यह बहुत दुख की बात है कि हमारे देश का गौरव बढ़ाने वाली बेटियां अपने सम्मान (मेडल) को गंगा में बहाने की बात कही। इनकी आहत भावना और सरकार द्वारा किया जा रहा उपेक्षा पूर्ण व्यवहार न्याय की गुहार लगाती खिलाड़ियों में असंतोष की भावना उत्पन्न कर रही है। पुलिस द्वारा बलपूर्वक किया गया अनुचित आचरण लोगों के मन से व्यवस्था और न्याय पर से भरोसा खत्म कर रहा है।भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी की मांग पर जंतर मंतर पर बैठी महिला पहलवानों की बात क्यों नहीं सुनी जा रही है? इससे पहले महिला खिलाड़ियों ने बेरीकेड्स तोड़कर नये संसद भवन की ओर बढ़ने का प्रयास किया जिससे और खिलाड़ियों के बीच हाथापाई हो गई और पुलिस ने उनके प्रदर्शन पर रोक लगा दिया और कहा कि उन्हें किसी अन्य जगह पर प्रदर्शन की इजाजत दी जा सकती है लेकिन जंतर मंतर पर नहीं। बृजभूषण सिंह पर एक नाबालिग सहित महिला पहलवानों के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप है। मामला कुछ भी हो मगर न्याय के लिए भटकती खिलाड़ियों की बात सुनी जानी चाहिए। खाप पंचायतें बैठकें तो कर रही हैं लेकिन उनका कोई निर्णय सामने नहीं आ रहा है।
1983 में विश्व कप जीतने वाली टीम ने साझा बयान जारी कर महिला खिलाड़ियों को अपना समर्थन दिया है। इंडियन एक्सप्रेस ने भी इस खबर को प्रमुखता से छापा है। बेटी बचाओ का नारा देने वाली सरकार इन्हें अनदेखा क्यों कर रही है? और महिला नेत्राणियों ने भी इस मसले पर चुप्पी क्यों साध रखी है? क्या सिर्फ एक फोटो खिंचवाने तक ही बेटियों का सम्मान था ? ऐसे तमाम सवाल है जो सरकार के ऊपर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं? क्या बेटियाँ यूं ही अपमानित होती रहेंगी?
जमीर जागने में वक्त तो लगता है
हौसले पस्त ना हो तो उम्मीद का दिया जलते रहता है
प्रियंका वर्मा महेश्वरी
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