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लॉकडाउन में मजबूत होता ‘परिवारवाद’

आज वैश्विक त्रासदी कोविड-19 से उभरी अनिश्चितता, हताशा और नैराश्य जीवन में सबसे सुरक्षित रूप में उभरता ‘परिवार’ इसलिये ‘स्टे होम–स्टे सेफ’ को अपनाया और प्रचारित प्रसारित किया गया। 24 मार्च से प्रारम्भ लॉकडाउन के दौरान समाज की प्राथमिक इकाई परिवार भी सर्वाधिक दबाव में रहा ऐसे में परिवादवाद की अवधारणा अपने स्वरूप में सहायक बनीसामाजिक संगठन का एक ऐसा स्वरूप जिसमें पारिवारिक मूल्यों को अत्यधिक महत्व दिया जाता है ‘परिवारवाद’ कहलाता है। परिवारवाद व्यक्ति में पारिवारिक लगाव की अतितीव्र भावना, निष्ठा पारिवारिक सदस्यों के मध्य पारस्परिक सहयोग तथा एक इकाई के रूप में परिवार को बनाये रखने की चेतना उत्पन्न करता है। संगठन का यह स्वरूप परिवार के सदस्यों को अपने व्यक्तिगत हितों तथा व्यक्ति को पारिवारिक समूह के हितों तथा उसके कल्याण की बलिवेदी पर उत्सर्ग करने की प्रेरणा देता है बाकी सब गौणअध्ययन–अध्यापन, रचनात्मक गतिविधियां की बढ़ती गतिविधयाँ, इनडोर गेम्स में पारिवारिक सदस्यों की सक्रियता मानसिक तनावों को दूर कर एक-दूसरे को सम्बल और साहस प्रदान कर रहें हैंउपलब्ध संसाधनों में ही खुशी की तलाश पुनः उपभोगवादी मॉल कल्चर से अपने क्षणिक सुख को नकार रहे हैंइसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी है। सभी प्राणियों में असुरक्षा का भाव होने पर छुपने की प्रवृत्ति पायी जाती है। मनुष्य के विकास के प्रथम चरण में सुरक्षा का भाव ही विकसित होता है जिसे वह माँ के आँचल तो दादा-दादी की गोद में महसूस करता है। इसी कारण शायद तमाम परिवर्तनों से गुजरती हुई यह पारिवारिक इकाई पश्चिमी समाजों की तुलना में भारतीय समाज में आज भी गहरी जड़े जमाये हैंआज इस संकट के दौर में भी लोग सुरक्षा का भाव लिये घर-परिवार में आने की जद्दोजहद में हैं।

डॉ नेहा जैन
विभागाध्यक्ष समाजशास्त्र विभाग प. दीन दयाल उपाध्याय राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, लखनऊ

परिवार में एक ओर सभी सदस्यों की जीवनशैली में आये बदलाव जैसे बच्चों की ऑनलाइन एजुकेशन, वर्क फ्राम होम विशेषतः महिलाओं के सन्दर्भ में, घरेलू कार्यों में पारिवारिक सदस्यों की सहभागिता में एक दूसरे के सहायक के रूप में नजर आ रहे हैंकहीं-कहीं कठिनाई, तनाव व मनमुटाव है तो समाधान भी तुरन्त है। आखिर क्यों न हो? जाये तो जाये कहाँ, का भाव आपसी धैर्य व सामंजस्य को बढ़ा रहा हैजो नयी पीढ़ी बाह्य दुनिया की चकाचौंध से प्रभावित होने के कारण परिवार के महत्व को भूल रही थीउसे भी अहसास हो रहा है कि परिवार ही प्राथमिक है,