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लेख/विचार

तनाव पूर्ण और चुनोतियों भरे इस वक़्त में आपस में एक दूसरे का हौसला बढ़ाएं

अतुल दीक्षित ग्रुप एडिटर भारतीय स्वरुप समाचार पत्र

समय बहुत ही तनावपूर्ण चल रहा है। किसी को भी पारिवारिक या व्यवसायिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है तो कृपया एक दूसरे से जरूर साझा करें और बात करें। ग्रुप में मैसेज के जरिए ही नहीं बल्कि फोन पर भी एक दूसरे से बात करें। यह साल नफा नुकसान देखने का नहीं है बल्कि अपने मनोबल को बनाए रखने का और अपनी सेहत को बचाए रखने का है। नौकरी में या अपने काम धंधे में बेशक नुकसान हो रहा हो लेकिन यदि आपने अपनी सेहत बचा ली तो यह इस समय का सबसे बड़ा मुनाफा है। एक दूसरे से बात करते रहिए और आपस में सब का हौसला बढ़ाते रहिए। अभी हम सब की जरूरत और जिम्मेदारी है कि एक दूसरे के साथ सकारात्मक चीजों को साझा करें।

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स्कूली छात्रों के लिए इसरो कर रहा है प्रतियोगिताओं का आयोजन

कोविड-19 के प्रकोप के चलते शुरू हुए लॉकडाउन के कारण स्कूलों की पढ़ाई और परीक्षाओं पर असर पड़ने के साथ-साथ छात्रों को अब गर्मियों की छुट्टियां भी घर में बंद रहकर बितानी पड़ रही हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा शुरू की जा रही ऑनलाइन प्रतियोगिताएं स्कूली छात्रों की इस एकरसता को तोड़ने का अवसर लेकर आयी हैं। इसरो साइबरस्पेस प्रतियोगिता (आईसीसी)-2020 नामक इस पहल के अंतर्गत स्कूली छात्रों के लिए चार वर्गों में अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर केंद्रित प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है।

इन प्रतियोगिताओं के पहले वर्ग में पहली से तीसरी कक्षा के छात्रों के लिए चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। दूसरे वर्ग में चौथी से आठवीं कक्षा के छात्र विज्ञान शिल्प या मॉडल्स में अपने हाथ आजमा सकते हैं। इसी तरह, नौवीं और दसवीं के छात्रों को निबंध प्रतियोगिता में शामिल होने का अवसर मिल सकता है। जबकि, ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के छात्र निबंध लेखन के साथ-साथ प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में भी हिस्सा ले सकते हैं। इन प्रतियोगिताओं में शामिल होने के लिए 24 जून 2020 से पहले इसरो की वेबसाइट https://www.isro.gov.in/icc-2020 पर जाकर ऑनलाइन पंजीकरण करना होगा।

यह प्रतियोगिता भारत में पढ़ रहे स्कूली छात्रों के लिए है। चारों वर्गों में शामिल सभी प्रतियोगिताएं अलग-अलग रूप से आयोजित की जाएंगी। किसी वर्ग विशेष की श्रेणी के लिए छात्रों की संबद्धता शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के दौरान उनके नामांकन पर आधारित होगी। जिन छात्रों के शैक्षणिक वर्ष 2019-20 के परिणाम अभी नहीं आए हैं, उन्हें भी यह मानकर प्रतियोगिता में शामिल किया जा सकता है कि उन्होंने परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है और शैक्षणिक वर्ष 2020-21 में दाखिला ले लिया है। हालाँकि, यह शर्त केवल ऑनलाइन माध्यम से आईसीसी-2020 प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए है और इसे किसी अन्य उद्देश्य के लिए समर्थन के रूप में नहीं लिया जा सकता है।

सफल पंजीकरण के लिए एक विशिष्ट पंजीकरण संख्या प्रतियोगियों को प्राप्त होगी। चित्रकला, मॉडल मेकिंग व विज्ञान शिल्प और निबंध प्रतियोगिता में शामिल प्रतिभागियों को पेपर पर अपनी रचनात्मकता को उकेरना है और फिर उसकी फोटो लेकर या स्कैन करके इसरो की वेबसाइट पर अपलोड करना है। प्रतियोगिता का विषय पंजीकृत ईमेल पर भेजा जाएगा और इसरो की वेबसाइट पर भी प्रदर्शित किया जाएगा। स्कैन की हुई फोटो जेपीईजी या फिर पीडीएफ फॉर्मेट में भेजनी होगी। अपलोड की जाने वाली फाइल का नाम प्रतिभागी की पंजीकरण संख्या के नाम पर होगा।  

चित्रकला प्रतियोगिता में शामिल प्रतिभागियों को ए-3 आकार के पेपर का प्रयोग करना होगा और ड्राइंग के लिए उन्हें वाटर कलर, वैक्स या पेंसिल रंगों का उपयोग करना है। मॉडल-मेकिंग या विज्ञान शिल्प प्रतियोगिता में कार्डबोर्ड, कागज, कपड़े, चिपकाने वाले टेप, रंग और गोंद का उपयोग करके मॉडल बनाना होगा। मॉडल बनाने के लिए किसी अन्य सामग्री के उपयोग की अनुमति नहीं है। इस तरह बनाए गए मॉडल को भी स्कैन करके या फोटो खींचकर इसरो की वेबसाइट पर अपलोड करना होगा।

निबंध लेखन प्रतियोगिता में शामिल प्रतिभागियों को पंजीकरण के दौरान चयनित भाषा में एक हजार शब्दों में अपने हाथ से निबंध लिखकर वेबसाइट पर अपलोड करना है। निबंध लिखने के लिए ए-4 आकार के पेपर का उपयोग कर सकते हैं। निबंध लिखने के लिए सिर्फ नीली या काली स्याही का उपयोग करना है। टाइप किए हुए निबंध स्वीकार नहीं किए जाएंगे। इंटरनेट से सामग्री कॉपी की हुई पायी गई तो प्रतियोगी का पंजीकरण निरस्त किया जा सकता है। प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता के बारे में इसरो के पोर्टल पर तौर-तरीकों का विस्तार से उल्लेख किया जाएगा।

प्रतियोगिता में शामिल शीर्ष 500 प्रतिभागियों के नाम की घोषणा इसरो की वेबसाइट पर की जाएगी और उन्हें मेरिट प्रमाण-पत्र ईमेल या फिर पोस्ट के माध्यम से भेजे जाएंगे। अन्य सभी प्रतिभागियों को ईमेल के माध्यम से भागीदारी प्रमाण पत्र दिया जाएगा। 

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कक्षा 1-12 के लिए एनसीईआरटी के सभी टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाली ई-शिक्षण सामग्री के लिए समझौता ज्ञापन पर डिजिटल हस्ताक्षर किए गए

ई-शिक्षा को और ज्यादा रचनात्मक बनाने के लिए, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री, श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की उपस्थिति में आज नई दिल्ली में एनसीईआरटी और रोटरी इंडिया ने एनसीईआरटी के सभी टीवी चैनलों पर कक्षा 1-12 के लिए प्रसारित होने वाली ई-शिक्षण सामग्री के लिए समझौता ज्ञापन पर डिजिटल हस्ताक्षर किए। शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की सचिव, श्रीमती अनिता करवाल ने भी इस डिजिटल कार्यक्रम में हिस्सा लिया।

इस कार्यक्रम के दौरान, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि उन्हें एनसीईआरटी और रोटरी क्लब के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर के संदर्भ में घोषणा करते हुए खुशी हो रही है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि कोविड-19 महामारी के दौरान एमएचआरडी के मार्गदर्शन और समर्थन से, रोटरी इंडिया ह्यूमेनिटी फाउंडेशन और एनसीईआरटी के सहयोग में यह सुनिश्चित हो सकेगा कि एनसीईआरटी द्वारा अनुमोदित सामग्री ई-शिक्षा के माध्यम से पूरे देश के बच्चों तक पहुंच सके।

श्री निशंक ने कहा कि यह जानकर बड़ी प्रसन्नता महसूस हो रही है कि विद्या दान 2.0 के अंतर्गत रोटरी इंटरनेशनल कक्षा 1 से 12 के सभी विषयों के लिए एनसीईआरटी को हिंदी भाषा में ई-कंटेंट उपलब्ध कराएगा। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह सामग्री उच्च श्रेणी की है और उच्च गुणवत्ता वाली है; इससे हमारे सभी बच्चों को बहुत फायदा पहुंचेगा। श्री निशंक ने कहा कि इसके साथ-साथ रोटरी इंटरनेशनल द्वारा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी और साथ ही वयस्क साक्षरता मिशन में वह अपना संपूर्ण योगदान देगा। उन्होंने कहा कि वे शिक्षक प्रशिक्षण (पेशेवर विकास सहित) सामग्री भी उपलब्ध कराएंगे।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मार्च 2020 में जब नोवेल कोरोना वायरस, कोविड-19 को महामारी घोषित किया गया, तब से शिक्षार्थी, शिक्षक, अभिभावक और पूरा शिक्षण समुदाय गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। श्री निशंक ने कहा कि इस परिदृश्य में, एमएचआरडी प्रौद्योगिकी और नवाचार के साथ भारतीय लोकाचार में निहित सर्वश्रेष्ठ शिक्षण प्रणाली को मजबूत स्तंभों के रूप में विकसित करने की दिशा में अथक परिश्रम कर रहा है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एमएचआरडी विभिन्न योजनाओं और पहलों के माध्यम से शिक्षा में प्रौद्योगिकी के एकीकरण की दिशा में काम कर रहा है जैसे कि ऑपरेशन डिजिटल बोर्ड, दीक्षा, ई-पाठशाला, स्वयं और स्वयंप्रभा आदि। श्री निशंक ने कहा कि शिक्षा में नवाचार और डिजिटलीकरण को मजबूती प्रदान करने के लिए, मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा सभी के लिए ई-लर्निंग, सटीक और अद्तन पठन सामग्री बनाने की दिशा में ध्यान केंद्रित किया जा रहा है जिससे छात्र घर बैठे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का उपयोग कर सकें। मंत्री ने कहा कि ई-लर्निंग के माध्यम से, हम प्रधानमंत्री के ‘एक राष्ट्र एक डिजिटल मंच’ के विजन को पूरा करना चाहते हैं।

श्री निशंक ने कहा कि हमने रेडियो और टीवी के माध्यम से अपने छात्रों तक पहुंचने का संकल्प लिया है जहां पर इंटरनेट या मोबाइल कनेक्टिविटी उपलब्ध नहीं है और यह समझौता ज्ञापन उस दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस समझौता ज्ञापन के माध्यम से छात्रों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अधिक प्रभावी ढंग से पहुंचेगी।

शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की सचिव, श्रीमती अनिता करवाल ने रोटरी इंडिया ह्यूमेनिटी फाउंडेशन को विभिन्न भाषाओं में कक्षा 1 से लेकर 12वीं के विद्यार्थियों को उच्च गुणवत्ता वाली ई-शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराने के प्रयासों के लिए धन्यवाद दिया।

एनसीईआरटी और रोटरी इंडिया ह्यूमेनिटी फाउंडेशन के बीच समझौता ज्ञापन पर एनसीईआरटी के निदेशक, प्रो. हृषिकेश सेनापति और एनसीईआरटी के संयुक्त निदेशक, प्रो. अमरेन्द्र बेहरा और रोटरी इंडिया की ओर से, निदेशक, रोटरी इंडिया वाटर मिशन, श्री रंजन ढींगरा ने हस्ताक्षर किए।

रोटरी इंटरनेशनल के निदेशक 2019-21, श्री कमल संघवी ने इस टाई-अप के बारे में विस्तृत जानकारी दी, जिसमें शामिल हैं:

  • एनसीईआरटी टीवी टाई-अप: एनसीईआरटी के बारह राष्ट्रीय टेलीविजन चैनलों के माध्यम से कक्षा 1-12 के लिए पाठ्यक्रम मॉड्यूल का प्रसारण किया जाएगा, जो जुलाई 2020 से उपलब्ध होगा (एनसीईआरटी द्वारा उनके पाठ्यक्रम के अनुसार पाठ्य सामाग्रियों को परखा जाएगा)।
  • दीक्षा ऐप टाई-अप: एक ही समय में, भारत सरकार के राष्ट्रीय मोबाइल ऐप, दीक्षा के माध्यम से ई-लर्निंग मॉड्यूल भी उपलब्ध होंगे।

वर्तमान समय में यह सामग्री हिंदी और पंजाबी में उपलब्ध है और इसे लगभग 10 करोड़ छात्रों के लिए 12 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के स्कूलों में तुरंत लागू किया जाएगा। सामग्री के लिए बौद्धिक अधिकार रोटरी के पास होंगे और एनसीईआरटी को उपलब्ध कराए जाएंगे, जिससे अगले कुछ महीनों में उपयुक्त सामग्री का एनसीईआरटी और संबंधित राज्यों के एससीईआरटी द्वारा सभी क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया जा सके।

रोटरी इंटरनेशनल के अध्यक्ष 2021-22, श्री शेखर मेहता ने कहा, “रोटरी ने हमारे साझीदारों के माध्यम से कक्षा 1-12 के लिए ई-लर्निंग सामग्री को तैयार किया है और; हम इसे देश में मुफ्त प्रदान करने की योजना बना रहे हैं, स्कूल के पाठ्यक्रम से संबंधित घर आधारित एक शिक्षण समाधान के रूप में। रोटरी को ई-लर्निंग में व्यापक अनुभव प्राप्त है, उसने पिछले 5 वर्षों में पूरे भारत के स्कूलों में 30,000 से ज्यादा सरकारी ई-लर्निंग सॉफ़्टवेयर/ हार्डवेयर को स्थापित किया है।“

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नए अध्ययन से जीभ के कैंसर के उपचार की नयी तकनीक विकसित करने में मिल सकती है मदद

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-मद्रास, कैंसर संस्थान, चेन्नई के श्री बालाजी डेंटल कॉलेज अस्पताल तथा बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक खास किस्म के माइक्रोआरएनए  की पहचान की है जो जीभ का कैंसर होने पर अत्याधिक सक्रिय रूप से दिखाई देता है। वैज्ञानिकों ने इस माइक्रोआरएनए को एमआईआर -155 का नाम दिया है।   यह एक किस्म के छोटे रिबो न्यूक्लिक एसिड हैं।  ये एसिड ऐसे नॉन कोडिंग आरएनए  हैं जो कैंसर को पनपने में मदद करने के साथ ही विभिन्न जैविक और नैदानिक  प्रक्रियाओं के नियंत्रित करने में शामिल रहते हैं। ऐसे में जीभ के कैंसर के इलाज के लिए इन आरएनएन में बदलाव कर उपचार की नयी तकनीक विकसित करने की संभावनाओं का पता लगाया जा सकता है।

आईआईटी मद्रास के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर करुणाकरण ने इस शोध के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, “एमआईआरएनए को पहले से ही जीभ के कैंसर में एक ओंकोजीन के रूप में पहचाना जाता है। उन्होंने कहा कि कैंसर से जुड़े एमआईआरएनए को ओंकोमीर्स या ओंकोमीआर कहा जाता है।  ये कैंसर फैलाने  वाली कोशिकाओं का दमन कर कैंसर को फैलने से रोकने में मदद करते हैं। कुछ ओंकोमीआर कैंसर को पनपने से भी रोकते हैं ऐसे में यह जरूरी है कि  कैंसर कोशिकाओं के दमन और प्रसार दोंनो से जुड़े ओंकोमीआर की पहचान की जाए।’’

एमआईआरएनए कुछ प्रोटीन के कार्यों को बाधित या सक्रिय कर कैंसर के फैलाव को प्रभावित करता है। उदाहरण के तैार पर एक प्रकार का प्रोटीन जिसे प्रोग्राम्ड सेल डेथ 4 (पीडीसीडी4) कहा जाता है, कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने और फैलने से रोकने में मदद करता है। इस प्रोटीन में किसी किस्म की रुकावट मुंह, फेफड़े, स्तन, यकृत, मस्तिष्क और पेट के कैंसर के फैलने का मुख्य कारण बनती है।

शोधकर्ताओं की टीम ने यह भी दिखाने की कोशिश की है कि किस तरह से एमआईआर-155 को निष्क्रिय करने या उसका दमन करने से कैंसर कोशिकाएं मृत हो जाती हैं और कोशिकाओं के पनपनें का चक्र खत्म हो जाता है। अनुसंधानकर्ता शब्बीर जर्गर ने कहा कि लंबे समय से यह माना जा रहा है कि एमआईआर -155 पीडीसीडी4 को डाउनरेगुलेट करता है लेकिन अभी तक इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है।

 प्रो. करुणाकरण ने कहा “हमारे अध्ययन से पता चला है कि एमआईआर-155  में आणविक स्तर पर बदलाव के माध्यम से पीडीसीडी4 को बहाल किए जाने से  कैंसर और विशेषकर जीभ के कैंसर के उपचार के लिए नयी तकनीक विकसित की जा सकती है। 

शोध के निष्कर्ष मॉलिक्यूलर एंड सेल्युलर बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। शोध टीम में शब्बीर जरगर, विवेक तोमर, विद्यारानी श्यामसुंदर, रामशंकर विजयलक्ष्मी, कुमारवेल सोमसुंदरम और प्रोफेसर  करुणाकरण शामिल थे।

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क्राइस्ट चर्च महाविद्यालय,में वेब-संगोष्ठी के दूसरे दिन विद्वानों और वैज्ञानिकों ने रखे विचार

          क्राइस्ट चर्च महाविद्यालय, कानपुर और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 03 से 05 जून, 2020 तक एक अत्यंत उपयोगी वेब-संगोष्ठी आयोजित की जा रही है. क्राइस्ट चर्च महाविद्यालय में इसके संयोजन का दायित्व डॉ. सुनीता वर्मा (एसोसिएट प्रोफ़ेसर, वनस्पति विज्ञान विभाग) और डॉ. श्वेता चंद (एसोसिएट प्रोफ़ेसर, रसायनशास्त्र विभाग) ने संभाला और महाविद्यालय प्रबंध-समिति के सचिव रेवरेंड एस. पी. लाल तथा प्राचार्य डॉ. सैमुअल दयाल ने अपना सहयोग व संरक्षण प्रदान किया. साथ ही वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के चेयरमैन डॉ. अवनीश कुमार एवं कंट्रोलिंग ऑफिसर डॉ. अशोक सल्वटकर का संयुक्त योगदान एवं सहयोग भी इस वेब-संगोष्ठी के आयोजन में है. आज की वेब-संगोष्ठी की मुख्य अतिथि प्रो. राजेन्द्र सिंह विश्वविद्यालय, प्रयागराज की परीक्षा नियंत्रक प्रो. विनीता यादव हैं. कार्यक्रम में तीन मुख्य वक्ताओं ने भागीदारी की – प्रो. आर. सी. दुबे ( डीन, जी.के.वी., हरिद्वार), डॉ. ए. के. वर्मा (राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सैदाबाद) और डॉ. शशिबाला सिंह (असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, भूगोल विभाग, डी. जी. कॉलेज, कानपुर).  

कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में आज आयोजित होने वाली वेब-संगोष्ठी की सार्थकता बहुत बढ़ जाती है. यह वेब-संगोष्ठी तीन-दिवसीय है, जिसके दूसरे दिन आज दिनांक 04.06.20 को वेब-संगोष्ठी का आरम्भ करते हुए इसकी संयोजिका डॉ. सुनीता वर्मा ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का हार्दिक स्वागत किया और मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ताओं का परिचय प्रस्तुत किया. तत्पश्चात कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सैमुअल दयाल द्वारा ईश्वर की आराधना द्वारा सभी विघ्न-बाधाओं के निराकरण और संगोष्ठी के सफल आयोजन की प्रार्थना की गई.

तत्पश्चात वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग के चेयरमैन डॉ. अवनीश कुमार ने आयोग का संक्षिप्त परिचय देते हुए उसके उद्देश्य स्पष्ट किए. स्वतंत्र भारत में प्रयोजनमूलक हिंदी के विकास में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग की बहुत महती भूमिका है. वेब-संगोष्ठी की मुख्य अतिथि प्रो. राजेन्द्र सिंह विश्वविद्यालय, प्रयागराज, की परीक्षा नियंत्रक प्रो. विनीता यादव ने नए बदले हुए वातावरण में कोविड-19 द्वारा परिवर्तित परिवेश का आकलन समाज और भाषा के सन्दर्भ में किया. इस के लिए भाषा और शब्दावली को भी अपने अभिव्यक्ति के साधनों सहित अवसर के अनुकूल उपस्थित होना होगा.   

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रथम मुख्य वक्ता डॉ. आर. सी. दुबे ने इस वैश्विक आपदा के समय का आकलन पारंपरिक ज्ञान के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया. उनके अनुसार भारत में कोविड का सामना करने के लिए हमें अपने पारंपरिक सांस्कृतिक ज्ञान का आश्रय लेना चाहिए. ऐसे समय में शुद्ध दूध, शहद, घी और जल का प्रयोग बहुत उपयोगी है. साथ ही नियमित रूप से अग्निहोत्र अपने घर में करने से हम समस्त वातावरण में व्याप्त सूक्ष्म कृमियों एवं नकारात्मकता को विनष्ट कर सकते हैं और साथ ही मानसिक स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी पुष्ट रख सकते हैं. नियमित रूप से हाथ-पैर-मुँह धोना और धूप का सेवन भी लाभप्रद है. इस संगोष्ठी के द्वितीय मुख्य वक्ता डॉ. ए. के. वर्मा ने कोविड के सन्दर्भ में पर्यावरण की स्थिति पर विचार किया. उन्होंने इस बात पर ध्यान आकृष्ट किया कि पिछले कुछ महीनों के लॉकडाउन की स्थिति में मानव- गतिविधियों के बहुत कम हो जाने से सबसे अधिक लाभ पर्यावरण का हुआ है. पर्यावरण में आये इस सुधार से निश्चय ही वैश्विक स्तर पर मौसम-बदलाव और जैव-विविधता पर व्यापक असर होगा. आज के कार्यक्रम की तीसरी मुख्य वक्ता डॉ. शशिबाला सिंह थीं. उनके अनुसार आज विश्व भर में कोविड 19 महामारी के प्रकोप से समस्त मानव समाज त्रस्त है. इस आपदा ने न केवल हमारे नित्य जीवन के व्यवहारों और कार्यों को परिवर्तित किया है, बल्कि हमारी सोच व भाषा को भी प्रभावित किया है. कोविड के इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उन्होंने ऐसी महामारियों के समय में सामाजिक व्यवहार पर भी प्रकाश डाला.

इस वेब-संगोष्ठी के दूसरे दिन का समापन करते हुए कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. श्वेता चंद ने सभी अतिथियों, वक्ताओं एवं प्रतिभागियों के प्रति हार्दिक धन्यवाद प्रेषित किया. साथ ही कल, दिनांक 05.06.20 को इस वेब-संगोष्ठी के तृतीय व अंतिम दिन प्रतिभाग करने हेतु सबको आमंत्रित किया. 

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क्राइस्ट चर्च महाविद्यालय कानपुर और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के संयुक्त तत्वावधान वेब-संगोष्ठी काआयोजन

क्राइस्ट चर्च महाविद्यालय कानपुर और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 03 से 05 जून, 2020 तक एक अत्यंत उपयोगी वेब-संगोष्ठी आयोजित की जा रही है. क्राइस्ट चर्च महाविद्यालय में इसके संयोजन का दायित्व डॉ. सुनीता वर्मा (एसोसिएट प्रोफ़ेसर, वनस्पति विज्ञान विभाग) और डॉ. श्वेता चंद (एसोसिएट प्रोफ़ेसर, रसायनशास्त्र विभाग) ने संभाला और महाविद्यालय प्रबंध-समिति के सचिव रेवरेंड एस. पी. लाल तथा प्राचार्य डॉ. सैमुअल दयाल ने अपना सहयोग व संरक्षण प्रदान किया. साथ ही वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के चेयरमैन डॉ. अवनीश कुमार एवं कंट्रोलिंग ऑफिसर डॉ. अशोक सल्वटकर का संयुक्त योगदान एवं सहयोग भी इस वेब-संगोष्ठी के आयोजन में है. आज की वेब-संगोष्ठी की मुख्य अतिथि छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता हैं. कार्यक्रम में दो मुख्य वक्ताओं ने भागीदारी की – डॉ. सुबोध कुमार सिंह (निदेशक, जी. एस. मेमोरियल हॉस्पिटल) और प्रो. देवी प्रसाद मिश्र (प्रोफ़ेसर, आई.आई.टी. कानपुर).

कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में आज आयोजित होने वाली वेब-संगोष्ठी की सार्थकता बहुत बढ़ जाती है. यह वेब-संगोष्ठी तीन-दिवसीय है, जिसमें समसामयिक महामारी की परिस्थिति के सन्दर्भ में वैज्ञानिक दृष्टि से हिंदी शब्दावली की आवश्यकताओं और नवीनताओं पर विचार-विमर्श किया गया.

आज पहले दिन, दिनांक 03.06.20 को वेब-संगोष्ठी का आरम्भ करते हुए इसकी संयोजिका डॉ. सुनीता वर्मा ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का हार्दिक स्वागत किया और मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ताओं का परिचय प्रस्तुत किया. तत्पश्चात कॉलेज प्रबंध समिति के सचिव रेवरेंड सैमुअल पाल लाल द्वारा ईश्वर की आराधना द्वारा सभी विघ्न-बाधाओं के निराकरण और संगोष्ठी के सफल आयोजन की प्रार्थना की गई.

इसके बाद डॉ. अशोक सल्वटकर ने संगोष्ठी के विषय की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए हिंदी भाषा के बढ़ते हुए महत्व और निरंतर उत्पन्न होने वाले नवीन संदर्भों पर प्रकाश डाला. ऐसा ही नया बदला हुआ परिवेश कोविड-19 द्वारा बन गया है. इस के लिए भाषा और शब्दावली को भी अपने अभिव्यक्ति के साधनों सहित अवसर के अनुकूल उपस्थित होना होगा. तत्पश्चात वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग के चेयरमैन डॉ. अवनीश कुमार ने आयोग का संक्षिप्त परिचय देते हुए उसके उद्देश्य स्पष्ट किए. स्वतंत्र भारत में प्रयोजनमूलक हिंदी के विकास में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग की बहुत महती भूमिका है. ज्ञान के विभिन्न शास्त्रों के लिए इस आयोग द्वारा अत्यंत सटीक व सार्थक हिंदी शब्दावली का निर्माण किया गया है. इससे ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों में हिंदी भाषा के उतरोत्तर प्रयोग की संभावनाएँ विस्तारित हो गई हैं.

वेब-संगोष्ठी की मुख्य अतिथि छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने समसामयिक परिस्थिति में वैज्ञानिक सन्दर्भ में हिंदी शब्दावली की उपादेयता पर विचार व्यक्त किए. समाज और भाषा का अत्यंत निकट और अन्योन्याश्रित संबंध है. समाज की परिस्थितियों के अनुरूप भाषा के स्वरूप में परिवर्तन आते हैं और दूसरी ओर भाषा भी अपने प्रयोगों से समाज की विचारधारा और व्यवहार को गढ़ती है. आज विश्व भर में कोविड 19 महामारी के प्रकोप से समस्त मानव समाज त्रस्त है. इस आपदा ने न केवल हमारे नित्य जीवन के व्यवहारों और कार्यों को परिवर्तित किया है, बल्कि हमारी भाषा के आयामों को विस्तृत करते हुए नई शब्दावली व नए शब्द-प्रयोगों से संयुक्त भी किया है. समाज पुनः निर्मित हो रहा है. ऐसे में भाषा भी निश्चित रूप से अपने नवीन संदर्भों में पुनः परिभाषित हो रही है.

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए मुख्य वक्ताडॉ. सुबोध कुमार सिंह ने एक चिकित्सक की दृष्टि से इस वैश्विक आपदा के समय का आकलन प्रस्तुत किया. विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में भाषा, और विशेषकर हिंदी भाषा, की उपयोगिता और आवश्यकता का उल्लेख भी उन्होंने किया. कोविड-19 अपने साथ अनेक नूतन शब्द लाया, जो व्यक्ति के दैनंदिन के व्यवहार से जुड़े तो हैं ही साथ ही विज्ञान के क्षेत्र में भी नव्यता लाये हैं. इस संगोष्ठी के द्वितीय मुख्य वक्ता प्रो. देवी प्रसाद मिश्र ने वैज्ञानिक सन्दर्भ में हिंदी भाषा की शाब्दिक शक्ति और प्रभाव पर विचार व्यक्त किए. डॉ. मिश्र के अनुसार सामाजिक परिवर्तनों को अभिव्यक्ति भाषा ही देती है. अभिव्यक्ति के इस प्रमुख साधन द्वारा विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में आज हिंदी भाषा ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अपना ली है. सभी वैज्ञानिक क्षेत्रों में हिंदी की अभिव्यक्तियाँ उपलब्ध होने से आज हिंदी के क्षेत्र-विस्तार के साथ-साथ उसकी सामाजिक व प्रयोजनमूलक भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई है.

इस वेब-संगोष्ठी के प्रथम दिन का समापन करते हुए कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. श्वेता चंद ने सभी अतिथियों, वक्ताओं एवं प्रतिभागियों के प्रति हार्दिक धन्यवाद प्रेषित किया. साथ दिनांक 04.06.20 को इस वेब-संगोष्ठी के द्वितीय दिन प्रतिभाग करने हेतु सबको आमंत्रित किया.

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गठिया की समस्या से हैं परेशान तो इन फूड आइटम्स को कहें न

गठिया की समस्या से हैं परेशान तो इन फूड आइटम्स को कहें नो
गठिया की शिकायत है तो बहुत अधिक मीठे का सेवन नहीं करना चाहिए। जरूरी नहीं है कि आप सिर्फ चीनी की मात्रा ही सीमित करें, बल्कि स्वीट डिश व अन्य तरल पदार्थों में भी शुगर की मात्रा को नियंत्रित करना बेहद आवश्यक है।

बहुत से लोगों को इस बात की जानकारी ही नहीं होती कि उनका खानपान उनके गठिया के दर्द को प्रभावित कर सकता है। गठिया की मुख्य वजह इनफलेमेशन है और अगर आप अपने डाइट में इनफलेमेटरी फूड्स को शामिल करते हैं तो इससे आपकी समस्या काफी हद तक बढ़ जाती है। इसलिए अगर आप जोड़ों के दर्द से परेशान हैं तो आपको अपने आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। आज हम आपको ऐसे ही कुछ फूड्स के बारे में बता रहे हैं, जो आपकी गठिया की समस्या को बढ़ा सकते हैं। इसलिए आपको इनसे दूरी बनाकर रखनी चाहिए−

नमक के बिना भोजन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। लेकिन जिन लोगों को गठिया की शिकायत है, उनके लिए अत्यधिक नमक परेशानी खड़ी कर सकता है। इसके अलावा आप अपने रेग्युलर नमक को काला नमक या पिंक साल्ट से स्विच कर लें।

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मुक्त हो मानव मन

मुक्त हो मानव मन

भाव विश्वास श्रध्दा के बंधन  संदेह भाव मुक्ति दाता 

विश्वास अविश्वास मृत्यु संदेह की  तीव्रता संदेह की निमित्त बनती खोज की 

संदेह प्यास, अभीप्सा संदेह, संदेह अग्नि प्राणो का मंथन 

पीड़ा संदेह की मानो विचार जन्म की प्रसव पीड़ा 

काम क्रोध से कुंठित अपनी ईष्यायें अपने भ्रम

व्देष अपने वैमनस्य अपने मूढताएँ अपनी शत्रुताएँ अपनी 

जडताएँ भी अपनी अंहकार भी अपने भावों का ये मकड़जाल 

मानव मन के घुन और ज्वार मन, देह, विचार भावों के दास

छोड़ो जडता हरो भावों का तम भाव मृगमरीचिका से मुक्त हो मानव मन 

मुक्त हो मानव मन

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कोरोना संकटकाल, प्रवसन और प्रवासी मजदूर एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण

‘‘जिन्दगी क्या किसी मुफलिस की कबा है, जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे जाते है’’ -फैज 

अपनी अस्मिता और पहचान के संकट, बेहतर आर्थिक दशाओं की उम्मीद और आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ करने के सपनों को लेकर जन्म स्थान से दूर किसी अन्य सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक क्षेत्र में सामूहिक रूप से स्थायी-अस्थायी रूप से बसने की स्थिति को सामान्यतया आप्रवास/प्रव्रजन/देशान्तरण कहते हैं। किसी एक भौगोलिक/राष्ट्रीय क्षेत्र से दूसरे भौगोलिक/राष्ट्रीय क्षेत्र में सापेक्षतः स्थाई गमन की प्रक्रिया प्रव्रजन/देशान्तरण के नाम से जानी जाती हैं। इसी से मिलती-जुलती दो अन्य अवधारणायें यथा उत्प्रवास और आव्रजन हैं। किसी व्यक्ति द्वारा अपने देश को छोड़कर दूसरे देश में जाने की प्रक्रिया ‘उत्प्रवास’ (एमिग्रेशन) कहलाती  हैं। इसके विपरीत, देश में आने की प्रक्रिया को ‘आव्रजन’ या आप्रवास (इमिग्रेशन) कहते हैं। इसके अतिरिक्त प्रव्रजन का एक दूसरा रूप भी है जिसे ‘आन्तरिक प्रव्रजन’ कहते हैं। इस प्रकार प्रव्रजन में एक ही देश में एक स्थान से दूसरे स्थान जैसे गाँव से शहर की ओर निष्क्रमण अथवा शहर के मध्य क्षेत्र से उपनगरों की ओर गमन की प्रक्रियायें भी सम्मिलित की जाती हैं। आप्रवास की प्रकृति के अनुसार भी इसके कई रूप है जैसे चयनित या मौसमी, स्थायी या अस्थायी। प्रवसन की प्रक्रिया प्रारम्भ में भले ही कम रही हो लेकिन सभी देशों और सभी समयों में रही हैं।

औद्योगिक क्रान्ति के पूर्व प्रवसन का मुख्य कारण राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक आप्रवास की स्थितियां ही दृष्टिगोचर होती है लेकिन 11वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रान्ति ने समस्त समाज को नयी परिस्थितियों से रूबरू कराया जिसमें आर्थिक आयाम के विभिन्न नये वर्ग का उदय हुआ जिसे माक्र्स ने ‘सर्वहारा’ कहा। औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् उद्योग एवं व्यापार आधारित आप्रवास क्रमशः तीव्र और प्रमुख हो गया।

कुछ बेहतर पाने की आस में या कृषि से बेदखली के पश्चात जीविकोपार्जन के अन्तिम विकल्प के रूप में मिलों, कारखानों में काम करने हेतु बढ़ी संख्या में गाँवों से लोगों ने शहरों की ओर पलायन करना प्रारम्भ किया तो कहीं-कहीं सस्ते श्रम की जुगाड़, आर्थिक शोषण की प्रवृत्ति और अपनी औद्योगिक श्रम की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु साम्राज्यवादी राष्ट्रों ने अपने अधीन रहे राष्ट्रों से बढ़ी संख्या में इस पलायन को स्वीकारोक्ति एवं संरक्षण प्रदान किया।विश्वव्यापीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की प्रक्रिया तथा सूचना संचार क्रान्ति के तालमेल से इसके अन्तर्राष्ट्रीय स्तर विभिन्न सकारात्मक एवं नकारात्मक आयाम एक साथ देखने को मिले। आज वैश्विक त्रासदी कोविड-19 महामारी के प्रभाव में नकारात्मक पहलू ज्यादा सामने आ रहा है क्योंकि बाजारवादी/उपभोगवादी समाज में चाहे बात श्रमिकों के पलायन की हो या प्रतिभाओं के निरन्तर पलायन की हो, प्रत्येक सन्दर्भ में हमें पक्ष एवं विपक्ष में अपने-अपने मत व्यक्त करने वालो के दो स्पष्ट समूह दिख जायेंगे। इन समस्याओं पर तटस्थ होकर एक भारतीय के रूप में विचार करना ही इस लेख का उद्देश्य है। उन तथ्यों पर भी विचार करना होगा जिनके कारण आज कुछ राज्यों में प्रवसन दर अधिक है तो उसके क्या कारण है। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और कुछ समय से गुजरात भी अब इस सूची में शामिल हुआ है जिनकी ैण्क्ण्च्ण् ;ैजंजम क्वउमेजपब च्तवकनबजपवदद्ध अर्थात राज्य के सकल घरेलू उत्पादन में प्रति व्यक्ति सूची में सबसे ऊपर है और वहाँ गरीबी का प्रतिशत कम होने के कारण अन्य राज्यों के प्रवासी आकर्षित होते हैं। उदाहरण के लिये बिहार जो उच्च जनसंख्या वृद्धि दर, अत्यधिक गरीबी और खराब एस.डी.पी. वाला प्रदेश है, वहा के लोग पलायन के प्रति अधिक आकर्षित होते है। इस कारण वहा प्रवसन 1000 व्यक्तियों पर 31 से अधिक है। पश्चिम बंगाल एक और ऐसा राज्य है जहाँ दूसरे राज्यों के प्रवासी जाते है परन्तु कुछ समय से यह दर कम हुई हैं। कुछ नये अध्ययनों में सामने आया है कि महाराष्ट्र पूरे देश से विशेषतः उत्तर प्रदेश एवं बिहार से प्रवासियों को आकर्षित करता है। यू.पी. और बिहार से निकलती प्रवासी धारा प्रायः पूरे भारतवर्ष में फैल चुकी है। अगर हम नीतियों की बात करें तो बिहार अब तक कई बार विभाजन की नीति से प्रभावित हुआ हैं। 1911 में तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेन्सी से उड़ीसा एवं बिहार को पृथक किया गया; 1136 में बिहार को एक पृथक प्रशासकीय प्रान्त के रूप में स्थापित किया गया। स्वतन्त्र भारत में 15 नवम्बर 2000 को खनिज एवं वन सम्पदा से समृद्ध छोटा नागपुर एवं संथाल परगना परिक्षेत्र को झारखण्ड के रूप में बिहार से अलग कर दिया गया। स्वतन्त्रतापूर्व से अब तक बिहार में उत्प्रवास (आउट माइग्रेशन) की प्रक्रिया सतत रूप से चलती रही। भारत के दुर्गम से दुर्गम स्थान पर बिहारी आप्रवासी दिख जाते है लेकिन चर्चा में तब आते है जब किसी प्राकृतिक आपदा या मानवीय संवेदनहीनता के शिकार बनते है या दुर्घटनाओं का शिकार होते है। उत्तर प्रदेश उभरता उत्तम प्रदेश हो या बिहार (घर) से बाहर काम की तलाश जिसमें रोटी हाथ में हो, इस उम्मीद से शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर कठोर एवं अमानवीय कार्य हेतु बाध्य है। कठिन परिस्थितियों में महज जीवनयापन के उद्देश्य से निकल पड़ते हैं। सामाजिक तथा आर्थिक स्तर पर प्रताड़क असुरक्षा का भाव लिये, जीवन को बनाये और बचाने रखने के क्रम में पेन्डुलम की तरह झूलते हुए व्यवस्थित जीवन की लय खो चुके होते है। इतना ही नहीं घर से दूर होकर प्रायः विभिन्न कारणों से ये अपनी पैतृक सम्पत्ति (घर-बार, जानवर, खेत-खलिहान) और सांस्कृतिक पूँजी के रूप में स्थानीय तीज-त्यौहारों से भी दूर हो जाते है, जो इनमें उत्साह और उमंग का संचार करते थे। घर-द्वार छूटते ही सब छूट जाता है और यन्त्रवत कार्यशैली जीवन का हिस्सा बन जाती है। शोषण या अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में रहने से, लगातार 10-12 घंटे काम करने साथ ही अपर्याप्त भोजन जैसी समस्याओं के कारण जल्दी ही रुग्ण, अक्षम और कमजोर हो जाते हैं। इन तमाम परिस्थितियों को फिर चाहे कोरोना संक्रमणकाल से जनित लाॅकडाउन (तालाबन्दी) हो, रोजगार का संकट, घर-वापसी हेतु कोई समुचित साधन न होना, जेब और पेट दोनों खाली इसी को नियति मानकर सबकुछ गवाँ देते हैं। प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों होता हैं? क्यों वे हजारों किमी दूर जाते है? क्यों आज जब हम बैठे है घरों में वे सड़कों पर सपरिवार, ससामान, चिलचिलाती धूप में, कई-कई दिनों तक घर वापसी का सफर तय करते है कि जो देहरी कई वर्षों से छूट गयी उसे अनिश्चितता के दौर में चूम तो सकें? इनके अनेक उत्तर हो सकते है। इन उत्तरों में सर्वाधिक जटिल यदि राजनीतिक बौद्धिकता के उत्तर है तो सर्वाधिक सरल रूप में सामाजिक परिस्थितियों का आंकलन करते हुए समाजशास्त्रीय उत्तर है। अपने पैतृक (मूल) स्थान में उपलब्ध संसाधनों, सेवाओं एवं आय के स्रोतों के प्रति सापेक्ष वंचना अर्थात दूसरे की तुलना में कमी का भाव। अपेक्षाकृत बेहतर संसाधनों, साधनों, सेवाओं एवं आय के नये-नये स्रोतों की प्राप्ति के अवसर उपलब्ध होने पर व्यक्ति अपना मूल स्थान छोड़कर परदेश या अन्य क्षेत्रों में जाता है। यह प्रत्येक कोण से सही हैं।

जब राज्यों में परिस्थितियाँ नागरिकों की जीवन-प्रत्याशा के अनुकूल नहीं रहती तब रोजगार का संकट उन्हें राज्य से पलायन हेतु विवश करता है। उनके पास वर्तमान परिस्थितियों में कोई अन्य उचित एवं सम्मानजनक विकल्प शेष नहीं बचता। वे राज्य जिनको सर्वोच्च बनाने में इन्हीं आप्रवासियों ने अहम भूमिका अदा की अपने सस्ते श्रम से, सहज उपलब्धता से। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में वही राज्य इनसे पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं। मजबूरन घर-वापसी हेतु मीलों चलते, दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे है। एक बात ये भी सच है कि किसी राज्य पर मंडरानेवाला कोई भी काला बादल देर-सबेर अन्यों को भी आच्छादित कर सकता हैं इसलिए आवश्यकता हैं इस सन्दर्भ में तार्किक, सहिष्णु, ईमानदार और वस्तुतः बौद्धिक दृष्टिकोण की। ‘‘श्रमेव जयते।’’

लेखिका डाॅ. नेहा जैन, पं. दीनदयाल उपाध्याय राज.म.स्ना. महाविद्यालय लखनऊ में समाजशास्त्र की विभागाध्यक्ष हैै

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भारत का अनुसंधान और विकास तथा वैज्ञानिक प्रकाशनों पर व्यय बढ़ा

अनुसंधान और विकास में भारत का सकल व्यय 2008 से 2018 के बीच बढ़कर तीन गुना हो गया है जो मुख्य रूप से सरकार द्वारा संचालित है और वैज्ञानिक प्रकाशनों ने देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष स्थानों में ला दिया है। यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत आने वाले राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रबंधन सूचना (एनएसटीएमआईएस) द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी सर्वेक्षण 2018 पर आधारित अनुसंधान और विकास सांख्यिकी तथा संकेतक 2019-20 के अनुसार है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा, “राष्ट्र के लिए अनुसंधान और विकास संकेतकों पर रिपोर्ट उच्च शिक्षा, अनुसंधान और विकास गतिविधियों और  समर्थन, बौद्धिक संपदा और औद्योगिक प्रतिस्पर्धा में प्रमाण-आधारित नीति निर्धारण और नियोजन के लिए असाधारण रूप से महत्वपूर्ण दस्तावेज है। जबकि अनुसंधान और विकास के बुनियादी संकेतकों में पर्याप्त प्रगति देखना खुशी की बात है, जिसके तहत वैज्ञानिक प्रकाशनों में वैश्विक स्तर पर नेतृत्व शामिल है। कुछ ऐसे भी और क्षेत्र हैं जिन्हें मजबूती प्रदान करने की आवश्यकता है।”

एनएसएफ डेटाबेस (आधारभूत आंकड़े) के अनुसार, रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रकाशन में वृद्धि के साथ, देश विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर पहुंच गया है तथा साथ ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी के पी.एचडी. में भी तीसरे नंबर पर आ गया है। 2000 के बाद प्रति मिलियन आबादी पर शोधकर्ताओं की संख्या दोगुनी हो गई है।

यह रिपोर्ट तालिका और ग्राफ़ के माध्यम से विज्ञान और प्रौद्योगिकी संकेतकों के विभिन्न इनपुट-आउटपुट के आधार पर देश के अनुसंधान और विकास परिदृश्य को दिखाता है। ये सरकारी और निजी क्षेत्र द्वारा राष्ट्रीय अनुसंधान और विकास में निवेश, अनुसंधान और विकास के निवेशों से संबंधित है; अर्थव्यवस्था के साथ अनुसंधान और विकास का संबंध (जीडीपी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नामांकन, अनुसंधान और विकास में लगा मानव श्रम, विज्ञान और प्रौद्योगिकी कर्मियों की संख्या, कागजात प्रकाशित, पेटेंट और उनकी अंतरराष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी तुलनाओं से जुड़ा हुआ है।

इस सर्वेक्षण में देशभर में फैले केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, उच्च शिक्षा, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग और निजी क्षेत्र के उद्योग से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों के 6800 से अधिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थाओं को शामिल किया गया और 90 प्रतिशत से अधिक प्रतिक्रिया दर प्राप्त कर लिया गया था।

रिपोर्ट के कुछ मुख्य निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:

अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) में भारत का सकल व्यय वर्ष 2008 से 2018 के दौरान बढ़कर तीन गुना हो गया है

  • देश में अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) (जीईआरडी) पर सकल व्यय पिछले कुछ वर्षों से  लगातार बढ़ रहा है और यह वित्तीय वर्ष 2007-08 के 39,437.77 करोड़ रूपए से करीब तीन गुना बढ़कर वित्तीय वर्ष 2017-18 में 1,13,825.03 करोड़ रूपए हो गया है।
  • भारत का प्रति व्यक्ति अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) व्यय वित्तीय वर्ष 2017-18 में बढ़कर 47.2 डॉलर हो गया है जबकि यह वित्तीय वर्ष 2007-08 में 29.2 डॉलर पीपीपी ही था।
  • वित्तीय वर्ष 2017-18 में भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.7 प्रतिशत ही अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) पर व्यय किया, जबकि अन्य विकासशील ब्रिक्स देशों में शामिल ब्राजील ने 1.3 प्रतिशत, रूसी संघ ने 1.1 प्रतिशत, चीन ने 2.1 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका ने 0.8 प्रतिशत किया।

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थाओं द्वारा बाहरी अनुसंधान और विकास (आर एंड डी)का समर्थन काफी बढ़ गया है

  • वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान डीएसटी और डीबीटी जैसे दो प्रमुख विभागों ने देश में कुल बाहरी अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) के समर्थन में क्रमश: 63 प्रतिशत और 14 प्रतिशत का योगदान दिया।
  • सरकार द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लिए गए कई पहल के कारण बाहरी अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) परियोजनाओं में महिलाओं की भागीदारी वित्तीय वर्ष 2000-01 के 13 प्रतिशत से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2016-17 में 24 प्रतिशत हो गया।
  • 1 अप्रैल 2018 तक देश में फैले अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) प्रतिष्ठानों में लगभग 5.52 लाख कर्मचारी कार्यरत थे।

वर्ष 2000 से प्रति मिलियन आबादी में शोधकर्ताओं की संख्या बढ़कर दोगुनी हो गई है

  • भारत में प्रति मिलियन आबादी पर शोधकर्ताओं की संख्या बढ़कर वर्ष 2017 में 255 हो गया जबकि यही वर्ष 2015 में 218 और 2000 में 110 था।
  • वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान प्रति शोधकर्ता भारत का अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) व्यय 185 (‘000 पीपीपी डॉलर) $) था और यह रूसी संघ, इज़राइल, हंगरी, स्पेन और यूके (ब्रिटेन) से कहीं ज्यादा था।
  • भारत विज्ञान और अभियांत्रिकी (एस एंड ई) में पीएचडी प्राप्त करने वाले देशों में अमेरिका (2016 में 39,710) और चीन (2015 में 34,440) के बाद तीसरे स्थान पर आ गया है।

एनएसएफ डेटाबेस के अनुसार भारत वैज्ञानिक प्रकाशन वाले देशों की सूची में तीसरे स्थान पर आ गया है

  • वर्ष 2018 के दौरान, भारत को वैज्ञानिक प्रकाशन के क्षेत्र में एनएसएफ, एससीओपीयूस और एससीआई डेटाबेस के अनुसार क्रमश: तीसरा, पांचवें और नौवें स्थान पर रखा गया था।
  • वर्ष 2011-2016 के दौरान, एससीओपीयूस और एससीआई डेटाबेस के अनुसार भारत में वैज्ञानिक प्रकाशन की वृद्धि दर क्रमशः 8.4 प्रतिशत और 6.4 प्रतिशत थी, जबकि विश्व का औसत क्रमशः 1.9 प्रतिशत और 3.7 प्रतिशत था।
  • वैश्विक शोध प्रकाशन आउटपुट में भारत की हिस्सेदारी प्रकाशन डेटाबेस में भी दिखाई हे रही है।

विश्व में रेजिडेंट पेटेंट फाइलिंग गतिविधि के मामले में भारत 9 वें स्थान पर है

  • वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान भारत में कुल 47,854 पेटेंट दर्ज किए गए थे। जिसमें से, 15,550 (32 प्रतिशत) पेटेंट भारतीय द्वारा दायर किए गए थे।
  • भारत में दायर किए गए पेटेंट आवेदनों में मैकेनिकल (यांत्रिकी), केमिकल (रसायनिक), कंप्यूटर / इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन (संचार) जैसे विषयों का वर्चस्व रहा।
  • डब्ल्यूआईपीओ के अनुसार, भारत का पेटेंट कार्यालय विश्व के शीर्ष 10 पेटेंट दाखिल करने वाले कार्यालयों में 7 वें स्थान पर है

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