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मैंगो फेस्टिवल की चर्चा पूरे देश में आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत राजधानी में हुआ कार्यक्रम

रमेश अवस्थी के मैंगो फेस्टिवल की चर्चा पूरे देश में

– रमेश अवस्थी ने भारत का सबसे अनोखा आयोजन दिल्ली में किया आयोजित आजादी का अमृत महोत्सव के तहत राजधानी में हुआ यह कार्यक्रम

14 केंद्रीय मंत्रियों सहित देशभर के 150 से अधिक सांसदों, पूर्व केंद्रीय मंत्रियों सहित कई अधिकारियों एवं नामचीन हस्तियों ने की शिरकत

महोत्सव में आकषर्ण का केंद्र रहा ‘मोदी’ आम
प्रदर्शित की गई आम की 300 से अधिक प्रजातियां

नई दिल्ली – नेशनल मीडिया क्लब (एनएमसी) ने बुधवार को देश के सबसे बड़े मैंगो फेस्टिवल का आयोजन किया। दिल्ली स्थित वेस्टर्न कोर्ट एनेक्सी में आयोजित इस कार्यक्रम में आमों की तीन सौ से अधिक प्रजातियों को प्रदर्शित किया गया। वहीं आयोजन में 14 केंद्रीय मंत्री व 150 सांसदों ने उपस्थिति दर्ज कराई। नेशनल मीडिया क्लब के संस्थापक रमेश अवस्थी और राष्ट्रीय अध्यक्ष सचिन अवस्थी के नेतृत्व में मैंगो फेस्टिवल का यह 15वां आयोजन था। इस बार का आयोजन आजादी का अमृत महोत्सव स्मरणोत्सव के तहत किया गया था।
आम को फलों का राजा कहा जाता है और आम के मौसम की प्रतीक्षा लोगों को साल भर रहती है। देश के ग्रामीण अंचल की साझी पहचान आम के बाग ही हैं। इसी साझी पहचान, स्वाद और विविधता का महोत्सव बुधवार को मैंगो फेस्टिवल के रूप में मनाया गया। आयोजन में दशहरी से लेकर अल्फांसो, नीलम, केसर, कैसिंग्टन, चौसा, सफेदा, देसी गोला, इलाहाबादी सफेदा, मल्लिका, फजली, फजरी गोल, अम्बिका, अरु णिका, साहेब पसंद, एल्डन, कांवसाजी पटेल, बंगनपल्ली, माया, ओस्टीन, सुकुल, मछली और शहद कुप्पी सहित भारत में पाए जाने वाले आमों की लगभग 300 प्रजातियां प्रदर्शित की गई, लेकिन इन सबके बीच अपने आकार, रंग और खुशबू के चलते ‘मोदी’ आम छाया रहा और प्रदर्शनी में आए हर आम व खास के बीच आकषर्ण का केंद्र बना रहा।

महोत्सव में वीआईपी लोगों का जमावड़ा रहा। आयोजन के मुख्य अतिथि केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन व डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने फीता काट कर मैंगो फेस्टिवल का उद्घाटन किया। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने समारोह की अध्यक्षता की और केंद्रीय एमएसएमई मंत्री नारायण राणो, केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री महेंद्र नाथ पांडे, जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद थे। भारी उद्योग मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय ने आम प्रदर्शनी के विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कार प्रदान किए।
उपभोक्ता मामले खाद्य सार्वजनिक वितरण एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति, संसदीय कार्य एवं संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल, विधि एवं न्याय राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल, रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट, शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार, महिला एवं बाल विकास मंत्री डॉ. महेंद्र मुजपारा, शिपिंग एवं जहाजरानी राज्यमंत्री शांतनु ठाकुर, अल्पसंख्यक मामलों के राज्यमंत्री जॉन बराला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, रोजगार व श्रम राज्य मंत्री रामेर तेली ने विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। इसके साथ ही पूर्व मंत्री प्रताप सारंगी, सुदर्शन भगत, मोहनभाई कुंदारिया, पीपी चौधरी, शिव प्रताप शुक्ल, संतोष गंगवार, रतनलाल कटारिया, सत्यपाल सिंह, डॉ. हषर्वर्धन, डॉ. महेश शर्मा, प्रकाश जावडेकर और शशि थरूर, सांसद साध्वी प्रज्ञा, दिनेश लाल यादव निरुहुआ, अरुण सिंह, बृजलाल, नरेश बंसल और संघ के पदाधिकारियों में संजय मिश्रा, बालमुकुंद सिंह, सहित के देश लगभग सभी क्षेत्रों के 150 सांसदों ने महोत्सव में आमों का स्वाद चखा। महोत्सव में संगीत व नृत्य की शास्त्रीय प्रस्तुतियों व राधा-कृष्ण के संगीतमय मंचन से कलाकारों ने लोगों का मन मोह लिया।

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डीएसटी इन्सपायर के फेलो द्वारा दूरस्थ लघु आकाशगंगा की रचना के रहस्यों पर से पर्दा उठाने वाले अध्ययन की अगुवाई

आकाशगंगा के बाहरी क्षेत्र के संकेत, जो 150 मिलियन वर्ष से अधिक के नहीं हैं, उनके विषय में हाल के अध्ययन से पता चला है कि वहां नये तारों की एक आकाशगंगा बन रही है। यह अनुसंधान इन युवा तारों के बारे में बताता है, जिसके अनुसार नये तारे जटिल समूहों या झुरमुटों में बन रहे हैं, अंदरूनी हिस्से की तरफ बढ़ रहे हैं और धीरे-धीरे इन आकाशगंगाओं में समा रहे हैं।

खगोल-भौतिकविज्ञानी यह जानने की कोशिश करते रहे हैं कि हमारे ब्रह्माण्ड की बुनियादी निर्माण इकाई आकाशगंगायें कैसे बनती हैं और लगातार क्रमिक विकास करती रहती हैं। लेकिन यह तस्वीर अब तक अधूरी है।https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image001SPE4.jpg

एस्ट्रो-सैट पर लगा अल्ट्रा वायोलेट इमेजिंग टेलेस्कोप (यूवीआईटी) भारत का पहला समर्पित वेवलेंग्थ अंतरिक्ष वेधशाला है, जिसने हाल ही में फार अल्ट्रा वायोलेट (एफयूवी) की हल्की रोशनी को पकड़ा था। यह रोशनी दूरस्थ ब्लू कॉम्पेक्ट लघु आकाशगंगाओं के बाहरी क्षेत्रों में थी, जो लगभग 1.5 – 3.9 अरब प्रकाश वर्ष दूर है। ये लुघ आकाशगंगायें हैं, जो आमतौर पर सितारों के झुरमुट के रूप में देखी जाती हैं।

यह खोज भारत, अमेरिका और फ्रांस के खगोलविज्ञानियों के एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने की है। यह आकाशगंगाओं की रचना के रहस्यों को जानने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है। ‘नेचर’ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन खगोलशास्त्र एवं खगोल भौतिकी अन्तर-विश्वविद्यालय केन्द्र (आयुका), पुणे के प्रो. कनक साहा की देन है।

लेख के प्रमुख लेखक अंशुमान बोरगोहेन को विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी विभाग की इन्सपायर फेलोशिप प्राप्त हुई है। उन्होंने कहा कि आकाशगंगाओं के छोर पर ऐसे युवा तारों का बनने का कारण आमतौर पर आसपास से उठने वाली गैस होती है। यह गैस तारे का आकार लेने और फिर आकाशगंगा के पनपने की प्रक्रिया को तेज कर देती है। तेजपुर विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता श्री बोरगोहेन ने तेजपुर विश्वविद्यालय में भौतिकी के सहायक प्रोफेसर डॉ. रूपज्योति गोगोई तथा आयुका के खगोल-भौतिकी के प्रोफेसर कनक साहा के निर्देशन में काम किया है।

प्रो. कनक साहा ने कहा, “यूवीआईटी और यूवी की गहरी इमेजिंग तकनीक इन युवा, बड़े-बड़े तारों के झुरमुट का पता लगाने में बहुत अहम भूमिका निभाती हैं। ये तारे हमसे बहुत दूरी पर स्थित हैं, इसलिये इन धूमिल, गहरे नीले तारों के झुरमुट को पकड़ना बहुत चुनौतीपूर्ण था।” उन्होंने कहा कि इससे दूरस्थ लघु आकाशगंगाओं की रचना का ‘प्रत्यक्ष’ अवलोकन करने में मदद मिलती है।

आईबीएम रिसर्च डिविजन, अमेरिका के प्रमुख अनुसंधानकर्ता डॉ. ब्रूस एल्मेग्रीन ने भी अध्ययन में योगदान किया है। उन्होंने कहा, “यह हमेशा से रहस्य रहा है कि इस तरह की छोटी-छोटी आकाशगंगायें कैसे इतने सक्रिय तारों का झुरमुट बन जाती हैं। इन वेधशालाओं से पता चलता है कि दूर गैस के रिसाव से बाहरी हिस्से का दबाव भीतर की ओर पड़ता है। इस प्रक्रिया में ज्यादा गैस रिसने से तेजी आती है और तारों के जटिल समूह बन जाते हैं। आकाशगंगा के पूरे जीवन-काल पर यह सघनता पैदा हो जाती है।”

कॉलेज दी फ्रांस की प्रोफेसर और ऑब्जरवेटवॉयर दी पेरिस की प्रो फ्रांकोइस कोम्बेस, जो आलेख की सह-लेखक हैं, उन्होंने कहा कि यह खोज बताती है कि तारे बनने की प्रक्रिया कितनी अचरज भरी है और वह कैसे पुरानी धीमी गैस से शुरू होती है। उन्होंने कहा, “इन गैसपुंजों का बाहरी हिस्सा हलचल भरा होता है। गैसपुंज के बिखरने के बाद यह प्रक्रिया शुरू हो जाती है।” आलेख के सह-लेखक और आयुका और पीआई व यूवीआईटी के विशिष्ट प्रोफेसर डॉ. श्याम टंडन ने इस अध्ययन में यूवीआईटी आंकड़ों के महत्त्व को उजागर किया।

आयुका के सहयोगी और तेजपुर विश्वविद्यालय में भौतिकी के सहायक प्रोफेसर डॉ. रूपज्योति गोगोई ने कहा कि इस काम में भारत के स्वदेशी उपग्रह एस्ट्रो-सैट के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है, जो देश के युवा अनुसंधानकर्ताओं के लिये प्रेरक बन सकता है। आयुका, पुणे के निदेशक प्रो. सोमक रायचौधरी और तेजपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनोद के. जैन ने ऐसे सहयोगात्मक कार्यों के लाभों को रेखांकित किया।

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सकून तेरे पास है और तू भटकाता फिर रहा

बात बात पर भड़क रही थी शैफाली आज।रसोई के बर्तनो की आवाज़ से ही उसकी मन की व्यथा का अंदाज़ा लगाया जा सकता था।समीर की पत्नी शैफाली,जो किटी पार्टीयो में अक्सर आया जाया करती और आ कर अपने पति को परेशान करती और कहती ! समीर देखा !मेरी सहेली रीटा का घर बेस्ट लोकेशन में है हमारा कंयू नही। मोनिका ने अभी बंगला ख़रीदा है हम क्यों नहीं ले पा रहे।रात के खाने के बर्तन समेटते हुए शैफाली ने समीर से पूछा ?समीर तुम्हारी प्रमोशन का क्या बना ?बॉस से बात हुई क्या ? कब से कह रही हूँ बंगला ले लो।साल से ज़्यादा वक़्त हो गया हमें इस शहर में आये हुये।समीर चुपचाप अपनी पत्नी शैफाली की बाते सुन रहा था।शैफाली बोले जा रही थी ,मेरा मन भी करता है कि मै बंगले में रहूँ।अब तो मुझे ईर्ष्या सी होने लगी है सभी सहेलियों से।समीर तुम इतने काबिल हो कर भी कुछ कर नहीं पा रहे और बेधड़क भगवान को कोसे जा रही थी कि भगवान ने उसे ये फ़्लैट कंयू दिया,बंगला कयू नही दीया वग़ैरह वग़ैरह।समीर की ये सब बातें सुनना उसकी दिनचर्या में शामिल था।हर रोज ये बातें सुनता और मन ही मन में झुंझला जाता।चुपचाप अपने सोने के कमरे में चला गया।आँखे मूँद कर सोने का बहाना करने लगा।नींद तो उसे भी नहीं आ रही थी क्योंकि सोच तो वो भी यही रहा था कि कैसे तैसे कर के इक बंगला बन जाये।पता नहीं कब आँख लगी और सुबह हो गई।जल्दी से उठा और नाश्ता करके आफ़िस चला गया तो उसे वहाँ जा कर पता चला कि उसकी कंपनी जिस में वो काम करता था ,बैंकरपसी मतलब बंद होने को है और बॉस ने हाथ जोड़कर कर सभी कर्मचारियों को कहा !अब मेरी कंपनी बंद हो रही है और आप कहीं और काम देखिए।समीर के पैरो तले जैसे ज़मीन निकल गई।समीर अपनी कंपनी में बहुत अच्छी पोस्ट पर था।बड़ा अच्छा घर चल रहा था।ओह !अब क्या करेगा।आफ़िस से सीधा घर आया और शैफाली को भी ये बात बताई।अब दोनो परेशान कि अब कैसे घर चलेगा ,बच्चों की स्कूल की भारी फ़ीस कहाँ से देगा ,फ़्लैट की किश्त कैसे भरेंगा ।रात दिन नौकरी तालाश करने लगा।उसकी तो रातों की नींद ही उड़ गई।परेशान सा सोच रहा था कि अब जल्दी ही फ़्लैट भी ख़ाली करना पड़ेगा ,क्योंकि अगले महीने फ़्लैट की किश्त वो नहीं भर पायेगा।महीने का आख़िरी दिन है और जगह जगह नौकरी के लिये अपलाई कर चुका है मगर कहीं से कोई जवाब हाँ में नहीं आ रहा।कोई जवाब न पा कर बेहद निराश सा ,खोया सा बैठा था।कुछ नही सूझ रहा था उसे ।अचानक से दरवाज़े की घंटी बजी।समीर ने भारी कदमो से दरवाज़ा खोला ।वहाँ कोई उसे लैटर देने आया था।लैटर खोला तो देखा उसे इक कंपनी मे अच्छी नौकरी मिल गई है समीर इतना ख़ुश कि ख़ुशी से रोने ही लगा और कहने लगा कि शुक्र है भगवान ,तू कितना दयालु है मुझे सड़क पर जाने से बचा लिया।वरना मैं कहाँ ले कर जाता बच्चों को,और फ़्लैट को ऐसे देख रहा था जैसे वो फ़्लैट न हो कर उसका महल हो।शैफाली और समीर ख़ुशी से नाच रहे थे और भगवान का शुक्रिया कर रहे थे।
दोस्तों फ़्लैट तो वही था जो दोनों के दुख का कारण था और आज वही फ़्लैट सुख का कारण बना हुआ था।ख़ुशी कहाँ से आई अन्दर से ,स्वीकार करने मे ,शुक्र करने मे।ख़ुशी हमारी प्रतिक्रियाओं मे है कि हम हर हालात मे कैसे रिएक्ट करते है ।कैसे किसी हालात को समझते है।अपनी चीजों की कद्र हमे तब होती है जब वो हमारे हाथों से जा रही होती है या जा चुकी होती है ।सो वक़्त रहते हमे चीजो की,या हालातो की या अपने आसपास के लोगों की कद्र करना सीख लेना चाहिए।अकसर लोग सोचते है कि वो बहुत ख़ुश होते,अगर वो कहीं बाहर के देशों मे सैटल होते। विदेशों मे रहने वाले लोगों से पूछिए।वो भी परेशान है किसी न किसी बात पर।किसी को काम नही मिल रहा ,कोई बीमारी की वजह से परेशान,किसी के घर तालाक की बाते चल रही है कोई डिप्रेशन से घिरा हुआ है। जिसको सुख और सकून मिलना है वो कहीं भी रह कर भी मिल सकता है ।
दोस्तों ! दूसरो की उन्नति से ईषा करके कोई फ़ायदा नहीं ।अपने पास जो है उसी में सकून ढूँढिए।
“सकून की तालाश में अपना वक़्त न ज़ाया कर..सकून तेरे पास है और तू भटकाता फिर रहा है ..ऐ सकूने यार मे”।
✍️ लेखिका स्मिता केंथ (England)

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भारत के खिलाफ काम करने वाली 747 वेबसाइटों और 94 यूट्यूब चैनलों पर 2021-22 के दौरान रोक लगाई गई: केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने आज कहा कि 2021-22 में मंत्रालय ने देशहित के खिलाफ काम करने वाले यूट्यूब चैनलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है। राज्य सभा में एक प्रश्न के उत्तर में, श्री ठाकुर ने कहा कि मंत्रालय ने 94 यूट्यूब चैनलों, 19 सोशल मीडिया अकाउंट और 747 यूआरएल के खिलाफ कार्रवाई की है और उन्हें रोक दिया गया है। यह कार्रवाई सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 69ए के तहत की गई है।

मंत्री ने आगे कहा कि सरकार ने फर्जी खबरें फैलाकर और इंटरनेट पर दुष्प्रचार करके देश की संप्रभुता के खिलाफ काम करने वाली एजेंसियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है।

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खुद से हठ करना ग़लत नहीं है इक ताक़त है

अक्तूबर का महीना और सुहानी हवायों का धीरे धीरे चलना।होटल के लॉन में फूलो की सजावट क़ाबिले तारीफ़ थी और फूलो की सोंधी सोंधी ख़ुशबू हवा मे जैसे घुल कर सारे वातावरण को मदहोश कर रही थी। होटल भी इक पहाड़ी पर, वाह !जहां से चारों ओर पहाड़ ही पहाड़,ढलती हुई शाम और उस पर गाने की धुन बड़ी ही मनमोहक प्रतीत हो रही थी।शाही खानो के स्टालस और उसपर खाने की ख़ुशबू ,मैं उस शादी के माहौल का पूरे मन से आनन्द ले रही थी।बहुत सालों के बाद इंग्लैंड से भारत आई थी,बानी की शादी मे शामिल होने के लिये।बानी मेरी सहेली की
बेटी।हालाँकि शादियाँ इंग्लैंड में भी बहुत अच्छे से होती हैं, मगर इंगलिश टच तो कहीं न कहीं होता ही है।मैं बहुतों से मिलते मिलाते बानी को मिली।बहुत ही प्यारी लग रही थी दुल्हन के रूप में।बानी के पिता का अच्छा कारोबार था तो ज़ाहिर था,शादी भी बड़े ही स्तर पर थी।जो साज सजावट से ही साफ़ दिखाई दे रही थी।मेरे बचपन की सहेली निशा भी मिली।बड़ा अच्छा लग रहा था।खाने की ख़ुशबू मुझे खाने की स्टालस की ओर खींचने लगी।मै और निशा स्टालस की बढ़ रही थी तो पीछे से आवाज़ आई ,बेटा आरूश तुम्हारी ममी कहाँ है ? जा बेटा ,ज़रा बुला कर ला।आरूश अपनी दादी से कह रहा था।दादी इतने लोगों के बीच कहाँ ढूँढू ममी को।अच्छा देखता हूँ शायद शैल आंटी से पास खडी हो।आरूश भागा भागा गया और अपनी ममी स्वाति को बुला लाया।दादी ने स्वाति से कह रही थी।
बहू स्वाति !मेरी खाने की प्लेट तो बना ला ज़रा ,और ये भी देख लेना ,तुमहारे पापा ने खाना खा लिया क्या ?और हाँ सुन ज़्यादा तीखी चीजें मेरी प्लेट मत लाना।सब थोड़ा ही डालना ,बहुत ज़्यादा खाना तो मै खा ही नही सकूँगी ।
इक और आवाज़ फिर सुनाई दी ,जो कह रही थी ! नही पूनम तुम ख़ुद उठो और खुद अपनी प्लेट बना कर लाओ।ये क्या तरीक़ा है पूनम ऐसे तो तुमहारी टाँगें काम करना बंद कर देंगी,और अगर तुम खुद चलोगी तो अपनी पसंद का खाना ,ज़रूरत के मुताबिक़ डाल कर ला सकती हो।बहू तो मर्ज़ी से कुछ भी प्लेट में डाल कर ले आयेगी।वो शायद तुम खाना चाहोगी कि नहीं ,इसी लिये कह रही हूँ ।अभी तुम चल सकती हो ,तो चलना चाहिए न ।इस तरह बच्चों से ऐसे छोटी छोटी बाते की अपेक्षा कंयू करती हो और तुम अपने पति गोयल साहब की भी फ़िक्र क्यों कर रही हो ,देखा नही वो अपने दोस्तों के बीच कितना हंस खेल रहे है ,वो भी खा ही लेंगे अपने दोस्तों के साथ।
तुम बस मेरा हाथ पकड़ो ,मैं चलती हूँ तुमहारे साथ।और पूनम कह रही थी।मैं कहाँ जाऊँगी ,बहू ले आयेगी न अपने आप।मुझ से नहीं चला जाता इतनी भीड़ में।फिर इक ज़ोर से हंसी सुनाई दी।सारी बाते मेरे कानों मे साफ़ सुन रही थी।
मैंने मुड कर देखा तो इक बड़ी उम्र की महिला ,जो आंटी शोभना थी और अपनी सहेली पूनम का हाथ बड़े प्यार से पकड़ कर धीरे धीरे खाना की स्टालस की तरफ़ ले जा रही थी। मुख पर तेज ,आवाज़ मे रोबीलापन था और चाल भी बेमिसाल थी।बड़ा अच्छा लगा ये देख कर कि आंटी शोभना बड़ी उम्र होने के बाद भी उनकी सोच कितनी पाजीटिव है।जब कि हम इन्हें पुरानी पीढ़ी मे गिनते है और उन्हें पुराने ख़यालात वाले समझते है।
मैं खाने की प्लेट ले कर लाईन मे खड़ी थी।वो दोनों महिलायें हमारे पास आई तो मैंने शिष्टाचार निभाते हुए ,लाईन मे उन्हें आगे करना चाहा मगर आंटी शोभना ने बहुत ही प्यार से मुझे धन्यवाद दिया और कहाँ नही बेटा ,आप पहले अपनी प्लेट बनाइये ,हमारी बारी भी आ जायेंगीं जब कि आंटी शोभना के हाथ में भी चलने के लिये छड़ी पकड़ी हुई थी।मैं सोच रही थी ये आंटी जो खुद ठीक से चल भी नहीं पा रही।चेहरे पर पसीने की बूँदें भी चमक रही थी खुद आंटी की उम्र 80 साल के लगभग होगी शायद,मगर अपनी सहेली को कैसे समझा रही थी,और पूनम आंटी उनसे उम्र मे छोटी लग रही थी और यही नही ,निशा बता रही थी मुझे कि शोभना आंटी तो इस उम्र मे भी,इतनी शहर की ट्रैफ़िक होने के बावजूद भी ,खुद अपनी गाड़ी चलाती हैं ।बाहर के सारे काम खुद ही करती है।मैं सोचने लगी मैं आज भी अपनी सासु माँ की खाने की प्लेट लगा कर देती हूँ। कहीं न कहीं हम ही है जो बुजुर्गों को प्रोत्साहित नहीं करते कि वो अपना काम खुद से करते रहे।शोभना आंटी ठीक ही तो कह रही थी कि जब तक जान है।जब तक शरीर मे ताक़त है तब तक हिम्मत करते रहना चाहिए।ये कितनी अच्छी सीख है बुजुर्गों के लिये और हम सब के लिए ।
बहुत लोग ऐसा सोचते भी हैं कि बहू आ गई तो अब सास को बहू पर ज़िम्मेदारी सौंप देनी चाहिए।दोस्तों मैं खुद ऐसी सोच को सलाम करती हूँ ।बच्चे लाख अच्छे हो फिर भी अपने आप का काम करते रहना चाहिए।इससे शरीर भी चलता रहता है ।मन भी लगा रहता है।हठ करते रहना चाहिए।ये ज़रूरी नही कि आप की उम्र क्या है ज़रूरी ये है कि आप ,किस उम्र की सोच रखते है यू भी खुद से हठ करना ग़लत नहीं है ,ये इक ताक़त है सच में “कुछ लोग चंदन की तरह, ताउम्र खुशबू देते रहते हैं।”
बढ़ती उम्र उन्हें मुरझाने नहीं देती ,क्योंकि वो उम्र को हराना जानते हैं अपनी जवान सोच के साथ।
🙏लेखिका स्मिता

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ससुराल गेंदा फूल

नेहा इंजीनियरिंग की डिग्री तो मिल गई है अब तुम्हारा आगे का क्या विचार है? स्मिता:- यार ! मेरे विचार से क्या होता है? घरवाले लड़का देख रहे हैं। एक जगह बात भी चल रही है। मम्मी कह रही थी कि अगर अच्छा लड़का मिल गया तो हाथ पीले कर दूंगी।

नेहा:-  तो जॉब के लिए ट्राई नहीं करेगी?
स्मिता:- करना तो चाह रही लेकिन पता नहीं क्या कर पाती हूं और अनमनी होकर घर जाने लगी।
स्मिता के बारे में सोचते सोचते नेहा घर पहुंच गई।
नेहा:- मां क्या बनाया है खाने में?
मां:- कढ़ी चावल है, फ्रेश हो जाओ फिर खा लो। फिर आराम से बात करते हैं। नेहा ने सवालिया नजर से मां की तरफ देखा।
मां:- तेरी बुआ ने एक लड़का बताया है। अच्छा घर परिवार है ऐसा बोल रही थी जीजी। अच्छा घरबार होगा तो रिश्ता तय कर सकते हैं।
नेहा:- मां मेरी पढ़ाई अभी बाकी है। मुझे एमबीए करना है फिर जॉब करना है। इस बारे में फिर सोचूंगी।
मां:- देखो ! लोग अच्छे होंगे तो रिश्ता तय कर देंगे फिर चाहे शादी बाद में करें। नेहा कुछ नहीं बोली। नेहा शाम की राह देखने लगी कि वह पापा से इस विषय पर बात करेगी। पढ़ाई कर लेने के बाद में क्या तुरंत शादी कर देना ही सही होता है? क्या यही एक जिम्मेदारी रह जाती है हमारी हम लड़कियों के प्रति? यही सब सोचते सोचते नेहा की आंख लग गई। शाम को पापा आए तो नेहा ने चाय बना कर दी और कहा, “पापा मुझे आपसे कुछ बात करनी है।”
पापा बोले, “बोलो बेटा क्या चल रहा है दिमाग में?
नेहा:- पापा मुझे अभी एमबीए करके जॉब करनी है फिर उसके बाद मेरी शादी की जाये पर मम्मी और बुआ अभी से मेरे पीछे पड़ी है!
पापा:- देखो बेटा तुमको कुछ करने के लिए मना नहीं किया है और हम अभी से देखेंगे तब जाकर एक-दो साल में कुछ ढंग के रिश्ते आएंगे और तुमको जो करना है उसके लिए कोई मना थोड़ी कर रहे है। जब तुम आर्थिक रूप से मजबूत हो जाओगी हम तभी तुम्हारी शादी करेंगे।
इधर स्मिता के घर में उसके ऊपर लगातार शादी के लिए दबाव बन रहा था। स्मिता भी चाह रही थी कि वह जॉब करें और उसके बाद ही उसकी शादी हो लेकिन उसकी मां यह बात नहीं समझ पा रही थी।
इधर नेहा को प्लेसमेंट मिल गया था और वह अपनी नौकरी के साथ साथ एमबीए की तैयारी में लग गई थी।
स्मिता ने भी अपने पापा से परमिशन लेकर अपनी जॉब शुरू कर दी लेकिन स्मिता के पापा ने स्पष्ट कह दिया था कि यदि ससुराल वाले नौकरी नहीं पसंद करेंगे तो तुझे नौकरी छोड़नी पड़ेगी। स्मिता कुछ नहीं बोली यह सोच कर कि चलो घर से बाहर काम कदम तो निकले। दोनों सहेलियां अपनी अपनी राह पर चलने लगी। दोनों में अक्सर फोन के जरिए बातचीत होते रहती थी।
नेहा:- हेलो स्मिता ! मेरी शादी पक्की हो गई है मेरा कलीग ही है। अजय नाम है उसका। बस हाय हेलो ही थी, ज्यादा कुछ बातचीत भी नहीं थी हमारी। अजय मुझे पसंद करते हैं यह बात मुझे पता नहीं थी। उसके घरवालों ने पापा से मिलकर मेरा हाथ मांग लिया।
स्मिता:- अरे वाह! कांग्रेचुलेशन ! शादी की तारीख कब निकली है ? मुझे भी तो शॉपिंग करनी है, अभी से शुरू करनी होगी।
नेहा:- तीन महीने बाद की तारीख निकली है।
स्मिता:- वाह़़….. बढ़िया!
शादी के दिन करीब आ रहे थे और तैयारियां शुरू हो चुकी थी। नेहा ऑफिस के काम के साथ-साथ शादी की तैयारी भी कर रही थी । आखिर वह दिन भी आ गया जब नेहा शादी करके ससुराल चली गई। अजय को पति रूप में पाकर नेहा खुश थी लेकिन एक अनजाना सा डर भी था उसके मन में कि पता नहीं हम दोनों में सामंजस्य हो पाएगा कि नहीं? मैं नौकरी छोड़ना नहीं चाहती थी और पता नहीं अजय के मन में क्या है? अजय क्या चाहते हैं मैंने कभी इस विषय पर बात भी नहीं की? उसका ससुराल में पहला दिन बहुत अच्छा रहा। घर के माहौल और तौर-तरीकों को समझने का प्रयास करते रही। किचन में सब देखती समझती रही, यथासंभव काम में हाथ बंटाती रही। मेरे ऑफिस की छुट्टियां अब खत्म होने वाली थी। कुछ दिनों में मुझे ऑफिस ज्वाइन करना था और मुझे अब अजय से बात करना जरूरी हो गया था। शाम को जब वह घर आए तो चाय मैं कमरे में ही ले आई।
नेहा:- सुनो! कुछ बात करनी है आपसे।
अजय:- हां…. बोलो ।
नेहा:- मेरे ऑफिस ज्वाइन करने का समय आ रहा है, छुट्टियां खत्म हो रही है।
अजय:-  हां तो दिक्कत क्या है? समय से ऑफिस ज्वाइन कर लो।
नेहा:- वो…. मम्मी पापा से बात….
अजय:-  उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। तुम ऑफिस जाना शुरु कर दो।
मैं मुस्कुरा कर रह गई। मम्मी को बताना जरूरी था कि मैं ऑफिस जाने वाली हूं। सुबह किचन में काम करते हुये मैंने कहा, मम्मी जी मैं मंडे से ऑफिस जाना शुरू कर रही हूं।
मम्मी:- हां ठीक है… सारे मेहमान चले गये हैं और रस्में भी पूरी हो गई है तो तुम अपना ऑफिस शुरू कर सकती हो। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि सब इतनी आसानी और नॉर्मल तरीके से कैसे हो रहा है। रात में खाना खाने के बाद जब मैं अजय के साथ वॉक पर निकली तो उनसे पूछा कि घर में किसी को एतराज नहीं है मेरे काम करने पर?
अजय:-  जब हमारे रिश्ते की बात चल रही थी तब तुम्हारे पापा ने हमें पहले ही बता दिया था कि तुम नौकरी करना चाहती हो और उन्होंने कहा भी था कि लड़की आर्थिक रूप से मजबूत रहे तो ज्यादा अच्छा है। मम्मी ने बस इतना ही कहा था कि घर बाहर मैनेज कर लेगी तो हमें कोई दिक्कत नहीं है। तुम्हारे पापा ने कहा कि आप लोगों का साथ और समय उसे जरुर मदद करेगा और मैं भी चाहता हूं कि तुम अपनी नौकरी नहीं छोड़ो।
मुझे पापा पर बहुत प्यार आया। मैं खुश थी।
सुबह मम्मी ने पूछा, “ऑफिस के लिए कितने बजे निकलेगी?”
नेहा:- मैं 9:00 बजे निकल जाऊंगी मम्मी ।
मम्मी:-  अरे अजय! इसे ऑफिस छोड़ते हुए चले जाना।
अजय:- हम दोनों का रूट अलग है मम्मी! इसे छोड़ने के चक्कर में मुझे लेट हो जाएगा।
नेहा:- कोई बात नहीं मैं रिक्शा से चली जाऊंगी।
मम्मी:- ठीक है कुछ दिन एडजस्ट कर लो। (अजय से कहते हुये) इसे टू व्हीलर दिला दो ताकि आने-जाने में सुविधा रहे।
मैं देख रही थी कि मम्मी मेरे सभी कामों में मदद करती थी और मैं धीरे-धीरे घर में सेट होते जा रही थी मम्मी धीरे धीरे जिम्मेदारियां मेरे ऊपर डाल रही थी मेरे मन का डर निकलते जा रहा था और घर में मैं रमते जा रही थी।
इधर स्मिता की भी शादी तय हो गई थी। मन में डर भी था और खुशी भी थी। कुछ नये सपने सजने लगे थे। नेहा को जब शादी का पता चला तो वह स्मिता को छेड़ने लगी।
नेहा:- अब तो महारानी के भाव नहीं मिलेंगे ! अब तो नखरे ही नखरे दिखेंगे! अब कहां मुझे याद रखोगी! अच्छा तुम जीजू से कब मिलवा रही हो ?
स्मिता:- फोन पर बात कर लो और फिर किसी दिन मिलवा भी दूंगी।
नेहा:- अच्छा यह बताओ तुम तो यहां ही बड़ी मुश्किल से नौकरी कर रही हो वहां पर लोग क्या बोल रहे हैं?
स्मिता:- अभी तक किसी ने कुछ कहा नहीं है आलोक को भी एतराज नहीं है मेरे काम करने से। सासू जी बोल रही थी कि मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती है, मुझसे घर के काम अब संभाले नहीं जाते।
नेहा के मन में घर लौटते समय यही सवाल घूम रहा था कि स्मिता ससुराल में एडजस्ट कर पाएगी क्या? उसे सबका सपोर्ट मिलेगा क्या?
तय समय पर स्मिता की शादी हो गई। पहले ही दिन से स्मिता ने घर के काम संभाल लिए। ऑफिस की छुट्टी खत्म होते ही स्मिता ने घर में कहा कि कल से वह ऑफिस जा रही है। सास ने कहा, “नाश्ता खाना निपटा कर जाना मेरी तबीयत ठीक नहीं है।”
स्मिता:- जी मम्मी !
अगले दिन जब स्मिता ऑफिस जाने लगी तो सास में टोक दिया, “नई नई शादी हुई है थोड़ा बहुत तैयार होकर, साड़ी पहन कर जाया करो। तुमको तो कोई कुछ कहेगा नहीं मुझे ही सब कहेंगे कि बहू बहुत तेज है।”
स्मिता:- जी मम्मी ।
शादी के कुछ दिन गुजरने के बाद इस स्मिता अपनी सुविधानुसार कपड़े पहनकर ऑफिस जाने लगी। सास मुंह तो बना लेती पर कहती कुछ नहीं। बस बड़बड़ाते रहती कि हमारे वक्त में मजाल था कि हम अपने बड़ों के कहने से बाहर जाए और आजकल के बच्चे हैं जिन्हें कुछ सुनना ही नहीं।”
घर के रीति-रिवाज और तौर-तरीकों पर मम्मी जी मेरे मायके से तुलना करती रहती और मेरी कोशिश होती कि मैं जल्दी से जल्दी घर से ऑफिस चली जाऊं अगर आलोक का साथ ना होता तो शायद मैं ससुराल में सामंजस्य नहीं बैठा पाती। आलोक हर बात को हल्के में लेकर हंसी मजाक में उड़ा देते और मैं चैन की सांस लेती थी। कितना फर्क है है मेरे और नेहा के ससुराल में। नेहा की सास हर काम में मदद करती है और मुझे मदद की उम्मीद रखनी पड़ती है। मैं आलोक के सहारे सफर तय कर रही हूं। ससुराल और उनसे जुड़े रिश्तो के बारे में न जाने कितनी बातें होती रहती हैं यह सच है कि हम हर एक को एक ही तराजू मैं नहीं तोल सकते हैं।
प्रियंका वरमा माहेश्वरी
गुजरात

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प्रधानमंत्री कल वाराणसी में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन पर अखिल भारतीय शिक्षा समागम का उद्घाटन करेंगे

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी कल 07 जुलाई 2022 को वाराणसी में तीन दिवसीय अखिल भारतीय शिक्षा समागम का उद्घाटन करेंगे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सहयोग से शिक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित इस तीन दिवसीय सम्मेलन में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के  विश्वविद्यालयों के 300 से अधिक कुलपतियों और निदेशकों, शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं के साथ-साथ उद्योग के प्रतिनिधियों को भी यह  विचार-विमर्श करने के लिए एक साथ एक मंच पर लाएगा कि पिछले दो वर्षों में कई पहलों के सफल कार्यान्वयन के बाद देश भर में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के कार्यान्वयन को कैसे और आगे बढ़ाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और शिक्षा मंत्री श्री धर्मेन्द्र प्रधान भी इस कार्यक्रम में शामिल होंगे।

यह शिखर सम्मेलन राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 को लागू करने में रणनीतियों, सफलता की कहानियों और सर्वोत्तम प्रथाओं पर चर्चा, विचार-विमर्श और अंतर्दृष्टि साझा करने के लिए अग्रणी भारतीय उच्च शैक्षणिक संस्थानों (एचईआई) के लिए एक मंच प्रदान करेगा। शिक्षा मंत्रालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के साथ मिलकर अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट, मल्टीपल एंट्री एग्जिट, उच्च शिक्षा में बहु अनुशासन और लचीलापन, ऑनलाइन और ओपन डिस्टेंस लर्निंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विनियम, वैश्विक मानकों के साथ इसे और अधिक समावेशी बनाने के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे को संशोधित करने, बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देने तथा  भारतीय ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा देने और दोनों को शैक्षिक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने, कौशल शिक्षा को मुख्य धारा में लाने एवं आजीवन सीखने को बढ़ावा देने जैसी कई नीतिगत पहलों  को शुरू किया है। कई विश्वविद्यालय पहले ही इस कार्यक्रम को अपना चुके हैं, लेकिन अभी भी बहुत से ऐसे हैं जिनके लिए इन परिवर्तनों को अपनाना और उनके अनुकूल होना बाकी है। चूंकि देश में उच्च शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र केंद्र, राज्यों और निजी संस्थाओं तक फैला हुआ है, इसलिए नीति कार्यान्वयन को और आगे ले जाने के लिए व्यापक परामर्श की आवश्यकता है। परामर्श की यह प्रक्रिया क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर चल रही है। माननीय प्रधानमंत्री जी ने पिछले महीने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में मुख्य सचिवों के एक सेमिनार को संबोधित किया था जहां राज्यों ने इस मुद्दे पर अपनी अंतर्दृष्टि साझा की। इस संबंध में परामर्शों की श्रृंखला में वाराणसी शिक्षा समागम की अगली कड़ी है। 7 से 9 जुलाई तक चलने वाले तीन दिनों के इस समागम के  कई सत्रों में बहु-विषयक और समग्र शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार, भारतीय ज्ञान प्रणाली, शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण, डिजिटल सशक्तिकरण तथा ऑनलाइन शिक्षा, अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता, गुणवत्ता, रैंकिंग और प्रत्यायन, समान और समावेशी शिक्षा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों की क्षमता निर्माण जैसे विषयों पर चर्चा होगी । इस शिखर सम्मेलन से विचारोत्तेजक चर्चाओं के लिए एक ऐसा मंच मिल सकने  की उम्मीद है जो कार्ययोजना और कार्यान्वयन रणनीतियों को स्पष्ट करने के अलावा ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा और अंतःविषय विचार-विमर्श के माध्यम से एक नेटवर्क का निर्माण करने के साथ- साथ शैक्षिक संस्थानों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करेगा और उचित समाधानों को स्पष्ट करेगा। अखिल भारतीय शिक्षा समागम का मुख्य आकर्षण उच्च शिक्षा पर वाराणसी घोषणा को स्वीकार करना होगा जो उच्च शिक्षा प्रणाली के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करने के लिए भारत की विस्तारित दृष्टि और नए सिरे से उसकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करेगा।

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केंद्रीय मंत्रीअर्जुन राम मेघवाल ने मंगोलिया से वापस लाए गए भगवान बुद्ध के पवित्र कपिलवस्तु अवशेष प्राप्त किए

मंगोलियाई बुद्ध पूर्णिमा महोत्सव के तहत मंगोलिया के गंडन बौद्ध विहार परिसर ​स्थित बत्सगान मंदिर में 12 दिनों तक प्रदर्शित होने के बाद भगवान बुद्ध के चार पवित्र अवशेष अब भारत वापस आ गए। केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल ने आज गाजियाबाद में इन पवित्र अवशेषों को प्राप्त किया। मंगोलियाई लोगों की जबरदस्त मांग पर पवित्र अवशेषों के प्रदर्शन की अवधि कुछ दिनों के लिए बढ़ानी पड़ी।

मंगोलिया के राष्ट्रपति, मंगोलियाई संसद के अध्यक्ष, मंगोलिया के विदेश मंत्री, संस्कृति मंत्री, पर्यटन मंत्री, ऊर्जा मंत्री, 20 से अधिक सांसद, मंगोलिया के 100 से अधिक बौद्ध विहार के शीर्ष मठाधीश उन हजारों लोगों में शामिल थे जिन्होंने गंडन बौद्ध विहार परिसर ​स्थित बत्सगान मंदिर में 12 दिनों तक की इस प्रदर्शनी के दौरान अवशेषों को अपनी श्रद्धांजलि दी। महोत्सव के अंतिम दिन मंगोलिया के आंतरिक संस्कृति मंत्री अनुष्ठान के लिए उपस्थित थे।

 

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प्रदर्शनी के पहले दिन (14 जून को) लगभग 18 से 20 हजार भक्तों ने पवित्र बुद्ध अवशेषों को श्रद्धांजलि दी। कार्य दिवसों के दौरान औसतन 5 से 6 हजार श्रद्धालुओं ने गंडन बौद्ध विहार का दौरा किया जबकि सप्ताहांत के दौरान औसतन 9 से 10 हजार श्रद्धालुओं ने श्रद्धासुमन अर्पित किए। अंतिम दिन लगभग 18 हजार श्रद्धालुओं ने पवित्र अवशेषों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए गंडन बौद्ध विहार का दौरा किया। समापन के दिन आंतरिक संस्कृति मंत्री अनुष्ठान के लिए उपस्थित थे।

पवित्र बुद्ध अवशेषों को ‘कपिलवस्तु अवशेष’ के रूप में जाना जाता है क्योंकि उनकी खोज 1898 में बिहार की एक जगह से की गई थी जिसे कपिलवस्तु का प्राचीन शहर माना जाता है। इन अवशेषों को राजकीय अतिथि का दर्जा दिया गया था और उन्हें उसी नियंत्रण परिवेश में रखा गया था जैसा वर्तमान में राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है। एक विशेष हवाई जहाज सी-17 ग्लोब मास्टर के जरिये इन पवित्र अवशेषों को भारत वापस लाया गया है। वर्ष 2015 में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली मंगोलिया यात्रा के दौरान श्री नरेन्द्र मोदी ने गंडन मठ का दौरा किया था और हंबा लामा को एक बोधि वृक्ष का पौधा भी भेंट किया था। दोनों देशों के बीच सदियों पुराने बौद्ध संबंधों की ओर इशारा करते हुए श्री नरेन्द्र मोदी ने मंगोलियाई संसद को संबोधित करते हुए भारत और मंगोलिया को आध्यात्मिक पड़ोसी बताया था। पिछली बार 2012 में इन अवशेषों को देश से बाहर ले जाया गया था। उस दौरान श्रीलंका में कई स्थानों पर उन्हें प्रदर्शित किया गया था। हालांकि बाद में दिशानिर्देश जारी किए गए और इन पवित्र अवशेषों को ‘एए’ श्रेणी के पुरावशेष एवं कला खजाने के तहत रखा गया ताकि इन अवशेषों की नाजुक प्रकृति को देखते हुए उन्हें प्रदर्शनी के लिए देश से बाहर न ले जाया जा सके।

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श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के नव्य-दिव्य स्वरूप में आने के बाद देश भर में डाक विभाग द्वारा बाबा के प्रसाद मँगाने की बढ़ी माँग

  देश भर में डाक विभाग के माध्यम से श्रद्धालु मँगा रहे श्री काशी विश्वनाथ प्रसाद, मात्र 251 रूपये के ई-मनीऑर्डर द्वारा

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के नव्य-दिव्य स्वरूप में आने के बाद देश भर के श्रद्धालुओं में इसके प्रसाद की भी माँग बढ़ी है। डाक विभाग और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के बीच हुये एक एग्रीमेण्ट के तहत श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रसाद देश भर में स्पीड पोस्ट सेवा द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है। जून 2020 में नए स्वरुप में आरम्भ इस सेवा के तहत अब तक लगभग साढ़े चार हजार लोगों को डाक विभाग के माध्यम से प्रसाद उपलब्ध कराया जा चुका है और इससे करीब 10 लाख 13 हजार रूपये का राजस्व डाक विभाग को प्राप्त हुआ। उक्त जानकारी वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने दी।  श्री यादव ने इस अवसर पर एक विशेष पोस्टर भी जारी किया, जिसे देश भर के प्रमुख डाकघरों में लगाने के लिए भेजा जायेगा ताकि देश भर में अधिकाधिक लोग घर बैठे श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रसाद स्पीड पोस्ट से मँगा कर लाभान्वित हो सकें। फ़िलहाल  प्रसाद की ज्यादा मांग कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलांगाना, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड इत्यादि राज्यों से डाक विभाग को ज्यादा प्राप्त हो रही है।

 पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि देश के किसी भी कोने में रह रहे श्रद्धालु स्पीड पोस्ट से श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रसाद मँगा सकते हैं। इसके तहत अपने नजदीकी डाकघर से मात्र ₹ 251 रूपये का ई-मनीआर्डर प्रवर अधीक्षक डाकघर, वाराणसी (पूर्वी) मंडल-221001 के नाम भेजना होता है। ई-मनीऑर्डर प्राप्त होते ही डाक विभाग द्वारा तत्काल दिए गए पते पर स्पीड पोस्ट द्वारा प्रसाद भेज दिया जाएगा। डिब्बा बंद प्रसाद टेंपर प्रूफ इनवेलप में होगा, जिस पर वाराणसी के घाट पर जारी डाक टिकट की प्रतिकृति भी अंकित होगी। इससे किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। इसके अलावा इसे मात्र ₹ 201 में वाराणसी सिटी डाकघर के काउंटर से भी प्राप्त किया जा सकता है।

श्री काशी विश्वनाथ प्रसाद में शामिल वस्तुएं-

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि प्रसाद में श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिङ्ग की छवि, महामृत्युंजय यंत्र, श्री शिव चालीसा, 108 दाने की रुद्राक्ष की माला, बेलपत्र, माता अन्नपूर्णा से भिक्षाटन करते भोले बाबा की छवि अंकित सिक्का, भभूति, रक्षा सूत्र, रुद्राक्ष मनका, मेवा, मिश्री का पैकेट इत्यादि शामिल हैं। सूखा होने के कारण यह प्रसाद लम्बे समय तक उपयोग में बना रहता है।  प्रवर अधीक्षक डाकघर, वाराणसी पूर्वी मंडल श्री राजन ने बताया कि, डाक विभाग ने इस बात के भी प्रबंध किए हैं कि, श्रद्धालुओं को मोबाइल नंबर पर स्पीड पोस्ट का विवरण एस.एम.एस के माध्यम से मिलेगा। इसके लिए उन्हें  ई-मनीऑर्डर में अपना पूरा पता, पिन कोड और मोबाइल नंबर लिखना अनिवार्य होगा।

इस अवसर पर डाक अधीक्षक पी.सी. तिवारी, सहायक निदेशक दिनेश साह, ब्रजेश शर्मा, सहायक डाक अधीक्षक अजय मौर्या, सहायक लेखा अधिकारी संतोषी राय, निरीक्षक श्रीकांत पाल, रामचंद्र यादव, श्री प्रकाश गुप्ता, राजेंद्र यादव, राहुल वर्मा, सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।

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दुनिया में सहज कुछ भी नही मिलता

रामू काका सब खिड़कियाँ दरवाज़े अच्छे से बंद कर दीजिए,आज बारिश खूब जम कर हो रही है।अपने नौकर को आवाज़ दे कर श्वेता ने खिड़की से झांका तो सोच रही थी,चलो अच्छा भी है आज मेरे पौधों को पानी मिल गया।पिछले काफ़ी दिनों से तेज धूप से बेचारे मुरझा से गये थे। इतने में कबीर ,श्वेता के पति जो शहर के अच्छे बिज़नेस मैन मे से एक है ,कमरे में दाखिल हुए और कहने लगे।खुद से क्या बातें किये जा रही हो ?श्वेता कहने लगी !आज बोर हो गई हूँ सुबह से बारिश भी हो रही है।श्वेता ने कबीर से पूछा !कंयू न आज सावी के यहाँ चले? श्वेता की सहेली”सावी का पति भी शहर का माना हुआ सर्जन है,
श्वेता कहती जा रही थी।सावी न जाने कब से ,मुझे अपने घर आने के लिए कह भी चुकी है।मै ही हूँ जो वक़्त नही निकाल पाई।क्या कहते हो कबीर ?चले क्या ? श्वेता ने बड़े प्यार से फिर कबीर से पूछा।कबीर जो सारा दिन अपने काम से थका हुआ घर आया था कहने लगा ! ओह !मै तो भूल ही गया तुम्हें बताना कि सावी के पति का फ़ोन भी आया था कि कल उनके घर मे थोड़ा गैट टूगैदर रखा है और हमे बुलाया है,और फिर कबीर ने श्वेता से कहा कि इस बार कोई बहाना नहीं करना ,कल हम जा रहे है तो जा रहे है। कह कर कबीर सोने के लिये कमरे में चला गया।अगली शाम को श्वेता और कबीर सावी के यहाँ पहुँच गये।उन दोनो के देख कर सावी और उसके पति राकेश बहुत ख़ुश हुये ,क्यूँकि श्वेता कम ही पार्टीयों में आया ज़ाया करती थी या यूँ कह लीजिए इक घबराहट सी महसूस करती थी बहुत लोगों के बीच।शवेता धीरे धीरे सब से मिलने लगी।श्वेता के बचपन के कई दोस्त भी थे वहाँ।किसी ने श्वेता से कहा ! वाह !!क्या लिखती हो।श्वेत इक लेखिका ✍️ है।जैसे जैसे श्वेता लोगों के बीच जाती जा रही थी लोगों के मुँह से अपनी प्रशंसा सुनना उसे अच्छा भी लग रहा था और मन ही मन ख़ुशी भी हो रही थी।नीता ने तो श्वेता को अपनी बाँहों मे भर ही लिया और कहने लगी ! ,आ आ हाहा !आ गई मेरी हीरे जैसे सहेली ,और कहने लगी !वाह यार !क्या लिखने लगी हो ।कहाँ से प्रेरणा मिल रही है तुम्हें।कई सवाल श्वेता के सामने रख दिये।कई बार हम यूँ ही बात को कह देते हैं।मतलब शायद हमें भी नहीं पता होता।वैसे ही श्वेता ने भी कह दिया।नहीं रे ! कहाँ आता था कुछ लिखना ✍️ जो देखती हूँ समझती हूँ अपने आसपास ,वही काग़ज़ पर लिख देती हूँ श्वेता अच्छे घराने की होने के बावजूद ,घमण्ड जैसा उस मे ज़रा भी न था।सीधी साधी सरल ,सहज स्वभाव की स्वामिनी श्वेता, इक ठहरी हुई सी शख़्सियत तो थी ही।कोई अच्छा या बुरा ,कोई कुछ भी उसे कह जाये।श्वेता उस पर सिर्फ़ मुस्कुरा कर ही जवाब देती।आज भी हाथ जोड़ कर नीता से बोली !”मै खुद को सब के पैरो की धूल ही समझती हूँ।सच कहूँ तो ,मै तो आप सब की जूती के बराबर भी नही।कहाँ है मुझ मे कोई लियाक़त। नीता ने उसे वही रोका और टोंकने के लिहाज़ से जो कहा ,उसने तो श्वेता की ज़िन्दगी ही बदल डाली।नीता ने श्वेता से कहा! क्या वाक़ई मे दिल से कह रही हो।श्वेता बोली हाँ नीता सच ही तो कह रही हूँ ,तू तो मुझे बचपन से जानती हो।कैसी चुप चुप सी रहा करती थी।चार लोगों के बीच बात भी नही कर पाती थी।नीता ने कहा ! “रूक जा रूक जा” मेरी जान !ज़रा सोच कर देख ,जब तुम आज यहाँ आई और मैं तुम्हें देख कर अगर ये कहती कि वो देखो सब के पैरो की जूती या धूल आ रही है तो क्या तुम इस बात को सहन कर पाती ? तो क्या तब भी ऐसे ही तुम्हारे चेहरे पर मुस्कुराहट होती ? क्या ऐसे ही तुमहारे चेहरा शांत दिखाई देता जैसे अब दिख रही हो ?एक मिनट के लिए तो श्वेता का सिर ही घूम गया।हम अकसर बातों को एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देते है मगर कुछ बाते सीधा दिल और रूह पर असर कर जाती है नीता की कही बात ने श्वेता को अन्दर तक झिंझोड़ दिया और सच में ,श्वेता थोड़ा रूकी ,सोचने लगी कि क्या वाक़ई में मेरा रिएक्शन यही होता, जब मैं आज पार्टी मे आई थी और अगर नीता ऐसे ही कह देती।दोस्तों !अकसर हम लोग यूं ही सरसरा सा कुछ भी कह देते है बिना सोचे समझे।तारीफ़ और अलोचना सुनते वक़्त हमारा रिएकशन क्या एक सा ही होता है ?कया हम अपनी आलोचना इतनी सहजता से स्वीकार करते है ? शायद नहीं ।” हमे किसी की भी बात का बुरा नही लगता क्या ? जब हम दोनों ही ,अच्छे या बुरे कैमेंट पर मुस्कुराने की ताक़त अर्जित कर लेंगे तो सच मे ही हम वो इन्सान बन सकेंगे जिस पर हमे खुद पर नाज हो सकेगा।सोने को कुन्दन बनने के लिये पहले ताप से गुजरना पड़ता है तब ही उसमे चमक आती है ठीक ऐसे ही ,हालात जो भी हो अच्छे या बुरे ।हमे कोई फ़र्क़ न पड़े हमारा रिएक्शन पाजिटिव ही हो ,तब ही हमारी शख़्सियत में निखार आ सकेगा ।इस दुनिया में सहज कुछ भी नही मिलता।सब की क़ीमत चुकानी पड़ती है हीरा जैसा व्यक्तित्व यूं ही नही बन सकता। बहुत कुछ सुनना या सहना पड़ता है।कया हम वाक़ई में इसके लिये तैयार हैं शायद नहीं। दोस्तों 🙏मान अपमान दोनों का ही स्वागत खुले दिल से स्वीकार करने की कोशिश जाये 🙏 लेखिका स्मिता कैंथ

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