Breaking News

महिला जगत

बात बराबरी की

मैंने कहीं सुना था कि महिलाओं का नौकरी करना मतलब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना है मतलब कि उन्हें अपने पति के आगे हाथ ना फैलाना पड़े। तो इसमें गलत क्या है अगर महिला आर्थिक रूप से मजबूत हो रही है तो लाभ भी तो परिवार को ही मिल रहा है बल्कि स्त्री को परिवार का ज्यादा भार उठाना पड़ता है। बच्चों से लेकर घर के बड़े बुजुर्गों और घर की जरूरतों तक का ध्यान रखने की जिम्मेदारी महिला पर ज्यादा होती है। नौकरी से लौटकर जहाँ पति अखबार या टीवी में बिजी हो जाता है वहीं स्त्री को रसोई संभालनी पड़ती है। ऐसा नहीं कहूंगी कि आजकल इस मानसिकता में बदलाव नहीं आया है। यह बदलाव जरूर आया है कि आज की युवा पीढ़ी घर और बच्चे दोनों संभाल रही है। जरूरत ने उन्हें घरेलू बना दिया है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति परिवार का दुर्लक्ष होते नहीं देख सकता इसलिए समझौता जरूरी है। फिर भी अभी भी ऐसी मानसिकता देखने को मिल जाती है कि महिला पुरुष पर निर्भर करें। कितना अच्छा लगता है जब औरत सौ रुपए मांगे और उस सौ रुपए के खर्च का हिसाब देना पड़े। कुछ भी खर्च करना हो तो पहले हिसाब और जरूरत बताएं फिर तय होगा कि उसे खर्च करना है या नहीं। अच्छा लगता है ऐसा स्वामित्व भरा दंभ?

यह सही है कि महिला का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाने के बाद उसकी निर्भरता पुरुष पर कम हो जाती है बल्कि एक तरीके से खत्म हो जाती है। उसमें एक आत्मविश्वास आ जाता है। परिवार की जिम्मेदारी निभाने के साथ – साथ सही गलत का फर्क समझ कर कोई बात दबी जबान से ना कह कर सीधे बोलना भी सीख जाती है। फिर भी आज भले ही महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गई हों लेकिन आज भी खर्चे के मामले में वह परिवार के मुखिया पर ही निर्भर हैं। कहीं कहीं महिलाएं घरेलू हिंसा का भी शिकार हो जाती हैं। अभी भी आत्मनिर्भरता सिर्फ नाम की है क्योंकि स्त्री का पूरी तन्ख्वाह पति के हाथों में चली जाती है। जब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होते हुए भी उन्हें अपनी जरूरतों, खर्चों के लिए अनुमति मांगने पड़े तब स्थिति बड़ी विषाद हो जाती है। मन में यही सवाल उठता है कि क्या इतना भी अधिकार नहीं है कि हम अपने ऊपर खर्च कर सके? उसके लिए भी पूछना पड़े? क्या कभी देखा है कि पुरुष को अपने खर्चों के लिए, अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए स्त्री से अनुमति मांगते हुये? इन तमाम दुविधाओं के साथ जीती हुई महिला अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहती है। अगर इतनी ही संकुचित मानसिकता रहेगी पुरुषों की तो स्त्री घर और बाहर की जिम्मेदारी कैसे संभाल पायेगी? ऐसी संकुचित सोच रख कर क्या महिलाएं सही मायने में आत्मनिर्भर हो पाएंगी? हमने महिला को आधुनिक तो बना दिया लेकिन बराबर का हक और सम्मान देने में असफल रहे। ~ प्रियंका वर्मा माहेश्वरी

Read More »

शक्ति कानपुर प्रांत , राष्ट्रीय सेवा योजना क्राइस्टचर्च कॉलेज एवं उन्नति विकास सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में सामाजिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का आयोजन

कानपुर 5 अक्टूबर, शक्ति कानपुर प्रांत , राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई क्राइस्टचर्च कॉलेज एवं उन्नति विकास सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में सामाजिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का आयोजन शेल्टर होम,सुतर खाना ,सेवा बस्ती में किया गया, जिसमें सेवा बस्ती की महिलाओ को मानसिक बीमारियां कैसे होती है तथा इसका निवारण कैसे किया जा सकता है एवं महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन वितरण बगैरा किया जाना निश्चित किया गया है इस कार्यक्रम में उर्सला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल से डॉक्टर चिरंजीव प्रसाद मनोचिकित्सक, डॉ आरती कुशवाह, संदीप कुमार सिंह मनोचिकित्सक एवं सामाजिक कार्यकर्ता, सुधांशु प्रकाश मिश्रा क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट, पवन यादव अरुण यादव राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम, अवधेश कुमार परामर्श दाता , राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम बंदना यादव सामाजिक कार्यकर्ता , डॉक्टर एसके निगम डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर एनसीडी, डॉ सुनीता वर्मा यूनिट इंचार्ज शक्ति कानपुर प्रांत , एवं उन्नति विकास सेवा संस्थान की सचिव एवं शक्ति कानपुर प्रांत की मीडिया प्रभारी संध्या सिंह

और कानपूर शक्ति की माननीय मेंबर डॉ दीप्ति रंजन बिसरी ,डॉ शशि बाला, प्रतिभा मिसरा आदि उपस्थित रहेगी

Read More »

चेहरे का नूर बताता है कितना खूबसूरत है दिल

वाक़ई मे ये बात तो सच है कि हमारे चेहरे का नूर हमारे विचारों पर निर्भर करता है और हमारे विचार हमारे खान पान पर।वो कहते है “जैसा अन्न वैसा मन “
जब औरत अपने हाथ से अच्छी भावना से खाना बनाती है तो इसका असर खाने वाले पर ज़रूर पड़ता है सात्विक तामसिक और राजसी भोजन.. तीनों प्रकार के भोजन का असर हमारे मन और सोच पर अलग अलग होता है सात्विक भोजन शरीर को स्वास्थ्य रखने मे सहायक होता है इसका मन पर भी असर पवित्र और शुद्ध होता है तामसिक भोजन क्रोध कामुकता को जन्म देता है और राजसी भोजन हमे आलस प्रदान करता है आज के वक़्त मे अधिकतर घरों में रसोई बनाने वाला कोई और होता है और वो ये काम सिर्फ़ पैसा कमाने के लिये कर रहे होते है आप की रसोई बनाते वक़्त उनकी सोच कोई भी हो सकती है
उस वक़्त उसके मन में जो विचार चल रहा होगा।उसके विचार की तरंगें सीधा हमारे भोजन में जाती है और हमारे मन पर उसका असर भी ज़रूर दिखता है किसी रसोइया के मन में वो प्रेम प्यार नहीं हो सकता ।यही बात होटलों में खाना खाने पर होती हैं वहाँ भी खाना बनाने वाले के दिल मे पैसा कमाने का या कोई अन्य विचार हो सकता है मगर जब घर पर अपने हाथों से प्यार से खाना बनाया जाता हैं तो सोच ये होती हैं कि खाना स्वादिष्ट सेहतमंद विटामिन युक्त हो जो मेरे परिवार को रोगमुक्त रखे .. यही हमारी भावना अलग है औरों से .. होटलों से ,या अन्य किसी रसोइया से ।वो औरत सच मे अन्नपूर्णा होती है जो अपने हाथो से रसोई बनाती है ।और सब का पेट भरती है।

मगर आज कुछ माहौल अलग है
अब हमारा श्रृंगार सोच ,पहनावा,खाना खाने और बनाने का ढंग बदल रहा है ।होना भी चाहिए..ज़रूर वक़्त के साथ बदलना भी ज़रूरी है इसमें कोई बुराई नहीं ।
आज के दौर में हर घर में हाथ बँटाने के लिए पूरा स्टाफ़ होता है एक नहीं चार चार ही होंगे।बड़े बड़े घर है बड़ी बडी गाड़ियाँ ऊँचा मकान ऊँची दुकान ..हर चीज़ हर किसी के पास होती भी है और आज हमारी माँगें हमारी ज़रूरते बहुत बढ गई हैं जिसके लिए आज मर्दों को अपने परिवार की हर ज़रूरत को पूरा करने के लिये न जाने क्या कुछ नहीं करना पढ़ता होगा और इसी दवाब के कारण कई बार वो अपने सेहत को भी दांव पर लगा देते है ये न तो उनके लिए ,न ही हमारे हित में होता है ।
करोड़ो के ज़ेवर पहनने के बावजूद भी हमारे चेहरे फिर भी मुरझाये से है ।इक असुरक्षित सा अकेलेपन का अहसास फिर भी क़ायम है ।
चेहरों पर नूर ग़ायब है कही शान्ति नज़र नहीं आती ।
इक कठोर ..कर्कश से चेहरे हो गये हैं ,जबकि होना बिलकुल विपरीत चाहिए था।
दोस्तों ।
बात चाहे औरत की हो या मर्द
की ।हमारी खानपान का प्रभाव हमारी सोच पर और सोच का प्रभाव हमारे चेहरे पर ज़रूर पड़ता है जैसा सोचते है धीरे धीरे चेहरा भी वैसा ही बनने लगता है अगर मन में ईर्ष्या क्रोध दुख लोभ और कामुकता के विचार ज़्यादा होगें तो यकीनन चेहरे से साफ़ नज़र भी आयेगा और अगर मन में दूसरों के लिए प्रेम,कोमलता ,दया ,श्रद्धा
सहनशीलता ,सहजता पवित्रता है तो ये भाव भी चेहरे पर आ जाते हे वो कहते है न
“चेहरा दिल का आईना होता है “
हमारा दिल हमारे चेहरे में से दिखता है

दोस्तों
पहले लोग कितने भोले सीदे सादे हुआ करते थे मेकअप के नाम पर बिंदी लिपस्टिक ही हुआ करती थी
मगर उनके चेहरे पर नूर ,गालो पर लाली ,आँखों मे चमक ,होंठों पर मुस्कान हुआ करती थी
फ़र्क़ ये था तब लोग बहुत शालीन संयमी,संतुष्ट थे ।थोड़े मे भी ख़ुश और शुक्र किया करते थे। अपने हाथों से सारा काम किया करते थे यही वजह हुआ करती थी सारा परिवार बंधा रहता था ।
उस वक़्त लोगों को ये डिप्रेशन जैसी बिमारी नही हुआ करती थी क्योंकि ज़रूरतें कम हुआ करती थी आपस मे मिल बैठ कर अपनी कठिनाईयो को सुलझा लिया करते थे इक दूसरे का दुख सुख अपना समझते थे। दिखावा बिलकुल नहीं था सहज और बहुत सरल थे।
इससे कोई फ़र्क़ नहीं पढ़ता कि आप की जीवन शैली आधुनिक है या पुरानी सोच पर आधारित है बात पुराने वक़्तों की हो या आज की ..“ सुखी जीवन का मूल मन्त्र यही है”

चेहरे का नूर किसी बाहरी मेकअप से कहाँ आता है ।मेकअप आप को सुन्दर बेशक बना सकता है मगर चेहरा का नूर ,ये इक अलग ही तेज इक ऐसी चमक है जो अन्दर से पैदा होती है अगर किसी का मन सुन्दर सहज भोला और पवित्र है
तो इन्सान वैसे ही बहुत
सुन्दर दिखने लगता है .. धीमे से ..हौले से बोलने में जो ताक़त है वो तीखी तर्कश आवाज़ में नहीं । असली ज़ेवर हमारी मुस्कान ,हमारी मीठी आवाज़ ,हमारी सुन्दर सोच है .. जिसे पहनने के लिये कोई धन नही खर्च होता ।
दोस्तों
मिलजुल सारे काम किये जा सकते है अपने हाथ से काम करने से ज़िम्मेदारी का अहसास तो होता ही है शरीर भी ठीक रहता है और हम चीजों की कद्र भी करते है।वैसे भी इन्सान किस के लिये करता है अपने बच्चों के लिए ,हमारा फ़र्ज़ उनको पैरों पर खड़े करना ही होना चाहिए ।उनके लिए भी घर या ज़ेवरों का इन्तज़ाम करन नही।
हर कोई अपने मुक़द्दर से ये सब बना ही लेता है ।जब माँ बाप सब बना कर देते है उन्हें क़दर नहीं
होती।उनमें आगे बढ़ने का तीव्र इच्छा नहीं रहती।हमेशा अपनी चीज़ की कद्र तब होती है जब हम आप बनाते है।

दोस्तों 🙏
हम सब ने अपने आप को बहुत बिखेर रखा है दुनिया मे,परिवारों मे।ज़रूरत है तो सिर्फ़ खुद को समेटने की।
इन सब झंझटों से निकल कर अपने मन में ठहराव लाने की आवश्यकता है। ठहराव अपनी सोच मे विचारों मे, अपनी वाणी मे ,अपनी दृष्टि मे लाने की ज़रूरत है क्योंकि खड़े पानी मे ही अपना अक्स देखा जा सकता है ठहराव मे ही हम खुद को ,अपने मन को ,अपनी सोच को देख पायेंगे।अपनी ज़िन्दगी को आसान करिये, ख़ुश रहे।जो है उसी में संतुष्ट रहे।योगा करे ,मैडिटेशन करे ।जो मिला है उसी को ही दिल से स्वीकार कर ले।

चेहरे का नूर अन्दर से ही निकलेगा कहीं बाहर से नहीं ..शर्त बस इतनी ही है कि विचारों और खान पान पर ख़ास ध्यान रखा जाए ।फिर देखिए चेहरे पर नूर कैसे बरसता है। :+ स्मिता केंथ

Read More »

क्राइस्ट चर्च कॉलेज और विज्ञान भारती के सयुक्त तत्वाधान में वेबीनार आयोजित

कानपुर 29 सितंबर क्राइस्ट चर्च कॉलेज के साथ विज्ञान भारती के सहयोग से एक वेबीनार का सफलता पूर्वक आयोजना हुआ जिसके मुख्य अतिथि जाने माने अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा जी रहे। कार्यक्रम की शुरुआत डॉ श्वेता चांद द्वारा प्रार्थना से हुई। फिर क्राइस्ट चर्च कॉलेज प्राचार्य डॉ जोसेफ डेनियल ने इस कार्यकर्म में सभी प्रतिभागियों का स्वागत कर इस वेबिनार को उपयोगी बताया , विज्ञान भारती सचिव डॉ सुनील मिश्र ने विज्ञान भारती मंच से अवगत कराया , अनुकृति रंगमंडल के सचिव डॉ उमेंद्र जी द्वारा सभा का संबोधन किया गया । नमन अग्रवाल एवं इश्तिका कुशवाहा द्वारा अखिलेंद्र मिश्रा के जीवन पर आधारित एक वीडियो प्रस्तुति दी गई। डॉ मीत कमल ने मुख्य अतिथि का परिचय दिया। अखिलेंद्र मिश्र  द्वारा सभा का संबोधन किया गया। उन्होंने बताया की “विश्व में दो मंथन हुए थे प्रथम समुद्र मंथन व दूसरा स्वत्रंता मंथन। जिसमे स्वतंत्रता सेनानियों ने विष का सेवन किया था तभी जा कर हमे ७५ वा आज़ादी का अमृत महोत्सव को मनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
वेदांत मिश्रा द्वारा कार्यक्रम का सफल संचालन किया गया । इस कार्यक्रम का समापन श्री अभय द्वारा शांति मंत्र से किया गया । इस कार्यक्रम में 100 से भी अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।

Read More »

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कानपुर के सहजना गांव की बेटी “डाली”(मृतक) के परिजन को रु10 लाख की चेक किया प्रदान।

कानपुर 27 सितंबर, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य ने आज कानपुर नगर के बिल्हौर तहसील के ग्राम सहजना की बेटी के परिजनों से मिलकर उन्हें सांत्वना व्यक्त करते हुए प्रदेश सरकार की ओर से सहायता राशि के रू0 10 लाख रु. का चेक प्रदान किया। उन्होने कहा कि मृतक बेटी के साथ हुयी घटना के अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा सुनिश्चित होगी। सहायता राशि मृतक बेटी (डाली) की मां श्रीमती मिथिलेश कुशवाहा पत्नी स्व0 ओम प्रकाश को उनके स्थाई निवास( घर) जाकर उप मुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य द्वारा प्रदान की ।

उपमुख्यमंत्री ने मृतका के परिजनों से मिलकर उन्हें ढाढ़स बंधाया तथा कहा कि शासन और प्रशासन उनके साथ है, उनकी हर संभव मदद की जाएगी। अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी ।उन्होंने घटना के बाबत परिजनों से वार्ता भी की तथा मृतका के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।

Read More »

क़बीरा खड़ा बाज़ार में सब की माँगें ख़ैर

क़बीरा खड़ा बाज़ार में सब की माँगें ख़ैर .. न किसी से दोस्ती न ही किसी से बैर, संत कबीर दास जी की ये पंक्तियाँ मेरे दिल के बहुत क़रीब है।

ये सोच किसी साधु महात्मा या पीर की ही हो सकती है आम तौर पर ऐसी हमारी धारणा है मेरे विचार में हर इक इन्सान की ऐसी सोच हो सकती है बशर्ते ..उसको ये समझना होगा कि कुछ भी हमारी ज़िंदगी में होता है किसी का आना जाना,किसी से लेना देना ,किसी से नुक़सान ,किसी से फ़ायदा ,किसी से मान और अपमान मिलना ..ये सब पहले ही से तय हो चुका होता है हमारे पिछले जन्मों के करमो के अनुसार ।जैसा बीज हम बोते है वही काटते है
अब अगर ये बात हमें समझ में आ जाये कि हमें अपना किया हुआ ही मिल रहा है तो हम कभी किसी और को दोष नहीं दे पायेंगे।किसी से अच्छा किया होता है तो वो दोस्त बन कर आ जाता है और अगर किसी से बुरा किया हो तो वह किसी न किसी रूप में आ कर दुश्मनी ही निभायेगा।

मन से ज़्यादा कुछ और उपजाऊ नही है ।वहाँ जो भी बोयेंगे वही उगेगा ,चाहे वो विचार नफ़रत का हो या फिर प्रेम का।
इक सकून भरा जीवन जीने के लिए अच्छा और पोजीटिव ही सोचना बेहतर है।

इक सच्चा इन्सान..पीर.. साधु महात्मा ऐसी ही सोच का मालिक होता हैं हमे अपने ही करमो पर लगातार नज़र ,अपनी सोच पर निरन्तर वार करने से ही इक सुन्दर सोच का निर्माण होगा। हमे खुद अपने को ही देखना है किसी दूसरे को नही .. तभी हमारी वो अवस्था बन सकेगी।

मगर अक्सर सुनने में आता है “दुनिया ऐसी नहीं है जनाब !!
जैसी आप समझते हैं “बहुत ख़राब है वग़ैरह वग़ैरह..भले कोई कैसा भी हो “हम शुरूआत तो खुद से कर ही सकते है “दुनियाँ कोई नहीं बदल सका आज तक ,मगर खुद को बदलना हमारे ही हाथ है ..दोस्तों बुरा कोई भी नहीं मगर संस्कारों की कमी की वजह से ,हालातों की वजह से , हमारी अपनी परवरिश जिस तरह हुई हो हम वैसा ही व्यवहार करते हैं।
कई बार हर बुराई हम बेधड़क होकर करते जाते है बिना सोचे समझे और अंजाम हमारी आत्मा को भुगतना पड़ता है हमे खुद भी नहीं पता होता कि हम अनजाने में कितना ग़लत कर रहे होते है दूसरों से ज़्यादा हम खुद अपनी आत्मा को धोखा दे रहे होते हैं .. ऐसी स्थिति वाक़ई मे दयनीय है

“चला चली की बेला है यारा
न कोई दोस्त न कोई दुश्मन
तू तो बस अकेला है यारा “

कोशिश तो हमारी यही होनी चाहिए कि हमारा नाम
देने वालों में हो न की लेने वालों में,बचाने वालों मे हो न कि मारने वालो मे ,
बनाने वालों में हो ,न की तोड़ने वालों में ..
वो चाहे तो किसी का दिल हो ,किसी का घर हो ,किसी का विश्वास हो या फिर किसी का व्यापार ।
मेरी रब से यही दुआ है दोस्तों
कि हम किसी का बुरा न माँग कर
सब की खैर ही माँगे ।इसमें हमारा कुछ भी घटेगा नहीं बल्कि मन मे
शांति और सकून बढ़ ज़रूर जायेगा ..जिस शान्ति के लिये हम कहाँ कहाँ नहीं भटकते यें कहीं बाहर नहीं है दोस्तों .. ये हमारे सब के अन्दर ही है जिसे सिर्फ़ जगाने की ज़रूरत है।

दोस्तों
ये इतना मुश्किल है भी नहीं ।
बस अधरों पर सुन्दर मुस्कान,आँखें बंद और अपने माथे से सलवटो को हटा कर पवित्र मन से ,खुले दिल से सब की खैर ही तो माँगनी है ।
फिर देखिए कमाल !
मन भी सुन्दर और तन भी सुन्दर होगा । बिना इत्र लगाये मन भी महकेगा और तन भी।

Read More »

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने जम्मू में निर्यात प्रोत्साहन केंद्र ‘जम्मू हाट’ का उद्घाटन किया

केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकी, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पृथ्वी विज्ञान, एमओएस पीएमओ, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री, डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज प्रदर्शनी मैदान, जम्मू में निर्यात प्रोत्साहन केंद्र ‘जम्मू हाट’ का उद्घाटन किया। उद्यमियों, खरीदारों, विक्रेताओं और निर्यातकों के लिए एक मंच ‘वाणिज्य सप्ताह’ के अवसर पर आज ‘जम्मू हाट’ का उद्घाटन किया गया।

उद्घाटन के दौरान प्रर्दशनी में भाग ले रहे प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जब भारत आजादी के 75 साल ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है, तो अगले 25 साल देश के विकास और प्रगति के लिए महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं। प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण को दोहराते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि 2047 तक जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 100 साल पर ‘विश्व गुरु’ के रूप में उभरेगा, यह पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण से मिलकर एक पूर्ण भारत होगा, जिसमें से जम्मू और कश्मीर भी एक हिस्सा है और इस प्रकार जम्मू के लोगों को मजबूत रहना चाहिए और उस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक क्षण के लिए खुद को तैयार करना चाहिए।

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image001KHE5.jpg

डॉ. जितेंद्र सिंह ने आगे कहा कि 26 मई, 2014 को प्रधान मंत्री के रूप में शपथ लेने के तुरंत बाद, प्रधान मंत्री द्वारा दिया गया एक मंत्र था “न्यूनतम सरकार-अधिकतम शासन” और यह सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि पिछली सरकारों के दौर में विकास के मामले में छूटे हुए राज्य, केंद्र शासित प्रदेश आदि का ध्यान रखा जाएगा और उन्हें देश के अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के समान बनाने के लिए हर कदम उठाया जाएगा।

मंत्री ने कहा कि इसका सबसे अच्छा उदाहरण केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया ‘मिशन नॉर्थईस्ट’ है, जिसका ‘पूर्वोत्तर विकास मॉडल’ पूरे देश में एक उदाहरण बन गया है। इस सरकार द्वारा पूर्वोत्तर को भीतरी इलाकों को अब देश के केंदीय इलाके के रूप में बदल दिया गया है।

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में चल रहे जनसंपर्क कार्यक्रम पर डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पीएम श्री नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल की शपथ लेने के बाद, ‘मिशन जम्मू-कश्मीर’ पर जोर दिया गया, जिनमें से एक महत्वपूर्ण कदम केंद्रीय मंत्रियों को जनसंपर्क कार्यक्रम में व्यापक रूप से शामिल करना था जो इन दिनों बड़े पैमाने पर उठाया गया है।

 

जम्मू-कश्मीर में पिछले 2 वर्षों की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि सभी केंद्रीय कानून अब जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश पर लागू होते हैं, चाहे वह भ्रष्टाचार विरोधी कानून हो या अन्य कानून जो जम्मू-कश्मीर को भारत की मुख्यधारा में लाने के लिए किए गए थे।

मंत्री ने कहा कि पहले राज्य का शिकायत पोर्टल कभी काम नहीं करता था, उसे अब सीजीआरएएमएस से जोड़ दिया गया है ताकि लोगों की शिकायतों का समय पर निवारण किया जा सके। मंत्री ने यह भी कहा कि अब जम्मू-कश्मीर में 50 हजार करोड़ से अधिक के निवेश आने की उम्मीद है जो आने वाले वर्षों में केंद्र शासित प्रदेश में विकास की रफ्तार को तेज करने काम करेगा।

Read More »

रूढ़ियां

आज मैं कुछ जल्दी ही घर आ गई थी। बरसात का मौसम था और मौसम में घनी बदली छाई हुई थी। हवा के झोंके रह-रहकर मेरे गालों को सहला जाते थे। इस वक्त मुझे चाय की बड़ी तलब लगी हुई थी तो अपने लिए चाय बना कर मैं फिर से बालकनी में आ गई। मैं इन पलों को खोना नहीं चाहती थी। मैं बाहर भागते हुए ट्रैफिक को देख रही थी, कभी किसी को एक दूसरे से उलझते हुए देख रही थी तो कभी यूं ही नजरें इधरउधर घुमा लेती। मुझे अचानक अपनी कमर पर दो हाथ घेरते हुए से महसूस हुए। सोनू ने बाहों में जकड़ कर कहा, “क्या बात है! आज बड़ी फुर्सत में हो”।
मैं:- “अरे तुम! हां आज जल्दी फ्री हो गई तो घर आ गई। तुम कैसे जल्दी आ गए।”
सोनू:- “तुम्हारे सेंटर पर फोन किया था तो पता चला कि तुम घर चली गई हो तो मैं तुम्हें सरप्राइज करने के लिए आ गया।”
मैं:- “रुको, मैं तुम्हारे लिए चाय लेकर आती हूं।”
सोनू:-  “चाय के साथ में कुछ नमकीन भी प्लीज।”
मैं:- “भुक्खड़”!
सोनू:- “चाय के साथ कुछ मीठा वगैरह भी लेती आना।”
मैं:- “चाय के साथ कोई मीठा भी खाता है क्या? नहीं है मीठा” और मैं चाय लेने चली गई। चाय के साथ मठरी चवाड़ा लेकर बालकनी में आ गई।
सोनू:- “तुम्हारी क्लास और बच्चे कैसे चल रहे है मतलब कि तुम्हारा सेंटर कैसा चल रहा है”।
मैं:- “बस ठीक ही चल रहा है। ऑफलाइन तो कुछ ऑनलाइन काम करना पड़ रहा है। नेटवर्क प्रॉब्लम तो है ही। बस चल रहा है।”
सोनू:- “सभी टीचर आ रहे हैं क्या?”
मैं:- “अब पढ़ाना है तो आना ही पड़ेगा। घर बैठे तो सैलरी मिलेगी नहीं।”
सोनू:- “हां यह भी सही है।”
मैं:- “और तुम कहां गायब रहते हो आजकल? दिखाई नहीं दिए कई दिनों से।”
सोनू:- “घर जाने की सोच रहा था, तुम्हारे और मेरे बारे में घर में बताना भी है और शादी की बात भी कर करनी है।
मैं:- “कब जा रहे हो ?”
सोनू:- “जाऊंगा वीकेंड पर।”
मैं:- “मुझे टेंशन रहेगा जब तक तुम मुझे बता नहीं दोगे कि तुम्हारे घर वालों ने क्या कहा।”
सोनू:- “परेशान मत हो, मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला। तुमने अपनी मां से बात की।”
मैं:- “हां, वह मिलना चाह रही थी तुमसे। अगले महीने वह यहां आ रही है।”
सोनू:- “ठीक है मिल लेंगे तभी।”
मैं:- “कास्ट अलग है हमारी, पता नहीं तुम्हारे घर वाले हमारे रिश्ते को स्वीकार करेंगे या नहीं”।
सोनू:- “देखता हूं यार, सब ठीक होगा। टेंशन ना लो।” मैं हंस देती हूं।
मुझे और सोनू को रहते हुए करीब दो साल हो रहा था और अब हम इस रिश्ते को समाज की रजामंदी की मोहर लगा देना चाहते थे । मैं और मेरी मां अकेले ही रहते थे। पापा को मैंने बचपन में ही खो दिया था। मेरी परवरिश मेरी मां के कांधों पर थी। उन्होंने मेरे लिए दूसरी शादी भी नहीं की और अब उम्र के इस पड़ाव पर मैं उन्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी। हमारी जिंदगी सोनू के जवाब पर टिकी थी। इन्हीं विचारों में किचन के काम निपटाती रही। जब कमरे में आई तो देखा सोनू लेटा हुआ टीवी देख रहा है।
मैं:- अरे तुम गए नहीं अभी तक?”
सोनू:- “आज मूड नहीं हो रहा। बारिश भी देखो कितनी है, जरा हल्की हो फिर जाता हूं।” मैं सोनू की बगल में आकर बैठ गई।
मैं”:- “सुनो तुम्हारे घरवाले मान तो जाएंगे ना।”
बदले में सोनू ने मेरा हाथ अपने हाथ में दबाकर आश्वासन दिया। सोनू टीवी देखते-देखते सो गया फिर मैं भी उसी के बगल में सो गई। सुबह उठते ही सोनू बोला, “रात को कुछ खाने को नहीं दिया। बड़ी जोर की भूख लगी है, कुछ अच्छा खाने को दो”।
मैं:- “दस मिनट रुको जल्दी से पोहा बना देती हूं।”
सोनू:- “ठीक है! जल्दी से दो।”
और मैं जल्दी से किचन में जाकर पोहा बनाने की तैयारी में जुट गई। आधे घंटे के बाद सोनू नाश्ता करके जाने लगा। सोनू:- “मैं जा रहा हूं, कल सुबह ही घर के लिए निकल जाऊंगा। शायद शाम को ना आ पाऊं।” मैंने सहमति में सिर हिलाया फिर सेंटर जाने के लिए तैयारी करने लगी।
मेरे दो दिन उहापोह में बीते कि सोनू के माता पिता ने क्या जवाब दिया होगा। ट्यूशन में भी काम का प्रेशर बढ़ रहा था, बच्चों के एग्जाम करीब आ रहे थे सो उनके लिए पेपर बनाने का भी टेंशन था लेकिन दिमाग में यही चल रहा था कि सोनू जल्दी से जवाब दे दे तो सर से बोझ हल्का हो। तभी फोन बजता है स्क्रीन पर देखा तो मां का फोन था। मै:- “हेलो! कैसी हो मां ? सब ठीक तो है ना ?
मां:- “हां.. हां सब ठीक है। तुम कैसी हो? आज अपने सेंटर नहीं गई क्या?”
मैं:- “बस कुछ देर हुआ मैं घर पहुंची हूं।”
मां:- “अच्छा सुन मैं तेरे पास आ रही हूं। मन नहीं लग रहा था। तेरी चिंता हो रही थी। कुछ दिन के लिए आ जाती हूं तेरे पास।”
मै:- “ऐसे तो सब ठीक है मां यहां पर लेकिन तुम आना चाहती हो तो आ जाओ। तुम्हें भी चेंज मिल जाएगा।”
मां:- “ठीक है, दो दिन बाद निकलूंगी। कुछ लाना है तो बोल देना।”
मैं:- “नहीं किसी चीज की जरूरत नहीं है। ठीक है। बाय मां।”
मां को सोनू से मिलवाने का समय आ रहा था लेकिन सब कुछ सोनू के जवाब पर निर्भर था। मुझे कुछ भूख सी महसूस हुई और मैं किचन में मैगी बनाने लगी।
चार दिन बाद सोनू वापस आया। उसका मुंह उतरा हुआ था। उसे देखकर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।
मैं:- “क्या हुआ ? ऐसे क्यों हो? मां पिताजी ने क्या कहा?” सोनू:- “कुछ नहीं जिसका डर था वही हुआ उन्होंने मना कर दिया, बोले कि अपने समाज में ही शादी करेंगे। बहुत समझाया लेकिन नहीं मानते वो।”
मैं कुछ बोल नहीं पायी। आज के वक्त में जब समय इतना बदल गया है, स्त्री पुरुष के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है तब ऐसी मानसिकता पर गुस्सा आने लगता है लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकती थी। मैं रोआंसी हो गई।
सोनू:- “कोई बात नहीं हम कोर्ट मैरिज कर लेंगे।
मैं:- ” नहीं घरवालों को नाराज करके शादी नहीं करनी है हमें। मैं उन्हें मनाने की कोशिश करूंगी।”
सोनू :- “कोई फायदा नहीं। मैं बहुत कोशिश कर चुका हूं।” मैं:- “फिर भी मैं एक बार और कोशिश करूंगी। मम्मी आने वाली है सोच रही हूं तुमको मिलाऊं या नहीं।”
सोनू:- “क्यों मम्मी से मिलने में क्या हर्ज है?”
मैं:- “हर्ज तो कुछ नहीं लेकिन कहूंगी क्या तुम्हारे बारे में। तुम्हारे मम्मी पापा से मिलने के बाद ही मैं तुम्हारे बारे में मम्मी से बात करूंगी।”
सोनू:- “जैसा ठीक लगे तुम्हें।”
मैं:- “मम्मी को जाने दो फिर तुम्हारे मम्मी पापा से बात करती।
अगले दिन सुबह-सुबह बस स्टाप पर मां को लेने पहुंची। उन्हें लेकर घर आई और ऑनलाइन क्लासेस लेने के लिए लैपटॉप के सामने बैठ गई। घंटे भर बाद देखा कि मां चाय के लिए मेरी राह देख रही है।
मां:- “चलो जल्दी! चाय तैयार है। हर काम धीरे करती हो। पता नहीं ससुराल में कैसे सब संभालोगी?  मुझे बाजार भी जाना है। किचन में सब अस्त-व्यस्त पड़ा है। कुछ जरूरत का सामान भी लाना है।”
मैं:- “आ रही हूं मां! आते ही शुरू हो गई। बाजार कल चलेंगे। कल मैं जल्दी फ्री हो जाऊंगी तब बाजार चलेंगे। आज बहुत बिजी शेड्यूल है।”
मां:- “ठीक है तेरी पसंद के आलू के पराठे बनाने वाली हूं। खाएगी ना?”
मैं:- “हां तुम्हारे हाथ का आलू का पराठा क्यों नहीं खाऊंगी मैं। रोज-रोज थोड़े ही मिलता है मुझे”। और मां की गोद में सर रख दिया
मां:- “क्या बात है कुछ परेशान लग रही हो? सब ठीक तो है?
मैं:- “नहीं बस ऐसे ही। सेंटर की परेशानी रहती है एग्जाम करीब आ रहे हैं तो काम का प्रेशर भी ज्यादा हो गया है।”
चार दिन बाद मां चली गई तब मैंने सोनू से उनके मम्मी पापा से बात करने के लिए कहा।
शाम में जब वह घर आया तो साथ में खाने का पार्सल भी लेता आया।
मैं:- “यह क्यों ले आए मैं घर में ही कुछ बना लेती थी।
सोनू:- “आ रहा था तो गरमा गरम समोसे दिखे तो ले लिया।”
मैं:- “फोन लगाओ अपनी मम्मी को।”
सोनू:-  “हूं” और नंबर मिलाने लगता है। कुछ देर बाद उसकी मां फोन उठाती है।
सोनू की मां:- “हेलो बेटा! बोलो।”
मैं:- “आंटी नमस्ते! मैं रितिका सोनू की दोस्त बोल रही हूं।” आंटी:- “बोलो बेटा।”
मैं:- “आंटी आपसे कुछ बात करनी थी। सोनू ने मेरे और अपने बारे में आपको बताया होगा।
आंटी:- “हां! बताया था और उसने तुम्हें हमारा जवाब भी बता दिया होगा।”
मैं:- “जी क्या सिर्फ एक उसी वजह से आप मुझे और सोनू को दूर कर देना चाहती हैं?  मैं पूरी कोशिश करूंगी कि मैं आपके परिवार में पूरी तरह ढल जाऊं। मुझे एक मौका तो मिलना ही चाहिए। हम दोनों काफी वक्त से साथ में हैं और एक दूसरे को खोना नहीं चाहते। आप एक बार सोचिए तो सही।”
आंटी:- “नहीं बेटा! मेरा एक ही बेटा है और उसकी शादी मैं अपने समाज में ही करना चाहती हूं। कल को कोई ऊंच-नीच हो गई तो मैं समाज में कहाँ मुंह दिखाऊंगी। बेहतर होगा कि तुम सोनू को छोड़ दो।”
मैं कुछ कह नहीं पायी। आंखों में से आंसू टपकने लगे।
सोनू:- “मैंने कहा था कि वो नहीं मानेंगी पर तुम भी जिद लेकर बैठी थी। हो गई तसल्ली।”
मैं:- “अच्छा एक बात बताओ। क्या शादी के बाद मुझे तुम्हारे घर में प्रेम और सम्मान मिल पायेगा? क्या हम दोनों शांति से जीवन बिता पायेंगे? मेरे और तुम्हारी मां के बीच तुम अपना व्यवहार कितना न्यायसंगत कर पाओगे? और मैं मेरी मां का ध्यान सही तरीके से रख पाऊंगी क्या ऐसी स्थिति में?”
मैंने सोनू से कहा कि, “तुम जाओ।”
सोनू कुछ बोलने जा रहा था कि मैंने उसके होंठों पर हाथ रख दिया और कहा कि जाओ बाद में मिलना।”
बाद में सोनू ने मुझसे मिलने की बहुत कोशिश की लेकिन मैं उससे नहीं मिली। कुछ समय बाद मैं मां के पास अपने शहर इंदौर वापस आ गई।
मैं कह नहीं पा रही थी यह रूढ़ियाँ अक्सर कितनी तकलीफ दे जाती है जीवन में। क्या मैं किसी और को आसानी से अपना पाऊंगी? क्या सोनू किसी दूसरी के साथ खुश रह पाएगा? समाज में इतनी जड़ता क्यों है आखिर? आखिर चाहतें भी तो कुछ मायने रखती हैं। सोनू का नंबर मैंने ब्लॉक कर रखा था और अकेलेपन के सफर को अकेली ही तय करना शुरू कर दिया था। ;~ प्रियंका वर्मा माहेश्वरी

Read More »

मिशन शक्ति के अंतर्गत “उत्तम आहार उत्तम विचार” कार्यक्रम संपन्न

कानपुर 24 सितंबर, क्राइस्ट चर्च कॉलेज कानपुर के मिशन शक्ति कार्यक्रम के अंतर्गत पोषण संबंधी वेबिनर का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत महाविद्यालय की उप प्राचार्या डॉ सबीना बोदरा द्वारा प्रार्थना से की गई। डॉ विभा दीक्षित ने कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ बी एन आचार्य जी का परिचय देकर उनका स्वागत किया।
इस वेबिनार में मुख्य वक्ता डॉ बी एन आचार्य (निर्देशक : आरोग्य भारती कानपुर महानगर ) ने सभी को “उत्तम आहार उत्तम विचार” की मानसिकता के प्रति जागरूक कर पोष्टिक आहार से जीवन को सहज बनाने को प्रेरित किया एवं स्वास्थ्य संबंधित बातों पर जोर देते हुए संतुलित पोषण को निरोगी जीवन का आधार बताया ।
मिशन शक्ति की प्रभारी डॉ मीतकमल ने बताया कि पोषड़ का ये कार्यक्रम बहुत महत्वपूर्ण हैं और साथ ही साथ उन्होंने धन्यवाद प्रस्ताव द्वारा कार्यक्रम की समाप्ति की। कार्यक्रम का संचालन खुशी मल्होत्रा द्वारा किया गया। बदलाव के अभिकर्ता के स्वयं सेवक के रूप में शफक नाज़ , वेदांत मिश्रा ,नमन अग्रवाल ,अनिरुद्ध द्विवेदी, आदि ने प्रशंसनीय कार्य किया । यह पूरा कार्यक्रम प्राचार्य डॉ जोसेफ डेनियल के निर्देश नेतृत्व में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में १०० से भी अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।

Read More »

शक्ति कानपुर प्रांत, राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई एवं क्राइस्टचर्च कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान अल्जाइमर नामक बीमारी के बारे में महिलाओं को एनएसएस यूनिट द्वारा इसके बचाव व रोकथाम की जानकारी दी गई

कानपुर 21 सितंबर, शक्ति कानपुर प्रांत एवं राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई एवं क्राइस्टचर्च कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान द्वारा जूम प्लेटफार्म पर ऑनलाइन अवेयरनेस प्रोग्राम आयोजित किया जा रहा है जिसमें अल्जाइमर नामक बीमारी के बारे में महिलाओं को एनएसएस यूनिट द्वारा इसके बचाव व रोकथाम और कैसे यह बीमारी होती है इसके बारे में जानकारी दी जा रही है इस प्रोग्राम में क्राइस्टचर्च कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सुनीता वर्मा एनएसएस प्रोग्राम आफिसर, डॉ के.एन. मिश्रा, डॉ. उमेश पालीवाल, डॉ. राज लक्ष्मी त्रिपाठी, डॉ जोसेफ डेनियल डॉ सबीना बोदरा एवं शक्ति कानपुर से मीडिया प्रभारी संध्या सिंह एवं मिथिलेश अवस्थी अर्चना सपना निषाद संजू शर्मा आज सभी लोग शामिल हुए

Read More »