Breaking News

खुद से हठ करना ग़लत नहीं है इक ताक़त है

अक्तूबर का महीना और सुहानी हवायों का धीरे धीरे चलना।होटल के लॉन में फूलो की सजावट क़ाबिले तारीफ़ थी और फूलो की सोंधी सोंधी ख़ुशबू हवा मे जैसे घुल कर सारे वातावरण को मदहोश कर रही थी। होटल भी इक पहाड़ी पर, वाह !जहां से चारों ओर पहाड़ ही पहाड़,ढलती हुई शाम और उस पर गाने की धुन बड़ी ही मनमोहक प्रतीत हो रही थी।शाही खानो के स्टालस और उसपर खाने की ख़ुशबू ,मैं उस शादी के माहौल का पूरे मन से आनन्द ले रही थी।बहुत सालों के बाद इंग्लैंड से भारत आई थी,बानी की शादी मे शामिल होने के लिये।बानी मेरी सहेली की
बेटी।हालाँकि शादियाँ इंग्लैंड में भी बहुत अच्छे से होती हैं, मगर इंगलिश टच तो कहीं न कहीं होता ही है।मैं बहुतों से मिलते मिलाते बानी को मिली।बहुत ही प्यारी लग रही थी दुल्हन के रूप में।बानी के पिता का अच्छा कारोबार था तो ज़ाहिर था,शादी भी बड़े ही स्तर पर थी।जो साज सजावट से ही साफ़ दिखाई दे रही थी।मेरे बचपन की सहेली निशा भी मिली।बड़ा अच्छा लग रहा था।खाने की ख़ुशबू मुझे खाने की स्टालस की ओर खींचने लगी।मै और निशा स्टालस की बढ़ रही थी तो पीछे से आवाज़ आई ,बेटा आरूश तुम्हारी ममी कहाँ है ? जा बेटा ,ज़रा बुला कर ला।आरूश अपनी दादी से कह रहा था।दादी इतने लोगों के बीच कहाँ ढूँढू ममी को।अच्छा देखता हूँ शायद शैल आंटी से पास खडी हो।आरूश भागा भागा गया और अपनी ममी स्वाति को बुला लाया।दादी ने स्वाति से कह रही थी।
बहू स्वाति !मेरी खाने की प्लेट तो बना ला ज़रा ,और ये भी देख लेना ,तुमहारे पापा ने खाना खा लिया क्या ?और हाँ सुन ज़्यादा तीखी चीजें मेरी प्लेट मत लाना।सब थोड़ा ही डालना ,बहुत ज़्यादा खाना तो मै खा ही नही सकूँगी ।
इक और आवाज़ फिर सुनाई दी ,जो कह रही थी ! नही पूनम तुम ख़ुद उठो और खुद अपनी प्लेट बना कर लाओ।ये क्या तरीक़ा है पूनम ऐसे तो तुमहारी टाँगें काम करना बंद कर देंगी,और अगर तुम खुद चलोगी तो अपनी पसंद का खाना ,ज़रूरत के मुताबिक़ डाल कर ला सकती हो।बहू तो मर्ज़ी से कुछ भी प्लेट में डाल कर ले आयेगी।वो शायद तुम खाना चाहोगी कि नहीं ,इसी लिये कह रही हूँ ।अभी तुम चल सकती हो ,तो चलना चाहिए न ।इस तरह बच्चों से ऐसे छोटी छोटी बाते की अपेक्षा कंयू करती हो और तुम अपने पति गोयल साहब की भी फ़िक्र क्यों कर रही हो ,देखा नही वो अपने दोस्तों के बीच कितना हंस खेल रहे है ,वो भी खा ही लेंगे अपने दोस्तों के साथ।
तुम बस मेरा हाथ पकड़ो ,मैं चलती हूँ तुमहारे साथ।और पूनम कह रही थी।मैं कहाँ जाऊँगी ,बहू ले आयेगी न अपने आप।मुझ से नहीं चला जाता इतनी भीड़ में।फिर इक ज़ोर से हंसी सुनाई दी।सारी बाते मेरे कानों मे साफ़ सुन रही थी।
मैंने मुड कर देखा तो इक बड़ी उम्र की महिला ,जो आंटी शोभना थी और अपनी सहेली पूनम का हाथ बड़े प्यार से पकड़ कर धीरे धीरे खाना की स्टालस की तरफ़ ले जा रही थी। मुख पर तेज ,आवाज़ मे रोबीलापन था और चाल भी बेमिसाल थी।बड़ा अच्छा लगा ये देख कर कि आंटी शोभना बड़ी उम्र होने के बाद भी उनकी सोच कितनी पाजीटिव है।जब कि हम इन्हें पुरानी पीढ़ी मे गिनते है और उन्हें पुराने ख़यालात वाले समझते है।
मैं खाने की प्लेट ले कर लाईन मे खड़ी थी।वो दोनों महिलायें हमारे पास आई तो मैंने शिष्टाचार निभाते हुए ,लाईन मे उन्हें आगे करना चाहा मगर आंटी शोभना ने बहुत ही प्यार से मुझे धन्यवाद दिया और कहाँ नही बेटा ,आप पहले अपनी प्लेट बनाइये ,हमारी बारी भी आ जायेंगीं जब कि आंटी शोभना के हाथ में भी चलने के लिये छड़ी पकड़ी हुई थी।मैं सोच रही थी ये आंटी जो खुद ठीक से चल भी नहीं पा रही।चेहरे पर पसीने की बूँदें भी चमक रही थी खुद आंटी की उम्र 80 साल के लगभग होगी शायद,मगर अपनी सहेली को कैसे समझा रही थी,और पूनम आंटी उनसे उम्र मे छोटी लग रही थी और यही नही ,निशा बता रही थी मुझे कि शोभना आंटी तो इस उम्र मे भी,इतनी शहर की ट्रैफ़िक होने के बावजूद भी ,खुद अपनी गाड़ी चलाती हैं ।बाहर के सारे काम खुद ही करती है।मैं सोचने लगी मैं आज भी अपनी सासु माँ की खाने की प्लेट लगा कर देती हूँ। कहीं न कहीं हम ही है जो बुजुर्गों को प्रोत्साहित नहीं करते कि वो अपना काम खुद से करते रहे।शोभना आंटी ठीक ही तो कह रही थी कि जब तक जान है।जब तक शरीर मे ताक़त है तब तक हिम्मत करते रहना चाहिए।ये कितनी अच्छी सीख है बुजुर्गों के लिये और हम सब के लिए ।
बहुत लोग ऐसा सोचते भी हैं कि बहू आ गई तो अब सास को बहू पर ज़िम्मेदारी सौंप देनी चाहिए।दोस्तों मैं खुद ऐसी सोच को सलाम करती हूँ ।बच्चे लाख अच्छे हो फिर भी अपने आप का काम करते रहना चाहिए।इससे शरीर भी चलता रहता है ।मन भी लगा रहता है।हठ करते रहना चाहिए।ये ज़रूरी नही कि आप की उम्र क्या है ज़रूरी ये है कि आप ,किस उम्र की सोच रखते है यू भी खुद से हठ करना ग़लत नहीं है ,ये इक ताक़त है सच में “कुछ लोग चंदन की तरह, ताउम्र खुशबू देते रहते हैं।”
बढ़ती उम्र उन्हें मुरझाने नहीं देती ,क्योंकि वो उम्र को हराना जानते हैं अपनी जवान सोच के साथ।
🙏लेखिका स्मिता