टूटे जब मन के धागे घायल तब संबंध हुए, जब लगे मन में पिड़ा आंखो से जल नीर बहे। अधरों की खामोशी जब चीखे दूर खड़ी मरियादा सीचे अवशाद हुए। घायल आशु की भाषा से बिसरी यादो का श्रृंगार हुए। स्वर देकर झनकृत कराती बिरहा प्रेम के छंद हुए। जो अंकित हैं हृदय के बिंदु पर धूमिल सारे अनुबंध हुए। टूटे जब धागे घायल तब संबंध हुए। मैंने जीवन को बंध लिया पीड़ा के अंतस लहेरो में तुम सरस रागनी बह निकले हम तो टूटे तटबंध हुए। टूटे जब मन के धागे.. वंदना बाजपेई