कारण वंश नही कह पाते तो परिणाम निःसन्देह दुख देह बन सकता है।

इक ग़लत फ़ैसला हमें अपनों से दूर कितनी दूर कर सकता है इस बात का अंदाज़ा आप मुझ से बेहतर लगा सकते है। 🙏

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आजादी के 75 वीं सालगिरह के उपलक्ष्य में विधि एवं न्याय मंत्रालय भारत सरकार व राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम प्रत्येक जिला स्तर पर मनाने हेतु दिशा-निर्देश दिये गये

कानपुर 15 अक्टूबर, प्रभारी सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, कानपुर नगर श्रद्धा त्रिपाठी ने बताया है कि भारत की आजादी के 75 वीं सालगिरह के उपलक्ष्य में विधि एवं न्याय मंत्रालय भारत सरकार व राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम प्रत्येक जिला स्तर पर दिनांक 02 अक्टूबर, 2021 से 14 नवम्बर, 2021 तक मनाने हेतु दिशा-निर्देश दिये गये हैं। माननीय जनपद न्यायाधीश/अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, कानपुर नगर के निर्देशन पर आज जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, कानपुर नगर एवं एन्टी क्राइम ब्यूरो (रजि0) के संयुक्त तत्वाधान में वाहनों द्वारा कानपुर नगर के क्षेत्र रोशन नगर, मसवानपुर, रावतपुर, कल्यानपुर, काकादेव, गीतानगर, नमक फैक्ट्री, छपेड़ा पुलिया, विजय नगर, शास्त्री नगर पाण्डू नगर, लाजपत नगर, गुमटी, फजलगंज, जरीब चौकी, आर्य नगर, स्वरूप नगर, मोतीझील, तिलक नगर, ग्वालटोली, बिरहाना रोड, भूसा टोली, झाड़ी बाबा का पड़ाव, ईदगाह क्षेत्र में भ्रमण कर आम जनमानस को पैम्पलेट्स वितरित कर विधिक जानकारी दी गयी। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के पैनल अधिवक्ता द्वारा बिरहाना रोड, फीलखाना, कैनाल रोड, हरबंश मोहाल, जनरलगंज, एक्सप्रेस रोड, रोटी गोदाम तथा आंगनबाड़ी कार्यकत्री आशा बहुओं द्वारा ग्रामीण स्तर पर आम जनमानस को विधिक सेवा से सम्बन्धित पैम्पलेट्स बांटकर जागरुक किया गया।
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आजादी के 75 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मा0 जनपद न्यायाधीश/अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्देशन में जिला कारागार, कानपुर नगर में हेडक्वार्टर स्तर पर विधिक जागरुकता शिविर आयोजित

कानपुर 13 अक्टूबर, (सू0वि0) प्रभारी सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, कानपुर नगर, श्रद्धा त्रिपाठी ने बताया है कि भारत की आजादी के 75 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मा0 जनपद न्यायाधीश/अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्देशन में आज जिला कारागार, कानपुर नगर में हेडक्वार्टर स्तर पर विधिक जागरुकता शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा उपस्थित बन्दियों को विधिक जानकारी से अवगत कराया गया।
उन्होंने बताया है कि पराविधिक स्वयं सेवकगण द्वारा भी आज चावल मण्डी, पनकी पावर प्लान्ट में मजदूरों को, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सरसौल, कर्नलगंज, कुरियाना, चुटियाना, बजरिया, मसवानपुर एवं दलेलपुरवा में विधिक सेवा गतिविधियों से आम जनमानस को जागरुक किया गया व मौके पर ही विधिक जानकारी से संबंधित पम्फलेट बॉटे गये।
श्रद्धा त्रिपाठी ने यह भी बताया है कि कल 14 अक्टूबर को शासकीय अधिकारियों, आशा कार्यकत्री, आगंनवाडी व क्षेत्रीय ग्राम प्रधान के सहयोग से सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर जाकर उत्तर प्रदेश शासन की जनहित में संचालित विभिन्न योजनाओं से अवगत कराया जायेगा एवं पम्फलेट वितरित कर अधिक से अधिक लोगों को विधिक जानकारी दी जायेगी ताकि वे जानकारी हासिल कर लाभ उठा सके।
उल्लेखनीय है कि भारत की आजादी के 75 वीं सालगिरह के उपलक्ष्य में विधि एवं न्याय मंत्रालय भारत सरकार व राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम प्रत्येक जिला स्तर पर 02 अक्टूबर, 2021 से 14 नवम्बर, 2021 तक मनाने हेतु दिशा निर्देश दिये गये है।
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निर्वाचन क्षेत्र के लिये विनिर्दिष्ट मतदान स्थलों की मतदान क्षेत्रों या मतदाता समूहों की व्यवस्था

कानपुर, 13 अक्टूबर, (सू0वि0) जिला निर्वाचन अधिकारी विशाख जी. ने बताया है लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा -25 के उपबन्धों के अनुसरण में भारत निर्वाचन आयोग के पूर्व अनुमोदन से संसदीय निर्वाचन क्षेत्र 32- मिश्रिख (अ0जा0) में समाविष्ट 209-बिल्हौर (अ0जा0), विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र, संसदीय निर्वाचन क्षेत्र 43–कानपुर में समाविष्ट 212–गोविन्द नगर, 213-सीसामऊ, 214-आर्यनगर, 215-किदवई नगर एवं 216-कानपुर कैन्टोनमेंट विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र तथा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र 44-अकबरपुर में समाविष्ट 210-बिठूर, 211-कल्यानपुर, 217-महराजपुर एवं 218-घाटमपुर (अ0जा0) विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के लिये विनिर्दिष्ट मतदान स्थलों की उनमें से प्रत्येक के समक्ष लिखे हुये मतदान क्षेत्रों या मतदाता समूहों के लिये व्यवस्था की जाती है।

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वर्षा, भू-जल संरक्षण की ‘‘खेत के ऊपर मेड़, मेड़ के ऊपर पेड़‘‘ विधि, मेड़बन्दी अपनाने से बढ़ रहा है भू-जल स्तर

कानपुर 12 अक्टूबर, (सूचना विभाग) भारतीय संस्कृति में पुरखों की सबसे पुरानी भू-जल संरक्षण विधि ’खेत के ऊपर मेड़, मेड़ के ऊपर पेड़’ वर्षा बूंदे जहॉ गिरे, वहीं रोंके। जिस खेत में जितना पानी होगा, खेत उतना अधिक उपजाऊ होगा। मानव जीवन की सभी आवश्यकताएं जल पर निर्भर है तभी तो जल ही जीवन कहा गया है। मनुष्य को जब से भोजन की आवश्यकता पड़ी होगी हमारे पुरखों ने भोजन का आविष्कार किया होगा। एक स्थान पर फसल उगाया गया होगा, फसलें पैदा की गई होगी। जमीन समतल कर खेती योग्य बनाया गया होगा। खाद्यान्न पैदा करने के लिए खेत का निर्माण तय हुआ होगा, तभी से मेड़बन्दी जैसी जल संरक्षण की विधि का आविष्कार हुआ होगा। यह हमारे देश के पुरखों की विधि है जिनसे खेत खलिहान का जन्म हुआ है। जिन्होंने जल संरक्षण की परम्परागत प्रमाणित सरल सर्वमान्य मेड़बन्दी विधि का आविष्कार किया है।

मेड़बन्दी से खेत में वर्षा का जल रूकता है, और भू-जल संचय होता है। इससे भू-जल स्तर बढ़ता है और गॉव की फसलों का जलभराव के कारण होने वाले नुकसान से बचाता है। भूमि के कटाव के कारण मृदा के पोषक तत्व खेत में ही बने रहते है, जो पैदावार के लिए आवश्यक है। नमी संरक्षण के कारण फसल सड़ने से खेत को परम्परागत जैविक खाद की ऊर्जा प्राप्त होती है। मेड़बन्दी से एक ओर जहॉ भूमि को खराब होने से बचाव होता है वहीं पशुओं को मेड़ पर शुद्ध चारा, भोजन प्राप्त होता है। इसे मेड़बन्दी, चकबन्दी, घेराबन्दी, हदबन्दी, छोटी मेड़बन्दी, बड़ी मेड़बन्दी तिरछी मेड़बन्दी सुविधानुसार जैसे अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। धान, गेहूॅ की फसल तो केवल मेड़बन्दी से रूके जल से ही होती है। हमारे देश के पूर्वज जल रोकने के लिए खेत के ऊपर मेड़, मेड़ के ऊपर फलदार, छायादार औषधीय पेड़ लगाते थे। जिसकी छाया खेत में फसल पर कम पड़े जैसे बेल, सहजन, सागौन, करौंदा, अमरूद, नीबू, बेर, कटहल, शरीफा के पेड़ लगाये जा सकते हैं। यह पेड़ इमारती लकड़ी आयुर्वेदिक औषधियों, फलों के साथ अतिरिक्त आय भी देती है। इन पेड़ों की छाया खेत में कम पड़ती है। इनके पत्तों से खेत को जैविक खाद मिलती है, पर्यावरण शुद्ध रहता है। मेड़ के ऊपर हमारे पुरखे अरहर, मूंग, उर्द, अलसी, सरसों, ज्वार, सन जैसी फसलें पैदा करते रहे हैं जिन्हें पानी कम चाहिए। जमीन सतह से ऊपर हो, मेड़ से अतिरिक्त उपज की फसल ले सकते हैं। मेड़बन्दी से उसर भूमि को उपजाऊ बनाया जा रहा है। जहॉ-जहॉ जल संकट है उसका एकमात्र उपाय है वर्षा जल को अधिक से अधिक खेत में मेड़बन्दी के माध्यम से रोकना चाहिए।
मेड़बन्दी के माध्यम से खेत में वर्षा जल रोकने के लिए देश के मा0 प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने देश भर के प्रधानों को पत्र लिख मेड़बन्दी कर खेत में वर्षा बूंदों को रोकने की अपील की है। प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि परम्परागत विधियों से भू-जल संरक्षण करें। जिससे हमारी भूजल सम्पदा बनी रहे। हमारे देश में बड़ी संख्या में तालाब, कुओं, निजी ट्यूबबेल के सिंचाई साधन होने के बावजूद भी कई हजारों हेक्टे0 भूमि की खेती वर्षा जल पर निर्भर है। वर्षा तो हर गॉव में होती है, वर्षा के भरोसे खेती होती है। खासकर बुन्देलखण्ड के इलाके में पहाड़ी, पठारी क्षेत्र के खेतों में मेड़बन्दी के माध्यम से जल रोककर उपजाऊ बनाया जा सकता है। किसान ड्रिप पद्धति, टपक पद्धति, फुहारा पद्धति किसी भी पद्धति से फसल की सिंचाई करें पानी तो सभी विधि को चाहिए। इसलिए जल संरक्षण जरूरी है।
सामुदायिक आधार पर जल संरक्षण की प्राचीन परम्परा हमारे देश में रही है, सिंचाई के दो ही साधन है या तो भू-जल या वर्षा जल। भू में जब जल होगा, तभी नवीन संसाधन चलेंगे। आज भूमिगत जल पर जबरदस्त दबाव है। भू-जल नीचे चला जा रहा है। इसलिए भूजल का संरक्षण मेंडबन्दी से किया जाय। समस्त सभ्यताएं जल पर निर्भर है, हम बादलों पर निर्भर हैं बादल चाहें तो बरसें या न बरसें। यदि वर्षा बूंदों को पकड़ना है तो मेड़बन्दी जरूरी है यह कोई बड़ी तकनीक नहीं है। चौड़ी ऊॅची मेड़ अपनी मेहनत और श्रम से खेत में बनाई जा सकती है। जिससे फसल की अच्छी पैदावार हो और भूजल स्तर भी बढ़े।
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बात बराबरी की

मैंने कहीं सुना था कि महिलाओं का नौकरी करना मतलब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना है मतलब कि उन्हें अपने पति के आगे हाथ ना फैलाना पड़े। तो इसमें गलत क्या है अगर महिला आर्थिक रूप से मजबूत हो रही है तो लाभ भी तो परिवार को ही मिल रहा है बल्कि स्त्री को परिवार का ज्यादा भार उठाना पड़ता है। बच्चों से लेकर घर के बड़े बुजुर्गों और घर की जरूरतों तक का ध्यान रखने की जिम्मेदारी महिला पर ज्यादा होती है। नौकरी से लौटकर जहाँ पति अखबार या टीवी में बिजी हो जाता है वहीं स्त्री को रसोई संभालनी पड़ती है। ऐसा नहीं कहूंगी कि आजकल इस मानसिकता में बदलाव नहीं आया है। यह बदलाव जरूर आया है कि आज की युवा पीढ़ी घर और बच्चे दोनों संभाल रही है। जरूरत ने उन्हें घरेलू बना दिया है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति परिवार का दुर्लक्ष होते नहीं देख सकता इसलिए समझौता जरूरी है। फिर भी अभी भी ऐसी मानसिकता देखने को मिल जाती है कि महिला पुरुष पर निर्भर करें। कितना अच्छा लगता है जब औरत सौ रुपए मांगे और उस सौ रुपए के खर्च का हिसाब देना पड़े। कुछ भी खर्च करना हो तो पहले हिसाब और जरूरत बताएं फिर तय होगा कि उसे खर्च करना है या नहीं। अच्छा लगता है ऐसा स्वामित्व भरा दंभ?

यह सही है कि महिला का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाने के बाद उसकी निर्भरता पुरुष पर कम हो जाती है बल्कि एक तरीके से खत्म हो जाती है। उसमें एक आत्मविश्वास आ जाता है। परिवार की जिम्मेदारी निभाने के साथ – साथ सही गलत का फर्क समझ कर कोई बात दबी जबान से ना कह कर सीधे बोलना भी सीख जाती है। फिर भी आज भले ही महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गई हों लेकिन आज भी खर्चे के मामले में वह परिवार के मुखिया पर ही निर्भर हैं। कहीं कहीं महिलाएं घरेलू हिंसा का भी शिकार हो जाती हैं। अभी भी आत्मनिर्भरता सिर्फ नाम की है क्योंकि स्त्री का पूरी तन्ख्वाह पति के हाथों में चली जाती है। जब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होते हुए भी उन्हें अपनी जरूरतों, खर्चों के लिए अनुमति मांगने पड़े तब स्थिति बड़ी विषाद हो जाती है। मन में यही सवाल उठता है कि क्या इतना भी अधिकार नहीं है कि हम अपने ऊपर खर्च कर सके? उसके लिए भी पूछना पड़े? क्या कभी देखा है कि पुरुष को अपने खर्चों के लिए, अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए स्त्री से अनुमति मांगते हुये? इन तमाम दुविधाओं के साथ जीती हुई महिला अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहती है। अगर इतनी ही संकुचित मानसिकता रहेगी पुरुषों की तो स्त्री घर और बाहर की जिम्मेदारी कैसे संभाल पायेगी? ऐसी संकुचित सोच रख कर क्या महिलाएं सही मायने में आत्मनिर्भर हो पाएंगी? हमने महिला को आधुनिक तो बना दिया लेकिन बराबर का हक और सम्मान देने में असफल रहे। ~ प्रियंका वर्मा माहेश्वरी

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शक्ति कानपुर प्रांत , राष्ट्रीय सेवा योजना क्राइस्टचर्च कॉलेज एवं उन्नति विकास सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में सामाजिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का आयोजन

कानपुर 5 अक्टूबर, शक्ति कानपुर प्रांत , राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई क्राइस्टचर्च कॉलेज एवं उन्नति विकास सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में सामाजिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का आयोजन शेल्टर होम,सुतर खाना ,सेवा बस्ती में किया गया, जिसमें सेवा बस्ती की महिलाओ को मानसिक बीमारियां कैसे होती है तथा इसका निवारण कैसे किया जा सकता है एवं महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन वितरण बगैरा किया जाना निश्चित किया गया है इस कार्यक्रम में उर्सला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल से डॉक्टर चिरंजीव प्रसाद मनोचिकित्सक, डॉ आरती कुशवाह, संदीप कुमार सिंह मनोचिकित्सक एवं सामाजिक कार्यकर्ता, सुधांशु प्रकाश मिश्रा क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट, पवन यादव अरुण यादव राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम, अवधेश कुमार परामर्श दाता , राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम बंदना यादव सामाजिक कार्यकर्ता , डॉक्टर एसके निगम डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर एनसीडी, डॉ सुनीता वर्मा यूनिट इंचार्ज शक्ति कानपुर प्रांत , एवं उन्नति विकास सेवा संस्थान की सचिव एवं शक्ति कानपुर प्रांत की मीडिया प्रभारी संध्या सिंह

और कानपूर शक्ति की माननीय मेंबर डॉ दीप्ति रंजन बिसरी ,डॉ शशि बाला, प्रतिभा मिसरा आदि उपस्थित रहेगी

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चेहरे का नूर बताता है कितना खूबसूरत है दिल

वाक़ई मे ये बात तो सच है कि हमारे चेहरे का नूर हमारे विचारों पर निर्भर करता है और हमारे विचार हमारे खान पान पर।वो कहते है “जैसा अन्न वैसा मन “
जब औरत अपने हाथ से अच्छी भावना से खाना बनाती है तो इसका असर खाने वाले पर ज़रूर पड़ता है सात्विक तामसिक और राजसी भोजन.. तीनों प्रकार के भोजन का असर हमारे मन और सोच पर अलग अलग होता है सात्विक भोजन शरीर को स्वास्थ्य रखने मे सहायक होता है इसका मन पर भी असर पवित्र और शुद्ध होता है तामसिक भोजन क्रोध कामुकता को जन्म देता है और राजसी भोजन हमे आलस प्रदान करता है आज के वक़्त मे अधिकतर घरों में रसोई बनाने वाला कोई और होता है और वो ये काम सिर्फ़ पैसा कमाने के लिये कर रहे होते है आप की रसोई बनाते वक़्त उनकी सोच कोई भी हो सकती है
उस वक़्त उसके मन में जो विचार चल रहा होगा।उसके विचार की तरंगें सीधा हमारे भोजन में जाती है और हमारे मन पर उसका असर भी ज़रूर दिखता है किसी रसोइया के मन में वो प्रेम प्यार नहीं हो सकता ।यही बात होटलों में खाना खाने पर होती हैं वहाँ भी खाना बनाने वाले के दिल मे पैसा कमाने का या कोई अन्य विचार हो सकता है मगर जब घर पर अपने हाथों से प्यार से खाना बनाया जाता हैं तो सोच ये होती हैं कि खाना स्वादिष्ट सेहतमंद विटामिन युक्त हो जो मेरे परिवार को रोगमुक्त रखे .. यही हमारी भावना अलग है औरों से .. होटलों से ,या अन्य किसी रसोइया से ।वो औरत सच मे अन्नपूर्णा होती है जो अपने हाथो से रसोई बनाती है ।और सब का पेट भरती है।

मगर आज कुछ माहौल अलग है
अब हमारा श्रृंगार सोच ,पहनावा,खाना खाने और बनाने का ढंग बदल रहा है ।होना भी चाहिए..ज़रूर वक़्त के साथ बदलना भी ज़रूरी है इसमें कोई बुराई नहीं ।
आज के दौर में हर घर में हाथ बँटाने के लिए पूरा स्टाफ़ होता है एक नहीं चार चार ही होंगे।बड़े बड़े घर है बड़ी बडी गाड़ियाँ ऊँचा मकान ऊँची दुकान ..हर चीज़ हर किसी के पास होती भी है और आज हमारी माँगें हमारी ज़रूरते बहुत बढ गई हैं जिसके लिए आज मर्दों को अपने परिवार की हर ज़रूरत को पूरा करने के लिये न जाने क्या कुछ नहीं करना पढ़ता होगा और इसी दवाब के कारण कई बार वो अपने सेहत को भी दांव पर लगा देते है ये न तो उनके लिए ,न ही हमारे हित में होता है ।
करोड़ो के ज़ेवर पहनने के बावजूद भी हमारे चेहरे फिर भी मुरझाये से है ।इक असुरक्षित सा अकेलेपन का अहसास फिर भी क़ायम है ।
चेहरों पर नूर ग़ायब है कही शान्ति नज़र नहीं आती ।
इक कठोर ..कर्कश से चेहरे हो गये हैं ,जबकि होना बिलकुल विपरीत चाहिए था।
दोस्तों ।
बात चाहे औरत की हो या मर्द
की ।हमारी खानपान का प्रभाव हमारी सोच पर और सोच का प्रभाव हमारे चेहरे पर ज़रूर पड़ता है जैसा सोचते है धीरे धीरे चेहरा भी वैसा ही बनने लगता है अगर मन में ईर्ष्या क्रोध दुख लोभ और कामुकता के विचार ज़्यादा होगें तो यकीनन चेहरे से साफ़ नज़र भी आयेगा और अगर मन में दूसरों के लिए प्रेम,कोमलता ,दया ,श्रद्धा
सहनशीलता ,सहजता पवित्रता है तो ये भाव भी चेहरे पर आ जाते हे वो कहते है न
“चेहरा दिल का आईना होता है “
हमारा दिल हमारे चेहरे में से दिखता है

दोस्तों
पहले लोग कितने भोले सीदे सादे हुआ करते थे मेकअप के नाम पर बिंदी लिपस्टिक ही हुआ करती थी
मगर उनके चेहरे पर नूर ,गालो पर लाली ,आँखों मे चमक ,होंठों पर मुस्कान हुआ करती थी
फ़र्क़ ये था तब लोग बहुत शालीन संयमी,संतुष्ट थे ।थोड़े मे भी ख़ुश और शुक्र किया करते थे। अपने हाथों से सारा काम किया करते थे यही वजह हुआ करती थी सारा परिवार बंधा रहता था ।
उस वक़्त लोगों को ये डिप्रेशन जैसी बिमारी नही हुआ करती थी क्योंकि ज़रूरतें कम हुआ करती थी आपस मे मिल बैठ कर अपनी कठिनाईयो को सुलझा लिया करते थे इक दूसरे का दुख सुख अपना समझते थे। दिखावा बिलकुल नहीं था सहज और बहुत सरल थे।
इससे कोई फ़र्क़ नहीं पढ़ता कि आप की जीवन शैली आधुनिक है या पुरानी सोच पर आधारित है बात पुराने वक़्तों की हो या आज की ..“ सुखी जीवन का मूल मन्त्र यही है”

चेहरे का नूर किसी बाहरी मेकअप से कहाँ आता है ।मेकअप आप को सुन्दर बेशक बना सकता है मगर चेहरा का नूर ,ये इक अलग ही तेज इक ऐसी चमक है जो अन्दर से पैदा होती है अगर किसी का मन सुन्दर सहज भोला और पवित्र है
तो इन्सान वैसे ही बहुत
सुन्दर दिखने लगता है .. धीमे से ..हौले से बोलने में जो ताक़त है वो तीखी तर्कश आवाज़ में नहीं । असली ज़ेवर हमारी मुस्कान ,हमारी मीठी आवाज़ ,हमारी सुन्दर सोच है .. जिसे पहनने के लिये कोई धन नही खर्च होता ।
दोस्तों
मिलजुल सारे काम किये जा सकते है अपने हाथ से काम करने से ज़िम्मेदारी का अहसास तो होता ही है शरीर भी ठीक रहता है और हम चीजों की कद्र भी करते है।वैसे भी इन्सान किस के लिये करता है अपने बच्चों के लिए ,हमारा फ़र्ज़ उनको पैरों पर खड़े करना ही होना चाहिए ।उनके लिए भी घर या ज़ेवरों का इन्तज़ाम करन नही।
हर कोई अपने मुक़द्दर से ये सब बना ही लेता है ।जब माँ बाप सब बना कर देते है उन्हें क़दर नहीं
होती।उनमें आगे बढ़ने का तीव्र इच्छा नहीं रहती।हमेशा अपनी चीज़ की कद्र तब होती है जब हम आप बनाते है।

दोस्तों 🙏
हम सब ने अपने आप को बहुत बिखेर रखा है दुनिया मे,परिवारों मे।ज़रूरत है तो सिर्फ़ खुद को समेटने की।
इन सब झंझटों से निकल कर अपने मन में ठहराव लाने की आवश्यकता है। ठहराव अपनी सोच मे विचारों मे, अपनी वाणी मे ,अपनी दृष्टि मे लाने की ज़रूरत है क्योंकि खड़े पानी मे ही अपना अक्स देखा जा सकता है ठहराव मे ही हम खुद को ,अपने मन को ,अपनी सोच को देख पायेंगे।अपनी ज़िन्दगी को आसान करिये, ख़ुश रहे।जो है उसी में संतुष्ट रहे।योगा करे ,मैडिटेशन करे ।जो मिला है उसी को ही दिल से स्वीकार कर ले।

चेहरे का नूर अन्दर से ही निकलेगा कहीं बाहर से नहीं ..शर्त बस इतनी ही है कि विचारों और खान पान पर ख़ास ध्यान रखा जाए ।फिर देखिए चेहरे पर नूर कैसे बरसता है। :+ स्मिता केंथ

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आजादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत 02 अक्टूबर से 14 नवम्बर, तक विभिन्न विधिक साक्षरता कार्यक्रम आयोजित होगा

कानपुर 01 अक्टूबर, (सू0वि0), प्रभारी सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण/सिविल जज सी0डि0,  श्रद्वा त्रिपाठी ने बताया है कि उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, लखनऊ के द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के क्रम में आजादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत *दिनांक- 02 अक्टूबर,2021 से दिनांक 14 नवम्बर, 2021 तक विभिन्न विधिक साक्षरता कार्यक्रम* आयोजित किया जाना है, जिसका उद्घाटन समारोह दिनांक- 02 अक्टूबर 2021 को माननीय राष्ट्रपति महोदय द्वारा विज्ञान भवन नई दिल्ली में किया जाएगा। जिसका सजीव प्रसारण जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, कानपुर नगर द्वारा इलेक्ट्रानिक माध्यम से जनपद में कराये जाने के निर्देश है तथा मा0 राष्ट्रपति महोदय द्वारा शुभारम्भ के पश्चात् जिले में भी उक्त कार्यक्रम का शुभारम्भ का आयोजन किया जाएगा। जिले स्तर पर उक्त कार्यक्रम का उद्घाटन मा0 जनपद न्यायाधीश /अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, कानपुर नगर द्वारा किया जायेगा।
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जनपद न्यायाधीश जिला न्यायालय कोर्ट परिसर से हरी झंण्डी दिखाकर प्रभात फेरी रैली को रवाना करेंगे

कानपुर 01 अक्टूबर, माननीय जनपद न्यायाधीश कानपुर नगर स्वतंत्रता के 75वें वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम के अन्तर्गत कल दिनांक 02 अक्टूबर, 2021 को प्रातः 7ः30 बजे जिला न्यायालय कोर्ट परिसर से हरी झंण्डी दिखाकर प्रभात फेरी रैली को रवाना करेंगे।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा 02 अक्टूबर से 14 नवम्बर, 2021 तक विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कराने के निर्देश दिये गये हैं। 02 अक्टूबर से 14 नवम्बर, 2021 तक लोगों को विधिक सहायता प्राप्त करने हेतु एवं समाज के वंचित वर्ग तक शासन की योजनाओं को भी पहंुचाने व जानकारी उपलब्ध करायी जायेगी।
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