बात बात पर भड़क रही थी शैफाली आज।रसोई के बर्तनो की आवाज़ से ही उसकी मन की व्यथा का अंदाज़ा लगाया जा सकता था।समीर की पत्नी शैफाली,जो किटी पार्टीयो में अक्सर आया जाया करती और आ कर अपने पति को परेशान करती और कहती ! समीर देखा !मेरी सहेली रीटा का घर बेस्ट लोकेशन में है हमारा कंयू नही। मोनिका ने अभी बंगला ख़रीदा है हम क्यों नहीं ले पा रहे।रात के खाने के बर्तन समेटते हुए शैफाली ने समीर से पूछा ?समीर तुम्हारी प्रमोशन का क्या बना ?बॉस से बात हुई क्या ? कब से कह रही हूँ बंगला ले लो।साल से ज़्यादा वक़्त हो गया हमें इस शहर में आये हुये।समीर चुपचाप अपनी पत्नी शैफाली की बाते सुन रहा था।शैफाली बोले जा रही थी ,मेरा मन भी करता है कि मै बंगले में रहूँ।अब तो मुझे ईर्ष्या सी होने लगी है सभी सहेलियों से।समीर तुम इतने काबिल हो कर भी कुछ कर नहीं पा रहे और बेधड़क भगवान को कोसे जा रही थी कि भगवान ने उसे ये फ़्लैट कंयू दिया,बंगला कयू नही दीया वग़ैरह वग़ैरह।समीर की ये सब बातें सुनना उसकी दिनचर्या में शामिल था।हर रोज ये बातें सुनता और मन ही मन में झुंझला जाता।चुपचाप अपने सोने के कमरे में चला गया।आँखे मूँद कर सोने का बहाना करने लगा।नींद तो उसे भी नहीं आ रही थी क्योंकि सोच तो वो भी यही रहा था कि कैसे तैसे कर के इक बंगला बन जाये।पता नहीं कब आँख लगी और सुबह हो गई।जल्दी से उठा और नाश्ता करके आफ़िस चला गया तो उसे वहाँ जा कर पता चला कि उसकी कंपनी जिस में वो काम करता था ,बैंकरपसी मतलब बंद होने को है और बॉस ने हाथ जोड़कर कर सभी कर्मचारियों को कहा !अब मेरी कंपनी बंद हो रही है और आप कहीं और काम देखिए।समीर के पैरो तले जैसे ज़मीन निकल गई।समीर अपनी कंपनी में बहुत अच्छी पोस्ट पर था।बड़ा अच्छा घर चल रहा था।ओह !अब क्या करेगा।आफ़िस से सीधा घर आया और शैफाली को भी ये बात बताई।अब दोनो परेशान कि अब कैसे घर चलेगा ,बच्चों की स्कूल की भारी फ़ीस कहाँ से देगा ,फ़्लैट की किश्त कैसे भरेंगा ।रात दिन नौकरी तालाश करने लगा।उसकी तो रातों की नींद ही उड़ गई।परेशान सा सोच रहा था कि अब जल्दी ही फ़्लैट भी ख़ाली करना पड़ेगा ,क्योंकि अगले महीने फ़्लैट की किश्त वो नहीं भर पायेगा।महीने का आख़िरी दिन है और जगह जगह नौकरी के लिये अपलाई कर चुका है मगर कहीं से कोई जवाब हाँ में नहीं आ रहा।कोई जवाब न पा कर बेहद निराश सा ,खोया सा बैठा था।कुछ नही सूझ रहा था उसे ।अचानक से दरवाज़े की घंटी बजी।समीर ने भारी कदमो से दरवाज़ा खोला ।वहाँ कोई उसे लैटर देने आया था।लैटर खोला तो देखा उसे इक कंपनी मे अच्छी नौकरी मिल गई है समीर इतना ख़ुश कि ख़ुशी से रोने ही लगा और कहने लगा कि शुक्र है भगवान ,तू कितना दयालु है मुझे सड़क पर जाने से बचा लिया।वरना मैं कहाँ ले कर जाता बच्चों को,और फ़्लैट को ऐसे देख रहा था जैसे वो फ़्लैट न हो कर उसका महल हो।शैफाली और समीर ख़ुशी से नाच रहे थे और भगवान का शुक्रिया कर रहे थे।
दोस्तों फ़्लैट तो वही था जो दोनों के दुख का कारण था और आज वही फ़्लैट सुख का कारण बना हुआ था।ख़ुशी कहाँ से आई अन्दर से ,स्वीकार करने मे ,शुक्र करने मे।ख़ुशी हमारी प्रतिक्रियाओं मे है कि हम हर हालात मे कैसे रिएक्ट करते है ।कैसे किसी हालात को समझते है।अपनी चीजों की कद्र हमे तब होती है जब वो हमारे हाथों से जा रही होती है या जा चुकी होती है ।सो वक़्त रहते हमे चीजो की,या हालातो की या अपने आसपास के लोगों की कद्र करना सीख लेना चाहिए।अकसर लोग सोचते है कि वो बहुत ख़ुश होते,अगर वो कहीं बाहर के देशों मे सैटल होते। विदेशों मे रहने वाले लोगों से पूछिए।वो भी परेशान है किसी न किसी बात पर।किसी को काम नही मिल रहा ,कोई बीमारी की वजह से परेशान,किसी के घर तालाक की बाते चल रही है कोई डिप्रेशन से घिरा हुआ है। जिसको सुख और सकून मिलना है वो कहीं भी रह कर भी मिल सकता है ।
दोस्तों ! दूसरो की उन्नति से ईषा करके कोई फ़ायदा नहीं ।अपने पास जो है उसी में सकून ढूँढिए।
“सकून की तालाश में अपना वक़्त न ज़ाया कर..सकून तेरे पास है और तू भटकाता फिर रहा है ..ऐ सकूने यार मे”।
✍️ लेखिका स्मिता केंथ (England)