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अटल घाट गंगा नदी में गंगा को निर्मल बनाने व मत्स्य संरक्षण हेतु 80 से 100 मिली मी0 की 40 हजार मछलियों प्रवाहित

कानपुर नगर 6 मई, (सू0वि0) कैबिनेट मंत्री, मत्स्य, उ0 प्र0 सरकार डॉ0 संजय निषाद ने आज अटल घाट गंगा नदी में गंगा को निर्मल बनाने व मत्स्य संरक्षण हेतु 80 से 100 मिली मी0 की 40 हजार मछलियों को प्रवाहित किया। उन्होंने गंगा नदी में मछलियों को प्रवाहित करते हुये कहा कि ये विभिन्न प्रकार की मछलियॉ गंगा में हानिकारक शैवाल को खाकर गंगा को स्वच्छ बनाने में मदद करेगी। उन्होंने बताया कि रोहू, कतला, नैन प्रजातियों की मछलियॉ नदी के तल में जमा कचरे को साफ करती है और इसके साथ ही मत्स्य संपदा को बढाती है। पानी में इन मछलियो के प्रवाहित होने से गंगा में स्वच्छता के साथ मत्स्य संपदा में तेजी से बढोतरी होगी और गंगा को निर्मल बनाने में यह मछलियॉ कारगर होगी।
उन्होंने कहा कि मत्स्य संपदा में बढोतरी होने से मछुआ समुदाय के लोगो को मत्स्य पालन के साथ लाभ भी प्राप्त होगा। उन्होंने बताया कि रोहू मछली पानी के ऊपरी सतह सरफेस फीडर में मौजूद असुद्धियो को खाती है, कतला मछली पानी के बीच की गन्दगी को खाकर नष्ट करती तथा नैन मछली पानी की निचली सतह में रहकर गन्दगी को खत्म करती है और जो भी गैसे आदि कचरे में दबी होती है उन्हें नष्ट करती है।
उन्होंने मत्स्य पालन विभाग द्वारा संचालित प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अन्तर्गत मत्स्य पालको को निःशुल्क रुपये 05 लाख की धनराशि की दुर्घटना बीमा योजना की जानकारी देते हुये कहा कि मत्स्य पालक इस योजना का लाभ प्राप्त करे। उन्होंने मत्स्य पालकों को जागरुक करते हुये कहा कि वह सरकार द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ प्राप्त करे और स्वास्थ्य, शिक्षा व अपने रोजगार पर विशेष ध्यान देकर जीवन स्तर को बेहतर बनाये। उन्होंने मत्स्य विभाग के अधिकारियों को इस योजना से मत्स्य पालकों को लाभान्वित करने के लिये इसका व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु कैम्प लगाकर योजना का लाभ दिलाये जाने के निर्देश दिये। उन्होंने विभागीय अधिकारियों को मत्स्य पालकों के हितो में संचालित योजनाओं की अधिक से अधिक मछुआ समुदाये के लोगों को जानकारी देते हुये समयबद्ध क्रियान्वन कराये जाने के निर्देश दिये।
इससे पश्चात उन्होंने डीएवी कालेज में मत्स्य संपदा सेक्टर के डिप्लोमा प्रशिक्षणार्थियों से संवाद करते हुये मत्स्य पालन सेक्टर को और उपयोगी बनाये जाने तथा वैज्ञानिकों से मत्स्य पालन व मत्स्य संपदा को और बेहतर तथा उपयुक्त बनाने के लिये सुझाव प्राप्त किये। जिससे की मत्स्य पालन को बढावा देने के साथ और अधिक लोगो को रोजगार उपलब्ध कराया जा सके।
कार्यक्रम में उप निदेशक मत्स्य डा0 नरुलहक, सहायक निदेशक मत्स्य एन0के0 अग्रवाल, नमामि गंगे के सचिव, प्रभागी वन अधिकारी व अन्य संबंधित अधिकारीगण उपस्थित रहे।

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प्रधानमंत्री ने मुंबई में आयोजित एक समारोह में लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार प्राप्त किया

प्रधानमंत्री मोदी आज मुंबई में मास्टर दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार समारोह में शामिल हुए। इस अवसर पर प्रधानमंत्री को प्रथम लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत रत्न लता मंगेशकर की स्मृति में स्थापित किया गया यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष सिर्फ एक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण में अनुकरणीय योगदान के लिए दिया जाएगा। इस अवसर पर, महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी और  मंगेशकर परिवार के सदस्य भी उपस्थित थे। पीएम मोदी ने मंगेशकर परिवार का धन्यवाद किया

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए कहा कि मुझे संगीत जैसे गहन विषय की बहुत जानकारी तो नहीं है, लेकिन सांस्कृतिक बोध से यह महसूस होता है कि संगीत एक ‘साधना’ भी है और एक भावना भी। उन्होंने कहा, “जो अव्यक्त को व्यक्त कर दे, वो शब्द है। जो व्यक्त में ऊर्जा और चेतना का संचार कर दे, वो ‘नाद’ है। जो चेतन में भावों और भावनाओं को भरकर सृष्टि और संवेदनशीलता की पराकाष्ठा तक ले जाए, वो ‘संगीत’ है। संगीत आपको वीररस और मातृत्व स्नेह की अनुभूति करवा सकता है। यह राष्ट्रभक्ति और कर्तव्यबोध के शिखर पर पहुंचा सकता है।” उन्होंने कहा, “हम सब सौभाग्यशाली हैं कि हमने संगीत के इस सामर्थ्य और शक्ति को लता दीदी के रूप में साक्षात देखा है।” एक व्यक्तिगत टिप्पणी करते हुए, श्री मोदी ने कहा, “मेरे लिए, लता दीदी ‘सुर साम्राज्ञी’ होने के साथ-साथ मेरी बड़ी बहन भी थीं। पीढ़ियों को प्रेम और भावनाओं का उपहार देने वाली लता दीदी से अपनी बहन जैसा प्यार पाने से बड़ा सौभाग्य और क्या होगा।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि वे आमतौर पर पुरस्कार लेते हुए बहुत सहज नहीं महसूस करते, लेकिन जब मंगेशकर परिवार लता दीदी जैसी बड़ी बहन का नाम लेता है और उनके नाम पर पुरस्कार देता है, तो यह उनके स्नेह और प्यार का प्रतीक बन जाता है। प्रधानमंत्री ने कहा, “मेरे लिए इसे ना कहना संभव नहीं है। मैं यह पुरस्कार सभी देशवासियों को समर्पित करता हूं। जिस तरह लता दीदी लोगों की थीं, वैसे ही उनके नाम पर मुझे दिया गया यह पुरस्कार भी लोगों का है।” प्रधानमंत्री ने कई व्यक्तिगत किस्से सुनाए और सांस्कृतिक जगत में लता दीदी के असीम योगदान के बारे में विस्तार से बताया। प्रधानमंत्री ने कहा, “लता जी की जीवन यात्रा ऐसे समय में पूरी हुई जब हमारा देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। उन्होंने आजादी से पहले भारत को आवाज दी थी और देश की इन 75 वर्षों की यात्रा भी उनकी आवाज के साथ जुड़ी रही।”

प्रधानमंत्री ने मंगेशकर परिवार की राष्ट्रभक्ति के गुण के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा, “संगीत के साथ-साथ राष्ट्रभक्ति की जो चेतना लता दीदी के भीतर थी, उसका स्रोत उनके पिताजी ही थे।” श्री मोदी ने वह घटना सुनाई जब आजादी की लड़ाई के दौरान शिमला में ब्रिटिश वायसराय के एक कार्यक्रम में दीनानाथ जी ने वीर सावरकर का लिखा एक गीत गाया था। यह गीत वीर सावरकर ने ब्रिटिश शासन को चुनौती देते हुए लिखा था। प्रधानमंत्री ने कहा कि देशभक्ति की यह भावना अपने परिवार को दीनानाथ जी ने विरासत में दी थी। लता जी ने संगीत को अपनी पूजा बना लिया लेकिन देशभक्ति और राष्ट्र सेवा को भी उनके गीतों से प्रेरणा मिली।

लता दीदी के शानदार करियर का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा, “लता जी ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की मधुर प्रस्तुति की तरह थीं। उन्होंने 30 से अधिक भाषाओं में हजारों गाने गाए। चाहे वह हिंदी हो, मराठी, संस्कृत या दूसरी भारतीय भाषाएं हो, उनका स्वर हर भाषा में एक जैसा घुला हुआ था।” श्री मोदी ने आगे कहा, “संस्कृति से आस्था तक, पूर्व से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक, लता जी के सुरों ने पूरे देश को एक करने का कार्य किया। वैश्विक स्तर पर भी, वह भारत की सांस्कृतिक राजदूत थीं।” प्रधानमंत्री ने कहा, “ वह हर राज्य, हर क्षेत्र के लोगों के मन में बसी हुई हैं। उन्होंने दिखाया कि कैसे भारतीयता के साथ संगीत अमर हो सकता है।” प्रधानमंत्री ने मंगेशकर परिवार के परोपकारी कार्यों की भी चर्चा की।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के लिए विकास का मतलब सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास है। इस परियोजना में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के सभी के कल्याण के दर्शन को भी शामिल किया गया है। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि विकास की ऐसी अवधारणा सिर्फ भौतिक क्षमताओं से हासिल नहीं की जा सकती। इसके लिए आध्यात्मिक चेतना बेहद महत्वपूर्ण है। इसीलिए भारत योग, आयुर्वेद और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान कर रहा है। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन को समाप्त करते हुए कहा, “मेरा मानना ​​है, हमारा भारतीय संगीत भी भारत के इस योगदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आइए हम इस विरासत को उन्हीं मूल्यों के साथ जीवित रखें तथा इसे आगे बढ़ाएं और इसे वैश्विक शांति का एक माध्यम बनाएं।”

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इस अग्नि के फेरे में पुरुष भी तो जलते है

इस अग्नि के फेरे में पुरुष भी तो जलते है
स्त्री तकलीफ में होती है माना, मग़र पुरुष भी कहाँ सुकून से पलते है!!
इस अग्नि के फेरे में पुरुष भी तो जलते है
कुछ पुरुष होते है जो दर्द को अन्दर ही अन्दर पीते है,अपने बच्चो का चेहरा देखकर उसी में वो जीते है!!
स्त्री रो कर बाह लेती है अपने दर्द को,वही पुरुष रोने भी कह बैठ पाता है
क़भी बच्चो में देखता है अपने अस्क को, तो क़भी आईने में खोजता फिरता है खुद को!!
इस अग्नि के फेरे में पुरुष भी तो जलते है
तकलीफ होती हज़ार गुना जब माँ कहती है की
मेरा बेटा अब मेरा बेटा नहीं रह बस किसी का पति बन गया है, इस उलझन को वो कैसे सुलझाये
अपनी माँ को वो क्या बतलाये की वो क्या था और क्या बन के रह गया!!
इस अग्नि के फेरे में पुरुष भी तो जलते है
हर पुरुष की नहीं ये कहानी, मग़र है बहुत से जो इस दर्द से है गुजरते,एक कोने में बैठ कर अपनी ज़िन्दगी की डोर को हाथों में लेकर घन्टो बैठ कर देखते है, फिर उसी डोर को सीने से लगा कर
ज़िम्मेदारियों को उठाने वो घर से निकलते है! इस अग्नि के फेरे में पुरुष भी तो जलते है …श्रद्धा श्रीवास्तव

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दीपक जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होने के साथ साथ घर का वातावरण भी संतुलित रहता है

हमारे घरों मे प्राचीन काल से ही सुबह और शाम को दीपक जलाने का रिवाज रीत या चलन रहा है।आदमी या औरतें घर के काम के साथ ये काम भी बहुत शौक़ और श्रद्धा से करते थे। दीपक जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होने के साथ साथ घर का वातावरण भी संतुलित रहता है।शाम को दीपक जलाने से लक्ष्मी माता प्रसन्न होती है, दीपक अंधकार को मिटाकर घर में रोशनी देता है, जिससे घर परिवार का माहौल खुशनुमा बना रहता है।इसीलिए सब को दीपक लगाना भी चाहिए। मगर भगवान तो सारे संसार को रोशनी देते है ,उन्हें क्या ज़रूरत है हमारे दीपक की।वो रोशनी हम अपने लिये जलाते है ताकि हमारे मन मे प्रकाश हो। लेकिन अब दौर नया है नई पीढ़ी ये नही कर पाती न ही समझती है।बहुत ख़ुशक़िस्मत वाले लोग है जो ये पूजा पाठ कर पाते है। दोस्तों! अगर आज के वक़्त मे हम हर रोज सुबह शाम गैस का चूल्हा भी अपने हाथ से जला ले,और अग्नि उत्पन्न कर ले,और उस अग्नि पर अपने हाथ से खाना बना कर सारे परिवार को खिला पा रहे है।उस वक़्त आप इक ऐसा दीपक जला रहे होते है जो किसी के काम भी आ रहा है।अपने हाथो से किसी का पेट भी भर रहे होते है।  भगवान तो उसी गैस के चूल्हे से उत्पन्न हुई अग्नि को भी दीपक मान लेते है और ख़ुश हो जाते है। मगर आज दीपक तो दूर की बात है घर का खाना बनाने के लिये घर मे काम करने वाले लोग ही गैस को जलाते है। यानि घर मे सुबह शाम अग्नि भी कोई और ही जलाता है और सारे परिवार का पेट भी कोई और ही भरता है। सुबह शाम मंदिर मे घंटी बजाने का भी चलन है। वो भी शुभता का सूचक है और असीम शांति भी प्रदान करता है । अगर बजा सको तो बहुत शुभ है । नही तो जब हम अपने हाथ से चूल्हा जला कर परिवार को खाना खिला देते है ,तो बाद मे क्या करते है ,पानी से बर्तनों को धोते है।जो बर्तन धोते वक़्त जो बर्तनों के टकराव से ध्वनि प्रकट होती है भगवान तो इतने दयालु और सरल है वो तो उसी ध्वनि को घंटी के रूप मे स्वीकार कर लेते है । अफ़सोस ये है आज हमारे परिवार को खाना भी कोई और खिलाता है और बर्तन भी कोई और धोता है। सो इस हिसाब से अग्नि भी सुबह शाम कोई और प्रकट कर रहा है और हमारे परिवार की भूख अग्नि को बुझाने के बाद घंटी भी कोई और बजा देता है । हम वो सौभाग्य भी अपने हाथो से खो देते है अगर मन्दिर की सफ़ाई न भी कर पाये तो घर की ही अपने हाथो से कर लेनी चाहिए,क्योंकि घर मे साक्षात्कार रूप मे भगवान रहते है।सास ससुर की सेवा जिसने कर ली ।भगवान शिव पार्वती माता अपने आप ख़ुश ही रहेंगे।पति की सेवा कर ली तो भगवान विष्णु की पूजा हो गई समझो।पत्नी को ख़ुश किया तो माँ लक्ष्मी वैसे ही प्रसन्न रहेंगी।और अगर अपने पुत्रों और पुत्रियों या आसपास के छोटे बच्चों को प्यार किया उनकी देखभाल की तो भगवान गणपति की ख़ुशी प्राप्त की जा सकती है ,और कही जीवन भर किसी को दुख न दिया।न ही किसी की आह ली ,और न ही किसी के साथ ठगी की ,तो समझो नवग्रह अपने आप ही प्रसन्न रहेंगे।भगवान ने हमे सीधा सा जीवन दिया है ।जिसे हम सादगी से जी भी सकते है मगर हम वो भी नही कर पाते।

चिराग़े रोशन कर तो सही ,कभी खुद से ,कभी नज़रों से और कभी अपने करमो से ,चिराग़ जला तो सही।
हवा के ख़िलाफ़ जो चिराग़ जलाया मैंने,मासूमियत देख मेरी,हवा का रूख अपने आप ही मेरी ओर मुड़ गया 🙏 स्मिता

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रात ढलती रही ख्याल गुजरते रहे.

तमाम रात ख्याल भटकते रहे
कुछ खामोशियां अल्फ़ाज़ों में ढलती रही

इन सन्नाटों में झींगुरों की आवाज भी
चीखती हुई सी महसूस होती है

हवा की एक हल्की सी आहट
इक दस्तक सी महसूस होती है

नीम के झुरमुटों का हिलना
जैसे हवा संग मस्तियां करना

ठंडी हवा का झोंका
जैसे रात को आवारा कर रही है

तमाम रात ख्याल भटकते रहे
रात ढलती रही ख्याल गुजरते रहे.

प्रियंका वर्मा महेश्वरी

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सुलझा हुआ दिखने की बजाय सुलझा होना बेहतर

“सुलझा हुआ दिखने की जगह ..सुलझे होना ही बेहतर है “साफ़ शीशे की तरह। बाहर से हर कोई शान्त समुन्दर की तरह दिखता है मगर भीतर इक छिपा हुया तूफ़ान। ये बात इक महिला कमल की है जिसे मैं जानती हूँ।वो बेहद समझदार ,ख़ुश मिज़ाज ,अपने गुरू में पूरी आस्था रखने वाली।पूरे मोहल्ले की रौनक़।हमेशा उनका हँसता हुआ चेहरा देखा करती।आत्मविश्वास तो कूट कूट कर भरा पड़ा था।अच्छे खुले विचारों की धनी ,सहृदय की स्वामिनी।अपने काम खुद ही करती।वो तक़रीबन अस्सी साल की होगी।आज बहुत गर्मी थी।सारा दिन ऐ-सी मे बैठने से मन उकता सा गया था।मैंने गार्गी को फ़ोन मिलाया और उसे झील पर मिलने के लिए कह दिया। थोड़ी ही देर मे मै भी वहाँ पहुँच गई।चंडीगढ़ की झील और उसपर शाम का ठंडी हवा जैसे मन को शान्त कर रही थी।सामने से गार्गी अपनी ममी के साथ आती दिखाई दी, वो बचपन से ही कमल आंटी को जानती थी।अचानक मेरी नज़र कमल आंटी पर पड़ी। झील की पोडियो पर चुप सी आँखें बंद करके बैठी हुई थी।मुझे हैरानी हुई ये कमल आंटी जो इतनी रौनकी है आज इतनी चुप सी ,मैंने गार्गी को कहा, इनको क्या दुख हो सकता है ये तो रोते हुए को भी हंसा देती है।
गार्गी की ममी ने बताया कि कमल मेरी बचपन की सहेली है।जब कमल तीन साल की थीं।उनके पिता की मौत हो गई।इनका बचपन बहुत तंगी में गुजरा।दादा के साथ रह कर देसी घी बेचने की दुकान चलाया करती थी।दुकान और घर के बीच इक अंधेरा वाली गली आती थी।लोग रात को वहाँ से नही गुजरते थे और ये कमल हाथ मे इक लम्बी सी छड़ी ज़मीन पर मारती और “दादा जी मै आईं ,दादा जी मै आई“ज़ोर ज़ोर से कहते कहते अपने दादा के पास पहुँच जाती और दादा उसे डाँटते ! कयूं आई हो अन्धेरें से ,मै घर आ जाता अपने आप,तो कमल कहती! कयूं आप अकेले कयूं आते।उस अंधेरे वाली गली से।कही आप का पैर फिसल गया और कहीं चोट लग गई।इसी लिये मै आप को शाम को घर ले जाने के लिये आ जाती हूँ और दादा की बूढ़ी आँखें कमल की इस सोच पर भर जाया करती।बहुत निडर हुआ करती थी। वहाँ गाँव में इक ऊँचा लम्बा आदमी जिस की शकल ख़ूँख़ार सी हुआ करती थी।लोग उससे डरा करते थे।इक बार वो दुकान पर आ गया।सब गाहक डर कर इधर उधर हो गये क्यूँकि वो डाकू था और ये कमल बहुत बिन्दास हो कर कहने लगी।चाचा चाचा क्या आप डाकू है ?लोग आप से इतना डरते क्यों हैं।डाकू बोला !मैं अपने गाँव की इज़्ज़त उनकी बेटियों की रखवाली के लिये ही डाकू बना हूँ।ये कमल जो उस वक़्त शायद 10 साल की रही होगी बोली !आप इतने बुरे भी नहीं जैसे लोग समझते हैं।अगर रखवाली ही करनी है आप अपनी इन बड़ी बड़ी मूँछों को कटवा दें। फिर लोग आप से नही डरेंगे।दादा ने कमल को रोकना चाहा ,मगर कमल को रोक पाना इतना सहज नही था।उसके दादा बहुत ही शान्त क़िस्म के व्यक्ति थे।वो डाकू थोडा झेंप गया।कहने लगा !अच्छा अच्छा कटवा दूँगा और सच में अगले दिन उसने अपनी ढाडी मूँछें कटवा दी और अच्छे से पगड़ी बांध कर दुकान पर आया और दादा को कहने लगा ! मैं सब को डरा कर रखता हूँ और आप की पोती को मुझ से डर नहीं लगा।चाचा चाचा कह कर मुझे डाँट भी दिया। निडर हो कर जो कहना था कह भी दिया।अब देखो मेरा पूरा हुलिया ही बदल दिया।ऐसे ही वो डाकू रोज दुकान पर आता और ये कमल जो उस वक़्त सिर्फ़ 10 बरस की लड़की थी हर रोज डाकू चाचा को अपने गुरू की बाते और कहानियाँ सुनाने लगी, जो वो अपनी माँ से सुनती थी।सुना है कि कुछ देर के बाद उस डाकू ने लूट मार करना बंद कर अपनी छोटी सी कपड़े की दुकान लगा ली। कुछ वर्ष बाद इक कोड़ी गाँव के बाहर आ रहने लगा।लोगों ने उस रास्ते से आना जाना ही छोड़ दिया।जब कमल को पता चला तब वो 12 वर्ष की लड़की रही होंगी।घर वालों से छिपा कर उस कोड़ी को रोटी पानी दूध देने चली जाती।जब इनकी माँ को पता चला तो माँ से कमल को खूब डाँट पड़ी तो कमल कहने लगी! इस कोड़ी को हमारी ज़रूरत है।उसके बाद सब गाँव वाले खुद जा कर उस कोड़ी को रोटी दे कर आते है।ऐसी थी ,बडे दिल की मालकिन ,विशाल और सरल सहज तुम्हारी कमल आंटी। बड़ी हुई तो इक डाक्टर से शादी हो गई।फिर बताया कमल के संस्कार इतने शक्तिशाली हैं।बहुत नुक़सान देखा, दो जवाई गुजर गये पति भी गुज़र गये तो भी शुक्र करती और औरों को भी सांतवना देती।बात करते करते हम सब कमल आंटी के पास पहुँच गये।आज आंटी को देखने का मेरा नज़रिया बिल्कुल अलग था सामने से सूरज की किरणें उनके मुख पर पड़ने से मुख की लालिमा और भी ज़ोरों पर थी गार्गी की ममी ने उन्हें आवाज़ दी ।जैसे ही कमल आंटी ने आँखें खोली मुझे इक तेज प्रकाश का आभास हुआ।हमे देख कर इक दम से ख़ुश हो गई आंटी हमसे बातें करने लगी ।मैं उनके तेज को ही निहारे जा रही थी कितनी निर्मल ह्रदय है। इतना कुछ खोने के बाद भी इनकी शख़्सियत कितनी शक्तिशाली है। आंटी कमल इकदम उठी और गाड़ी की ओर चल पड़ी।मैं सोच रही कि ये औरत जिसे मैं इक आम इंसान समझती थी।क्या पता था कि इनके अन्दर भी इतनी उलझनों हो सकती हैं जो कभी वो ज़ाहिर नहीं करती। मैंने भी महसूस किया वाक़ई में ये सुलझी हुई औरत है जो भी मिला उसे सहर्ष स्वीकार किया और उलझा सा था कोई दूसरा उनमें।जो उनका गुरू ही था। जिस की ताक़त से वो जीवन जी रही थी। दोस्तों उलझने सब पर आती है उनको सुलझाना कैसे हैं। कमल आंटी इक उधारण है, ये बुज़ुर्ग हमारे समाज के लिये वरदान की तरह होते है इनसे हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।हमें इन्हें आभार प्रकट करना चाहिए। दोस्तों इस कहानी की नायिका कोई और नही बल्कि “मेरी माँ “ही है।जो आज होमियोपैथी डाक्टर है~स्मिता

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जिलाधिकारी ने होली को देखते हुए कानून व्यवस्था की समीक्षा की

होली को देखते हुए जिलाधिकारी ने रूप रेखा तय की
◆ नगर निगम शहरी क्षेत्रों में जहां जहां होलिका दहन का कार्यक्रम होना है वहा पर मिट्टी डालने का कार्य करे तथा आयोजकगण भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए नगर निगम से संपर्क कर मिट्टी डाललवाने का कार्य करवाए ।

◆शहरी क्षेत्र में केस्को एवं ग्रामीण क्षेत्रों में दक्षिणाचल लटकते बिजली के तारों को कसवा ले । सभी सब स्टेशन में गैंग उपस्थित रहे यह सुनिश्चित कराया जाए ।
◆ हाई स्पीड से होली एवं गंगा मेले वाले दिन पानी की सप्लाई करायी जाए तथा सभी जलापूर्ति स्टेशनों में बैकअप में जनरेटर की व्यवस्था भी कर लिया जाए ।

◆ स्वास्थ्य विभाग सभी अस्पतालों, सीएचसी, पीएचसी तथा एंबुलेंस को एक्टिव मोड पर रखें।

◆ हटिया गंगा मेले के रूट में लटकते बिजली के तारों को कसा जाए तथा जुलूस के साथ साथ बिजली गैंग तथा एम्बुलेंस भी रहे यह सुनिश्चित किया जाए।
◆ नगर निगम अभियान चलाकर सफाई व्यवस्था सुनिश्चित कराएं।

◆ सरसैया घाट में आयोजित होने वाले होली मिलन समारोह तथा शहर में आयोजित होने वाले अन्य होली मिलन समारोह में यातायात व्यवस्था एवं प्रकाश व्यवस्था आदि सुनिश्चित की जाए।

◆ त्वरित प्रतिक्रिया निस्तारण हेतु अभी विभागों के सदस्यों की टीम का गठन किया जाए ।

उक्त निर्देश आज जिलाधिकारी श्रीमती नेहा शर्मा ने कलेक्ट्रेट सभागार में होली तथा गंगा मेला की तैयारियों के संबंध में आयोजित बैठक में समस्त संबंधित अधिकारियों को दिए।
उन्होंने निर्देशित करते हुए कहा कि समस्त विभाग अपनी अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए दिए गए निर्देशों का पालन समय से सुनिश्चित कराएं।
उन्होंने बैठक में उपस्थित समस्त उप जिलाधिकारी को निर्देशित करते हुए कहा कि वे सभी अपनी उपस्थिति में थानों में होने वाली बैठकों का आयोजन कराए तथा की जाने वाली व्यवस्थाओं कोसुनिश्चित कराए ।
बैठक में अपर जिलाधिकारी नगर श्री अतुल कुमार, समस्त उप जिलाधिकारी , नगर निगम ,केस्को ,जल निगम आदि सभी सम्बन्धित विभागों के अधिकारीगण उपस्थित रहे।

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होली का महत्व

 योग का नियमित अभ्यास किसी भी मनुष्य को प्रह्लाद बना सकता है – वही प्रह्लाद, जिसकी कथाएँ पुराणों में निहित हैं और जिसे हिरण्यकश्यप ने फाल्गुन मॉस की पूर्णिमा को, होलिका दहन में जलाकर मारने का प्रयास किया था। किन्तु उस रात की शक्ति ही कुछ ऐसी थी कि प्रह्लाद बिना जले आग से बाहर आ गया और होलिका , जिसे न जलने का वरदान प्राप्त था, फिर भी जलकर राख़ हो गयी।

पुराणों में निहित कथाएँ केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं बल्कि ज्ञान का भंडार हैं। एक साधारण मनुष्य उन्हें सिर्फ कहानियाँ ही मानता है। सीमित बुद्धि के कारण उसमें इन कथाओं में निहित ज्ञान को जानने की जिज्ञासा ही नहीं होती। और यही इन कथाओं का उद्देश्य भी है कि उनमें छिपे ज्ञान और रहस्यपूर्ण शक्तियों तक एक योग्य साधक ही पहुँच सके।

ज्ञान की प्राप्ति और दैविक शक्तियों का अनुभव गुरु द्वारा निर्धारित क्रियाओं और साधनाओं के नियमित अभ्यास से ही संभव हैं।

यह सृष्टि पांच तत्वों के संयोजन और सम्मिश्रण से उत्पन्न हुई है। जब शरीर में कोई दोष होता है तभी ये तत्व मिलकर उस शरीर की संरचना करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, वात, पित्त और कफ ही शरीर के दोष हैं तथा वेदानुसार कोई नकारात्मक विचार या स्वार्थ की भावना ही शरीर में दोष का कारण है।

यही दोष, एक मनुष्य की मूल प्रकृति को निर्धारित करते हैं। तत्वों की शुद्धता और अशुद्धता का स्तर ही एक व्यक्ति की विचार धारा को निर्धारित करता है। अगर तत्व शुद्ध हैं तो विचार उच्चकोटि के होंगे, परमार्थ के होंगे और यदि तत्व अशुद्ध है तो मनुष्य के विचार, स्वार्थ भावना और स्थूल स्तर के होंगे।

पञ्च तत्वों में अग्नि तत्व का उल्लेख, विशेष महत्त्वपूर्ण है क्योंकि केवल इसी तत्व को दूषित नहीं किया जा सकता। यही एक ऐसा तत्व है जो गुरुत्वाकर्षण के बावजूद ऊपर की ओर उठता है। इसके संपर्क में जो कुछ भी आता है वह शुद्ध और पवित्र हो जाता है। यही अग्नि, मनुष्य का उत्थान करने की क्षमता रखती है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि ऋग वेद का पहला शब्द अग्नि ही है।

अग्नि की शक्ति को प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष दिन बहुत महत्वपूर्ण हैं जिसमें होली भी एक है। इस दिन होलिका, प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गयी थी किन्तु वह एक साधिका थी और अग्नि द्वारा उसके पवित्र होने का समय आ चुका था,इसलिए वरदान होते हुए भी अग्नि ने उसे स्वीकार कर लिया और प्रह्लाद , जो पहले से ही पवित्र और विशुद्ध था, बिना जले बाहर आ गया। जो शरीर पूर्ण रूप से शुद्ध होता है, अग्नि उसको प्रभावित नहीं करती। अग्नि से तात्पर्य स्थूल अग्नि तो है ही साथ ही हमारे जीवन में किसी भी प्रकार की नकारात्मकता, अशांति या विघ्न से भी है।

एक पवित्र देह उच्च लोकों में जाने योग्य है जहाँ उसका संपर्क दैविक शक्तियों से रहता है और ऐसी आत्मा सदैव आनन्द की स्थिति में होती है वहीँ एक अशुद्ध शरीर इस सँसार के भोगों को भोगने में व्यस्त रहता है,भोग जो क्षणभंगुर तो हैं ही साथ ही उस प्राणी को रोग की ओर भी ले जाते हैं। ऐसे व्यक्ति को लगता है कि उसका मनोरंजन हो रहा है और उसका समय सही व्यतीत हो रहा है, किन्तु वास्तव में समय ही उसे व्यतीत कर रहा है और रोगों की ओर ले जा रहा है क्योंकि रोग ही तो भोग का विपरीत है। सृष्टि स्वयं भी तो एक दूसरे के विपरीत पहलुओं का ही परिणाम है।

सनातन क्रिया में भी होली के दिन करने के लिए कुछ शुद्दिकरण प्रक्रियाएं दी गयी हैं। इसमें साधक अपने चारों और अग्नि चक्र बना कर, गुरु द्वारा दिए गए मन्त्रों का जाप करते है जिससे तुरंत ही उनमे आत्मिक शुद्धि की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

योगी अश्विनी – ध्यान आश्रम के योगी अश्विनी से सम्पर्क करने के लिए dhyanashram.ya@gmail.com पर लिखें । गुरुवार 17 मार्च को दुनिया भर में ध्यान फाउंडेशन केंद्रों पर विशेष होली यज्ञ। भाग लेने के लिए www.dhyanfoundation.com पर रजिस्टर करें  09318451205

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इश्क़ तो उसी का मुकम्मल हुआ जो रूह तक पहुँचा

🌹मेरी रूह को जो छू जाये ..वो ज़रिया महज़ गुलाब नहीं हो सकता। रूहानी इश्क़ की पाकीज़गी को गर क़ायल करना चाहो ,तो कुछ कतरा अशक बहाना होगा। ”बहुत इश्क़ इश्क़ तू करता है ,पता भी है ये इश्क़ होता क्या है ?जिस को ये इश्क़ लगा ,चाहे वो रब का हो या जग का फिर वो शख़्स खुद मे रहता ही कहाँ है फिर तो जैसे साहेब राज़ी वैसे वो राज़ी”। ये सच है ! इश्क़ की गलियों मे रंगरूप ,धनदौलत रुतबा कोई मायने नहीं रखता।सामने वाले की ख़ुशी किस बात में है,यही इक फ़िक्र रह जाती है। वहाँ त्याग स्वीकार और सिर्फ़ समर्पण ही होता है और बातें भी सिर्फ़ खामोशियाँ ही करती है बिना शर्तों के, बिना शिकायत के ,बिना अल्फ़ाज़ो के।जहां आँखों से बहा पानी आंसू न रह कर अमृत हो जाता है।

क्या ख़ूब कहा किसी फ़क़ीर ने कि इश्क़ तेरे विच ,मन मर्ज़िया न चलदियां .. जो यार कहे, ओही बिस्मिल्ला। इश्क़ की बेशुमार दौलत“दर्द”होता है जो सहना हर किसी के बस की बात है ही नही। इश्क़ “ठहराव “है उम्र भर का इन्तज़ार हैं।महज़ इक गुलाब🌹देना या लेना ही इश्क़ नहीं है ..ये तो सिर्फ़ इज़हारे इश्क़ है जनाब। गुलाब चाहे कितना भी खूबसूरत क्यों न हो ..वक़्त रहते मुरझायेंगा ही ..मगर इश्क़ तो वो शय है जो मरने के बाद भी इसकी महक क़ायम रहती है। दोस्तों! रब के या दुनिया के प्रेम में कोई ज़्यादा फ़र्क़ नही। दोनो ही सब्र माँगते है और सब्र हर किसी से होता नही, न ही ये कोई सौदा है जिसे ख़रीदा या बेचा जा सके। प्रेम तो इक रूहानी अहसास है जहां“मैं “खो”जाये..और बस “ तू ही तू“रह जाये।प्रेम मे दूरियाँ के कोई मायने नही।बावजूद दूरियों के भी अगर इश्क़ क़ायम रह जाता है ,तो वो इश्क़ ही कुछ और होता है।जब वाक़ई मे आप इश्क़ से रुबरू होते है तो न केवल गुलाब बल्कि आप खुद को ही समर्पित करने के लिए बाध्य हो जाते है। जब कोई बाहरी रंग रूप से आकर्षित होता है वो आकर्षण कभी ठहरता नहीं अगर दिल से प्रेम हो जाये तो आख़िरी साँस तक चलता है..और जब कही इश्क़ रूह से हो जाये ,तो वो अमरत्व को प्राप्त करता है। कोई विरला ही इसका अनुभव कर पाता है।इसे ही रूहानी इश्क़ भी कहा जाता है मगर अफ़सोस !

इन्सान दिल या जिस्म पर ही अटक गया, इश्क़ तो उसी का मुकम्मल हुआ जो रूह तक पहुँच गया। 🙏
इश्क़ तो जिस्मों से परे ,पाकीज़गी मे ही ये पनपता और महकता है।बिना छूऐ भी प्यार करना।जुदा हो कर भी उसी का ही ..हो कर रहना।अपनी खुदी को ही खो देना ..ये है मोहब्बत।प्रेम वही कर सकता है जो प्रेम के बदले कुछ न चाहे ..जो सिर्फ़ प्रेम देना जानता हो ..बदले मे मिले न मिले ,उसे ..उससे कोई सरोकार नही।
कृष्ण दीवानी मीरा साक्षात्कार प्रेम की ही मूर्ति थी।कृष्ण को उसने कभी देखा नही, छुआ नही। बस उसके अहसास से प्रेम किया और रंग गई उसी के रंग मे। वक़्त जितना भी माडर्न हो जाये दोस्तों सच्चे प्रेम की परिभाषा वही रहेगी। “स्त्री अगर बहुत सुन्दर है इसीलिए उससे प्रेम हो जाये, ये मात्र आकर्षण या वासना भी हो सकती हैं ।विपरीत इसके ..किसी स्त्री से प्रेम हो जाये फिर वो हर हाल मे सुन्दर लगे तो यक़ीनन प्रेम हुआ” सुन्दर चेहरा तो किसी को लुभा ही लेता है। खूबसूरत “दिल”पर कोई भी आशिक़ हो सकता है मगर मन की सादगी किसी की भी रूह को छू सकने की ताक़त रखता है, दोस्तों, बेशक प्यार का इज़हार गुलाब दे कर करे मगर कोशिश करे ,उन्हें गुलाब के साथ-साथ अपना पूर्ण समर्पण भी दे ,जो उनके जीवन को सदा के लिए महका दे।आप का प्यार इक बेशक़ीमती इत्र की तरहां हो जिसकी महक दूसरो को भी महसूस हो …आज हम अगर खुद मे झांके और देखे , क्या वाक़ई मे हम ऐसे इश्क़ से वाक़िफ़ है जो आख़िरी साँस तक चले।आज हालात कुछ और है जो किसी हद तक ठीक नही ।ये वैलेंटाइन बाहरी देशों की सभ्यता थी।हमारे देश मे इसका चलन कुछ ही सालों से हुआ है ।वैलेंटाइन को मनाईये ज़रूर ,मगर गुलाब सिर्फ़ उसे ही दे ..जिसके साथ आप सारी उम्र गुज़ारना चाहे हर किसी को दे कर खुद को छोटा न करे।

ये बात कुछ साल पहले लंदन की है इक लड़का बहुत प्यार करता था किसी लड़की से .. वैलेंटाइन के दिन उसने उसको एक हज़ार पौण्ड का बेशक़ीमती गुलाब का गुलदस्ता दिया और फिर लंदन के किसी बड़े होटल मे दोनो ने लंच किया।लड़के ने शाम को अपने दोस्तों के साथ पार्टी रख ली और पार्टी के दौरान लड़के ने लड़की को शादी के लिये प्रपोज़ भी कर दिया।यानी वैलेंटाइन को यादगार बनाने के लिये कोई कसर नही छोड़ी ।दोनों बहुत ख़ुश थे।साल के बाद शादी भी हो गई ।दो सालों में सारी दुनिया भी घूम डाली।मगर दो साल के बाद दोनों एक दूसरे से अलग हो गये .. उससे अगले साल वो लड़का किसी और को गुलाबों का गुलदस्ता भेज रहा था और लड़की किसी और के साथ वैलेंटाइन मना रही थी। मेरे हिसाब से न तो ये इश्क़ है न ही प्यार या मोहब्बत… हाँ आकर्षण ज़रूर कह सकती हूँ बहुत से लोग आकर्षण को ही इश्क़ समझ लेते हैं ।आप इसे क्या कहते है ये फ़ैसला मै आप पर ही छोड़ देती हूँ ।इश्क़ इतना सस्ता है ही नही ,जो गुलाब दे कर उसे ख़रीद लिया जाये या छोड़ दिया जाये..मगर ये आज विदेशों में ही नहीं बल्कि सब जगह ये चलन चल रहा है।

दोस्तों। माना ये इश्क़ को ज़ाहिर करने की पहली निशानी गुलाब हो सकती है,मगर गुलाब तो एक ही काफ़ी है और सिर्फ़ “अकेला गुलाब”प्यार की नींव तो नही हो सकता।गुलाब लेने वाले को भी ये समझना ज़रूरी है कि गुलाब के साथ काँटे भी होते हैं और उसे भी वैसे ही स्वीकार करें जैसे गुलाब 🌹को किया जाता है दुया करती हूँ ये प्रेम का उत्सव मनाने के लिये आप को वैलेंटाइन का इन्तज़ार न करना पड़े बल्कि हर दिन गुलाब जैसा ही खिला और महकता रहे 🙏गुलाब की पंखुड़ियों की लालिमा ..आपके चेहरे के नूर को ..चार चाँद लगा दे।
हैपी वैलेंटाइन….🙏 स्मिता

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साथी

नंदा लेट हो रहा है जल्दी चलो हम वैसे ही लेट हो गये हैं। मूवी निकल जाएगी

नंदा:- “हां! बस आ रही लॉक लगाकर।”

नितिन जल्दी-जल्दी गाड़ी ड्राइव कर रहा थे ताकि समय पर पहुंच कर मूवी शुरू से देख सके।
नितिन:- “तुम्हारी भी बड़ी खराब आदत है एकआध काम छोड़ दिया करो, बाद में कर लेना था। जब पता था कि मूवी जाना है तो समय से काम निपटा लेना था। इस तरह से भाग दौड़ तो नहीं होती।”
नंदा:- “अब तुम मुझे ही दोष दो, सुबह से लगी हुई हूं काम में। जल्दी-जल्दी सब काम निपटा तो रही थी। घर में पचासों काम होते हैं। वापस आने में देर हो जाएगी तो बाद के काम भी निपटा रही थी।”
नितिन:- “अच्छा छोड़ो! इस बहस में मूड खराब हो रहा है। निकले हैं मूवी देखने और इस बहस से मूवी देखने के मूड का सत्यानाश हो रहा है।”
नंदा कुछ बोली नहीं लेकिन उसका मूड खराब हो गया था यह बात नितिन ने भांप लिया था। पार्किंग में गाड़ी खड़ी रखकर दोनों जल्दी-जल्दी थिएटर हॉल में पहुंचे। आधी मूवी नंदा ने अनमने ढंग से देखी। ब्रेक में नितिन दो कॉफी और पॉपकॉर्न ले आया। थोड़ी देर बाद नंदा नॉर्मल हो गई। दोनों मूवी देख कर बाहर निकले तो नितिन बोला, “चलो डोसा खाने चलते हैं।”
नंदा:- “और जो घर पर बनाया है वह?”
नितिन:- “अरे बाबा वह सुबह खा लेंगे, अभी डोसा खाने का मन है तो बोलो।”
नंदा:- ” ठीक है! चलो।”
एक साउथ इंडियन रेस्त्रां में दोनों गए और डोसे का आर्डर दिया। आर्डर आने में समय था तो नितिन ने पूछा, “नीलू का कुछ फोन आया क्या ?”
नंदा:- “हां आया था तो मैंने कह दिया था कि तेरे जीजा जी से बात करके बताऊंगी। क्या सोचा आपने उस बारे में?”
नितिन:- “तुम बताओ जैसा कहोगी हो जाएगा।”
नंदा:- “दो लाख मांग रहा है नीलू, इस कोविड में काम धंधा पूरी तरह चौपट हो गया है। मदद तो करनी ही चाहिए लेकिन पैसे जल्दी वापस नहीं आएंगे यह बात तय है।”
नितिन:- “ठीक है। वह कोई चिंता नहीं। देखता हूं कि क्या कर सकता हूं मैं।”
दोनों डोसा खाकर घर आ गये। दूसरे दिन सुबह नाश्ते की टेबल पर नंदा ने नितिन से कहा कि, “तुम सोच समझकर ही पैसे देना, बाद में परेशान मत होना।”
नितिन:- “वह मैं देख लूंगा, तुम परेशान मत हो उसके लिए। मैं नीलू से बात करके उसे रुपए भिजवा देता हूं।” नंदा सिर हिला कर किचन में चली गई।
घर के काम निपटा कर नंदा अपने मायके चली गई। नंदा:- “मम्मी नीलू कहां है? मुझे उससे बात करनी है।” मां:- “ऊपर कमरे में है। क्या हुआ?”
नंदा:- “कुछ नहीं! बस ऐसे ही। आती हूं उससे मिलकर।” और वह ऊपर जाने लगी।
नंदा:- ” नीलू तुम्हें तुम्हारे जीजा जी का फोन आया था क्या?”
नीलू:- “हां दीदी आया था। उन्हीं के पास जाने के लिए तैयार हो रहा हूं लेकिन तुम इस वक्त यहां? कुछ काम था क्या?”
नंदा:- “नहीं! कुछ काम नहीं था, बस तुमसे यही कहने आई थी कि कोशिश करना कि समय से पैसे वापस कर दो ताकि भविष्य में वह फिर से मदद कर सके।” नीलू:- “हां दीदी कोशिश तो पूरी रहेगी बाकी देखते हैं।” और नीलू चला जाता है।
नंदा भी मम्मी, भाभी से मिलकर घर वापस आ जाती है।
कुछ समय बाद नितिन नंदा से पूछता है, “अरे नंदा! नीलू का काम कैसा चल रहा है? इस बीच उसका कोई फोन भी नहीं आया और मैं भी जरा काम में व्यस्त रहा तो बात ही नहीं हो पाई।”
नंदा:- “हां…. ठीक है। अब गाड़ी पटरी पर तो आ गई है। फिर से काम जमा रहा है तो थोड़ा वक्त तो लगेगा ही।”
नितिन:-  “हम्म। अरे कभी अपने जीजा जी को भी याद कर लिया करे। सिर्फ काम के समय ही याद करेगा क्या?”
बात सही थी लेकिन यह व्यंग्य नंदा को चुभ गया वह मुस्कुरा कर बोली, “सही है। अब मेहनत कर रहा है तो समय नहीं मिलता होगा उसे लेकिन उसे बोलूंगी कि आप से बात कर ले।”
नितिन:- “अरे नहीं! मैंने तुमसे मजाक में कही यह बात। अब क्या तुमसे मस्ती भी नहीं कर सकता।” नंदा हंसकर रह गई।
दिवाली का त्यौहार करीब आ रहा था और मेरा काम भी बढ़ता जा रहा था। एक पैर घर में तो एक बाजार में रहता। दिन कैसे जा रहे थे मालूम ही नहीं पढ़ रहा था। दोपहर में आराम करने लेटी तो ध्यान आया कि इस बीच घर से कोई फोन नहीं आया। मम्मी का भी नहीं। भाभी भी शायद काम में बिजी होंगी। शाम को चाय पीते हुए घर पर फोन लगाया।
मैं:- “हेलो, हां भाभी कैसी हो? क्या बात है बहुत व्यस्त हो? एक फोन भी नहीं!”
भाभी:- “हां… नंदा दीवाली करीब आ रही है तो घर की साफ सफाई चल रही है। साथ में घर के पचासों और काम तो रहते ही है। बच्चों को भी ट्यूशन छोड़ने जाना लाने जाना यह भी तो एक काम ही रहता है। कितनी बार तुम्हारे भैया से कहा है कि एक गाड़ी दिला दो बच्चों को। बच्चे अपने आप ट्यूशन आना जाना कर लेंगे, मगर वह सुनते ही नहीं। अब देखो कल अम्मा की तबीयत भी खराब हो गई। डॉक्टर के पास ले गए थे चेकअप चल रहा है, पैरों में दर्द बहुत था। उनके घुटने में सूजन थी चल ही नहीं पा रही थी। तुम्हारे भैया गए हैं एक्सरे निकलवाने फिर डॉक्टर के पास जाएंगे। देखो रिपोर्ट में क्या आता है?
मैं:- “अरे ! आपने कुछ बताया ही नहीं! रिपोर्ट आए तो मुझे भी बताना। मैं कल आती हूं।”
भाभी:- “हां ठीक है।”
फोन काट कर मैं सोचने लगी कि एक ना एक परेशानी लगी रहती है। अब यह नई परेशानी और मैं अपने काम में बिजी हो गई। रात के खाने पर मैंने नितिन से कहा, “सुनो! मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है उन्हें पैरों में तकलीफ है तो मैं कल उनसे मिलने घर जा रही हूं।”  नितिन:- “हां ठीक है।”
सुबह होते ही घर के सारे काम जल्दी जल्दी निपटा कर मैं मम्मी के पास जाने के लिए तैयार होने लगी। बच्चे स्कूल से दोपहर तक आएंगे तो निश्चिंत थी मैं।
घर पहुंच कर मैं मां के पास गई। मम्मी लेटी हुई थी और उनके कराहने की आवाज आ रही थी।
मैं:- “मम्मी अचानक घुटने में दर्द क्यों होने लगा?”
मम्मी:- “अरे बेटा, बुढ़ापा है तो कुछ ना कुछ तो लगा ही रहेगा। एक घुटना घिस गया हैं इसी से बहुत दर्द है। डॉक्टर ने ऑपरेशन बताया है। अब डॉक्टर को कैसे बोलूं कि अभी ऑपरेशन नहीं करवा सकते। पास में इतने पैसे नहीं है। तीन लाख का खर्चा बता रहा है। कैसे हो पाएगा यह सब। मैं भी यह सब सुनकर परेशान हो गई लेकिन मां को तसल्ली दी, “सब हो जाएगा परेशान मत हो।” घर वापस आते समय रास्ते भर यही सोचती रही कि भैया कैसे कर पाएंगे ये सब? नीलू ने नितिन से अभी-अभी आर्थिक मदद ली थी, अब वापस नितिन को कैसे बोलूं?
रात में खाना परोसते समय नितिन ने पूछा, “घर गई थी क्या?”
मैं:- “हां गई थी। मम्मी के घुटने में दर्द है। डॉक्टर ने ऑपरेशन बताया है आपरेशन का खर्चा भी बहुत ज्यादा है।”
नितिन:- “हम्म…. कितना बताया है?”
नंदा:- “तीन लाख बोल रहा डॉक्टर।”
नितिन कुछ बोले नहीं और सोचनीय मुद्रा में बैठे रहते हैं। हम दोनों ही कुछ कह नहीं पा रहे थे। सुबह नितिन ने भैया से बात की।
नितिन:- “हेलो! नीलू अरे भाई कैसे हो? बिल्कुल भूल ही गए? अरे कुछ खोज खबर अपने जीजा जी की भी ले लिया करो।
नीलू:- “अरे जीजा जी! प्रणाम! सब ठीक है। बस ऑफिस ही जा रहा था। नंदा ने बताया होगा कि मम्मी के बारे में, बस उसी में परेशान लगा पड़ा हूं।”
नितिन:- “हां बताया मुझे। कितनी रकम है तुम्हारे पास?
नीलू:- “पौने दो लाख तक जैसे-तैसे अरेंज कर लूंगा। बाकी का देखता हूं कि कैसे अरेंज होता है।”
नितिन:- “ठीक है। ऑपरेशन कब करवाना है।”
नीलू:- “डाक्टर महीने के आखिर में बोला है तभी तारीख भी देंगे।”
नितिन:- “ठीक है।”
अगले दिन सुबह नंदा भाभी से पूछती है।
नंदा:- “भाभी! मम्मी कैसी है? और भैया ने कितना जमा कर लिया है?”
भाभी:- “मम्मी ऐसे तो ठीक है, बस चलना फिरना दूभर है। तुम्हारे भैया टेंशन में दुबले हुए जा रहे हैं इस बीमारी और पैसे के कारण। अभी तक कुछ भी व्यवस्था नहीं हो पाई है।”
नंदा:- “देखती हूं इनसे बात करके लेकिन हिम्मत नहीं होती, इतनी बड़ी रकम जो है।”
भाभी:- “हां यह बात तो है। जमाई बाबू पहले ही इतनी मदद कर चुके हैं कि अब और कैसे कहें मदद के लिए फिर भी एक बार बात करके देखो।”
नंदा:- “हां भाभी देखती हूं।”
नंदा:- “एक हफ्ता बचा है मम्मी के ऑपरेशन को और भैया अभी तक पूरा पैसा नहीं जमा कर सके हैं। भैया भाभी दोनों बहुत परेशान लग रहे थे।”
नितिन:- “तुम परेशान मत हो वह जो डेढ़ लाख की एफडी पड़ी है उसे तोड़ दो और नीलू को दे दो। पैसा जमा ही इसीलिए किया जाता है कि वक्त पर काम आ सके। रखे रखे तो कुछ काम आएगा नहीं।”
नंदा रोने लगती है। नितिन का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा कि, “मैं कितनी खुशनसीब हूं कि आप जैसा पति मिला। मेरे पीहर के दुख को अपना दुख समझकर मेरा साथ देते हैं और मुझे समझते हैं।”
नितिन:- “तुम मेरी अर्धांगिनी हो मतलब आधा अंग हो तो मैं मेरे आधे अंग को कष्ट में कैसे देख सकता हूं। तुम्हारा दुख मेरा दुख है और यह जरूरी नहीं कि बेटी की शादी हो गई तो वह मायके से संबंध तोड़ दे या मायके की तकलीफ में काम ना आये या मायके के लोग बेटी से मदद की अपेक्षा नहीं रख सकते। तुम वह पैसे ले जाओ और नीलू को दे दो तो उसे राहत मिलेगी। नंदा खुशी-खुशी घर जाने के लिए तैयार होने लगी। उसके चेहरे पर संतोष था।

प्रियंका वर्मा महेश्वरी

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