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असमर्थ होने के बावजूद अपनी जिम्मेदारी समझी और वोट किया

राष्ट्र निर्माण में मेरा भी योगदान, उत्तर प्रदेश की अगली सरकार बनवाने में मैने भी अपने मताधिकार का प्रयोग किया, माननीय सुरेंद्र सिंह तलवार जी ने चलने में असमर्थ होने के बावजूद अपने पुत्र प्रतिपाल सिंह तलवार के साथ लोकतंत्र के जश्न में भागीदारी सुनिश्चित की और अपनी जिम्मेदारी का उत्साह पूर्वक निर्वहन किया।

 

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क्राइस्ट चर्च महाविद्यालय द्वारा ऑनलाइन संगोष्ठी वूमेन एन इन बोर्न साइंटिस्ट बाय नेचर कार्यक्रम आयोजित

कानपुर 16 फरवरी, क्राइस्ट चर्च महाविद्यालय द्वारा एक ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका शीर्षक था वूमेन एन इन बोर्न साइंटिस्ट बाय नेचर यह कार्यक्रम आयु पैक इंटरनेशनल यूनियन आफ प्योर एंड अप्लाइड केमेस्ट्री यूएसए में ग्लोबल वूमेन ब्रेकफास्ट एवं एसोसिएशन ऑफ केमिस्ट्री टीचर मुंबई के संयुक्त तत्वावधान मैं किया गया संगोष्ठी के मुख्य अतिथि  माननीय कुलपति   प्रोफ़ेसर  विनय कुमार पाठक जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में बताया, महिलाओ का विज्ञान के क्षेत्र में डिजिटल सशक्तिकरण होना अत्यंत आवश्यक है तभी वह आगे आने वाली पीढ़ी को भी सशक्त कर पाएंगी, प्रोफेसर मैरी गारसन कोचेयर  ऑस्ट्रेलिया से ने सभी प्रतिभागियों को   विज्ञान की महत्व के बारे संबोधित किया /मुख्य वक्ता डॉ सुनीता भगत ,दिल्ली यूनिवर्सिटी ने संबोधन में बताया कि विज्ञान और समाज के पोषण में महिलाओं की उभरती भूमिका रहती है महिलाओं की बौद्धिक क्षमता को साकार करना लैंगिक असमानता और विकास, अनुकूलन,अभिव्यक्ति के माध्यम से जमीनी स्तर पर महिलाओं का सशक्तिकरण अत्यंत आवश्यक है।दूसरे मुख्य वक्ता डॉ अजय विशेश्वर ,फैकेल्टी और रिसर्च साउथ अफ्रीका के टॉक का शीर्षक था” महिलाओं में विज्ञान बनाम विज्ञान में महिलाएं” उन्होंने बताया कि कैसे एक महिला का प्रहारवाला चरित्र, जो वैज्ञानिक दिशा की ओर अग्रसर है, तथा महिला की विज्ञान के सभी क्षेत्रों और पहलुओं को अपनाने की क्षमता , अत्यंत सराहनीय पूजनीय है, कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ श्वेता चंद ने प्रार्थना द्वारा किया। सभी प्रतिभागियों का स्वागत प्रोफेसर जोसेफ डेनियल,प्राचार्य , क्राइस्ट चर्च कॉलेज कानपुर, ने किया कार्यक्रम की संयोजक डॉ मीत कमल ने संगोष्ठी के शीर्षक की जानकारी दी उन्होंने बताया कि कैसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी द्वारा सशक्त समाज का निर्माण किया जा सकता है तथा छात्र-छात्राओं को इस विषय की प्रेरणा देनी बहुत ही जरूरी है कार्यक्रम का संचालन डॉ आनंदिता भट्टाचार्य ने कुशल पूर्वक किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ श्रद्धा सिन्हा ए.सी.टी वाइस प्रेसिडेंट ने दिया, इस कार्यक्रम में डॉ डी वी प्रभु विल्सन कॉलेज मुंबई , श्री बृजेश पारे ए.सी.टी प्रेसिडेंट, डॉ सुधा जैन जोशना, असीम एवं अन्य कॉलेज के अध्यापक एवं छात्र छात्र छात्राएं भी मौजूद रहे।

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हर मर्ज का इलाज है कपालभाती

कपालभाति के लाभ

वैसे तो कापलभाति के बहुत सारे लाभ है लेकिन यहां पर इसके कुछ महत्वपूर्ण फायदे के बारे में बताया गया है।

कपालभाति लगभग हर बिमारियों को किसी न किसी तरह से रोकता है।
कपालभाति को नियमित रूप से करने पर वजन घटता है और मोटापा में बहुत हद तक फर्क देखा जा सकता है।
इसके अभ्यास से त्वचा में ग्लोइंग और निखार देखा जा सकता है।
यह आपके बालों के लिए बहुत अच्छा है।
यह क्रिया अस्थमा के रोगियों के लिए एक तरह रामबाण है। इसके नियमित अभ्यास से अस्थमा को बहुत हद तक कंट्रोल किया जा सकता है।
कपालभाति से श्वसन मार्ग के अवरोध दूर होते हैं तथा इसकी अशुद्धियां एवं बलगम की अधिकता दूर होती है।
यह शीत, राइनिटिस (नाक की श्लेष्मा झिल्ली का सूजना), साइनसाइटिस तथा श्वास नली के संक्रमण के उपचार में उपयोगी है।
यह उदर में तंत्रिकाओं को सक्रिय करती है, उदरांगों की मालिश करती है तथा पाचन क्रिया को सुधारती है।
यह फेफड़ों की क्षमता में वृद्धि करती है।
यह साइनस को शुद्ध करती है तथा मस्तिष्क को सक्रिय करती है।
यह पाचन क्रिया को स्वस्थ बनाता है।
माथे के क्षेत्र में यह विशेष प्रकार की जागरुकता उत्पन्न करती है तथा भ्रूमध्य दृष्टि के प्रभावों को बढ़ाती है।
यह कुंडलिनीशक्ति को जागृत करने में सहायक होती है।
यह कब्ज की शिकायत को दूर करने के लिए बहुत लाभप्रद योगाभ्यास है।

कपालभाति की सावधानियां

से ध्यान लगाने से पूर्व एवं आसन तथा नेति क्रिया के उपरांत करना चाहिए। सांस भीतर स्वतः ही अर्थात् बल प्रयोग के बगैर ली जानी चाहिए तथा उसे बल के साथ छोड़ा जाना चाहिए किंतु व्यक्ति को इससे दम घुटने जैसी अनुभूति नहीं होनी चाहिए।

हृदय रोग, चक्कर की समस्या, उच्च रक्तचाप, मिर्गी, दौरे, हर्निया तथा आमाशाय के अल्सर से पीड़ित व्यक्तियों को यह क्रिया नहीं करनी चाहिए।
डा श्रुति कौशिक🙏लखनऊ

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एस एन सेन पी जी बालिका विद्यालय की एन एस एस यूनिट (कदोबिनी देवी ) द्वारा मतदाता जागरुकता अभियान का आयोजित

कानपुर 12 फरवरी एस एन सेन पी जी बालिका विद्यालय की एन एस एस यूनिट ( कदोम्बिनी देवी ) द्वारा मतदाता जागरुकता अभियान का आयोजन किया गया जिसके अन्तर्गत मतदाता जागरुकता पर फूल् बाग से 2 किलोमीटर की दूरी तक रैली निकाली गई तथा लोगो को मतदान से सम्बन्ध मे पोस्टर एवम स्लोगन और नारों के द्वारा मतदान करने के लिए जागृत किया गया
रैली मे कालेज की प्राचार्या डा निशा अगरवाल,राष्ट्रीय सेवा योजना की कार्यक्रम अधिकारी डा चित्रा सिंह तोमर,डा अलका तन्डन,डा रचना निगम,डा ऋचा सिंह, डा रीटा,डा मोनिका शुक्ला,डा प्रीत अवश्थी,डा सरिका अवस्थी आदि कालेज की अनेक प्रवक्ता ने भाग लिया

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इश्क़ तो उसी का मुकम्मल हुआ जो रूह तक पहुँचा

🌹मेरी रूह को जो छू जाये ..वो ज़रिया महज़ गुलाब नहीं हो सकता। रूहानी इश्क़ की पाकीज़गी को गर क़ायल करना चाहो ,तो कुछ कतरा अशक बहाना होगा। ”बहुत इश्क़ इश्क़ तू करता है ,पता भी है ये इश्क़ होता क्या है ?जिस को ये इश्क़ लगा ,चाहे वो रब का हो या जग का फिर वो शख़्स खुद मे रहता ही कहाँ है फिर तो जैसे साहेब राज़ी वैसे वो राज़ी”। ये सच है ! इश्क़ की गलियों मे रंगरूप ,धनदौलत रुतबा कोई मायने नहीं रखता।सामने वाले की ख़ुशी किस बात में है,यही इक फ़िक्र रह जाती है। वहाँ त्याग स्वीकार और सिर्फ़ समर्पण ही होता है और बातें भी सिर्फ़ खामोशियाँ ही करती है बिना शर्तों के, बिना शिकायत के ,बिना अल्फ़ाज़ो के।जहां आँखों से बहा पानी आंसू न रह कर अमृत हो जाता है।

क्या ख़ूब कहा किसी फ़क़ीर ने कि इश्क़ तेरे विच ,मन मर्ज़िया न चलदियां .. जो यार कहे, ओही बिस्मिल्ला। इश्क़ की बेशुमार दौलत“दर्द”होता है जो सहना हर किसी के बस की बात है ही नही। इश्क़ “ठहराव “है उम्र भर का इन्तज़ार हैं।महज़ इक गुलाब🌹देना या लेना ही इश्क़ नहीं है ..ये तो सिर्फ़ इज़हारे इश्क़ है जनाब। गुलाब चाहे कितना भी खूबसूरत क्यों न हो ..वक़्त रहते मुरझायेंगा ही ..मगर इश्क़ तो वो शय है जो मरने के बाद भी इसकी महक क़ायम रहती है। दोस्तों! रब के या दुनिया के प्रेम में कोई ज़्यादा फ़र्क़ नही। दोनो ही सब्र माँगते है और सब्र हर किसी से होता नही, न ही ये कोई सौदा है जिसे ख़रीदा या बेचा जा सके। प्रेम तो इक रूहानी अहसास है जहां“मैं “खो”जाये..और बस “ तू ही तू“रह जाये।प्रेम मे दूरियाँ के कोई मायने नही।बावजूद दूरियों के भी अगर इश्क़ क़ायम रह जाता है ,तो वो इश्क़ ही कुछ और होता है।जब वाक़ई मे आप इश्क़ से रुबरू होते है तो न केवल गुलाब बल्कि आप खुद को ही समर्पित करने के लिए बाध्य हो जाते है। जब कोई बाहरी रंग रूप से आकर्षित होता है वो आकर्षण कभी ठहरता नहीं अगर दिल से प्रेम हो जाये तो आख़िरी साँस तक चलता है..और जब कही इश्क़ रूह से हो जाये ,तो वो अमरत्व को प्राप्त करता है। कोई विरला ही इसका अनुभव कर पाता है।इसे ही रूहानी इश्क़ भी कहा जाता है मगर अफ़सोस !

इन्सान दिल या जिस्म पर ही अटक गया, इश्क़ तो उसी का मुकम्मल हुआ जो रूह तक पहुँच गया। 🙏
इश्क़ तो जिस्मों से परे ,पाकीज़गी मे ही ये पनपता और महकता है।बिना छूऐ भी प्यार करना।जुदा हो कर भी उसी का ही ..हो कर रहना।अपनी खुदी को ही खो देना ..ये है मोहब्बत।प्रेम वही कर सकता है जो प्रेम के बदले कुछ न चाहे ..जो सिर्फ़ प्रेम देना जानता हो ..बदले मे मिले न मिले ,उसे ..उससे कोई सरोकार नही।
कृष्ण दीवानी मीरा साक्षात्कार प्रेम की ही मूर्ति थी।कृष्ण को उसने कभी देखा नही, छुआ नही। बस उसके अहसास से प्रेम किया और रंग गई उसी के रंग मे। वक़्त जितना भी माडर्न हो जाये दोस्तों सच्चे प्रेम की परिभाषा वही रहेगी। “स्त्री अगर बहुत सुन्दर है इसीलिए उससे प्रेम हो जाये, ये मात्र आकर्षण या वासना भी हो सकती हैं ।विपरीत इसके ..किसी स्त्री से प्रेम हो जाये फिर वो हर हाल मे सुन्दर लगे तो यक़ीनन प्रेम हुआ” सुन्दर चेहरा तो किसी को लुभा ही लेता है। खूबसूरत “दिल”पर कोई भी आशिक़ हो सकता है मगर मन की सादगी किसी की भी रूह को छू सकने की ताक़त रखता है, दोस्तों, बेशक प्यार का इज़हार गुलाब दे कर करे मगर कोशिश करे ,उन्हें गुलाब के साथ-साथ अपना पूर्ण समर्पण भी दे ,जो उनके जीवन को सदा के लिए महका दे।आप का प्यार इक बेशक़ीमती इत्र की तरहां हो जिसकी महक दूसरो को भी महसूस हो …आज हम अगर खुद मे झांके और देखे , क्या वाक़ई मे हम ऐसे इश्क़ से वाक़िफ़ है जो आख़िरी साँस तक चले।आज हालात कुछ और है जो किसी हद तक ठीक नही ।ये वैलेंटाइन बाहरी देशों की सभ्यता थी।हमारे देश मे इसका चलन कुछ ही सालों से हुआ है ।वैलेंटाइन को मनाईये ज़रूर ,मगर गुलाब सिर्फ़ उसे ही दे ..जिसके साथ आप सारी उम्र गुज़ारना चाहे हर किसी को दे कर खुद को छोटा न करे।

ये बात कुछ साल पहले लंदन की है इक लड़का बहुत प्यार करता था किसी लड़की से .. वैलेंटाइन के दिन उसने उसको एक हज़ार पौण्ड का बेशक़ीमती गुलाब का गुलदस्ता दिया और फिर लंदन के किसी बड़े होटल मे दोनो ने लंच किया।लड़के ने शाम को अपने दोस्तों के साथ पार्टी रख ली और पार्टी के दौरान लड़के ने लड़की को शादी के लिये प्रपोज़ भी कर दिया।यानी वैलेंटाइन को यादगार बनाने के लिये कोई कसर नही छोड़ी ।दोनों बहुत ख़ुश थे।साल के बाद शादी भी हो गई ।दो सालों में सारी दुनिया भी घूम डाली।मगर दो साल के बाद दोनों एक दूसरे से अलग हो गये .. उससे अगले साल वो लड़का किसी और को गुलाबों का गुलदस्ता भेज रहा था और लड़की किसी और के साथ वैलेंटाइन मना रही थी। मेरे हिसाब से न तो ये इश्क़ है न ही प्यार या मोहब्बत… हाँ आकर्षण ज़रूर कह सकती हूँ बहुत से लोग आकर्षण को ही इश्क़ समझ लेते हैं ।आप इसे क्या कहते है ये फ़ैसला मै आप पर ही छोड़ देती हूँ ।इश्क़ इतना सस्ता है ही नही ,जो गुलाब दे कर उसे ख़रीद लिया जाये या छोड़ दिया जाये..मगर ये आज विदेशों में ही नहीं बल्कि सब जगह ये चलन चल रहा है।

दोस्तों। माना ये इश्क़ को ज़ाहिर करने की पहली निशानी गुलाब हो सकती है,मगर गुलाब तो एक ही काफ़ी है और सिर्फ़ “अकेला गुलाब”प्यार की नींव तो नही हो सकता।गुलाब लेने वाले को भी ये समझना ज़रूरी है कि गुलाब के साथ काँटे भी होते हैं और उसे भी वैसे ही स्वीकार करें जैसे गुलाब 🌹को किया जाता है दुया करती हूँ ये प्रेम का उत्सव मनाने के लिये आप को वैलेंटाइन का इन्तज़ार न करना पड़े बल्कि हर दिन गुलाब जैसा ही खिला और महकता रहे 🙏गुलाब की पंखुड़ियों की लालिमा ..आपके चेहरे के नूर को ..चार चाँद लगा दे।
हैपी वैलेंटाइन….🙏 स्मिता

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क्राइस्टचर्च कॉलेज की राष्ट्रीय योजना इकाई के ‌ छात्र/छात्राओं ने मतदाता जागरूकता अभियान के अंतर्गत मतदाता के जागरूकता के लिए रैली निकाली

कानपुर 11 फरवरी को क्राइस्टचर्च कॉलेज की राष्ट्रीय योजना इकाई के ‌ छात्र/छात्राओं ने मतदाता जागरूकता अभियान के अंतर्गत मतदाता के जागरूकता के लिए एक रैली निकाली, जिसका शुभारंभ प्राचार्य डॉक्टर जोसेफ डेनियल ने हरी झंडी दिखाकर किया, रैली महाविद्यालय से प्रारंभ होकर बड़ा चौराहा कोतवाली,‌ परेड एवं मेस्टन रोड होते हुए शिवाले में समाप्त हुई, रैली में छात्र/छात्राओं बैनर एवं पोस्टर लेकर नारे लगाते हुए चल रहे थे एवं सभी को मतदान करने के लिए प्रेरित कर रहे थे, उनका स्लोगन था पहले मतदान फिर खान पान ,मतदान करेगें जरूर,हमारा अधिकार है हम इसका प्रयोग करें इत्यादि के द्वारा उन्होंने जगह जगह जा कर लोगों को वोट डालने के लिए प्रेरित किया एवं उनको उनके अधिकारों के प्रति जागृत किया तथा वोट की महत्ता को बताया, इस रैली में महाविद्यालय के लगभग १०० छात्र/छात्राओं ने सहभागिता की जिसमें प्रमुख रुप से क्राइस्ट चर्च कॉलेज की एनएसएस यूनिट के प्रतिनिधि हर्षवर्धन दीक्षित ने अपने समन्वयको आयुषी पाठक एवं आयुष कुमार संग कार्यभार संभाला, रैली का आयोजन कार्यक्रम अधिकारी डॉ सुनीता वर्मा ने किया, डाॅ सबीना बोदरा, डाॅ मीतकमल द्विवेदी, डॉ आनंदिता भट्टाचार्यका, डॉ अरविंद सिंह, डॉ निरंजन स्वरूप, आदि का विशेष सहयोग रहा।

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क्राइस्ट चर्च कॉलेज कानपुर की एनएसएस यूनिट द्वारा हैल्थ कैंप आयोजित

क्राइस्ट चर्च कॉलेज कानपुर की एनएसएस यूनिट ने 09 फरवरी, 2022 को हैल्थ कैंप का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का महत्वपूर्ण लक्ष्य सबको अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना था। इस कार्यक्रम हेतु सेंट कैथरीन अस्पताल से आई डॉक्टरों की टीम जिसमें डॉक्टर समीर तथा डॉ मंजू मल्होत्रा और
पार्षद शिवम् दीक्षित जी मुख्य रूप से उपस्तिथ रहे ।

इस कार्यक्रम में स्थानीय लोगो ने अपनी भागीदारी देकर अपने स्वास्थ्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी का परिचय दिया। इस कार्यक्रम में एनएसएस यूनिट ने बढ़-चढ़ कर भागीदारी निभाई। उन्होंने स्वयं कार्यक्रम के आदेशों का पालन किया तथा सभी को जागरूक करते हुए कार्यक्रम को सफल बनाया। तथा सब को अवगत कराया की स्वास्थ्य शिविर के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखें जैसे उचित दूरी बनाए, मास्क पहने, और अपना सैनेटाइज़र साथ लेकर आये। इस शिविर में १०० से ज्यादा लोगो ने भाग लिया ।

इस कार्यक्रम में क्राइस्ट चर्च कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ जोसेफ डेनियल एवं उप प्रधानाचार्य डॉ सबीना बोदरा, डॉक्टर मृदुला सैमसंग तथा एनएसएस प्रोग्राम ऑफिसर डॉ सुनीता वर्मा एवं संध्या सिंह उपस्थित रही जिनके मार्गदर्शन में कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
कार्यक्रम में एनएसएस इकाई के छात्रों के प्रतिनिधि हर्षवर्धन दीक्षित ने अपने समन्वयकों आयुषी पाठक एवं आयुष कुमार संग एनएसएस की टीम जिनमें विशेष रुप से पवन श्रीवास्तवा , वर्षा आनंद, ग्रीषा माथुर, अनन्या राठौर, सुप्रिया दास, यशस्वी कश्यप, वेदिका सिंह, अरबाज खान, इरम वकील, देव सोनकर ने कार्यक्रम में अपना सहयोग दिया तथा कार्यक्रम को सफल बनाया।

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छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के ५७ स्थापना दिवस के अवसर पर एस ऍन सेन बालिका विद्यालय पोस्ट ग्रेजुएट महाविद्यालय की ऍन एस एस इकाई द्वारा गोद ली गयी मलिन बस्ती काकोरी में एक स्वाथ्य एवम पोषण शिविर का महिलाओं एवम बच्चों के लिए आयोजन

कानपुर 9 फरवरी, छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के ५७ स्थापना दिवस के अवसर पर एस ऍन सेन बालिका विद्यालय पोस्ट ग्रेजुएट महाविद्यालय की ऍन एस एस इकाई द्वारा गोद ली गयी मलिन बस्ती काकोरी में एक स्वाथ्य एवम पोषण शिविर का महिलाओं एवम बच्चों के लिए आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्राचार्य डॉ निशा अग्रवाल ने शिविर का उद्गाटन किया साथ ही साथ शिविर की सफलता के लिए सभी ऍन एस एस वालंटियर्स और प्रोग्राम अधिकारी को शुभकामनाए दी। कार्यक्रम अधिकारी डॉ चित्रा सिंह तोमर ने महिलाओं व बच्चों को स्वस्थ्य के प्रति जागरूक रहने की आव्यशकता को बताया। डॉ प्रीति सिंह ने आयुर्वेद तथा जड़ीबूटियों और वनपस्तियों का, जोकि उस बस्ती में आसानी से उपलब्ध हैं, का प्रयोग कर स्वस्थ्य रहने के प्रति महिलाओं को जागरूक किया। डॉ मोनिका शुक्ला ने जरुरी पोषण के प्रति महिलाओं को जागरूक किया तथा बताया कि उपलब्ध अनाज, दालों और सब्जियों से किस प्रकार वे महिलाएं पोषण प्राप्त कर सकती हैं। शिविर का समापन ऍन एस एस यूनिट कि छात्राओं द्वारा बस्ती में पोषण और स्वस्थ्य से सम्बंधित पोस्टरों के साथ रैली निकल कर हुआ जिसमें सभी महिलाओं, बच्चों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। शिविर का आयोजन बहुत ही सफल रहा।

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विधवा

आईने के सामने खड़ी थी मैं। क्रीम कलर की बॉर्डर वाली साड़ी मुझ पर बहुत फब रही थी लेकिन मैं आईने में दूसरे रंग की साड़ी में खड़ी नजर आ रही थी सुर्ख लाल रंग की साड़ी…. माथे पर बड़ी सी बिंदी, आंखों में काजल, होठों पर लिपस्टिक और मैं खुद पर ही इतरा रही थी। मैंने अपने प्रतिरूप को छूना चाहा मगर यह क्या अचानक मैं खो गई और जो सामने थी वह एक विधवा थी। कबीर के जाने के बाद मेरे जीवन से सभी रंग उड़ चुके थे। खुशियों ने मुस्कुराना बंद कर दिया था और जिम्मेदारियों का बोझ मुझे परिपक्व बना रहा था। धीरे धीरे मेरा जीवन सामान्य होने लगा था लेकिन शायद मैं अंदर ही अंदर कुछ टूट सी रही थी… कोई कुछ महसूस नहीं कर रहा था लेकिन अंदर से कुछ दरक रहा था मगर फिर भी मैं मुस्कुरा रही थी, जी रही थी। उदासी मुझ पर हावी ना होने पाए इसलिए मैंने खुद को काम में गुथा लिया था। मयंक की जिम्मेदारी थी और उसके लिए मुझे जीना था, हंसना था।

मैं:- “मयंक! मैं कॉलेज के लिए निकल रही हूं, तुम ट्यूशन से आते वक्त लॉन्ड्री से होते हुए आना कुछ कपड़े ड्राइक्लीन को दिए हुए हैं वह लेते आना।”
मयंक:- “ठीक है मां।”
विचारों में सृजनात्मकता और नवीनता मेरा स्वभाव स्वभाव है और मेरा यह स्वभाव जल्दी से किसी को रास नहीं आता। वैसे भी एक सामाजिक धारणा है कि एक विधवा स्त्री सपने कैसे देख सकती है? गाड़ी चलाते हुए यह विचार मेरे जेहन में घूम रहे थे। कॉलेज में फाइलों और क्लास में उलझे रहकर मैं यह सब भूल जाती और जब मन शांत होकर अकेला होता तब मुझे कबीर बहुत याद आते। कबीर तुम हमेशा कहते थे ना कि तुम्हारे ऊपर चटक रंग ज्यादा अच्छे लगते हैं मरून रंग तुम पर कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता है। तुम हमेशा ऐसे ही चटक रंग पहनना, ज्यादा सुंदर लगती हो। कबीर के यह शब्द आज भी मेरे मन को छू जाते हैं। मुझे याद है एक बार मंदिर जाते समय मैंने हल्के जामुनी रंग की साड़ी पहनी थी। तब कबीर ने कहा, “अरे यह क्या पहन लिया? तुम्हारे ऊपर बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा। गहरे रंग का कुछ पहनना चाहिए” और उन्होंने गहरे हरे रंग की साड़ी निकाल कर दी मुझे। आश्चर्य होता था मुझे कि कोई व्यक्ति इतना ध्यान कैसे रख सकता है वो भी कपड़ों का, कपड़ों के रंगों का मगर कबीर ध्यान देते थे। कभी अच्छा भी लगता था तो कभी झल्लाहट भी होती थी मुझे लेकिन मैं आज इन सब चीजों की कमी महसूस करती हूं।
कॉलेज के लिए तैयार होते समय अचानक मेरा हाथ मरून रंग की साड़ी पर गया फिर पता नहीं क्यों मरुन साड़ी पहनकर ही ऑफिस चली गई। उस दिन मैं सबकी आंखों का केंद्र थी मगर मैंने किसी की आंख की परवाह नहीं की। मुझे जीना था,  खुश रहना था मयंक के लिए, कबीर के लिए और अपने लिए। मैंने धीरे-धीरे सफेद रंग को अलविदा कहा और सभी रंगों को आत्मसात कर लिया सिवाय एक रंग के सुर्ख लाल रंग।
अब मैं सजने संवरने लगी थी तो लोगों की आंखों में चुभने भी लगी थी। लोगों की प्रतिक्रियाएं भी आती, “देखो तो कैसी है! विधवा है लेकिन तैयार कैसे हो रही?” कुछ तो इतने रूढ़ होते कि चरित्र पर ही उंगली उठा देते थे। फिर भी मैं हारी नहीं। मेरा आत्मविश्वास मजबूत होता गया और धीरे-धीरे लोगों को मैं उत्तर भी देने लगी।
निम्मी मासी:- “अरे बेटा! अब शुभ कामों में बुलाया तो है मगर जरा दूर बैठा करो और इतनी चटक रंग की साड़ी क्यों पहनी? हल्के रंग की पहनी चाहिए। अब शोभा नहीं देता इस तरह से। समाज के सभी लोग देखते हैं।”
मैं:- “मासी! जमाना बदल गया है और लोगों की सोच भी बदल गई है। आजकल के बच्चे नहीं मानते हैं यह सब। अब देखो मिलोनी बुला रही है और बोल रही है कि “फेरों के वक्त पास में ही रहना बुआजी। भैया भाभी भी बुला रहे हैं, सम्मान दे रहे तो बिना वजह का बखेड़ा क्यों खड़ा करूं?” मासी बुरा सा मुंह बना कर रह गई। भाभी भी पास आकर बोली, “हां बुआ जी क्या पति के जाने से औरत सिंगार करना छोड़ दे, जीना छोड़ दे, सपने देखना छोड़ दे, अपनी इच्छाओं को मार दे, जिंदा लाश बन कर रहे और आगे का जीवन निराशा और अकेलेपन में गुजारे।”
बुआ:- “हमने भी तो ऐसे ही गुजारा है जीवन। पति के जाने के बाद कैसा उत्सव? विधवा होने के बाद स्त्री के लिए यह सब अशोभनीय है, पाप है।”
भाभी:- “कुछ नहीं होता बुआ जी! नंददोई जी को जीजी हमेशा तैयार और खुश ही अच्छी लगती थी और अब जब अकेली रह गई हैं तो उन्हें निराशा में धकेलना क्या ठीक है? उन्हें हमारे साथ, हम सब के बीच में रहकर खुशियां मनानी चाहिए”।
मुझे गहने, कपड़े, मेंहदी, काजल, लिपस्टिक, बिंदी लगाये देखकर लोगों में खुसफुस होते रहती लेकिन मैं परवाह नहीं करती क्योंकि मुझे पता है समय परिवर्तनशील है और कुछ समय बाद यह लोग चुप हो जाएंगे और समर्थन भी देंगे क्योंकि जब इन्हीं में से ही किसी की बेटी पर ऐसा दुख आएगा तब। पास ही के मंदिर में शाम की आरती की आवाज आनी शुरू हो गई थी और मेरा मन धीरे-धीरे शांत हो गया होता जा रहा था।

प्रियंका वर्मा महेश्वरी

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एसएन सेन बा वि पीजी में बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर मां सरस्वती की पूजा अर्चना की

भारतीय स्वरूप संवाददाता, कानपुर 27 जनवरी, एसएन सेन बा वि पीजी कॉलेज कानपुर में बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर मां सरस्वती की प्रतिमा को प्रतिष्ठित कर पूजन अर्चन किया गया बसंतोत्सव की शुभ बेला पर मुख्य अतिथि विधायक श्री अमिताभ बाजपेई ने मां सरस्वती के चरणों में पुष्प अर्पित कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया, महाविद्यालय प्रबंध तंत्र के अध्यक्ष श्री प्रवीण कुमार मिश्र, सचिव श्री प्रवीण कुमार सेन ,संयुक्त सचिव श्री शुभरो सेन ,सदस्या श्रीमती दीपा श्री सेन, एवं प्रबंध समिति के अन्य गणमान्य सदस्य प्राचार्या डॉ निशा अग्रवाल ने ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा कर पुष्पांजलि अर्पित की  ऋतुराज बसंत के आगमन की छटा सभागार में देखते ही बनती थी, पीत पुष्पों से सुसज्जित महाविद्यालय सभागार में रंगों का सुंदर संयोजन लिए अल्पना देखकर सभी मोहित हो उठे, कोविड के नियमों का पालन करते हुए महाविद्यालय के समस्त प्रवक्ता गण एवं कर्मचारी गण ने पुष्पांजलि अर्पित कर मां से आशीर्वाद लिया, भारतीय संस्कृति में समस्त पर्व त्यौहार प्रकृति से जुड़े हुए हैं माघ मास की पंचमी को बसंत पंचमी के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन महाविद्यालय में भी मां को अन्य भोगो के साथ पीली खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और बाद में सभी को वितरित किया जाता है, छात्राएं अपनी पुस्तक कलम एवं विद्या से संबंधित सामग्री मां के चरणों में रख उनसे आशीर्वाद लेती है, इस पूजा में भाग लेने सेवानिवृत्त प्रवक्तागण कर्मचारी गण और तथा पूर्व छात्राएं भी आती हैं, दिनांक 07.02.2022 को मां सरस्वती की प्रतिमा का विसर्जन दोपहर 1:00 बजे किया जाएगा, इस शुभ अवसर पर डॉ निशी प्रकाश, डॉ अलका टंडन ,डॉ पूनम अरोड़ा ,डॉ संध्या सिंह, डॉ गार्गी यादव, डॉ रचना शर्मा ,डॉ चित्रा सिंह तोमर ,डॉ मोनिका सहाय, डॉ प्रीति सिंह, डॉ रचना निगम, डॉ शुभा वाजपेई ,डॉ प्रीता अवस्थी , डॉ सुनीता शुक्ला आदि उपस्थित रहे

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