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लेख/विचार

नई सुबह नई रोशनी नया आग़ाज़ नये साल की हार्दिक बधाई

तेरी बेपनहा मोहब्बत तेरी बेशुमार मेहरबानियाँ..

तेरी बरसती हुई रहमते.. तुम्हारी हर बात के लिए शुक्रगुज़ार हूँ ..
मेरे साईं 🌹
तू रोशनी है मेरी .. तू सकून है मेरा ..
तेरे ही नूर से महकती है रूह मेरी …
तुझ से ही तो ,मैं हूँ … तुझ से ही तो ,ये वजूद है मेरा …
आँखों को इन्तज़ार , बस अब तेरा ही है …🙏🌹
दिन गुजरे ,महीने गुजरे,साल गुजरे

कुछ भी रूकता नहीं यहाँ दोस्तों।
न गम ..न ही ख़ुशी रूकेगी कभी।
कोई लम्हा जो गुज़र गया।कभी लौट कर आता नहीं है यहाँ। अब नया साल आया है ..

बहुत सी ख़ुशियाँ ,बहुत सी यादें ,हर साल की तरह ,कुछ पढ़ा कर ..कुछ लिखा कर ,

मिलाजुला सा अनुभव दे कर ..ये भी गुज़र ही जायेगा।
वक़्त हमे कुछ न कुछ सिखाने की कोशिश में लगा रहता है, जो हम सभी अपनी मंदबुद्धि ,

अहंकार अपनी ही चालाकियों की वजह से सीख नहीं पाते और फिर वक़्त खुद अपने ही

ढंग से सिखाता है हमे और कई बार वक़्त के सिखाने का वो ढंग या तरीक़ा हमें क़तई पसंद नहीं आता
“ये जहान इक मुसाफ़िर घर हैं दोस्तों “
इसे भूल कर अपना घर न समझ बैठईये..
लेखिका स्मिता केंथ ✍️

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तुम जीतते रहे और मैं हारती रही

रिश्तो की बाज़ियाँ चलती रही… तुम जीतते रहे और मैं हारती रही ….मगर अफ़सोस नहीं था मुझे इस हार का..जितनी बार मै हारती गई, भीतर से जीत का अहसास होता चला गया।”

ज़िन्दगी इक शतरंज ही है दोस्तों। हार जीत तो तय है “कभी मेरी कभी तेरी”…
खेल चलता रहे ,तो ज़ाहिर है ,चाले भी चलनी पड़ती है ,मगर खेल को चलाते वक़्त कई बार शय और कई बार मात मिलती है और हर बार खुद को बचाया जाता है यही ज़िंदगी है दोस्तों !हार हो जाये कभी तो घबराना नहीं,जीत हो जाये तो इतराना नही !! बस इतना याद रखिए।
ज़िन्दगी बस इक खेल ही है।खेल में “हार जीत”…खेल के साथ ही ख़त्म हो जाती ..जब खेल ख़त्म होगा.. तो न आप होंगे . न आपकी जीत होगी ,न ही आप की हार .. इस लिए ज़िन्दगी को बहुत गंभीरता से न ले कर ज़रा हल्के से लीजिए जनाब।
छोड़िये सब झंझट और वक़्त के साथ चलिए ,जो मिल रहा है उसी में ख़ुश रहिये।बहुतो को तो ये भी नसीब नहीं…और मैं अच्छे से ये भी जानती हूँ।तुम हर बाज़ी जीत जाओगे और सब मुश्किलों को बेहतर से मात दे पाओगे।
🌹यू भी दोस्तों !
जीतने वाला सिकन्दर तो हो सकता है मगर जिसे ये पता हो “कहाँ पर क्या हारना है “वो ही असल में बादशाह कहलाता है और सब के दिलों पर हकूमत भी वही कर पाता है।हार को कभी कम मत आंकिए।कई बार हम हार कर बहुत कुछ जीत लेते हैं बस यही याद रखने की बात है
लेखिका स्मिता ✍️

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टाटा कैंसर हॉस्पिटल के अध्‍ययन के अनुसार स्‍तन कैंसर के मरीजों के इलाज में योग को शामिल करना बहुत लाभकारी है

टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के एक अध्ययन के अनुसार स्तन कैंसर के रोगियों के उपचार में योग को शामिल करना बहुत लाभकारी है। कैंसर के इलाज में योग को शामिल करने से रोग मुक्त उत्तरजीविता (डीएफएस) में 15 प्रतिशत और समग्र उत्तरजीविता (ओएस) में 14 प्रतिशत सुधार देखा गया है।

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योग परामर्शदाताओं, चिकित्सकों के साथ-साथ फिजियोथेरेपिस्ट से प्राप्‍त जानकारी के साथ-साथ योग उपायों को स्तन कैंसर के रोगियों और इस रोग से मुक्‍त हुए लोगों की जरूरतों के अनुसार, उनके उपचार और रोगमुक्ति के विभिन्न चरणों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया था। योग प्रोटोकॉल में विश्राम और प्राणायाम की नियमित अवधि के साथ आसान और स्‍वास्‍थ्‍यकर आसनो को शामिल किया गया। इन आसनों को योग्य और अनुभवी योग प्रशिक्षकों द्वारा कक्षाओं के माध्यम से लागू किया गया। इसके अलावा, अनुपालन बनाए रखने के लिए प्रोटोकॉल के हैंडआउट्स और सीडी भी उपलब्‍ध कराये गए।

स्तन कैंसर में योग का उपयोग सबसे बड़ी नैदानिक परीक्षण वाली महत्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि यह भारतीय परंपरागत उपचार का ऐसा पहला उदाहरण है जिसका मजबूत नमूनों के आकार के साथ रैन्डमाइज़्ड अध्ययन के मजबूत पश्चिमी ढांचे में परीक्षण किया जा रहा है। स्तन कैंसर न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्‍तर पर महिलाओं को प्रभावित करने वाला आमतौर पर होने वाला कैंसर है। इससे महिलाओं में अधिक चिंता व्‍याप्‍त रहती है। इस कारण महिलाओं को पहले कैंसर के डर से जीवन समाप्‍त होने का खतरा और दूसरे इस खतरे के साथ-साथ इस रोग के उपचार के दुष्प्रभाव और उससे निपटने की चिंता के कारण दोहरी मार झेलनी पड़ती है। यह देखकर अत्‍यंत प्रसन्नता हो रही है कि परिश्रम और मजबूती के साथ योग की प्रक्टिस ने जीवन की उत्कृष्ट गुणवत्ता को बनाए रखने में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर दी है और योग ने इस रोग की पुनरावृत्ति और इससे होने वाली मृत्यु के जोखिम को संख्यात्मक रूप से 15 प्रतिशत तक कम कर दिया है।

डॉ. नीता नायर ने अमरीका में वार्षिक रूप से आयोजित किए जाने वाले विश्‍व के सबसे प्रतिष्ठित स्तन कैंसर सम्मेलनों में से एक, सैन एंटोनियो स्तन कैंसर संगोष्ठी (एसएबीसीएस) में एक स्पॉटलाइट प्रस्तुति के रूप में प्रस्‍तुत स्पॉटलाइट शोध-पत्र प्रस्‍तुत किया। जिसमें स्‍तर कैंसर पर योग के ऐतिहासिक प्रशिक्षण प्रभाव प्रस्‍तुत किए गए हैं। इस सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए हजारों शोध-पत्रों में से कुछ को स्पॉटलाइट विचार-मिमर्श के लिए चुना गया है और उपायों की नवीनता तथा स्तन कैंसर के परिणामों को प्रभावित करने वाले पहले भारतीय उपाय के कारण हमारा अध्ययन सर्वथा इसके योग्य है।

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टूटे जब मन के धागे घायल तब संबंध हुए

टूटे जब मन के धागे घायल तब संबंध हुए, जब लगे मन में पिड़ा आंखो से जल नीर बहे। अधरों की खामोशी जब चीखे दूर खड़ी मरियादा सीचे अवशाद हुए। घायल आशु की भाषा से बिसरी यादो का श्रृंगार हुए। स्वर देकर झनकृत कराती बिरहा प्रेम के छंद हुए। जो अंकित हैं हृदय के बिंदु पर धूमिल सारे अनुबंध हुए। टूटे जब धागे घायल तब संबंध हुए। मैंने जीवन को बंध लिया पीड़ा के अंतस लहेरो में तुम सरस रागनी बह निकले हम तो टूटे तटबंध हुए। टूटे जब मन के धागे.. वंदना बाजपेई

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लिव इन कितना सही?

ऐसा कहने सुनने में आता है कि अब जो अपराध होते हैं वह सोशल मीडिया की वजह से जल्दी सामने आ जाते हैं। अपराध पहले भी होते थे लेकिन खबरों में नहीं आ पाते थे और जब तक समाचार पत्रों के जरिए सामने आते थे तब तक मामला पुराना हो जाता था। वैसे यह सही भी है सोशल मीडिया की वजह से अपराध जल्दी ही लोगों के सामने आ जाता है लेकिन यदि महिला अपराध के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो इन आंकड़ों में बढ़ोतरी ही हुई है और लगातार बढ़ते जा रहे हैं और महिला अपराध समाज में दहशत फैलाने का कार्य कर रहे हैं। हमारे समाज में घरेलू हिंसा, दुष्कर्म, लव जिहाद और एसिड अटैक जैसे मामले बहुत तेजी से उभर रहे हैं। आखिर क्या कारण है कि इस तरह के अपराध बढ़ रहे हैं? यदि ध्यान दिया जाये तो सबसे बड़ी वजह तो सोशल मीडिया ही है जहां अश्लीलता को बुरी तरह से परोसा जा रहा है और जिसे बड़ों से लेकर बच्चे तक उस अश्लीलता को देखते और पोसते आ रहे हैं। महिलाएं, लड़कियां अजीबोगरीब कपड़े पहनकर, बेहूदा अंग संचालन करके वीडियो पोस्ट कर रही हैं। छोटे-छोटे बच्चे भी जिन्हें ठीक से बात करनी भी नहीं आती जिनकी उम्र खेलने और पढ़ने की है वह भी कमर मटका कर ऊलजलूल हरकतें करते दिख जाएंगे और उनकी ऐसी हरकतों पर माता-पिता बड़े गौरवान्वित होते हैं। उनके लिए उनका बच्चा स्टार से कम नहीं होता। इन्हीं रील्स वीडियो पर ही लोगों के भद्दे कमेंट भी पढ़ने को मिल जाते हैं। मतलब यह कि महिला और पुरुष दोनों का ही ओछापन दिखाई देता है। आज सबसे बड़ी समस्या सोशल मीडिया पर बनने वाली रील्स, वीडियो है जिस पर सख्त नियम लागू होने चाहिए। सभ्य घर की महिलाएं भी इससे अछूती नहीं रह गई हैं और कुछ स्त्रियों ने तो बेहूदेपन की हदें पार कर दी है।
लिव इन  का बढ़ता हुआ ट्रेंड  हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम हमारी सभ्यता, संस्कृति को कहां ले जा रहे हैं। हमारे देश में विवाह जैसी संस्था समाज की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ही है। यह लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता देना सही नहीं है। इसके दुष्परिणाम लव जिहाद के रूप में सामने आता है। जहां धर्म परिवर्तन ना करने के कारण, जबरदस्ती रिश्ते बनाए रखने के कारण या आपस में सामंजस्य ना रहने के कारण अपराधिक कृत्य सामने आते हैं। जिसमें बाद में पछताने के सिवा कुछ नहीं हासिल नहीं होता। हम भौतिक रूप से बहुत खुले विचार वाले हो गए हैं लेकिन हमारी सोच अभी भी वही रूढ़िवादी है। हम अभी भी इस तरह की परंपराओं को मन से स्वीकार नहीं कर पाये हैं। पाश्चात्य सभ्यता वैसे भी हमें परिवार से अलग-थलग रहना सिखाती है जोड़कर नहीं। इस सब पर रोकथाम जरूरी है। समाज को सही दिशा देने के लिए आजादी के नाम पर ऐसी उच्श्रृंखलता लिव इन जैसी प्रथा को खत्म किया जाना चाहिए। पाश्चात्य सभ्यता में संबंधों का टूटना-बिखरना एक आम बात है, वहीं अब भारत में भी रिश्तों का औचित्य खोने लगा है और व्यक्तिगत हितों के सामने आपसी रिश्तों का कद दिनोंदिन बौना होता जा रहा है और महानगरों में यह प्रथा (लिव इन) ज्यादा प्रचलित हो रही है। लिव इन की प्रथा उन लोगों के लिए सही है जिनके रिश्ते में दरार पैदा हो गई हो या विवाह विच्छेद में दिक्कतें आ रही हो क्योंकि हमारी कानून व्यवस्था बहुत लचर है जिसके कारण न्याय मिलने में काफी समय लग जाता है। लिव इन की प्रथा भारतीय समाज में नयी नहीं है। वैदिक काल में हमारे यहाँ मान्य विवाह की आठ पद्धतियों में से एक ‘गंधर्व विवाह पद्धति’ प्रचलित थी। जिसे समाज मन से स्वीकार नहीं करता,, क्योंकि यह रिश्ता सामाजिक मर्यादाओं और दायित्वों को अमान्य करता है।
लिव इन रिलेशनशिप के लिए सरकार ने कुछ नियम बनायें हैं जिनका उल्लंघन खुलेआम होता है।
महिला अपराधों में घरेलू हिंसा को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां स्त्री परिवार, समाज, दबाव और शर्म के कारण आवाज नहीं उठा पाती है। परिवार का सहयोग ना मिलना, बच्चों का भविष्य ध्यान में रखकर उसके पास चुप रहने के अलावा कोई पर्याय नहीं होता है। देखा गया है कि ऐसी स्त्रियां मानसिक स्तर पर और निर्णय लेने की क्षमता में खुद को अक्षम पातीं हैं। उनका व्यक्तित्व दबा दिया जाता है।
आजकल बच्चों के हाथों में मोबाइल होना आम बात है और वह भी सोशल मीडिया से अछूते नहीं है। इन सब का असर उनके मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक स्तर पर क्या असर होगा यह सोचने का विषय है? हिंसा से भरपूर सीरियल, मूवीज़ देखकर ही लोग अपराधिक प्रवृत्ति की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं। इस सब पर रोकथाम जरूरी है। सबसे बड़ी समस्या तो यही है कि आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों के मन से कानून का डर खत्म हो गया है। आज जरूरत है स्मार्ट पुलिस व्यवस्था की और पुलिस को भी अपना रवैया बदलना होगा उसे सकारात्मक रवैया अपनाना होगा ताकि पीड़ित व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सके और न्याय के लिए आवाज उठा सके।
लिव इन जैसे रिश्तो में भरोसा कम रहता है और अलगाव की स्थिति ज्यादा रहती है जिसमें पुरुष से ज्यादा महिलाओं को दिक्कतों का सामना ज्यादा करना पड़ता है साथ ही उत्पीड़न और सामाजिक उपेक्षा भी ज्यादा सहनी पड़ती है अगरचे इनसे कोई संतान रही तो उसकी मानसिक स्वास्थ्य और उसके भविष्य पर भी बुरा असर पड़ता है। लिव इन रिलेशनशिप दायित्वों से मुंह छिपाना ही है जिसमें कोई बंधन नहीं होता है। आज बहुत जरुरी हो गया है कि सरकार इस पर सख्त कानून बनाये। लिव इन प्रगतिवाद की अनिवार्य बुराई है। सामाजिक व्यवस्था की जड़ता और कट्टरता को दूर कर लिव इन रिलेशनशिप को संस्कारपरक परिवार बनाने की दिशा में प्रयास होने चाहिए। ~ प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

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प्रदूषण…. एक गंभीर समस्या ~प्रियंका वर्मा महेश्वरी

प्रदूषण सिर्फ मल, कचरा, सीवर लाइनों का बहना या यहां वहां पानी का जमा होना ही नहीं है बल्कि ऐसे तमाम कारक है जो प्रदूषण के दायरे में आते हैं और उनसे बचने का उपाय, उन्हें सुधारना, स्वच्छ रखना आज की मुख्य जरूरत है। भागमभाग वाली जीवनशैली, समयाभाव, कम समय में ज्यादा सुविधाओं की उपलब्धता और प्रकृति के प्रति लापरवाही ऐसे कारक हैं जो वातावरण में प्रदूषण बढ़ा रहे हैं और इसी वजह से प्राकृतिक वातावरण में प्रतिकूल परिवर्तन हो रहा है। वातावरण में फैले हानिकारक तत्व से अनजाने में ही व्यक्ति उनका शिकार होते जा रहा है, फलस्वरुप सांस की बीमारी, हृदयाघात, एलर्जी, कैंसर जैसी बीमारियांज्यादा पनप रही हैं। आज सड़कों पर नजर घुमायें तो दो चक्के और चार चक्कों से भरी हुई सड़कें दिखाई देंगी। अक्सर पैदल यात्रियों के चलने के लिए जगह भी कम पड़ जाती है और तो और इस समस्या से निजात पाने के लिए फ्लाईओवर बना दिए जा रहे हैं जो समस्या का कुछ हद तक निदान तो कर देता है लेकिन जगह का दायरा धीरे धीरे कम होते जा रहा है, खुलापन खत्म होते जा रहा है। साथ ही ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण को भी बढ़ावा मिल रहा है। बड़ी-बड़ी मिलों से और कारखानों से निकलता हुआ धुआं सिर्फ बीमार ही नहीं करता बल्कि प्रकृति को भी नुकसान पहुंचाता है। घने शहरीकरण और औद्योगिकरण के कारण ध्वनि प्रदूषण आम हो गया है और इसकी वजह से बहरापन, नींद विकार, बीपी की समस्या जैसी बीमारियां आम हो गई है। बात जब प्रदूषण की निकली है तो जल प्रदूषण को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। कहते हैं कि जल ही जीवन है और यही जीवनदायिनी जल अब दूषित जल में परिवर्तित हो गया है। मुझे याद नहीं आता कि बचपन में हमने कभी आर ओ का पानी या बिसलेरी का पानी पिया हो। सीधे नगरपालिका का पानी ही पीने के काम में और घर के कामकाज में इस्तेमाल किया जाता था। कहीं सफर पर भी जा रहे हों तो स्टेशन पर लगे नल से ही पानी भरकर काम चल जाता था लेकिन अब स्वच्छ हवा, पानी सब बिकने लगा है। आर ओ या फिल्टर पानी पीने से व्यक्ति का इम्यून सिस्टम कमजोर होता जा रहा है लेकिन आज इसके अलावा कोई पर्याय भी नहीं बचा है। सबसे बड़ी समस्या तब आती है जब पानी निकासी की व्यवस्था सही ढंग से नहीं हो पाती है। बारिश से जमा हुआ पानी, सीवर लाइनों और गटर का भरा हुआ होना, जहां तहां लीकेज यह प्रशासन की अव्यवस्था दर्शाती है और साथ ही बीमारियों को न्योता भी देती है। नदियों को स्वच्छ करने का अभियान काफी समय से चल रहा है लेकिन गंगा अभी तक दूषित है। कुछ ऐसी चीजों जिनका दैनिक जीवन में बहुत महत्व है लेकिन साथ ही वह जीवन के लिए हानिकारक भी है मसलन पॉलिथीन, प्लास्टिक से बनी चीजें, बॉटल यह जितनी सुविधाजनक है उतनी ही नुकसानदेह भी होती हैं। मुझे याद है कि बचपन में हमारे घरों में सामान लाने के लिए कपड़े की थैली का इस्तेमाल किया जाता था। दूध, छाछ, घी लाने के लिए बरनियों का इस्तेमाल किया जाता था, आज की तरह प्लास्टिक का इस्तेमाल नहींहोता था। लोगबाग सफाई के लिए भी जागरूक नहीं दिखाई देते हैं। पहले सड़कों पर सफाई कर्मचारी रोज सुबह झाड़ू लगाते थे लेकिन अब कर्मचारी गायब दिखते हैं। कचरा उठाने वाली गाड़ियाँ दो दो दिन तक गायब रहतीं हैं। जनता जनार्दन भी कचरा फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। आज बहुत जरूरत है कि प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए यातायात के कुछ नियम बनाए जायें। नदियों का जल स्वच्छ किया जाए ताकि आर ओ या फिल्टर का पानी पीने से बचा जा सके और पानी की गुणवत्ता को बनाए रखा जा सके। प्रकृति की अवहेलना नहीं की जानी चाहिए वरना उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है प्राकृतिक आपदाओं के रूप में। दिल्ली एक ऐसा शहर है जहां इस समय सबसे ज्यादा प्रदूषण फैला हुआ है, और यह सरकार की विफलता और अव्यवस्था ही है कि हम प्रदूषण के इस भयानक मंजर पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं। दिल्ली वाले एक बार फिर से नजर बंद हो गए। दिल्ली में ए क्यू आई (गुणवत्ता सूचकांक) लेवल के खतरनाक स्तर तक पहुंचने के बाद सख्त नियम लागू किए गए थे जिसका प्रभाव आम नागरिकों को रोजगार और आर्थिकी रूप से चुकाना पड़ा। प्रदूषण स्तर में बढ़ोतरी के मद्देनज़र दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग ने शहर में BS-4 डीजल और BS-3 पेट्रोल गाड़ियों पर रोक लगाई थी। साथ ही लोगों को एक बार फिर से वर्क फार होम के लिए आदेश मिल गए थे। स्कूल कॉलेज बंद हो गए थे, फिर से ऑनलाइन क्लासेस शुरु हो गई थी। ऐसे में बच्चे क्या अपनी शिक्षा के साथ न्याय कर पाएंगे? और पराली जैसी गंभीर समस्या का स्थाई हल क्यों नहीं निकाला जा रहा?

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मेडिकल माफियाओं का फैलता संजाल कानून व्यवस्था के लिए एक नयी चुनौती -डॉ.दीपकुमार शुक्ल (स्वतन्त्र टिप्पणीकार)

शिक्षा और भूमि के बाद अब मेडिकल माफियाओं का फैलता संजाल कानून व्यवस्था के लिए एक नयी चुनौती बनकर उभरा है| इसके लिए देश की लचर एवं अदूरदर्शी स्वास्थ्य नीतियाँ ही सर्वाधिक जिम्मेदार हैं| वहीँ सरकारी तन्त्र में व्याप्त भ्रष्टाचार कडुवे करेले को नीम का सम्बल प्रदान कर रहा है| हाल ही में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर तथा उड़ीसा के बरहामपुर में मेडिकल माफियाओं के विरुद्ध हुई पुलिसिया कार्रवाई से इस बात को भलीभांति समझा जा सकता है| गोरखपुर के मेडिकल माफिया पर फर्जी दस्तावेज के सहारे मेडिकल कालेज चलाने का आरोप है तो उड़ीसा में एक ऐसा गैंग पुलिस द्वारा पकड़ा गया है जो सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों के परिजनों को बहला-फुसला कर प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने के लिए प्रेरित करता था| जिसके बदले प्राइवेट अस्पतालों से उन्हें दलाली के रूप में मोटी रकम मिलती थी| ऐसे मेडिकल माफिया मात्र गोरखपुर और बरहामपुर में ही नहीं बल्कि देश के कोने-कोने में फैले हुए हैं| जो अपनी तिजोरी भरने के लिए सदैव आम जन के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हैं| मानक को ताक पर रखकर गली-गली चल रहे नर्सिंग होम स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मिली भगत से चिकित्सा सेवा के नाम पर जो कुछ कर रहे हैं वह भी अब धीरे-धीरे उजागर होने लगा है| अनगिनत झोलाछाप डॉक्टर और फार्मासिस्ट स्वयं का नर्सिंग होम खोलकर बैठे हैं और सुबह-शाम डॉक्टर बनकर ओपीडी करते हैं| जिससे इनके झांसे में आने वाले आम जन का जीवन संकट में पड़ना स्वाभाविक है| यह सर्वविदित है कि लगभग सभी सरकारी डॉक्टर अपना छोटा-बड़ा नर्सिंग होम चलाते हैं| लेकिन अब तो सरकारी अस्पतालों के फार्मासिस्ट एवं कर्मचारी तक भी अपना-अपना निजी अस्पताल खोले हुए हैं| जहाँ मानक की धज्जियाँ उड़ती हुई कभी भी देखी जा सकती हैं| ज्यादातर ने अपने यहाँ मानक विहीन ट्रामा सेंटर, आई.सी.यू. (इंटेंसिव केयर यूनिट) तथा एन.आई.सी.यू.(नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट) तक खोल रखा है| जिसके नाम पर गम्भीर मरीजों से पहले तो जमकर वसूली होती है और जब मरीज की हालत ज्यादा अधिक गम्भीर हो जाती है तब उनके परिजनों से कहीं और ले जाने के लिए कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है| इस परिस्थिति में दो-चार प्रतिशत सौभाग्यशाली मरीजों को छोड़कर शेष की मृत्यु हो जाना सुनिश्चित है| मरीज की मृत्यु से आहत परिजन यदि हंगामा करते हैं तो कानून के रक्षक अस्पतालों की सुरक्षा में तटस्थ नजर आते हैं| परिणामस्वरूप परिजनों को अपने मरीज की मृत्यु को विधि का लेख मानकर सन्तोष करना पड़ता है और मेडिकल माफिया फिर नये शिकार की प्रतीक्षा में लग जाते हैं| कुछ जागरूक परिजन यदि इलाज में हुई लापरवाही की शिकायत स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से करते हैं तो जाँच के नाम पर उन्हें परेशान करते हुए शासनादेश संख्या 13-1/97-का-1/97 का हवाला देकर शिकायत से सम्बन्धित शपथ-पत्र एवं साक्ष्य के साथ बयान देने हेतु उपस्थित होने का निर्देश दिया जाता है| जो एक सामान्य व्यक्ति के लिए दुरूह कार्य जैसा है| इसलिए कई शिकायतकर्ता जाते ही नहीं हैं| तो कई पर अस्पताल से जुड़े लोग साम, दाम एवं दण्ड की नीति अपनाकर शिकायत वापस लेने का दबाव बनाते हैं और प्रायः सफल भी होते हैं| दोनों ही मामलों में अपस्ताल सञ्चालकों पर लगाये गये आरोप फर्जी सिद्ध करते हुए उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया जाता है| जो शिकायतकर्ता शपथ-पत्र, साक्ष्य और बयान देने हेतु पहुँच भी जाते हैं| उन्हें तरह-तरह के पश्नों और दलीलें देकर हतोत्साहित करने का प्रयास होता है| मसलन ‘आप उस अपस्ताल में गये ही क्यों?’, ‘आपने उस अपस्ताल के डाक्टरों की डिग्री देखे बिना उनसे इलाज क्यों शुरू करवाया?’, ‘आपके मरीज की रिपोर्ट देखकर लगता है कि उनकी हालत बहुत ख़राब थी लेकिन उनका इलाज जितना हुआ है वह सही हुआ है|’ या ‘उनकी उम्र बहुत ज्यादा थी’ आदि बेतुके सवालों और कुतर्कों के माध्यम से अस्पताल संचालकों को बचाने का पूरा प्रयास किया जाता है| ऐसे में मेडिकल माफियाओं के हौंसले बुलन्द होना स्वाभाविक है|
जहाँ तक निजी अस्पतालों के मानक की बात है तो जानकारों के मुताबिक प्रति 20 बेड वाले अस्पताल में कम से कम एक एमबीबीएस डॉक्टर चौबीस घण्टे उपलब्ध रहना चाहिए| नर्सें भी जीएनएम (जनरल नर्सिग एण्ड मिडवाईफरी) की उपाधि प्राप्त होनी चाहिए| आपरेशन थियेटर में कम से कम एक ओटी टेक्नीशियन चौबीस घण्टे होना अनिवार्य है| इसी प्रकार आई.सी.यू. और एन.आई.सी.यू. में पूर्ण प्रशिक्षित डाक्टरों की टीम चौबीस घण्टे उपलब्ध रहना चाहिए| जिसमें एक बेहोशी का डॉक्टर अर्थात एनेस्थेटिस्ट होना आवश्यक है| लेकिन महज कुछ निजी अस्पतालों को छोड़ दें तो शायद ही कोई ऐसा नर्सिंग होम हो जो उपरोक्त कसौटी पर खरा उतरे| लेकिन चिकित्साधिकारियों की दृष्टि में शत-प्रतिशत अस्पताल पूर्ण मानक के साथ चल रहे हैं| स्वास्थ्य विभाग के एक उच्च अधिकारी ने बताया कि जब भी कोई हमारे पास सम्पूर्ण कागजी औपचारिकताओं के साथ नर्सिंग होम का रजिस्ट्रेशन करवाने आता है तो हमारी मजबूरी है कि हमें उसका रजिस्ट्रेशन करना पड़ेगा| इससे सिद्ध होता है कि स्वास्थ्य विभाग की दृष्टि में प्रत्येक अस्पताल कागजी रूप से सभी मानकों से युक्त है| लेकिन यह सुनिश्चित कौन करेगा कि व्यावहारिक धरातल पर भी सम्पूर्ण मानकों के अनुसार सभी नर्सिंग होम संचालित हो रहे हैं? आम आदमी चिकित्साधिकारियों के उस भरोसे पर ही अपना इलाज करवाने किसी निजी अस्पताल में जाता है कि न केवल उसका रजिस्ट्रेशन सभी आवश्यक मानकों को पूरा करने के बाद ही किया गया है बल्कि चिकित्साधिकारियों की सतत निगरानी में उसका सञ्चालन भी मानक के अनुरूप हो रहा है| क्या यह व्यावहारिक रूप से सम्भव है कि मरीज इलाज करवाने से पहले डाक्टरों की डिग्री चेक करे? कदाचित कोई ऐसा प्रयास करे भी तो वह यह कैसे सुनिश्चित करेगा कि उसे जो डिग्री दिखाई जा रही है वह फर्जी है या असली है| गोरखपुर का मेडिकल माफिया फर्जी दस्तावेज दिखाकर ही तो मेडिकल छात्रों के एडमीशन ले रहा था और छात्र उन दस्तावेजों को असली समझकर अपना एडमीशन करवा रहे थे| इससे सिद्ध होता है कि दस्तावेज की जाँच एक एक्सपर्ट ही कर सकता है न कि कोई सामान्य व्यक्ति| शायद इसीलिए विशेषज्ञों की पूरी टीम चिकित्साधिकारियों के रूप में तैनात की जाती है| लेकिन दुर्भाग्य से वह टीम मौका पड़ने पर अपने नकारेपन और लापरवाही का ठीकरा आम आदमी के सर फोड़कर मेडिकल माफियाओं को बचाने का पूरा प्रयास करती है| सरकारी अस्पताल के डाक्टरों, फार्मासिस्टों या अन्य कर्मचारियों द्वारा सञ्चालित निजी अस्पतालों के किसी भी दस्तावेज में उक्त डॉक्टर, फार्मासिस्ट या कर्मचारी का नाम नहीं होता है| जबकि व्यावहारिक रूप से वही उसके वास्तविक सञ्चालक एवं मुख्य चिकित्सक होते हैं| आम आदमी उन्हीं को डॉक्टर मानकर इलाज करवाने जाता है| ऐसे अस्पतालों में हुई लापरवाही की शिकायत प्रायः उसी तथाकथित सञ्चालक के नाम पर होती है और होनी भी चाहिए| तब जाँच दल यह कहते हुए पल्ला झाड़ने का प्रयास करते हैं कि क्या करें हमें कोई डाक्यूमेंट्री प्रूफ नहीं मिला| जबकि यदि वह गंभीरतापूर्वक जाँच करते हुए वहाँ भर्ती मरीजों से पूंछतांछ करें, वहाँ के पुराने मरीजों तथा अस्पताल के आसपास रहने वालों से जानकारी करें तो उन्हें इस बात का व्यावहारिक प्रूफ सहजता से मिल जायेगा कि अस्पताल का वास्तविक डॉक्टर एवं सञ्चालक कौन है| निजी अस्पतालों की एक और विशेषता है कि उनका मेडिकल स्टोर भी उसी परिसर में होता है| वहाँ की दवा बाहर के किसी मेडिकल स्टोर पर नहीं मिलती है| एक्सरे, एम्.आर,आई, से लेकर ब्लड जाँच तक यदि बाहर से करवानी है तो वह भी उन्हीं की बताई पैथालाजी या जाँच सेंटर में होगी| अन्य कहीं की जांच रिपोर्ट स्वीकार्य नहीं होती| कुल मिलाकर चिकित्सा सेवा के नाम पर चारो तरफ लूट मची हुई है| लचर एवं अदूरदर्शी स्वास्थ्य नीतियों तथा चिकित्साधिकारियों की कृपा से मेडिकल माफियाओं का साम्राज्य सतत रूप से देश भर में अपनी जड़े जमा रहा है| लेकिन इस पर नियन्त्रण लगाने का कहीं कोई प्रयास होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है| सिर्फ एक उम्मीद की किरण स्थाई लोक अदालतों से आती हुई अवश्य दिखाई देती है| यदि आपके साथ इलाज में कहीं कोई लापरवाही या अनावश्यक धन उगाही हुई है तो आप अपने जिला न्यायालय परिसर में स्थित स्थाई लोक अदालत जा सकते हैं| जहाँ कम से कम औपचारिकताओं में निःशुल्क एवं त्वरित न्याय आपको प्राप्त होगा|

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मोतियों का शहर….. हैदराबाद

सफर की शुरुआत अगर अच्छी हो तो पूरा सफर अच्छा बीतता है और सफर में उत्साह भी बना रहता है। जब हम हैदराबाद घूमने के लिए रवाना हुए तो कुछ ऐसा ही उत्साह और मंजिल पर पहुंचने की बेचैनी हमारे सफर को खुशनुमा बनाए हुए थी। हमारी यात्रा की मंजिल हैदराबाद से ढाई सौ किलोमीटर कुरनूल के पास स्थित श्रीशैलम में स्थित मल्लिकार्जुन मंदिर था। गोल पहाड़ियों वाला रास्ता बहुत रोमांचक था। सधे हुए हाथों से गाड़ी चलाना आसान नहीं था, हर समय एक डर बना रहता था किसी दुर्घटना का। श्रीशैलम पहुंचने का रास्ता पैदल नहीं है, आपको या तो बस, टैक्सी करनी पड़ती है या फिर खुद का वाहन रखना पड़ता है।रास्ता घने जंगल से होकर गुजरता है। रास्ते भर बंदरों का जमघट दिखाई पड़ता है और रात में वापसी की कोई गुंजाइश नहीं रहती है। जंगली जानवरों का डर, अंधेरा और खतरनाक रास्ते रात में गाड़ी चलाने की इजाजत नहीं देते।

श्रीशैलम पहुंचने के बाद हम होटल में रूकने के बजाय मंदिर के प्रांगण में ही रुके और वहां प्रकृति और मंदिर की सुंदरता का आनंद लेने लगे। मंदिर में दर्शन का समय सुबह 6:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक और शाम को 5:00 से 6:00 बजे तक रहता है। शीघ्र दर्शन के लिए रूपया महत्वपूर्ण तो हो ही गया है। बिचौलियों ने अपनी घुसपैठ हर जगह बना रखी है। बहरहाल हम सादी लाइन में खड़े हो गये और कुछ देर बाद करीब 4:30 बजे के आसपास मंदिर का दरवाजा खुला और हम सब अंदर जाने लगे। अंदर पड़ी हुई बेंच पर बैठकर बाबा के दर्शन का इंतजार करने लगे। कुछ समय बाद बाबा के दर्शन के लिए धीरे-धीरे भीड़ छोड़ी जाने लगी। यह सत्य है कि ईश्वर के सामने अमीर गरीब सब एक समान हो जाते हैं। उस समय भी ऐसा ही था। बाबा के दर्शन के समय शीघ्र दर्शन वालों की लाइन और आम लोगों की लाइन सब मिलकर एक हो गए और सभी दर्शनार्थी एक साथ दर्शन लाभ ले रहे थे। सबसे अच्छी बात यह लगी की भीड़भाड़ होने के बावजूद सब लोग एक जगह पर बैठे हुए थे और थोड़ी-थोड़ी देर से लोग दर्शन के लिए भेजे जा रहे थे। सावन के महीने में यहाँ बहुत ज्यादा भीड़ रहती है। बाबा का फूलों से श्रंगार देखकर मेरी नजर हट ही नहीं रही थी अगर मन में कुछ मांगने की इच्छा हो तो शायद वह भी भूल जाते हैं बाबा को देख कर। सिर्फ सुंदर अलौकिक रूप दर्शन ही दिखाई देता है।
उसके बाद हम लोगों ने मां पार्वती के दर्शन किये। दक्षिण संस्कृति की छाप के कारण मंदिर का एक अलग सौंदर्य देखने को मिल रहा था। मल्लिकार्जुन मंदिर की स्थापत्य कला ने मुझे बहुत आकर्षित किया। पुराने पत्थर, पुराना ढांचा, पुराने खंभे और उन पर बनी आकृति कहीं कोई नवनिर्माण नहीं। मैं कुछ देर तक मंदिर की बनावट और पत्थरों को देखती रही। वहाँ की स्थानीय भाषा तेलुगु होने के कारण लोग क्या बोलते थे वह समझ से बाहर था लेकिन जरूरत पड़ने पर वह लोग हिंदी भाषा का इस्तेमाल करते थे।
ऐसा माना जाता है कि शैल पर्वत पर स्थित होने के कारण इसे श्रीशैलम पर्वत भी कहते हैं। शिवपुराण के आधार पर मल्लिकार्जुन का अर्थ मल्लिका मां पार्वती और अर्जुन भगवान शिव को माना गया है मल्लिकार्जुन की कहानी शिव पार्वती के पुत्र गणेश और कार्तिकेय की कहानी है जो गणेश जी अपने माता-पिता की परिक्रमा पूरी करते हैं. ऐसी मान्यता है कि जब गणेश जी के परिक्रमा पूरी करने पर कार्तिकेय जी नाराज हो गये तो माता पार्वती भगवान शिव के साथ क्रौंच पर्वत पर कार्तिकेय जी को मनाने पहुंची। माता पिता के आगमन को सुन कार्तिकेय जी बारह कोस दूर चले गए, तब भगवान शिव वहां पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और तभी से वह स्थान मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हो गया। ऐसा कहा जाता है कि वहां पर पुत्र स्नेह में माता पार्वती हर पूर्णिमा और भगवान शिव हर अमावस्या को आते हैं।
इसके बाद हम सब रामोजी सिटी घूमने गए। रामोजी सिटी घूमने में पूरा दिन लग गया। मुझे सबसे ज्यादा अच्छा रामोजी सिटी का प्रबंधन लगा। हर व्यवस्था बहुत कायदे से की गई थी और घूमने आए पर्यटकों का ध्यान भी बहुत अच्छे से रखा जा रह था। कई प्रोग्राम जो मूवी से ही जुड़े हुए थे जिससे यह पता चलता है कि कार्टून कैसे बनते हैं, मूवी कैसे बनती है इसकी जानकारियां दी गई थी। जिसे जानकर आप आश्चर्य करेंगे। नई – पुरानी फिल्मों के सेट देखे बाहुबली, केजीएफ, आरआर, पुष्पा जैसी मूवी के सेट देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। बाहुबली का सेट जब देखा तो महसूस हुआ कि व्यक्ति मूवी देखने में इतना गुम जाता है कि पीछे लगा सेट जिसमें हाथी घोड़े हिल रहे हैं या नहीं वह भी मालूम नहीं पड़ता। वैसे भी तकनीकी दौर है और अब सबकुछ टेक्निकल हो गया है। रामोजी में ही हम लखनऊ, आगरा, मुंबई, दिल्ली, लंदन, रेलवे स्टेशन, ताजमहल वगैरह वगैरह सब घूम लिए। रामोजी सिटी 2,500 एकड़ में डिज़ाइन किया गया है, इसे गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स द्वारा दुनिया के सबसे बड़े स्टूडियो कॉम्प्लेक्स के रूप में प्रमाणित किया गया है।
बर्ड पार्क, एडवेंचर पार्क, जापानी गार्डन, मुगल गार्डन, सन फाउंटेन गार्डन और एंजल्स फाउंटेन गार्डन मुख्य आकर्षण हैं। वाइल्ड वेस्ट स्टंट शो, रामोजी स्पिरिट और कई तरह के स्ट्रीट इवेंट जैसे आकर्षक और रोमांचकारी लाइव शो हैं।
उसके बाद हम सालार जंग म्यूजियम जो हैदराबाद का इतिहास बयां करता है। म्यूजियम की जैपनीज गैलरी बहुत सुंदर है। पुराने गहने, बर्तन, हाथी को पहनाने वाले गहने, हथियार वगैरह सब कुछ बहुत दिलचस्प था। म्यूजियम में चीन, जापान, ईरान, पर्शिया और भारतीय सभ्यताओं का मिलाजुला इतिहास दिख रहा था।
बात करती हूँ अब चारमीनार की… चारमीनार यूं तो बहुत खूबसूरत दिखता है लेकिन वहां फैला हुआ बाजार उसकी सुंदरता को खत्म कर रहा है। चारमीनार हैदराबाद का सबसे प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षण का केंद्र है। यह स्मारक 1591 में मोहम्मद कुली कुतुब शाह द्वारा बनाया गया था और इसका नाम चारमीनार रखा गया था। इसे ‘पूर्व का आर्क डी ट्रायम्फ’ भी कहा जाता है। चारमीनार की ऊपरी मंजिल पर एक छोटी सी मस्जिद है। शाम की रोशनी इसे देखने लायक बनाती है। चारमीनार भीड़-भाड़ वाले इलाके में खड़ा है, जहां बाजार अस्त-व्यस्त हैं, जहां फेरीवाले, चूड़ी बेचने वाले और खाने-पीने की दुकानें हैं। फिर भी, यह हैदराबाद में एक लोकप्रिय यात्रा स्थल बना हुआ है।
इसके बाद हम सब सेवेन टोमब्स देखने गये। सात मकबरे काफी बड़े एरिया में फैला हुआ है और मैं दो ही मकबरे तक घूम सकी क्योंकि मेरे पैरों ने जवाब दे दिया था। मैंने वहां पर लोगों को पिकनिक मनाते हुए देखा। वो जगह हैदराबाद की विरासत को अब भी संभाले हुए हैं। कुतुब शाही मकबरा कुतुब शाही शासकों का शाही कब्रिस्तान है।
फिर निजाम पैलेस दिखा जो अब होटल के रूप में तब्दील हो चुका है। रास्ते से गुजरते हुए धूलपेट नाम की एक जगह थी। जिसके बारे में मालूम हुआ कि वहां पर मौजूद मस्जिद जिसमें एक मंदिर भी है जहां दोनों समय आरती और नमाज होती है और मस्जिद के बाहरी हिस्सों में लगी दुकानों में पूजा की सामग्री मिलती है। कहीं कोई बैरभाव नहीं दिखता। यह भाईचारा देखकर दिल बहुत खुश हो गया और अच्छा भी लगा कि अब भी ऐसी जगह मौजूद है।
हैदराबाद के खास पर्यटन स्थलों में गोलकुंडा किला बहुत मशहूर है। 170 सालों तक यहां के निजाम ने गोलकुंडा पर शासन किया। गोल आकार का किला, हैदराबाद का एक दर्शनीय पर्यटन स्थल है। किला 300 फीट की ग्रेनाइट पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। 87 बुर्जों के साथ गोलकुंडा किले में मंदिर, मस्जिद, महल, हॉल, अपार्टमेंट और अन्य संरचनाएं हैं। शानदार डिजाइन के साथ-साथ यह किला अपनी ध्वनि से भी पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। हमलों के दौरान राजा को सचेत करने के लिए किले को एक किलोमीटर की दूरी तक ध्वनि ले जाने के लिए बनाया गया था। गोलकुंडा खदानें अपने हीरे जैसे कोहिनूर, नासक डायमंड और होप डायमंड के लिए भी प्रसिद्ध हैं। गोलकुंडा का किला शहर के बाकी हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। किले के ऊपर से सूर्यास्त देखने लायक होता है।
फिर वहां का संघी मंदिर हैदरबाद के बाहरी क्षेत्र संघी नगर में स्थित है। यह मंदिर ऊंचे बने राजा गोपुरम के लिए जाना जाता है, जो कि स्थानीय लोगों के बीच काफी पवित्र है। अपनी ऊंचाई के कारण गोपुरम को काफी दूर से भी देखा जा सकता है। यह मंदिर सुंदर ढंग से परमानंद गिरि नामक एक छोटी सी पहाड़ी पर बना है। मंदिर की बनावट विशिष्ट दक्षिण भारतीय वास्तुशिल्प की याद दिलाती है। यहां हर साल हजारों की तादाद में लोग अपनी मनोकामना पूरी करने आते हैं। मंदिर में पत्थर से बने एक हाथी से खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। संघी मंदिर में कुल तीन गोपुरम है, जिसे देखकर लगता है कि यह आसमान को छू रहा है।
उसके बाद हम सब चिल्कुर मंदिर गये। वहाँ बालाजी को वीजा देने वाले भगवान भी कहते हैं। इस विश्वास की जड़ें एक घटना की जानकारी के रूप में मिलती हैं जब कुछ छात्र जिनके वीज़ा का आवेदन खारिज कर दिया गया था, वो यहाँ मंदिर में आए और प्रार्थना की कि केवल उनके आवेदन स्वीकार किए जाएं। खास बात यह है कि यह मंदिर किसी भी तरह का धन या दान स्वीकार नहीं करता है और यहाँ भगवान के दर्शन करते समय आंखें बंद नहीं की जाती है। यह बहुत पुराना मंदिर है और अभी भी अपनी वास्तविकता को बरकरार रखे हुए है।
इसके बाद नंबर बिड़ला मंदिर का जो अपने आप में बहुत खूबसूरत है। शांत वातावरण और बालाजी को देखकर शांति महसूस की। प्रभू का चेहरा निहारना अत्यंत सुखद लगा।
कोई भी घुमक्कड़ी हो बिना खरीदारी के पूरी नहीं होती। हैदराबाद को मोती की नगरी भी कहते हैं। तरह तरह के आकर्षक मोती के गहने मन को लुभाते हैं। लाख की चूड़ियाँ, मोजड़ी और हैदराबाद की पोचमपल्ली साड़ी बहुत मशहूर है। हैदराबाद एक ऐसा शहर है जो अपनी पारंपरिक संस्कृति के लिए जाना जाता है और वह संस्कृति निज़ामी विशेष खानपान की चीजों में दिखती है। खानपान में हैदराबादी बिरयानी, ईरानी चाय बहुत मशहूर है।

~प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

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अविश्वसनीय परिवर्तन

पुणे 3 अक्टूबर भारतीय स्वरूप संवाददाता, 40 साल की उम्र में, फिटनेस से वंचित शरीर के साथ दो किशोरों की परवरिश करते हुए, सुश्री प्रीति मस्के ने 2016 में अनिच्छा से 5 किमी दौड़ के लिए पंजीकरण कराया। आज, 2022 में, प्रीति म्हास्के, सुपर फिट, दो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड रखती हैं – प्रत्येक दौड़ने और साइकिल चलाने के लिए। अविश्वसनीय परिवर्तन, है ना!? साइकिल चलाने का उनका जुनून केवल बढ़ रहा है। यदि आप उसे चेतावनी देते हैं कि एक विशेष मार्ग अप्राप्य है या xyz घंटों में नहीं देखा जा सकता है, तो प्रीति इसे एक आदर्श चुनौती के रूप में देखती है! इसे हासिल करने के लिए उसे केवल अगले तीन महीने लगते हैं। उसकी शारीरिक क्षमता, मानसिक शक्ति और इच्छाशक्ति का इससे बेहतर सारांश क्या हो सकता है! ऐसी ही एक राइड में प्रीति का एक्सीडेंट हो गया। इसने, स्वाभाविक रूप से, नाजुक मानव शरीर और मृत्यु के बारे में विचारों का एक हिमस्खलन जारी किया। उनके समर्पित शोध ने उन्हें मस्तिष्क-मृत्यु और अंग दान के समाधान के रूप में सीखने के लिए प्रेरित किया। उसकी खोज एक एनजीओ, रीबर्थ फाउंडेशन में समाप्त हुई, जो उसके शहर – पुणे में काम कर रही थी। रीबर्थ पिछले 7 वर्षों से पूरे भारत में अंगदान के प्रति जागरूकता और प्रसार पर काम कर रहा है। प्रीति ने अब अंगदान जागरूकता के लिए अपनी भविष्य की सवारी को समर्पित करने का फैसला किया है। इस नेक काम में योगदान के रूप में, प्रीति ने पाकिस्तान सीमा से चीन सीमा तक, 13 दिनों में कुल 3800 किमी की ट्रांस-इंडिया सवारी करने का संकल्प लिया है। सवारी 1 नवंबर, 2022 को नारायण सरोवर, कोटेश्वर, गुजरात से शुरू होगी और 13 नवंबर, 2022 (3810 किमी) पर किबिथू, अरुणाचल प्रदेश में समाप्त होगी। बेहद दृढ़ निश्चयी महिला प्रीति का मानना है कि उम्र किसी के जुनून की खोज में बाधा नहीं होनी चाहिए। उन्होंने अब साइकिल चलाने के अपने प्यार का पालन करते हुए अंगदान के लिए योगदान देने का संकल्प लिया है। प्रीति मस्के ने कहा, “मेरे कट्टरपंथी तरीके के बावजूद, अगर मैं अंगदान के माध्यम से एक भी जीवन बचाने में सक्षम हूं, तो मुझे लगता है कि मैं इस ग्रह पर अपनी भूमिका निभाऊंगी।” हार्दिक बधाई, टीम रीबर्थ अधिक जानकारी के लिए: वेब: www.rebirthtrust.org फेसबुक: https://www.facebook.com/Rebirthorgandonation Instagram: https://www.instagram.com/rebirthtrust/ Youtube: https://www .youtube.com/channel/UC8jM2PJvQJWs14MF-t0AqFg

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काश! शहरों की भांति ग्रामीण क्षेत्र के भू माफियाओं पर भी गरजता बाबा का बुलडोजर

काश! भ्रष्ट तंत्रियों की ओर भी एक बार हो जाता बाबा के बुलडोजर का निशाना

जिस प्रकार से योगी सरकार पार्ट वन ने भू माफियाओं के खिलाफ बुलडोजर का अभियान चलाकर इनकी कमर तोड़ी है, जो निर्बाध रूप से बिना भेदभाव के पार्ट टु में भी तेजी से चल रहा है जिससे फर्जी ढंग से जनता में हुल थाप देने वाले गुरु घंटाल, भू माफिया बिलबिला गए हैं, काश अब इसी तरह से शहरों के स्वास्थ्य माफियाओं एवं प्रदेश के हर गांवों के भू माफियाओं व गांव- शहर मे तैनात भ्रष्ट तंत्रियों पर भी चल जाता योगी का बुलडोजर तो मानो राम राज्य आ गया, इन लोगों द्वारा जिस प्रकार से आज भी निरीह गरीब मजबूर लोगों का खून चूसा जा रहा है, जिससे भी भ्रष्टाचार बढ़ा है यदि इन लोगों पर लगाम लगा दिया जाए तो प्रदेश की आधी समस्या अपने आप खत्म हो जाएगी।

जिस प्रकार से यूपी चुनाव 2022 मे भाजपा की मोदी योगी की डबल इंजन की सरकार ने अपने ईमानदार छवि एवं सूझबूझ के साथ कार्य करने की इच्छा शक्ति व भ्रष्टाचार विरोधी एवं माफिया विरोधी वाले चेहरे के बल पर भारी जीत दर्ज कर पुनः योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई है, जिससे अच्छा एवं सही कार्य करने के लिए योगी जी का उत्साह दूसरी पारी में और बढा है साथ ही जनता का आशा भी बढी है, जिसके क्रम में योगी अपने उसी सिद्धांत एवं नीति के तहत कार्य करना प्रारंभ भी कर दिए है, सबसे पहले उन्होंने बड़े-बड़े सूरमाओ, मंत्रियों के विभाग बदल दिए और कुछ को तो पैदल कर दिए, दूसरा नंबर विभागों के तनखइयां गुरु घंटालो पर है, कामचोर मलाई प्रेमियों को सूखे चारा वाले स्थान पर लाया जा रहा है और कर्मठ लोगों को उचित जगह बैठाया जा रहा है जिनके साथ भ्रष्टाचार पर लगाम कसने का कार्य शुरू किया गया, लेकिन अभी भी मलाई खाने वाले गुरु घंटाल योगी के योजना में छेद कर रहे हैं, इसकी जानकारी योगी जी को है या नहीं लेकिन जिस प्रकार से योगी जी द्वारा गुंडों, लफंगो, माफियाओं के विरुद्ध बुलडोजर के साथ-साथ कानूनी चाबुक चलाकर इनको जेल की सलाखों के पीछे भेजने एवं इनके अवैध संपत्तियों को जप्त करवाने और इनके संपत्तियों का लेखा जोखा करवाने का अभियान चलाया जा रहा है, जिसका सीधा लाभ भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में होगा, योगी जी अपने मिशन को लेकर निरंतर सफलता के साथ आगे बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन इसी बीच में कुछ गुरुघंटाल मिल-मिलाकर पीछे से चूहे की तरह योगी के पारदर्शी योजनाओं को कुतर रहे हैं जिसकी वजह से जनता में अभी भी थोड़ा निराशा बनी हुई है इन पर भी योगी जी को विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है।

आलम यह है कि प्रदेश के मुखिया के निर्देशों के क्रम मे जिस प्रकार से भ्रष्ट तंत्रियों द्वारा लिपा पोती किया जा रहा है और योजनाबद्ध तरीके से चोरों की जांच डकैतो से कराई जा रही है, जिनको गुरु घंटाल माफियाओं के परोक्ष एवं अपरोक्ष अवैध संपत्तियों की निगरानी एवं उनके जांच की जिम्मेदारी दी गई हैं वे भ्रष्ट तंत्री परोक्ष रूप से जगजाहिर माफियाओ के सम्बन्ध में रिपोर्ट भेजी और उनके विरुद्ध कार्यवाही की जा रही है जो सबके सामने है, इन्हीं भ्रष्ट तंत्रियों ने अपरोक्ष माफियाओं से साठगांठ करके इनके नामों को दबा दिया, जिसकी वजह से योगी के ईमानदार छवि पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है, इससे जनता में थोड़ा निराशा की स्थिति बनी हुई है, दूसरी ओर सरकार के पारदर्शी योजना पर पट्टा लग रहा है, अब इस विकट समस्या को योगी जी को स्वयं देखना होगा, नहीं तो आने वाला 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

योगी के ईमानदार छवि भ्रष्टाचार एवं माफिया विरोधी दृढ़ इच्छाशक्ति के कार्य में यदि सही से भ्रष्ट तंत्रियों ने वास्तविक रुप सहयोग दे तो उन सभी परोक्ष अपरोक्ष माफियाओं के विरुद्ध तत्काल कार्यवाही हो सकती है, जिससे योगी के साथ साथ इनकी भी छवि बन सकती है और प्रदेश में विकास की गंगा बह सकती है और महाराष्ट्र गुजरात जैसे विकसित प्रदेश भी योगी के नेतृत्व में बन सकता है।

इतना ही नहीं तनखइयां लोग मोदी योगी द्वारा चलाई गई योजना को इस कदर दीमक की भांति चाट रहे हैं कि जिसका आलम यह दिखाई पड रहा है कि वे अपने भ्रष्टाचारी नीति से उक्त जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन वर्गो को ज्यादातर दे रहे हैं जो वर्ग मोदी योगी को वोट देना तो दूर है इनकी बात सुनना भी पसंद नहीं करते, लेकिन इन भ्रष्ट तंत्रियों इन्हीं को सरकारी लाभ दिलवाना पसंद करते हैं, इतना ही नहीं इन्होंने नियम कानून की धज्जियां उड़ाते हुए अपने निजी हित को साधते हुए जिस परिवार को आवास, राशन कार्ड, पेंशन आदि सरकारी योजनाओं की आवश्यकता है उसको न देकर उस परिवार को देते हैं जिसको आवश्यकता नहीं है, जिसको आवश्यकता है वो आज भी भटक रहा है क्योंकि ये इन भ्रष्ट तंत्रियों के सिस्टम में नहीं बैठ पाते, इस पर भी योगी जी को ध्यान देना होगा, नहीं तो ये भ्रष्टाचारी सरकार के मुखिया को बदनाम करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे।

भ्रष्टाचार का आलम यह है कि गांव का राजस्वकर्मी, सेक्रेटरी, स्वास्थ्य विभाग सहित सभी विभागों के बाबूओ ने शहरों में दो-तीन आलीशान कोठिया बनवा रखी है, गांव का हाल ही मत पूछो जिसका जिक्र देश के प्रधानमंत्री भी अपने भाषण में करते रहते हैं, इतना ही नहीं मोदी योगी की डबल इंजन सरकार के जीरो टॉलरेंस की नीति को जिस प्रकार से धता बताते हुए योगी के नाक के नीचे लखनऊ प्राधिकरण के कर्मचारियों, अधिकारियों की मिलीभगत से जिस प्रकार से गलत ढंग से अखिलेश के बंगले का नक्शा पास कर दिया गया, जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दिया है, इसी प्रकार से गांव और शहरों में ऐसे ऐसे राजस्व कर्मी और बाबू हैं जो खुलेआम घूम घूम कर यह कहते हैं की चाहे जो सीएम पीएम हो जाए हमारे लिए हम जो चाहते हैं वही नियम कानून होता है, यह उनके ऊपर चरितार्थ दिखाई भी पड़ता है, जिस प्रकार से मनमानी तरीके कुछ राजस्व कर्मियों ने बिना रजिस्ट्री, बिना बैनामा गांव के अन्य लोगों की जमीनो को एवं सरकारी जमीनों को अपने एवं अपने परिवारजनों के नाम दर्ज करवा लिया है और जमीनों पर अपने बाप की बपौती मानकर माफिया जनप्रतिनिधियों के भारी निधि से बड़ी बड़ी बिल्डिंग बनवाकर स्कूल/कॉलेज चलवा कर भारी व्यापार किया जा रहा है एवं स्टेटस सिंबल बनाया गया है, यहां मजे की बात यह भी है कि जिस शिक्षा विभाग ने मान्यता देते वक्त यह जांच करता है कि इस स्कूल विद्यालय कॉलेज के नाम से रजिस्ट्री सुधा जमीन है कि नहीं लेकिन यहां यह भी बताते चलें की भारी तादात में सरकारी एवं प्राइवेट जमीन को चकबंदी विभाग के जमीर बेच घिनौने कृत्य के कर्मचारी, अधिकारी को मिलाकर विद्यालय के नाम करा लिया है जिस पर ही इन भ्रष्ट तंत्रियों ने मान्यता दे दिया है, इतना ही नहीं ये गुरु घंटाल भूमाफियां बाजारू वस्तु की भांति बिकने वाले चकबंदी विभाग के अधिकारियों को मिलाकर गांव में बीस-तीस वर्षों से ज्यादा चकबंदी प्रक्रिया बीत जाने के बाद भी जमीनों को इधर-उधर करवा देते हैं, इस बीभत्सवादी अव्यवस्था को सुधार करने के लिए, योगी को तत्काल आगे आना और उपरोक्त गुरु घंटालो के खिलाफ सख्त कार्यवाही करना चाहिए जिससे जनता में योगी का जो हनक है वह बनी रहे, साथ ही पारदर्शी व्यवस्था एवं कठोर कार्यवाही के लिए योगी जी को चाहिए कि प्रदेश के हर जिलों में राष्ट्रवादी एवं भ्रष्टाचार विरोधी अफसरों, पत्रकारों, शिक्षकों, अधिवक्ताओं, डॉक्टरों, समाजसेवियों, राजनेताओं, व्यापारियों कि एक कोर कमेटी बनवाएं एवं उनके जांच रिपोर्ट के आधार पर उचित कार्यवाही की व्यवस्था बनाएं, जिससे योगी जी के राष्ट्रव्यापी व्यक्तित्व में और बल मिलेगा।

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार, आचार्य श्रीकांत शास्त्री, राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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