प्रदूषण सिर्फ मल, कचरा, सीवर लाइनों का बहना या यहां वहां पानी का जमा होना ही नहीं है बल्कि ऐसे तमाम कारक है जो प्रदूषण के दायरे में आते हैं और उनसे बचने का उपाय, उन्हें सुधारना, स्वच्छ रखना आज की मुख्य जरूरत है। भागमभाग वाली जीवनशैली, समयाभाव, कम समय में ज्यादा सुविधाओं की उपलब्धता और प्रकृति के प्रति लापरवाही ऐसे कारक हैं जो वातावरण में प्रदूषण बढ़ा रहे हैं और इसी वजह से प्राकृतिक वातावरण में प्रतिकूल परिवर्तन हो रहा है। वातावरण में फैले हानिकारक तत्व से अनजाने में ही व्यक्ति उनका शिकार होते जा रहा है, फलस्वरुप सांस की बीमारी, हृदयाघात, एलर्जी, कैंसर जैसी बीमारियांज्यादा पनप रही हैं। आज सड़कों पर नजर घुमायें तो दो चक्के और चार चक्कों से भरी हुई सड़कें दिखाई देंगी। अक्सर पैदल यात्रियों के चलने के लिए जगह भी कम पड़ जाती है और तो और इस समस्या से निजात पाने के लिए फ्लाईओवर बना दिए जा रहे हैं जो समस्या का कुछ हद तक निदान तो कर देता है लेकिन जगह का दायरा धीरे धीरे कम होते जा रहा है, खुलापन खत्म होते जा रहा है। साथ ही ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण को भी बढ़ावा मिल रहा है। बड़ी-बड़ी मिलों से और कारखानों से निकलता हुआ धुआं सिर्फ बीमार ही नहीं करता बल्कि प्रकृति को भी नुकसान पहुंचाता है। घने शहरीकरण और औद्योगिकरण के कारण ध्वनि प्रदूषण आम हो गया है और इसकी वजह से बहरापन, नींद विकार, बीपी की समस्या जैसी बीमारियां आम हो गई है। बात जब प्रदूषण की निकली है तो जल प्रदूषण को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। कहते हैं कि जल ही जीवन है और यही जीवनदायिनी जल अब दूषित जल में परिवर्तित हो गया है। मुझे याद नहीं आता कि बचपन में हमने कभी आर ओ का पानी या बिसलेरी का पानी पिया हो। सीधे नगरपालिका का पानी ही पीने के काम में और घर के कामकाज में इस्तेमाल किया जाता था। कहीं सफर पर भी जा रहे हों तो स्टेशन पर लगे नल से ही पानी भरकर काम चल जाता था लेकिन अब स्वच्छ हवा, पानी सब बिकने लगा है। आर ओ या फिल्टर पानी पीने से व्यक्ति का इम्यून सिस्टम कमजोर होता जा रहा है लेकिन आज इसके अलावा कोई पर्याय भी नहीं बचा है। सबसे बड़ी समस्या तब आती है जब पानी निकासी की व्यवस्था सही ढंग से नहीं हो पाती है। बारिश से जमा हुआ पानी, सीवर लाइनों और गटर का भरा हुआ होना, जहां तहां लीकेज यह प्रशासन की अव्यवस्था दर्शाती है और साथ ही बीमारियों को न्योता भी देती है। नदियों को स्वच्छ करने का अभियान काफी समय से चल रहा है लेकिन गंगा अभी तक दूषित है। कुछ ऐसी चीजों जिनका दैनिक जीवन में बहुत महत्व है लेकिन साथ ही वह जीवन के लिए हानिकारक भी है मसलन पॉलिथीन, प्लास्टिक से बनी चीजें, बॉटल यह जितनी सुविधाजनक है उतनी ही नुकसानदेह भी होती हैं। मुझे याद है कि बचपन में हमारे घरों में सामान लाने के लिए कपड़े की थैली का इस्तेमाल किया जाता था। दूध, छाछ, घी लाने के लिए बरनियों का इस्तेमाल किया जाता था, आज की तरह प्लास्टिक का इस्तेमाल नहींहोता था। लोगबाग सफाई के लिए भी जागरूक नहीं दिखाई देते हैं। पहले सड़कों पर सफाई कर्मचारी रोज सुबह झाड़ू लगाते थे लेकिन अब कर्मचारी गायब दिखते हैं। कचरा उठाने वाली गाड़ियाँ दो दो दिन तक गायब रहतीं हैं। जनता जनार्दन भी कचरा फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। आज बहुत जरूरत है कि प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए यातायात के कुछ नियम बनाए जायें। नदियों का जल स्वच्छ किया जाए ताकि आर ओ या फिल्टर का पानी पीने से बचा जा सके और पानी की गुणवत्ता को बनाए रखा जा सके। प्रकृति की अवहेलना नहीं की जानी चाहिए वरना उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है प्राकृतिक आपदाओं के रूप में। दिल्ली एक ऐसा शहर है जहां इस समय सबसे ज्यादा प्रदूषण फैला हुआ है, और यह सरकार की विफलता और अव्यवस्था ही है कि हम प्रदूषण के इस भयानक मंजर पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं। दिल्ली वाले एक बार फिर से नजर बंद हो गए। दिल्ली में ए क्यू आई (गुणवत्ता सूचकांक) लेवल के खतरनाक स्तर तक पहुंचने के बाद सख्त नियम लागू किए गए थे जिसका प्रभाव आम नागरिकों को रोजगार और आर्थिकी रूप से चुकाना पड़ा। प्रदूषण स्तर में बढ़ोतरी के मद्देनज़र दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग ने शहर में BS-4 डीजल और BS-3 पेट्रोल गाड़ियों पर रोक लगाई थी। साथ ही लोगों को एक बार फिर से वर्क फार होम के लिए आदेश मिल गए थे। स्कूल कॉलेज बंद हो गए थे, फिर से ऑनलाइन क्लासेस शुरु हो गई थी। ऐसे में बच्चे क्या अपनी शिक्षा के साथ न्याय कर पाएंगे? और पराली जैसी गंभीर समस्या का स्थाई हल क्यों नहीं निकाला जा रहा?