मेरी किस्मत के पन्ने में जहाँ पर ‘प्यार’ लिक्खा था, गुलाबी रात लिक्खी थी, जहाँ इज़हार लिक्खा था, महकती चाँदनी में कुछ हंसी जज़्बात लिक्खे थे, लरजते-कंपकपाते से कई अल्फाज़ लिक्खे थे, दिया था खूबसूरत मोड़ किस्मत ने कहानी को, वहां मुड़ना गवारा ही नही था जिंदगानी को, थी करनी तर्जुमानी मुझको अपने दिल की धड़कन की, किसी के प्यार मे भीगे हुये मदहोश सावन की,
मगर राहे सफर में ख़्वाब पूरा हो नही पाया मैं बस चलती रही यूँ ही मगर वो दौर न आया, जहाँ पर प्यार मिलने की बड़ी ही आस थी मुझको, वहाँ पर सिर्फ तन्हाई बिठाये पास थी मुझको, वो पन्ना जिंदगी की धूप में फीका लगा पड़ने, थे जितने रंग उलफत के वो आंखों में लगे गड़ने, मेरी हसरत के जितने फूल थे कुम्हला गये सारे, हकीकत की तपिश को छू के वो मुरझा गये सारे, मैं कब तक रेत के दरिया में पानी के निशां ढूँढू जमीं मन की भिगो पाये, मैं वो बादल कहाँ ढूँढू कि अब ख्वाबों में ही उस दौर का दीदार होता है, मिला है इंतजार औ ग़म, यही क्या प्यार होता है?
वर्ष 2019 में दक्षिण सूडान (यूएनएमआईएसएस) में संयुक्त राष्ट्र मिशन में महिला शांतिदूत के रूप में सेवाएं प्रदान करने वाली भारतीय सेना की अधिकारी मेजर सुमन गवानी को 29 मई 2020 को प्रतिष्ठित “यूनाइटेड नेशंस मिलिट्री जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर अवार्ड” से सम्मानित किया जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय संयुक्त राष्ट्र शांतिदूत दिवस के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयॉर्क में आयोजित किए जा रहे एक ऑनलाइन समारोह के दौरान संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस उन्हें यह अवार्ड प्रदान करेंगे। मेजर सुमन को यह अवार्ड ब्राजील की नौसेना अधिकारी कमांडर कार्ला मोंटेइरो डी कास्त्रो अरुजो के साथ मिलेगा।
मेजर सुमन ने नवंबर 2018 से दिसंबर 2019 तक यूएनएमआईएसएस में एक सैन्य पर्यवेक्षक के रूप में कार्य किया। मिशन में रहते हुए, वह मिशन में सैन्य पर्यवेक्षकों के लिए महिलाओं से संबंधित मामलों के लिए संपर्क का प्रमुख केंद्र बिंदु थीं। इस अधिकारी ने क्षेत्र की अत्यंत कठोर परिस्थितियों के कारण होने वाली समस्याओं के बावजूद महिला-पुरुष संतुलन बरकरार रखने के लिए संयुक्त सैन्य गश्त में भागीदारी को प्रोत्साहित किया। उन्होंने मिशन की योजना और सैन्य गतिविधि में महिलाओं के परिप्रेक्ष्य को शामिल करने के लिए दक्षिण सूडान में विभिन्न मिशन टीम साइट्स का दौरा किया। सैन्य अधिकारी को नैरोबी में संघर्ष से संबंधित यौन हिंसा (सीआरएसवी) पर एक विशेष प्रशिक्षण में भाग लेने के लिए चुना गया था और उन्होंने यह प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न संयुक्त राष्ट्र मंचों में भाग लिया कि कैसे महिलाओं का परिप्रेक्ष्य, विशेषकर संघर्ष संबंधी यौन हिंसा से नागरिकों की रक्षा करने में मदद कर सकता है। यूएनएमआईएसएस सुरक्षा बलों की पहलों को समर्थन देने के अलावा उन्होंने सीआरएसवी से संबंधित पहलुओं के बारे में दक्षिण सूडान की सरकारी सेनाओं को प्रशिक्षित किया। अधिकारी ने यूएनएमआईएसएस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षक दिवस परेड की भी कमान संभाली, जहां उन्होंने यूएनपीओएल, सैन्य और नागरिकों के बारह टुकड़ियों की कमान संभाली।
बहुत से लोगों को इस बात की जानकारी ही नहीं होती कि उनका खानपान उनके गठिया के दर्द को प्रभावित कर सकता है। गठिया की मुख्य वजह इनफलेमेशन है और अगर आप अपने डाइट में इनफलेमेटरी फूड्स को शामिल करते हैं तो इससे आपकी समस्या काफी हद तक बढ़ जाती है। इसलिए अगर आप जोड़ों के दर्द से परेशान हैं तो आपको अपने आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। आज हम आपको ऐसे ही कुछ फूड्स के बारे में बता रहे हैं, जो आपकी गठिया की समस्या को बढ़ा सकते हैं। इसलिए आपको इनसे दूरी बनाकर रखनी चाहिए−
नमक के बिना भोजन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। लेकिन जिन लोगों को गठिया की शिकायत है, उनके लिए अत्यधिक नमक परेशानी खड़ी कर सकता है। इसके अलावा आप अपने रेग्युलर नमक को काला नमक या पिंक साल्ट से स्विच कर लें।
‘‘जिन्दगी क्या किसी मुफलिस की कबा है,जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे जाते है’’-फैज
अपनी अस्मिता और पहचान के संकट, बेहतर आर्थिक दशाओं की उम्मीद और आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ करने के सपनों को लेकर जन्म स्थान से दूर किसी अन्य सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक क्षेत्र में सामूहिक रूप से स्थायी-अस्थायी रूप से बसने की स्थिति को सामान्यतया आप्रवास/प्रव्रजन/देशान्तरण कहते हैं। किसी एक भौगोलिक/राष्ट्रीय क्षेत्र से दूसरे भौगोलिक/राष्ट्रीय क्षेत्र में सापेक्षतः स्थाई गमन की प्रक्रिया प्रव्रजन/देशान्तरण के नाम से जानी जाती हैं। इसी से मिलती-जुलती दो अन्य अवधारणायें यथा उत्प्रवास और आव्रजन हैं। किसी व्यक्ति द्वारा अपने देश को छोड़कर दूसरे देश में जाने की प्रक्रिया ‘उत्प्रवास’ (एमिग्रेशन) कहलाती हैं। इसके विपरीत, देश में आने की प्रक्रिया को ‘आव्रजन’ या आप्रवास (इमिग्रेशन) कहते हैं। इसके अतिरिक्त प्रव्रजन का एक दूसरा रूप भी है जिसे ‘आन्तरिक प्रव्रजन’ कहते हैं। इस प्रकार प्रव्रजन में एक ही देश में एक स्थान से दूसरे स्थान जैसे गाँव से शहर की ओर निष्क्रमण अथवा शहर के मध्य क्षेत्र से उपनगरों की ओर गमन की प्रक्रियायें भी सम्मिलित की जाती हैं। आप्रवास की प्रकृति के अनुसार भी इसके कई रूप है जैसे चयनित या मौसमी, स्थायी या अस्थायी। प्रवसन की प्रक्रिया प्रारम्भ में भले ही कम रही हो लेकिन सभी देशों और सभी समयों में रही हैं।
औद्योगिक क्रान्ति के पूर्व प्रवसन का मुख्य कारण राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक आप्रवास की स्थितियां ही दृष्टिगोचर होती है लेकिन 11वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रान्ति ने समस्त समाज को नयी परिस्थितियों से रूबरू कराया जिसमें आर्थिक आयाम के विभिन्न नये वर्ग का उदय हुआ जिसे माक्र्स ने ‘सर्वहारा’ कहा। औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् उद्योग एवं व्यापार आधारित आप्रवास क्रमशः तीव्र और प्रमुख हो गया।
कुछ बेहतर पाने की आस में या कृषि से बेदखली के पश्चात जीविकोपार्जन के अन्तिम विकल्प के रूप में मिलों, कारखानों में काम करने हेतु बढ़ी संख्या में गाँवों से लोगों ने शहरों की ओर पलायन करना प्रारम्भ किया तो कहीं-कहीं सस्ते श्रम की जुगाड़, आर्थिक शोषण की प्रवृत्ति और अपनी औद्योगिक श्रम की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु साम्राज्यवादी राष्ट्रों ने अपने अधीन रहे राष्ट्रों से बढ़ी संख्या में इस पलायन को स्वीकारोक्ति एवं संरक्षण प्रदान किया।विश्वव्यापीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की प्रक्रिया तथा सूचना संचार क्रान्ति के तालमेल से इसके अन्तर्राष्ट्रीय स्तर विभिन्न सकारात्मक एवं नकारात्मक आयाम एक साथ देखने को मिले। आज वैश्विक त्रासदी कोविड-19 महामारी के प्रभाव में नकारात्मक पहलू ज्यादा सामने आ रहा है क्योंकि बाजारवादी/उपभोगवादी समाज में चाहे बात श्रमिकों के पलायन की हो या प्रतिभाओं के निरन्तर पलायन की हो, प्रत्येक सन्दर्भ में हमें पक्ष एवं विपक्ष में अपने-अपने मत व्यक्त करने वालो के दो स्पष्ट समूह दिख जायेंगे। इन समस्याओं पर तटस्थ होकर एक भारतीय के रूप में विचार करना ही इस लेख का उद्देश्य है। उन तथ्यों पर भी विचार करना होगा जिनके कारण आज कुछ राज्यों में प्रवसन दर अधिक है तो उसके क्या कारण है। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और कुछ समय से गुजरात भी अब इस सूची में शामिल हुआ है जिनकी ैण्क्ण्च्ण् ;ैजंजम क्वउमेजपब च्तवकनबजपवदद्ध अर्थात राज्य के सकल घरेलू उत्पादन में प्रति व्यक्ति सूची में सबसे ऊपर है और वहाँ गरीबी का प्रतिशत कम होने के कारण अन्य राज्यों के प्रवासी आकर्षित होते हैं। उदाहरण के लिये बिहार जो उच्च जनसंख्या वृद्धि दर, अत्यधिक गरीबी और खराब एस.डी.पी. वाला प्रदेश है, वहा के लोग पलायन के प्रति अधिक आकर्षित होते है। इस कारण वहा प्रवसन 1000 व्यक्तियों पर 31 से अधिक है। पश्चिम बंगाल एक और ऐसा राज्य है जहाँ दूसरे राज्यों के प्रवासी जाते है परन्तु कुछ समय से यह दर कम हुई हैं। कुछ नये अध्ययनों में सामने आया है कि महाराष्ट्र पूरे देश से विशेषतः उत्तर प्रदेश एवं बिहार से प्रवासियों को आकर्षित करता है। यू.पी. और बिहार से निकलती प्रवासी धारा प्रायः पूरे भारतवर्ष में फैल चुकी है। अगर हम नीतियों की बात करें तो बिहार अब तक कई बार विभाजन की नीति से प्रभावित हुआ हैं। 1911 में तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेन्सी से उड़ीसा एवं बिहार को पृथक किया गया; 1136 में बिहार को एक पृथक प्रशासकीय प्रान्त के रूप में स्थापित किया गया। स्वतन्त्र भारत में 15 नवम्बर 2000 को खनिज एवं वन सम्पदा से समृद्ध छोटा नागपुर एवं संथाल परगना परिक्षेत्र को झारखण्ड के रूप में बिहार से अलग कर दिया गया। स्वतन्त्रतापूर्व से अब तक बिहार में उत्प्रवास (आउट माइग्रेशन) की प्रक्रिया सतत रूप से चलती रही। भारत के दुर्गम से दुर्गम स्थान पर बिहारी आप्रवासी दिख जाते है लेकिन चर्चा में तब आते है जब किसी प्राकृतिक आपदा या मानवीय संवेदनहीनता के शिकार बनते है या दुर्घटनाओं का शिकार होते है। उत्तर प्रदेश उभरता उत्तम प्रदेश हो या बिहार (घर) से बाहर काम की तलाश जिसमें रोटी हाथ में हो, इस उम्मीद से शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर कठोर एवं अमानवीय कार्य हेतु बाध्य है। कठिन परिस्थितियों में महज जीवनयापन के उद्देश्य से निकल पड़ते हैं। सामाजिक तथा आर्थिक स्तर पर प्रताड़क असुरक्षा का भाव लिये, जीवन को बनाये और बचाने रखने के क्रम में पेन्डुलम की तरह झूलते हुए व्यवस्थित जीवन की लय खो चुके होते है। इतना ही नहीं घर से दूर होकर प्रायः विभिन्न कारणों से ये अपनी पैतृक सम्पत्ति (घर-बार, जानवर, खेत-खलिहान) और सांस्कृतिक पूँजी के रूप में स्थानीय तीज-त्यौहारों से भी दूर हो जाते है, जो इनमें उत्साह और उमंग का संचार करते थे। घर-द्वार छूटते ही सब छूट जाता है और यन्त्रवत कार्यशैली जीवन का हिस्सा बन जाती है। शोषण या अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में रहने से, लगातार 10-12 घंटे काम करने साथ ही अपर्याप्त भोजन जैसी समस्याओं के कारण जल्दी ही रुग्ण, अक्षम और कमजोर हो जाते हैं। इन तमाम परिस्थितियों को फिर चाहे कोरोना संक्रमणकाल से जनित लाॅकडाउन (तालाबन्दी) हो, रोजगार का संकट, घर-वापसी हेतु कोई समुचित साधन न होना, जेब और पेट दोनों खाली इसी को नियति मानकर सबकुछ गवाँ देते हैं। प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों होता हैं? क्यों वे हजारों किमी दूर जाते है? क्यों आज जब हम बैठे है घरों में वे सड़कों पर सपरिवार, ससामान, चिलचिलाती धूप में, कई-कई दिनों तक घर वापसी का सफर तय करते है कि जो देहरी कई वर्षों से छूट गयी उसे अनिश्चितता के दौर में चूम तो सकें? इनके अनेक उत्तर हो सकते है। इन उत्तरों में सर्वाधिक जटिल यदि राजनीतिक बौद्धिकता के उत्तर है तो सर्वाधिक सरल रूप में सामाजिक परिस्थितियों का आंकलन करते हुए समाजशास्त्रीय उत्तर है। अपने पैतृक (मूल) स्थान में उपलब्ध संसाधनों, सेवाओं एवं आय के स्रोतों के प्रति सापेक्ष वंचना अर्थात दूसरे की तुलना में कमी का भाव। अपेक्षाकृत बेहतर संसाधनों, साधनों, सेवाओं एवं आय के नये-नये स्रोतों की प्राप्ति के अवसर उपलब्ध होने पर व्यक्ति अपना मूल स्थान छोड़कर परदेश या अन्य क्षेत्रों में जाता है। यह प्रत्येक कोण से सही हैं।
जब राज्यों में परिस्थितियाँ नागरिकों की जीवन-प्रत्याशा के अनुकूल नहीं रहती तब रोजगार का संकट उन्हें राज्य से पलायन हेतु विवश करता है। उनके पास वर्तमान परिस्थितियों में कोई अन्य उचित एवं सम्मानजनक विकल्प शेष नहीं बचता। वे राज्य जिनको सर्वोच्च बनाने में इन्हीं आप्रवासियों ने अहम भूमिका अदा की अपने सस्ते श्रम से, सहज उपलब्धता से। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में वही राज्य इनसे पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं। मजबूरन घर-वापसी हेतु मीलों चलते, दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे है। एक बात ये भी सच है कि किसी राज्य पर मंडरानेवाला कोई भी काला बादल देर-सबेर अन्यों को भी आच्छादित कर सकता हैं इसलिए आवश्यकता हैं इस सन्दर्भ में तार्किक, सहिष्णु, ईमानदार और वस्तुतः बौद्धिक दृष्टिकोण की। ‘‘श्रमेव जयते।’’
लेखिका डाॅ. नेहा जैन, पं. दीनदयाल उपाध्यायराज.म.स्ना. महाविद्यालय लखनऊ में समाजशास्त्र की विभागाध्यक्षहैै
डेज़ी शाह ने पहली बार बॉम्बे टाइम्स फैशन वीक में शोस्टॉपर के रूप में रैंप वॉक किया। दिवा ने एसपीजे साधना स्कूल के साथ मिलकर डिजाइनर पल्लवी गोयल के लिए शोस्टॉपर की भूमिका निभायी।
डेज़ी ने एक न्यूड बेज लहंगे में वन शोल्डर रफ़ल्ड ब्लाउज के साथ के साथ रैम्प पर एंट्री मारी। यह पहला मौका नहीं है जब डेज़ी को एक शो स्टॉपर के रूप में देखा गया है, इससे पहले उन्हें लक्मे फैशन वीक में अमित जीटी और कंचन मोर जैसे प्रसिद्ध डिजाइनरों के लिए सो स्टॉपर के रूप में रैम्प वॉक किया था। चाहे वो गाउन हो, इंडो वेस्टर्न आउटफिट हो या ट्रेडिशनल लुक; हर बार रनवे पर चलने के दौरान उन्हें सभी की वाह वाही लूटने का मौका मिलता है। इस बार डेज़ी ने एक रॉयल ट्रेडिशनल ड्रेस को कैरी किया और बिल्कुल आश्चर्यजनक रूप से सबके सामने पेश हुई। डेजी ने निश्चित रूप से बॉम्बे टाइम्स फैशन वीक में अपने बेहतरीन रैम्प वॉक से हमें प्रभावित किया। काम के फ्रंट पर बात करें तो, डेज़ी शाह की फिल्म ‘गुजरात 11’ जल्द ही 22 नवंबर को सिल्वर स्क्रीन पर नजर आएगी और उन्होंने अपनी आगामी फिल्म ‘टिप्सी’ की शूटिंग भी शुरू कर दी है जिसके लिए हम सभी बेहद उत्सुक हैं
डॉ मीतकमल द्धिवेदी, एसोसिएट प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ़ केमिस्ट्री, क्राइस्ट चर्च कॉलेज कानपुर l
CoVID-19 संक्रमण से बचने के लिए, अपने दैनिक आहार में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखकर प्रतिरक्षा को बढ़ाने की सलाह दी जाती है। दुनिया भर में प्रकाशित विभिन्न लेखों का विस्तृत अध्ययन बताता है कि जैतून का तेल मानव को इस विनाशकारी वायरस से बचा सकता है।जैतून के तेल में मोनोअनसैचुरेटेड वसा (OLEIC-acid- 73%), संतृप्त वसा (14%) एंटी ऑक्सीडेंट पॉलीअनसेचुरेटेड वसा (11%) जैसे ओमेगा -3 फैटी एसिड और ओमेगा 6 होते हैं ।यह विटामिन E और K के साथ एंटीऑक्सिडेंट का भी एक समृद्ध स्रोत है जो हमारे शरीर के लिए बहुत आवश्यक हैं। एंटीऑक्सिडेंट हमारे रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रण में रखते हैं।अगर आप टाइप -2 डायबिटीज और मोटापे से पीड़ित हैं, तो जल्द से जल्द ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल करना शुरू कर दें। वर्तमान स्थिति में CoVID-19 के लिए जैतून का तेल अच्छा उपाय है। भारतीय परिस्थितियों के संदर्भ में,जैतून के तेल के अलावा, कई अन्य तरीके हैं जिनसे हमें CoVID-19 संक्रमण के खतरे से दूर रखा जा सकता है।अदरक, काली मिर्च और मूल शहद के मेल से बनी चाय इसके लिए प्राकृतिक घरेलू उपचार है।नारियल का तेल और इसके डेरिवेटिव इस वायरस के खिलाफ बहुत प्रभावी हैं। शुद्ध कोल्ड-प्रेस्ड नारियल के तेल या कच्चे नारियल के तेल में पकाया गया भोजन एंटीवायरल की तरह काम कर सकता है। इसमें मौजूद लौरिक एसिड और कैप्रेट्रिक एसिड वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने और वायरस के कवर को भी विघटित करने के लिए आवश्यक हैं।मूंगफली, पिस्ता, अंगूर, ब्लूबेरी, क्रैनबेरी, स्ट्रॉबेरी और यहां तक कि कोको और डार्क चॉकलेट जैसे खाद्य पदार्थ फंगल संक्रमण, पराबैंगनी विकिरण, तनाव और चोट से लड़ने में मददगार होते हैं।प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए विटामिन-सी सप्लीमेंट भी उपयोगी है। विटामिन- सी से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे आंवला, लाल मिर्च, पीली मिर्च और विटामिन सी की खुराक से संक्रमण की गंभीरता कम हो जाती है। एंटी-वायरल जड़ी-बूटियाँ जैसे अजवायन, तुलसी, लहसुन, अदरक, सौंफ़, सूखे थाइम, इचिनेशिया, लीकोरिस आदि क्योंकि इनके औषधीय गुण हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के लिए बहुत अच्छे हैं और इन्हें चाय में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह Mucous(श्लेष्म) समस्याओं सहित respiratory(श्वसन) स्वास्थ्य, जो वायरल संक्रमण से आप को सुरक्षित रख सकते हैं। अजवायन अपनी प्रभावशाली औषधीय गुणवत्ता के लिए एक बहुत लोकप्रिय जड़ी बूटी है। यह कई वायरस के खिलाफ एंटीवायरल गतिविधि को बाहर कर सकती है।पवित्र तुलसी प्रतिरक्षा को बढ़ाती है जो वायरल संक्रमण से लड़ने में मदद कर सकती है। लहसुन एक एंटी-वायरल फूड है। इसके गुणों का लाभ उठाने के लिए इसे कच्चा खाया जाना चाहिए। यदि आप इसे पकाने जा रहे हैं, तो इसे आधे घंटे पहले काट लें, ताकि इसके सक्रिय सिद्धांत और एंजाइम बरकरार हैं और खाना पकाने के बाद इसके कई गुणों को बरकरार रखi हैं। अदरक एंटी-वायरल गुण होते हैं, जो वायरस की प्रतिकृति को बाधित करते हैं और स्वस्थ कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं। आप सूखी अर्क गोलियाँ ले सकते हैं या ताजा अदरक स्लाइस के साथ तैयार कर सकते हैं। Salvia officinalis(तेजपत्ता) एक सुगंधित पौधा है जो परंपरागत रूप से वायरल संक्रमण के इलाज के लिए इस्तेमाल किया गया है। खांसी को कम करने के लिए थाइम हर्ब बहुत उपयोगी है। प्राकृतिक जड़ी बूटियों के अलावा ,विटामिन डी प्रतिरक्षा प्रणाली को उचित स्तर पर रखता है ,क्योंकि यह हमारे शरीर को कैल्शियम को अवशोषित करने में मदद करता है। इसका स्तर भी प्रतिरक्षा के लिए बनाए रखा जाना चाहिए। जिंक और सेलेनियम जैसे खनिजों को शामिल किया जाना चाहिए। वे बादाम, कद्दू के बीज, सूरजमुखी के बीज, अनसाल्टेड काजू और अनसाल्टेड पिस्ता में पाए जाते हैं। इन सभी आहार परिवर्तनों के अलावा, 30 मिनट के मध्यम शारीरिक व्यायाम , अच्छी सौम्य उचित नींद हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढाती है। निष्कर्ष के अनुसार, CoVID-19 वायरस मानव के लिए एक विनाशकारी आपदा है क्योंकि इसे केवल सोशल डिस्टैन्सिंग से ठीक किया जा सकता है। मानव जाति को बचाने के लिए बीमारी के लिए वैक्सीन का आविष्कार करने का प्रयास किया जा रहा है । इसलिए, संक्रमण से दूर रखने के लिए उपरोक्त कुछ एहतियाती उपाय करके मानव जीवन को बचाया जा सकता है।
हम सभी को आई मेकअप करना पसन्द होता है और स्मोकी आई मेकअप तो हर फीमेल की फर्स्ट चाॅइस होती है, क्योंकि यह मेकअप उनके अपीयरेंस मे ग्लेमर तो ऐड करता ही है, साथ ही साथ देखने वाले को भी आकर्षित करता है। फ्रेंड्स की शादी से लेकर नाईट पार्टीज तक यह मेकअप हर तरह की ड्रेस के साथ सूट करता है।
यह स्मोकी आई मेकअप सुंदर लगने के साथ साथ फैशन में भी बना रहता है पर हम में से अधिकतर को परेशानी आती है की स्मोकी आई मेकअप कैसे किया जाए ? चूंकि यह आई मेकअप करना हार्ड लगता है इसलिए हम में से कई लोग इसके लिए महंगे पार्लर या सैलून में जाते है और पैसे के साथ अपना अमूल्य समय भी खर्च करते हैं। जरा सोचिए अगर यही स्मोकी आई मेकअप आप अपने घर पर बैठे अपने आप कर सकें तो आप अपना हार्ड अर्न मनी और टाइम दोनों बचा सकतें हैं। इसीलिए आज हम लाये है जन सामना की ब्यूटी एडवाइजर व सी डब्लू सी ब्यूटी एन मेकअप स्टूडियो की सेलिब्रिटी मेकओवर एक्सपर्ट शालिनी योगेन्द्र गुप्ता के साथ घर पर ही स्मोकी आई मेकअप करने का मैथड। यह स्मोकी आई मेकअप दिखने मे क्लासी तो होता ही है साथ ही यह कुछ ही मिनटों मे आसानी से हो जाता है। आपको सिर्फ मेरे बताये गए मैथड को फाॅलो करने की जरुरत है और आप भी कर सकती हैं घर पर पार्लर जैसा स्मोकी आई मेकअप। स्मोकी आई मेकअप करने के लिए हमें चाहिये: कंसीलर, फाउंडेशन या बेस (अपनी स्किन के अनुसार) , लूज पाउडर, गोल्डन वाइट हाइलाइटर, आई शैडो (ब्लू और ब्लैक) , आई लाइनर, काजल, मस्कारा स्मोकी आई मेकअप विधिः सबसे पहले आई लिड पर और अंडर आई एरिया पर कंसीलर लगाइये। कंसीलर से डार्क सर्कल और डार्क स्पाॅट्स छुपाने में हेल्प मिलती है। इसके बाद अपनी स्किन कलर के अनुसार फाउंडेशन या बेस लगायें और इसे अच्छी तरह ब्लैंड करें। अब लूज पाउडर लगायें। यह पसीने को रोककर मेकअप को फैलने नहीं देता। इसके बाद आईब्रो को हाई लाईट करने के लिए गोल्डन वाइट हाई लाईटर लगायें। आँखों की क्रीज लाईन से आइब्रो के एंडतक पर्पल कलर के आई शेडो से एक लाईन बनाइये और इस लाईन के अन्दर ही आई मेकअप करें। अब यही आई शेडो पूरी आँख पर लगाकर इसे ब्रश से पूरी आँख पर इस तरह ब्लैंड कीजिये। ब्लैक आई शेडो से या जेल लाईनर से आँख के एंड से वी शेप बनाइये और इसे अन्दर की तरफ ब्लैंड कीजिये। फिर आई लाईनर लगाइये। इसके बाद काजल लगाइये और इसे ब्लैक आई शेडो से सील कीजिये। आखिरी में पलकों पर मस्कारा लगाइये। मस्कारा लगाने से मेकअप उभर कर दिखता है।
क्राइस्टचर्चकॉलेज, कानपुर के महिला प्रकोष्ठ एवं आज प्रकाशन प्रा. लि. के संयुक्त तत्वावधान में महाविद्यालय की छात्राओं के लिए आत्मा-रक्षा-प्रशिक्षण कार्यशाला– “प्रोजेक्ट शक्ति”, का आयोजन दिनांक 18 सितम्बर 2019 को किया गया. आज के समय में कार्य के हर क्षेत्र में अग्रणी महिलाओं को विभिन्न परिस्थितियों में चुनौतीपूर्ण भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं. संस्कारों के ह्रास और नैतिक पतन के कारण समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत संकटग्रस्त हो गई है और उन्हें अनेक दुर्भावनापूर्ण स्थितियों का अक्सर सामना करना पड़ता है. महिलाओं के लिए ऐसी विषम स्थिति से निकलने का मार्ग स्वयं को मज़बूत करना ही है. क्राइस्टचर्च महाविद्यालय का महिला प्रकोष्ठ अत्यंत सक्रियता और कर्मठता सेकॉलेज की सभी महिला सदस्याओं एवं छात्राओं के लिए उनके कार्यक्षेत्र में स्वस्थ, सकारात्मक एवं सुरक्षित कार्य संस्कृति बनाए रखने की दिशा में सतत कार्य कर रहा है. वर्ष 2016 में स्थापित महिला प्रकोष्ठ अपने ध्येय सिद्ध करने के लिए प्रति वर्ष अनेक विशिष्ट व्याख्यान, कार्यशालाएँ, प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करता रहता है. इसी दिशा में बहुत सार्थक पहल करते हुए आज इस एक-दिवसीय आत्म-रक्षा प्रशिक्षण की कार्यशाला “प्रोजेक्ट शक्ति”महिला प्रकोष्ठ द्वारा आज प्रकाशन प्रा. लि. के साथ संयुक्त रूप से आयोजित की गई.इस पूरेप्रोजेक्ट का लक्ष्य है महिलाओं में आत्मनिर्भरता, आत्म-रक्षा और आत्मसम्मान को पुनः जागृत करना और उनके भीतर निर्भयता और निडरता का भाव पोषित करना, जिससे वे मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से अपनी सुरक्षा के प्रति सजग रह सकें.