प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम स्थल पर पहुंचकर लोकमान्य तिलक की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। सभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने लोकमान्य तिलक को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि यह उनके लिए एक विशेष दिन है। इस अवसर पर अपनी भावनाओं के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि आज लोकमान्य तिलक की पुण्यतिथि तथा अन्ना भाऊ साठे की जयंती है। प्रधानमंत्री ने कहा, “लोकमान्य तिलक जी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के ‘तिलक’ हैं।” उन्होंने समाज के कल्याण के लिए अन्ना भाऊ साठे के असाधारण और अद्वितीय योगदान को भी रेखांकित किया। प्रधानमंत्री ने छत्रपति शिवाजी, चापेकर बंधु, ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले की भूमि को श्रद्धांजलि दी। इसके पहले प्रधानमंत्री ने दगड़ूशेठ मंदिर में आशीर्वाद लिया।
प्रधानमंत्री ने आज लोकमान्य से सीधे जुड़े स्थान और संस्था द्वारा उन्हें दिए गए सम्मान को ‘अविस्मरणीय’ बताया। प्रधानमंत्री ने काशी और पुणे के बीच समानताओं का उल्लेख किया, क्योंकि दोनों स्थल ज्ञान-प्राप्ति के केंद्र हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब कोई पुरस्कार प्राप्त करता है, तो उसकी जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं, विशेषकर जब पुरस्कार के साथ लोकमान्य तिलक का नाम जुड़ा हो। प्रधानमंत्री ने लोकमान्य तिलक पुरस्कार भारत के 140 करोड़ नागरिकों को समर्पित किया। उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार उनके सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए मदद करने में कोई कमी नहीं छोड़ेगी। प्रधानमंत्री ने नकद पुरस्कार की धनराशि नमामि गंगे परियोजना को दान करने के अपने फैसले की भी जानकारी दी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता में लोकमान्य तिलक के योगदान को कुछ शब्दों या कुछ घटनाओं तक सीमित नहीं किया जा सकता, क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम के सभी नेताओं और घटनाओं पर उनका स्पष्ट प्रभाव था। प्रधानमंत्री ने कहा, “यहां तक कि अंग्रेजों को भी उन्हें ‘भारतीय अशांति का जनक’ कहना पड़ता था।” श्री मोदी ने बताया कि लोकमान्य तिलक ने अपने ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ के दावे के साथ स्वतंत्रता संग्राम की दिशा बदल दी। तिलक ने अंग्रेजों द्वारा भारतीय परंपराओं को पिछड़ा बताने को भी गलत सिद्ध किया। प्रधानमंत्री ने याद किया कि महात्मा गांधी ने तिलक को आधुनिक भारत का निर्माता कहा था।
प्रधानमंत्री ने लोकमान्य तिलक की संस्था-निर्माण क्षमताओं को श्रद्धांजलि अर्पित की। लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल के साथ उनका सहयोग, भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक स्वर्णिम अध्याय है। प्रधानमंत्री ने तिलक द्वारा समाचार पत्रों और पत्रकारिता के उपयोग किये जाने को भी याद किया। ‘केसरी’ आज भी महाराष्ट्र में प्रकाशित होता है और पढ़ा जाता है। प्रधानमंत्री ने कहा, “यह सभी लोकमान्य तिलक द्वारा मजबूत संस्था निर्माण के प्रमाण हैं।”
संस्था निर्माण से आगे बढ़ते हुए, प्रधानमंत्री ने तिलक द्वारा परंपराओं का पोषण किये जाने पर प्रकाश डाला और छत्रपति शिवाजी के आदर्शों का उत्सव मनाने के लिए गणपति महोत्सव तथा शिव जयंती की शुरुआत का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “ये आयोजन, भारत को एक सांस्कृतिक सूत्र में पिरोने तथा पूर्ण स्वराज की परिकल्पना से जुड़े अभियान भी थे। यह भारत की विशेषता रही है कि नेताओं ने स्वतंत्रता जैसे बड़े लक्ष्यों के लिए लड़ाई लड़ी और सामाजिक सुधार का अभियान भी चलाया।”
देश के युवाओं में लोकमान्य तिलक के विश्वास का जिक्र करते हुए, प्रधानमंत्री ने वीर सावरकर को मार्गदर्शन देने और श्यामजी कृष्ण वर्मा को सिफारिश करने को याद किया, जो लंदन में दो छात्रवृत्तियां चला रहे थे- छत्रपति शिवाजी छात्रवृत्ति तथा महाराणा प्रताप छात्रवृत्ति। पुणे में न्यू इंग्लिश स्कूल, फर्ग्यूसन कॉलेज और डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना इसी दृष्टिकोण के हिस्से हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, “प्रणाली निर्माण से संस्था निर्माण, संस्था निर्माण से व्यक्ति निर्माण और व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का विजन, राष्ट्र के भविष्य के लिए एक रोडमैप की तरह है और देश इस रोडमैप का प्रभावी ढंग से पालन कर रहा है।”
लोकमान्य तिलक के साथ महाराष्ट्र के लोगों के विशेष बंधन पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि गुजरात के लोग भी उनके साथ समान बंधन साझा करते हैं। उन्होंने उस समय को याद किया जब लोकमान्य तिलक ने अहमदाबाद की साबरमती जेल में लगभग डेढ़ महीने बिताए थे। उन्होंने बताया कि 1916 में 40,000 से अधिक लोग उनका स्वागत करने और उनके विचार सुनने के लिए इकट्ठा हुए थे। इन लोगों में सरदार वल्लभभाई पटेल भी शामिल थे। उन्होंने आगे कहा कि तिलक के भाषण के प्रभाव के कारण सरदार पटेल ने अहमदाबाद में लोकमान्य तिलक की एक प्रतिमा स्थापित की, जब वे अहमदाबाद नगर पालिका के प्रमुख थे। प्रधानमंत्री ने कहा, “सरदार पटेल में लोकमान्य तिलक के दृढ़ संकल्प को देखा जा सकता है।” यह प्रतिमा विक्टोरिया गार्डन में स्थापित की गई है। इस स्थल के बारे में प्रधानमंत्री ने बताया कि अंग्रेजों ने इस मैदान को 1897 में रानी विक्टोरिया के हीरक जयंती समारोह को मनाने के लिए विकसित किया था। उन्होंने लोकमान्य तिलक की प्रतिमा स्थापित करने में सरदार पटेल के क्रांतिकारी कार्य पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि अंग्रेजों के विरोध के बावजूद महात्मा गांधी ने 1929 में इस प्रतिमा का अनावरण किया था। प्रतिमा के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि यह एक भव्य प्रतिमा है, जिसमें तिलक जी को आराम की मुद्रा में बैठे देखा जा सकता है। ऐसा महसूस होता है कि वे स्वतंत्र भारत के उज्ज्वल भविष्य पर विचार कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, “गुलामी के काल में भी सरदार पटेल ने भारत के सुपुत्र का सम्मान करने के लिए पूरे ब्रिटिश शासन को चुनौती दी थी।” प्रधानमंत्री ने आज की स्थिति पर अफसोस जताते हुए कहा कि जब सरकार एक विदेशी आक्रमणकारी के नाम के बदले एक भारतीय व्यक्तित्व का नाम देना चाहती है, तो कुछ लोग शोरगुल करते हैं।
प्रधानमंत्री ने गीता में लोकमान्य की आस्था का जिक्र किया। सुदूर मांडले में कारावास में रहते हुए भी लोकमान्य ने गीता का अध्ययन करना जारी रखा और ‘गीता रहस्य’ के रूप में एक अमूल्य उपहार दिया।
प्रधानमंत्री ने प्रत्येक व्यक्ति में आत्मविश्वास जगाने की लोकमान्य की क्षमता के बारे में बात की। तिलक ने स्वतंत्रता, इतिहास और संस्कृति की लड़ाई के प्रति लोगों में विश्वास पैदा किया। उन्हें लोगों, श्रमिकों और उद्यमियों पर भरोसा था। उन्होंने कहा, “तिलक ने भारतीयों की हीनभावना के मिथक को तोड़ा और उन्हें उनकी क्षमताओं से अवगत कराया।”
प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि अविश्वास के वातावरण में देश का विकास संभव नहीं है। उन्होंने पुणे के एक व्यक्ति श्री मनोज पोचट जी के ट्वीट को याद किया, जिन्होंने उल्लेख किया था कि पीएम के तौर पर उन्होंने 10 साल पहले पुणे की यात्रा की थी। प्रधानमंत्री ने तिलक जी द्वारा फर्ग्यूसन कॉलेज की स्थापना के समय को याद किया और कहा कि उस समय भारत में विश्वास की कमी के बारे में बात की गई थी। प्रधानमंत्री ने विश्वास की कमी का मुद्दा उठाने के लिए आभार व्यक्त किया और कहा कि देश विश्वास की कमी से अतिरिक्त विश्वास की ओर बढ़ गया है।
प्रधानमंत्री ने पिछले 9 वर्षों में हुए बड़े बदलावों में इस अतिरिक्त विश्वास का उदाहरण दिया। उन्होंने उल्लेख किया कि इस विश्वास के परिणामस्वरूप भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। उन्होंने देश के स्वयं पर विश्वास के बारे में बात की। उन्होंने मेड इन इंडिया कोरोना वैक्सीन जैसी सफलताओं का उल्लेख किया और कहा कि इस उपलब्धि में पुणे ने एक बड़ी भूमिका निभाई है। उन्होंने भारतीयों की कड़ी मेहनत और निष्ठा के प्रति विश्वास के बारे में कहा कि मुद्रा योजना के तहत गिरवी-मुक्त ऋण इसका एक प्रतीक है। इसी तरह, अधिकांश सेवाएं अब मोबाइल पर उपलब्ध हैं और लोग अपने दस्तावेज़ों को स्वयं सत्यापित कर सकते हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि व्यापार अधिशेष के कारण स्वच्छता अभियान और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जन आंदोलन बन गये हैं। ये सभी देश में एक सकारात्मक वातावरण बना रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने इस बात को याद करते हुए कि लाल किले से अपने संबोधन के दौरान जब उन्होंने लोगों से गैस सब्सिडी छोड़ने का आह्वान किया था, तो इसके बाद लाखों लोगों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी थी। उन्होंने बताया कि कई देशों का एक सर्वेक्षण किया गया था, जिसमें पता चला कि भारत का सरकार के प्रति सबसे अधिक विश्वास है। श्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि बढ़ता जन-विश्वास भारत के लोगों की प्रगति का माध्यम बन रहा है।
संबोधन का समापन करते हुए प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि आजादी के 75 वर्षों के बाद देश अमृत काल को कर्तव्य काल के रूप में देख रहा है, जहां प्रत्येक नागरिक देश के सपनों और संकल्पों को ध्यान में रखते हुए अपने-अपने स्तर पर काम कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा, इसीलिए पूरी दुनिया भी आज भारत में अपना भविष्य देख रही है, क्योंकि हमारे आज के प्रयास पूरी मानवता के लिए आश्वासन बन रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकमान्य तिलक के विचारों और आशीर्वाद की शक्ति से देशवासी निश्चित रूप से एक मजबूत और समृद्ध भारत के सपने को साकार करेंगे। प्रधानमंत्री ने विश्वास जताया कि हिंद स्वराज्य संघ, लोगों को लोकमान्य तिलक के आदर्शों से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा।
इस अवसर पर महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री रमेश बैस, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री एकनाथ शिंदे, महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री श्री देवेन्द्र फडणवीस और श्री अजीत पवार, संसद सदस्य श्री शरदचंद्र पवार, तिलक स्मारक ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. दीपक तिलक, तिलक स्मारक ट्रस्ट के उपाध्यक्ष डॉ. रोहित तिलक, तिलक स्मारक ट्रस्ट के ट्रस्टी श्री सुशील कुमार शिंदे व अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
पृष्ठभूमि
लोकमान्य तिलक की विरासत का सम्मान करने के लिए तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट द्वारा 1983 में इस पुरस्कार की स्थापना की गयी थी। यह उन लोगों को प्रदान किया जाता है जिन्होंने राष्ट्र की प्रगति और विकास के लिए काम किया है तथा जिनके योगदान को उल्लेखनीय और असाधारण कहा जा सकता है। यह हर साल लोकमान्य तिलक की पुण्यतिथि, 1 अगस्त को प्रदान किया जाता है।
प्रधानमंत्री इस पुरस्कार के 41वें प्राप्तकर्ता बने हैं। इससे पहले डॉ. शंकर दयाल शर्मा, श्री प्रणब मुखर्जी, श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्रीमती इंदिरा गांधी, डॉ. मनमोहन सिंह, श्री एन.आर. नारायण मूर्ति और डॉ. ई. श्रीधरन जैसे प्रमुख व्यक्तियों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।