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महिला जगत

मिशन शक्ति फेस-3 के अन्तर्गत महिलाओं को जागरुक करने तथा महिलाओं से संबंधित विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं हेतु जागरुकता शिविर तथा महिला जन सुनवाई का आयोजन सर्किट हाउस में किया जाएगा

कानपुर 20 अक्टूबर(सू0वि0) सदस्य सचिव, उ0प्र0, राज्य महिला आयोग के निर्देशों के क्रम में जिला प्रोबेशन अधिकारी ने बताया है कि दिनांक 21 अक्टूबर, 2021 को मिशन शक्ति फेस-3 के अन्तर्गत महिलाओं को जागरुक करने तथा महिलाओं से संबंधित विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं हेतु जागरुकता शिविर तथा महिला जन सुनवाई का आयोजन सर्किट हाउस में किया जायेगा। महिला जनसुनवाई में उ0प्र0 राज्य महिला आयोग की सदस्य श्रीमती पूनम कपूर एवं श्रीमती रंजना शुक्ला द्वारा महिला उत्पीडन एवं दहेज संबंधी समस्यायें तथा महिलाओं से संबंधित अन्य समस्याओं की जन सुनवाई कर उनके मामलों के निस्तारण हेतु कार्यवाही की जायेगी तथा प्रदेश सरकार द्वारा संचालित विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों, महिलाओं के हितों के लिये आजादी का अमृत महोत्सव के अन्तर्गत विधिक जागरुकता शिविर के माध्यम से विभिन्न कानूनी पहलुओं की जानकारी भी दी जायेगी।
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कितना जरूरी है न्यायपालिका में 50% महिला आरक्षण

 

भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने महिला वकीलों को 50% आरक्षण की मांग उठाने की बात कही। अभी कुछ समय से महिलाओं ने वकालत के पेशे में अच्छी पहचान बनायी है। जिससे शहरों में अब लोग उन्हें जानने लगे हैं लेकिन गांव और पंचायत में उन्हें अभी भी पहचान नहीं मिल पा रही है। अभी भी वकील की नजर से देखने के बजाय “महिला” की नजर से ज्यादा आंकते हैं लोग। एक मानसिकता बनी हुई है कि यह महिला है और यह केस कैसे लड़ेगी? मतलब कि उसकी काबिलियत पर शक किया जाता है। उच्च न्यायालयों में 11.5% महिला जज है और सुप्रीम कोर्ट में 11. 12% महिला जज हैं 33 में से चार। देश में 17 लाख वकील है उनमें से सिर्फ 15% महिलाएं हैं।
कई महिला वकीलों का मानना है कि आरक्षण की बात तो ठीक है लेकिन व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है महिलाओं की मूलभूत सुविधाएं जैसे वाशरूम और  बैठने के लिए सीटों की व्यवस्था नहीं है वह पूरी की जानी चाहिए।
महिला वकीलों का मानना है कि न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़नी चाहिए साथ ही उन्हें इस बात का दुख रहता है कि जब लड़कियां प्रैक्टिस के लिए जाती हैं तो ज्यादातर पुरुष वकीलों से सामना होता है और उन्हीं के संरक्षण में प्रशिक्षण लेना होता है तो ऐसे में वह उन्हे इधर उधर दौड़ाते ज्यादा हैं और उन्हें मौका नहीं मिल पाता है। उनकी निर्भरता वरिष्ठों पर ज्यादा बढ़ जाती है। उन्हें केस नहीं मिल पाते और एक महिला होने के कारण उनकी काबिलियत को आयाम नहीं मिलता है। मगर अपनी काबिलियत को साबित करने के लिए महिला वकीलों को इन बातों को नजरअंदाज कर अपनी बात पुरजोर तरीके से रखनी चाहिए ताकि समाज में, न्यायपालिका में उन्हें एक समुचित स्थान मिल सके और लैंगिक भेदभाव खत्म हो।
यूं तो आरक्षण सही नहीं है और अगर हो तो योग्यता के आधार पर होना चाहिए और यदि आरक्षण दिया भी जाए तो एक निर्धारित समय के लिए ताकि लड़कियों को मौका हासिल हो सके। महिलाएं वैसे तो मल्टीटास्कर होती हैं और वह घर बाहर दोनों बखूबी संभालती हैं। उन्हें जरूरत है तो सिर्फ प्रोत्साहन देने की।
ऐसी कई महिला वकील हैं जिन्होंने अपने आप को साबित किया है। निर्भया, हाथरस केस की वकील सीमा कुशवाहा, अर्चना सिन्हा गया जिले की पहली वकील महिला, वंदना शाह, दीपिका सिंह राजावत जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट कठुआ गैंगरेप मामले में वकालत की, पिंकी आनंद यह ऐसी नामी शख्सियत बन चुकी है कि इन्हें पहचान की जरूरत नहीं रह गई है क्योंकि इन्होंने अपने आप को साबित कर दिखाया है। हाल फिलहाल यह बिल अटका हुआ है। अब अगर आरक्षण के जरिए गूंज उठी है तो सुनी भी जायेगी।

:+  प्रियंका वर्मा महेश्वरी

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बहुत लाजिम है तेरे “मैं” का साथ होना, मगर हम भी जरा सा गुमान रख लेते हैं

चलो कुछ लम्हों को ताजा कर लेते हैं
बीती हुई शाम को गज़ल कर लेते हैं

ये माना कि नजर फेर कर वो इत्मीनान कर लेते हैं
मगर चोर नजर से दिल को बेचैन कर लेते हैं

बहुत लाजिम है तेरे “मैं” का साथ होना
मगर हम भी जरा सा गुमान रख लेते हैं

क्या ही मसला कि रूबरू ना हुये
फासलों से ताआल्लुक तो नहीं खत्म कर लेते है…

वजूद खोकर हमने किया एहतराम तेरा
गाफिल रहकर खुद से एतबार तुझ पर कर लेते हैं

+; प्रियंका वर्मा माहेश्वरी

 

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मिशन शक्ति के अन्तर्गत महिलाओं को जागरुक करने तथा महिलाओं से संबंधित विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं हेतु जागरुकता शिविर तथा महिला जन सुनवाई का आयोजन

कानपुर 19 अक्टूबर (सू0वि0) सदस्य सचिव, उ0प्र0, राज्य महिला आयोग के निर्देशों के क्रम में जिला प्रोबेशन अधिकारी ने बताया है कि दिनांक 21 अक्टूबर, 2021 को मिशन शक्ति फेस-3 के अन्तर्गत महिलाओं को जागरुक करने तथा महिलाओं से संबंधित विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं हेतु जागरुकता शिविर तथा महिला जन सुनवाई का आयोजन सर्किट हाउस में किया जायेगा। महिला जनसुनवाई में उ0प्र0 राज्य महिला आयोग की सदस्य श्रीमती पूनम कपूर एवं श्रीमती रंजना शुक्ला द्वारा महिला उत्पीडन एवं दहेज संबंधी समस्यायें तथा महिलाओं से संबंधित अन्य समस्याओं की जन सुनवाई कर उनके मामलों के निस्तारण हेतु कार्यवाही की जायेगी तथा प्रदेश सरकार द्वारा संचालित विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों, महिलाओं के हितों के लिये आजादी का अमृत महोत्सव के अन्तर्गत विधिक जागरुकता शिविर के माध्यम से विभिन्न कानूनी पहलुओं की जानकारी भी दी जायेगी।

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बात इतनी बड़ी नही होती जितनी हम उसे बना लेते है

दोस्तों कई बार बात इतनी बड़ी नही होती जितनी हम उसे बना लेते है।कई बार तो ऐसा होता है इन्हीं छोटी छोटी बातों के कारण लोग अपना रिश्ता ही बिगाड़ या ख़त्म कर बैठते है। फिर वो बात सारी ज़िन्दगी नासूर बन कर दिल को चुंबती रहती है क्यूँकि किसी भी बात को सही वक़्त पर टाल कर ,माफ़ कर ,या भूल कर,ख़त्म कर उसे यकीनन ही सुन्दर अंजाम दिया जा सकता था।

दोस्तों आज कुछ शेयर करना चाहूँगी शायद किसी के काम आ सकता है।ये बात उन दिनों की है जब हमारी फ़ैक्ट्री हुआ करती थी जहां कपड़ा बनाया जाता था वहाँ बहुत से वर्कर मिलजुल कर काम किया करते थे।इक घर जैसा माहौल था। सब अपना काम करते और हफ़्ते के अन्त में अपनी तनख़्वाह ले कर वीकेंड ख़ुशी ख़ुशी मनाते। बहुत चहल पहल के दिन हुआ करते थे। इक बड़ी उम्र के बुजुर्ग भी वहां काम किया करती थी।मेरी आदत है अगर मेरे पास या मेरे सामने कोई उदासी में बैठा हो तो मैं रह नहीं पाती अकसर पूछ ही लेती हूँ !कि वो ऐसे कयू बैठे हैं? कई दिनों से वो बुजुर्ग उदास दिख रही थीं।एक दिन मुझ से रहा न गया और मैं अपनी आदत के अनुसार उनके पास गई और उनका हाथ अपने हाथ में लिया और धीरे-धीरे सहलाने लगी और पूछ ही लिया कि
कंयू चुप है आप?
क्या बात है ?
पहले तो उन्होंने टालने की कोशिश की,मगर मेरे बार बार पूछने पर कहने लगी।
बेटा क्या बताऊँ !
मेरा पोता अगले हफ़्ते शादी कर रहा है हम उस लड़की को या उसके घर वालों को जानते भी नहीं। हमारी जात बिरादरी की भी नहीं ,किसी गोरी “इंग्लिश लड़की “से शादी कर रहा है।मेरे पोते ने कोर्ट मैरिज अगले हफ़्ते करनी है सब घर वाले बहुत नाराज़ हैं कोई शादी पर नहीं जा रहा और मुझे भी जाने से मना कर रहे हैं ।घर में बहुत लड़ाई झगड़ा हो रहा है।मेरा बेटा ने सब को कह दिया ..कोई शादी में नहीं जायेगा। और बताने लगी कि मेरा पोता जो हमेशा मेरे बेहद क़रीब रहा है कहता है कि बीज़ी कोई आये न आये ,आप ज़रूर आना मेरी शादी में।हालाँकि मैं भी सख़्त नाराज़ हूँ उससे ।इसी सोच में हूँ क्या किया जाए।उसने कैसे बिना कुछ किसी को बताये सब तय कर लिया।घर में हर वक़्त क्लेश है।मैंने दोनों पहलुओं को समझते हुए कहा
आंटी बात को समझो तो कुछ भी नहीं ,बढ़ा लो ,तो बहुत कुछ है । हम बड़ो पर निर्भर करता है कि हम क्या और कैसी प्रतिक्रिया देते है मैंने कहा अगर आप चाहते हैं कि आप का पोता हमेशा आप की इज़्ज़त करें प्यार करें तो आप को उसके फ़ैसले को मान लेना चाहिए ।उसके साथ खड़े हो जाये ,अगर नहीं मानोगे शादी तो वैसे भी कर ही लेगा। रहना भी उन दोनों को ही है सारी उम्र साथ ।अगर वो ख़ुश है तो आप क्यों अड़चन डाल रहे हैं ।ख़ुशी ख़ुशी उनकी झोली में खुद से ख़ुशीया डाल दे ।हमेशा दिल से आप का सम्मान करेगा ।
अगर नहीं मानेंगे तो आप अपना पोता हमेशा के लिये खो देंगी और आप का बेटा अपना बेटा .. आप घर के बड़े है अगर आप राज़ी हो जाये और सब को हुक्म दे तो सब ठीक हो सकता है पहले तो वो घबराईं कि मेरी कौन सुनेगा ।जैसे तैसे कर मैंने उन्हें समझाया बुझाया कि आप ही कर सकते है आगे हो कर अपना फ़ैसला पोते के हक़ में दे और सब को कहे कि हम सब शादी में जायेंगे ।चलो उस दिन तो बात ख़त्म हो गई मैं अपने काम में बीज़ी हो गई वो अपने ,और मेरे दिमाग़ से बात भी निकल गई।हफ़्ते के बाद इक दिन मैंने देखा वो फ़ैक्ट्री में बड़ा सा मिठाई का डिब्बा और अपने बेटे के साथ मेरे पास आईं।मैंने कहा आंटी ये किस ख़ुशी में ।तब उन्होंने कहा हमारे पोते की शादी का मीठा ले कर आई हूँ जैसे तुमने मुझे कहा था न !!
मैंने ठीक वैसे ही किया सब को समझाया और सब फिर शादी पर जाने के लिए तैयार हो गये ।इतनी रौनक़ थी कि क्या बताऊँ।सब ख़ुश थे और मेरा पोता भी और मेरा बेटा भी।ख़ूब नाचे खूब हंसे ,सालों के बाद सारा परिवार मे ख़ुशी क
का माहौल था ।पोता भी ख़ुश था और नई नवेली दुल्हन भी ।फिर अचानक से
उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और मेरे सिर पर हाथ रख कर धीरे से मेरे कान मे बोली ..ये सब तेरी वजह से हुआ है तुमने जैसा कहा था न ,ठीक मैंने वैसे ही किया और बोली अगर तुम मुझे न समझाती तो मैं और मेरा परिवार इस ख़ुशी से महरूम रह जाते। ख़ैर मुझे तो पता था कि रब के तरीक़े होते है कुछ भी करने के ।जोड़ियों तो पहले ही बनी होती है क्या मैं या क्या कोई और ,इसके क्षेय का हक़दार हो सकते है ।बस ज़रिये बना देता है किसी न किसी को .. हम सब बहुत खुश हुए और सारी फ़ैक्ट्री में मिठाई बाँटी गई और उनकी ख़ुशी चौगुनी हो गई और मैं उनका चेहरा देख रही थी आँखे ख़ुशी से नम थीं और चेहरे पर संतोष के भाव।

दोस्तों अब इस हालात में दो बातें हो सकती थी ।या तो वो सारा परिवार अपनी अहम के कारण या कह लें पुराने सोच के कारण ,इस शादी में न जा कर बच्चों से सारे रिश्ते तोड़ लेते ,और अपना पोते को सदा के लिए खो सकते थे ..दूसरा रास्ता जो उन्होंने अपनाया।आज उनका पोता भी ख़ुश और बेटा भी ख़ुश और पूरा परिवार भी। किसी चीज़ को, रिश्तो को तोड़ना बेहद आसान है जोड़े रखना ही मुश्किल।बडो की समझदारी का एक कदम ,एक फ़ैसला बहुत सी बातो को सुलझा सकता है मगर कभी-कभी बड़े बुजुर्ग अपनी बात किसी कारण वंश नही कह पाते तो परिणाम निःसन्देह दुख देह बन सकता है।

इक ग़लत फ़ैसला हमें अपनों से दूर कितनी दूर कर सकता है इस बात का अंदाज़ा आप मुझ से बेहतर लगा सकते है। 🙏

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बात बराबरी की

मैंने कहीं सुना था कि महिलाओं का नौकरी करना मतलब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना है मतलब कि उन्हें अपने पति के आगे हाथ ना फैलाना पड़े। तो इसमें गलत क्या है अगर महिला आर्थिक रूप से मजबूत हो रही है तो लाभ भी तो परिवार को ही मिल रहा है बल्कि स्त्री को परिवार का ज्यादा भार उठाना पड़ता है। बच्चों से लेकर घर के बड़े बुजुर्गों और घर की जरूरतों तक का ध्यान रखने की जिम्मेदारी महिला पर ज्यादा होती है। नौकरी से लौटकर जहाँ पति अखबार या टीवी में बिजी हो जाता है वहीं स्त्री को रसोई संभालनी पड़ती है। ऐसा नहीं कहूंगी कि आजकल इस मानसिकता में बदलाव नहीं आया है। यह बदलाव जरूर आया है कि आज की युवा पीढ़ी घर और बच्चे दोनों संभाल रही है। जरूरत ने उन्हें घरेलू बना दिया है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति परिवार का दुर्लक्ष होते नहीं देख सकता इसलिए समझौता जरूरी है। फिर भी अभी भी ऐसी मानसिकता देखने को मिल जाती है कि महिला पुरुष पर निर्भर करें। कितना अच्छा लगता है जब औरत सौ रुपए मांगे और उस सौ रुपए के खर्च का हिसाब देना पड़े। कुछ भी खर्च करना हो तो पहले हिसाब और जरूरत बताएं फिर तय होगा कि उसे खर्च करना है या नहीं। अच्छा लगता है ऐसा स्वामित्व भरा दंभ?

यह सही है कि महिला का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाने के बाद उसकी निर्भरता पुरुष पर कम हो जाती है बल्कि एक तरीके से खत्म हो जाती है। उसमें एक आत्मविश्वास आ जाता है। परिवार की जिम्मेदारी निभाने के साथ – साथ सही गलत का फर्क समझ कर कोई बात दबी जबान से ना कह कर सीधे बोलना भी सीख जाती है। फिर भी आज भले ही महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गई हों लेकिन आज भी खर्चे के मामले में वह परिवार के मुखिया पर ही निर्भर हैं। कहीं कहीं महिलाएं घरेलू हिंसा का भी शिकार हो जाती हैं। अभी भी आत्मनिर्भरता सिर्फ नाम की है क्योंकि स्त्री का पूरी तन्ख्वाह पति के हाथों में चली जाती है। जब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होते हुए भी उन्हें अपनी जरूरतों, खर्चों के लिए अनुमति मांगने पड़े तब स्थिति बड़ी विषाद हो जाती है। मन में यही सवाल उठता है कि क्या इतना भी अधिकार नहीं है कि हम अपने ऊपर खर्च कर सके? उसके लिए भी पूछना पड़े? क्या कभी देखा है कि पुरुष को अपने खर्चों के लिए, अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए स्त्री से अनुमति मांगते हुये? इन तमाम दुविधाओं के साथ जीती हुई महिला अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहती है। अगर इतनी ही संकुचित मानसिकता रहेगी पुरुषों की तो स्त्री घर और बाहर की जिम्मेदारी कैसे संभाल पायेगी? ऐसी संकुचित सोच रख कर क्या महिलाएं सही मायने में आत्मनिर्भर हो पाएंगी? हमने महिला को आधुनिक तो बना दिया लेकिन बराबर का हक और सम्मान देने में असफल रहे। ~ प्रियंका वर्मा माहेश्वरी

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शक्ति कानपुर प्रांत , राष्ट्रीय सेवा योजना क्राइस्टचर्च कॉलेज एवं उन्नति विकास सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में सामाजिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का आयोजन

कानपुर 5 अक्टूबर, शक्ति कानपुर प्रांत , राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई क्राइस्टचर्च कॉलेज एवं उन्नति विकास सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में सामाजिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का आयोजन शेल्टर होम,सुतर खाना ,सेवा बस्ती में किया गया, जिसमें सेवा बस्ती की महिलाओ को मानसिक बीमारियां कैसे होती है तथा इसका निवारण कैसे किया जा सकता है एवं महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन वितरण बगैरा किया जाना निश्चित किया गया है इस कार्यक्रम में उर्सला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल से डॉक्टर चिरंजीव प्रसाद मनोचिकित्सक, डॉ आरती कुशवाह, संदीप कुमार सिंह मनोचिकित्सक एवं सामाजिक कार्यकर्ता, सुधांशु प्रकाश मिश्रा क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट, पवन यादव अरुण यादव राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम, अवधेश कुमार परामर्श दाता , राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम बंदना यादव सामाजिक कार्यकर्ता , डॉक्टर एसके निगम डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर एनसीडी, डॉ सुनीता वर्मा यूनिट इंचार्ज शक्ति कानपुर प्रांत , एवं उन्नति विकास सेवा संस्थान की सचिव एवं शक्ति कानपुर प्रांत की मीडिया प्रभारी संध्या सिंह

और कानपूर शक्ति की माननीय मेंबर डॉ दीप्ति रंजन बिसरी ,डॉ शशि बाला, प्रतिभा मिसरा आदि उपस्थित रहेगी

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चेहरे का नूर बताता है कितना खूबसूरत है दिल

वाक़ई मे ये बात तो सच है कि हमारे चेहरे का नूर हमारे विचारों पर निर्भर करता है और हमारे विचार हमारे खान पान पर।वो कहते है “जैसा अन्न वैसा मन “
जब औरत अपने हाथ से अच्छी भावना से खाना बनाती है तो इसका असर खाने वाले पर ज़रूर पड़ता है सात्विक तामसिक और राजसी भोजन.. तीनों प्रकार के भोजन का असर हमारे मन और सोच पर अलग अलग होता है सात्विक भोजन शरीर को स्वास्थ्य रखने मे सहायक होता है इसका मन पर भी असर पवित्र और शुद्ध होता है तामसिक भोजन क्रोध कामुकता को जन्म देता है और राजसी भोजन हमे आलस प्रदान करता है आज के वक़्त मे अधिकतर घरों में रसोई बनाने वाला कोई और होता है और वो ये काम सिर्फ़ पैसा कमाने के लिये कर रहे होते है आप की रसोई बनाते वक़्त उनकी सोच कोई भी हो सकती है
उस वक़्त उसके मन में जो विचार चल रहा होगा।उसके विचार की तरंगें सीधा हमारे भोजन में जाती है और हमारे मन पर उसका असर भी ज़रूर दिखता है किसी रसोइया के मन में वो प्रेम प्यार नहीं हो सकता ।यही बात होटलों में खाना खाने पर होती हैं वहाँ भी खाना बनाने वाले के दिल मे पैसा कमाने का या कोई अन्य विचार हो सकता है मगर जब घर पर अपने हाथों से प्यार से खाना बनाया जाता हैं तो सोच ये होती हैं कि खाना स्वादिष्ट सेहतमंद विटामिन युक्त हो जो मेरे परिवार को रोगमुक्त रखे .. यही हमारी भावना अलग है औरों से .. होटलों से ,या अन्य किसी रसोइया से ।वो औरत सच मे अन्नपूर्णा होती है जो अपने हाथो से रसोई बनाती है ।और सब का पेट भरती है।

मगर आज कुछ माहौल अलग है
अब हमारा श्रृंगार सोच ,पहनावा,खाना खाने और बनाने का ढंग बदल रहा है ।होना भी चाहिए..ज़रूर वक़्त के साथ बदलना भी ज़रूरी है इसमें कोई बुराई नहीं ।
आज के दौर में हर घर में हाथ बँटाने के लिए पूरा स्टाफ़ होता है एक नहीं चार चार ही होंगे।बड़े बड़े घर है बड़ी बडी गाड़ियाँ ऊँचा मकान ऊँची दुकान ..हर चीज़ हर किसी के पास होती भी है और आज हमारी माँगें हमारी ज़रूरते बहुत बढ गई हैं जिसके लिए आज मर्दों को अपने परिवार की हर ज़रूरत को पूरा करने के लिये न जाने क्या कुछ नहीं करना पढ़ता होगा और इसी दवाब के कारण कई बार वो अपने सेहत को भी दांव पर लगा देते है ये न तो उनके लिए ,न ही हमारे हित में होता है ।
करोड़ो के ज़ेवर पहनने के बावजूद भी हमारे चेहरे फिर भी मुरझाये से है ।इक असुरक्षित सा अकेलेपन का अहसास फिर भी क़ायम है ।
चेहरों पर नूर ग़ायब है कही शान्ति नज़र नहीं आती ।
इक कठोर ..कर्कश से चेहरे हो गये हैं ,जबकि होना बिलकुल विपरीत चाहिए था।
दोस्तों ।
बात चाहे औरत की हो या मर्द
की ।हमारी खानपान का प्रभाव हमारी सोच पर और सोच का प्रभाव हमारे चेहरे पर ज़रूर पड़ता है जैसा सोचते है धीरे धीरे चेहरा भी वैसा ही बनने लगता है अगर मन में ईर्ष्या क्रोध दुख लोभ और कामुकता के विचार ज़्यादा होगें तो यकीनन चेहरे से साफ़ नज़र भी आयेगा और अगर मन में दूसरों के लिए प्रेम,कोमलता ,दया ,श्रद्धा
सहनशीलता ,सहजता पवित्रता है तो ये भाव भी चेहरे पर आ जाते हे वो कहते है न
“चेहरा दिल का आईना होता है “
हमारा दिल हमारे चेहरे में से दिखता है

दोस्तों
पहले लोग कितने भोले सीदे सादे हुआ करते थे मेकअप के नाम पर बिंदी लिपस्टिक ही हुआ करती थी
मगर उनके चेहरे पर नूर ,गालो पर लाली ,आँखों मे चमक ,होंठों पर मुस्कान हुआ करती थी
फ़र्क़ ये था तब लोग बहुत शालीन संयमी,संतुष्ट थे ।थोड़े मे भी ख़ुश और शुक्र किया करते थे। अपने हाथों से सारा काम किया करते थे यही वजह हुआ करती थी सारा परिवार बंधा रहता था ।
उस वक़्त लोगों को ये डिप्रेशन जैसी बिमारी नही हुआ करती थी क्योंकि ज़रूरतें कम हुआ करती थी आपस मे मिल बैठ कर अपनी कठिनाईयो को सुलझा लिया करते थे इक दूसरे का दुख सुख अपना समझते थे। दिखावा बिलकुल नहीं था सहज और बहुत सरल थे।
इससे कोई फ़र्क़ नहीं पढ़ता कि आप की जीवन शैली आधुनिक है या पुरानी सोच पर आधारित है बात पुराने वक़्तों की हो या आज की ..“ सुखी जीवन का मूल मन्त्र यही है”

चेहरे का नूर किसी बाहरी मेकअप से कहाँ आता है ।मेकअप आप को सुन्दर बेशक बना सकता है मगर चेहरा का नूर ,ये इक अलग ही तेज इक ऐसी चमक है जो अन्दर से पैदा होती है अगर किसी का मन सुन्दर सहज भोला और पवित्र है
तो इन्सान वैसे ही बहुत
सुन्दर दिखने लगता है .. धीमे से ..हौले से बोलने में जो ताक़त है वो तीखी तर्कश आवाज़ में नहीं । असली ज़ेवर हमारी मुस्कान ,हमारी मीठी आवाज़ ,हमारी सुन्दर सोच है .. जिसे पहनने के लिये कोई धन नही खर्च होता ।
दोस्तों
मिलजुल सारे काम किये जा सकते है अपने हाथ से काम करने से ज़िम्मेदारी का अहसास तो होता ही है शरीर भी ठीक रहता है और हम चीजों की कद्र भी करते है।वैसे भी इन्सान किस के लिये करता है अपने बच्चों के लिए ,हमारा फ़र्ज़ उनको पैरों पर खड़े करना ही होना चाहिए ।उनके लिए भी घर या ज़ेवरों का इन्तज़ाम करन नही।
हर कोई अपने मुक़द्दर से ये सब बना ही लेता है ।जब माँ बाप सब बना कर देते है उन्हें क़दर नहीं
होती।उनमें आगे बढ़ने का तीव्र इच्छा नहीं रहती।हमेशा अपनी चीज़ की कद्र तब होती है जब हम आप बनाते है।

दोस्तों 🙏
हम सब ने अपने आप को बहुत बिखेर रखा है दुनिया मे,परिवारों मे।ज़रूरत है तो सिर्फ़ खुद को समेटने की।
इन सब झंझटों से निकल कर अपने मन में ठहराव लाने की आवश्यकता है। ठहराव अपनी सोच मे विचारों मे, अपनी वाणी मे ,अपनी दृष्टि मे लाने की ज़रूरत है क्योंकि खड़े पानी मे ही अपना अक्स देखा जा सकता है ठहराव मे ही हम खुद को ,अपने मन को ,अपनी सोच को देख पायेंगे।अपनी ज़िन्दगी को आसान करिये, ख़ुश रहे।जो है उसी में संतुष्ट रहे।योगा करे ,मैडिटेशन करे ।जो मिला है उसी को ही दिल से स्वीकार कर ले।

चेहरे का नूर अन्दर से ही निकलेगा कहीं बाहर से नहीं ..शर्त बस इतनी ही है कि विचारों और खान पान पर ख़ास ध्यान रखा जाए ।फिर देखिए चेहरे पर नूर कैसे बरसता है। :+ स्मिता केंथ

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क्राइस्ट चर्च कॉलेज और विज्ञान भारती के सयुक्त तत्वाधान में वेबीनार आयोजित

कानपुर 29 सितंबर क्राइस्ट चर्च कॉलेज के साथ विज्ञान भारती के सहयोग से एक वेबीनार का सफलता पूर्वक आयोजना हुआ जिसके मुख्य अतिथि जाने माने अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा जी रहे। कार्यक्रम की शुरुआत डॉ श्वेता चांद द्वारा प्रार्थना से हुई। फिर क्राइस्ट चर्च कॉलेज प्राचार्य डॉ जोसेफ डेनियल ने इस कार्यकर्म में सभी प्रतिभागियों का स्वागत कर इस वेबिनार को उपयोगी बताया , विज्ञान भारती सचिव डॉ सुनील मिश्र ने विज्ञान भारती मंच से अवगत कराया , अनुकृति रंगमंडल के सचिव डॉ उमेंद्र जी द्वारा सभा का संबोधन किया गया । नमन अग्रवाल एवं इश्तिका कुशवाहा द्वारा अखिलेंद्र मिश्रा के जीवन पर आधारित एक वीडियो प्रस्तुति दी गई। डॉ मीत कमल ने मुख्य अतिथि का परिचय दिया। अखिलेंद्र मिश्र  द्वारा सभा का संबोधन किया गया। उन्होंने बताया की “विश्व में दो मंथन हुए थे प्रथम समुद्र मंथन व दूसरा स्वत्रंता मंथन। जिसमे स्वतंत्रता सेनानियों ने विष का सेवन किया था तभी जा कर हमे ७५ वा आज़ादी का अमृत महोत्सव को मनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
वेदांत मिश्रा द्वारा कार्यक्रम का सफल संचालन किया गया । इस कार्यक्रम का समापन श्री अभय द्वारा शांति मंत्र से किया गया । इस कार्यक्रम में 100 से भी अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।

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उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कानपुर के सहजना गांव की बेटी “डाली”(मृतक) के परिजन को रु10 लाख की चेक किया प्रदान।

कानपुर 27 सितंबर, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य ने आज कानपुर नगर के बिल्हौर तहसील के ग्राम सहजना की बेटी के परिजनों से मिलकर उन्हें सांत्वना व्यक्त करते हुए प्रदेश सरकार की ओर से सहायता राशि के रू0 10 लाख रु. का चेक प्रदान किया। उन्होने कहा कि मृतक बेटी के साथ हुयी घटना के अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा सुनिश्चित होगी। सहायता राशि मृतक बेटी (डाली) की मां श्रीमती मिथिलेश कुशवाहा पत्नी स्व0 ओम प्रकाश को उनके स्थाई निवास( घर) जाकर उप मुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य द्वारा प्रदान की ।

उपमुख्यमंत्री ने मृतका के परिजनों से मिलकर उन्हें ढाढ़स बंधाया तथा कहा कि शासन और प्रशासन उनके साथ है, उनकी हर संभव मदद की जाएगी। अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी ।उन्होंने घटना के बाबत परिजनों से वार्ता भी की तथा मृतका के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।

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