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दुनिया में सहज कुछ भी नही मिलता

रामू काका सब खिड़कियाँ दरवाज़े अच्छे से बंद कर दीजिए,आज बारिश खूब जम कर हो रही है।अपने नौकर को आवाज़ दे कर श्वेता ने खिड़की से झांका तो सोच रही थी,चलो अच्छा भी है आज मेरे पौधों को पानी मिल गया।पिछले काफ़ी दिनों से तेज धूप से बेचारे मुरझा से गये थे। इतने में कबीर ,श्वेता के पति जो शहर के अच्छे बिज़नेस मैन मे से एक है ,कमरे में दाखिल हुए और कहने लगे।खुद से क्या बातें किये जा रही हो ?श्वेता कहने लगी !आज बोर हो गई हूँ सुबह से बारिश भी हो रही है।श्वेता ने कबीर से पूछा !कंयू न आज सावी के यहाँ चले? श्वेता की सहेली”सावी का पति भी शहर का माना हुआ सर्जन है,
श्वेता कहती जा रही थी।सावी न जाने कब से ,मुझे अपने घर आने के लिए कह भी चुकी है।मै ही हूँ जो वक़्त नही निकाल पाई।क्या कहते हो कबीर ?चले क्या ? श्वेता ने बड़े प्यार से फिर कबीर से पूछा।कबीर जो सारा दिन अपने काम से थका हुआ घर आया था कहने लगा ! ओह !मै तो भूल ही गया तुम्हें बताना कि सावी के पति का फ़ोन भी आया था कि कल उनके घर मे थोड़ा गैट टूगैदर रखा है और हमे बुलाया है,और फिर कबीर ने श्वेता से कहा कि इस बार कोई बहाना नहीं करना ,कल हम जा रहे है तो जा रहे है। कह कर कबीर सोने के लिये कमरे में चला गया।अगली शाम को श्वेता और कबीर सावी के यहाँ पहुँच गये।उन दोनो के देख कर सावी और उसके पति राकेश बहुत ख़ुश हुये ,क्यूँकि श्वेता कम ही पार्टीयों में आया ज़ाया करती थी या यूँ कह लीजिए इक घबराहट सी महसूस करती थी बहुत लोगों के बीच।शवेता धीरे धीरे सब से मिलने लगी।श्वेता के बचपन के कई दोस्त भी थे वहाँ।किसी ने श्वेता से कहा ! वाह !!क्या लिखती हो।श्वेत इक लेखिका ✍️ है।जैसे जैसे श्वेता लोगों के बीच जाती जा रही थी लोगों के मुँह से अपनी प्रशंसा सुनना उसे अच्छा भी लग रहा था और मन ही मन ख़ुशी भी हो रही थी।नीता ने तो श्वेता को अपनी बाँहों मे भर ही लिया और कहने लगी ! ,आ आ हाहा !आ गई मेरी हीरे जैसे सहेली ,और कहने लगी !वाह यार !क्या लिखने लगी हो ।कहाँ से प्रेरणा मिल रही है तुम्हें।कई सवाल श्वेता के सामने रख दिये।कई बार हम यूँ ही बात को कह देते हैं।मतलब शायद हमें भी नहीं पता होता।वैसे ही श्वेता ने भी कह दिया।नहीं रे ! कहाँ आता था कुछ लिखना ✍️ जो देखती हूँ समझती हूँ अपने आसपास ,वही काग़ज़ पर लिख देती हूँ श्वेता अच्छे घराने की होने के बावजूद ,घमण्ड जैसा उस मे ज़रा भी न था।सीधी साधी सरल ,सहज स्वभाव की स्वामिनी श्वेता, इक ठहरी हुई सी शख़्सियत तो थी ही।कोई अच्छा या बुरा ,कोई कुछ भी उसे कह जाये।श्वेता उस पर सिर्फ़ मुस्कुरा कर ही जवाब देती।आज भी हाथ जोड़ कर नीता से बोली !”मै खुद को सब के पैरो की धूल ही समझती हूँ।सच कहूँ तो ,मै तो आप सब की जूती के बराबर भी नही।कहाँ है मुझ मे कोई लियाक़त। नीता ने उसे वही रोका और टोंकने के लिहाज़ से जो कहा ,उसने तो श्वेता की ज़िन्दगी ही बदल डाली।नीता ने श्वेता से कहा! क्या वाक़ई मे दिल से कह रही हो।श्वेता बोली हाँ नीता सच ही तो कह रही हूँ ,तू तो मुझे बचपन से जानती हो।कैसी चुप चुप सी रहा करती थी।चार लोगों के बीच बात भी नही कर पाती थी।नीता ने कहा ! “रूक जा रूक जा” मेरी जान !ज़रा सोच कर देख ,जब तुम आज यहाँ आई और मैं तुम्हें देख कर अगर ये कहती कि वो देखो सब के पैरो की जूती या धूल आ रही है तो क्या तुम इस बात को सहन कर पाती ? तो क्या तब भी ऐसे ही तुम्हारे चेहरे पर मुस्कुराहट होती ? क्या ऐसे ही तुमहारे चेहरा शांत दिखाई देता जैसे अब दिख रही हो ?एक मिनट के लिए तो श्वेता का सिर ही घूम गया।हम अकसर बातों को एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देते है मगर कुछ बाते सीधा दिल और रूह पर असर कर जाती है नीता की कही बात ने श्वेता को अन्दर तक झिंझोड़ दिया और सच में ,श्वेता थोड़ा रूकी ,सोचने लगी कि क्या वाक़ई में मेरा रिएक्शन यही होता, जब मैं आज पार्टी मे आई थी और अगर नीता ऐसे ही कह देती।दोस्तों !अकसर हम लोग यूं ही सरसरा सा कुछ भी कह देते है बिना सोचे समझे।तारीफ़ और अलोचना सुनते वक़्त हमारा रिएकशन क्या एक सा ही होता है ?कया हम अपनी आलोचना इतनी सहजता से स्वीकार करते है ? शायद नहीं ।” हमे किसी की भी बात का बुरा नही लगता क्या ? जब हम दोनों ही ,अच्छे या बुरे कैमेंट पर मुस्कुराने की ताक़त अर्जित कर लेंगे तो सच मे ही हम वो इन्सान बन सकेंगे जिस पर हमे खुद पर नाज हो सकेगा।सोने को कुन्दन बनने के लिये पहले ताप से गुजरना पड़ता है तब ही उसमे चमक आती है ठीक ऐसे ही ,हालात जो भी हो अच्छे या बुरे ।हमे कोई फ़र्क़ न पड़े हमारा रिएक्शन पाजिटिव ही हो ,तब ही हमारी शख़्सियत में निखार आ सकेगा ।इस दुनिया में सहज कुछ भी नही मिलता।सब की क़ीमत चुकानी पड़ती है हीरा जैसा व्यक्तित्व यूं ही नही बन सकता। बहुत कुछ सुनना या सहना पड़ता है।कया हम वाक़ई में इसके लिये तैयार हैं शायद नहीं। दोस्तों 🙏मान अपमान दोनों का ही स्वागत खुले दिल से स्वीकार करने की कोशिश जाये 🙏 लेखिका स्मिता कैंथ