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भारत ने पिछले दशक में परमाणु ऊर्जा के माध्यम से बिजली उत्पादन दोगुना कर दिया है: डॉ. जितेंद्र सिंह

भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता पिछले एक दशक में 2014 में 4,780 मेगावाट से लगभग दोगुनी होकर 2024 में 8,180 मेगावाट हो गयी है।

यह जानकारी आज लोक सभा में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन विभाग, डॉ. जितेंद्र सिंह ने परमाणु ऊर्जा पर चर्चा के जवाब में दी।

उन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की महत्वपूर्ण प्रगति और भविष्य की संभावनाओं पर प्रकाश डाला। डॉ. जितेंद्र सिंह ने प्रमुख विकासों पर विस्तार से चर्चा की और परमाणु ऊर्जा उत्पादन में अधिक आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए एक रोडमैप की रूपरेखा प्रस्तुत की।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत के बिजली वितरण ढांचे में संशोधन पर जोर दिया, जिसके तहत परमाणु संयंत्रों से बिजली में गृह राज्य की हिस्सेदारी बढ़ाकर 50% कर दी गई है, जिसमें से 35% पड़ोसी राज्यों को और 15% राष्ट्रीय ग्रिड को आवंटित किया जाएगा। यह नया फॉर्मूला संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करता है और राष्ट्र की संघीय भावना को दर्शाता है।

डॉ. जितेन्द्र सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो 2014 में 4,780 मेगावाट से लगभग दोगुनी होकर 2024 में 8,180 मेगावाट हो गई है। उन्होंने कहा कि 2031-32 तक क्षमता तीन गुनी होकर 22,480 मेगावाट होने का अनुमान है, जो भारत की परमाणु ऊर्जा अवसंरचना को बढ़ाने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

केंद्रीय मंत्री ने इस प्रगति का श्रेय कई परिवर्तनकारी पहलों को दिया, जिसमें 10 रिएक्टरों की स्वीकृति, बढ़े हुए वित्त आवंटन, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के साथ सहयोग और सीमित निजी क्षेत्र की भागीदारी शामिल है। उन्होंने भारत के परमाणु बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए प्रौद्योगिकी में प्रगति और सुव्यवस्थित प्रशासनिक प्रक्रियाओं को श्रेय दिया।

ऊर्जा उत्पादन के अलावा, डॉ. जितेंद्र सिंह ने परमाणु ऊर्जा के विविध प्रयोग पर प्रकाश डाला। उन्होंने कृषि में इसके व्यापक उपयोग का उल्लेख किया, जिसमें 70 उत्परिवर्तनीय फसल किस्मों का विकास भी शामिल है। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में, भारत ने कैंसर के उपचार के लिए उन्नत आइसोटोप पेश किए हैं, जबकि रक्षा क्षेत्र में, परमाणु ऊर्जा प्रक्रियाओं का उपयोग लागत प्रभावी, हल्के बुलेटप्रूफ जैकेट विकसित करने के लिए किया गया है।

केंद्रीय मंत्री ने भारत के प्रचुर थोरियम भंडार पर भी जोर दिया, जो वैश्विक कुल का 21% है। इस संसाधन का इस्तेमाल करने के लिए “भवानी” जैसी स्वदेशी परियोजनाएं विकसित की जा रही हैं, जिससे आयातित यूरेनियम और अन्य सामग्रियों पर निर्भरता कम हो रही है। उन्होंने परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं को लागू करने में चुनौतियों को स्वीकार किया, जैसे भूमि अधिग्रहण, वन विभाग से मंजूरी और उपकरण खरीद, लेकिन इन मुद्दों से निपटने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि वर्तमान में नौ परमाणु ऊर्जा परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं, और कई अन्य परियोजना पूर्व चरण में हैं, जो परमाणु ऊर्जा क्षमता के विस्तार के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

डॉ. जितेन्द्र सिंह ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करते हुए कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र जैसी परियोजनाओं पर प्रकाश डाला, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 2014 के बाद गति मिली। उन्होंने डॉ. होमी भाभा द्वारा परिकल्पित परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए भारत की प्रतिबद्धता दोहराई और “एक राष्ट्र, एक सरकार” के दृष्टिकोण के साथ तालमेल बिठाते हुए सतत विकास के लिए परमाणु ऊर्जा का लाभ उठाने पर जोर दिया।

यह प्रगति ऊर्जा में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने, नवाचार को बढ़ावा देने तथा परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण अनुप्रयोगों के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान देने के भारत के संकल्प को रेखांकित करती है।

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भारत की नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) की क्षमता में वर्ष-दर-वर्ष के आधार पर 14.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने नवंबर 2023 से नवंबर 2024 के दौरान भारत के नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की सूचना दी है। यह प्रगति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा निर्धारित ‘पंचामृत’ लक्ष्यों के अनुरूप स्वच्छ ऊर्जा से संबंधित अपने लक्ष्यों को हासिल करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।

क्षमता में रिकॉर्ड वृद्धि

नवंबर 2024 तक, कुल गैर-जीवाश्म ईंधन पर आधारित स्थापित क्षमता 213.70 गीगावॉट तक पहुंच गई, जो पिछले वर्ष की 187.05 गीगावॉट की तुलना में 14.2 प्रतिशत की महत्वपूर्ण वृद्धि है। इस बीच कुल गैर-जीवाश्म ईंधन पर आधारित क्षमता, जिसमें स्थापित और पाइपलाइन परियोजनाएं दोनों शामिल हैं, बढ़कर 472.90 गीगावॉट हो गई जो पिछले वर्ष के 368.15 गीगावॉट की तुलना में 28.5 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि है।

वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान, नवंबर 2024 तक नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) की क्षमता में कुल 14.94 गीगावॉट की नई क्षमता जोड़ी गई, जो वित्तीय वर्ष 2023-24 में इसी अवधि के दौरान जोड़ी गई 7.54 गीगावॉट की क्षमता से लगभग दोगुनी है। अकेले नवंबर 2024 में, 2.3 गीगावॉट नई क्षमता जोड़ी गई – जो नवंबर 2023 में जोड़ी गई 566.06 मेगावाट से नाटकीय रूप से चार गुना की वृद्धि है।

सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि

भारत के नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में सभी प्रमुख श्रेणियों में व्यापक वृद्धि देखी गई है। सौर ऊर्जा अग्रणी बनी हुई है। इसकी स्थापित क्षमता 2023 में 72.31 गीगावॉट से बढ़कर 2024 में 94.17 गीगावॉट हो गई है, जो 30.2 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि है। पाइपलाइन परियोजनाओं सहित, कुल सौर क्षमता में 52.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 2023 में 171.10 गीगावॉट से बढ़कर 2024 में 261.15 गीगावॉट तक पहुंच गई। पवन ऊर्जा ने भी उल्लेखनीय योगदान दिया। इसकी स्थापित क्षमता 2023 में 44.56 गीगावॉट से बढ़कर 2024 में 47.96 गीगावॉट हो गई, जो 7.6 प्रतिशत की वृद्धि है। पाइपलाइन परियोजनाओं सहित कुल पवन क्षमता में 17.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 2023 में 63.41 गीगावॉट से बढ़कर 2024 में 74.44 गीगावॉट हो गई।

बायोएनर्जीजलविद्युत और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्रों से निरंतर योगदान

बायोएनर्जी और जलविद्युत परियोजनाओं ने भी नवीकरणीय ऊर्जा के मिश्रण में निरंतर योगदान दिया। बायोएनर्जी क्षमता 2023 में 10.84 गीगावॉट से बढ़कर 2024 में 11.34 गीगावॉट हो गई, जो 4.6 प्रतिशत की वृद्धि है। लघु जलविद्युत परियोजनाओं में मामूली वृद्धि देखी गई और यह वर्ष 2023 में 4.99 गीगावॉट से 2024 में 5.08 गीगावॉट हो गई। पाइपलाइन परियोजनाओं सहित इसकी कुल क्षमता 5.54 गीगावॉट तक पहुंच गई। बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में क्रमिक वृद्धि हुई और इसकी स्थापित क्षमता 2023 में 46.88 गीगावॉट से बढ़कर 2024 में 46.97 गीगावॉट हो गई तथा पाइपलाइन परियोजनाओं सहित कुल क्षमता पिछले वर्ष के 64.85 गीगावॉट से बढ़कर 67.02 गीगावॉट हो गई।

परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में, स्थापित परमाणु क्षमता 2023 में 7.48 गीगावॉट से बढ़कर 2024 में 8.18 गीगावॉट हो गई, जबकि पाइपलाइन परियोजनाओं सहित कुल क्षमता 22.48 गीगावॉट पर स्थिर रही।

ये प्रभावशाली आंकड़े नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता बढ़ाने और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के भारत सरकार के निरंतर प्रयासों को रेखांकित करते हैं। केन्द्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री श्री प्रल्हाद जोशी के अधीन एमएनआरई ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करते हुए और अपनी जलवायु संबंधी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के प्रति भारत के समर्पण को दर्शाते हुए विभिन्न महत्वपूर्ण पहल कर रहा है।

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भारत के 6जी विजन “भारत 6जी विजन” दस्तावेज में भारत को 2030 तक 6जी तकनीक के डिज़ाइन, विकास और स्थापना में अग्रणी योगदानकर्ता बनाने की परिकल्पना

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्तमान में, 6जी तकनीक विकास के चरण में है और 2030 तक उपलब्ध होने की उम्मीद है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 23 मार्च, 2023 को भारत के 6जी विजन “भारत 6जी विजन” दस्तावेज को जारी किया है, जिसमें 2030 तक 6जी तकनीक के डिज़ाइन, विकास और स्थापना में भारत को अग्रणी योगदानकर्ता बनाने की परिकल्पना की गई है। भारत 6जी विज़न सामर्थ्य, स्थिरता और सर्वव्यापकता के सिद्धांतों पर आधारित है। इसके अलावा, दूरसंचार विभाग ने ‘भारत 6जी गठबंधन’ की स्थापना की सुविधा प्रदान की है, जो भारत 6जी विजन के अनुसार कार्य योजना विकसित करने के लिए घरेलू उद्योग, शिक्षाविदों, राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों और मानक संगठनों का गठबंधन है।

अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल दूरसंचार (आईएमटी) के उपयोग के लिए अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) में 4400-4800 मेगाहर्ट्ज, 7125-8400 मेगाहर्ट्ज (या उसके भाग) और 14.8-15.35 गीगाहर्ट्ज आवृत्ति बैंड का अध्ययन किया जा रहा है। इन अध्ययनों के परिणामों के आधार पर, वर्ष 2027 में विश्व रेडियो संचार सम्मेलन में आईएमटी उपयोग के लिए इन बैंड की पहचान पर निर्णय लिया जाएगा। इन आवृत्ति बैंडों पर ‘आईएमटी 2030’ के लिए विचार किया जाना है, जिसे ‘6जी’ के रूप में भी जाना जाता है।

वर्तमान में देश में आईएमटी आधारित सेवाओं के लिए 600 मेगाहर्ट्ज, 700 मेगाहर्ट्ज, 800 मेगाहर्ट्ज, 900 मेगाहर्ट्ज, 1800 मेगाहर्ट्ज, 2100 मेगाहर्ट्ज, 2300 मेगाहर्ट्ज, 2500 मेगाहर्ट्ज, 3300 मेगाहर्ट्ज और 26 गीगाहर्ट्ज की पहचान की गई है। नीलामी में निर्धारित मूल्य का भुगतान करने के बाद इन बैंड में स्पेक्ट्रम हासिल करने वाले टीएसपी डिवाइस प्रणाली की उपलब्धता के आधार पर 2जी/3जी/4जी/5जी/6जी सहित किसी भी तकनीक को स्थापित कर सकते हैं।

संचार एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री डॉ. पेम्मासनी चंद्रशेखर ने आज लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।  PIB

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मिन वात्सल्य के तहत, बच्चों को संस्थागत देखभाल सेवाएं प्रदान करने के लिए वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 2450 बाल देखभाल संस्थानों को सहायताश

मिशन वात्सल्य योजना एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) द्वारा देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों (सीएनसीपी) और कानूनी विवाद से जूझ रहे बच्चों (सीसीएल) की सहायता करने के उद्देश्य से लागू किया जाता है। मिशन वात्सल्य का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि परियोजनाओं तथा कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाते समय बच्चों के सर्वोत्तम हितों का हमेशा ध्यान रखा जाए। उद्देश्यों में बच्चों के लिए आवश्यक सेवाओं, आपातकालीन संपर्क सेवाओं की स्थापना और संस्थागत और गैर-संस्थागत देखभाल सेवाओं को बेहतर ढंग से लागू करना शामिल है। मिशन के तहत स्थापित बाल देखभाल संस्थान ( सीसीआई) अन्य बातों के साथ-साथ, आयु-उपयुक्त शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण तक पहुंच, मनोरंजन, स्वास्थ्य देखभाल और परामर्श सहयोग देते हैं।

पूर्वोत्तर राज्यों और पहाड़ी राज्यों – हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड तथा जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित राज्य को छोड़कर सभी राज्यों और विधायी सदन वाले राज्य क्षेत्रों के लिए केंद्र और राज्यों के बीच 60:40 के अनुपात में धनराशि साझा की जाती है, जहां लागत साझा करने का अनुपात 90:10 है। विधायी सदन रहित केंद्रशासित राज्यों में, 100 प्रतिशत लागत केंद्र सरकार द्वारा वहन की जाती है।

मिशन के तहत, बच्चों को संस्थागत देखभाल सेवाएं प्रदान करने के लिए वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 2450 सीसीआई को सहायता प्रदान की गई है। कुल 1,21,861 बच्चों को गैर-संस्थागत देखभाल सहायता प्रदान की गई। इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान संस्थागत देखभाल के लिए 62,594 बच्चों को सहायता प्रदान की गई। वर्तमान में, राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में 762 जिला बाल संरक्षण इकाइयां, 781 बाल कल्याण समितियां और 774 किशोर न्याय बोर्ड हैं।

वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 3580 बच्चों को देश के भीतर और 449 बच्चों को विदेश में रहने वाले लोगों द्वारा गोद लिया गया।

महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती सावित्री ठाकुर ने आज राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में यह जानकारी दी।

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कानपुर विद्या मंदिर महिला महाविद्यालय में “India’s Amrit Kaal:A Vision for dollar 5 trillion Economy” विषय पर गेस्ट लेक्चर कार्यक्रम आयोजित

भारतीय स्वरूप संवाददाता कानपुर विद्या मंदिर महिला महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग द्वारा “India’s Amrit Kaal:A Vision for dollar 5 trillion Economy” विषय पर गेस्ट लेक्चर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्त के रूप में Prof.Vandana Dwivedi,Head of Economics department,PPN PG College Kanpur विषय विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित होकर कार्यक्रम को सुशोभित किया एवं भारत की आर्थिक दृष्टि और 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि साझा की।

कार्यक्रम की शुरुआत गेस्ट स्पीकर प्रोफेसर वंदना द्विवेदी एवं महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर पूनम विज के द्वारा दीप प्रज्वान करके की गई।इसके पश्चात कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत अर्थशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष,सुश्री नेहा सिंह के स्वागत भाषण से हुई, जिन्होंने व्याख्यान के विषय का परिचय दिया और वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में इसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। इसके बाद अतिथि वक्ता का परिचय कराया गया। व्याख्यान में,गेस्ट स्पीकर प्रोफेसर वंदना द्विवेदी ने भारत की आर्थिक नीतियों में परिकल्पित अमृत काल की अवधारणा पर विस्तार से चर्चा की। वक्ता ने सरकार द्वारा किए जा रहे रणनीतिक उपायों पर चर्चा की, जिसमें बुनियादी ढांचे का विकास, डिजिटल परिवर्तन, कौशल वृद्धि और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए नीति सुधार शामिल हैं। उन्होंने इस दृष्टि को साकार करने में सतत विकास, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता के महत्व पर भी जोर दिया। व्याख्यान में शिक्षा ,निवेश,विनिर्माण, सेवा और कृषि जैसे विकास को गति देने वाले प्रमुख क्षेत्रों का विस्तृत विश्लेषण किया गया। वक्ता ने भारत के आर्थिक भविष्य को आकार देने में युवाओं और महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। इसके अतिरिक्त, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं, मुद्रास्फीति और बेरोजगारी जैसी चुनौतियों पर विचार किया गया और व्यावहारिक समाधान सुझाए गए। इसके बाद हुए संवादात्मक सत्र में छात्राओं और शिक्षकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। भारत की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक आर्थिक रुझानों के प्रभाव से लेकर $5 ट्रिलियन लक्ष्य को प्राप्त करने में स्टार्टअप और उद्यमिता की भूमिका तक के प्रश्न पूछे गए। वक्ता के जवाब व्यावहारिक और उत्साहवर्धक थे, जिससे श्रोता प्रेरित और सूचित हुए। कार्यक्रम का समापन डॉ० शोभा मिश्रा द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिन्होंने अतिथि वक्ता को उनके ज्ञानवर्धक व्याख्यान के लिए आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का कुशल संयोजन एवं संचालन अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष  नेहा सिंह के द्वारा किया गया कार्यक्रम में महाविद्यालय की कला, विज्ञान एवं वाणिज्य संकाय की शिक्षिकाएं एवं कुल 67 छात्राएं उपस्थित रही।

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महिला हेल्पलाइन से 31.10.2024 तक 81.64 लाख से अधिक महिलाओं को सहायता प्रदान की गई

महिला हेल्पलाइन (डब्‍ल्‍यूएचएल) सेवा 1 अप्रैल, 2015 से काम कर रही है। यह मिशन शक्ति के अंतर्गत संबल पहल का एक घटक है। इसका उद्देश्य महिलाओं को पुलिस, वन स्टॉप सेंटर, अस्पताल, कानूनी सेवा प्राधिकरण आदि जैसे उपयुक्त अधिकारियों से जोड़कर सार्वजनिक और निजी दोनों जगहों पर टेलीफोन सेवा 181 के माध्यम से 24x7x365 आपातकालीन और गैर-आपातकालीन राहत प्रदान करना है। इसके अतिरिक्त, यह महिला कल्याण योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। वर्तमान में, डब्‍ल्‍यूएचएल 35 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में कार्यरत है (पश्चिम बंगाल सरकार डब्‍ल्‍यूएचएल को लागू नहीं कर रही है) और इसकी शुरुआत से 31.10.2024 तक 81.64 लाख से अधिक महिलाओं को सहायता प्रदान की गई है।

मिशन शक्ति दिशा-निर्देशों के अनुसार, योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्य/संघ राज्य क्षेत्र जिम्मेदार हैं। सम्‍बंधित राज्य/संघ राज्य क्षेत्र आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर जन जागरूकता गतिविधियां चलाते हैं।

महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती सावित्री ठाकुर ने आज राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में यह जानकारी दी।

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केंद्र ने ट्रंक इंफ्रास्ट्रक्चर पैकेज के विकास के लिए 28,602 करोड़ रुपये की 12 नई औद्योगिक स्मार्ट सिटी परियोजनाओं को मंजूरी दी

भारत सरकार ने 28 अगस्त 2024 को ट्रंक इंफ्रास्ट्रक्चर पैकेज के विकास के लिए 28,602 करोड़ रुपये (भूमि लागत सहित) की कुल परियोजना लागत के साथ 12 नई औद्योगिक स्मार्ट सिटी परियोजनाओं को मंजूरी दी है। औद्योगिक गलियारा कार्यक्रम के स्वीकृत संस्थागत और वित्तीय ढांचे के अनुसार, राज्य सरकार भूमि प्रदान करती है और भारत सरकार राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट (एनआईसीडीआईटी) के माध्यम से आंतरिक ट्रंक इंफ्रास्ट्रक्चर घटकों के विकास के लिए इक्विटी प्रदान करती है। ट्रंक इंफ्रास्ट्रक्चर की अस्थायी निर्माण समयसीमा ईपीसी ठेकेदार की नियुक्ति की वास्तविक तिथि से 36-48 महीने है।

राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा कार्यक्रम के अंतर्गत विभिन्न चरणों में चल रही परियोजनाओं का विवरण इस प्रकार है:

क्रम संख्या कॉरिडोर नाम स्थिति  
1 डीएमआईसी: दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा
  1. धोलेरा विशेष निवेश क्षेत्र (डीएसआईआर), गुजरात
ट्रंक अवसंरचना वाली परियोजनाएं पूरी हो गईं  
  1. शेंद्रा बिडकिन औद्योगिक क्षेत्र (एसबीआईए), महाराष्ट्र
 
  1. एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप – ग्रेटर नोएडा (आईआईटी-जीएन), उत्तर प्रदेश
 
  1. एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप – विक्रम उद्योगपुरी (आईआईटी-वीयूएल), मध्य प्रदेश
 
  1. एकीकृत मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स हब – नांगल चौधरी, हरियाणा
विकासाधीन परियोजनाएं  
  1. मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक्स हब और मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्ट हब (एमएमएलएच और एमएमटीएच), उत्तर प्रदेश
 
  1. दिघी पोर्ट औद्योगिक क्षेत्र, महाराष्ट्र
28 अगस्त, 2024 को भारत सरकार द्वारा हाल ही में स्वीकृत परियोजनाएं  
  1. जोधपुर पाली मारवाड़ औद्योगिक क्षेत्र, राजस्थान
 
2 सीबीआईसी: चेन्नई बेंगलुरु औद्योगिक

गलियारा

  1. कृष्णापट्टनम औद्योगिक क्षेत्र, आंध्र प्रदेश
विकासाधीन परियोजनाएं  
  1. तुमकुरु औद्योगिक क्षेत्र, कर्नाटक
3 कोयंबटूर होते हुए कोच्चि तक सीबीआईसी का विस्तार
  1. पलक्कड़ औद्योगिक क्षेत्र, केरल
 

 

28 अगस्त, 2024 को भारत सरकार द्वारा हाल ही में स्वीकृत परियोजनाएं

4 एकेआईसी: अमृतसर कोलकाता औद्योगिक गलियारा
  1. आईएमसी खुरपिया फार्म, उत्तराखंड
  1. आईएमसी राजपुरा पटियाला, पंजाब
 
  1. आईएमसी हिसार, हरियाणा
 
  1. आईएमसी आगरा, उत्तर प्रदेश
 
  1. आईएमसी प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
 
  1. आईएमसी गया, बिहार
 
5 एचएनआईसी: हैदराबाद नागपुर औद्योगिक

कॉरिडोर

  1. जहीराबाद फेज-1, तेलंगाना
 
6 एचबीआईसी: हैदराबाद बेंगलुरु औद्योगिक

कॉरिडोर

  1. ओर्वाकल औद्योगिक क्षेत्र, आंध्र प्रदेश
 
7 वीसीआईसी: विजाग चेन्नई औद्योगिक गलियारा
  1. कोपार्थी औद्योगिक क्षेत्र, आंध्र प्रदेश
 

 

राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम के अंतर्गत प्रत्येक औद्योगिक शहर/क्षेत्र/नोड का प्रबंधन एक विशेष प्रयोजन वाहन (एसपीवी) द्वारा किया जाता है। एसपीवी में निजी क्षेत्र का उचित प्रतिनिधित्व हो सकता है, जहां भी राज्य सरकार निजी क्षेत्र को शामिल करने का निर्णय लेती है। यह औद्योगिक स्मार्ट शहरों के विकास के लिए उपयोगकर्ता शुल्क निधि, मूल्य निर्धारण नवाचारों और विभिन्न पीपीपी व्यवस्थाओं के माध्यम से वितरण जैसे अभिनव बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण और वितरण उपकरणों का लाभ उठाने के लिए भी अधिकृत है। राज्य सरकार, जैसा उचित समझे, इस उद्देश्य के लिए द्विपक्षीय/बहुपक्षीय वित्तपोषण भी मांग सकती है।

विभिन्न औद्योगिक स्मार्ट शहरों के लिए फोकस सेक्टर अलग-अलग तरीके से परिभाषित किए गए हैं। इस प्रक्रिया में फोकस सेक्टर को परिभाषित करने के लिए बाजार की मांग का आकलन रिपोर्ट तैयार करना शामिल है। कुछ फोकस सेक्टर हैं हैवी इंजीनियरिंग, ऑटो और सहायक उपकरण, सामान्य विनिर्माण, फार्मा और बायोटेक, इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग, आईटी और आईटीईएस, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक और ऑप्टिकल उत्पाद, एयरोस्पेस, रबर और प्लास्टिक, फैब्रिकेटेड धातु उत्पाद, अनुसंधान और विकास, आईसीटी, इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग, फैब्रिकेशन (अर्धचालक), नैनो टेक्नोलॉजी और ऑप्टो इलेक्ट्रॉनिक्स।

यह जानकारी आज केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री श्री पीयूष गोयल ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

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डाकघर पासपोर्ट सेवा केंद्र सेवा में वृद्धि के लिए विदेश मंत्रालय और डाक विभाग के बीच समझौता ज्ञापन का नवीनीकरण

आज एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, डाकघर पासपोर्ट सेवा केंद्रों (POPSKs) के माध्यम से पासपोर्ट सेवाओं की निरंतर पहुंच के लिए विदेश मंत्रालय (एमईए) और डाक विभाग के बीच एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) को पांच साल के लिए नवीनीकृत किया गया। डाक विभाग की ओर से व्यापार विकास निदेशालय की महाप्रबंधक सुश्री मनीषा बंसल बादल और विदेश मंत्रालय की ओर से संयुक्त सचिव (पीएसपी और सीपीओ) डॉ. के.जे. श्रीनिवास ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।

समझौता ज्ञापन में POPSKs के प्रभावी प्रबंधन और परिचालन समर्थन के लिए साझा प्रतिबद्धता को रेखांकित किया गया है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि भारत के नागरिकों को अपने निकटतम डाकघरों में विश्व स्तरीय पासपोर्ट सेवाएं मिलती रहें।

2017 में शुरू की गई डाकघर पासपोर्ट सेवा केंद्र (POPSKs) 1.52 करोड़ से अधिक नागरिकों को पासपोर्ट से संबंधित सेवाओं की सुविधा प्रदान करने में सहायक रही है, खासकर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में, जिससे पूरे भारत में नागरिकों के लिए पासपोर्ट सेवाओं तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित हुई है। पिछले कुछ वर्षों में डाकघर पासपोर्ट सेवा केंद्रों (POPSKs) का नेटवर्क काफी बढ़ गया है, वर्तमान में देश भर में 442 केंद्र चालू हैं।

यह समझौता ज्ञापन विदेश मंत्रालय और डाक विभाग के बीच सहयोग को मजबूत करता है, जिसका उद्देश्य सेवा वितरण को बढ़ाना, संचालन को सुव्यवस्थित करना और पासपोर्ट से संबंधित सेवाओं की बढ़ती मांग को पूरा करना है। इस पहल के तहत, 2028-29 तक देश भर में पासपोर्ट सेवा केंद्रों की संख्या 600 केंद्रों तक बढ़ाने की योजना है, जिससे नागरिकों के लिए अधिक पहुंच और सुविधा सुनिश्चित होगी और अगले पांच वर्षों में वार्षिक ग्राहक आधार 35 लाख से बढ़कर 1 करोड़ हो जाएगा।

यह पहल दोनों मंत्रालयों के सहयोगात्मक प्रयास को दर्शाती है, ताकि एक सहज, सुलभ और कुशल पासपोर्ट जारी करने की प्रक्रिया सुनिश्चित करके नागरिक अनुभव को बेहतर बनाया जा सके। यह भारत के डाक नेटवर्क को और मजबूत करेगा, जिससे पासपोर्ट सेवाएँ सभी नागरिकों के लिए अधिक सुविधाजनक, विश्वसनीय और आसानी से सुलभ हो जाएँगी।

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सुश्री मनीषा बंसल बादलमहाप्रबंधकव्यवसाय विकासडाक विभागडॉके.जेश्रीनिवाससंयुक्त सचिव (पीएसपी एवं सीपीओ) – विदेश मंत्रालय

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय क्वांटम मिशन में सहयोग के लिए इजरायली स्टार्टअप को आमंत्रित किया

भारत दौरे पर आए इजराइल के उद्योग एवं अर्थव्यवस्था मंत्री नीर बरकत ने आज केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान, प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह से भेंट की। दोनों नेताओं ने स्टार्टअप्स, विशेषकर अंतरिक्ष एवं क्वांटम प्रौद्योगिकी में सहयोग पर चर्चा की। उन्होंने कृषि एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों में सहयोगात्मक नवाचार पहलों पर भी चर्चा की।

इजराइल के मंत्री के साथ एक उच्चस्तरीय आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल भी था।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत के राष्ट्रीय क्वांटम मिशन की परिवर्तनकारी क्षमता के बारे में बताया और इसे देश की तकनीकी आकांक्षाओं की आधारशिला कहा। उन्होंने क्वांटम कंप्यूटिंग में अपने अग्रणी कार्य के लिए जाने जाने वाले इजरायली स्टार्टअप को भारतीय संस्थानों के साथ मिलकर महत्वपूर्ण क्वांटम तकनीकों का सह-विकास करने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने कहा, “भारत और इजरायल इस क्षेत्र में एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं – भारत अपने बड़े बाजार, जनशक्ति और अवसरों के साथ और इजरायल अपने अत्याधुनिक नवाचार के साथ।”

भारत के राष्ट्रीय क्वांटम मिशन का उद्देश्य संचार, क्रिप्टोग्राफी और कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए क्वांटम तकनीकों का उपयोग करना है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इजरायली स्टार्टअप और शोधकर्ता आपसी लाभ के लिए अपने अनुभव का लाभ उठाते हुए महत्वपूर्ण तकनीकों के सह-विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत के अंतरिक्ष के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास पर जोर दिया उन्होंने अंतरिक्ष स्टार्टअप में विकास का श्रेय सरकार की दूरदर्शी नीतियों और पहलों को दिया। अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोले जाने के बाद से इस क्षेत्र में स्टार्टअप की संख्या में वृद्धि हुई है। यह वैश्विक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है। उन्होंने कहा, “इजरायल के अंतरिक्ष स्टार्टअप में अपने भारतीय समकक्षों के साथ सहयोग करने की अपार संभावनाएं हैं,” उन्होंने भारत की लागत-प्रभावी उत्पादन क्षमताओं और प्रतिभा के साथ इजरायल के नवाचार कौशल का लाभ उठाने के पारस्परिक लाभों पर जोर दिया।

पीपीपी+पीपीपी-सार्वजनिक-निजी भागीदारी+नीतिगत प्रोत्‍साहन- की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने इसे एक अनूठा मॉडल बताया जिससे भारत में नवाचार और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत और इजरायल महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों में संयुक्त उद्यमों को बढ़ाने के लिए इस व्‍यवस्‍था को अपनाएं। मंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि बाजारों और जनशक्ति के मामले में भारत की अर्थव्यवस्थाओं के मानदंड को इजरायल की नवाचार में अर्थव्यवस्थाओं के साथ मिलाने से सफलता का एक विजयी सूत्र तैयार होगा

मंत्री ने अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान मिशन (एनआरएम) के बारे में बात की जिसका उद्देश्य भारत में विभिन्न विषयों में अनुसंधान को एक करना और उसे बढ़ावा देना है। उन्होंने इसे उन्नत अनुसंधान और विकास में इजरायल की क्षमताओं से जोड़ा और वैश्विक चुनौतियों को हल करने के लिए एक सहयोगी दृष्टिकोण की कल्पना की। डॉ. जितेंद्र सिंह ने बढ़ते जैव-अर्थव्यवस्था क्षेत्र पर भी बात की उन्होंने कहा कि वर्तमान शासन के तहत भारत में जैव-स्टार्टअप की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी गई है। उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी में इजरायल की विशेषज्ञता का स्वागत किया और कृषि, स्वास्थ्य सेवा और सतत विकास में नवाचार को बढ़ावा देने वाली साझेदारी का प्रस्ताव दिया।

बैठक के दौरान, दोनों मंत्रियों ने सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) में साझेदारी की संभावनाओं पर भी चर्चा की। डॉ. जितेंद्र सिंह ने इजरायली कंपनियों को इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भारत को एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में देखने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने मोबाइल निर्माण और 5जी रोलआउट सहित स्वदेशी तकनीक विकास में भारत की प्रगति के बारे बताया।

बरकत ने भारत के अटूट समर्थन के लिए गहरा आभार व्यक्त किया, महत्वपूर्ण समय के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की त्वरित एकजुटता के बारे में बताया। उन्होंने इजरायल के निर्यात को बढ़ावा देने वाले छह प्रमुख समूहों के अभिनव आर्थिक मॉडल के बारे में विस्तार से बताया। इनमें उन्नत विनिर्माण, जीवन विज्ञान और उच्च तकनीक क्षेत्र शामिल हैं। इसी अनुसार इन समूहों के लिए अनुरूप बुनियादी ढांचा बनाना, प्रयोगशालाओं जैसी विशेष सुविधाएँ बनाना शामिल है। यह कई स्टार्टअप की आवश्‍यकताओं को पूरा करते हैं। उदाहरण के लिए, कृषि-तकनीक कंपनियों के लिए साझा प्रयोगशालाएँ न केवल लागत कम करती हैं बल्कि एक सहयोगी तंत्र को भी बढ़ावा देती हैं। सार्वजनिक-निजी भागीदारी का लाभ उठाकर इज़राइल अपनी क्षमता का अधिकतम उपयोग करता है और नवाचारों को प्रभावी ढंग से बढ़ाता है। यह भारत-इज़राइल सहयोग के लिए एक अनुकरणीय है।

श्री बरकत ने रणनीतिक पायलट परियोजनाओं और क्षेत्र-विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप बुनियादी ढांचे में निवेश के माध्यम से भारत-इज़राइल संबंधों को और मजबूत करने की संभावना पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि इज़राइल की छोटी लेकिन नवाचार-समृद्ध अर्थव्यवस्था भारत के बाजार आकार और प्रतिभा के विशाल पैमाने को पूरक बनाती है। विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्वांटम प्रौद्योगिकियों जैसे क्षेत्रों में सहयोग दोनों देशों के लिए समाधान में स‍हायता कर सकते हैं। इन सहयोगों को बढ़ावा देकर इज़राइल और भारत खुद को नवाचार में वैश्विक नेताओं के रूप में स्थापित कर सकते हैं और दोनों देशों की सरकारों और लोगों के बीच मजबूत संबंधों को बढ़ावा दे सकते हैं।

दोनों मंत्रियों ने कृषि और समुद्री क्षेत्रों में आपसी लाभ की उनकी क्षमता को पहचानते हुए सहयोगी प्रयास शुरू करने पर सहमति व्यक्त की। उन्होंने नवाचार और सतत विकास के अवसरों की पहचान करते हुए इन क्षेत्रों का गहन अध्ययन करने के लिए एक समर्पित कार्य समूह के गठन का प्रस्ताव रखा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्थाओं के रूप में भारत और इज़राइल की साझा आकांक्षाओं का उल्‍लेख किया। उन्होंने दोहराया कि अंतरिक्ष, क्वांटम कंप्यूटिंग, जैव प्रौद्योगिकी और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में साझेदारी न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगी बल्कि दोनों देशों को वैश्विक नवाचार में अग्रणी के रूप में भी स्थापित करेगी। उन्होंने कहा, “हम मिलकर आज की चुनौतियों का समाधान करने तथा बेहतर कल के लिए समाधान तैयार करने के लिए अपनी शक्तियों का उपयोग कर सकते हैं।”

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भारत का 100 दिवसीय टीबी उन्मूलन अभियान

7 दिसंबर, 2024 को भारत तपेदिक (टीबी) को खत्म करने की दिशा में एक साहसिक कदम उठाएगा। तपेदिक एक ऐसा रोग है, जो देश भर में लाखों लोगों को प्रभावित करना जारी रखे हुए है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री जगत प्रकाश नड्डा हरियाणा के पंचकूला में इस महत्वाकांक्षी 100 दिवसीय टीबी उन्मूलन अभियान का आधिकारिक रूप से शुभारंभ करेंगे। इस अभियान का उद्देश्य विशेष रूप से असुरक्षित आबादी के लिए टीबी के मामलों का पता लगाने, निदान में होने वाली देरी को कम करने और उपचार के परिणामों को बेहतर बनाते हुए टीबी के खिलाफ़ लड़ाई को तेज़ करना है। यह अभियान 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 347 जिलों में टीबी को समाप्‍त करने और टीबी मुक्त राष्ट्र बनाने की भारत की रणनीति का एक महत्वपूर्ण घटक है।

राष्ट्रीय तपेदिक उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी): टीबी मुक्त भारत का विजन

यह 100 दिवसीय अभियान राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तत्वावधान में राष्ट्रीय तपेदिक उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के व्यापक ढांचे का अंग है, जो टीबी उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (एनएसपी) 2017-2025 से संबद्ध है। एनएसपी टीबी के मामलों में कमी लाने, निदान और उपचार की क्षमताओं को बेहतर बनाने और इस रोग के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को दूर करने पर केंद्रित है। यह महत्वाकांक्षी पहल 2018 के टीबी उन्मूलन शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी द्वारा निर्धारित विजन को प्रतिबिम्बित करती है, जिसमें उन्होंने 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य हासिल करने का संकल्प लिया था।

एनटीईपी के तहत भारत में टीबी के मामलों में कमी लाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। यहां टीबी के मामलों की दर में वर्ष 2015 में प्रति 100,000 की आबादी पर 237 मामलों की तुलना में वर्ष 2023 में प्रति 100,000 की आबादी पर 195 मामलों के साथ 17.7 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। इसी तरह, टीबी से संबंधित मौतों में वर्ष 2015 में प्रति लाख की आबादी पर 28 मौतों से 2023 में प्रति लाख की आबादी पर 22 मौतों के साथ 21.4 प्रतिशत तक की कमी आई है। पिछले पांच वर्षों में, टीबी के मामलों की सूचना देने में लगातार वृद्धि हुई है, जैसा कि निम्नलिखित आंकड़ों में देखा जा सकता है:

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कोविड-19 के बाद भारत ने एनटीईपी के जरिए टीबी उन्‍मूलन के अपने प्रयास तेज कर दिए हैं, जो एनएसपी के साथ लगातार संबद्धता बनाए हुए है। 2023 की प्रमुख उपलब्धियों में लगभग 1.89 करोड़ स्‍प्‍यूटम स्मीयर परीक्षण और 68.3 लाख न्यूक्लिक एसिड एम्‍प्‍लीफीकेशन परीक्षण शामिल हैं, जो स्वास्थ्य सेवा स्तरों में नैदानिक पहुंच का विस्तार करने की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

विकसित हो रहे चिकित्सकीय अनुसंधान के अनुरूप, एनटीईपी ने व्यापक देखभाल पैकेज और विकेन्द्रीकृत टीबी सेवाएं शुरू की हैं, जिनमें अब दवा प्रतिरोधी टीबी (डीआर-टीबी) के रोगियों के लिए अल्‍पकालीन मौखिक उपचार तक व्यापक पहुंच शामिल है। यह कार्यक्रम अलग तरह की देखभाल के नजरिए और जल्‍द निदान को प्रोत्‍साहन देने के माध्‍यम से कुपोषण, मधुमेह, एचआईवी और मादक द्रव्यों के सेवन जैसी स्वास्थ्य की सहवर्ती स्थितियों से निपटने पर विशेष ध्‍यान देते हुए उपचार में होने वाली देरी को कम करने और देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाने पर बल देता है। टीबी निवारक उपचार (टीपीटी) तक पहुंच में महत्‍वपूर्ण विस्तार के साथ निवारक उपाय भी एनटीईपी की रणनीति का केंद्र बने हुए हैं। इनकी बदौलत अल्‍पकालिक उपचार वालों सहित टीपीटी प्राप्त करने वाले लाभार्थियों की संख्या बढ़कर लगभग 15 लाख हो गई है।

टीबी और स्वास्थ्य की अन्य स्थितियों के बीच परस्पर क्रिया को पहचानते हुए एनटीईपी ने कुपोषण, मधुमेह, एचआईवी और मादक द्रव्यों के सेवन जैसी समस्‍याओं से निपटने की दिशा में कदम उठाए हैं। विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के साथ मिलकर किए जा रहे इन प्रयासों का उद्देश्य टीबी रोगियों को अधिक समग्र सहायता प्रदान करना है, अंततः उनके उपचार के परिणामों को बेहतर बनाना है।

उच्च जोखिम वाली आबादी के लिए निदान और उपचार को बढ़ाना

100 दिवसीय टीबी उन्मूलन अभियान का मुख्य उद्देश्य विशेषकर सबसे असुरक्षित समूहों के लिए निदान और उपचार सेवाओं को मजबूत बनाना है। इनमें दूरदराज और वंचित क्षेत्रों में रहने वाले लोग, हाशिए पर रहने वाले समुदाय तथा मधुमेह, एचआईवी और कुपोषण जैसी सह-रुग्णता से पीडि़त व्यक्ति शामिल हैं। यह अभियान उन्नत निदान तक पहुंच में सुधार और उपचार शुरू होने में देरी को कम करने के लिए डिज़ाइन की गई विशेष रणनीतियों के साथ अत्‍यधिक बोझ वाले क्षेत्रों को लक्षित करेगा।

यह अभियान टीबी सेवाओं को जमीनी स्तर तक पहुंचाने में सहायक रहे आयुष्मान आरोग्य मंदिरों के व्यापक नेटवर्क सहित मौजूदा स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे का लाभ उठाएगा। इसके अलावा, स्क्रीनिंग के प्रयास उच्च जोखिम वाले समूहों पर केंद्रित होंगे और स्वास्थ्य संबंधी अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करने वाले व्यक्तियों के लिए विशेष देखभाल पैकेज शुरू किए जाएंगे।

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यह पहल टीबी के रोगियों को बेहतर पोषण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली नि-क्षय पोषण योजना के माध्यम से पोषण सहायता का भी विस्तार करेगी। इसके अतिरिक्त, सरकार ने टीबी रोगियों के निकट संपर्क में रहने वालों को व्यापक देखभाल और सहायता दिलाना सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक सहायता पहल प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान (पीएमटीबीएमबीए) को एकीकृत किया है।

रणनीतिक हस्‍तक्षेप

राष्ट्रीय तपेदिक उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) तपेदिक (टीबी) से निपटने और समूचे भारत में टीबी के परिणामों में असमानताओं को दूर करने की व्यापक रणनीति के केंद्र में है। इस रणनीति के तहत, कई प्रमुख हस्तक्षेप किए जा रहे हैं, जिनमें मामलों का पता लगाने में सुधार, निदान में देरी में कमी और विशेष रूप से असुरक्षित समुदायों के लिए बेहतर उपचार परिणाम शामिल हैं। इन प्रयासों का उद्देश्य एनटीईपी को मजबूत बनाना और पूरे देश में टीबी उन्‍मूलन के लिए अधिक न्यायसंगत और प्रभावी दृष्टिकोण सुनिश्चित करना है, जैसे:

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इन प्रयासों से टीबी के मामलों, नैदानिक कवरेज और मृत्यु दर जैसे प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों में सुधार होने की संभावना है, जिससे भारत टीबी उन्‍मूलन के अपने लक्ष्य के करीब पहुंच जाएगा।

वित्तीय सहायता और सामुदायिक सहभागिता: टीबी के खिलाफ लड़ाई को सशक्त बनाना

टीबी उन्मूलन की दिशा में भारत की प्रतिबद्धता चिकित्सकीय हस्तक्षेपों से कहीं बढ़कर है। नि-क्षय पोषण योजना के माध्यम से सरकार ने 1 करोड़ लाभार्थियों को सहायता देने के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के जरिए लगभग 2,781 करोड़ रुपये वितरित किए हैं। इसके अतिरिक्त, नई पहलों के तहत आशा कार्यकर्ताओं, टीबी चैंपियनों (विजेताओं) और नि-क्षय साथी मॉडल के तहत पारिवारिक देखभाल करने वालों सहित उपचार में सहायता देने वालों को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। यह सहायता नेटवर्क रोगियों को चिकित्सकीय और भावनात्मक दोनों तरह से निरंतर देखभाल मिलना सुनिश्चित करता है।

2022 में पीएमटीबीएमबीए की शुरुआत व्यापक सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करते हुए टीबी के खिलाफ लड़ाई की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई । टीबी के रोगियों की मदद करने के लिए 1.5 लाख से ज़्यादा नि-क्षय मित्र (सामुदायिक समर्थक) पहले ही इस प्रयास में शामिल हो चुके हैं। राजनीतिक नेताओं, सरकारी अधिकारियों और गैर सरकारी संगठनों ने भी जागरूकता अभियानों में सक्रिय रूप से भाग लिया है, जो टीबी को समाप्‍त करने की दिशा में जमीनी स्तर पर हो रहे सामूहिक प्रयास को दर्शाता है।

टीबी उन्मूलन दिशा में भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता

टीबी को जड़ से खत्म करने के प्रति भारत का दृष्टिकोण केवल राष्ट्रीय प्रयास भर नहीं है; यह वैश्विक लक्ष्यों के साथ भी संबद्ध है। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में, भारत टीबी को एसडीजी की 2030 की समय सीमा से पांच साल पहले ही 2025 तक खत्म करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है।

टीबी उन्मूलन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता अंतर्राष्ट्रीय घोषणाओं जैसे कि, गांधीनगर घोषणापत्र के प्रति इसके समर्थन में भी स्पष्ट होती है, जिस पर डब्ल्यूएचओ दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के स्वास्थ्य मंत्रियों द्वारा अगस्त 2023 में हस्ताक्षर किए गए थे। इस क्षेत्रीय संकल्‍प का उद्देश्य क्षेत्र में 2030 तक टीबी के खिलाफ लड़ाई को बनाए रखना, तेज करना और नई राह निकालना है।

आगे की राह: 2025 तक टीबी का उन्मूलन

टीबी मुक्त राष्ट्र की दिशा में भारत की यात्रा में यह 100 दिवसीय टीबी उन्मूलन अभियान एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। विशेष रूप से उच्च जोखिम वाले समूहों के लिए निदान, उपचार और सहायता सेवाओं को बढ़ाकर, भारत 2025 तक टीबी को समाप्त करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण के लिए मंच तैयार कर रहा है। निरंतर राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामुदायिक सहभागिता और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ, टीबी मुक्त भारत – तपेदिक से मुक्त भारत – का सपना साकार हो सकता है।

इस उद्देश्य के प्रति संकल्‍पबद्धता स्वास्थ्य संबंधी न्‍यायसंगतता, सामाजिक न्याय और सतत विकास के व्यापक दृष्टिकोण को प्रतिबिम्बित करती है। जिस तरह भारत टीबी के खिलाफ लड़ाई में निर्णायक कदम उठा रहा है, यह इस बात को साबित करते हुए दुनिया के सामने एक मिसाल कायम कर रहा है कि सहयोग, नवाचार और दृढ़ संकल्प के बल पर वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटा जा सकता है।

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