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मैडम सर’ ने 500 शानदार एपिसोड्स पूरे किए, शो के कलाकारों ने मनाया इस उपलब्धि का जश्‍न!

‘मैडम सर’ ने 500 शानदार एपिसोड्स पूरे किए, शो के कलाकारों ने अपने अंदाज में मनाया इस उपलब्धि का जश्‍न!

सोनी सब के शो ‘मैडम सर’ ने सफलतापूर्वक 500 एपिसोड पूरे कर लिए हैं। यही वह समय है कि भारत की सबसे चहेती महिला पुलिस अधिकारियों के लिये हम सब जमकर ताली बजाएं। दो साल पहले अपने लॉन्‍च के बाद से ही, इस शो ने महिलाओं के नेतृत्‍व वाले मजबूत किरदारों और सोच-विचार कर बनाई गईं कहानियों एवं प्‍लॉट के साथ दर्शकों को काफी लुभाया है। इस शो में एसएचओ हसीना मलिक (गुल्‍की जोशी), करिश्‍मा सिंह (युक्ति कपूर), संतोष (भाविका शर्मा), पुष्‍पा सिंह (सोनाली नाईक) और चीता चतुर्वेदी (प्रियांशु सिंह) मुख्‍य भूमिकाएं निभा रहे हैं। शो में बड़े आत्‍मविश्‍वास और बेहतरीन तरीके से एक महिला पुलिस थाने को संभालने में रोजाना आने वाली चुनौतियाँ दिखाई गई हैं। इसके किरदारों ने अजीब से अजीब मामलों को पूरे ‘जज्‍बात’ के साथ और सबसे अभिनव तरीकों से सुलझाया है। पिछले 500 एपिसोड्स में ‘मैडम सर’ ने अनगिनत सामयिक विषयों और निजी अनुभवों को छुआ है, जो ऐसी लड़कियों के लिये प्रेरक हैं, जिन्‍हें अपने काम में महारथ पाने और उसे सहजता से करने की आकांक्षा है। महिला सशक्तिकरण से लेकर, दबंगई, सामाजिक रूढि़यों, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य, आदि तक इस शो ने प्रासंगिक मुद्दों को ऐसी कहानियों के जरिए दिखाया है जोकि एक सकारात्‍मक एवं महत्‍वपूर्ण असर पैदा करने के लिए समाधान प्रदान करती हैं। आज हासिल हुई उपलब्धि के साथ ‘मैडम सर’ नये रास्‍तों पर बढ़ने के लिये तैयार है, और यह दर्शकों को बांधकर रखने की कोशिश करता रहेगा।  इस उपलब्धि पर अपनी बात रखते हुए, हसीना मलिक की भूमिका निभा रहीं गुल्‍की जोशी ने कहा, “मुझे ‘मैडम सर’ का हिस्‍सा बनकर बहुत गर्व और खुशी है, क्‍योंकि यह शो समस्‍याओं को हल करने की नई-नई विधियों से दयालुता और हास्‍य के भाव को फैलाता है। एक एक्‍टर के तौर पर इसमें मैंने न केवल नये लुक्‍स और शख्सियतों को अपनाया, बल्कि परफॉर्मेंस के मामले में भी मेरा दायरा बढ़ा। हमारे शो को दर्शकों से अब तक मिली प्रतिक्रिया काफी संतोषजनक रही है और हम आगे और भी ज्‍यादा एडवेंचर्स लाकर दर्शकों का मनोरंजन जारी रखना चाहते हैं। 500 एपिसोड्स पूरे करने और यह बेजोड़ उपलब्धि हासिल करने के लिये पूरी टीम को शाबाशी मिलनी चाहिये। यह ‘मैडम सर’ की यात्रा में एक नये अध्‍याय की शुरूआत है।‘’ करिश्‍मा सिंह की भूमिका निभा रहीं युक्ति कपूर ने कहा, “मैं 500 शानदार एपिसोड्स पूरे होने पर पूरे दिल से हमारी टीम को बधाई देना चाहती हूँ। यह उपलब्धि हासिल करने का अनुभव सपने जैसा लग रहा है और यह हमारी उस कड़ी मेहनत को दिखाता है, जो इस कहानी को पर्दे पर जीवंत करने में लगी है। इस शो ने हमें एक्‍टर के तौर पर कई बारीकियाँ जानने का मौका दिया और इसके नेरेटिव भी आधुनिक समय के हैं। ऐसे बेहतरीन कलाकारों और क्रू के साथ काम करना मैं अपना सौभाग्‍य मानती हूँ, जिन्‍होंने हमेशा मेरा साथ दिया। मैं ऐसी और भी उपलब्धियों की कामना करती हूँ।” संतोष की भूमिका निभा रहीं भाविका शर्मा ने कहा, “इतनी बड़ी उपलब्धि का हिस्‍सा बनकर मैं बहुत खुश और आभारी हूँ। एक शो को इतने लंबे समय तक चलाना और दर्शकों के लिये प्रासंगिक बनाये रखना कठिन है, लेकिन ‘मैडम सर’ ने कौतुहल पैदा करने और मनोरंजन देने वाली कहानियों के साथ एक बदलाव करके दिखाया है। एक टीम के तौर पर हमने इस शो को सफल बनाने के लिये बड़ी कोशिश की है और मैं दर्शकों से आग्रह करती हूँ कि वे हमें अपना प्‍यार और सहयोग लगातार देते रहें।” देखते रहिये ‘मैडम सर’, सोमवार से शनिवार रात 10 बजे, सिर्फ सोनी सब पर!

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हर साल बिजली का संकट

हर साल की तरह इस साल भी गर्मी ने लोगों को बुरी तरह परेशान कर रखा है ऐसे में बिजली कटौती लोगों का जीना दुश्वार कर रही है। इस भीषण गर्मी के बीच देश में गंभीर बिजली संकट पैदा हो गया है। मांग के अनुपात में बिजली नहीं मिल पा रही है। बारह राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, झारखंड, उत्तराखंड, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश गंभीर बिजली संकट से जूझ रहे हैं। कोयले की कमी के कारण उत्पन्न हुआ यह संकट कोई पहली बार नहीं है। पिछले साल भी यह संकट गहराया था लेकिन इस बार बिजली की किल्लत कुछ ज्यादा ही महसूस की जा रही है। कई राज्यों में बिजली कटौती की घोषणा कर दी गई है जिसकी वजह से आम जन परेशान हो गए हैं। चालू वित्त वर्ष में कोल इंडिया का बिजली कंपनियों को करीब 21.600 करोड़ रूपया बकाया था अब भी कोल इंडिया का बिजली कंपनियों पर 12,300 करोड़ों का बकाया है और बिजली का यह संकट कर्ज ना चुका पाने के कारण है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (सीईए) की डेली कोल स्टॉक रिपोर्ट के मुताबिक 165 थर्मल पावर स्टेशनों में से 56 में से 10 फ़ीसदी या उससे कम कोयला बचा है। कम से कम 26 के पास पांच फीसदी से भी कम स्टॉक है। दिल्ली के ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन के मुताबिक महत्वपूर्ण बिजली संयंत्रों के पास एक दिन से भी कम का कोयला बचा है। बिजली संकट का सबसे ज्यादा असर जलापूर्ति व्यवस्था पर संसाधनों पर पड़ा है बिजली कटौती से आम जनता को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा हैं। इसके अलावा अस्पताल और मेट्रो सेवाओं में बाधा उत्पन्न होगी सो अलग। बिजली संकट से जो स्थिति उत्पन्न हो गई है वो तकलीफ देने के लिए काफी है। वह भविष्य में आने वाले संकटों के लिए आगाह कर रही है और बारह राज्यों में बिजली कटौती का अर्थ यह नहीं है अन्य प्रदेश इस संकट से बचे हुए हैं। इस संकट की आहट उन्हें भी महसूस हो गई है। बिजली प्रबंधन के मामले में देश में बहुत लचर व्यवस्था चल रही है और इसी वजह से यह समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। लगभग हर साल यही सुनने में आता है कि एक-दो दिन की बिजली के लिए कोयला बचा है। लगभग सभी ताप बिजलीघर आधे से भी कम क्षमता पर चल रहे हैं। यदि कोयला समाप्ति पर है तो आगे की व्यवस्था, रखरखाव और मरम्मत किस प्रकार होगी? और सरकार इस अव्यवस्था को नजरअंदाज कर रही है। सरकार का ध्यान ग्रीन एनर्जी  की तरफ ज्यादा है।
अब वैकल्पिक ऊर्जा को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है और इसी वजह से परंपरागत ऊर्जा और वैकल्पिक ऊर्जा का सामंजस्य ठीक तरीके से नहीं हो पा रहा है। जिसके कारण बिजली संकट बढ़ते जा रहा है।
वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा जरूर दिया जा रहा है लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में जागरूकता और बहुत कार्य करने की जरूरत है साथ ही प्रबंधन व्यवस्था को सुधारना अति आवश्यक है यदि इनमें सुधार कर लिया गया तो संकट काफी हद तक दूर हो जाएगा। विभिन्न  सरकारें सब्सिडी या मुफ्त बिजली दे रही है लेकिन इस राशि का भुगतान विद्युत वितरण कंपनियों को नियमित रूप से नहीं कर रही है। बिजली संकट दूर करने के लिए प्रबंधन में सुधार अत्यावश्यक है।

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भ्रष्ट सरकारी तन्त्र को दुस्साहसी बनाने वाला शासनादेश -डॉ.दीपकुमार शुक्ल (स्वतन्त्र टिप्पणीकार)

लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के तहत हर पांच वर्ष में एक सरकार जाती है और दूसरी आती है| प्रत्येक सरकार सरकारी तन्त्र से सुचारू रूप से काम करवाने का न केवल संकल्प बार-बार दोहराती है बल्कि हर सम्भव प्रयास करती है कि प्रथम श्रेणी से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक के कर्मचारी अपने दायित्व का ईमानदारी पूर्वक निर्वाहन करें| लेकिन दुर्भाग्य कहें या विडम्बना कि जैसे जैसे लोकतान्त्रिक भारत की आयु बढ़ रही है वैसे वैसे सरकारी तन्त्र निकम्मा और नैतिक आचरण से हीन होता जा रहा है| किसी भी शिकायत या समस्या का संज्ञान लेकर उस पर कार्यवाही करने की अपेक्षा शिकायतकर्ता को विभिन्न माध्यमों से परेशान करके हतोत्साहित करना ही पूरे तन्त्र का एकमात्र उद्देश्य बन चुका है| इसके मूल में 9 मई 1997 को उत्तर प्रदेश शासन द्वारा जारी शासनादेश संख्या 13/1/97-का-1/1997 है| जो किसी भी अधिकारी के विरुद्ध की गयी शिकायत के परिप्रेक्ष्य में उसका पूर्ण रूपेण संरक्षण करता है| इस शासनादेश की भाषा इतनी सरल और भावपूर्ण है कि पूरा आदेश पढ़ने के बाद हर कोई इसे प्रथम दृष्टया उचित कहने में संकोच नहीं करेगा| परन्तु इसका व्यावहारिक पक्ष उतना ही जटिल और लोकतन्त्र को मुंह चिढ़ाने वाला है| यही वह शासनादेश है जिसके चलते सूचना अधिकार जैसा प्रभावी कानून मजाक बनकर रह गया है| सूचना आयुक्तों के यहाँ द्वितीय अपीलों की लम्बी श्रंखला का कारण यही शासनादेश है| यह वही शासनादेश है जिसके कारण प्रतिदिन उच्च अधिकारियों के कार्यालय से लेकर मुख्यमन्त्री के जनता दरबार तक अनगिनत फरियादियों की भीड़ जमा होती है| एक ही शिकायत के निस्तारण हेतु उच्च अधिकारियों से लेकर राष्ट्रपति तक को शिकायतकर्ताओं द्वारा पत्र-दर-पत्र प्रेषित किये जाते हैं| इसके बाद भी उनकी समस्या का समाधान नहीं होता है| वहीं जिस अधिकारी के विरुद्ध शिकायत की जाती है वह पूर्ण निर्भय होकर भ्रष्टाचार के निते नये कारनामे करता रहता है|

शासनादेश संख्या 13/1/97-का-1/1997, 9 मई 1997 को कार्मिक अनुभाग-1 उत्तर प्रदेश शासन के तत्कालीन विशेष सचिव के.एम.लाल की आज्ञा से सचिव जगजीत सिंह द्वारा प्रदेश के समस्त प्रमुख सचिवों/सचिवों, विभागाध्यक्षों/प्रमुख कार्यालयाध्यक्षों एवं सचिवालय के समस्त अनुभागों तथा सतर्कता विभाग के प्रमुख सचिव को प्रेषित किया गया था| “समूह ‘क’ (श्रेणी-1) के अधिकारियों के विरुद्ध प्राप्त शिकायती-पत्रों का निस्तारण” विषय वाले इस शासनादेश के अनुसार सामान्य व्यक्तियों से प्राप्त शिकायतों के सम्बन्ध में शिकायतकर्ता को शपथ-पत्र तथा शिकायत की पुष्टि हेतु समुचित साक्ष्य उपलब्ध कराने के साथ जाँच अधिकारी के समक्ष बयान देने हेतु प्रस्तुत होने का निर्देश दिया जाता है| इसके बाद जाँच की लम्बी प्रक्रिया कच्छप गति से आगे बढ़ती है| कहने को तो यह शासनादेश मात्र समूह ‘क’ (श्रेणी-1) के अधिकारियों के विरुद्ध प्राप्त शिकायतों के सन्दर्भ में है| परन्तु इसका इस्तेमाल न केवल हर छोटे-बड़े अधिकारी को बचाने में होता है बल्कि शिकायत के निस्तारण को लम्बित और प्रभावहीन बनाने में भी इसको ढाल और तलवार के रूप में प्रयुक्त किया जाता है| गम्भीर से गम्भीर मामले का शिकायती-पत्र प्रेषित करने के बाद प्रथम दृष्टया उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता| लम्बी प्रतीक्षा के बाद जब शिकायतकर्ता उच्च अधिकारियों को पत्र लिखता है या सूचना अधिकार का प्रयोग करता है| तब उसको इस शासनादेश का हवाला देते हुए शपथ-पत्र एवं साक्ष्यों सहित बयान देने हेतु जाँच अधिकारी के समक्ष पेश होने का निर्देश मिलता  है| अनेक मामलों में हर किसी के पास साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते और यदि हुए भी तो महीनों की समयावधि तक उन्हें सुरक्षित रख पाना मुश्किल होता है| इसके बाद पैसा तथा समय लगाकर शपथ-पत्र बनवाना और फिर बयान देने हेतु जाँच अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होना, सामान्य या रोज खाने-कमाने वाले व्यक्ति के लिए दुरूह कार्य जैसा है| कोई शिकायतकर्ता यदि साहस करके पूरी कवायद करता भी है तो उसे बयान के नाम पर उलझाने का प्रयास होता है| पहले एक अधिकारी बुलाता है फिर दूसरा बुलाता है| अवसर मिलते ही यह सिद्ध कर दिया जाता है कि शिकायतकर्ता की शिकायत के प्रति कोई रूचि नहीं है| इस बीच जिसके विरुद्ध शिकायत होती है वह साम, दाम, दण्ड, भेद द्वारा शिकायतकर्ता पर दबाव डालकर शिकायत वापस करवाने या फिर मामले को फर्जी सिद्ध करवाने का प्रयास करता है| कई मामलों में तो जाँच उसी अधिकारी को सौंप दी जाती है, जिसके विरुद्ध शिकायत होती है| कुल मिलाकर शिकायत को प्रभावहीन बनाकर दोषियों को बचाने का खुला खेल इस शासनादेश की आड़ में चल रहा है| इस सन्दर्भ में लेखक का निजी अनुभव है| बीते अगस्त माह में लेखक ने अपने पिताजी को खांसी की समस्या के चलते कानपुर के मन्नत हॉस्पिटल में भर्ती करवाया था| इस अस्पताल के संचालक मनीष सचान को क्षेत्रीय जनों की तरह लेखक भी एम.एम.बी.एस. डॉक्टर समझता था| मनीष सचान ने स्वयं को कानपुर के सरकारी अस्पताल के.पी.एम. हॉस्पिटल का सरकारी डॉक्टर बताया था| जबकि बाद में मालूम हुआ कि वह वहाँ चिकित्सक न होकर फार्मासिस्ट के पद पर कार्यरत है| क्षेत्रीय जनों को वेवकूफ बनाकर सुबह-शाम मन्नत हॉस्पिटल में ओपीडी करने वाले इस तथाकथित डॉक्टर के गलत इलाज से 30 अगस्त को लेखक के पिता की मृत्यु हो गयी| अतः लेखक ने अपर निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण को पत्र भेजकर उक्त चिकित्सक तथा ऐसे सभी चिकित्सकों को प्रश्रय देकर आम जन के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वाले चिकित्साधिकारियों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करने की मांग की| इस बीच पिताजी को श्रद्धांजलि देने लेखक के घर पहुँचे क्षेत्रीय विधायक तथा वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को भी उक्त प्रकरण से अवगत कराया गया| उन्होंने तत्काल मुख्य चिकित्साधिकारी को फोन करके पन्द्रह दिनों में कार्यवाही करने का निर्देश दिया| इसके बाद भी जब कुछ नहीं हुआ तब लेखक ने सूचनाधिकार के तहत अपनी शिकायत के सन्दर्भ में जानकारी मांगी| तब अपर निदेशक कार्यालय द्वारा पत्र भेजकर उपरोक्त शासनादेश का हवाला देते हुए शपथ-पत्र एवं साक्ष्य सहित बयान देने हेतु उपस्थित होने का निर्देश दिया गया| इस खानापूर्ति के लगभग दो माह बाद अपर मुख्य चिक्तिसाधिकारी के कार्यालय में पुनः साक्ष्य सहित बयान हेतु बुलाया गया| इस दिन 23 दिसम्बर था| यहाँ गौरतलब है कि लेखक ने अपनी शिकायत में स्वास्थ्य विभाग के जिन अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने की मांग की थी, उनमें अपर मुख्य चिकित्साधिकारी भी एक हैं| क्योंकि प्राईवेट अस्पतालों का नोडल अधिकारी प्रायः अपर मुख्य चिकित्साधिकारी को ही बनाया जाता है| जिनकी सहायता से मुख्य चिकित्साधिकारी प्राईवेट अस्पतालों के मानक की निगरानी करते हैं| लेखक के एक पत्रकार मित्र भी साथ गये थे| जो कि पिताजी की मृत्यु वाले दिन बराबर साथ थे| अपर मुख्य चिक्तिसाधिकारी के कार्यालय में पहुँचते ही सर्वप्रथम अकेले बयान देने का दबाव बनाया गया| जबकि लेखक चाहता था कि उसके मित्र साथ रहें| अतः बयान लेने वाले अधिकारी ने प्रोपेगंडा बनाते हुए बयान लेने से मना कर दिया| इसके बाद अपर मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा पत्र प्रेषित करके लेखक को पुनः बयान देने हेतु 17 जनवरी को बुलाया गया| जबकि यह पत्र 19 जनवरी को प्रेषित किया गया था| जो कि 20 जनवरी को प्राप्त हुआ| पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि यदि आप नहीं आये तो समझा जायेगा कि शिकायत के सम्बन्ध में आपको कुछ नहीं कहना है| जाहिर है जब 17 तारीख को बुलावे की सूचना 20 तारीख को प्राप्त होगी तब वही होगा जो पत्र प्रेषक चाहेगा| हुआ भी वही| अगले ही दिन शिकायत को निराधार बताकर प्रकरण को समाप्त करने की संस्तुति कर दी गयी| जब एक पत्रकार के मामले में यह हो सकता है तब फिर सामान्य व्यक्ति के साथ क्या होता होगा, यह स्वतः समझा जा सकता है| आकण्ठ भ्रष्टाचार में डूबे सरकारी तन्त्र को दुस्साहसी बनाने वाले उपरोक्त शासनादेश संख्या 13/1/97-का-1/1997 के रहते क्या सामान्य व्यक्ति न्याय की अपेक्षा कर सकता है? यह प्रश्न उत्तर की प्रतीक्षा में है|

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राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) और भारतीय तटरक्षक (आईसीजी) ने लक्षद्वीप के तट से दूर बीच समुद्र में छापा मार कर 218 किलोग्राम हेरोइन जब्त की

ल्रगातार  कई महीनों तक विशिष्ट खुफिया जानकारी हासिल कर लेने के बाद  राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने यह पक्‍का अनुमान लगा लिया था कि दो भारतीय नावें तमिलनाडु के तट से रवाना होंगी और मई 2022 के दूसरे/तीसरे सप्ताह के दौरान अरब सागर में कहीं न कहीं उन पर भारी मात्रा में मादक द्रव्‍य या नशीले पदार्थ लादे जाएंगे। तदनुसार, भारतीय तटरक्षक (आईसीजी) के साथ मिलकर डीआरआई का एक संयुक्त अभियान ऑपरेशन खोजबीन के कोडनेम से 7 मई 2022 को शुरू किया गया था। इस कार्रवाई के तहत तटरक्षक जहाज सुजीत, जिस पर डीआरआई के कई अधिकारी सवार थे, विशेष आर्थिक जोन के निकट निरंतर कड़ी निगरानी रखता था। समुद्र में अक्‍सर तूफान आने के बीच लगातार कई दिनों तक तलाश और निगरानी करने के बाद दो संदिग्ध नौकाओं ‘प्रिंस’ और ‘लिटिल जीसस’ को भारत की ओर बढ़ते हुए देखा गया। इन दोनों ही भारतीय नौकाओं को 18 मई 2022 को लक्षद्वीप के तट से दूर आईसीजी और डीआरआई के अधिकारियों ने रोक लिया था। पूछताछ करने पर इन दोनों ही नौकाओं के चालक दल के कुछ सदस्यों ने यह स्वीकार कर लिया कि उन्हें बीच समुद्र में भारी मात्रा में हेरोइन मिली थी और उन्होंने इसे इन दोनों नौकाओं में छिपा दिया था। इसे देखते हुए इन दोनों ही नौकाओं को इस दिशा में आगे की कार्यवाही के लिए कोच्चि ले जाया गया। कोच्चि स्थित तटरक्षक के जिला मुख्यालय में इन दोनों ही नौकाओं की गहन तलाशी ली गई, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक 1 किलो के 218 पैकेटों में छिपाकर रखी गई हेरोइन बरामद हुई। एनडीपीएस अधिनियम, 1985 के प्रावधानों के तहत जब्ती की कार्रवाई फि‍लहाल डीआरआई द्वारा की जा रही है। इस मामले में विभिन्न स्थानों पर लगातार तलाशी ली जा रही है और आगे की जांच की जा रही है।

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इस अभि‍यान के तहत डीआरआई और आईसीजी द्वारा सावधानीपूर्वक योजना बनाई गई एवं फि‍र उस पर अमल किया गया और लगातार कई दिनों तक समुद्र में अक्‍सर तूफान आने के बीच व्यापक निगरानी की गई। जब्त की गई नशीली दवा हाई-ग्रेड हेरोइन की प्रतीत होती है और अंतरराष्ट्रीय अवैध बाजार में इसकी कीमत लगभग 1,526 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है। हाल के दिनों में आईसीजी और डीआरआई ने नशीली दवाओं की तस्करी से निपटने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कार्रवाई की है। पिछले एक महीने में डीआरआई की ओर से यह नशीली दवाओं का चौथा बड़ा भंडाफोड़ है। इससे पहले डीआरआई ने 20.04.2022 को कांडला बंदरगाह पर जिप्सम पाउडर की एक वाणिज्यिक आयात खेप से 205.6 किलोग्राम हेरोइन, 29.04.2022 को पिपावाव बंदरगाह पर 396 किलो सूत (हेरोइन युक्‍त), और 10.05.2022 को एयर कार्गो कॉम्प्लेक्स, आईजीआई, नई दिल्ली में 62 किलो हेरोइन बरामद की थी जिनकी कुल कीमत अंतरराष्ट्रीय अवैध बाजार में लगभग 2,500 करोड़ रुपये आंकी गई है।

अप्रैल 2021 से लेकर अब तक डीआरआई ने 3,800 किलोग्राम से भी अधिक हेरोइन जब्त की है, जिसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय अवैध बाजार में लगभग 26,000 करोड़ रुपये आंकी गई है। सितंबर 2021 में मुंद्रा में 3,000 किलो हेरोइन की जब्ती; जुलाई 2021 में न्हावा शेवा बंदरगाह पर 293 किलो हेरोइन की जब्‍ती; और फरवरी 2022 में नई दिल्ली के तुगलकाबाद में 34 किलो हेरोइन की जब्ती भी शामिल है। इसके अलावा अनेक हवाई यात्रियों से भी हेरोइन की बरामदगी की गई है। इसके अतिरिक्‍त, इसी अवधि के दौरान 350 किलोग्राम से भी अधिक कोकीन डीआरआई द्वारा जब्त की गई थी, जिसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय अवैध बाजार में लगभग 3,500 करोड़ रुपये आंकी गई है और जिसमें अप्रैल 2021 में तूतीकोरिन बंदरगाह पर एक कंटेनर से 303 किलोग्राम कोकीन की अब तक की सर्वाधिक मात्रा में जब्‍ती भी शामिल है। वहीं, दूसरी ओर आईसीजी ने पिछले 3 वर्षों में अपने विभिन्न अभियानों के तहत लगभग 6,200 करोड़ रुपये मूल्य के लगभग 3 टन नशीले पदार्थ बरामद किए हैं, जिससे अब तक नशीली दवाओं की कुल बरामदगी 12,206 करोड़ रुपये की आंकी गई है। इस तरह के उल्लेखनीय मामलों में श्रीलंकाई नौकाओं शेनाया दुवा और रविहांसी को पकड़ा जाना शामिल है, इन दोनों ही नौकाओं को नशीली दवाओं और विभिन्‍न हथियारों जैसे कि एके-47 और पिस्तौल के साथ पकड़ा गया था। हाल ही में ईरानी नौका जुम्मा, पाक नौका अल हुसेनी और अल हज को पकड़ा गया था। मादक द्रव्‍यों की तस्करी करने वाले अंतरराष्ट्रीय नेटवर्कों के खिलाफ आईसीजी और डीआरआई का संयुक्त अभियान समुद्री मार्गों के जरिए देश में नशीली दवाओं के प्रवाह को बाधित करने में कामयाब रहा है।

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ओला और उबर को उपभोक्ता अधिकारों और अनुचित व्यापार प्रथाओं के उल्लंघन पर नोटिस जारी

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने ओला और उबर, दो ऑनलाइन सवारी उपलब्ध कराने वाले प्लेटफॉर्म को अनुचित व्यापार प्रथाओं और उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन के लिए को नोटिस जारी किया है।

राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन (एनसीएच) के आंकड़ों के अनुसार, 01.04.2021 से 01.05.2022 तक, उपभोक्ताओं द्वारा ओला के खिलाफ 2,482 शिकायतें दर्ज की गईं और उबर के खिलाफ 770 शिकायतें दर्ज की गईं। पिछले सप्ताह, विभाग ने सवारी उपलब्ध कराने वाली कंपनियों ओला, उबर, रैपिडो, मेरु कैब्स और जुगनू के साथ बैठक में उन्हें उपभोक्ताओं के लिए बेहतर शिकायत निवारण और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-2019 और ई-कॉमर्स नियम का अनुपालन करने के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन में अभिसरण भागीदार बनने का निर्देश दिया।

नोटिस में उठाए गए प्राथमिक मुद्दों में शामिल हैं: –

· सेवा में कमी जिसमें ग्राहक सहायता से उचित प्रतिक्रिया की कमी, ड्राइवर द्वारा ऑनलाइन मोड से भुगतान लेने से इनकार करना और केवल नकद के लिए जोर देना, पहले से कम शुल्क पर एक ही मार्ग पर जाने के बावजूद अधिक शुल्क लिया जाना, अव्यवसायिक चालक व्यवहार और ड्राइवर द्वारा एसी को चलाने से इनकार करना शामिल है, जब कि उपभोक्ता को ऐप पर एसी की सवारी का वादा किया जाता है।

· ग्राहक सेवा संख्या और शिकायत अधिकारी के विवरण, दोनों के अभाव में अपर्याप्त उपभोक्ता शिकायत निवारण तंत्र, जैसा कि प्लेटफॉर्म पर उल्लेख किया जाना आवश्यक है।

· रद्दीकरण शुल्क की अनुचित वसूली जिसमें उपयोगकर्ताओं को वह समय नहीं दिखाया जाता है जिसके भीतर एक सवारी को यात्रा रद्द करने की अनुमति है। राइड बुक करने से पहले रद्द करने के शुल्क की राशि प्लेटफॉर्म पर प्रमुखता से प्रदर्शित नहीं होती है। अनुचित रद्दीकरण शुल्क उपयोगकर्ताओं द्वारा वहन किया जाता है जब उन्हें ड्राइवर द्वारा सवारी स्वीकार करने या पिक-अप स्थान पर आने की अनिच्छा के कारण सवारी को रद्द करने के लिए मजबूर किया जाता है।

· दो व्यक्तियों से एक ही मार्ग के लिए अलग-अलग किराए वसूलने के लिए कंपनी द्वारा उपयोग किए जाने वाले एल्गोरिदम या विधि के बारे में किसी भी जानकारी का अभाव

· प्रत्येक सवारी से पहले स्पष्ट और सकारात्मक कार्रवाई द्वारा सहमति प्राप्त किए बिना ऐड-ऑन सेवाओं को शामिल करने के लिए पूर्व-चिह्नित बक्सों द्वारा ऐड-ऑन सेवाओं के लिए शुल्क शामिल करना।

यह उल्लेख किया जा सकता है कि देश भर में उपभोक्ताओं द्वारा कई मुद्दों पर शिकायतें दर्ज की गई हैं, जो दोनों राइड उपलब्ध कराने वाले प्लेटफॉर्म के माध्यम से बुक की गई उनकी सवारी को प्रभावित करती हैं। सीसीपीए देश में उपभोक्ता संरक्षण परिदृश्य की नियमित रूप से निगरानी कर रहा है। हाल ही में, सीसीपीए ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर वायरलेस जैमर की अवैध बिक्री और सुविधा के खिलाफ एडवाइजरी जारी की। सीसीपीए ने सभी मार्केटप्लेस ई-कॉमर्स संस्थाओं को यह सुनिश्चित करने के लिए एक परामर्श भी जारी किया है कि उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 के नियम 6 के उप-नियम (5) के अंतर्गत अनिवार्य रूप से विक्रेताओं का विवरण, नाम और संपर्क नंबर सहित शिकायत अधिकारी को स्पष्ट और सुलभ तरीके से उपलब्ध कराया जाता है, जो मंच पर उपयोगकर्ताओं को प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाता है। इसके अलावा, सीसीपीए ने अधिनियम की धारा 18 (2) (जे) के अंतर्गत सुरक्षा नोटिस भी जारी किए हैं ताकि उपभोक्ताओं को ऐसे सामान खरीदने के प्रति सतर्क और सावधान किया जा सके जो वैध आईएसआई मार्क वाले नहीं होते हैं और अनिवार्य बीआईएस मानकों का उल्लंघन करते हैं। पहला सुरक्षा नोटिस 06.12.2021 को हेलमेट, प्रेशर कुकर और रसोई गैस सिलेंडर के संबंध में जारी किया गया था और दूसरा सुरक्षा नोटिस 16.12.2021 को जारी किया गया था, जिसमें इलेक्ट्रिक इमर्शन वॉटर हीटर, सिलाई मशीन, माइक्रोवेव ओवन, एलपीजी आदि के साथ घरेलू गैस स्टोव सहित घरेलू सामान शामिल थे।

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केंद्र ने जिला, राज्य और राष्ट्रीय आयोगों को एक महीने से अधिक के लिए स्थगन नहीं देने और उपभोक्ता शिकायतों के निपटारे में तेजी लाने के लिए कहा

उपभोक्ता कार्य विभाग (डीओसीए) ने उपभोक्ता शिकायतों का जल्द निपटाने सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और जिला आयोगों के रजिस्ट्रारों और अध्यक्षों को  पत्र लिखकर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत प्रदान की गई समयसीमा का पालन सुनिश्चित करने के लिए एक महीने से अधिक के लिए स्थगन आदेश नहीं देने को कहा है। स्थगन अनुरोधों के कारण शिकायतों के समाधान में 2 महीने से अधिक की देरी के मामले में, आयोग पार्टियों पर लागत लगाने पर विचार कर सकता है। सचिव डीओसीए श्री रोहित कुमार सिंह ने अपने पत्र में उपभोक्ताओं को सस्ता, परेशानी मुक्त और जल्द न्याय दिलाने पर जोर दिया है। इस पत्र में कहा गया है कि बार-बार और लंबे समय तक स्थगन न केवल उपभोक्ता को उसके सुनने और उसके निवारण के अधिकार से वंचित करता है, बल्कि उस अधिनियम की भावना को भी खत्म कर देता है जिसका विधायिका ने इरादा किया था। इसलिए, उपभोक्ता आयोगों से अनुरोध है कि वे सुनिश्चित करें कि किसी भी परिस्थिति में लंबी अवधि के लिए स्थगन प्रदान नहीं किया जाए। इसके अलावा, किसी भी पक्ष द्वारा स्थगन के दो से अधिक अनुरोधों के मामले में, उपभोक्ता आयोग निवारक उपाय के रूप में पार्टियों पर लागत लगा सकता है। अधिनियम की धारा 38(7) के तहत शिकायत स्वीकार करने की प्रक्रिया पर उपभोक्ता आयोगों का ध्यान आकर्षित करते हुए पत्र में जोर दिया गया है कि प्रत्येक शिकायत का यथासंभव शीघ्र निपटारा किया जाना आवश्यक है और विरोधी पक्ष द्वारा नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 3 महीने की अवधि के भीतर जहां शिकायत के लिए वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती है और यदि वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण की आवश्यकता होती है तो 5 महीने के भीतर शिकायत पर निर्णय लेने का प्रयास किया जाएगा। इसके अलावा, अधिनियम यह भी कहता कि कोई भी स्थगन आमतौर पर उपभोक्ता आयोगों द्वारा तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि पर्याप्त कारण नहीं दिखाया गया हो और स्थगन के कारणों को लिखित रूप में दर्ज नहीं किया गया हो। आयोगों को स्थगन से होने वाली लागतों के बारे में आदेश देने का भी अधिकार है। यह उल्लेख किया जा सकता है कि अधिनियम की धारा 38(2)(ए) के अनुसार आयोग स्वीकार की गई शिकायत की एक प्रति विरोधी पक्ष को 30 दिनों की अवधि के भीतर या विस्तारित 15 दिनों की अवधि के भीतर मामले पर अपना पक्ष देने का निर्देश देगा, जो इसके द्वारा दी जा सकती है। धारा 38(3)(बी)(ii) में आगे प्रावधान है कि यदि विरोधी पक्ष कोई कार्रवाई करने में या निर्धारित समय के भीतर अपने मामले को पेश करने में विफल रहता है, तो आयोग साक्ष्य के आधार पर एक पक्षीय निर्णय लेने के लिए आगे बढ़ सकता है। इसके अलावा, पत्र में न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम हिली मल्टीपर्पज कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के 04.03.2020 को दिए फैसला का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया था कि उपभोक्ता आयोगों के पास शिकायतों का जवाब दाखिल करने के लिए अधिनियम की धारा 13 में उल्लिखित 30 दिनों के अतिरिक्त 15 दिनों की अवधि के अलावा और समय बढ़ाने की कोई शक्ति नहीं है। मेसर्स डैडीज बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम मनीषा भार्गव और अन्य के मामले में 11.02.2021 को दिए गए फैसले तथा डायमंड एक्सपोर्ट्स और अन्य बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एंड ओर्स मामले में 14.12.2021 को दिए गए फैसले में भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसी निर्णय की पुष्टि की गई है। सचिव डीओसीए ने सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और सभी उपभोक्ता आयोगों को पत्र लिखकर उपभोक्ताओं को ई-दाखिल पोर्टल के माध्यम से अपनी शिकायतें दर्ज करने के लिए प्रोत्साहित करने पर जोर दिया है। पत्र में, इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों ने ई-दाखिल तंत्र स्थापित किया है जिसमें ई-नोटिस, केस डॉक्यूमेंट डाउनलोड लिंक और वर्चुअल हियरिंग लिंक, विपरीत पक्ष द्वारा लिखित प्रतिक्रिया दाखिल करने, शिकायतकर्ता द्वारा प्रत्युत्तर दाखिल करने और एसएमएस/ई-मेल के माध्यम से अलर्ट पाने सहित कई विशेषताएं हैं। आयोगों से अनुरोध किया गया है कि वे ई-दाखिल पोर्टल के माध्यम से उपभोक्ताओं को अपनी शिकायतों को दर्ज करने के लिए प्रोत्साहित करें।  उपभोक्ता कार्य विभाग 31.05.2022 को राष्ट्रीय, राज्य और जिला आयोगों के अध्यक्ष और सदस्यों के साथ-साथ राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में उपभोक्ता मामलों के प्रभारी सचिव के साथ राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन भी कर रहा है। इसमें उपभोक्ताओं के लिए विवाद निवारण तंत्र को अधिक प्रभावी, तेज और परेशानी मुक्त बनाने पर चर्चा और विचार-विमर्श किया जाएगा।

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अमृतसर-जामनगर ग्रीनफील्‍ड कॉरिडोर सितम्‍बर 2023 तक पूरा होगा

केन्‍द्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी ने कहा है कि अमृतसर-जामनगर ग्रीनफील्ड कॉरिडोर एनएचएआई द्वारा विकसित किए जा रहे सबसे महत्वपूर्ण ग्रीनफील्ड कॉरिडोर में से एक है और इसका निर्माण पूरी क्षमता से किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पूरा कॉरिडोर सितम्‍बर 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य है। ट्वीट्स की एक श्रृंखला में श्री गडकरी ने विशेष रूप से सूचित किया, बीकानेर से जोधपुर तक 277 किलोमीटर के खंड को इस वर्ष के अंत तक पूरा करने और जनता के लिए खोलने का लक्ष्य है।

Imageगडकरी ने कहा कि 1,224 किलोमीटर लंबा प्रमुख अमृतसर-भटिंडा-जामनगर कॉरिडोर 26,000 करोड़ रुपये की कुल पूंजीगत लागत से बनाया जा रहा है और यह चार राज्‍यों- पंजाब, हरियाणा, राजस्‍थान और गुजरात के अमृतसर, बठिंडा, संगरिया, बीकानेर, सांचौर, समाखियाली और जामनगर जैसे आर्थिक शहरों को जोड़ेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्व में ग्रीनफील्डर कॉरिडोर के निर्माण के साथ हम देश में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं।  गडकरी ने कहा कि कॉरिडोर देश के उत्तरी औद्योगिक और कृषि केन्‍द्रों को पश्चिमी भारत के प्रमुख बंदरगाहों जैसे जामनगर और कांडला से जोड़ेगा। इससे बद्दी, बठिंडा और लुधियाना के औद्योगिक क्षेत्रों के मुख्‍य मार्ग से निकले हुए रास्‍तों और दिल्ली-अमृतसर-कटरा एक्सप्रेसवे के जम्मू और कश्मीर राज्य के जुड़ने से औद्योगिक क्रांति को बढ़ावा मिलेगा। राजमार्ग मंत्री ने कहा कि ट्रांस-राजस्थान कॉरिडोर पारगमन समय और ईंधन की रसद लागत को काफी कम कर देगा, इससे प्रतिस्पर्धी वैश्विक निर्यात बाजार में खड़ा होने में मदद मिलेगी।

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केन्‍द्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी ने बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कन्हेरी गुफाओं में विभिन्न सुविधाओं का उद्घाटन किया

केन्‍द्रीय पर्यटन, संस्कृति और उत्‍तर पूर्व क्षेत्र विकास मंत्री (डोनर) श्री जी. किशन रेड्डी ने आज बोरीवली के नजदीक संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित कन्हेरी गुफाओं में पर्यटकों के लिए विभिन्न सुविधाओं का उद्घाटन किया। संस्‍कृति मंत्री ने कहा, “कन्हेरी गुफाएं हमारी प्राचीन विरासत का हिस्सा हैं क्योंकि वे हमारे उद्भव और अतीत का प्रमाण प्रदान करती हैं। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर किए गए कार्यों का उद्घाटन करना सौभाग्य की बात है। बुद्ध का संदेश संघर्ष और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का समाधान करने के लिए आज भी महत्‍वपूर्ण है।”

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श्री रेड्डी ने कहा कि हमारी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत के संरक्षण में रुचि दिखाना और उसकी जिम्मेदारी लेना प्रत्येक नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी है। संस्‍कृति मंत्री ने कहा कि हमारी विरासत की रक्षा, संरक्षण और प्रचार-प्रसार में सार्वजनिक-निजी भागीदारी, कॉरपोरेट और सिविल सोसाइटी संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ताकि आने वाली पीढ़ियां इन खजानों तक पहुंच सकें। इंडियन ऑयल फाउंडेशन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के साथ हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन के हिस्से के रूप में कन्हेरी में उन्नत पर्यटक बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के कार्य में शामिल है। वर्तमान इमारत में आगन्‍तुक मंडप, रखवाली करने वालों के आवास, बुकिंग ऑफिस को अपग्रेड करने के साथ उनका नवीनीकरण किया गया है। बुकिंग काउंटर से लेकर कस्टोडियन क्वार्टर तक के क्षेत्र को प्राकृतिक दश्‍यों से सुशोभित किया गया है। चूंकि गुफाएं जंगल के मुख्य क्षेत्र में आती हैं, बिजली और पानी की आपूर्ति नहीं हो पाती है, इसके बावजूद सौर ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से बिजली की व्यवस्था की गई है। आगंतुकों की रुचि बनाए रखने के लिए सरल और सुविधाजनक विवेचना केन्‍द्र की स्‍थापना की गई है जिसमें ग्यारह व्‍याख्‍यात्‍मक पैनलों की मदद से प्रमुख गुफाओं की उत्कृष्ट विशेषताओं और अद्वितीयता को उजागर किया गया है। कन्हेरी का ट्रेल मैप यानी रास्‍ता दिखाने वाला नक्‍शा एक और महत्वपूर्ण विशेषता है जो आगंतुकों का समय बचाने में मदद करता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पूरे मठ परिसर के 3डी वर्चुअल टूर पर भी काम कर रहा है। कन्हेरी गुफाएं मुंबई के पश्चिमी बाहरी इलाके में संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के जंगलों में बड़े पैमाने पर बेसाल्ट आउटक्रॉप में गुफाओं का समूह और कटी हुई चट्टानों से बने स्मारकों का एक समूह है। इनमें बौद्ध मूर्तियां और राहत नक्काशी, पेंटिंग और शिलालेख हैं, जो पहली शताब्दी सीई से 10वीं शताब्दी सीई तक की हैं। पानी के अनेक जलाशयों के साथ खुदाई की सतह और क्षेत्र, शिलालेख, एक सबसे पुराना बांध, एक स्तूप दफन गैलरी और उत्कृष्ट वर्षा जल संचयन प्रणाली इसकी एक आश्रम और तीर्थ केन्‍द्र के रूप में लोकप्रियता का संकेत देती है। कन्हेरी सातवाहन, त्रिकुटक, वाकाटक और सिलहारा के संरक्षण में और क्षेत्र के धनी व्यापारियों द्वारा किए गए दान के माध्यम से फला-फूला।

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संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति और अबू धाबी के शासक महामहिम शेख खलीफा बिन जायद अल नाहयान के असामयिक निधन पर सम्मान स्‍वरूप कल पूरे देश में एक दिवसीय राजकीय शोक मनाया जाएगा

संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति और अबू धाबी के शासक महामहिम शेख खलीफा बिन जायद अल नाहयान का असामयिक निधन हो गया है। भारत सरकार ने दिवंगत गणमान्य व्यक्ति के सम्मान में पूरे देश में एक दिन का राजकीय शोक मनाने की घोषणा की है।

राजकीय शोक के दिन पूरे देश में उन सभी भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा, जहां राष्ट्रीय ध्वज नियमित रूप से फहराया जाता है। इस दिन कोई भी आधिकारिक मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित नहीं होगा।

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स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देने के लिये असम और अरुणाचल प्रदेश में काष्ठशिल्प और अगरबत्ती उद्योग को गति देने में केवाईआईसी का बड़ा प्रयास

खादी और ग्रामीण उद्योग आयोग (केवाईआईसी)ने असम और अरुणाचल प्रदेश में 100 महिलाओं सहित 150 प्रशिक्षित खादी शिल्पकारों को स्व-रोजगार की विभिन्न गतिविधियों से जोड़ा है। केवाईआईसी के अध्यक्ष श्री विनय कुमार सक्सेना ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग में 50 शिल्पकारों को काष्ठकला की मशीनें वितरित कीं। इसी तरह उन्होंने गुवावाटी, असम में शिल्पकारों को अगरबत्ती बनाने वाली 50 मशीनें और अचार बनाने वाली 50 मशीनों का वितरण किया। पहली बार केवाईआईसी ने मशीनों द्वारा काष्ठकला का प्रशिक्षण देने का कार्यक्रम शुरू किया है। यह कार्यक्रम अरुणाचल प्रदेश के स्थानीय युवाओं को दिया जा रहा है, जिसका उद्देश्य तवांग के स्थानीय जनजातीय युवाओं के लिये स्थायी रोजगार उत्पन्न हो सकें। इसका एक और उद्देश्य है राज्य की पारंपरिक काष्ठकला को दोबारा जीवित करना। सभी काष्ठ शिल्पकार बीपील परिवारों से सम्बंधित हैं तथा केवाईआईसी 20 दिनों का समग्र प्रशिक्षण देता है। प्रशिक्षण पूरा हो जाने के बाद इन शिल्पकारों को मशीनें प्रदान की जाती हैं।

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शनिवार को, श्री सक्सेना ने प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएम-ईजीपी) के तहत 50 महिला शिल्पकारों को अगरबत्ती बनाने वाली 50 मशीनें वितरित कीं, ताकि वे अपनी अगरबत्ती निर्माण इकाइयां स्थापित कर सकें। इसका एक और उद्देश्य है कि स्थानीय अगरबत्ती उद्योग को मजबूत किया जाये। उल्लेखनीय है कि असम में अगरबत्ती निर्माण में बहुत रोजगार हैं। केवाईआईसी ने इसके लिये एक व्यापारिक साझीदार को भी जोड़ा है, जो असम का सफल स्थानीय अगरबत्ती निर्माता है। वह कच्चा माल उपलब्ध करायेगा तथा इन 50 महिला उद्यमियों को मजदूरी चुकाते हुये उनके द्वारा बनाई गई समस्त अगरबत्तियां खरीदेगा। केवाईआईसी अध्यक्ष श्री सक्सेना ने कहा कि पूर्वोत्तर में युवाओं को आत्मनिर्भर बनाते हुये खादी गतिविधियों को प्रधानमंत्री की परिकल्पना “आत्मनिर्भर भारत” के साथ जोड़ा गया है। उन्होंने कहा, “केवाईआईसी ने पूर्वोत्तर में स्थायी रोजगार सृजन और पारंपरिक शिल्प को मजबूत करने पर लगातार जोर दिया है। केवाईआईसी के समर्थन से काष्ठशिल्प, अगरबत्ती निर्माण और अचार बनाने जैसे कृषि व खाद्य-आधारित उद्योगों के बल पर स्थानीय युवा व महिलायें सशक्त बनेंगी तथा उनके घर में ही रोजगार के अवसर मिलेंगे।” उल्लेखनीय है कि हाल में ही केवाईआईसी ने अरुणाचल प्रदेश में दो ‘अरि रेशम प्रशिक्षण और उत्पादन केंद्र’ खोलेहैं। साथ ही तवांग में मोनपा हस्तनिर्मित कागज उद्योग को दोबारा जीवित किया गया है। इसके अतिरिक्त केवाईआईसी ने पिछले दो वर्षों में अगरबत्ती और गोल बांस की छड़ी निर्माण सहित बांस उत्पादों की 430 इकाइयां असम और अरुणाचल प्रदेश में स्थापित की हैं।

 

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