Breaking News

मनोरंजन

एक ख्वाब से मुलाकात

ज की रात भारी थी शिफ़ा पर।शिफ़ा कभी करवट इधर ले रही थी कभी उधर।नींद का कोई नामों निशान नही था।आज बरसों के बाद मानवी की पार्टी मे उसने कबीर को देखा जो अपनी पत्नी के साथ था।जैसे ही शिफ़ा पार्टी मे पहुँची तो वो पार्टी से जा रहा था सिर्फ़ आँखे मिली और दोनो की धड़कनें जैसे रूक सी गई।बरसों बाद यू आमना सामना हुआ तो भरी आँखों से इक दूजे को देखते रह गए और बात भी नही हुई।आज शिफ़ा इस उदासी का कारण समझ नहीं पा रही थी।सोच रही थी ,आज कंयू बेचैन है वो।क्यों हलचल सी है उसके मन में।मगर कुछ बातों का कोई जवाब नहीं होता।शिफ़ा ने उठ कर खिड़की बंद कर दी।आज बाहर बिजली खूब गरज कर चमक रही थी और तेज बारिश की बौछारें खिड़कियों पर ज़ोर ज़ोर से दस्तक दे रही थी,ठीक उसके दिल की तरह ,जहां पुरानी यादें ज़ोरों से दस्तक देने को आतुर हो रही थी।बहुत कोशिश कर रही थी पुरानी यादो की भीड़ मे न जाये ,मगर हर कोशिश आज जैसे नाकाम हो रही थी।उसे याद आया कि वो कैसे कबीर को और कबीर उसे ,छत से देखा करते थे।कैसे वो दोनों इक दूजे को चाहते थे।कबीर उस के घर के पास ही रहता था।घर मे आना जाना भी था मगर दोनों ही कभी कुछ कह नही पायें।मगर अकसर वो कबीर को कालेज से आते वक़्त अपनी बस मे देखा करती, मगर कभी हिम्मत नही हुई कि दोनों बात करे।अक्सर कोई मंचला लड़का अगर शिफ़ा को तंग करने पीछे पीछे आ रहा होता और फिर कैसे कबीर बस से उतर कर शिफ़ा के पास पास चलना शुरू कर देता कि ताकि वो सही सलामत घर पहुँच जाये,और किस तरह उसे सुरक्षित होने का अहसास करवा दिया करता। इक ऐसा ही रिश्ता था जो बहुत गहरा तो था मगर ख़ामोश सा।जैसे तैसे सोचते सोचते शिफ़ा की आँख लग गई।सुबह रात न सोने की वजह से सिर भारी सा था।खिड़की के पास बैठी शिफ़ा, चाय पीते पीते सामने पहाड़ों को निहार रही थी।रात बारिश की वजह से पेड़ों से भरे पहाड़ और भी सुन्दर दिख रहे थे।इक सौंधी सौंधी सी महक पूरे वातावरण को महका रही थी,मगर सोच फिर कबीर से जा जुड़ी।सोचने लगी !
कैसे कालेज ख़त्म होते ही जल्दी ही उसकी शादी शुभम से हो गई और वो शुभम के साथ इन शिमला की पहाड़ियों में आ कर बस गई ।शुभम उसका पति उसे बहुत प्यार करता था।ख़ुश थी अपनी ज़िंदगी में ,शिफा ने शुभम को उठाया और चाय दे कर कहा! जल्दी उठ जायें,आज आप की मीटिंग भी है।शुभम जल्दी ही तैयार हो कर आफ़िस चला गया।शिफ़ा को पता ही नहीं चला कि कब से उसका मोबाइल फ़ोन बज रहा था।जब देखा तो कबीर का फ़ोन था,जैसे इन्तज़ार ही कर रही थी जब कि वो अच्छे से जानती भी थी कि कबीर के पास उसका फ़ोन नम्बर नही है।शिफ़ा ने धड़कते दिल से फ़ोन उठाया उधर कबीर ही था।कबीर की आवाज़ आज बरसों बाद सुन रही थी।
हैलो !हाय !से आगे बात बढ़ ही नही रही थी।तब शिफ़ा ने पूछा !तुम्हें मेरा नम्बर कहाँ से मिला।कबीर ने बताया कल तुम्हें देखा ,तो रहा नहीं गया और मैंने तुम्हारा नम्बर तुम्हारी सहेली मानवी से ले लिया।कबीर बोलता जा रहा था, सवाल पर सवाल करता जा रहा था और फिर शिफ़ा से पूछा ?तुम्हारे शहर में हूँ ,क्या आज दोपहर को मेरे साथ काफ़ी पी सकती हो।शिफ़ा को खुद भी ये अहसास नहीं हुआ कि कैसे,उसने कितनी सहजता से कबीर को मिलने के लिए हाँ कह दी।शिफ़ा फ़्री भी थी तो सोचा चली जाती
हूँ।झट से तैयार हुई और कैफ़े में पहुँच गई।शिफ़ा को आते देख कबीर की धड़कन बहुत तेज हो रही थी।बरसों बाद रूबरू हो रहे थे दोनों।शिफ़ा को देख कर उसे वही बचपन वाली शिफ़ा दिखाई दी।सुन्दर शान्त और साडी में लिपटी हुई।शिफ़ा की सादगी पर तो हमेशा से मरता था कबीर।आज भी जैसे उसके सादेपन ने कबीर को दिवाना बना दिया।शिफ़ा को बस देखता रह गया ,तो शिफ़ा भी थोड़ा झेंप सी गई।कबीर कहने लगा तुम बिलकुल नहीं बदली ,ठीक वैसी ही हो ,जैसे कालेज के दिनों में थी।शिफ़ा ने बड़ी हिम्मत करके कबीर की आँखों में देखा।कबीर की बड़ी बड़ी आँखें ,ये वही आँखे थी जो शिफ़ा को अक्सर बेचैन कर दिया करती थी कभी।कितनी दफ़ा शिफ़ा ने कबीर की आँखों को काग़ज़ पर पेंसिल से बना डाला था।देख रही थी, कुछ भी तो नहीं बदला।आज भी कबीर की आँखों में वही कशिश महसूस कर रही है।आज भी कबीर को देख कर उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा है।कुछ पल दोनों बेसुध से ,ख़ामोशी से इक दूजे को देखते रहे।समझ नहीं आ रहा था।कहाँ से बात शुरू करें क्योंकि कहने को बहुत कुछ था मगर, न तो पहले से हालात थे ,न ही पहले सा वक़्त।
फिर कबीर ने ही ख़ामोशी को तोड़ते हुए शिफ़ा से पूछा ?शिफ़ा !क्या पियोगी चाय या काफ़ी? शिफ़ा ने कहा ! काफ़ी ही ठीक रहेगी।आज ठण्ड भी बहुत है और शिफ़ा खुद में सिमटती हुई कबीर के पास बैठ गई।कबीर बोला ! शिफ़ा मैं आज इतना ख़ुश हूँ ,शायद पहले कभी नहीं हुआ मगर इक तुम्हारी शिकायत तुमसे ही करनी है ,वो ये ,तुमने शादी करके मुझे कितना पराया कर दिया।न ही कोई वजह बताई बस मुझे कुछ कहे बग़ैर ही शादी कर ली तुमने।तुम्हारा कभी मन नहीं हुआ मिलने को ?कभी याद नहीं आई मेरी ?शिफ़ा हम दोनो ही इक दूजे को चाहते थे।चाहते थे न ?ये बात तुम्हें भी और मुझे भी पता है तो फिर ये क्या हुआ? कंयू तुम न कह सकी ? कंयू मैं न कह सका ? क्यूं हम आज साथ नही ?कबीर दिवानों ने की तरहां कहे जा रहा था जैसे बरसों की सब बातों का जवाब माँग रहा था शिफ़ा से।शिफ़ा ख़ामोश नीची निगाहें किये सब सुन रही थी मगर कबीर की आँखों में झांकने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।डरती थी ,कि कहीं कबीर की आँखे उसके मन को कमजोर न कर दे।कहीं वो ख़ुद भी सारी मर्यादाएँ तोड़ कर ,कुछ ऐसा कह दे जो उसे अब कहने का अधिकार नहीं है शायद।कबीर बोलता जा रहा था तुम्हें याद है जब मैं तुम्हारे घर होली के दिन आया करता था।तुम्हारे चेहरे पर गुलाल लगाने के वक़्त कैसे मेरे दिल की धड़कन तेज हो ज़ाया करती थी ,तुम इस बात का अंदाज़ा भी नहीं लगा सकती।कबीर को शिफ़ा की ख़ामोशी जैसे खल सी रही थी।कबीर की बोलते बोलते आँखे नम हो गईं और उसका गला भर आया।इक तूफ़ान तो शिफ़ा के अन्दर भी था मगर शिफ़ा ने बहुत संजीदगी से कहा !कबीर बहुत कुछ ऐसा था जो मेरी ख़ामोशी के कारण थे।मैं अपने माँ बाप को कोई दुख नहीं देना चाहती थी।जैसा वो चाहते थे मैंने वही किया।कबीर बोला और मेरे बारे में कंयू नही सोचा ? शिफ़ा थोड़ा गंभीरता से बोली।कबीर मैं पापा का हाथ बटाना चाहती थी उनकी ज़िम्मेदारियाँ को बाँटना चाहती थी।कबीर बोला !मुझे कह कर देखती तो सही।मुझ पर यक़ीन नहीं था क्या ?मुझ से कहती ,हम दोनों मिल कर सारी ज़िम्मेवारी बाँट लेते।फिर गंभीर हो कर कबीर ने शिफ़ा के हाथ पर हाथ रख दिया।कबीर के इस स्पर्श से शिफ़ा के पूरे शरीर में इक कंपन सा हो गया।सीमाओं के बीच, लाज मे सिमटी शिफ़ा का सारा शरीर ,इतनी ठंडी में भी भीग सा गया क्योंकि आज तक उसे कबीर के स्पर्श का कोई अहसास नहीं था।सिहर सी गई थी शिफ़ा, और कबीर भी उसकी मनोदशा को उसके माथे पर आई पसीने की बूँदों से पढ़ पा रहा था।कबीर ने पूछा ! क्या ख़ुश हो उनके फ़ैसले पर।शिफ़ा ने कहा !जब फ़ैसला ही मान लिया तो मेरे ख़ुश या न ख़ुश होने का सवाल ही पैदा न हुआ।पिता के घर ,पिता के घर की इज़्ज़त का ख़्याल रहा।अब पति के घर ,पति की इज़्ज़त का ख़्याल रखना है बस।कबीर ने पूछा और तुम्हारी अपनी ख़ुशी का क्या ?
शिफ़ा कहने लगी अपने बारे में कभी सोचा ही नहीं। ज़िम्मेदारियाँ उठाते उठाते पता ही नहीं चला, कैसे वक़्त गुज़रता गया।हाँ ये सच है कि मैंने अक्सर तुम्हें याद किया है।जब भी कभी पहले प्यार का ज़िक्र हुआ तो तुम याद आये मुझे।कुछ शादियाँ समझौता ही होती है कबीर।दो लोगों के लेने देने का सम्बन्ध मात्र ही होती है।इससे ज़्यादा कुछ नहीं।कबीर ने अचानक से इक सवाल शिफ़ा के सामने रख दिया कि क्या वो अब भी उसे वैसे ही चाहती है?शिफ़ा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई और बोली बेशक !समाज में रहने के लिए उसके जिस्म को तो आगे बढ़ना पड़ा ,मगर उसकी रूह आगे कभी नहीं बढ पाई,वहीं रह गई तुम्हारे आसपास और हाँ कबीर ,किसी को चाहने के लिये सारी उम्र उस इन्सान के साथ रहना ज़रूरी तो नहीं।तुम्हारी जगह वहीं है जहां थी।शिफ़ा बहुत चाहती थी कि दिल की हर बात उससे कह दे ,मगर न कभी पहले कह सकी, न अब।फिर इकदम से उठ खड़ी हुई और
बोली !अच्छा अब मैं चलती हूँ ।चलने को कह तो रही थी मगर खुद के अल्फ़ाज़ जैसे साथ नहीं दे रहे थे।अभी और वक़्त कबीर के साथ बिताना चाह रही थी।मन ही मन सोच रही थी कि कबीर उसे रोक ले।मगर होंठ ख़ामोश थे।जाने से पहले दोनों ने इक दूजे को देखा।कबीर ने धीरे से कहा ! शिफ़ा कल मैं जा रहा हूँ और तुम्हें बहुत याद करूँगा।भूल तो मैं ,तुम्हें कभी पाया ही नही।अगर तुम कल न दिखती ,न हम मिलते तो अच्छा ही होता शायद ,और फिर इक लम्बी गहरी साँस ली कबीर ने।जो सीधा शिफ़ा की रूह के आरपार हो गई थी जैसे।शिफ़ा ने बड़ी संजीदगी से कबीर से कहा !अगर तुम्हारी और मेरी चाहत में पाकीज़गी है तो यकीनन हम अगले जन्म में ज़रूर मिलेंगे।मैं सब्र से तुम्हारा इन्तज़ार करूँगी तब तक।अच्छा अब मैं जाऊँ कबीर?ऐसा कह कर शायद शिफ़ा चाह रही थी कि कबीर उसे जाने की इजाज़त खुद दे दे तो शायद हल्के मन से वो वहाँ से जा सके। कबीर चाहते हुए भी उसे न रोक सका और सोच रहा कि मैं शिफ़ा को कभी रोक कंयू नहीं पाया।न पहले ,न आज ,और सोच रहा था किस हक़ से रोकूँ शिफ़ा को।इक ठण्डी आह लिए ,ख़ामोश सूनी निगाहों से अपने प्यार को बस जाते हुए देखता रहा। दोस्तों लोग प्यार करते हैं बिछड़ भी जाते है और कभी दोबारा ज़िन्दगी अगर उन्हें मिला भी देती है तो शिफ़ा और कबीर की तरह संयम में नहीं रह पाते।”संयम “जो बहुत ज़रूरी भी है “किसी को प्यार करना और फिर उसे पा लेना तो “आम सी बात है”अगर कुछ ख़ास है तो वो ये ,खुवाईशे को समेट लेना और रिश्ते को मर्यादाओं में रह कर स्वीकार करना।अतीत की भी अपनी जगह और अपना वक़्त होता है कुछ रिश्ते सिर्फ़ ख़्वाब ही रहते है हक़ीक़त नहीं मगर ये भी सच है कि कुछ ख़्वाब ,हक़ीक़त से भी ज़्यादा दिल के क़रीब होते है इसमें कोई शक है भी नहीं।

स्मिता 

Read More »

प्रधानमंत्री ने भुज में लगभग 4400 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया

प्रधानमंत्री मोदी ने आज भुज में लगभग 4400 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इससे पहले, उन्होंने भुज जिले में स्मृति वन स्मारक का भी उद्घाटन किया।

सभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि भुज में स्मृति वन स्मारक और अंजार में वीर बाल स्मारक गुजरात के कच्छ जिले और पूरे देश के साझा दर्द के प्रतीक हैं। उन्होंने उस पल को याद किया जब अंजार स्मारक की अवधारणा सामने आई और स्वैच्छिक कार्य ‘कार सेवा’ के माध्यम से स्मारक को पूरा करने संकल्प लिया गया था। उन्होंने कहा कि इन स्मारकों को विनाशकारी भूकंप में मारे गए लोगों की याद में भारी मन से समर्पित किया जा रहा है। उन्होंने आज लोगों के गर्मजोशी से स्वागत के लिए भी उन्‍हें धन्यवाद दिया।

उन्होंने आज अपने दिल में उतरी अनेक भावनाओं को याद किया और पूरी विनम्रता के साथ कहा कि दिवंगत आत्माओं की स्मृति में, स्मृति वन स्मारक 9/11 स्मारक और हिरोशिमा स्मारक के बराबर है। उन्होंने लोगों और स्कूली बच्चों से स्मारक का दौरा करते रहने को कहा ताकि प्रकृति का संतुलन और व्यवहार सबके लिए साफ रहे।

प्रधानमंत्री ने विनाशकारी भूकंप की पूर्व संध्या को याद किया। उन्होंने कहा “मुझे याद है जब भूकंप आया था तो उसके दूसरे दिन ही मैं यहां पहुंच गया था। तब मैं मुख्यमंत्री नहीं था, साधारण सा कार्यकर्ता था। मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे और कितने लोगों की मदद कर पाऊंगा। लेकिन मैंने ये तय किया कि दु:ख की इस घड़ी में, मैं यहां आप सबके बीच में रहूँगा। और जब मैं मुख्यमंत्री बना तो सेवा के अनुभव ने मेरी बहुत मदद की।” उन्होंने क्षेत्र के साथ अपने गहरे और लंबे जुड़ाव को याद किया, और उन लोगों को याद किया और श्रद्धांजलि अर्पित की जिनके साथ उन्होंने संकट के दौरान काम किया।

प्रधानमंत्री ने आगे कहा, ” कच्छ की एक विशेषता तो हमेशा से रही है, जिसकी चर्चा मैं अक्सर करता हूं। यहां रास्ते में चलते-चलते भी कोई व्यक्ति एक सपना बो जाए तो पूरा कच्छ उसको वटवृक्ष बनाने में जुट जाता है। कच्छ के इन्हीं संस्कारों ने हर आशंका, हर आकलन को गलत सिद्ध किया। ऐसा कहने वाले बहुत थे कि अब कच्छ कभी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाएगा। लेकिन आज कच्छ के लोगों ने यहां की तस्वीर पूरी तरह बदल दी है।” उन्होंने याद किया कि भूकंप के बाद पहली दिवाली, लोगों के प्रति एकजुटता व्‍यक्‍त करने के लिए उन्होंने और उनके राज्य मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने क्षेत्र में बिताई। उन्होंने कहा कि चुनौती की उस घड़ी में, हमने घोषणा की कि हम आपदा को अवसर (‘आपदा से अवसर’) में बदल देंगे। “जब मैंने लाल किले की प्राचीर से कहा कि भारत 2047 तक, एक विकसित देश होगा, आप देख सकते हैं कि मृत्यु और आपदा के बीच, हमने कुछ संकल्प किए और उन्हें आज हमने उन्‍हें हकीकत में बदला। इसी तरह, आज हम जो संकल्प लेंगे, उसे 2047 में निश्चित रूप से हकीकत में बदल देंगे।’

2001 में पूरी तरह से तबाही मचने के बाद किए गए अविश्वसनीय कार्यों पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि 2003 में कच्छ में क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्णवर्मा विश्वविद्यालय का गठन किया गया था, जबकि 35 से अधिक नए कॉलेज भी स्थापित किए गए हैं। उन्होंने भूकंपरोधी जिला अस्पतालों और क्षेत्र में कार्य कर रहे 200 से अधिक क्‍लीनिकों के बारे में भी बात की। उन्‍होंने कहा कि हर घर को पवित्र नर्मदा का साफ पानी मिलता है, जो पानी की कमी के दिनों में बहुत दूर की बात थी। उन्होंने क्षेत्र में जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के कदमों के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्‍होंने कहा कि कच्छ के लोगों के आशीर्वाद से, सभी प्रमुख क्षेत्रों को नर्मदा के पानी से जोड़ दिया गया है। उन्होंने कहा, “कच्छ भुज नहर क्षेत्र के लोगों और किसानों को लाभान्वित करेगी”। उन्होंने कच्छ को पूरे गुजरात का नंबर एक फल उत्पादक जिला बनने के लिए बधाई दी। उन्होंने पशु पालन और दूध उत्पादन में अभूतपूर्व प्रगति करने के लिए लोगों की सराहना की। उन्‍होंने कहा, “कच्छ ने न केवल खुद को उठाया है बल्कि पूरे गुजरात को नई ऊंचाइयों पर ले गया है”।

प्रधानमंत्री ने उस समय को याद किया जब गुजरात एक के बाद एक संकट से जूझ रहा था। उन्होंने कहा, “जब गुजरात प्राकृतिक आपदा से निपट रहा था, तब साजिशों का दौर शुरू हो गया था। देश और दुनिया में गुजरात को बदनाम करने के लिए, यहां निवेश को रोकने के लिए एक के बाद एक साजिशें की गईं। ऐसी स्थिति में भी एक तरफ गुजरात देश में आपदा प्रबंधन कानून बनाने वाला पहला राज्य बना। इस कानून ने महामारी के दौरान देश की हर सरकार की मदद की”। उन्होंने कहा कि गुजरात को बदनाम करने के सभी प्रयासों की अनदेखी करना जारी रखा और षड्यंत्रों को धता बताते हुए गुजरात ने एक नया औद्योगिक मार्ग निकाला, कच्छ को उसका सबसे अधिक लाभ मिला।

उन्होंने कहा कि कच्छ में आज दुनिया का सबसे बड़ा सीमेंट संयंत्र है। वेल्डिंग पाइप निर्माण के मामले में कच्छ दुनिया में दूसरे स्थान पर है। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपड़ा संयंत्र कच्छ में है। एशिया का पहला एसईजेड कच्छ में बना है। कांडला और मुंद्रा बंदरगाह भारत के कार्गो का 30 प्रतिशत संभालते हैं और यह देश के लिए 30 प्रतिशत नमक का उत्पादन करता है। कच्छ सौर और पवन ऊर्जा से उत्पन्न 2500 मेगावाट बिजली का उत्पादन करता है और कच्छ में सबसे बड़ा सौर हाइब्रिड पार्क बनने वाला है। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि देश में आज जो ग्रीन हाउस अभियान चल रहा है, उसमें गुजरात की बहुत बड़ी भूमिका है। इसी तरह जब गुजरात, दुनिया भर में ग्रीन हाउस कैपिटल के रूप में अपनी पहचान बनाएगा, तो उसमें कच्छ का बहुत बड़ा योगदान होगा।

पंच प्रण में से एक-अपनी विरासत पर गर्व को याद करते हुए, जिसे उन्होंने लाल किले की प्राचीर से घोषित किया था, प्रधानमंत्री ने कच्छ की खुशहाली और समृद्धि पर प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री ने धौलावीरा की इमारतों के निर्माण की विशेषज्ञता पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा,  “नगर निर्माण को लेकर हमारी विशेषज्ञता धौलावीरा में दिखती है। पिछले वर्ष ही धौलावीरा को वर्ल्ड हैरिटेज साइट का दर्जा दिया गया है। धौलावीरा की एक-एक ईंट हमारे पूर्वजों के कौशल, उनके ज्ञान-विज्ञान को दर्शाती है।” इसी तरह, लंबे समय तक उपेक्षित स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान करना भी किसी की विरासत पर गर्व करने का हिस्सा है। उन्होंने श्यामजी कृष्ण वर्मा के अवशेषों को वापस लाने की सुविधा की चर्चा की। उन्होंने कहा, मांडवी में स्मारक और स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भी इस संबंध में बड़े कदम हैं।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि कच्छ का विकास ‘सबका प्रयास’ के साथ एक सार्थक बदलाव का एक आदर्श उदाहरण है। प्रधानमंत्री ने कहा,“कच्छ सिर्फ एक स्थान नहीं है, बल्कि ये एक स्पिरिट है, एक जीती-जागती भावना है। ये वो भावना है, जो हमें आज़ादी के अमृतकाल के विराट संकल्पों की सिद्धि का रास्ता दिखाती है।”

इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्‍द्र पटेल, सांसद श्री सी. आर. पाटिल और श्री विनोद एल. चावड़ा, गुजरात विधानसभा अध्यक्ष डॉ. निमाबेन आचार्य, राज्य मंत्री किरीटसिंह वाघेला और जीतूभाई चौधरी उपस्थित थे।

परियोजनाओं का विवरण

प्रधानमंत्री ने भुज जिले में स्मृति वन स्मारक का उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री द्वारा परिकल्पित, स्मृति वन अपनी तरह की एक अनूठी पहल है। इसे 2001 के भूकंप के दौरान अपनी जान गंवाने वाले लगभग 13,000 लोगों की मौत के बाद लोगों द्वारा दिखाई गई लचीलेपन की भावना का जश्न मनाने के लिए लगभग 470 एकड़ के क्षेत्र में बनाया गया है। भूकंप का केन्‍द्र भुज में था। इस स्‍मारक में उन लोगों के नाम हैं जिन्‍होंने भूकंप के दौरान अपनी जान गंवाई थी।

अत्याधुनिक स्मृति वन भूकंप संग्रहालय सात विषयों: पुनर्जन्म, पुन:खोज, पुनर्स्थापना, पुनर्निर्माण, पुनर्विचार, पुन: जीवित और नवीनीकरण पर आधारित सात खंडों में विभाजित है। पहला खंड पृथ्वी के विकास और पृथ्वी की क्षमता को दर्शाने वाले पुनर्जन्म विषय पर आधारित है। दूसरा खंड गुजरात की भौगोलिक स्थिति और राज्‍य की दृष्टि से अतिसंवेदनशील विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं को प्रदर्शित करता है। तीसरा खंड किसी को भी 2001 के भूकंप के तुरंत बाद के परिणामों की ओर ले जाता है। इस खंड की गैलरियों में व्यक्तियों के साथ संगठनों द्वारा बड़े पैमाने पर किए गए राहत प्रयासों को दिखाया गया है। चौथा खंड 2001 के भूकंप के बाद गुजरात की पुनर्निर्माण पहल और सफलता की कहानियों को प्रदर्शित करता है। पांचवां खंड आगंतुक को विभिन्न प्रकार की आपदाओं के बारे में सोचने और उनसे सीखने तथा किसी भी समय किसी भी प्रकार की आपदा के लिए भविष्य में तैयार रहने के लिए प्रेरित करता है। छठा खंड हमें एक सिम्युलेटर की मदद से भूकंप का फिर से अनुभव लेने में मदद करता है। अनुभव को 5डी सिम्युलेटर में डिज़ाइन किया गया है और इसका उद्देश्य आगंतुक को इस स्‍केल पर एक घटना की जमीनी हकीकत बताना है। सातवां खंड लोगों को एक ऐसी जगह प्रदान करता है जहां वे खोए हुए लोगों को याद करते हुए दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं।

प्रधानमंत्री ने भुज में लगभग 4400 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। प्रधानमंत्री ने सरदार सरोवर परियोजना की कच्छ शाखा नहर का भी उद्घाटन किया। नहर की कुल लंबाई लगभग 357 किमी है। नहर के एक हिस्से का प्रधानमंत्री ने 2017 में उद्घाटन किया था और शेष भाग का उद्घाटन अभी किया जा रहा है। नहर कच्छ में सिंचाई की सुविधा और कच्छ जिले के सभी 948 गांवों और 10 कस्बों में पेयजल उपलब्ध कराने में मदद करेगी। प्रधानमंत्री कई अन्य परियोजनाओं का भी उद्घाटन करेंगे जिनमें सरहद डेयरी का नया स्वचालित दूध प्रसंस्करण और पैकिंग प्लांट; क्षेत्रीय विज्ञान केन्‍द्र, भुज; गांधीधाम में डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर कन्वेंशन सेंटर; अंजार में वीर बाल स्मारक; नखतराना में भुज 2 सबस्टेशन आदि शामिल हैं। प्रधानमंत्री भुज-भीमासर रोड सहित 1500 करोड़ रुपये से अधिक की विभिन्न परियोजनाओं की भी आधारशिला रखेंगे।

 

Read More »

राजीव मिश्रा निर्विरोध रूप से चुने गए नागरिक रामलीला समिति एच ब्लॉक किदवई नगर के अध्यक्ष

कानपुर 30 अगस्त भारतीय स्वरूप संवाददाता, श्री नागरिक रामलीला कमेटी, एच ब्लॉक, किदवई नगर कानपुर की वार्षिक आमसभा दिनांक 28 अगस्त 2022 को संपन्न हुई। आम सभा में निवर्तमान अध्यक्ष बसंत कुमार बाजपाई की मृत्युपरांत नए अध्यक्ष के रूप में डॉ राजीव मिश्रा (सचिव सोशल रिसर्च फाउंडेशन) के नाम का प्रस्ताव किया गया जिसे उपस्थित सभी सदस्यों ने निर्विरोध रूप से हर्षध्वनी के साथ स्वीकार किया। ज्ञातव्य हो कि एक वर्ष रामलीला समिति अपना 48वा दशहरा महोत्सव आयोजित करने जा रही है।

Read More »

दिल बड़ा रखिए जनाब कौन बेमतलब आता है किसी के यहां आजकल

कोई है वहाँ ? ज़रा फ़ोन तो उठाओ।फ़ोन की घंटी कब से बजे जा रही है।रिया ने बाथरूम से अपने पति रोहन को आवाज़ देते हुये कहा।रोहन ने झट से फ़ोन उठाया तो उधर रोहन की बहन सलोनी थी जो कह रही थी वो अगले हफ़्ते रोहन के शहर किसी आफ़िस के काम से आ रही है एक हफ़्ते के लिये, और उसी के यहाँ ठहरेगी।रोहन ने बात करके फ़ोन रख दिया, मगर अब सोच रहा था कि कैसे कहे रिया से कि सलोनी आ रही है।वो रिया को जानता था।इतने मे रिया बाथरूम से बाहर आ गई और पूछा किसका फ़ोन था ?रोहन ने कहा ! सलोनी कुछ काम के सिलसिले से यहाँ आ रही है और हमारे साथ दो चार दिन रहेगी ।बस फिर क्या था ,रिया ने कहा अगले हफ़्ते मेरी दो किटी पार्टी है और मै काम पर भी जाऊँगी ,मै नही सँभाल सकती किसी मेहमान को।कह दो सलोनी से कि तुमहारे बड़े भाई के यहाँ ठहर जाये।वहाँ भी तो जा सकती हैं रोहन कहने लगा !सलोनी अपने किसी आफ़िस के काम से आ रही है और उसका आफ़िस हमारे घर के पास है,इसीलिए हमारे यहाँ ठहरेगी।अब रोहन सलोनी को हाँ कर चुका था।रोहन चुपचाप उठा अपने आफ़िस चला गया मगर मन पर बोझ था।सोच रहा था ,अगर रिया की बहन का फ़ोन आया होता तो क्या रिया तब भी यूँ कहती और सोचने लगा जब कोई रिया के मायके से आता है तो वो कितना स्वागत करता है मगर रिया कयूं ऐसा करती है।मेरी माँ बाप ,बहन भाई ,जब भी कोई आता है तो उसका व्यावहार ऐसा कयूं होता है।अगर मैं रिया की हर बात का मान रखता हूँ तो रिया कयूं नही रख पाती।कंयू ऐसा बर्ताव करती है।आज काम पर मन नही लगा ,क्यूँकि रोहन ये पहले भी देख चुका था।शाम को सुनिल के घर जाने का प्रोग्राम था।सुनिल जो रोहन का बचपन का दोस्त था मगर भाई जैसा।सुनिल की दादी की 70 वीं सालगिरह थी।पार्टी सादी सी थी मगर वहाँ अपनापन और प्यार बहुत था।रोहन और रिया दादी के पास बैठे तो रोहन ने दादी को बताया कि उसकी बहन सलोनी आ रही है पूना से।दादी बहुत ख़ुश हुई और कहने लगी।तीन सालों के बाद आ रही है यहाँ, तेरे पापा के गुज़र जाने के बाद तुम दोनों भाई ही तो है उसके।तुमहारे पास नहीं आयेगी तो किस के पास जायेगी,मगर रिया ने तुनक कर कहा !दादी मै काम पर जाती हूँ मेरे घर कोई आये ,मुझे संभालना बहुत मुश्किल लगता है।दादी तो फिर दादी थी,बडे प्यार से रिया का हाथ पकड लिया और सिर पर हाथ फेर कर कहने लगी।
बिटिया,हम कितना परिवार अकेले सँभाल लिया करते थे बिना किसी नौकर के।आजकल तुम लोग इक मेहमान भी आ जाये तो तुम कैसा व्यावहार करने लगते हो ,अभी तो तुमहारे पास काम करने वाले नौकर चाकर भी रोहन ने लगा रखे है।बिटिया ज़रा दिल को बड़ा रखा करो।अगर तुम अपने पति का प्यार या विश्वास पाना चाहती हो तो उसकी भावनाओं का सन्मान करना सीखो ,फिर दादी ने अपने गाँव के इक पति पत्नी की बात बताई।कहने लगी कि हमारे गाँव मे इक जवान पति पत्नी रहते थे ।दोनों ही बहुत ही छोटे दिल के मालिक थे।उनके घर अगर कोई मेहमान आता तो पत्नी के माथे पर बल पड़ जाते और बहाने बहाने से ,साथ वाले पड़ोसी के घर से आटा माँग कर ले आती।कोई भिखारी भी उनके यहाँ आता तब भी वो दोनों ,साथ वाले पड़ोसी के घर भेज दिया करते और कहते कि पड़ोसी के घर चले जाओ यहाँ से कुछ नही मिलेगा।आये दिन अपने पड़ोसी के घर से कुछ न कुछ मागंते रहते।इक रोज बहुत ही गरीब भिखारी उनके दरवाज़े पर आया तो पहले की तरह उन्होंने उसे भी साथ वाले घर में भेज दिया।उस रात दोनों जब सो रहे थे तो पत्नी ने सपना देखा कि जिस गुरू को वो मानते है वो गुरू उनके आटा के डिब्बे मे से आटा निकाल कर पड़ोसी की रसोई में जा कर उनके आटे का डिब्बे में डाल रहे है। सुबह उठ कर पत्नी ने पति को ये बात बताई ।
दोनो घबरा गये ।सोचने लगे ,गुरू हमारे अन्न को बढ़ाने की बजाये अन्न को कम क्यों कर रहे थे।उन दोनों को ये सपना बैचेन कर रहा था।अगले रोज सीधा गुरू के पास पहुँच गये और सारी बात ,जो पत्नी ने सपने मे देखी थी ,गुरु जी से कह डाली ।गुरू जी हंसने लगे !कहने लगे अब तुमहारे यहाँ कोई मेहमान या कोई कुछ माँगने के लिए आता है तो तुम उसे साथ वाले घर मे भेज देती हो जबकि उनका दाना पानी तो तुमहारे घर मे लिखा था।बस मै तो वही अन्न,जो उनके हिस्से का अन्न होता है तुमहारे घर से निकाल कर पड़ोसी के यहाँ पहुँचा के आता हूँ।जब रिया ने बात सुनी तो सोच मे पड़ गई।बात तो सही थी कोई किसी के यहाँ ऐसे ही नहीं जाता ,दाना पानी खींच कर ले आता है ये बात तो उसने भी सुन रखी थी।अपनी सोच पर शर्म सी महसूस करने लगी।दादी कहती जा रही थी रिया जब तुम अपने भाई के यहाँ जाती हो तो वो तुम्हें कितना सन्मान देते है, अगर तुम्हारी भाभी भी ऐसा बर्ताव करे,जैसा तुम सलोनी के आने पर कर रही हो तो कैसा लगेगा तुम्हें।
दोस्तों!आज हम सब भी तो ,यही कर रहे हैं ।दिल को बड़ा रखने की जगह मेहमानों को मुसीबत समझने लगे हैं आज कोई घर आ जाये,तो अपने हाथो से खाना बना कर खिलाना तो बहुत दूर की बात हो गई है बस आसान रास्ता अपना लेते है कि चलो किसी रेस्टोरेन्ट मे खाना खिला देते है।मेहमान कोई भी हो ,पति का या पत्नी की तरफ़ से ,खुले दिल से स्वागत करे।यू तो हम कह रहे हैं समाज में प्यार बढ़ाये तो क्यों न शुरूवात अपने से ही करें।
यूँ भी दोस्तों !
“ कौन किसी के यहाँ आता जाता है आजकल,ये तो परिंदों की मासूमियत भरी मेहरबानी है ,जो हमारे बगीचो मे कभी भी आया ज़ाया करते है “
-लेखिका स्मिता ✍️

Read More »

क्राइस्ट चर्च पीजी कॉलेज में 4 दिवसीय आजादी के अमृत महोत्सव का आज समापन समारोह संपन्न

कानपुर 17 अगस्त, भारतीय स्वरूप संवाददाता, क्राइस्ट चर्च पीजी कॉलेज में आजादी के अमृत महोत्सव के अंतिम दिवस का आयोजन किया गया। जिसमें कॉलेज के प्राचार्य डॉ जोसेफ डेनियल एनएसएस कार्यक्रम अधिकारी डॉ सुनीता वर्मा संग डॉ मीत कमल डॉ रवि महलवाला डॉ जुनेजा,डॉ नवीन कुमार, डॉ सुधीर गुप्ता उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंतर्गत स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से दर्शाया गया।इसके पश्चात देश भक्ति का गीत गाकर वातावरण को देशभक्ति की भावना से पूर्ण कर दिया।इसके पश्चात आजादी के अमृत महोत्सव में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को कॉलेज के प्राचार्य द्वारा सर्टिफिकेट वितरित किया गया। कार्यक्रम का समापन एनएसएस कार्यक्रम अधिकारी डॉ सुनीता वर्मा ने अपने एनएसएस के प्रमुख हर्षवर्धन दीक्षित तथा सह प्रमुख विलायत फातमा, मोमिन अली ने अपनी टीम जिनमें अरबाज,स्तुति, सौम्या दीक्षित, सौम्या तिवारी ,अर्फिया, फरीना ,साद ,उमर ने मिलकर कार्यक्रम का सफलतापूर्वक समापन किया।

Read More »

गुजरा वक्त

बचपन कहूं या गुजरा वक्त मगर यह सच है कि वक्त बहुत तेजी के साथ बदल गया है। बीते वक्त की आज से तुलना करती हूं तो लगता है जैसे पता नहीं हमारा वक्त कौन सा वक्त था। आज हम इतना ज्यादा उपभोक्तावाद हो गए हैं कि छोटी छोटी चीजों का महत्व खत्म हो गया है। उनकी उपयोगिता घट गई है। छोटी छोटी सी चीजों में भी खुश हो जाने वाला बचपन आज बड़ी बड़ी चीजों में भी बहुत सहज दिखाई देता है।

हमारे जीवन में छोटी खुशियां और चीजों का मूल्य समझा और समझाया जाता था। एक बात और है कि आज के इस तकनीकी युग में विकल्प बहुत है। मुझे याद आता है कि यदि हमारी हवाई चप्पल अगर कहीं से टूट जाती थी तो सिलवाई जाती थी और उस चप्पल का इस्तेमाल हम तब तक करते थे जब तक वो बिल्कुल फेंकने लायक ना हो जाये। सिर्फ चप्पल ही क्यों स्कूल बैग फट जाते थे तो सिलवा कर इस्तेमाल में लाए जाते थे, आज की तरह नहीं कि फेंको और दूसरा ले लो। कपड़े भी जरा से फट गए तो सिल कर काम चला लिया जाता था, नए कपड़ों से अलमारियां नहीं भर ली जाती थी, पांच सात जोड़ी कपड़े बहुत होते थे। किताबों पर जिल्द ब्राउन पेपर की नहीं बल्कि अखबारों की जिल्द से भी काम चल जाता था।
हमारा बचपन खेल कूद और पढ़ाई में ही बीता। रसोई में क्या बन रहा है कभी ध्यान ही नहीं गया। मां जो भी बना देती थी वही खाना रहता था। हमारे लिए कोई ऑप्शन नहीं थे लेकिन आज अगर घर में तीन लोग हैं तो तीन तरह की रसोई बन जाती है, अनाज बर्बाद होता है सो अलग। पढ़ाई के मामले में भी अगर किताबें भाई बहन के काम आती है तो संभाल कर रख ली जाती थी नहीं तो किसी जरूरतमंद को दे दी जाती थी, रद्दी में नहीं फेंकी जाती थी। ऐसी ही न जाने कितनी बातें हैं दूरदर्शन या डी डी मेट्रो के अलावा हमारे लिए टीवी पर दुनिया भर के चैनल नहीं थे। रविवार का इंतजार रहता था और एक फिल्म देखना, कार्टून देखना या चंद्रकांता सीरियल, रामायण, महाभारत, टॉम एंड जेरी और चित्रहार जैसे कार्यक्रमों का इंतजार रहता था। आज की तरह बटन दबाकर पाज कर दिया और कल देखेंगे वाला सिस्टम नहीं था, उत्सुकता बनी रहती थी। वह इंतजार अब नहीं रह गया है। गाना सुनने के लिए वीडियो या टेप रिकॉर्डर थे। आज की तरह मोबाइल में सब कुछ सहूलियत से उपलब्ध नहीं था। होटल वगैरा भी किसी खास मौके पर ही जाना होता था आज की तरह वीकेंड मनाने या फिर जब मन हुआ होटल चले गए ऐसा नहीं होता था।
महसूस होता है कि वक्त बहुत तेजी से बदल गया है। पता नहीं दुनिया पहले छोटी थी अब छोटी हो गई है। बहुत फर्क आ गया है बच्चे हिंदी नहीं पढ़ना जानते, वास्तविक जीवन में कम तकनीकी जीवन में ज्यादा जीते हैं , मशीनी गति से काम करते न जाने कौन सा  सुख तलाश करते हैं। हमें पैसे की वैल्यू समझाई जाती थी। अब सब समय की वैल्यू देखते हैं। हमें महंगी और सस्ती चीजों का फर्क समझाया जाता था। सिर्फ पसंद आ जाना भर ही आ जाना ही मायने नहीं रखता था समय के साथ बदलता बहुत कुछ है और बदलना भी चाहिए आज के बच्चों में परिपक्वता ज्यादा है मगर जब कभी लगता है कि बच्चे अपना बचपन, अपने संस्कार और अपने मूल्य भूलते जा रहे हैं तब दुख होता है।

प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

Read More »

क्राइस्टचर्च डिग्री कॉलेज में अमृत महोत्सव के अन्तर्गत कॉलेज के पूर्व छात्रों के सहयोग से भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन

कानपुर 13 अगस्त, भारतीय स्वरूप संवाददाता, आजादी की 75वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में बड़ा चौराहा स्थित क्राइस्टचर्च डिग्री कॉलेज में अमृत महोत्सव के अन्तर्गत कॉलेज के पूर्व छात्रों के सहयोग से भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
सर्वप्रथम ध्वजारोहण किया गया और मुख्य अतिथि प्रीती जैन दास के करकमलों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को फहराया गया, तत्पश्चात उपस्थित जनों द्वारा राष्ट्रगान गाया गया एवं राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी गई। इसके बाद मुख्य अतिथि का परिचय सभी के समक्ष दिया गया।
इस मौके पर कॉलेज के वर्तमान एवं पूर्व छात्र-छात्राओं द्वारा आजादी से जुड़ी मनमोहक साँस्कृतिक झलकियाँ प्रस्तुत की गयीं। मनमोहक झलकियों को देखकर उपस्थित समस्त जनों ने जमकर तालियाँ बजायीं और प्रतिभागी छात्र- छात्राओं की सराहना की।प्रिंसिपल डॉ जोसेफ डेनियल ने डॉ0 प्रीति जैन दास का स्वागत किया। उन्होंने सभी पूर्व छात्रों का स्वागत करते हुए कहा कि आप लोग मेरे लिए व कॉलेज के लिए अमूल्य धरोहर हैं आप लोगों के सहयोग से कॉलेज को कई तरह की राहत मिलती है।
वहीं मुख्य अतिथि प्रीती जैन दास ने अपने कॉलेज के दिनों के किस्से सुनाने के साथ साथ उस वक्त के अपने गुरुजनों डॉ आशुतोष सक्सेना, डॉ0 आर. के. वर्मा को सम्मानित किया।
साथ ही डॉ0 आर0 के0 जुनेजा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि.आजादी की धरोहर को सुरक्षित बनाये रखना हम सबका कर्त्तव्य है।
इस मौके पर मुख्य अतिथि के करकमलों द्वारा पौधारोपण कर पर्यावरण को संरक्षित व सुरक्षित बनाये रखने का संदेश दिया गया।
कार्यक्रम में मुख्यरूप से रवि महलवाला रवि महलवाला ने स्वागत भाषण में कई नई पुरानी यादें ताजा करते हुए आजादी प्राप्ति के बारे में विचार व्यक्त किये। इस मौके पर मुख्यरूप से नलिन कुमार श्रीवास्तव, हिमांशु दीक्षित, मनीष मेहरोत्रा, आशुतोष सक्सेना, विभा दीक्षित, मीत कमल द्विवेदी, अतुल दीक्षित सहित अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे।

Read More »

थल सेना प्रमुख ने 22वें राष्ट्रमंडल खेलों में शामिल होने वाले भारतीय सेना के प्रतिभागियों को सम्मानित किया

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/IMG-20220810-WA0018N6XJ.jpg

हाल ही में संपन्न हुए XXII राष्ट्रमंडल खेलों 2022 में भारतीय सेना के एथलीटों ने चार स्वर्ण, एक रजत और तीन कांस्य पदक जीतकर बेहद शानदार प्रदर्शन किया। व्यक्तिगत पदक विजेताओं में भारोत्तोलन में नायब सूबेदार जेरेमी लालरिनुंगा (स्वर्ण) और हवलदार अचिंत शेउली (स्वर्ण), कुश्ती में सूबेदार दीपक पुनिया (स्वर्ण) और भर्ती हवलदार दीपक नेहरा (कांस्य), बॉक्सिंग में सूबेदार अमित पंघाल, वीएसएम (स्वर्ण) एवं सूबेदार मोहम्मद हुसामुद्दीन (कांस्य) तथा एथलेटिक्स में नायब सूबेदार अविनाश साबले (रजत) और सूबेदार संदीप कुमार (कांस्य)शामिल हैं।https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/IMG-20220810-WA0019LZ3F.jpg

यह वास्तव में एक सराहनीय उपलब्धि है कि राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने वाले दल में भारतीय सेना के 18 प्रतिभागियों में से आठ खिलाड़ियों ने भारत के लिए पदक जीते हैं। ये पदक भारतीय सेना द्वारा सावधानीपूर्वक नियोजित और लगातार चल रहे “मिशन ओलंपिक कार्यक्रम” का ही परिणाम हैं, जिसकी परिकल्पना वर्ष 2001 से की गई थी और इसे बेहतर प्रदर्शन प्राप्त करने के लिए लागू किया गया।

दल के भारत लौटने पर थल सेना प्रमुख (सीओएएस) जनरल मनोज पांडेय और सेना मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने 10 अगस्त 2022 को दिल्ली कैंट में आयोजित एक विशेष समारोह में खिलाड़ियों को बधाई दी और उनके साथ चर्चा की।https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/IMG-20220810-WA00209VJ9.jpg

सेना प्रमुख ने खिलाड़ियों को संबोधित करते हुए उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन की सराहना की और कहा कि खेलों में भाग लेने वाले भारतीय सेना के प्रतिभागी राष्ट्र के लिए वास्तविक रोल मॉडल हैं। सेनाध्यक्ष ने कहा कि उनके व्यक्तिगत प्रदर्शन ने भारतीय सेना के साथ ही पूरे देश को भी गौरवान्वित किया है। जनरल मनोज पांडेय ने उन्हें आगामी सभी खेल प्रतियोगिताओं के लिए शुभकामनाएं भी दीं। सेना प्रमुख ने प्रतिभागियों को प्रशस्ति पत्र और नकद प्रोत्साहन देकर सम्मानित किया। पदक विजेताओं को प्रचलित नीति के अनुसार बारी-बारी से पदोन्नति भी मिलेगी।

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/IMG-20220810-WA0021AIXZ.jpg

 

Read More »

क्राइस्ट चर्च कॉलेज में आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत विभान्शु वैभव की नाट्य कार्यशाला तथा अन्य रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन

क्राइस्ट चर्च कॉलेज में विभाशु वैभव द्वारा रंगमंच कार्यशाला के साथ इंडिया@75 आजादी का अमृत महोत्सव की शुरुआत की गई। श्री वैभव एक प्रसिद्ध रंगकर्मी, लेखक, अभिनेता, निर्देशक, नाटककार हैं जो टेलीविजन और सिनेमा से बीस वर्षों से भी अधिक समय से जुड़े हैं। उनका कॉलेज में आकर छात्रों से संवाद करने की अनुमति मिलने से छात्रों में एक अलग ही जोश था.

इस नाट्य कार्यशाला का आरम्भ नाबा और समूह द्वारा वंदे मातरम के गायन के साथ दीप प्रज्ज्वलन से हुआ. प्राचार्य डॉ. जोसेफ डेनियल ने विशिष्ट अतिथि का स्वागत गुलदस्ते के साथ किया और छात्रों को संबोधित किया। श्री वैभव जी ने रंगमंच के उन्नत पहलुओं की मूल बातों पर बहुत ही ज्ञानवर्धक व्याख्यान दिया। उन्होंने अभिनय, लेखन और इसे ओटीटी, सिनेमा और टेलीविजन जैसे विभिन्न माध्यमों पर प्रस्तुत करने की कई उभरती तकनीकों और बारीकियों पर चर्चा की। छात्र उनकी उपस्थिति और विषय पर ज्ञान की गहराई से प्रभावित थे। सभी ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और थिएटर और सिनेमा के कुछ आवश्यक कौशल सीखे।
प्रो. आशुतोष सक्सेना, डीसी श्रीवास्तव, अरविंद सिंह, शिप्रा श्रीवास्तव सहित अन्य सभी शिक्षक समुदाय उपस्थित था । डॉ. विभा दीक्षित और डॉ. मीतकमल ने इस कार्यशाला का आयोजन किया। डॉ विभा दीक्षित सांस्कृतिक समिति समन्वयक और डॉ मीत कमल मिशन शक्ति की संयोजक हैं। आयोजक मंडल में मानवी, अभिषेक, उदित, प्रीति, वैशाली, उज्जवल व अन्य छात्र शामिल थे।
इससे पहले छात्रों की महोत्सव गतिविधियों की शुरुआत India@75 पर निबंध लेखन प्रतियोगिता से हुई। कार्यक्रम में लगभग 56 छात्रों ने भाग लिया। संचालन हिना अजमत और साक्षी अग्रवाल ने किया।
आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मनाने के लिए छात्रों और शिक्षकों में “जोश बहुत ज्यादा है”। इस विशेष अवसर को चिह्नित करने के लिए कॉलेज में 11 से 17 अगस्त तक वृक्षारोपण, समाज सेवा, तिरंगा सेल्फी, नाटक संगीत और नृत्य जैसे विभिन्न रंगारंग कार्यक्रम छात्रों के लिए छात्रों द्वारा आयोजित किए जायेंगे।

Read More »

पिया का साथ है और नैनों में अंजुरी भर सपनों की सौगात है

जिन्दगी कभी कभी नीम के पेड़ जैसी है
जरा सी धूप, जरा सी छांव की तरह है
कभी सावन के झूलों जैसी राहें हैं
कभी ऊपर कभी नीचे…. ऊंची ऊंची पेंगे
और कभी मंझधार में अटकती राह है

मेंहदी के रंग से सजी मोहब्बत
हाथों से आती सोंधी खुशबू
यूं ही इश्क़ बयां कर देती है
चूड़ी बिंदिया काजल और कंगन
ये तो यूं ही जलाती हैं

राह देखता मायका कुछ अपनों का
जहाँ बहू बेटियों की बात ही निराली है
संग सहेलियों के कुछ पल बिताने
सावन की बात ही निराली है

तीजों का त्यौहार,
भाई बहनों का प्यार
मांओं का दुलार
झूले पर खेलता बचपन
सावन की यह हरियाली बड़ी मतवाली है

पिया का साथ है और
नैनों में अंजुरी भर
सपनों की सौगात है
देखो वो आया परदेसी
कि अब मिलन की आस है

~ प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

 

Read More »