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प्रधानमंत्री ने नई शिक्षा नीति–2020 के तहत ‘21वीं सदी में स्कूली शिक्षा’ विषय पर संगोष्ठी को संबोधित किया

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज यहां वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 21वीं सदी में स्कूली शिक्षा विषय पर एकसंगोष्ठी को संबोधित किया। शिक्षक पर्व 2020 के एक हिस्से के तौर पर शिक्षा मंत्रालय द्वारा ‘21वीं सदी में स्कूली शिक्षा’ विषय पर आयोजित एक दो-दिवसीय संगोष्ठी की आभासी शुरुआत 10 सितंबर 2020 को हुई। इस संगोष्ठी का आयोजन शिक्षा मंत्रालय द्वारा शिक्षक पर्व के एक हिस्से के तौर पर किया गया। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल; केन्द्रीय शिक्षा राज्यमंत्री श्री संजय धोत्रे; उच्च शिक्षा विभाग के सचिव श्री अमित खरे तथा स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की सचिव श्रीमती अनीता करवाल ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया। इस अवसर पर नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. कस्तूरीरंगन, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मसौदा समिति के सदस्य प्रोफेसर एम. के. श्रीधर, नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति के सदस्य प्रोफेसर मंजुल भार्गव तथा नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति की सदस्य डॉ. शकीला शम्सु भी उपस्थित थीं।

इस अवसर पर बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21वीं सदी के भारत को एक नई दिशा देने जा रही है और हम एक ऐसे क्षण का हिस्सा बन रहे हैं जो हमारे देश के भविष्य के निर्माण की नींव रख रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशकों में हमारे जीवन का शायद ही कोई पहलू पहले जैसा रहा हो, फिर भी हमारी शिक्षा प्रणाली अभी भी पुरानी व्यवस्था के तहत चल रही है। उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति नई आकांक्षाओं, एक नए भारत के नए अवसरों को पूरा करने का एक साधन है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पिछले 3 से 4 वर्षों में हर इलाके, हर क्षेत्र एवं हर भाषा के लोगों की कड़ी मेहनत का परिणाम है। उन्होंने कहा कि इस नीति के कार्यान्वयन के साथ वास्तविक कार्य अब शुरू होगा। उन्होंने शिक्षकों से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी नीति की घोषणा के बाद कई सवालों का उठना जायज है और  आगे बढ़ने के लिए इस संगोष्ठी में वैसे मुद्दों पर चर्चा करना आवश्यक है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के लिए प्रधानाध्यापक एवं शिक्षक इस चर्चा में उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के बारे में देशभर के शिक्षकों से एक सप्ताह के भीतर 1.5 मिलियन से अधिक सुझाव प्राप्त हुए हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ऊर्जावान युवा किसी देश के विकास के साधन होते हैं, लेकिन उनका विकास उनके बचपन से शुरू हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों की शिक्षा, उन्हें मिलने वाला सही माहौल, काफी हद तक यह निर्धारित करता है कि वह व्यक्ति अपने भविष्य में क्या बनेगा और उसका व्यक्तित्व कैसा होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 इस पर बहुत जोर देती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि प्री–स्कूल वह अवस्था है, जहां बच्चे अपनी इंद्रियों, अपने कौशल को बेहतर ढंग से समझने लगते हैं। इसके लिए, स्कूलों एवं शिक्षकों को बच्चों को मजेदार तरीके से  सीखने, खेल के साथ सीखने, गतिविधि आधारित सीखने तथा खोज आधारित सीखने का माहौल प्रदान करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है, उसमें अधिक से अधिक सीखने की भावना, वैज्ञानिक एवं तार्किक सोच, गणितीय सोच तथा वैज्ञानिक चेतना विकसित करना बहुत आवश्यक है।

प्रधानमंत्री ने पुरानी 10 प्लस 2 की प्रणाली को  राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 5 प्लस 3 प्लस 3 प्लस 4 की प्रणाली से बदलने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अब प्री-स्कूल की खेल के साथ शिक्षा, जो शहरों में निजी स्कूलों तक सीमित है, इस नीति के लागू होने के बाद गांवों में भी पहुंचेगी।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बुनियादी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना इस नीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत, बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक साक्षरता के विकास को एक राष्ट्रीय मिशन के तौर पर लिया जाएगा। एक बच्चे को आगे बढ़ना चाहिए और  सीखने के लिए पढ़ना चाहिए, इसके लिए यह आवश्यक है कि वह शुरुआत में पढ़ना सीखे। पढ़ना सीखने से लेकर सीखने के लिए पढ़ने की यह विकास यात्रा बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक साक्षरता के माध्यम से पूरी होगी।

प्रधानमंत्री ने देश के बच्चों के धाराप्रवाह मौखिक पठन के लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि तीसरी कक्षा को पार करने वाला प्रत्येक बच्चा एक मिनट में सहजता से 30 से 35 शब्द पढ़ सके। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इससे उन्हें अन्य विषयों की सामग्री को आसानी से समझने में मदद मिलेगी। उन्होंने आगे कहा कि यह सब तभी होगा जब पढ़ाई वास्तविक दुनिया से, हमारे जीवन एवं आसपास के वातावरण से जुड़ी हो।

उन्होंने यह भी कहा कि जब शिक्षा आसपास के वातावरण से जुड़ी होती है, तो इसका प्रभाव छात्र के पूरे जीवन पर पड़ता है और साथ ही पूरे समाज पर भी पड़ता है। उन्होंने अपने गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के समय की एक पहल का भी उल्लेख किया। सभी स्कूलों के छात्रों को अपने गांव के सबसे पुराने पेड़ की पहचान करने का काम दिया गया, और फिर उनसे उस पेड़ एवं अपने गांव पर आधारित एक निबंध लिखने को कहा गया। उन्होंने कहा कि यह प्रयोग बहुत सफल रहा क्योंकि एक तरफ बच्चों को पर्यावरण के बारे में जानकारी मिली और साथ ही उन्हें अपने गांव के बारे में बहुत सारी जानकारी प्राप्त करने का मौका मिला।

प्रधानमंत्री ने ऐसे आसान एवं मौलिक तरीकों को बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया। इन प्रयोगों को हमारे नए युग के सीखने के केंद्र में होना चाहिए- संलग्नता, अन्वेषण, अनुभव, अभिव्यक्ति तथा श्रेष्ठता।

श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि छात्र अपनी रुचि के अनुसार गतिविधियों, कार्यक्रमों, परियोजनाओं में संलग्न हों। तभी बच्चे रचनात्मक तरीके से अभिव्यक्त करना सीखते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों को स्टडी टूर पर ऐतिहासिक स्थानों, रुचि वाले स्थानों, खेतों, उद्योगों आदि में ले जाना चाहिए, क्योंकि यह उन्हें व्यावहारिक ज्ञान देगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसा अब सभी स्कूलों में नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस वजह से कई छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान से सामना कराने से उनकी जिज्ञासा बढ़ेगी और उनका ज्ञान भी बढ़ेगा। यदि छात्र कुशल पेशेवरों को देखेंगे तो एक प्रकार का भावनात्मक संबंध जुड़ेगा, वे कौशल को समझेंगे और उनका सम्मान करेंगे। यह संभव है कि इनमें से कई बच्चे बड़े होकर ऐसे उद्योगों में शामिल होंगे या फिर अगर वे कोई अन्य पेशा चुनते हैं तो यह बात  उनके दिमाग में रहेगी कि इस पेशे को बेहतर बनाने के लिए क्या नया किया जाये।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस तरह से तैयार की गई है कि पाठ्यक्रम को घटाया जा सकता है और बुनियादी चीजों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। सीखने को एकीकृत एवं अंतःविषयी, मजेदार और संपूर्ण अनुभव वाला बनाने के लिए एक नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क विकसित किया जाएगा। इसके लिए सुझाव लिए जायेंगे और सभी सिफारिशों एवं आधुनिक शिक्षा प्रणालियों को इसमें शामिल किया जाएगा। भविष्य की दुनिया आज की हमारी दुनिया से काफी अलग होने जा रही है।

उन्होंने 21 वीं सदी के कौशल के साथ हमारे छात्रों को आगे बढ़ाने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने 21 वीं सदी के कौशल– तार्किक सोच, रचनात्मकता, सहकार्यता, जिज्ञासा एवं संचार- को सूचीबद्ध किया। उन्होंने कहा कि छात्रों को शुरू से ही कोडिंग सीखनी चाहिए, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को समझना चाहिए और इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्लाउड कंप्यूटिंग, डेटा साइंस एवं रोबोटिक्स से जुड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारी पहले वाली शिक्षा नीति प्रतिबंधात्मक थी। लेकिन वास्तविक दुनिया में, सभी विषय एक-दूसरे से जुड़े हैं। लेकिन वर्तमान प्रणाली ने क्षेत्र बदलने एवं  नई संभावनाओं से जुड़ने के अवसर प्रदान नहीं किए। यह भी कई बच्चों के स्कूल छोड़ने का एक प्रमुख कारण रहा है। इसलिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में छात्रों को किसी भी विषय को चुनने की स्वतंत्रता दी गयी है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक अन्य बड़े मुद्दे को भी संबोधित करती है – हमारे देश में सीखने से संचालित शिक्षा के स्थान पर अंकपत्र (मार्कशीट) संचालित शिक्षा का हावी होना। उन्होंने कहा कि अंकपत्र अब मानसिक दबाव के एक पत्र की तरह हो गये हैं। शिक्षा से इस तनाव को दूर करना राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मुख्य उद्देश्यों में से एक है। परीक्षा ऐसी होनी चाहिए जो छात्रों पर अनावश्यक दबाव न डाले। और प्रयास यह है कि छात्रों का मूल्यांकन केवल एक परीक्षा से नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उसे आत्म-मूल्यांकन, सहकर्मी से सहकर्मी मूल्यांकन जैसे छात्रों के विकास के विभिन्न पहलुओं पर आधारित होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में एक मार्कशीट के बजाय एक समग्र रिपोर्ट कार्ड का प्रस्ताव दिया गया है जो छात्रों की अनूठी क्षमता, योग्यता, दृष्टिकोण, प्रतिभा, कौशल, दक्षता एवं संभावनाओं की एक विस्तृत शीट होगी। उन्होंने कहा कि मूल्यांकन प्रणाली के समग्र सुधार के लिए एक नये राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र “परख” की भी स्थापना की जायेगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि यह समझने की जरूरत है कि भाषा शिक्षा का माध्यम है, भाषा ही संपूर्ण शिक्षा नहीं है। कुछ लोग इस अंतर को भूल जाते हैं। इसलिए जो भी भाषा बच्चा आसानी से सीख सकता है, वही भाषा सीखने की भाषा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस बात को ध्यान में रखते हुए यह प्रस्तावित किया गया है कि अधिकांश अन्य देशों की तरह प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। अन्यथा जब बच्चे किसी अन्य भाषा में कुछ सुनेंगे, तो वे पहले इसे अपनी भाषा में अनुवाद करेंगे और  फिर इसे समझेंगे। इससे बच्चों के मन में बहुत भ्रम पैदा होता है, यह बहुत तनावपूर्ण होता है। इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में, जहां तक संभव हो, कक्षा पांच तक, कम से कम पांचवीं कक्षा तक शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा, मातृभाषा में रखने को कहा गया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा के अलावा कोई एक अन्य भाषा सीखने और सिखाने पर कुछ प्रतिबंध हैं। यद्यपि अंग्रेजी के साथ-साथ विदेशी भाषाएं अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सहायक होती हैं, लेकिन बच्चे उन्हें पढ़ने और सीखने में सक्षम होंगे। उन्होंने कहा कि इसके साथ–साथ सभी भारतीय भाषाओं को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि हमारे युवा विभिन्न राज्यों की भाषा और वहां की संस्कृति से परिचित हो सकें।

प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षक राष्ट्रीय शिक्षा नीति के इस सफ़र के अग्रदूत हैं। इसलिए, सभी शिक्षकों को बहुत सी नई चीजें सीखनी पड़ेगी और कई पुरानी चीजों को भुलाना भी पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब 2022 में आजादी के 75 साल पूरे होंगे, तब यह सुनिश्चित करना  हमारी सामूहिक जिम्मेदारी होगी कि भारत का प्रत्येक छात्र राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार पढ़े।

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एस. एन. सेन बी.वी.पी.जी. काॅलेज के शिक्षाशास्त्र विभाग द्वारा “राष्ट्रिय शिक्षा नीति 2020 सकरात्मक भविष्य की और एक स्वागतयोग्यक्ष कदम” विषय पर ई-सेमिनार का आयोजन किया गया

एस. एन. सेन बी.वी.पी.जी. काॅलेज के शिक्षाशास्त्र विभाग द्वारा “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : सकारात्मक भविष्य की ओर एक स्वागतयोग्य कदम” विषय पर ई-सेमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम औपचारिक आरम्भ के साथ प्राचार्या डॉ. निशा अग्रवाल ने मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि, रिसोर्स पर्सन्स और सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। इसके पश्चात विशिष्ट अतिथि श्री शुभ्रो सेन जी ने कहा कि, नयी शिक्षा नीति युवा शिक्षा एवं रोजगारपरक शिक्षा के क्षेत्र में नवीन क्रांति लेकर आएगी । मुख्य अतिथि डॉ. रिपुदमन सिंह (आर.एच.ई.ओ. कानपुर) ने नयी शिक्षा नीति पर व्यापक चर्चा की बात की, जिसमें इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर बात की जा सके। पहले रिसोर्स पर्सन प्रो. के.सी. वशिष्ठ ने कहा कि, यह नीति हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी है। प्रो. विजय जायसवाल ने कहा कि, यह नीति ए.बी.सी. माॅडल के द्वारा विद्यार्थी की स्वायत्तता पर बल देती है। यह नीति एक बूम है, जिसके प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है। डॉ. महेश नारायण दीक्षित ने नयी शिक्षा नीति को गाँधी जी के बुनियादी शिक्षा से जोड़ा तथा कहा कि, यह शिक्षा नीति गाँधी जी के ‘हाथ, हृदय और मन की शिक्षा से समानता रखती है।
अन्त में संयोजिका डॉ. चित्रा सिंह तोमर ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया तथा कार्यक्रम के औपचारिक समापन की घोषणा की।

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राष्ट्रपति ने शिक्षक दिवस के अवसर पर देश भर के 47 शिक्षकों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया।

भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने शिक्षक दिवस के अवसर पर आज (5 सितंबर, 2020) पहली बार वर्चुअल तरीके से आयोजित पुरस्कार समारोह में देश भर के 47 शिक्षकों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। राष्ट्रपति ने अपने भाषण में पुरस्कार विजेताओं को बधाई दी और स्कूली शिक्षा में गुणात्मक रूप से सुधार लाने के लिए शिक्षकों द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पुरस्कार विजेताओं में लगभग 40 प्रतिशत महिलाएं है। उन्होंने शिक्षक के रूप में महिलाओं द्वारा निभाई गई भूमिका की सराहना की।

      पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि वह एक दूरदर्शी,राजनेता और इससे भी बढ़कर एक असाधारण शिक्षक थे। उन्होंने कहा कि शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने वाला उनका जन्मोत्सव राष्ट्र के विकास में उनके योगदान का महज प्रतीक है और पूरे शिक्षक समुदाय के लिए सम्मान की निशानी भी है। यह अवसर शिक्षकों की प्रतिबद्धता और छात्रों के जीवन में उनके सर्वोच्च योगदान के लिए हमारे शिक्षकों को सम्मान देने का अवसर भी प्रदान करता है। उन्होंने आगे कहा कि यह उनकी प्रतिबद्धता ही है जो किसी भी स्कूल की आधारशिला है क्योंकि शिक्षक राष्ट्र के सच्चे निर्माता हैं जो बच्चों के चरित्र और ज्ञान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

राष्ट्रपति कोविंद ने कोविड महामारी के चुनौतीपूर्ण समय में डिजिटल प्रौद्योगिकी के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हमारे शिक्षक इस तकनीक का सहारा बच्चों तक अपनी पहुंच बनाने में ले रहे हैं। इस नई तकनीक संचालित शिक्षण प्रक्रिया को अपनाने में शिक्षकों के कौशल की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि सभी शिक्षकों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे डिजिटल तकनीक के क्षेत्र में अपने कौशल को बढ़ाएं और इसे अपडेट करें ताकि शिक्षा को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके और छात्रों को भी नई तकनीकों में निपुण किया जा सके। राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली ने अभिभावकों के लिए शिक्षकों के साथ जुड़ना और बच्चों को सीखने के नए क्षेत्रों में रुचि जगाना अनिवार्य बना दिया है। समाज में डिजिटल सुविधा की ग़ैर-बराबरी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने चाहिए ताकि आदिवासी और दूर-दराज के क्षेत्रों के बच्चे भी लाभान्वित हो सकें।

राष्ट्रपति कोविंद ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बारे में बात करते हुएकहा कि शुरू की गई नई शिक्षा नीति हमारे बच्चों को भविष्य की जरूरतों के लिए तैयार करने का एक प्रयास है और इसे विभिन्न हितधारकों की राय पर विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि अब इस शिक्षा नीति को सफल और फलदायी बनाने की केंद्रीय भूमिका में शिक्षक ही हैं। राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के लिए शिक्षकों को सक्षम बनाने हेतु सभी प्रयास किए जा रहे हैं और शिक्षा क्षेत्र के लिए अब केवल सबसे अधिक सक्षम लोगों को ही चुना जाएगा।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने इस समारोह में स्वागत भाषण दिया,जबकि शिक्षा राज्य मंत्री श्री संजय धोत्रे ने सबको धन्यवाद दिया।

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क्राइस्ट चर्च कॉलेज कानपुर, इंटर्नेशनल सेंटर फ़ॉर इंटीग्रेटेड माउन्टेन डेवेलपमेंट नेपाल और इंडियन थिंकर्स सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में “हिमालयी जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र संबंधी सेवाएँ” पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया.

क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर के वनस्पति विज्ञान विभाग तथा आई सी आई एम ओ डी, नेपाल
(इंटर्नेशनल सेंटर फ़ॉर इंटीग्रेटेड माउन्टेन डेवेलपमेंट) और इंडियन थिंकर्स सोसायटी, कानपुर (आई टी एस) के संयुक्त तत्वावधान में आज एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया.


विषय था – “हिमालयी जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र संबंधी सेवाएँ”. हिमालय भारत और आस-पास के क्षेत्रों के लिए न केवल भौगोलिक संरक्षण प्रदान करता है, अपितु उसकी विस्तीर्ण जैव विविधता और वृहद पारिस्थितिकी तंत्र बहुत बड़े भू-भाग में जीवन संरक्षित किए है. इसीलिए आज के समय में पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से यह विषय विचार-मंथन के लिए बहुत उपयुक्त है.
वेबिनार का आरम्भ करते हुए आयोजन सचिव डॉ. मीतकमल द्विवेदी (एसोसिएट प्रोफ़ेसर,
रसायनशास्त्र विभाग) ने सभी प्रतिभागियों का हार्दिक स्वागत किया. तत्पश्चात उन्होंने ईश-आराधना द्वारा कार्य के निर्विघ्न संपन्न होने की प्रार्थना करने हेतु डॉ श्वेता चंद (एसोसिएट प्रोफ़ेसर, रसायनशास्त्र विभाग) को आमंत्रित किया. महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. जोज़ेफ़ डेनियल ने सभी अतिथियों और मुख्य वक्ता का स्वागत करते हुए इस वेबिनार की उपयोगिता पर प्रकाश डाला. उन्होंने समसामयिक स्थितियों में जैव विविधता के संरक्षण और पुनरूज्जीवन की महत्ता पर चर्चा की. इसके बाद आई टी एस के अध्यक्ष प्रो. पी. एन. कॉल ने आज के वेबिनार के विषय को भावी जीवन के विकास के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए इसके आयोजन पर शुभकामनाएँ दीं.
इस वेबिनार के समन्वयक डॉ. नवीन अम्बष्ट (एसोसिएट प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष, वनस्पति विज्ञान विभाग) ने आज की चर्चा के विषय पर प्रकाश डालते हुए हिमालयी जैव विविधता के बारे में बताया. इस अमूल्य जैव विविधता के समुचित संरक्षण और संपोषित विकास के लिए उठाए जाने वाले आवश्यक कदमों को भी उन्होंने स्पष्ट किया. डॉ अम्बष्ट ने कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. एकलव्य शर्मा (एफ़ एन ए, एफ़ एन ए एस सी) का परिचय प्रस्तुत किया. डॉ. शर्मा आई सी आई एम ओ डी, नेपाल (इंटर्नेशनल सेंटर फ़ॉर इंटीग्रेटेड माउन्टेन डेवेलपमेंट) के उप महानिदेशक हैं और अत्यंत ख्यातिलब्ध वैज्ञानिक हैं. डॉ. शर्मा ने अपने वक्तव्य में हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र में जैव विविधता के संरक्षण और वहाँ पारिस्थितिकी तंत्र संबद्ध सेवाओं पर अपने विचार रखे. उन्होंने जैव विविधता के लिए उत्पन्न खतरों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए इसे संरक्षित करने और संभालने पर ज़ोर दिया. पूर्वी हिमालयी क्षेत्र की सघन जैव विविधता पर बात करते हुए उन्होंने बताया 1998 से 2008 के मध्य प्रति वर्ष औसतन 35 नई प्रजातियों की खोज की गई थी. हिंदुकुश हिमालयी क्षेत्र में प्राप्त कृषि जैव विविधता और विभिन्न वनस्पतियों के अद्भुत आगार के विषय में भी उन्होंने बताया. साथ ही डॉ. शर्मा ने खतरे में आईं प्रजातियों के संरक्षण के विषय में भी बताते हुए पारिस्थितिकी तंत्र संबंधी सेवाओं पर भी प्रकाश डाला. अंततः उन्होंने समसामयिक कोविड महामारी के सन्दर्भ में हिंदुकुश की जैव विविधता को बहुत क्षति पहुँचने की बात की और इस तथ्य पर बल दिया कि हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र एक अमूल्य वैश्विक सम्पदा है जिसके संरक्षण की ज़िम्मेदारी हम सब की है.
इतने ज्ञानवर्धक वक्तव्य के पश्चात वेबिनार की आयोजन सचिव डॉ. मीतकमल ने प्रतिभागियों की शंकाओं के समाधान हेतु प्रश्नोत्तर सत्र को संचालित किया. इसके बाद कार्यक्रम का समापन करते हुए वेबिनार संयोजक डॉ. फ़िरदौस कटियार (एसोसिएट प्रोफ़ेसर, वनस्पति विज्ञान विभाग) ने सभी प्रतिभागियों एवं मुख्य वक्ता के प्रति हार्दिक आभार ज्ञापित किया.
समस्त वेबिनार का अत्यंत कुशल और प्रवाहमय संचालन डॉ. मीतकमल द्विवेदी (एसोसिएट
प्रोफ़ेसर, रसायनशास्त्र विभाग) द्वारा किया गया. इस वेबिनार में लगभग 300 प्रतिभागियों ने सक्रिय भागीदारी की तथा श्री यू. सी. दीक्षित, डॉ. अर्चना पाण्डेय, डॉ. सत्यप्रकाश सिंह, डॉ. डी. सी. श्रीवास्तव आदि भी उपस्थित रहे.

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वित्त मंत्री ने ऋण खातों के त्वरित समाधान और आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस), आंशिक क्रेडिट गारंटी योजना (पीसीजीएस) 2.0 एवं सबऑर्डिनेट ऋण योजना की प्रगति की समीक्षा के लिए ऋणदाताओं के साथ बैठक की

केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने को‍विड-19 से संबंधित दबाव से निपटने के लिए ऋण समाधान व्‍यवस्‍था के कार्यान्वयन हेतु ऋणदाताओं की तैयारियों की स्थिति की समीक्षा करने के लिए आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और एनबीएफसी के प्रमुखों के साथ समीक्षा बैठक की। बैठक के दौरान श्रीमती सीतारमण ने ऋणदाताओं को यह समझाया कि जब ऋण अदायगी पर मोहलत की अवधि समाप्‍त हो जाएगी, तो कर्जदारों को निश्चित तौर पर आवश्‍यक सहयोग दिया जाना चाहिए और कोविड-19 से संबंधित संकट के कारण ऋणदाताओं द्वारा कर्जदारों की उधार पात्रता या साख का आकलन प्रभावित नहीं होना चाहिए। वित्त मंत्री ने बैठक के दौरान निम्‍नलिखित पर फोकस किया –

  • ऋणदाता तुरंत समाधान के लिए बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति पर अमल की तैयारी करें, पात्र कर्जदारों की पहचान करें और उनसे संपर्क करें  
  • हर व्यवहार्य या लाभप्रद व्यवसाय (बिजनेस) के पुनरुद्धार के लिए कर्जदाता किसी टिकाऊ समाधान योजना को तुरंत कार्यान्वि‍त करें

वित्त मंत्री ने इस बात पर भी विशेष जोर दिया कि कर्जदाताओं द्वारा समाधान योजनाओं को 15 सितंबर, 2020 तक अवश्‍य शुरू कर दिया जाना चाहिए, और इसके बाद जागरूकता उत्‍पन्‍न करने के लिए एक सत‍त मीडिया अभियान चलाया जाना चाहिए। उन्होंने कर्जदाताओं को यह सुनिश्चित करने की सलाह दी कि समाधान रूपरेखा या व्‍यवस्‍था पर नियमित रूप से अपडेट किए गए एफएक्‍यू (प्राय: पूछे जाने वाले प्रश्न) हिंदी, अंग्रेजी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में उनकी वेबसाइटों पर अपलोड किए जाएं, और उनके कार्यालयों एवं शाखाओं में भी सर्कुलेट किए जाएं।

कर्जदाताओं ने य‍ह आश्वासन दिया कि उनकी समाधान नीतियां तैयार हैं, पात्र कर्जदारों की पहचान करने और उन तक पहुंचने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। कर्जदाताओं ने य‍ह आश्वासन भी दिया कि वे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा निर्धारित की गई समयसीमा का पालन करेंगे।

वित्त मंत्रालय यह भी सुनिश्चित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के साथ बातचीत करता रहा है कि आरबीआई संबंधित समाधान प्रक्रिया में कर्जदाताओं को आवश्‍यक सहायता प्रदान करे।

वित्त मंत्री ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के हिस्से के रूप में घोषित की गई ईसीएलजीएस, पीसीजीएस 2.0 एवं सबऑर्डिनेट ऋण योजनाओं के तहत विभिन्न कर्जदाताओं द्वारा हासिल की गई प्रगति की भी समीक्षा की, और इसके साथ ही कर्जदाताओं को ठोस प्रयास कर त्योहारी सीजन से पहले कर्जदारों को अधिकतम संभव राहत देने की सलाह दी है। ईसीएलजीएस के तहत 31.8.2020 तक 1.58 लाख करोड़ रुपये की राशि मंजूर की गई है, जिसमें से 1.11 लाख करोड़ रुपये से अधिक रकम का वितरण किया भी जा चुका है। पीसीजीएस 2.0 के तहत अब तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा खरीद के लिए 25,055.5 करोड़ रुपये के बॉन्‍ड/सीपी स्वीकृत किए गए हैं। इनमें से 13,318.5 करोड़ रुपये, जो पोर्टफोलियो के 53% से भी अधिक हैं, एए- से कम रेटिंग वाले बॉन्ड/सीपी से संबंधित हैं। इस प्रकार यह योजना कम रेटिंग वाले बॉन्‍डों/सीपी के लिए काफी अहम साबित हुई है।

वित्त मंत्री ने लॉकडाउन के दौरान ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ और ‘आत्‍मनिर्भर भारत’ से संबंधित उपायों के प्रभावकारी कार्यान्वयन में बैंकों एवं एनबीएफसी के प्रयासों की काफी सराहना की। वित्त मंत्री ने कंपनियों एवं कारोबारियों के साथ-साथ व्यक्तिगत कर्जदारों की आवश्यकताओं को पूरा करने और कोविड-19 से संबंधित संकट के कारण मदद के लिए गुहार लगा रहे व्यवसायों के पुनर्निर्माण के प्रयासों को तेज गति देने के लिए भी कर्जदाताओं को प्रेरित किया।  

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प्रधानमंत्री मोदी भारतीय पुलिस सेवा के प्रोबेशनरों के साथ बातचीत करेंगे

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी शुक्रवार, 04 सितंबर, 2020 को सुबह 11 बजे सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी (एसवीपीएनपीए) में आयोजित दीक्षांत परेड कार्यक्रम के दौरान भारतीय पुलिस सेवा के प्रोबेशनरों के साथ वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बातचीत करेंगे।

इन 131 भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के प्रोबेशनरों में 28 महिला प्रोबेशनर शामिल हैं, जिन्‍होंनेइस अकादमी में बुनियादी पाठ्यक्रम चरण-1 के 42 सप्ताह पूरे कर लिए हैं।

इन प्रोबेशनरों ने लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी मसूरी और डॉ. मैरी चन्‍ना रेड्डी मानव संसाधन विकास संस्‍थान तेलंगाना, हैदराबाद में आईएएस, आईएफएस जैसी अन्‍य सेवाओं के प्रोबेशनरों के साथ अपना फाउंडेशन कोर्स पूरा करने के बाद 17 दिसंबर 2018 को इस अकादमी में प्रवेश किया था।

सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी (एसवीपीएनपीए) में बेसिक कोर्स प्रशिक्षण के दौरान प्रोबेशनरों को कानून, जांच-पड़ताल, फोरेंसिक, नेतृत्व एवं प्रबंधन, अपराध विज्ञान, सार्वजनिक व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा, नैतिकता और मानवाधिकार, आधुनिक भारतीय पुलिस व्‍यवस्‍था, फील्ड क्राफ्ट और युक्तियां, हथियार प्रशिक्षण और गोलाबारी जैसे विभिन्‍न इंडोर और आउटडोर विषयों का प्रशिक्षण दिया जाता है।

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लायंस क्लब द्वारा शिक्षक सम्मान समारोह में डा. शिप्रा श्रीवास्तव को किया सम्मानित

दि इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ लॉयन्स क्लब, कानपुर अलंकृत , (मण्डल 321-बी 2 ) के द्वारा गुरु दक्षिणा कार्यक्रम के अंतर्गत शिक्षक सम्मान समारोह (5 सितम्बर2020) में क्राइस्ट चर्च कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डा. शिप्रा श्रीवास्तव को प्रशशति पत्र तथा शाल भेट कर सम्मान्नित किया गया, कोविड 19 जैसी प्रतिकूल परिस्थिति होने के कारण आयोजकों के द्वारा घर पर ही सम्मानित किया गया इस अवसर डॉ शिप्रा श्रीवास्तव ने संस्था के सदस्यों का आभार प्रकट किया और कहा कि मैं सभी सम्मानित सदस्यों को ह्रदय से आभार एवं शुभकामनाएं प्रकट करती हूँ एवं संस्था के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूं!

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पोस्ट ऑफिस में खुलेंगे काॅमन सर्विस सेंटर, अब एक ही छत के नीचे मिलेंगी 73 जनोपयोगी सेवाएं – डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव

लखनऊ जीपीओ व प्रधान डाकघरों में आरंभ हुई कॉमन सर्विस सेंटर, शीघ्र ही अन्य डाकघरों में भी उपलब्ध होगी सेवा-डाक निदेशक केके यादव

कोरोना संक्रमण के इस दौर में आमजन को विभिन्न सेवाओं के लिए भटकना न पड़े और सारी सेवाएं एक ही छत के नीचे उपलब्ध हो सकें, इसके लिए अब डाकघरों में भी काॅमन सर्विस सेंटर की स्थापना की जा रही है। लखनऊ जीपीओ में पायलट फेज के तहत मई में इसे आरम्भ करने के बाद अन्य प्रधान डाकघरों में भी इसे आरम्भ किया गया है। लखनऊ मुख्यालय परिक्षेत्र में जीपीओ के अलावा बाराबंकी, सीतापुर, रायबरेली, फैजाबाद, अकबरपुर प्रधान डाकघरों में काॅमन सर्विस सेंटर आरम्भ हो गए  हैं। शीघ्र ही इसे एलएसजी लेवल तक के अन्य चयनित डाकघरों और चुनिन्दा शाखा डाकघरों में भी आरंभ किया जायेगा। उक्त जानकारी लखनऊ मुख्यालय परिक्षेत्र निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने दी।

निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि अब डाकघर से एक ही छत के नीचे केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों की पब्लिक से जुड़ी कामन सर्विस की 73 सेवाएं मिलेंगी। जन्म या मृत्यु प्रमाण पत्र हो या फिर पैन कार्ड और पासपोर्ट के लिए आवेदन, यही नहीं प्रधानमंत्री आवास योजना, पीएम फसल बीमा योजना, आयुष्मान भारत योजना के लिए आवेदन करना हो, यह सभी कार्य डाकघर में स्थापित काॅमन सर्विस सेंटर में होंगे। मोबाईल और डीटीएच रिचार्ज हों या फास्ट टैग, बिजली, पानी,  टेलीफोन, गैस का भुगतान हों अथवा बस, ट्रेन और फ्लाईट की टिकट बुकिंग हों, यह सभी कार्य अब यहीं से हों सकेंगे। आई.टी रिटर्न के अंतर्गत जीएसटी रिटर्न, टीडीएस रिटर्न, डीएससी, एलएलपी रजिस्ट्रेशन की सहूलियत भी काॅमन सर्विस सेंटर में उपलब्ध होगी। इन सबके लिये ऑपरेटरों को ऑनलाइन ट्रेनिंग भी दी जा रही है I

डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि, इसमें  डिजिटल सेवा पोर्टल के अन्तर्गत 14, इलेक्शन पोर्टल के अन्तर्गत 5, लेबर सर्विस के अन्तर्गत 3, पेंशन सेवा के अन्तर्गत 2, एम्प्लॉयमेंट सर्विस में 3, ई-डिस्ट्रिक्ट सेवा में विभिन्न राज्य सरकारों की 16 सेवाएं, अन्य  गवर्नमेंट टू कस्टमर सेवाओं में 4,  टूर एवं ट्रेवल्स की 7, फ़ास्ट टैग की 4, एजुकेशन सर्विसेज की 7, बैंकिग सेवाओं में 10, बीमा में 3, भारत बिल पेमेंट सिस्टम के माध्यम से 7  और आई.टी. रिटर्न सम्बंधित  4 सेवाएँ प्रदान की जाएँगी। इन सब सेवाओं के लिए मात्र सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क ही लिया जाएगा।

लखनऊ जी.पी.ओ के चीफ पोस्टमास्टर श्री राम नाथ यादव ने बताया कि इस सेवा के आरंभ होने से डाकघरों में आ रहे लोग डाक सेवाओं के साथ-साथ अन्य सेवाओं का भी लाभ उठा सकेंगे। इससे लोगों के समय और संसाधन दोनों की बचत होगी।

कुछ महत्वपूर्ण सेवाएँ:- पैन कार्ड आवेदन
मृदा स्वास्थ्य कार्ड
एफ.एस.एस.ए.आई. लाइसेंस रजिस्ट्रेशन
जन्म एवं मृत्यु प्रमाण पत्र
आयुष्मान भारत योजना
आईआरसीटीसी टिकट बुकिंग
लेबर रजिस्ट्रेशन
नेशनल पेंशन स्कीम(एनपीएस)
जाॅब सीकर रजिस्ट्रेशन
पीएम आवास योजना का आवेदन
ई चालान, ई स्टाॅम्प
ई-वाहन ट्रांसपोर्ट सर्विस
हवाई टिकट, बस टिकट
ऑन लाइन एडमिशन
टैली साफ्टवेयर रजिस्ट्रेशन
आईटीआई रजिस्ट्रेशन
जीएसटी रिटर्न
टीडीएस रिटर्न
टीवी रिचार्ज, मोबाइल रिचार्ज
लेबर सर्टिफिकेट।

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क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर में आतंरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ द्वारा वेबिनार का आयोजन “नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति : शिक्षा प्रणाली में एक क्रांति”

क्राइस्ट चर्च महाविद्यालय, कानपुर के आतंरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ (आई क्यू ए सी) द्वारा
आज वेबिनार का आयोजन किया गया, जिसका विषय था- “नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति : शिक्षा प्रणाली में एक क्रांति”. विगत 34 वर्षों से चल रही पुरानी शिक्षा नीति बदलते परिदृश्य में अपनी अर्थवत्ता और मूल्यवत्ता खो चुकी थी. इसीलिए भारत सरकार द्वारा जुलाई 2020 में घोषित नई शिक्षा नीति द्वारा प्रस्तुत बदलाव के नूतन संकेतों पर वैचारिक मंथन हेतु इस वेबिनार का आयोजन सामयिक उपयोगिता रखता है.
इस गोष्ठी का आरंभ डॉ. आर. के. द्विवेदी (समन्वयक आई क्यू ए सी) ने करते हुए सभी
प्रतिभागियों का स्वागत किया. तत्पश्चात उन्होंने ईश-आराधना द्वारा कार्य के निर्विघ्न संपन्न होने की
प्रार्थना करने हेतु महाविद्यालय की प्रबंध-समिति के सचिव रेवरेंड सैमुअल पॉल लाल को आमंत्रित किया.


महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. जोज़ेफ़ डेनियल ने सभी अतिथियों और वक्ताओं का स्वागत करते हुए इस वेबिनार की उपयोगिता पर प्रकाश डाला. महाविद्यालय में नैक के समन्यवक डॉ. डी. सी. श्रीवास्तव ने नई शिक्षा नीति की महत्ता को रेखांकित करते हुए इस नीति से देश में रोजगारपरक शिक्षा को बढ़ावा मिलने के साथ शोधपरक कार्यों में उन्नति होने की आशा व्यक्त की.
आज के इस महत्वपूर्ण आयोजन में दो विशिष्ट वक्ताओं के विचार सुनने को मिले – प्रो.
नवल किशोर अम्बष्ट (पूर्व अध्यक्ष एन आई ओ एस, एम एच आर डी) तथा डॉ. अरविन्द दीक्षित (पूर्व
कुलपति डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा). दोनों विद्वान वक्ताओं का परिचय इस वेबिनार की कर्मठ संयोजिका डॉ. मीतकमल द्विवेदी ने दिया.
तत्पश्चात इन विद्वानों ने अपने वक्तव्य में नई शिक्षा नीति को देश को विकास की
दिशा में अग्रसर करने वाला बताया. इस नवीन नीति के अंतर्गत मातृभाषा पर बल देते हुए उसे पाँचवीं कक्षा तक शिक्षा के माध्यम के रूप में स्थापित किया गया है. इससे छोटे बच्चों को ज्ञानार्जन करने में भाषा की बाधा का सामना नहीं करना पड़ेगा और नवीन ज्ञान अधिक सरल व सुबोध तरीके से समझा- समझाया जा सकेगा. डॉ. अम्बष्ट ने नई शिक्षा नीति को बहुत रोजगारपरक बताते हुए स्पष्ट किया कि इसके अंतर्गत छठी कक्षा से ही वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएँगे और इच्छुक छात्रों को इंटर्नशिप भी कराई जायेगी. इसके सबसे महत बिंदु पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि इसके द्वारा मल्टीपल एंट्री और एग्ज़िट प्रणाली को लागू करना. इसमें एक साल के बाद किसी कारणवश पढ़ाई छोड़ने पर सर्टिफिकेट, दो साल बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल बाद डिग्री मिल जाएगी. इससे छात्र अपनी रूचि के अनुसार अपनी पढ़ाई पूरी कर सकते हैं. डॉ. दीक्षित ने भी बताया कि नई शिक्षा नीति के तहत देश में शोध और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए एक शीर्ष निकाय के रूप में नेशनल रिसर्च फाउन्डेशन (एन आर एफ़) की स्थापना की जाएगी. इससे विविध विश्वविद्यालयों के माध्यम से उच्च गुणवत्तापूर्ण शोध को बढ़ावा दिया जा सकेगा. साथ ही ई-
पाठ्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलोजी फ़ोरम (एन ई टी एफ़) बनाया जा रहा है, जिसके लिए वर्चुअल लैब विकसित की जा रही है. इस प्रकार विभिन्न नवोन्मेषशाली कदमों द्वारा वर्ष 2030 तक उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (जी ई आर) 50 फ़ीसदी पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जो वर्ष 2018 में 26.3% था. इतने ज्ञानवर्धक और रोचक वेबिनार के आयोजन द्वारा निश्चय ही नई शिक्षा नीति के बहुत अहम् बिन्दुओं की विस्तृत जानकारी सभी को प्राप्त हुई. अंत में इस वेबिनार के आयोजन सचिव डॉ. नवीन कुमार अम्बष्ट ने सभी अभ्यागतों और विशिष्ट वक्ताओं के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया. समस्त वेबिनार का अत्यंत कुशल और प्रवाहमय संचालन डॉ. श्वेता चंद (एसोसिएट प्रोफ़ेसर, रसायनशास्त्र विभाग) द्वारा किया गया.
यह वेबिनार गूगल मीट प्लेटफ़ॉर्म पर आयोजित किया तथा लगभग 300 प्रतिभागियों ने इसमें भाग लिया.

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क्राइस्ट चर्च कॉलेज प्राचार्य ने प्रशाषनिक आदेशों की उड़ाई धज्जियां

प्रमाणपत्रों का भौतिक सत्यापन करवाने के दौरान छात्र-छात्राओं की उमड़ी भीड़

कानपुरः । कोरोना संक्रमितों की संख्या उप्र में दिनों दिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में जिला प्रशासन निर्देश पर निर्देश जारी करता जा रहा है लेकिन निर्देशों का कितना पालन हो रहा है? यह किसी से छुपा नहीं है? वहीं इसकी जमीनी हकीकत कुछ अलग ही है क्योंकि सार्वजनिक स्थानों पर शारीरिक दूरी (प्रशासनिक शब्दों में सोशल डिस्टेंसिंग) को दरकिनार करने के मामले तो आयेदिन प्रकाश आते ही रहते हैं लेकिन अब इन दिनों इस काम में कालेजों की भूमिका भी संदेह के घेरे में आने लगी है। आज शहर के एक प्रतिष्ठित डिग्री कालेज में दिखे नजारे भी इसकी पुष्टि कर रहे हैं और कोरोना संक्रमण को रोकने के लिये जारी किये गये निर्देशों की धज्जियां इस डिग्री कालेज में जमकर उड़ाईं गई हैं।
जी हाँ, बड़ा चैराहा स्थित शहर के ‘क्राइस्ट चर्च डिग्री कालेज’ में प्रिंसिपल के निर्देश पर छात्र-छात्राओं को बुलाया गया और उनके प्रमाणपत्रों के फिजिकल सत्यापन के दौरान शारीरिक दूरी (प्रशासनिक शब्दों में सोशल डिस्टेंसिंग) की जमकर धज्जियां उड़ाई गई। इस दौरान कालेज परिसर व कक्षों में समुचित व्यवस्था ना होने के चलते व कालेज प्रशासन की लापरवाही के छात्र-छात्राओं की संख्या झुण्ड (झुरमुट) में तब्दील हो गई। अपने-अपने प्रमाण पत्रों को चेक करवाने के चक्कर में छात्र-छात्रायें भी कोरोना से बचने के लिये जारी किये गये निर्देश को ताक पर रखते दिखे। इस बावत कालेज के प्रिंसिपल ने बताया कि यूनिवर्सिटी के निर्देश पर छात्र-छात्राओं के डाक्यूमेन्ट्स का फिजिकल सत्यापन करवाया जा रहा है। साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग के बावत जब उनसे पूंछा तो उन्होंने बताया कि सब कुछ ठीक है। मानकों को ध्यान में रखकर काम किया जा रहा है।

वहीं सूत्रों की मानें तो प्रिंसिपल ने मनमानी दिखाते हुए स्वयं ही छात्र-छात्राओं को बुलाया है और यूनिवर्सिटी से कोई आदेश या निर्देश नहीं जारी किया गया है।
गौरतलब हो कि कोरोना संक्रमण के देखते हुए उप्र सरकार ने स्कूल-कालेज आगामी 30 सितम्बर तक बन्द रखने के निर्देश दिये हैं। ऐसे में कालेज में छात्र-छात्राओं को बुलाना सवालिया निशान लगाता है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिये जारी किये निर्देशों का उल्लंघन करवाने में समुचित व्यवस्था ना करने की जिम्मेदारी किसकी है?
अगर छात्र-छात्राओं के साथ ही शिक्षक-शिक्षिकाओं में कोराना का संक्रमण फैल गया तो उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने की जिम्मेदारी कौन लेगा?

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