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एनसीआर को अधिक हरित बनाने के लिए, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने अब एनसीआर में संबंधित विभिन्न निकायों – राज्य सरकारों/जीएनसीटीडी, केंद्र सरकार और शैक्षणिक संस्थानों, उच्च शिक्षा/अनुसंधान संस्थानों के लिए वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान पूरे एनसीआर में 4.5 करोड़ वृक्षारोपण का बहुत बड़ा लक्ष्य निर्धारित किया है

पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में खास कर शुष्क गर्मी के मौसम में हवा की खराब गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार धूल के उच्च स्तर को कम करने की दिशा में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने एनसीआर में खुले क्षेत्रों, विशेष रूप से सड़कों, सड़कों के किनारे/रास्ते आदि पर व्यापक हरियाली और वृक्षारोपण को प्रभावी साधन के रूप में चिन्हित किया है। वायु प्रदूषण कम करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की हरियाली बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हुए, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में एनसीआर के राज्य सरकारों, एनसीटी दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार की विभिन्न एजेंसियों सहित एनसीआर में स्थित शैक्षणिक और वैज्ञानिक अनुसंधान आधारित संस्थानों के साथ सक्रिय भागीदारी और सहयोग से इस प्रयास में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं।

इस दिशा में हल्की शुरुआत के साथ, वर्ष 2021-22 के दौरान केवल 28,81,145 नए वृक्षारोपण किए गए जिसके बाद प्रयासों में काफी तेजी लाई गई और वर्ष 2022-23 के दौरान एनसीआर में 3,11,97,899 नए वृक्षारोपण किए गए। वर्ष 2023-24 के लिए पूरे एनसीआर में एनसीआर राज्य सरकारों/जीएनसीटीडी के लिए लगभग 3.85 करोड़ नए वृक्षारोपण का एक और महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करते हुए, इस वर्ष के दौरान लगभग 3.6 करोड़ वृक्षारोपण सफलतापूर्वक किया गया। इस प्रकार, कुल मिलाकर 93.5 प्रतिशत का लक्ष्य हासिल किया गया। एनसीआर क्षेत्रों में वर्ष 2023-24 के व्यक्तिगत लक्ष्यों के संबंध में राज्य-वार अनुपालन दिल्ली के लिए 84.6 प्रतिशत; हरियाणा के लिए 87.4 प्रतिशत; राजस्थान के लिए 86.2 प्रतिशत; और यूपी के लिए 103.4 प्रतिशत रहा।

2023-24 में किए गए वृक्षारोपण और वित्त वर्ष 2024-25 के लिए निर्धारित लक्ष्य की तुलना में हरियाली/वृक्षारोपण कार्य योजना 2023-24 के अंतर्गत विभिन्न हितधारकों के वृक्षारोपण लक्ष्य की तुलनात्मक तालिका नीचे दी गई है:

राज्य वित्त वर्ष 2023-24 के लिए लक्ष्य वित्त वर्ष 2023-24 में वृक्षारोपण वित्त वर्ष 2024-25 के लिए लक्ष्य
  • दिल्ली
95,04,390 80,41,331 56,40,593
  • हरियाणा (एनसीआर जिले)
98,93,797 86,49,277 1,32,50,000
  • राजस्थान (एनसीआर जिले)
25,89,892 22,33,288 42,68,649
  • उत्तर प्रदेश (एनसीआर जिले)
1,64,63,497 1,70,28,308 1,97,56,196
  • केंद्रीय सरकारी एजेंसियां ​​(सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, बीएसएफ, उत्तरी रेलवे, एनसीआरटीसी, केंद्रीय विद्यालय संगठन, दिल्ली, डीएमआरसी, डीएफएफसीआईएल, आदि सहित)
 

 

6,29,500

 

 

7,24,036

 

 

12,07,000

  • एनसीआर के शैक्षणिक संस्थान, उच्च शिक्षा/अनुसंधान संस्थान
 

3,32,500

 

7,11,456

 

9,08,742

कुल 3,94,13,576 3,73,87,696 4,50,31,180

 

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग शैक्षणिक संस्थानों, अनुसंधान आधारित संगठनों और अन्य वाणिज्यिक/औद्योगिक इकाइयों की सीमाओं पर बड़े पैमाने पर हरियाली और पेड़-पौधों के घेरे (जैविक बाड़) लगाने पर जोर दे रहा है। घने शहरी इलाकों में खाली जगहों की कमी को देखते हुए, आयोग प्रभावी शहरी वानिकी पहलों के माध्यम से हरियाली और वृक्षारोपण अभियान को बढ़ावा दे रहा है, विशेष रूप से मियावाकी तकनीक पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इसके अलावा, आयोग ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सड़क से जुड़ी सभी एजेंसियों को सलाह दी है कि वे प्रमुख राजमार्गों के केन्द्रीय हिस्सों/बीच के हिस्से को पूरी तरह से हरा-भरा बनाने के साथ-साथ जहां तक संभव हो, रास्ते के दाईं ओर के साथ-साथ सड़क के किनारों और खुले क्षेत्रों को भी हरा-भरा बनाने का लक्ष्य रखें।

एनसीआर राज्य सरकारों/जीएनसीटीडी, केंद्रीय एजेंसियों और प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों, एनसीआर के उच्च शिक्षा/अनुसंधान संस्थानों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक के दौरान, आयोग ने निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डाला:

  1. वृक्षारोपण करते समय यह ध्यान रखना होगा कि देशी पौधों की प्रजातियों का उपयोग किया जाए।
  2. वृक्षारोपण, निगरानी, ​​वृक्षारोपण के बाद देखभाल और पौधों के जीवित रहने की दर वृक्षारोपण कार्यक्रम के प्रमुख तत्व हैं।
  3. आयोग ने 6-7 फीट की ऊंचाई वाली झाड़ियों की सिफारिश की है ताकि पर्यावरण से धूल को रोकने के लिए पर्याप्त अवरोधक तैयार किया जा सके।
  4. औद्योगिक क्षेत्रों, स्कूलों, कॉलेजों आदि में घने पेड़ों/झाड़ियों के घेरे लगाने से भी धूल/प्रदूषण को रोकने में मदद मिलेगी।
  5. शहरी क्षेत्रों में वृक्षारोपण गतिविधियों के लिए भूमि की उपलब्धता कम है और, उन क्षेत्रों में जहां पारंपरिक वृक्षारोपण किया गया है वहां घने वृक्षारोपण को प्राप्त करने के लिए पेड़ों के बीच खाली जगहों पर पौधे लगाए जा सकते हैं।
  6. वृक्षारोपण की उत्तरजीविता दर की निगरानी बहुत महत्वपूर्ण है; क्षतिग्रस्त/सूखे पौधों का प्रतिस्थापन आवश्यक है।
  7. वृक्षारोपण अभियान में गैर सरकारी संगठनों और आरडब्ल्यूए की भागीदारी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है और इस संबंध में संस्थानों द्वारा विभिन्न आईईसी गतिविधियां भी शुरू की जा सकती हैं।
  8. यदि किसी संस्थान के पास उसके परिसर में भूमि क्षेत्र उपलब्ध नहीं है, तो संस्थान सरकारी एजेंसियों, सीबीओ आदि की मदद से अपने परिसर के बाहर भूमि को गोद ले सकते हैं। भूमि की कम उपलब्धता के कारण मियावाकी तकनीक सहित सघन वृक्षारोपण के लिए अलग पहचान को प्राथमिकता दी जाती है।
  9. संस्थानों को इस उद्देश्य के लिए पर्याप्त धनराशि आवंटित की जानी चाहिए और यूजीसी भी इसमें मदद कर सकता है। इस संबंध में आयोग पहले ही यूजीसी से अनुरोध कर चुका है।
  10. बैठक में यह सलाह दी गई कि वित्तीय वर्ष के लिए वृक्षारोपण लक्ष्य पिछले वर्ष की तुलना में कम से कम 20 प्रतिशत अधिक होना चाहिए।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग राज्य-वार वृक्षारोपण लक्ष्यों सहित एनसीआर के लिए व्यापक हरित कार्य योजना के कार्यान्वयन की प्रगति की बारीकी से निगरानी करेगा। संबंधित एजेंसियों को विशेष रूप से देशी प्रजातियों के वृक्षारोपण का सहारा लेने और वृक्षारोपण के बाद उचित देखभाल और पोषण के माध्यम से पेड़-पौधों को बचाए रखने का उच्च दर हासिल करने का प्रयास करने की सलाह दी गई है।

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डीआरडीओ ने मध्यम दूरी के माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ रॉकेट भारतीय नौसेना को सौंपा

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में मध्यम दूरी के माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ रॉकेट (एमआर-एमओसीआर) भारतीय नौसेना को सौंपा। इस माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ (एमओसी) को डीआरडीओ की रक्षा प्रयोगशाला, जोधपुर ने विकसित किया है। यह ऐसी तकनीक है जो रडार संकेतों को अस्पष्ट करती है और प्लेटफार्मों और परिसंपत्तियों के चारों ओर माइक्रोवेव शील्ड बनाती है और इस प्रकार रडार की पकड़ में आने की आशंका को कम करती है।

इस मध्यम दूरी के चैफ रॉकेट में कुछ माइक्रोन के व्यास और अद्वितीय माइक्रोवेव आरोपण गुणों के साथ विशेष प्रकार के फाइबर का इस्तेमाल किया गया है। इस रॉकेट को दागे जाने पर यह पर्याप्त समय के लिए पर्याप्त क्षेत्र में फैले अंतरिक्ष में माइक्रोवेव अस्पष्ट बादल बनाता है और इस प्रकार रेडियो फ्रीक्वेंसी पकड़ने वाले शत्रुतापूर्ण खतरों के विरुद्ध एक प्रभावी कवच का निर्माण करता है।

एमआर-एमओसीआर के पहले चरण के परीक्षणों को भारतीय नौसेना के जहाजों से सफलतापूर्वक पूरा किया गया था।  इस दौरान एमओसी क्लाउड खिला रहा और अंतरिक्ष में लगातार बना रहा। दूसरे चरण के परीक्षणों में, रडार क्रॉस सेक्शन (आरसीएस) द्वारा हवाई लक्ष्य को 90 प्रतिशत तक कम करने का प्रदर्शन किया गया है और भारतीय नौसेना की ओर से इसे मंजूरी दे दी गई है। योग्यता जरूरतों को पूरा करने वाले सभी एमआर-एमओसीआर को सफलतापूर्वक भारतीय नौसेना को सौंप दिया गया है।

रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने एमआर-एमओसीआर के सफल विकास पर डीआरडीओ और भारतीय नौसेना की सराहना की है। उन्होंने एमओसी तकनीक को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक और कदम बताया।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ समीर वी कामत ने एमआर-एमओसीआर को भारतीय नौसेना के नौसेना आयुध निरीक्षण महानिदेशक रियर एडमिरल बृजेश वशिष्ठ को सौंप दिया है। डीआरडीओ के अध्यक्ष ने रक्षा प्रयोगशाला, जोधपुर टीम को इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए बधाई दी। नौसेना आयुध निरीक्षण महानिदेशक ने भी कम समय में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस तकनीक को स्वदेशी रूप से विकसित करने के लिए डीआरडीओ के प्रयासों की सराहना की।

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भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) तिरुपति के शोधकर्ताओं ने ‘हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था’ की ओर बढ़ने के लिए मेथनॉल और फॉर्मेल्डिहाइड के संयोजन से हाइड्रोजन उत्पादन की एक कुशल विधि विकसित की है

शोधकर्ताओं ने माइल्ड कंडीशन्ज़ में मेथनॉल और पैराफॉर्मेल्डिहाइड के मिश्रण से हाइड्रोजन गैस का उत्पादन करने के लिए एक नवप्रवर्तनकारी कृत्रिम विधि विकसित की है। यह विधि एल्काइन्स का हाइड्रोजनीकरण करके एल्केन्स में बदलने के लिए विशेष रूप से प्रभावी साबित हुई है और यह संयोजन एक आशाजनक हाइड्रोजन वाहक हो सकता है, जो रासायनिक संश्लेषण और टिकाऊ ऊर्जा समाधानों में प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है।

जीवाश्म ईंधन की तेजी से हो रही कमी ने वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की खोज को बढ़ावा दिया है, जो टिकाऊ और नवीकरणीय संसाधनों की जरूरत को उजागर करता है। हाइड्रोजन गैस उत्पादन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें ऊर्जा भंडारण, परिवहन और विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं में जीवाश्म ईंधन की जगह को लेने की क्षमता है। बड़े पैमाने पर उत्पादित मेथनॉल और पैराफॉर्मेल्डिहाइड, हाइड्रोजन वाहकों के लिए व्यवहार्य उम्मीदवार के रूप में उभरे हैं। उनकी प्रचुरता और उनका व्यापक रूप से बनाना उन्हें हाइड्रोजन के भंडारण और परिवहन के लिए मूल्यवान बनाता है, जो मुक्त हाइड्रोजन पर महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है।

भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) तिरुपति में प्रोफेसर एकम्बरम बालारमन की अगुवाई में किए गए शोध में क्षार या एक्टिवेटर की आवश्यकता के बिना मेथनॉल और पैराफॉर्मेल्डिहाइड से हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए व्यावसायिक रूप से उपलब्ध निकल उत्प्रेरक का उपयोग किया गया है। इस कुशल उत्प्रेरक प्रणाली ने माइल्ड कंडीशन्ज़ में उल्लेखनीय दक्षता का प्रदर्शन किया है और उत्पन्न हाइड्रोजन को एल्काइन्स के कीमो- और स्टीरियो-चयनात्मक आंशिक हाइड्रोजनीकरण में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया था। इस प्रक्रिया ने बेहतर सिंथेटिक वैल्यू के साथ जैव सक्रिय अणुओं तक पहुंच को सक्षम बनाया है। इस शोध को एएनआरएफ (पूर्ववर्ती एसईआरबी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) का एक वैधानिक निकाय) द्वारा समर्थन दिया गया था।

कैटेलिसिस साइंस एंड टेक्नोलॉजी पत्रिका में प्रकाशन के लिए स्वीकृत यह शोध COx-मुक्त हाइड्रोजन उत्पादन के लिए एक नया रास्ता खोलता है, जो ‘हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था’ की प्रगति में योगदान देता है। हाइड्रोजन वाहक के रूप में मेथनॉल और पैराफॉर्मेल्डिहाइड का उपयोग करने की क्षमता, बढ़ती वैश्विक ऊर्जा मांगों के कारण उत्पन्न चुनौतियों को, संबोधित करने की महत्वपूर्ण क्षमता प्रदान करती है। यह विकास स्थायी ऊर्जा समाधानों की खोज में एक महत्वपूर्ण कदम को चिन्हित करता है।

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पश्चिम बंगाल में शहरी स्वच्छता के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए स्वच्छ भारत मिशन- शहरी 2.0 के तहत ₹860.35 करोड़ स्वीकृत

आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने स्वच्छ भारत मिशन -शहरी 2.0 (एसबीएम-यू)  के तहत पश्चिम बंगाल के लिए ₹860.35 करोड़ के प्रस्तावों को मंजूरी दे दी है। एसबीएम-यू (2014-19) के पहले चरण के दौरान पश्चिम बंगाल को कुल 911.34 करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया गया था जिसे एसबीएम-यू 2.0 (2021-26) में 1.5 गुना बढ़ाकर 1449.30 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

मंत्रालय अपशिष्ट प्रबंधन और स्वच्छता में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल करने के लिए पश्चिम बंगाल राज्य के साथ मिलकर काम कर रहा है। पश्चिम बंगाल में 118 पुरानी कूड़ा डंपिंग साइटें हैं, जिनमें केवल 5 प्रतिशत कूड़े का निस्तारण किया गया है। 1987 से कोलकाता का मुख्य नगरपालिका डंपिंग ग्राउंड धापा लैंडफिल जैव-खनन और बायोरेमेडिएशन से गुजर रहा है, जो पुराने कचरे को साफ करने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा चुने गए तरीके हैं और जिससे कचरे से उपयोगी सामग्री निकाली जाती है।

पश्चिम बंगाल के शहर प्रतिदिन लगभग 4,046 टन नगरपालिका ठोस कचरा उत्पन्न करते हैं। एसबीएम-यू 2.0 के तहत, राज्य ने कचरे की इस विशाल मात्रा के प्रबंधन के लिए परियोजनाओं का प्रस्ताव दिया है जिसमें 4800 से अधिक खाद संयंत्र और 4500 मेटिरियल रीकवरी फैसिलिटी (एमआरएफ) शामिल हैं। पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित तरीके से ठोस कचरे के निपटान की सुविधा के लिए, राज्य द्वारा 2216 सुरक्षित लैंडफिल सुविधाएं (एसएलएफ) प्रस्तावित की गई हैं। 460 कंप्रेस्ड बायो-गैस (सीबीजी) प्लांट्स के लिए मंत्रालय की मंजूरी के साथ राज्य को अपशिष्ट से ऊर्जा के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन मिला है। 100 से अधिक यूएलबी में पुराने अपशिष्ट डंपसाइटों के निवारण के लिए एसबीएम-यू 2.0 के तहत ₹217 करोड़ के प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है। स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन के लिए धन का निर्बाध प्रवाह बनाए रखने के लिए, भारत सरकार ने ₹209 करोड़ की अतिरिक्त किश्त जारी की है ताकि राज्य द्वारा प्रस्तावित परियोजनाओं को तेजी से पूरा किया जा सके। स्वच्छ भारत मिशन-शहरी के तहत 2026 तक राज्य के सभी शहरों में अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्र लगाने का लक्ष्य है।

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पुणे के सशस्त्र बल चिकित्सा महाविद्यालय में जीनोम अनुक्रमण की अगली पीढ़ी की अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस जीनोम अनुक्रमण प्रयोगशाला का उद्घाटन किया गया

सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा के महानिदेशक और सेना चिकित्सा कोर के वरिष्ठ कर्नल कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल दलजीत सिंह ने आज (27 जून, 2024) पुणे में सशस्त्र बल चिकित्सा महाविद्यालय (एएफएमसी) में एक नई जीनोम अनुक्रमण प्रयोगशाला (जीनोम सीक्वेंसिंग लैब) का उद्घाटन किया। यह नई प्रयोगशाला जीनोम अनुक्रमण की अगली पीढ़ी की अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है, जिसमें उन्नत “नेक्स्टसीक 2000” और “मिनिसीक” एनालाइजर्स शामिल हैं।

एनजीएस प्रौद्योगिकी का विभिन्न स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में व्यापक अनुप्रयोग है, जिसमें वंशानुगत रोग, ऑन्कोलॉजी, प्रत्यारोपण चिकित्सा और प्रजनन चिकित्सा शामिल हैं। यह उन्नत प्रौद्योगिकी दुर्लभ आनुवंशिक विकारों के सटीक निदान, असाध्यता के आणविक पूर्वानुमान और अंग प्रत्यारोपण को आसान बनाकर एएफएमएस की क्षमताओं को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाती है। नई दिल्ली में सेना अस्पताल (रिसर्च एंड रेफरल) के बाद, जहां 23 जनवरी 2024 को सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा के महानिदेशक द्वारा एनजीएस सुविधा शुरू की गई थी, यह एएफएमएस में इस तरह की दूसरी सुविधा है।

इस आयोजन में एएफएमएस पुणे के डीन और कार्यवाहक कमांडेंट, कमांड हॉस्पिटल दक्षिणी कमांड के कमांडेंट, आर्मी इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियो थोरैसिक साइंसेज पुणे और सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा के अपर महानिदेशक (मेडिकल रिसर्च एंड हेल्थ) के अलावा सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा के अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

एएफएमसी पुणे में जीनोम अनुक्रमण प्रयोगशाला की स्थापना न केवल सशस्त्र बलों की सेवा करेगी, बल्कि नूतन चिकित्सा शोध और बेहतर नैदानिकी के माध्यम से चिकित्सकों के समुदाय को भी योगदान देगी। यह सुविधा चिकित्सा विज्ञान में नवाचार को बढ़ावा देगी, जिससे बेहतर स्वास्थ्य सेवा परिणाम सामने आएंगे, जो राष्ट्रीय विकास की आधारशिला है।

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सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग एक करोड़ लोगों को जागरूक करेगा और 100 दिनों के भीतर देश भर के सभी जिलों में नशा मुक्त भारत अभियान चलाया जाएगा: डॉ. वीरेंद्र कुमार

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग ने 26 जून 2024  को नई दिल्ली स्थित डॉ. अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र  में नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम आयोजित किया। इस अवसर पर केन्‍द्रीय सामाजिक न्‍याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार, राज्‍य मंत्री श्री रामदास अठावले, ब्रह्माकुमारीज के दिल्‍ली क्षेत्रीय समन्‍वयक राजयोगिनी बीके लक्ष्मी तथा सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता विभाग के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

नई दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान लगभग 700 लोग व्यक्तिगत रूप से मौजूद थे तथा लगभग 500 गैर-सरकारी संगठनों के एक लाख से अधिक लोग वर्चुअल रूप से जुड़े थे।

इस अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि नशे की लत को खत्म करने की चुनौती से निपटने के लिए समाज के सभी लोगों को एकजुट होकर इस सामाजिक उद्देश्य के लिए संघर्ष करने की आवश्यकता है।

 

इसके अलावा,  उन्होंने नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खिलाफ समाज में जागरूकता पैदा करने के लिए सभी गैर-सरकारी संगठनों और आध्यात्मिक संगठनों की सराहना की। इसके लिए युवाओं में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्‍याय एवं अधिकारिता विभाग एक करोड़ लोगों को जागरूक करेगा और समाज के सामूहिक प्रयासों से 100 दिनों के भीतर देश भर के सभी जिलों में नशा मुक्‍त भारत अभियान चलाया जाएगा।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री श्री रामदास अठावले ने कहा कि नशे की लत न केवल नशा करने वाले व्यक्ति को बल्कि उसके पूरे परिवार को प्रभावित करती है। उन्होंने सभी गैर-सरकारी संगठनों से नशा मुक्त भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूर्ण समर्पण के साथ काम करने का आग्रह किया और आश्वासन दिया कि मंत्रालय उनके नशा मुक्ति केंद्रों को चलाने में उनकी मदद करेगा।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री श्री बी.एल. वर्मा ने अपने भाषण में मंत्रालय की एनएपीडीडीआर योजना पर प्रकाश डाला एवं उसकी सराहना की और बताया कि किस प्रकार नशा मुक्त भारत अभियान ने नशीली दवाओं की मांग में कमी लाने में मदद की है। उन्होंने नशा मुक्‍त भारत अभियान की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता सचिव ने अपने स्वागत भाषण में नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस के महत्व पर प्रकाश डाला।

सुखमंच थियेटर ग्रुप ने नुक्कड़ नाटक के माध्यम से नशे की लत के दुष्प्रभावों तथा पूरे समाज पर इसके प्रतिकूल प्रभाव को बहुत ही खूबसूरती से प्रदर्शित किया।

पृष्ठभूमि

मादक पदार्थ उपयोग विकार एक ऐसा मुद्दा है, जो देश के सामाजिक ताने-बाने पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। किसी भी मादक पदार्थ पर निर्भरता न केवल व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि उसके परिवार और पूरे समाज को भी बाधित करती है। विभिन्न मनो-सक्रिय पदार्थों के नियमित सेवन से व्यक्ति की उस पर निर्भरता बढ़ जाती है। कुछ मादक पदार्थ यौगिक न्यूरो-मनोवैज्ञानिक विकारों, हृदय संबंधी बीमारियों के साथ-साथ दुर्घटनाओं, आत्महत्याओं और हिंसा का कारण बन सकते हैं। इसलिए, पदार्थ के उपयोग और उस पर निर्भरता को एक मनो-सामाजिक-चिकित्सा समस्या के रूप में देखा जाना चाहिए।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय देश में नशीली दवाओं की मांग में कमी लाने के लिए नोडल मंत्रालय है, जो नशीली दवाओं के दुरुपयोग की रोकथाम, समस्या की सीमा का आकलन, निवारक कार्रवाई, उपयोगकर्ताओं के उपचार और पुनर्वास, सूचना के प्रसार के सभी पहलुओं का समन्वय और निगरानी करता है।

इस मंत्रालय ने महत्वाकांक्षी नशा मुक्त भारत अभियान (एनएमबीए) शुरू किया है और वर्तमान में यह देश के सभी जिलों में संचालित है।  इसका उद्देश्य युवाओं में मादक पदार्थों के सेवन के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा करना है, जिसमें उच्च शिक्षा संस्थानों, विश्वविद्यालय परिसरों, स्कूलों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है और समुदाय तक पहुंच बनाई जा रही है। इस अभियान में समुदाय की भागीदारी और स्वामित्व को बढ़ाया जा रहा है।

नशा मुक्‍त भारत अभियान की उपलब्धियां:

  1. जमीनी स्तर अब तक  पर की गई विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से 11 करोड़ से अधिक लोगों को मादक पदार्थों के सेवन के प्रति जागरूक किया गया है, जिनमें 3.50 करोड़ से अधिक युवा और 2.32 करोड़ से अधिक महिलाएं शामिल हैं।
  2. 3.35 लाख से अधिक शैक्षणिक संस्थानों की भागीदारी ने यह सुनिश्चित किया है कि इस अभियान का संदेश देश के बच्चों और युवाओं तक पहुंचा है।
  3. 8,000 से अधिक कुशल स्‍वयंसेवकों (मास्‍टर वालंटियर्स-एमवी) की एक मजबूत टीम की पहचान की गई है और उन्हें प्रशिक्षित किया गया है।
  4. अभियान के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम के माध्यम से जागरूकता फैलाई जाएगी।
  5. एनएमबीए गतिविधियों के आंकड़ों को एकत्रित करने और जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर एनएमबीए डैशबोर्ड पर प्रदर्शित करने के लिए एनएमबीए मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किया गया है।
  6. एनएमबीए वेबसाइट (http://nmba.dosje.gov.in) उपयोगकर्ता/दर्शक को अभियान, एक ऑनलाइन चर्चा मंच, एनएमबीए डैशबोर्ड, ई-प्रतिज्ञा के बारे में विस्तृत जानकारी और अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
  7. नशा मुक्त होने के लिए आयोजित राष्ट्रीय ऑनलाइन शपथ में 99,595 शैक्षणिक संस्थानों के 1.67 करोड़ से अधिक विद्यार्थियों ने नशा मुक्त होने की शपथ ली।
  8. युवाओं व अन्य हितधारकों को जोड़ने और उनसे जुड़ने के लिए ‘नशे से आजादी – एक राष्ट्रीय युवा और छात्र संपर्क कार्यक्रम’, ‘नया भारत, नशा मुक्त भारत’, ‘एनसीसी के साथ नशा मुक्‍त भारत अभियान संपर्क’ जैसे कार्यक्रम नियमित रूप से आयोजित किए जाते हैं।
  9. नशा मुक्‍त भारत अभियान को सहयोग देने तथा जन जागरूकता गतिविधियां संचालित करने के लिए आर्ट ऑफ लिविंग, ब्रह्माकुमारीज, संत निरंकारी मिशन, राम चंद्र मिशन (दाजी),  इस्कॉन तथा अखिल विश्व गायत्री परिवार जैसे आध्यात्मिक/सामाजिक सेवा संगठनों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
  10. फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर हैंडल बनाकर और उन पर दैनिक अपडेट साझा करके इस अभियान के संदेश को ऑनलाइन फैलाने के लिए प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया का प्रभावी ढंग से उपयोग किया गया है।
  11. जिलों और कुशल स्वयंसेवकों द्वारा वास्तविक समय पर जमीनी स्तर पर होने वाली गतिविधियों का डेटा एकत्र करने के लिए एक एंड्रॉइड आधारित मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किया गया है। इस ऐप को गूगल प्ले स्टोर पर रखा गया है।
  12. सभी नशामुक्ति सुविधाओं को जियो-टैग किया गया है, ताकि आम जनता आसानी से इसका फायदा उठा सके।

हर साल 26 जून को अन्तर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ दुरुपयोग और अवैध तस्‍करी निवारण दिवस ​के रूप में मनाया जाता है। मंत्रालय ने अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ दुरुपयोग एवं अवैध तस्करी निवारण दिवस मनाने के लिए 20.06.2024 से 26.06.2024 तक सप्ताह भर चलने वाली ऑनलाइन गतिविधियों का आयोजन किया। इन गतिविधियों में निबंध लेखन प्रतियोगिता, नशा मुक्त जीवनशैली के लिए योग, ध्यान और सचेत रहने को बढ़ावा देना, एनएमबीए के तहत सर्वोत्तम प्रथाओं का प्रदर्शन, नशा मुक्त अभियान का नेतृत्व करने के लिए विश्वविद्यालय के छात्रों को शामिल करना, नशा मुक्त भारत बनाने में निचले स्‍तर से महिलाओं की भूमिका आदि शामिल हैं।

देश भर के सभी राज्यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों और डीसी/डीएम से अनुरोध किया गया कि वे राज्य और जिला स्तर पर एनएमबीए के तहत नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खिलाफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सहित मीडिया के माध्यम से व्यापक प्रचार के साथ-साथ रैलियां, सांस्कृतिक कार्यक्रम, सेमिनार, कार्यशालाएं, शपथ जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के संचालन/आयोजन के लिए आवश्यक कदम उठाएं।

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आईएनएस सुनयना ने सेशेल्स के पोर्ट विक्टोरिया में प्रवेश किया

यह तैनाती 1976 से सेशेल्स राष्ट्रीय दिवस के एक हिस्से के रूप में आयोजित सैन्य परेड में भारतीय सैन्य दल की निरंतर भागीदारी को दर्शाती है।

आईएनएस सुनयना ने दक्षिण पश्चिम हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी लंबी दूरी की तैनाती के एक हिस्से के रूप में 26 जून, 2024 को सेशेल्स के पोर्ट विक्टोरिया में प्रवेश किया।

जहाज की यात्रा 29 जून, 2024 को सेशेल्स के 48वें राष्ट्रीय दिवस के उत्सव के साथसाथ हो रही है। सेशेल्स राष्ट्रीय दिवस समारोह के एक हिस्से के रूप में आयोजित सैन्य परेड में नौसेना बैंड के साथ भारतीय नौसेना का मार्चिंग दल भाग लेगा। भारतीय नौसेना के जहाज की तैनाती 1976 से भारतीय सैन्य दल की निरंतर भागीदारी को दर्शाती हैजो दोनों देशों के बीच सौहार्द की पुष्टि करती है।

पोर्ट कॉल के दौरान, सामाजिक संपर्क, सेशेल्स रक्षा बल के साथ जुड़ाव, विशेष योग सत्र, आगंतुकों के लिए जहाज खुला रहना और सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रम निर्धारित हैं। पोर्ट कॉल के दौरानस्वदेश निर्मित नौसेना एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएचका हवाई प्रदर्शन भी किया जाएगा। आईएनएस सुनयना की तैनाती हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सहयोग आधारित प्रयासों को बढ़ावा देने वाले सागर के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

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सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने भारतीय सेना के डी5 मोटर साइकिल अभियान दल को झंडी दिखाई

सेना प्रमुख (सी. ओ. ए. एस.) जनरल मनोज पांडे ने आज नई दिल्ली के राष्ट्रीय युद्ध स्मारक से भारतीय सेना के डी5 मोटरसाइकिल अभियान दल को झंडी दिखाकर रवाना किया। यह अभियान भारतीय सेना द्वारा 1999 के कारगिल युद्ध में भारत की जीत की 25वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित किया जा रहा है। फ्लैग ऑफ कार्यक्रम में लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी, सेना के उप प्रमुख, वरिष्ठ सेवारत अधिकारी, कारगिल युद्ध से जुड़े पूर्व अधिकारी, वीर नारियां और पूर्व सैनिक शामिल हुए। झंडी दिखाने से पहले, सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने अभियान दल के सदस्‍यों के साथ परस्‍पर बातचीत की और टीम लीडर को मोटरसाइकिल अभियान का झंडा सौंपा। आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन (एडब्ल्यूडब्ल्यूए) की अध्यक्ष श्रीमती अर्चना पांडे ने कार्यक्रम के दौरान वीर नारियों को सम्मानित किया।

यह अखिल भारतीय अभियान 12 जून, 2024 को देश के तीन कोनों-पूर्व में दिनजन, पश्चिम में द्वारका और दक्षिण में धनुषकोडी से आरंभ हुआ था। आठ मोटरसाइकिल सवार तीन टीमों ने दिल्ली पहुंचने से पहले विविध क्षेत्रों और चुनौतीपूर्ण मार्गों से गुजरते हुए यात्रा की। पूर्व सी. ओ. ए. एस. जनरल दीपक कपूर (सेवानिवृत्त) ने 26 जून, 2024 को दिल्ली कैंट में टीमों को झंडी दिखाई थी। जनरल दीपक कपूर ने कारगिल युद्ध के दिग्गजों की उनकी बहादुरी के लिए सराहना की, अभियान टीमों की प्रशंसा की और प्रायोजकों द्वारा दिए गए समर्थन के लिए उनका आभार व्यक्त किया। इस कार्यक्रम में सेवारत अधिकारियों, कारगिल युद्ध के दिग्गजों, वीर नारियों और परिवारों सहित लगभग 500 व्यक्तियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।

दिल्ली के बाद अब टीमें द्रास के लिए दो अलग-अलग मार्गों से आगे बढ़ रही हैं। एक टीम अंबाला, अमृतसर, जम्मू, उधमपुर और श्रीनगर से होकर 1,085 किलोमीटर की दूरी तय करेगी है जबकि दूसरी टीम चंडीमंदिर, मनाली, सरचू, न्योमा, तांगत्से और लेह से होकर 1,509 किलोमीटर की दूरी तय करेगी है। इस अभियान का समापन द्रास के गन हिल पर होगा, जो कारगिल युद्ध के दौरान अपने सामरिक महत्व के लिए इतिहास में दर्ज है। अभियान दल के सदस्‍य अपने रूट के दौरान रास्ते में रहने वाले कारगिल युद्ध के नायकों, दिग्गजों और वीर नारियों से संपर्क करेंगे, युद्ध स्मारकों पर श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे, जागरूकता बढ़ाएंगे और युवाओं को भारतीय सेना में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

अभियान का नेतृत्व तोपखाना रेजिमेंट कर रही है जिसने ऑपरेशन विजय में सफलता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अभियान दल के सदस्‍य जब द्रास में अपने गंतव्य की ओर पहुंच रहे होंगे, उनके साथ साहस, त्याग और देशभक्ति की कहानियां भी जुड़ चुकी होंगी।

यह अभियान दल कारगिल युद्ध नायकों की बहादुरी और बलिदान के प्रति एक श्रद्धांजलि है और भारतीय सेना की स्थायी भावना का प्रतीक भी है। इस कार्यक्रम को हीरो मोटोकॉर्प, एचपीसीएल, अपोलो हॉस्पिटल्स, इफको और बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा कारगिल युद्ध के नायकों को श्रद्धांजलि देने के रूप में प्रायोजित किया जा रहा है।.

 

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कंबोडिया के सिविल सेवकों के लिए लोकनीति और शासन पर 5वां क्षमता निर्माण कार्यक्रम मसूरी स्थित राष्ट्रीय सुशासन केंद्र में शुरू हुआ

कंबोडिया के सिविल सेवकों के लिए आज मसूरी स्थित राष्ट्रीय सुशासन केन्द्र (एनसीजीजी) में लोकनीति और शासन पर 5वें क्षमता निर्माण कार्यक्रम की शुरुआत हुई। दो सप्ताह के इस कार्यक्रम का आयोजन 24 जून से 5 जुलाई, 2024 तक विदेश मंत्रालय (एमईए) के सहयोग से किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में कंबोडिया के 40 सिविल सेवक भाग ले रहे हैं, जिसमें सिविल सेवा और सीनेट मंत्रालय के संयुक्त सचिव, निदेशक, उप-सचिव और अवर सचिव शामिल हैं। इस कार्यक्रम में नीति संवाद और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने का अवसर मिलता है, जिससे प्रतिभागियों को संस्थागत परिवर्तन और उससे नागरिक को जोड़ने के कार्य में अहम अंतर्दृष्टि प्राप्त करने में मदद मिलती है।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रीय सुशासन केंद्र (एनसीजीजी) के महानिदेशक और प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत विभाग (डीएआरपीजी), भारत सरकार के सचिव श्री वी. श्रीनिवास ने की। उन्होंने अपने संबोधन में पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करते हुए नागरिकों को सरकार के करीब लाने में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर प्रकाश डाला। भारत की नीति “न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन” का उद्देश्य प्रौद्योगिकी का उपयोग करके नागरिकों और सरकार को करीब लाने के साथ डिजिटल रूप से सशक्त नागरिक और डिजिटल रूप से परिवर्तित संस्थान बनाना है। भारत के एआई-संचालित लोक शिकायत निवारण पोर्टल सीपीजीआरएएमएस का उदाहरण प्रस्तुत किया गया।

कंबोडिया के सिविल सेवा मंत्रालय के उप-महानिदेशक और कंबोडिया से आए प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख श्री माम फोउक ने इस अवसर के लिए भारत सरकार का आभार व्यक्त किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम न केवल क्षमता निर्माण को बढ़ाएगा बल्कि द्विपक्षीय संवाद को भी बढ़ावा देगा और भारत तथा कंबोडिया के बीच संबंधों को मजबूत करेगा।

राष्ट्रीय सुशासन केन्द्र के एसोसिएट प्रोफेसर और कार्यक्रम के पाठ्यक्रम संयोजक डॉ. बीएस बिष्ट ने राष्ट्रीय सुशासन केंद्र और पिछले कुछ वर्षों में हासिल की गई उपलब्धियों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। अपनी विस्तृत प्रस्तुति में उन्होंने एनसीजीजी के उद्देश्यों, गतिविधियों, उपलब्धियों और भविष्य की योजनाओं के बारे में चर्चा की और बताया कि कैसे यह उत्कृष्टता केंद्र के रूप में विकसित हुआ है। कार्यक्रम के पहले सप्ताह में प्रशिक्षण विभिन्न विषयों पर केंद्रित होगा, जिसमें लोकनीति और प्रबंधन, जीईएम: सरकारी खरीद में पारदर्शिता लाना, भारतीय संवैधानिक योजना, भारत-कंबोडिया संबंध, बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक-निजी भागीदारी, सुशासन के लिए एक उपकरण के रूप में आधार, स्वास्थ्य शासन, शासन पर संसदीय उपकरणों का प्रभाव, विभिन्न विकास योजनाओं के सर्वोत्तम अभ्यास, 2023 तक एसडीजी हासिल करने के तरीकों, विकसित भारत: उद्योग और बुनियादी ढांचे में नीतियां और विकास, वित्तीय समावेशन, शासन के बदलते प्रतिमान, नेतृत्व और संचार, शहरी शासन और टिकाऊ शहर, भारत में नागरिक सेवाएं, सेवाओं को घर-घर पहुंचाना, ई-शासन और डिजिटल सार्वजनिक सेवा वितरण, स्त्री-पुरुष समानता बढ़ाना और प्रशासन में नैतिकता आदि शामिल हैं। इस कार्यक्रम के दूसरे चरण में देहरादून में स्मार्ट सिटी परियोजना और आईटीडीए, उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर में जिला प्रशासन, संघ लोक सेवा आयोग और भारतीय संसद का भ्रमण शामिल होगा। यह कार्यक्रम प्रधानमंत्री संग्रहालय, बुद्ध मंदिर और ताजमहल की यात्रा के दौरान देश के इतिहास और संस्कृति से भी परिचित कराएगा।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय सुशासन केन्द्र ने 17 देशों अर्थात् बांग्लादेश, केन्या, तंजानिया, ट्यूनीशिया, सेशल्स, गाम्बिया, मालदीव, श्रीलंका, अफगानिस्तान, लाओस, वियतनाम, नेपाल, भूटान, म्यांमार, इथियोपिया, इरेट्रिया और कंबोडिया के सिविल सेवकों को प्रशिक्षण दिया है।

राष्ट्रीय सुशासन केन्द्र में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. हिमांशी रस्तोगी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। कार्यक्रम का संचालन और समन्वयन पाठ्यक्रम समन्वयक डॉ. बीएस बिष्ट, सह-पाठ्यक्रम समन्वयक डॉ. संजीव शर्मा,  प्रशिक्षण सहायक श्री बृजेश बिष्ट, युवा पेशेवर सुश्री मोनिशा बहुगुणा और राष्ट्रीय सुशासन केन्द्र की क्षमता निर्माण टीम के सहयोग से करेंगे।

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जीएनएसएस प्रौद्योगिकी से नेविगेशन एवं स्थिति निर्धारण बेहतर होता है, और यह टोल संग्रह प्रणालियों को आधुनिक बनाने, निर्बाध यात्रा सुनिश्चित करने, एवं हमारी सड़कों पर भीड़-भाड़ को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है-नितिन गडकरी

राष्ट्रीय राजमार्गों पर वाहन चालकों को निर्बाध और बाधा मुक्त टोलिंग अनुभव कराने के लिए एनएचएआई द्वारा प्रवर्तित कंपनी भारतीय राजमार्ग प्रबंधन कंपनी लिमिटेड (आईएचएमसीएल) ने ‘भारत में ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) पर आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्र‍ह’ पर नई दिल्ली में एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। इस अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में उद्योग जगत और वैश्विक विशेषज्ञों दोनों को ही भारत में जीएनएसएस प्रौद्योगिकी पर आधारित फ्री-फ्लो टोलिंग प्रणाली के सुचारू कार्यान्वयन से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श करने के लिए एक अनूठा मंच मुहैया कराया गया।

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी इस अवसर पर मुख्य अतिथि थे। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्य मंत्री श्री अजय टम्टा, केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग एवं कॉरपोरेट कार्य राज्य मंत्री श्री हर्ष मल्होत्रा, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग सचिव श्री अनुराग जैन, एनएचएआई के अध्यक्ष श्री संतोष कुमार यादव, एनएचएआई के सदस्य (प्रशासन) एवं आईएचएमसीएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक श्री विशाल चौहान, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के संयुक्त सचिव (लॉजिस्टिक्स) श्री एस.पी. सिंह तथा सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, एनएचएआई, आईएचएमसीएल के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ-साथ अमेरिका और यूरोप के अंतर्राष्ट्रीय उद्योग विशेषज्ञ और आईआईटी, एनआईसी, एनपीसीआई, सी-डैक, एचओए (आई), एनएचबीएफ, आईआरएफ, एसआईएएम, वित्तीय संस्थानों और अग्रणी वैश्विक प्रौद्योगिकी कंपनियों के प्रतिनिधिगण भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

दिन भर चली कार्यशाला में कई पैनल चर्चाएं हुईं। इन चर्चाओं में विभिन्न औद्योगिक और तकनीकी पेशेवरों के साथ-साथ दुनिया भर के ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) विशेषज्ञों ने विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श किया। इसमें ऑन-बोर्ड यूनिट्स (ओबीयू), वाणिज्यिक वाहन और राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क नियम, टोल चार्जर सॉफ्टवेयर, जारीकर्ता इकाई की भूमिका और भारत में मल्टी-लेन फ्री फ्लो ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह के सफल कार्यान्वयन के लिए सड़क बुनियादी ढांचे की आवश्यकताएं शामिल थीं।

केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा, “ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) तकनीक नेविगेशन और पोजिशनिंग को बढ़ाती है, टोल संग्रह प्रणालियों को आधुनिक बनाने, निर्बाध यात्रा सुनिश्चित करने और हमारी सड़कों पर भीड़भाड़ को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हम नागरिकों के जीवन को सुगम बनाने, शासन को अधिक पारदर्शी बनाने और त्वरित सेवाएं प्रदान करने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं।”

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सचिव श्री अनुराग जैन ने कहा, “आज की कार्यशाला में ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) पर कई वैश्विक विशेषज्ञों की भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि दुनिया भारत की विकास गाथा में विश्वास रखती है। हम वर्ष 2047 तक विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिए काम कर रहे हैं और ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) का कार्यान्वयन उस लक्ष्य की दिशा में महत्वपूर्ण कदमों में से एक होगा।”

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के अध्यक्ष श्री संतोष कुमार यादव ने कहा, “पिछले एक दशक में, सड़क नेटवर्क का कई गुना विस्तार हुआ है और राष्ट्रीय राजमार्ग यात्री यातायात के साथ-साथ देश की 70 प्रतिशत से अधिक वस्तुओं को लाने-ले जाने का काम करते हैं। ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) को लागू करने से न केवल हमारी अर्थव्यवस्था के विकास में बहुत बड़ा योगदान मिलेगा, बल्कि हमारे नागरिकों के लिए बाधा रहित टोल व्यवस्था भी एक वास्तविकता बन जाएगी।”

एनएचएआई के सदस्य (प्रशासन) एवं आईएमएचसीएल के सीएमडी श्री विशाल चौहान ने भारत में जीएनएसएस आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला के दौरान आयोजित पैनल चर्चा के मुख्य बिंदुओं का सारांश प्रस्तुत किया तथा आगे की राह बताई।

ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) आधारित टोलिंग इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह का एक बैरियर फ्री तारीका है, जिसमें सड़क पर चलने वाले लोगों से टोल वाले राजमार्ग पर उनके द्वारा तय की गई दूरी के आधार पर शुल्क लिया जाता है।

एनएचएआई मौजूदा फास्टैग इकोसिस्टम के भीतर जीएनएसएस-आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन (ईटीसी) प्रणाली को लागू करने की योजना बना रहा है, जिसमें शुरुआत में हाइब्रिड मॉडल का उपयोग किया जाएगा, जहां आरएफआईडी-आधारित ईटीसी और जीएनएसएस-आधारित ईटीसी दोनों एक साथ काम करेंगे। टोल प्लाजा पर समर्पित जीएनएसएस लेन उपलब्ध होंगी, जिससे जीएनएसएस-आधारित ईटीसी का उपयोग करने वाले वाहन आसानी से गुजर सकेंगे। जैसे-जैसे जीएनएसएस आधारित ईटीसी अधिक व्यापक होता जाएगा, सभी लेन अंततः जीएनएसएस लेन में परिवर्तित हो जाएंगी।

भारत में जीएनएसएस आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह के कार्यान्वयन से राष्ट्रीय राजमार्गों पर वाहनों की सुगम आवाजाही में सुविधा होगी और राजमार्ग उपयोगकर्ताओं को कई लाभ प्रदान करने की परिकल्पना की गई है जैसे कि बाधा रहित फ्री-फ्लो टोलिंग जिससे परेशानी मुक्त सवारी का अनुभव होगा और दूरी आधारित टोलिंग होगी। जीएनएसएस आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह से लीकेज को रोकने और टोल चोरों पर लगाम लगाने में भी मदद मिलेगी, जिसके परिणामस्वरूप देश भर में टोल संग्रह प्रणाली अधिक कुशल होगी।

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