🌹मेरी रूह को जो छू जाये ..वो ज़रिया महज़ गुलाब नहीं हो सकता। रूहानी इश्क़ की पाकीज़गी को गर क़ायल करना चाहो ,तो कुछ कतरा अशक बहाना होगा। ”बहुत इश्क़ इश्क़ तू करता है ,पता भी है ये इश्क़ होता क्या है ?जिस को ये इश्क़ लगा ,चाहे वो रब का हो या जग का फिर वो शख़्स खुद मे रहता ही कहाँ है फिर तो जैसे साहेब राज़ी वैसे वो राज़ी”। ये सच है ! इश्क़ की गलियों मे रंगरूप ,धनदौलत रुतबा कोई मायने नहीं रखता।सामने वाले की ख़ुशी किस बात में है,यही इक फ़िक्र रह जाती है। वहाँ त्याग स्वीकार और सिर्फ़ समर्पण ही होता है और बातें भी सिर्फ़ खामोशियाँ ही करती है बिना शर्तों के, बिना शिकायत के ,बिना अल्फ़ाज़ो के।जहां आँखों से बहा पानी आंसू न रह कर अमृत हो जाता है।
क्या ख़ूब कहा किसी फ़क़ीर ने कि इश्क़ तेरे विच ,मन मर्ज़िया न चलदियां .. जो यार कहे, ओही बिस्मिल्ला। इश्क़ की बेशुमार दौलत“दर्द”होता है जो सहना हर किसी के बस की बात है ही नही। इश्क़ “ठहराव “है उम्र भर का इन्तज़ार हैं।महज़ इक गुलाब🌹देना या लेना ही इश्क़ नहीं है ..ये तो सिर्फ़ इज़हारे इश्क़ है जनाब। गुलाब चाहे कितना भी खूबसूरत क्यों न हो ..वक़्त रहते मुरझायेंगा ही ..मगर इश्क़ तो वो शय है जो मरने के बाद भी इसकी महक क़ायम रहती है। दोस्तों! रब के या दुनिया के प्रेम में कोई ज़्यादा फ़र्क़ नही। दोनो ही सब्र माँगते है और सब्र हर किसी से होता नही, न ही ये कोई सौदा है जिसे ख़रीदा या बेचा जा सके। प्रेम तो इक रूहानी अहसास है जहां“मैं “खो”जाये..और बस “ तू ही तू“रह जाये।प्रेम मे दूरियाँ के कोई मायने नही।बावजूद दूरियों के भी अगर इश्क़ क़ायम रह जाता है ,तो वो इश्क़ ही कुछ और होता है।जब वाक़ई मे आप इश्क़ से रुबरू होते है तो न केवल गुलाब बल्कि आप खुद को ही समर्पित करने के लिए बाध्य हो जाते है। जब कोई बाहरी रंग रूप से आकर्षित होता है वो आकर्षण कभी ठहरता नहीं अगर दिल से प्रेम हो जाये तो आख़िरी साँस तक चलता है..और जब कही इश्क़ रूह से हो जाये ,तो वो अमरत्व को प्राप्त करता है। कोई विरला ही इसका अनुभव कर पाता है।इसे ही रूहानी इश्क़ भी कहा जाता है मगर अफ़सोस !
इन्सान दिल या जिस्म पर ही अटक गया, इश्क़ तो उसी का मुकम्मल हुआ जो रूह तक पहुँच गया। 🙏
इश्क़ तो जिस्मों से परे ,पाकीज़गी मे ही ये पनपता और महकता है।बिना छूऐ भी प्यार करना।जुदा हो कर भी उसी का ही ..हो कर रहना।अपनी खुदी को ही खो देना ..ये है मोहब्बत।प्रेम वही कर सकता है जो प्रेम के बदले कुछ न चाहे ..जो सिर्फ़ प्रेम देना जानता हो ..बदले मे मिले न मिले ,उसे ..उससे कोई सरोकार नही।
कृष्ण दीवानी मीरा साक्षात्कार प्रेम की ही मूर्ति थी।कृष्ण को उसने कभी देखा नही, छुआ नही। बस उसके अहसास से प्रेम किया और रंग गई उसी के रंग मे। वक़्त जितना भी माडर्न हो जाये दोस्तों सच्चे प्रेम की परिभाषा वही रहेगी। “स्त्री अगर बहुत सुन्दर है इसीलिए उससे प्रेम हो जाये, ये मात्र आकर्षण या वासना भी हो सकती हैं ।विपरीत इसके ..किसी स्त्री से प्रेम हो जाये फिर वो हर हाल मे सुन्दर लगे तो यक़ीनन प्रेम हुआ” सुन्दर चेहरा तो किसी को लुभा ही लेता है। खूबसूरत “दिल”पर कोई भी आशिक़ हो सकता है मगर मन की सादगी किसी की भी रूह को छू सकने की ताक़त रखता है, दोस्तों, बेशक प्यार का इज़हार गुलाब दे कर करे मगर कोशिश करे ,उन्हें गुलाब के साथ-साथ अपना पूर्ण समर्पण भी दे ,जो उनके जीवन को सदा के लिए महका दे।आप का प्यार इक बेशक़ीमती इत्र की तरहां हो जिसकी महक दूसरो को भी महसूस हो …आज हम अगर खुद मे झांके और देखे , क्या वाक़ई मे हम ऐसे इश्क़ से वाक़िफ़ है जो आख़िरी साँस तक चले।आज हालात कुछ और है जो किसी हद तक ठीक नही ।ये वैलेंटाइन बाहरी देशों की सभ्यता थी।हमारे देश मे इसका चलन कुछ ही सालों से हुआ है ।वैलेंटाइन को मनाईये ज़रूर ,मगर गुलाब सिर्फ़ उसे ही दे ..जिसके साथ आप सारी उम्र गुज़ारना चाहे हर किसी को दे कर खुद को छोटा न करे।
ये बात कुछ साल पहले लंदन की है इक लड़का बहुत प्यार करता था किसी लड़की से .. वैलेंटाइन के दिन उसने उसको एक हज़ार पौण्ड का बेशक़ीमती गुलाब का गुलदस्ता दिया और फिर लंदन के किसी बड़े होटल मे दोनो ने लंच किया।लड़के ने शाम को अपने दोस्तों के साथ पार्टी रख ली और पार्टी के दौरान लड़के ने लड़की को शादी के लिये प्रपोज़ भी कर दिया।यानी वैलेंटाइन को यादगार बनाने के लिये कोई कसर नही छोड़ी ।दोनों बहुत ख़ुश थे।साल के बाद शादी भी हो गई ।दो सालों में सारी दुनिया भी घूम डाली।मगर दो साल के बाद दोनों एक दूसरे से अलग हो गये .. उससे अगले साल वो लड़का किसी और को गुलाबों का गुलदस्ता भेज रहा था और लड़की किसी और के साथ वैलेंटाइन मना रही थी। मेरे हिसाब से न तो ये इश्क़ है न ही प्यार या मोहब्बत… हाँ आकर्षण ज़रूर कह सकती हूँ बहुत से लोग आकर्षण को ही इश्क़ समझ लेते हैं ।आप इसे क्या कहते है ये फ़ैसला मै आप पर ही छोड़ देती हूँ ।इश्क़ इतना सस्ता है ही नही ,जो गुलाब दे कर उसे ख़रीद लिया जाये या छोड़ दिया जाये..मगर ये आज विदेशों में ही नहीं बल्कि सब जगह ये चलन चल रहा है।
दोस्तों। माना ये इश्क़ को ज़ाहिर करने की पहली निशानी गुलाब हो सकती है,मगर गुलाब तो एक ही काफ़ी है और सिर्फ़ “अकेला गुलाब”प्यार की नींव तो नही हो सकता।गुलाब लेने वाले को भी ये समझना ज़रूरी है कि गुलाब के साथ काँटे भी होते हैं और उसे भी वैसे ही स्वीकार करें जैसे गुलाब 🌹को किया जाता है दुया करती हूँ ये प्रेम का उत्सव मनाने के लिये आप को वैलेंटाइन का इन्तज़ार न करना पड़े बल्कि हर दिन गुलाब जैसा ही खिला और महकता रहे 🙏गुलाब की पंखुड़ियों की लालिमा ..आपके चेहरे के नूर को ..चार चाँद लगा दे।
हैपी वैलेंटाइन….🙏 स्मिता
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