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ग्लैमर की चमक में खोते लोग~ प्रियंका वर्मा महेश्वरी

कुछ दिन पहले मैंने मेरी बेटी के मुंह से डेट शब्द सुना। तभी उसके पिताजी ने उससे पूछा कि यह डेट क्या होता है? डेट पर जाना मतलब क्या? ऐसा नहीं था कि उन्हें पता नहीं था लेकिन वो बेटी के मुंह से सुनना चाह रहे थे। बेटी जरा झेंप गई, उसे समझ में नहीं आया कि वो इस बात को किस तरह से बताये। सोचती हूं कि वक्त कितनी तेजी से बदल रहा है। एक वक्त था जब हम डेट जैसे शब्द नहीं पहचानते थे। फोन पर बात करना भी मुश्किल होता था और मिलना तो हमारी कल्पना से बाहर की बात थी लेकिन आज बच्चे छोटी सी उम्र में डेट का मतलब जानते हैं और वो इस चलन को अपनाने में भी बड़ी खुशी महसूस करते हैं। बच्चे गर्व से बताते हैं (अगर बच्चा आपसे बहुत फ्री है तो) कि मैं फला लड़के या लड़की के साथ डेट पर गया था।

बदलते वक्त ने ग्लैमर को बहुत बढ़ावा दिया है आज लोग सेलिब्रिटी जैसी लाइफ स्टाइल अपना रहे हैं। वह खुद को किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं समझते। तमाम वीडियो, रील्स देखने पर तो यही लगता है। अब शादी ब्याह की रस्मों को को ही ले लीजिए। हर रस्म के लिए अलग डेकोरेशन और ड्रेस कोड रहते हैं। गर्मी है तो समर डेकोरेशन और समर ड्रेस कोड और खाना भी कुछ माहौल से मिलता जुलता ही होगा। कोशिश यही रहती है कि इवेंट के हिसाब से सब व्यवस्था की जाये।
अब यदि हल्दी की रस्म है तो सब तरफ पीले रंग का डेकोरेशन रहेगा और कपड़े भी पीले रंग के रहेंगे। मुझे मेरा वक्त याद आता है कि जब मेरी हल्दी की रस्म हुई थी तो एक कैमरा वाला नहीं था, कोई वीडियो नहीं और तो और कोई बाहर बाहरी व्यक्ति भी नहीं था। एक नाउन और घर के करीबी सदस्य और पुराने कपड़े में बैठी मैं सबने हल्दी लगाई गीत गाये और हल्दी की रस्म पूरी हो गई।
इधर कुछ समय से शादियों में प्री वेडिंग शूट का चलन बहुत जोरों पर है। शादी के पहले एक जगह पर जाना और रोमांटिक शॉट देना और बाद में प्री वेडिंग ऑकेजन रखकर लोगों को बुला कर उस शूट को दिखाना बड़ा अजीब लगता है। कुछ लोग तो बाकायदा ड्रेस कोड भी रखते हैं जैसे ग्रीन वैली में शूट किया तो ग्रीन ड्रेस कोड। जो बातें शादी के बाद व्यक्ति अपने गृहस्थ जीवन में शुरू करता है क्या वह शादी के पहले करना जरूरी है और लोगों को दिखाकर आप क्या जताना चाहते हैं। साथ ही ड्रेस कोड भी लोगों पर थोपना क्या सही है? मकसद सिर्फ एक ही होता है कि मेरे बच्चे इतनी महंगी जगह पर प्री वेडिंग शूट के लिए गए हैं और वह बहुत खुश है और हमने इतना खर्चा किया है। एक एक आकेजन पर लाखों का खर्च आता है और इस चमक दमक की भाग दौड़ में लोगों को खुश करने के चक्कर में मिडिल क्लास पिसता जाता है।
और एक रस्म होती है गोद भराई जिसमें लड़की को सात महीने का गर्भ होता है। हमारे हिंदू परंपरा में यह रस्म बहुत पारंपरिक तरीके से निभाई जाती है लेकिन आजकल इस रस्म पर भी चमक दमक भारी पड़ रही है। तरीके से तो जो लड़की गर्भवती होती है उसे ही हरे रंग का वस्त्र पहनना होता है लेकिन दिखावे और ग्लैमर की होड़ में ड्रेस कोड रखकर हर एक को हरे रंग का पहनावा अनिवार्य कर कर दिया जाता है और सजावट भी हरे रंग की ही होती है और तो और खाना भी हरे रंग का होता है जैसे हरा डोसा, हरी चटनी, हरे चावल वगैरह वगैरह।
आज के दौर में संगीत संध्या, मेहंदी, रिसेप्शन, जयमाला, मुंह दिखाई और भी घरेलू रस्में है जिनमें  ग्लैमर ने अपनी जगह बना ली है। अब गर्भ धारण की बात को ही लें आजकल बेबी बंप शूट का चलन बहुत है। जो नितांत निजी एहसास है वह आजकल सोशल साइट पर दिखते हैं। समझ में नहीं आता कि ममता बाजारू हो गई है या जमाने से कदम मिलाने की होड़ में यह बेतुकापन जरूरी हो गया है। मैं इस नए दौर के नए चलन के खिलाफ नहीं हूं लेकिन मैं सोचती हूँ कि कितनी तेजी से लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है। बदलाव जरूरी भी है लेकिन सही गलत फर्क भी जरूरी है। शादियों के रस्म रिवाज परंपरा निभाने के साथ साथ एंजॉय करने के तरीकें भी हैं। दिखावा होना चाहिए लेकिन अगर उस दिखावे में आपकी आंतरिक खुशियाँ छिप जाती है तो दिखावे की खुशी का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। इनसे जुड़ना अच्छा जरूर लगता है लेकिन मर्यादा हर जगह जरूरी है।