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राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (निफ्ट) के नई दिल्ली कैंपस की स्नातक प्रदर्शनी का आयोजन

राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (निफ्ट) के नई दिल्ली कैंपस की स्नातक प्रदर्शनी कल निफ्ट, दिल्ली में आयोजित की गई। ‘पूर्वावलोकन’ शीर्षक वाले इस कार्यक्रम में 2022 की कक्षा के स्नातक कार्यों के शानदार विवरण के साथ अनावरण किया गया। एक प्रभावशाली प्रदर्शनी में स्नातक परियोजनाओं ने रचनात्मकता और नवीनता को प्रदर्शित किया। फैशन प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से आयोजित “क्रिएटिंग टेक्नोप्रीनर्स, टेक्नो समिट- 2022” उद्योग संगोष्ठी के तहत प्रौद्योगिकी में उद्यमिता को रेखांकित किया गया।

वस्त्र मंत्रालय के सचिव श्री उपेन्द्र प्रसाद सिंह इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। युवा स्नातकों के साथ बातचीत में श्री सिंह ने छात्रों से अपने लिए चुनिंदा क्षेत्रों में शानदार करियर बनाने के दौरान निफ्ट में निर्मित उत्कृष्टता की परंपरा को बनाए रखने का आह्वान किया।

वहीं, निफ्ट के महानिदेशक श्री शांतमनु ने छात्रों को आगे बढ़ने को लेकर एक प्रेरक स्थान प्रदान करने के लिए शिक्षकों को बधाई दी। वहीं, दिल्ली कैंपस की निदेशक- निफ्ट, आईआरएस श्रीमती मनीषा किन्नू ने युवा स्नातकों को उनके पाठ्यक्रम के सफल समापन पर बधाई दी। इस प्रदर्शनी में उन्होंने स्नातक करने वाले छात्रों के साथ बातचीत की। उन्होंने आगे युवा मस्तिष्कों से अपने नए करियर में नैतिक व सचेत रहने और “निफ्ट के ध्वज को ऊंचा रखने” का अनुरोध किया।

कोविड-19 महामारी के दौरान संस्थान ने अध्यापन और शिक्षण के नए तरीकों को अपनाया, जिससे इस कठिन समय में भी छात्रों के लिए सर्वश्रेष्ठ सुनिश्चित किया जा सके। कैंपस ऑनलाइन शिक्षण मोड को आगे बढ़ाया गया और शिक्षकों ने अपनी ओर से उत्कृष्ट प्रयास किए, जिससे छात्र अपने घर की सीमा से ही अपनी पूरी क्षमता के साथ इन तक पहुंच सकें। इस कार्यक्रम में शिक्षकों और स्नातक छात्रों के प्रयासों को प्रदर्शित किया गया और उद्योग व अकादमिक क्षेत्र की ओर से समान रूप से बहुत प्रशंसा और मान्यता प्राप्त हुई।

इस प्रदर्शनी में विभिन्न क्षेत्रों के उद्योग विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। इनमें इको टसर से श्री खितिज पंड्या, डिवाइन डिजाइन की सुश्री अंजलि कालिया, ट्रिबर्ग से श्री संजय शुक्ला, पीएंडजी एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड से श्री मनोज तुली, माइन ऑफ डिजाइन की ओर से श्रीमती प्रतिमा पाण्डेय, श्री गौरव गुप्ता, श्री जॉय मित्रा व श्रीमती अंबर परिधि, दा मिलानो से श्री साहिल मलिक, अल्पाइन अपैरल्स प्राइवेट लिमिटेड से श्री संजय लीखा सहित अन्य लोगों ने हिस्सा लिया। विशिष्टताओं के अलावा इस प्रदर्शनी में उद्योग के लिए तैयार और व्यापक अवधारणाओं से जुड़ी रियल टाइम परियोजनाओं को प्रदर्शित किया गया। कुछ परियोजनाओं ने उद्योग विशिष्ट मुद्दों के लिए तकनीकी-युग समाधान प्रदान करने का प्रयास किया। वहीं, अन्य परियोजनाओं ने नवाचार संचालित प्रक्रियाओं और तकनीकों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना वर्ष 1986 में की गई थी। अपनी स्थापना के बाद से ही निफ्ट ने फैशन शिक्षा में एक मानक स्थापित किया, जो डिजाइन, प्रबंधन और प्रौद्योगिकी के एक प्रमुख संस्थान के रूप में सामने आ रही है। निफ्ट, पेशेवर रूप से प्रबंधित 17 कैंपस के एक नेटवर्क के जरिए तकनीकी क्षमता के साथ रचनात्मक प्रतिभा के अपने अद्वितीय एकीकरण सहित अकादमिक मानकों को स्थापित करता है और विचार नेतृत्व में उत्कृष्टता प्राप्त करता है। निफ्ट अधिनियम, 2006 ने संस्थान को डिग्री और अन्य शैक्षणिक विशिष्टताओं को प्रदान करने का अधिकार दिया है।

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डाक विभाग ने जीआई उत्पादों- बनारस जरदोज़ी, बनारस हैण्ड ब्लॉक प्रिंट और बनारस लकड़ी की नक्काशी पर जारी किया विशेष आवरण

भारतीय डाक विभाग द्वारा प्रधान डाकघर, वाराणसी में आयोजित एक कार्यक्रम में वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने प्रधानमंत्री के सलाहकार रहे श्री भाष्कर खुल्बे और जीआई एक्सपर्ट पद्मश्री डॉ. रजनीकांत संग तीन जीआई यानी भौगोलिक संकेतक उत्पादों – बनारस जरदोज़ी, बनारस हैण्ड ब्लॉक प्रिंट और बनारस लकड़ी की नक्काशी पर विशेष आवरण और विरूपण जारी किया। इसी के साथ अब तक वाराणसी क्षेत्र से संबंधित 11 जीआई उत्पादों पर डाक विभाग विशेष आवरण जारी कर चुका है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के सलाहकार रहे श्री भाष्कर खुल्बे ने डाक विभाग की इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि इससे  राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जीआई उत्पादों को नई पहचान मिलेगी। जीआई उत्पाद ‘आत्मनिर्भर भारत’ की संकल्पना को साकार करते हुए वैश्विक स्तर पर भी अपनी ब्रांडिंग बनाने में कामयाब हो रहे हैं और ‘लोकल’ से ‘ग्लोबल’ की अवधारणा को फलीभूत कर रहे हैं। जीआई सिर्फ भौगोलिक संकेतक मात्र नहीं बल्कि ‘गिफ्ट फ्रॉम इंडिया’ भी हैं।वाराणसी डाक क्षेत्र देश भर में जी. आई. उत्पादों पर सबसे ज्यादा विशेष आवरण जारी करके अग्रणी रहा है। श्री खुल्बे ने कहा कि जीआई उत्पादों को डाक विभाग के माध्यम से सीधे उत्पादकों से लेकर उपभोक्ताओं तक डाकिया द्वारा पहुँचाया जा रहा है। इससे अर्थव्यवस्था को भी काफी फायदा होगा। स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने जिस तरह से जीआई उत्पादों को आगे बढ़ाने की पहल की है, उससे इसे ‘वोकल फ़ॉर लोकल’ और ‘लोकल टू ग्लोबल’ रूप में नए आयाम मिल रहे हैं।  पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि वाराणसी के जीआई उत्पाद विश्व भर में अनोखी पहचान रखते हैं और इस कला को यहाँ के कारीगरों ने पुश्त दर पुश्त सदियों से सहेज रखा है। इन विशेष आवरण (लिफाफों) के माध्यम से बनारस की पारम्परिक हस्तशिल्प, कारीगरी और यहाँ की संस्कृति देश -विदेश में प्रचार-प्रसार पायेगी। श्री यादव ने कहा कि इससे पूर्व भी वाराणसी जिले से संबंधित 06 जीआई उत्पादों – बनारस ब्रोकेड और साड़ी, बनारस गुलाबी मीनाकारी क्रॉफ्ट, वाराणसी सॉफ्ट स्टोन जाली वर्क, वाराणसी लकड़ी के लाख और खिलौने, बनारस मेटल रिपोज क्रॉफ्ट और वाराणसी ग्लास बीड्स पर विशेष आवरण और विशेष विरूपण जारी किया जा चुका है। चूँकि डाक विभाग की पहुँच सर्वत्र है, ऐसे में इसके माध्यम से जीआई उत्पाद भी घर-घर पहुंच सकेंगे। इंटरनेशनल बिजनेस सेंटर के माध्यम से जहाँ जीआई उत्पाद विदेशों में भेजे जा रहे हैं, वहीं अब पार्सल पैकेजिंग यूनिट की स्थापना कर इनका प्रेषण और भी सुचारू बनाया जा रहा है। जीआई एक्सपर्ट पद्मश्री डॉ. रजनीकांत ने कहा कि एक भूक्षेत्र में सर्वाधिक जीआई का रिकार्ड भी वाराणसी के नाम है। उत्तर प्रदेश के 34 में से 18 जीआई उत्पाद वाराणसी और इसके आसपास के जिलों से हैं, जिनका सालाना कारोबार करीब 22,500 करोड़ रूपये का है। जीआई उत्पादों से वाराणसी और आसपास के लगभग 20 लाख कारीगर जुड़े हुए हैं। अभी वाराणसी के 10 और उत्पादों को जीआई टैग मिलने की प्रक्रिया चल रही है। आने वाले दिनों में बनारस के एग्रो उत्पाद, हॉर्टिकल्चर उत्पाद, विशिष्ट चावल और मिठाईयों को भी जीआई टैग दिलवाने का प्रयास जारी है। इस अवसर पर वाराणसी पूर्व मंडल के प्रवर अधीक्षक डाकघर राजन, सीनियर पोस्ट मास्टर चंद्रशेखर सिंह बरुआ, सहायक निदेशक ब्रजेश शर्मा, सहायक अधीक्षक एसके चौधरी, आरके चौहान, पंकज श्रीवास्तव, अजय कुमार, सुरेश चन्द्र, नरेश बारा सहित डाक विभाग के तमाम अधिकारी-कर्मचारीगण, जीआई उत्पाद से जुड़े कारीगर और विशेषज्ञ इत्यादि उपस्थित रहे।

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आर्टिफिशियल इंटे‍लीजेंस भारत में सड़कों को गाड़ी चलाने के लिए सुरक्षित बनाएगा

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) प्रेरित समाधान जल्द ही भारत में सड़कों को गाड़ी चलाने के लिए एक सुरक्षित स्थान बना सकते हैं। एक अद्वितीय एआई दृष्टिकोण जो सड़क पर जोखिमों की पहचान करने के लिए एआई की भविष्यसूचक शक्ति का उपयोग करता है और सड़क सुरक्षा से संबंधित कई सुधार करने के लिए ड्राइवरों को समय पर सावधान करने के लिए टकराव चेतावनी प्रणाली का उपयोग करता है, उसे दुर्घटनाओं में उल्लेखनीय कमी लाने के उद्देश्य से नागपुर शहर में लागू किया जा रहा है।

नागपुर में प्रोजेक्ट ‘इंटेलिजेंट सॉल्यूशंस फॉर रोड सेफ्टी थ्रू टेक्नोलॉजी एंड इंजीनियरिंग’ (आईआरएएसटीई) वाहन चलाते समय संभावित दुर्घटना का कारण बनने वाले परिदृश्यों की पहचान करेगा और एडवांस ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम (एडीएएस) की मदद से ड्राइवरों को इसके बारे में सावधान करेगा। पूरे सड़क नेटवर्क पर लगातार गतिशील जोखिमों की निगरानी करके डेटा विश्लेषण और गतिशीलता विश्लेषण द्वारा ‘ग्रेस्पॉट्स’ की पहचान भी करेगा। ग्रेस्पॉट सड़कों पर ऐसे स्थान हैं, जिन पर ध्यान नहीं दिया गया वे ब्लैकस्पॉट (घातक दुर्घटनाओं वाले स्थान) बन सकते हैं। यह प्रणाली सड़कों की लगातार निगरानी करती है और डिजाइन इंजीनियरिंग निवारक रख-रखाव तथा बेहतर सड़क बुनियादी ढांचे के लिए सड़क पर मौजूदा ब्लैकस्पॉट को ठीक रखती है। आईआरएएसटीई परियोजना टेक्नोलॉजी वर्टिकल- डेटा बैंक और डेटा सेवाओं में प्रौद्योगिकी क्षेत्र के एक नवाचार हब (टीआईएच) आई-हब फाउंडेशन, आईआईआईटी हैदराबाद के अधीन है जो आईएनएआई (एप्लाइड एआई रिसर्च इंस्टीट्यूट) के साथ इंटरडिसिप्लिनरी साइबर फिजिकल सिस्टम्स (एनएम-आईसीपीएस) पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा समर्थित इसके राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत है। परियोजना संघ में सीएसआईआर-सीआरआरआई और नागपुर नगर निगम शामिल हैं, जिसमें महिंद्रा और इंटेल उद्योग भागीदार हैं।

wps1 हब व्यापक डेटा-संचालित प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ देश भर में इसके प्रसार और रुपांतरण में बुनियादी और प्रायौगिक अनुसंधान को समन्वित, एकीकृत और बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। प्राथमिक उद्देश्यों में से एक शोधकर्ताओं, स्टार्टअप और उद्योग, मुख्य रूप से स्मार्ट मोबिलिटी, हेल्थकेयर के साथ-साथ स्मार्ट बिल्डिंग के क्षेत्रों में भविष्य के उपयोग के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन तैयार करना है। जो बात आईआरएएसटीई परियोजना को और भी अद्वितीय बनाती है वह यह है कि एआई और प्रौद्योगिकी को भारतीय परिस्थितियों के लिए एक ब्‍‍लूप्रिंट के रूप में व्यावहारिक समाधान बनाने के लिए लागू किया जा रहा है। जबकि आईआरएएसटीई प्रारंभ में नागपुर में उपलब्‍‍ध है, अंतिम लक्ष्य अन्य शहरों में इसे दोहराना है। वर्तमान में, उन बसों के बेड़े के लिए प्रौद्योगिकी को अपनाने की तेलंगाना सरकार के साथ बातचीत चल रही है जो राजमार्गों पर चलती हैं। आईआरएएसटीई के दायरे को गोवा और गुजरात में भी विस्तारित करने की योजना है। आई-हब फाउंडेशन ने मोबिलिटी क्षेत्र में कई अन्य डेटा-संचालित तकनीकी समाधानों के लिए मशीन लर्निंग, कंप्यूटर विज़न और कम्प्यूटेशनल सेंसिंग से लेकर तकनीकों का भी उपयोग किया है। ऐसा ही एक समाधान इंडिया ड्राइविंग डेटासेट (आईडीडी) है, जो भारतीय सड़कों के अव्‍‍यवस्थित वातावरण में सड़क के दृश्य को समझने के लिए एक डेटासेट है, जो अच्छी तरह से वर्णित बुनियादी ढांचे की दुनिया भर की धारणाओं जैसे कि गलियाँ, सीमित ट्रैफिक प्रतिभागी, वस्तु या पृष्ठभूमि की उपस्थिति में कम भिन्नता और ट्रैफिक नियमों के मजबूत पालन से स्‍पष्‍ट होता है। डेटासेट, अपनी तरह का पहला है, जिसमें 10,000 चित्र शामिल हैं, जिसकी हैदराबाद, बैंगलोर और उनके बाहरी इलाके में चल रही एक कार से जुड़े फ्रंट-फेसिंग कैमरे से प्राप्त भारतीय सड़कों पर 182 सड़क श्रेणियों से एकत्र 34 वर्गों के साथ बारीकी से व्‍याख्‍या की गई है। सार्वजनिक लाइसेंस के तहत अप्रतिबंधित उपयोग के लिए सार्वजनिक डोमेन में डेटासेट जारी किया गया है और भारतीय सड़क दृश्यों पर सभी विश्लेषण के लिए एक वास्तविक डेटासेट बन रहा है। वर्तमान में, दुनिया भर में इस डेटासेट के लिए 5000 से अधिक पंजीकृत उपयोगकर्ता हैं। ओपन वर्ल्ड ऑब्जेक्ट डिटेक्शन ऑन रोड सीन (ओआरडीईआर) नामक एक अन्य डेटासेट को भी इंडिया ड्राइविंग डेटासेट का उपयोग करके विकसित किया गया है जिसका उपयोग भारत की ड्राइविंग स्थितियों में स्वायत्त नेविगेशन प्रणाली द्वारा सड़क दृश्य में वस्‍‍तु के स्थानीयकरण और वर्गीकरण के लिए किया जा सकता है। इसके अलावा, एक मोबिलिटी कार डेटा प्लेटफ़ॉर्म (एमसीडीपी) को कई सेंसरों के साथ डिज़ाइन किया गया है – कैमरा, एलआईडीएआर, किसी को भी कार के बारे में डेटा लेने या प्रोसेस करने के लिए आवश्यक गणना के साथ, जो भारत में शोधकर्ताओं और स्टार्ट-अप को उनके ऑटोमोटिव एल्गोरिदम और नेविगेशन तथा भारतीय सड़कों पर शोध में दृष्टिकोण का परीक्षण करने में मदद कर सकता है। लेन रोडनेट (एलआरनेट), एक एकीकृत तंत्र के साथ एक नया ढांचा है, जिसमें गहरे अध्‍‍ययन का उपयोग करते हुए लेन और सड़क के मापदंडों पर विचार किया गया है, जिसे भारतीय सड़कों की समस्याओं को दूर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसमें कई बाधाएं हैं, बंद लेन के निशान, टूटे हुए डिवाइडर, दरारें, गड्ढे आदि हैं जो गाड़ी चलाते समय ड्राइवर के लिए काफी जोखिम खड़े करते हैं। इस ढांचे में, एक मॉड्यूलर स्कोरिंग फ़ंक्शन की मदद से एक सड़क गुणवत्ता स्कोर की गणना की जाती है। फाइनल स्कोर अधिकारियों को सड़क की गुणवत्ता का आकलन करने और सड़क के रख-रखाव कार्यक्रम को प्राथमिकता देने में मदद करता है ताकि ड्राइवर को गाड़ी चलाने के लिए सुधरी हुई स्थितियां मिल सकें। जिन सड़कों पर वृक्ष नहीं हैं वहां उपयुक्त कायाकल्प विधियों को प्रयोग में लाकर स्थानीय स्व-सरकारी संस्थानों की मदद के लिए, आई-हब फाउंडेशन ने सड़क पर पेड़ का पता लगाने, गणना और कल्पना के लिए एक रूपरेखा तैयार की है जो ऑब्जेक्ट डिटेक्टरों और एक मैचिंग काउंटिंग एल्गोरिदम का उपयोग करती है। इस कार्य ने पेड़ों की कमी वाली सड़कों को पहचानने का त्वरित, सटीक और सस्ते तरीके का पता लगाने का मार्ग प्रशस्त किया है ।

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राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय महिला विधायक सम्मेलन-2022 का उद्घाटन किया

राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविंद ने तिरुवनंतपुरम में राष्ट्रीय महिला विधायक सम्मेलन-2022 का उद्घाटन किया। सम्मेलन का आयोजन केरल विधानसभा ने ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के अंतर्गत किया है। सभा को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है, जब राष्ट्र स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी कर रहा है। ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के अंतर्गत हम पिछले एक साल से अधिक समय से स्मारक कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। विभिन्न समारोहों में लोगों की उत्साहपूर्ण भागीदारी, अतीत से जुड़ने और अपने हित में, हमारे गणतंत्र की नींव को फिर से खोजने के उनके उत्साह को दर्शाती है। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की गाथा में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक शोषक औपनिवेशिक शासन की बेड़ियों से आजाद होने के भारत के प्रयास बहुत पहले ही शुरू हो गए थे, और सबसे पहले 1857 में हमें इसकी अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। 19वीं सदी के मध्य के समय में भी, जबकि दूसरी ओर केवल पुरुष थे, भारतीय पक्ष में कई महिलाएं शामिल थीं। रानी लक्ष्मीबाई उनमें से सबसे उल्लेखनीय थीं, लेकिन उनके जैसी कई और भी थीं, जो अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ बहादुरी से लड़ रही थीं। गांधी जी के नेतृत्व वाले ‘असहयोग आंदोलन से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन’ तक कई सत्याग्रह अभियान चलाए गए, जिनमें महिलाओं की व्यापक भागीदारी थी। पहली महिला सत्याग्रहियों में कस्तूरबा शामिल थीं। जब गांधीजी को गिरफ्तार किया गया, तो उन्होंने दांडी तक के नमक मार्च का नेतृत्व सरोजिनी नायडू को सौंपने का फैसला किया। कमलादेवी चट्टोपाध्याय चुनाव लड़ने वाली देश की पहली महिला थीं। राष्ट्रपति ने मैडम भीकाजी कामा के साहसपूर्ण बलिदान और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में इंडियन नेशनल आर्मी की कैप्टन लक्ष्मी सहगल और उनकी सहयोगियों के योगदान को भी याद किया। उन्होंने कहा कि जब हम राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी का उदाहरण देते हैं, तो प्रेरणा देने वाले बहुत से नाम दिमाग में आते हैं, लेकिन उनमें से कुछ का ही उल्लेख कर पाते हैं। अपने सभी वयस्क नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के सार्वभौमिक मताधिकार प्रदान करने की भारत की उपलब्धि के बारे में बताते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे दुनिया के सबसे पुराने आधुनिक लोकतंत्र में भी महिलाओं को देश की स्वतंत्रता की एक सदी के बाद तक वोट का अधिकार प्राप्त करने का इंतजार करना पड़ा। यूनाइटेड किंगडम में रहने वाली उनकी बहनों ने भी लगभग उतना ही लंबा इंतजार किया। इसके बाद भी, यूरोप के कई आर्थिक रूप से उन्नत देशों में महिलाओं को मतदान का अधिकार नहीं दिया गया। लेकिन भारत में ऐसा समय कभी नहीं आया जब पुरुषों को मताधिकार मिला हो, और महिलाओं को नहीं। इससे दो बातें सिद्ध होती हैं। पहली, कि हमारे संविधान निर्माताओं का  लोकतंत्र में और जनता के विवेक में गहरा विश्वास था। वे प्रत्येक नागरिक को एक नागरिक के तौर पर मानते थे, न कि एक महिला या किसी जाति और जनजाति के सदस्य के रूप में, और वह मानते थे कि हमारे समन्वित भविष्य को आकार देने में उनमें से हर एक की आवाज सुनी जानी चाहिए। दूसरा, प्राचीन काल से ही इस धरती ने स्त्री और पुरुष को समान माना है- निस्संदेह एक दूसरे के बिना अधूरे। राष्ट्रपति ने कहा कि महिलाएं एक के बाद एक विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति कर रही हैं। नवीनतम है, सशस्त्र बलों में उनकी बढ़ती भूमिका। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित और प्रबंधन के पारंपरिक रूप से पुरुषों के गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रों में भी, जिन्हें एसटीईएमएम कहा जाता है, उनकी संख्या बढ़ रही है। कोरोना संकट के समय में जिन लोगों ने आगे बढ़कर राष्ट्र के लोगों की सुरक्षा का जिम्मा उठाया, उन योद्धाओं में भी पुरुषों से ज्यादा महिलाएं ही रही होंगी। उन्होंने कहा कि जब स्वास्थ्य क्षेत्र में सेवा करने वाले लोगों की बात आती है तो केरल ने हमेशा अपनी ओर से अधिक से अधिक योगदान दिया और इस राज्य की महिलाओं ने संकट की इस अवधि के दौरान व्यक्तिगत जोखिम उठा कर भी निस्वार्थ सेवा का उदाहरण स्थापित किया है। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश की लगभग आधी आबादी महिलाओं की है, ऐसे में इस तरह की उपलब्धियां हासिल करना उनके लिए स्वाभाविक होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। हमें यह स्वीकार करना होगा कि वे हमारे समाज में बहुत गहरी पैंठ बनाए बैठे  सामाजिक पूर्वाग्रहों का शिकार हैं। देश के कार्यबल में उनका अनुपात उनकी क्षमता के मुकाबले कुछ नहीं है। यह दुखद स्थिति, निश्चित रूप से पूरे विश्व में व्याप्त है। उन्होंने कहा कि भारत में तो कम से कम एक महिला प्रधानमंत्री हुई हैं और राष्ट्रपति भवन में भी उनके प्रतिष्ठित पूर्ववर्तियों में से एक महिला थीं, जबकि कई देशों में अभी तक कोई महिला राज्य या सरकार की प्रमुख नहीं रही हैं। उन्होंने कहा कि किसी मुद्दे को वैश्विक परिदृश्य में देखने से हमें यह महसूस करने में मदद मिलती है कि हमारे सामने चुनौती मानसिकता को बदलने की है- यह एक ऐसा कार्य है, जो बिल्कुल भी आसान नहीं है। इसमें अपार धैर्य और समय की जरूरत है। हम निश्चित रूप से इस तथ्य से राहत महसूस कर सकते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन ने भारत में लैंगिक समानता के लिए एक ठोस नींव रखी, कि हमने एक महान शुरुआत की थी और हम एक लंबा सफर तय कर चुके हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि अब यह मानसिकता बदलनी शुरू हो गई है, और लैंगिक संवेदनशीलता- तीसरे लिंग और अन्य लिंग की पहचानों सहित तेजी से आगे बढ़ रही है। सरकार भी ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ जैसी केंद्रित पहलों के साथ इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देने की पूरी कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि दशकों से केरल राज्य महिलाओं की तरक्की की राह में आने वाली बाधाओं को दूर कर एक शानदार उदाहरण पेश करता रहा है। राज्य की आबादी की उच्च स्तरीय संवेदनशीलता के चलते राज्य ने महिलाओं को स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अपनी क्षमता हासिल करने में मदद करने के लिए नए रास्ते तैयार किए हैं। यह वह भूमि है जिसने भारत को सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश, न्यायमूर्ति एम. फातिमा बीवी दीं। यही वजह है कि केरल आज राष्ट्रीय महिला विधायक सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है। राष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त किया कि ‘लोकतंत्र की ताकत’ के अंतर्गत आयोजित यह राष्ट्रीय सम्मेलन एक बड़ी सफलता हासिल करेगा। उन्होंने इस सम्मेलन का आयोजन करने के लिए केरल विधानसभा और उसके सचिवालय को बधाई दी।

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संस्कृति और विदेश राज्य मंत्री  मीनाक्षी लेखी ने ब्रिक्स संस्कृति मंत्रियों की 7वीं बैठक में भाग लिया

संस्कृति और विदेश राज्य मंत्री  मीनाक्षी लेखी ने ब्रिक्स संस्कृति मंत्रियों की 7वीं बैठक में भाग लिया। इस बैठक को चीन गणराज्य द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आयोजित किया गया था।

ब्रिक्स देशों के बीच सांस्कृतिक गतिविधियों की प्रगति और विस्तार के लिए “ब्रिक्स के बीच समावेश और आपस में ज्ञान का साझा करने वाली सांस्कृतिक साझेदारी स्थापित करने” के थीम पर इस बैठक में चर्चा हुई। चर्चा का मुख्य फोकस क्षेत्र में सांस्कृतिक डिजिटलीकरण पर विकास और सहयोग को बढ़ावा देना, सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण पर सहयोग को मजबूत करना और ब्रिक्स देशों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान प्लेटफार्मों के निर्माण को आगे बढ़ाना था। मंत्रियों ने सांस्कृतिक सहयोग को और मजबूत करने और 2015 में हस्ताक्षरित ब्रिक्स सांस्कृतिक सहयोग समझौते को लागू करने के लिए ब्रिक्स कार्य योजना 2022-2026 को अपनाया।

श्रीमती मीनाक्षी लेखी ने भारत का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और अपने संबोधन में निम्नलिखित बिंदुओं को सामने रखा:

(i)            भारत अपनी विविध सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के साथ संगीत, रंगमंच, कठपुतली का खेल, विभिन्न आदिवासी कला और नृत्य के विशेष रूप से शास्त्रीय और लोक क्षेत्र में आदान-प्रदान कार्यक्रमों/गतिविधियों के माध्यम से ब्रिक्स देशों को सांस्कृतिक मूल्यों से परिचित कराने के लिए एक मंच प्रदान करना सुनिश्चित करता है।

(ii)           कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के कारण पिछले ढाई साल के दौरान फीजिकल मूवमेंट संभव नहीं हो पाया है। इसके बावजूद संस्कृति सहित सभी मोर्चों पर जीवन को आगे बढ़ाने में डिजिटल प्रौद्योगिकियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

(iii)          सांस्कृतिक विरासत के क्षेत्र में मूल्यवान संग्रह को डिजिटाइज करना और उन्हें खुले सूचना स्थान में प्रस्तुत करना भारत की प्राथमिकता है क्योंकि यह संग्रहालयों और पुस्तकालयों जैसे सांस्कृतिक संस्थानों में संग्रहीत सांस्कृतिक सामग्री के लिए लंबी अवधि के लिए संग्रहण और व्यापक पहुंच प्रदान करता है। ब्रिक्स देशों की आभासी प्रदर्शनियों के माध्यम से ब्रिक्स देशों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का पता लगाया जा सकता है।

(iv)         भारत सांस्कृतिक विरासत और इन्टर्कल्चरल डायलग की विविधता में विश्वास करता है। यह पर्यावरण संबंधी चिंताओं के लिए नवीन और संस्कृति-आधारित समाधानों में विरासत और पारंपरिक ज्ञान को एकीकृत करने वाले स्थायी और लचीले पर्यावरण की पुरजोर वकालत करता है।

(v)          भारत की कला अपनी समृद्ध विरासत और अपने आधुनिक इतिहास का एक मिश्रण है। इसने निस्संदेह भारत को एक सक्रिय और रचनात्मक इकाई के रूप में स्थापित किया है जो आज कला जगत का एक अभिन्न अंग है।

(vi)         आज की पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों के आलोक में, समावेशी और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील विकास प्रतिमानों की दिशा में काम करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। समय की मांग एक रोडमैप है जो सांस्कृतिक विरासत, सांस्कृतिक और रचनात्मक उद्योगों और लोगों की सहज कल्पना और सामूहिक बुद्धि की समझ को एकीकृत करना चाहिए।

उन्होंने अध्यक्ष को धन्यवाद दिया और सभी क्षेत्रों में प्रगतिशील और व्यापक ब्रिक्स सहयोग की कामना की।

बैठक के अंत में, ब्रिक्स राज्यों की सरकारों के बीच संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग (2022-2026) के बीच समझौते के कार्यान्वयन के लिए कार्य योजना पर सहमति हुई और सभी ब्रिक्स राष्ट्रों के संस्कृति मंत्रियों द्वारा हस्ताक्षर किए गए।

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प्रधानमंत्री मोदी की जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के साथ द्विपक्षीय बैठक

प्रधानमंत्री मोदी ने आज जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के साथ द्विपक्षीय बैठक की। प्रधानमंत्री श्री किशिदा ने प्रधानमंत्री श्री मोदी के सम्मान में रात्रिभोज का भी आयोजन किया। दोनों प्रधानमंत्रियों ने विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के साथ-साथ कुछ क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर सार्थक विचार विमर्श किया।

दोनों नेता रक्षा उत्पादन सहित द्विपक्षीय सुरक्षा एवं रक्षा सहयोग को और आगे बढ़ाने पर सहमत हुए। दोनों नेताओं ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि अगली 2+2 विदेश एवं रक्षा मंत्री स्तर की बैठक शीघ्र ही जापान में आयोजित की जा सकती है।

दोनों नेताओं ने दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों की सराहना की। वे इस बात पर सहमत हुए कि दोनों पक्षों को अगले पांच वर्षों में जापान की ओर से भारत में 5 ट्रिलियन येन के सार्वजनिक एवं निजी निवेश और वित्त पोषण से संबंधित अपने निर्णय को लागू करने की दिशा में संयुक्त रूप से काम करना चाहिए। प्रधानमंत्री ने गतिशक्ति पहल के माध्यम से व्यवसाय करने में आसानी और लॉजिस्टिक्स में सुधार के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों पर प्रकाश डाला और प्रधानमंत्री श्री किशिदा से भारत में जापानी कंपनियों द्वारा अधिक से अधिक निवेश का समर्थन करने का आग्रह किया। इस किस्म के निवेश से सशक्त आपूर्ति श्रृंखलाओं के निर्माण में मदद मिलेगी और यह पारस्परिक रूप से लाभकारी होगा। इस संदर्भ में, प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इस बात की सराहना की कि जापानी कंपनियां भारत में अपना निवेश बढ़ा रही हैं और 24 जापानी कंपनियों ने विभिन्न पीएलआई योजनाओं के तहत सफलतापूर्वक आवेदन किया है।

दोनों नेताओं ने मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल (एमएएचएसआर) परियोजना के कार्यान्वयन में हुई प्रगति को रेखांकित किया और इस परियोजना के लिए तीसरी किश्त ऋण के एक्सचेंज ऑफ नोट पर हस्ताक्षर किए जाने का स्वागत किया। दोनों नेताओं ने सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों के बढ़ते महत्व पर प्रकाश डाला और इस संबंध में अगली पीढ़ी की संचार प्रौद्योगिकियों के विकास में दोनों पक्षों के निजी क्षेत्रों के बीच अधिक सहयोग को प्रोत्साहित करने पर सहमत हुए। उन्होंने 5जी, बियॉन्ड 5जी और सेमीकंडक्टर्स जैसी महत्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों में सहयोग की संभावनाओं पर भी चर्चा की। दोनों प्रधानमंत्रियों ने हरित हाइड्रोजन सहित स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में गहरे सहयोग पर भी सहमति व्यक्त की तथा इस संबंध में दोनों देशों के व्यापारिक संस्थानों के बीच और अधिक पारस्परिक सहयोग को प्रोत्साहित किया।

दोनों नेताओं ने दोनों देशों के लोगों के बीच पारस्परिक जुड़ाव को और बढ़ावा देने पर सहमति जताई। प्रधानमंत्री श्री किशिदा ने कहा कि इस तरह के जुड़ाव को द्विपक्षीय संबंधों की रीढ़ होना चाहिए। इस संबंध में, दोनों नेताओं ने निर्दिष्ट कुशल श्रमिक (एसएसडब्ल्यू) कार्यक्रम के कार्यान्वयन में प्रगति पर गौर किया और इस कार्यक्रम को और आगे बढ़ाने पर सहमत हुए। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कोवैक्सिन और कोविशील्ड के टीकाकरण का प्रमाण-पत्र लेकर जाने वाले भारत के यात्रियों के लिए जापान में क्वारंटीन मुक्त प्रवेश की सुविधा हेतु यात्रा प्रतिबंधों में और अधिक ढील देने का मुद्दा उठाया। दोनों नेताओं ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि भारत-जापान एक्ट ईस्ट फोरम भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता देने की दृष्टि से उपयोगी है और इसके वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों पक्षों द्वारा चिन्हित की गई विभिन्न परियोजनाओं के शीघ्र कार्यान्वयन की उम्मीद जताई।

दोनों नेताओं ने हाल के वैश्विक और क्षेत्रीय घटनाक्रमों पर विचार विमर्श किया। उन्होंने हिंद-प्रशांत से संबंधित अपने-अपने दृष्टिकोण में समानता को रेखांकित किया और एक स्वतंत्र, खुले व समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया। इस संदर्भ में, उन्होंने क्वाड के समकालीन और रचनात्मक एजेंडा जैसे कि टीके, छात्रवृत्ति, महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों और बुनियादी ढांचे के मामले में हुई प्रगति का स्वागत किया।

प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इस यात्रा के दौरान उन्हें और उनके प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को दिए गए गर्मजोशी भरे आतिथ्य के लिए प्रधानमंत्री श्री किशिदा का धन्यवाद किया। प्रधानमंत्री श्री किशिदा ने अगले वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी को जापान आने का निमंत्रण दिया, जिसे सहर्ष स्वीकार कर लिया गया।

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जिलाधिकारी की अध्यक्षता मे कलेक्ट्रेट सभागार में उद्योग बन्धु की बैठक सम्पन्न

कानपुर 25 मई भारतीय स्वरूप संवाददाता, जिलाधिकारी की अध्यक्षता में आज कलेक्ट्रेट सभागार में उद्योग बन्धु की बैठक सम्पन्न हुई । बैठक में उन्होंने समस्त सम्बंधित अधिकारियों को स्पस्ट निर्देश देते हुए कहा कि समस्त संबंधित अधिकारी स्वयं बैठक में उपस्थित हूं अपनी प्रतिनिधि को बैठक में ना भेजें । उन्होंने कहा कि उधमियों की आने वाली समस्याओं का त्वरित निस्तारण सुनिश्चित कराया जाए । उधमियों को किसी प्रकार की कोई समस्या नही होने चाहिए । औधोगिक इकाइयों में सफाई कर्मियों द्वारा सफाई कराई जाती रहे । जहां पर सफाई कर्मचारी नही है वहा सफाई कर्मचारी की तैनाती की जाए। औद्योगिक क्षेत्र में ट्रकों के आवागमन हेतु बैठक कर व्यवस्था सुनिश्चित कराने के निर्देश दिए ताकि औद्योगिक इकाइयों को किसी प्रकार की समस्या ना हो। बैठक में अपर जिलाधिकारी नगर श्री अतुल कुमार डीसी डीआईसी श्री सुधीर कुमार , श्री सुरेंद्र सिंह समेत उद्यमी उपस्थित रहे।

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मैडम सर’ ने 500 शानदार एपिसोड्स पूरे किए, शो के कलाकारों ने मनाया इस उपलब्धि का जश्‍न!

‘मैडम सर’ ने 500 शानदार एपिसोड्स पूरे किए, शो के कलाकारों ने अपने अंदाज में मनाया इस उपलब्धि का जश्‍न!

सोनी सब के शो ‘मैडम सर’ ने सफलतापूर्वक 500 एपिसोड पूरे कर लिए हैं। यही वह समय है कि भारत की सबसे चहेती महिला पुलिस अधिकारियों के लिये हम सब जमकर ताली बजाएं। दो साल पहले अपने लॉन्‍च के बाद से ही, इस शो ने महिलाओं के नेतृत्‍व वाले मजबूत किरदारों और सोच-विचार कर बनाई गईं कहानियों एवं प्‍लॉट के साथ दर्शकों को काफी लुभाया है। इस शो में एसएचओ हसीना मलिक (गुल्‍की जोशी), करिश्‍मा सिंह (युक्ति कपूर), संतोष (भाविका शर्मा), पुष्‍पा सिंह (सोनाली नाईक) और चीता चतुर्वेदी (प्रियांशु सिंह) मुख्‍य भूमिकाएं निभा रहे हैं। शो में बड़े आत्‍मविश्‍वास और बेहतरीन तरीके से एक महिला पुलिस थाने को संभालने में रोजाना आने वाली चुनौतियाँ दिखाई गई हैं। इसके किरदारों ने अजीब से अजीब मामलों को पूरे ‘जज्‍बात’ के साथ और सबसे अभिनव तरीकों से सुलझाया है। पिछले 500 एपिसोड्स में ‘मैडम सर’ ने अनगिनत सामयिक विषयों और निजी अनुभवों को छुआ है, जो ऐसी लड़कियों के लिये प्रेरक हैं, जिन्‍हें अपने काम में महारथ पाने और उसे सहजता से करने की आकांक्षा है। महिला सशक्तिकरण से लेकर, दबंगई, सामाजिक रूढि़यों, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य, आदि तक इस शो ने प्रासंगिक मुद्दों को ऐसी कहानियों के जरिए दिखाया है जोकि एक सकारात्‍मक एवं महत्‍वपूर्ण असर पैदा करने के लिए समाधान प्रदान करती हैं। आज हासिल हुई उपलब्धि के साथ ‘मैडम सर’ नये रास्‍तों पर बढ़ने के लिये तैयार है, और यह दर्शकों को बांधकर रखने की कोशिश करता रहेगा।  इस उपलब्धि पर अपनी बात रखते हुए, हसीना मलिक की भूमिका निभा रहीं गुल्‍की जोशी ने कहा, “मुझे ‘मैडम सर’ का हिस्‍सा बनकर बहुत गर्व और खुशी है, क्‍योंकि यह शो समस्‍याओं को हल करने की नई-नई विधियों से दयालुता और हास्‍य के भाव को फैलाता है। एक एक्‍टर के तौर पर इसमें मैंने न केवल नये लुक्‍स और शख्सियतों को अपनाया, बल्कि परफॉर्मेंस के मामले में भी मेरा दायरा बढ़ा। हमारे शो को दर्शकों से अब तक मिली प्रतिक्रिया काफी संतोषजनक रही है और हम आगे और भी ज्‍यादा एडवेंचर्स लाकर दर्शकों का मनोरंजन जारी रखना चाहते हैं। 500 एपिसोड्स पूरे करने और यह बेजोड़ उपलब्धि हासिल करने के लिये पूरी टीम को शाबाशी मिलनी चाहिये। यह ‘मैडम सर’ की यात्रा में एक नये अध्‍याय की शुरूआत है।‘’ करिश्‍मा सिंह की भूमिका निभा रहीं युक्ति कपूर ने कहा, “मैं 500 शानदार एपिसोड्स पूरे होने पर पूरे दिल से हमारी टीम को बधाई देना चाहती हूँ। यह उपलब्धि हासिल करने का अनुभव सपने जैसा लग रहा है और यह हमारी उस कड़ी मेहनत को दिखाता है, जो इस कहानी को पर्दे पर जीवंत करने में लगी है। इस शो ने हमें एक्‍टर के तौर पर कई बारीकियाँ जानने का मौका दिया और इसके नेरेटिव भी आधुनिक समय के हैं। ऐसे बेहतरीन कलाकारों और क्रू के साथ काम करना मैं अपना सौभाग्‍य मानती हूँ, जिन्‍होंने हमेशा मेरा साथ दिया। मैं ऐसी और भी उपलब्धियों की कामना करती हूँ।” संतोष की भूमिका निभा रहीं भाविका शर्मा ने कहा, “इतनी बड़ी उपलब्धि का हिस्‍सा बनकर मैं बहुत खुश और आभारी हूँ। एक शो को इतने लंबे समय तक चलाना और दर्शकों के लिये प्रासंगिक बनाये रखना कठिन है, लेकिन ‘मैडम सर’ ने कौतुहल पैदा करने और मनोरंजन देने वाली कहानियों के साथ एक बदलाव करके दिखाया है। एक टीम के तौर पर हमने इस शो को सफल बनाने के लिये बड़ी कोशिश की है और मैं दर्शकों से आग्रह करती हूँ कि वे हमें अपना प्‍यार और सहयोग लगातार देते रहें।” देखते रहिये ‘मैडम सर’, सोमवार से शनिवार रात 10 बजे, सिर्फ सोनी सब पर!

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हर साल बिजली का संकट

हर साल की तरह इस साल भी गर्मी ने लोगों को बुरी तरह परेशान कर रखा है ऐसे में बिजली कटौती लोगों का जीना दुश्वार कर रही है। इस भीषण गर्मी के बीच देश में गंभीर बिजली संकट पैदा हो गया है। मांग के अनुपात में बिजली नहीं मिल पा रही है। बारह राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, झारखंड, उत्तराखंड, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश गंभीर बिजली संकट से जूझ रहे हैं। कोयले की कमी के कारण उत्पन्न हुआ यह संकट कोई पहली बार नहीं है। पिछले साल भी यह संकट गहराया था लेकिन इस बार बिजली की किल्लत कुछ ज्यादा ही महसूस की जा रही है। कई राज्यों में बिजली कटौती की घोषणा कर दी गई है जिसकी वजह से आम जन परेशान हो गए हैं। चालू वित्त वर्ष में कोल इंडिया का बिजली कंपनियों को करीब 21.600 करोड़ रूपया बकाया था अब भी कोल इंडिया का बिजली कंपनियों पर 12,300 करोड़ों का बकाया है और बिजली का यह संकट कर्ज ना चुका पाने के कारण है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (सीईए) की डेली कोल स्टॉक रिपोर्ट के मुताबिक 165 थर्मल पावर स्टेशनों में से 56 में से 10 फ़ीसदी या उससे कम कोयला बचा है। कम से कम 26 के पास पांच फीसदी से भी कम स्टॉक है। दिल्ली के ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन के मुताबिक महत्वपूर्ण बिजली संयंत्रों के पास एक दिन से भी कम का कोयला बचा है। बिजली संकट का सबसे ज्यादा असर जलापूर्ति व्यवस्था पर संसाधनों पर पड़ा है बिजली कटौती से आम जनता को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा हैं। इसके अलावा अस्पताल और मेट्रो सेवाओं में बाधा उत्पन्न होगी सो अलग। बिजली संकट से जो स्थिति उत्पन्न हो गई है वो तकलीफ देने के लिए काफी है। वह भविष्य में आने वाले संकटों के लिए आगाह कर रही है और बारह राज्यों में बिजली कटौती का अर्थ यह नहीं है अन्य प्रदेश इस संकट से बचे हुए हैं। इस संकट की आहट उन्हें भी महसूस हो गई है। बिजली प्रबंधन के मामले में देश में बहुत लचर व्यवस्था चल रही है और इसी वजह से यह समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। लगभग हर साल यही सुनने में आता है कि एक-दो दिन की बिजली के लिए कोयला बचा है। लगभग सभी ताप बिजलीघर आधे से भी कम क्षमता पर चल रहे हैं। यदि कोयला समाप्ति पर है तो आगे की व्यवस्था, रखरखाव और मरम्मत किस प्रकार होगी? और सरकार इस अव्यवस्था को नजरअंदाज कर रही है। सरकार का ध्यान ग्रीन एनर्जी  की तरफ ज्यादा है।
अब वैकल्पिक ऊर्जा को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है और इसी वजह से परंपरागत ऊर्जा और वैकल्पिक ऊर्जा का सामंजस्य ठीक तरीके से नहीं हो पा रहा है। जिसके कारण बिजली संकट बढ़ते जा रहा है।
वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा जरूर दिया जा रहा है लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में जागरूकता और बहुत कार्य करने की जरूरत है साथ ही प्रबंधन व्यवस्था को सुधारना अति आवश्यक है यदि इनमें सुधार कर लिया गया तो संकट काफी हद तक दूर हो जाएगा। विभिन्न  सरकारें सब्सिडी या मुफ्त बिजली दे रही है लेकिन इस राशि का भुगतान विद्युत वितरण कंपनियों को नियमित रूप से नहीं कर रही है। बिजली संकट दूर करने के लिए प्रबंधन में सुधार अत्यावश्यक है।

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भ्रष्ट सरकारी तन्त्र को दुस्साहसी बनाने वाला शासनादेश -डॉ.दीपकुमार शुक्ल (स्वतन्त्र टिप्पणीकार)

लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के तहत हर पांच वर्ष में एक सरकार जाती है और दूसरी आती है| प्रत्येक सरकार सरकारी तन्त्र से सुचारू रूप से काम करवाने का न केवल संकल्प बार-बार दोहराती है बल्कि हर सम्भव प्रयास करती है कि प्रथम श्रेणी से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक के कर्मचारी अपने दायित्व का ईमानदारी पूर्वक निर्वाहन करें| लेकिन दुर्भाग्य कहें या विडम्बना कि जैसे जैसे लोकतान्त्रिक भारत की आयु बढ़ रही है वैसे वैसे सरकारी तन्त्र निकम्मा और नैतिक आचरण से हीन होता जा रहा है| किसी भी शिकायत या समस्या का संज्ञान लेकर उस पर कार्यवाही करने की अपेक्षा शिकायतकर्ता को विभिन्न माध्यमों से परेशान करके हतोत्साहित करना ही पूरे तन्त्र का एकमात्र उद्देश्य बन चुका है| इसके मूल में 9 मई 1997 को उत्तर प्रदेश शासन द्वारा जारी शासनादेश संख्या 13/1/97-का-1/1997 है| जो किसी भी अधिकारी के विरुद्ध की गयी शिकायत के परिप्रेक्ष्य में उसका पूर्ण रूपेण संरक्षण करता है| इस शासनादेश की भाषा इतनी सरल और भावपूर्ण है कि पूरा आदेश पढ़ने के बाद हर कोई इसे प्रथम दृष्टया उचित कहने में संकोच नहीं करेगा| परन्तु इसका व्यावहारिक पक्ष उतना ही जटिल और लोकतन्त्र को मुंह चिढ़ाने वाला है| यही वह शासनादेश है जिसके चलते सूचना अधिकार जैसा प्रभावी कानून मजाक बनकर रह गया है| सूचना आयुक्तों के यहाँ द्वितीय अपीलों की लम्बी श्रंखला का कारण यही शासनादेश है| यह वही शासनादेश है जिसके कारण प्रतिदिन उच्च अधिकारियों के कार्यालय से लेकर मुख्यमन्त्री के जनता दरबार तक अनगिनत फरियादियों की भीड़ जमा होती है| एक ही शिकायत के निस्तारण हेतु उच्च अधिकारियों से लेकर राष्ट्रपति तक को शिकायतकर्ताओं द्वारा पत्र-दर-पत्र प्रेषित किये जाते हैं| इसके बाद भी उनकी समस्या का समाधान नहीं होता है| वहीं जिस अधिकारी के विरुद्ध शिकायत की जाती है वह पूर्ण निर्भय होकर भ्रष्टाचार के निते नये कारनामे करता रहता है|

शासनादेश संख्या 13/1/97-का-1/1997, 9 मई 1997 को कार्मिक अनुभाग-1 उत्तर प्रदेश शासन के तत्कालीन विशेष सचिव के.एम.लाल की आज्ञा से सचिव जगजीत सिंह द्वारा प्रदेश के समस्त प्रमुख सचिवों/सचिवों, विभागाध्यक्षों/प्रमुख कार्यालयाध्यक्षों एवं सचिवालय के समस्त अनुभागों तथा सतर्कता विभाग के प्रमुख सचिव को प्रेषित किया गया था| “समूह ‘क’ (श्रेणी-1) के अधिकारियों के विरुद्ध प्राप्त शिकायती-पत्रों का निस्तारण” विषय वाले इस शासनादेश के अनुसार सामान्य व्यक्तियों से प्राप्त शिकायतों के सम्बन्ध में शिकायतकर्ता को शपथ-पत्र तथा शिकायत की पुष्टि हेतु समुचित साक्ष्य उपलब्ध कराने के साथ जाँच अधिकारी के समक्ष बयान देने हेतु प्रस्तुत होने का निर्देश दिया जाता है| इसके बाद जाँच की लम्बी प्रक्रिया कच्छप गति से आगे बढ़ती है| कहने को तो यह शासनादेश मात्र समूह ‘क’ (श्रेणी-1) के अधिकारियों के विरुद्ध प्राप्त शिकायतों के सन्दर्भ में है| परन्तु इसका इस्तेमाल न केवल हर छोटे-बड़े अधिकारी को बचाने में होता है बल्कि शिकायत के निस्तारण को लम्बित और प्रभावहीन बनाने में भी इसको ढाल और तलवार के रूप में प्रयुक्त किया जाता है| गम्भीर से गम्भीर मामले का शिकायती-पत्र प्रेषित करने के बाद प्रथम दृष्टया उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता| लम्बी प्रतीक्षा के बाद जब शिकायतकर्ता उच्च अधिकारियों को पत्र लिखता है या सूचना अधिकार का प्रयोग करता है| तब उसको इस शासनादेश का हवाला देते हुए शपथ-पत्र एवं साक्ष्यों सहित बयान देने हेतु जाँच अधिकारी के समक्ष पेश होने का निर्देश मिलता  है| अनेक मामलों में हर किसी के पास साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते और यदि हुए भी तो महीनों की समयावधि तक उन्हें सुरक्षित रख पाना मुश्किल होता है| इसके बाद पैसा तथा समय लगाकर शपथ-पत्र बनवाना और फिर बयान देने हेतु जाँच अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होना, सामान्य या रोज खाने-कमाने वाले व्यक्ति के लिए दुरूह कार्य जैसा है| कोई शिकायतकर्ता यदि साहस करके पूरी कवायद करता भी है तो उसे बयान के नाम पर उलझाने का प्रयास होता है| पहले एक अधिकारी बुलाता है फिर दूसरा बुलाता है| अवसर मिलते ही यह सिद्ध कर दिया जाता है कि शिकायतकर्ता की शिकायत के प्रति कोई रूचि नहीं है| इस बीच जिसके विरुद्ध शिकायत होती है वह साम, दाम, दण्ड, भेद द्वारा शिकायतकर्ता पर दबाव डालकर शिकायत वापस करवाने या फिर मामले को फर्जी सिद्ध करवाने का प्रयास करता है| कई मामलों में तो जाँच उसी अधिकारी को सौंप दी जाती है, जिसके विरुद्ध शिकायत होती है| कुल मिलाकर शिकायत को प्रभावहीन बनाकर दोषियों को बचाने का खुला खेल इस शासनादेश की आड़ में चल रहा है| इस सन्दर्भ में लेखक का निजी अनुभव है| बीते अगस्त माह में लेखक ने अपने पिताजी को खांसी की समस्या के चलते कानपुर के मन्नत हॉस्पिटल में भर्ती करवाया था| इस अस्पताल के संचालक मनीष सचान को क्षेत्रीय जनों की तरह लेखक भी एम.एम.बी.एस. डॉक्टर समझता था| मनीष सचान ने स्वयं को कानपुर के सरकारी अस्पताल के.पी.एम. हॉस्पिटल का सरकारी डॉक्टर बताया था| जबकि बाद में मालूम हुआ कि वह वहाँ चिकित्सक न होकर फार्मासिस्ट के पद पर कार्यरत है| क्षेत्रीय जनों को वेवकूफ बनाकर सुबह-शाम मन्नत हॉस्पिटल में ओपीडी करने वाले इस तथाकथित डॉक्टर के गलत इलाज से 30 अगस्त को लेखक के पिता की मृत्यु हो गयी| अतः लेखक ने अपर निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण को पत्र भेजकर उक्त चिकित्सक तथा ऐसे सभी चिकित्सकों को प्रश्रय देकर आम जन के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वाले चिकित्साधिकारियों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करने की मांग की| इस बीच पिताजी को श्रद्धांजलि देने लेखक के घर पहुँचे क्षेत्रीय विधायक तथा वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को भी उक्त प्रकरण से अवगत कराया गया| उन्होंने तत्काल मुख्य चिकित्साधिकारी को फोन करके पन्द्रह दिनों में कार्यवाही करने का निर्देश दिया| इसके बाद भी जब कुछ नहीं हुआ तब लेखक ने सूचनाधिकार के तहत अपनी शिकायत के सन्दर्भ में जानकारी मांगी| तब अपर निदेशक कार्यालय द्वारा पत्र भेजकर उपरोक्त शासनादेश का हवाला देते हुए शपथ-पत्र एवं साक्ष्य सहित बयान देने हेतु उपस्थित होने का निर्देश दिया गया| इस खानापूर्ति के लगभग दो माह बाद अपर मुख्य चिक्तिसाधिकारी के कार्यालय में पुनः साक्ष्य सहित बयान हेतु बुलाया गया| इस दिन 23 दिसम्बर था| यहाँ गौरतलब है कि लेखक ने अपनी शिकायत में स्वास्थ्य विभाग के जिन अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने की मांग की थी, उनमें अपर मुख्य चिकित्साधिकारी भी एक हैं| क्योंकि प्राईवेट अस्पतालों का नोडल अधिकारी प्रायः अपर मुख्य चिकित्साधिकारी को ही बनाया जाता है| जिनकी सहायता से मुख्य चिकित्साधिकारी प्राईवेट अस्पतालों के मानक की निगरानी करते हैं| लेखक के एक पत्रकार मित्र भी साथ गये थे| जो कि पिताजी की मृत्यु वाले दिन बराबर साथ थे| अपर मुख्य चिक्तिसाधिकारी के कार्यालय में पहुँचते ही सर्वप्रथम अकेले बयान देने का दबाव बनाया गया| जबकि लेखक चाहता था कि उसके मित्र साथ रहें| अतः बयान लेने वाले अधिकारी ने प्रोपेगंडा बनाते हुए बयान लेने से मना कर दिया| इसके बाद अपर मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा पत्र प्रेषित करके लेखक को पुनः बयान देने हेतु 17 जनवरी को बुलाया गया| जबकि यह पत्र 19 जनवरी को प्रेषित किया गया था| जो कि 20 जनवरी को प्राप्त हुआ| पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि यदि आप नहीं आये तो समझा जायेगा कि शिकायत के सम्बन्ध में आपको कुछ नहीं कहना है| जाहिर है जब 17 तारीख को बुलावे की सूचना 20 तारीख को प्राप्त होगी तब वही होगा जो पत्र प्रेषक चाहेगा| हुआ भी वही| अगले ही दिन शिकायत को निराधार बताकर प्रकरण को समाप्त करने की संस्तुति कर दी गयी| जब एक पत्रकार के मामले में यह हो सकता है तब फिर सामान्य व्यक्ति के साथ क्या होता होगा, यह स्वतः समझा जा सकता है| आकण्ठ भ्रष्टाचार में डूबे सरकारी तन्त्र को दुस्साहसी बनाने वाले उपरोक्त शासनादेश संख्या 13/1/97-का-1/1997 के रहते क्या सामान्य व्यक्ति न्याय की अपेक्षा कर सकता है? यह प्रश्न उत्तर की प्रतीक्षा में है|

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