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कानपुर प्रवेश पर पुलिस मजदूरों को खाना पानी आदि से मदद कर रही

जाजमऊ चैक पोस्ट पर प्रवासी मजदूरों के ट्रकों को रोककर मजदूरों तक खाना पानी पहुंचा रहे पुलिस और प्रशानिक अधिकारी।

कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के कारण देश भर के शहरों में फंसे हजारों मजदूरों को कई गंभीर मुश्किलों का करना पड़ रहा है सामना।

मजदूरों की मुश्किलों को देखते हुए एसीएम और थाना पर इंसपेक्टर चकेरी

प्रवासी मजदूरों की अपने क्षेत्र में लगातार कर रहे है मदद । चकेरी क्षेत्र में गुजरने वाली गाड़ियों मैं बैठे हुए मजदूरों को खाना पानी की पूरी व्यवस्था कर रही है पुलिस।

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जिलाधिकारी का टेली मेडिसिन से भी इलाज करने का निर्देश

13 मई 2020 कानपुर नगर। जिलाधिकारी डॉ0 ब्रह्मदेव राम तिवारी महोदय ने कोविड-19 (नोवेल कोरोना वायरस ) के दृष्टिगत जनपद कानपुर नगर के आई0एम0ए0 एवं निजी अस्पतालों में चिकित्सकों को कोविड-19 महामारी के समय आम जनमानस को टेलीमेडिसिन के माध्यम से चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के निर्देश दिये थे।जिसके क्रम में शहरी क्षेत्रों में 31 डॉक्टरों की टीम द्वारा लगातार 29 अप्रैल से 2020 से शिफ्टवार जनपद कानपुर नगर के विभिन्न डॉक्टर्स इस आपदा की घड़ी में निःशुल्क लगातार मानव सेवा कर रहे है। जिसके क्रम में निम्नलिखित डॉक्टर्स टेलीमेडिसिन के माध्यम से लोगों को उनकी आवश्यकतानुसार सभी की मदद कर रहे हैं जिनके नंबर इस प्रकार है।
01-डॉक्टर विकाश शुक्ला निरोलॉजिकल 9935523711 शाम 5 बजे से शाम्ब 6 बजे तक

02-डॉक्टर नदीम फारुखी आर्थोपेडिक्स 8090453111 सुबह 9 बजे से सुबह 10 बजे तक

03-डॉक्टर विनय गुप्ता आर्थोपेडिक्स 7007415090 दोपहर 1 बजे से दोपहर 2 बजे तक

04-डॉक्टर दीपक श्रीवास्तव आर्थोपेडिक्स 8400098206 दोपहर 3 बजे से शाम 5 बजे तक

05-डॉक्टर विकाश सेंगर गेस्ट्रोलॉजी 9839800757 सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक

06-डॉक्टर संगीता सेंगर ईएनटी 9839800460 12 से 1 पीएम

07-डॉक्टर रेनू सिंह गहलोत
Gynae Infcrtility Lapar 9839034303 दोपहर 12बजे से दोपहर 1 बजे तक

08-डॉक्टर प्रदीप माटो
Pediatries 9935551190 शाम 4 बजे से शाम 5 बजे तक

09-डॉक्टर अंजुम गुप्ता
Gynae 9839052243 दोपहर 2 बजे से दोपहर 3 बजे तक

10-डॉक्टर आलोक गहलोत ऑप्थलमोजिस्ट 9839031015 दोपहर 12 से दोपहर 1 बजे तक

11-डॉक्टर आशीष श्रीवास्तव
Pediatrics 9532833304 शाम 5 बजे से शाम 6 बजे तक

12- डॉ0 आंचल
General Physician
7088676591 दोपहर 3 बजे से 4 बजे तक

13-डॉक्टर सी0के0 सिंह जर्नल सर्जन 9839038123 दोपहर 3 बजे से 4 बजे तक

14- डॉक्टर वी0के0 दीक्षित चेस्ट फिजिशियन 9336224322 सुबह 11बजे से दोपहर 1 बजे तक

15-डॉक्टर कलीम अहमद खान psychiatric illness 9839771626 शाम 5 बजे से शाम 6 बजे तक

16- डॉक्टर कबीर अहमद Dentist 8787272368 शाम 5 बजे से शाम 6 बजे तक

17-डॉक्टर आदित्य त्रिपाठी Critical Care Physician 800100145 दोपहर 2 बजे से 3 बजे तक

18- डॉक्टर राहुल डे एम डी मेडिसिन 9839133463 दोपहर 4 बजे से 5 :30 बजे तक

19-Dr Saima Ahmad obstetrics n Gynaecology 9161539999 दोपहर 12 बजे से 2 बजे तक

20- डॉक्टर गोविंद तिवारी आर्थोपेडिक्स 9415051022 शाम 5:30 से 6:30 शाम बजे तक

21-डॉक्टर नवजीत शर्मा Gynac 9415041892

सुबह 9 बजे से सुबह 11 बजे तक

22-डॉक्टर अवधेश पांडेय DCH Pediatric 9935328077

शाम 5 बजे से 7 बजे तक

23-डॉक्टर नंदनी रस्तोगी – physician Diabetologist&Critical Care 9839111548

दोपहर 1बजे से 2 बजे तक

24-डॉक्टर इंद्रजीत सिंह आहूजा एमडी मेडिसिन 9335324450

दोपहर 12 बजे से 1 बजे तक

25-डॉक्टर राम जीत कौर आहूजा
Gynecologist 9335342368
दोपहर 12 से 1 बजे तक

26-डॉक्टर राहुल स्वरूप General Surgeon 9415127433
शाम 5 बजे से 6 बजे तक

27-डॉक्टर स्वाती स्वरूप obstetrics n Gynaecology 9451878322

शाम 5 से 6 बजे तक

28-डॉक्टर दिलीप अग्रवाल आर्थोपेडिक्स 9125878787

शाम 7 से 8 रात्रि बजे तक

29-डॉक्टर किरन अग्रवाल
Obstetrics n
Gynaeoology
9936178638

सुबह 11 से दोपहर 1 बजे तक
30-डॉ0 विनय गुप्ता Physician 9839031357 शाम 6 बजे से शाम 7 बजे तक

31-डॉ0 अमित द्विवेदी General Physician 9415125507 दोपहर 12:30 बजे से दोपहर 2 बजे तक।
इसी क्रम में ग्रामीण क्षेत्रों में 15 डॉक्टर्स भी टेलीमेडिसिन के माध्यम से निम्न लोगो को निःशुल्क मेडिकल सेवा दे रहे है जो निम्न है।

01-डॉ0 ए0के0 सिंह , MS मो0 8005009022,

02-डॉ0 एस0 के0 पाण्डेय
CMS मो0-9450337280,

03-डॉ0 ज्योति CMS मो0-9415050575,

04- डॉ0 वी0 बी0 सिंह SIC मो09415124293,

05- डॉ0 निर्लेश त्रिपाठी CMS मो0 8176003050,
06-डॉ0 एस0 एल0 वर्मा Moic सरसौल मो0 7839721416,9956085896,

07-डॉ0 अजय मौर्या MOIC भीतरगांव मो0 7839720742,9450727595,

08- डॉ0 कैलाश चन्द्रा MOIC घाटमपुर मो0 7839720918,9452362550,

09- डॉ0 एस0 पी0 यादव MOIC बिल्लौर मो0 7839722175,9553229491,

10- डॉ0 अविनाश यादव MOIC
कल्याणपुर मो07839721838,9721788887,

11- डॉ0धर्मेंद्र MOIC ककवन मो0 7839721683,9839858331,

12- डॉ0 नीरज MOIC पतारा मो07839722117,7752837317,

13- डॉ0 ए0के0 त्रिवेदीMOIC बिल्लौर,7839721406,7309796962,

14- डॉ0 अनुज दिक्षित MOIC शिवराजपुर मो0 7839721406,7309796962,

15 -डॉ0यशवर्धन MOIC चौबेपुर 78397 21703, 9044888200 उक्त निम्नलिखित डॉक्टरों द्वारा टेलीमेडिसिन द्वारा मरीजों नि:शुल्क सेवा लगातार 29 अप्रैल 2020 से दे रहे है। जिसके अंतर्गत आज तक कुल 842 लोगो ने डॉक्टर्स से टेलीमेडिसिन के माध्यम से सलाह ली है ।

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कोरोना- कानपुर से आज फिर राहत की खबर

कानपुर के लिए आज का दिन भी राहत लेकर आया

आज कोरोना संक्रमित 17 मरीज ठीक होकर हुए डिस्चार्ज

अब तक कुल डिस्चार्ज मरीजो की संख्या 178

कानपुर में आज कोरोना पॉजिटिव का एक नया केस और मिला

अब तक कुल केस हुए 308

कुल एक्टिव केस की संख्या 123

कुल मृतको की संख्या 7

कानपुर में रिकवरी प्रतिशत बढ़कर हुआ 57

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पशु पालन के क्षेत्र में दिया जा सकता है रोजगार

पशुपालन के क्षेत्र में रोजगर देकर उत्पादन और मांग के अंतर को कम किया जा सकता है: अजय प्रताप सिंह
कानपुर। अपना दल (एस) के महासचिव व सदस्य उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद अजय प्रताप सिंह ने एक पत्र के माध्यम से उप्र के मुख्य मंत्री व सूबे के पशुपालन व दुग्ध विकास मंत्री को सुझाव दिया कि पशुपालन के क्षेत्र में रोज़गार देकर उत्पादन व खपत के अंतर को कम किया जा सकता है। उन्होंने आगे बताया कि COVID19 की महामारी के कारण प्रदेश में अन्य राज्यों से वापस आये मज़दूर वापस नही जाना चाहते हैं। उनके सामने रोज़गार की जटिल समस्या उत्पन्न होगी। ऐसे में उन्हें ऋण देकर पशुपालन के क्षेत्र में स्वावलंबी बनाया जा सकता है। वर्तमान समय मे पशुपालन से सम्बन्धित कोई योजना भी नही है। पूर्व की सरकार में कामधेनु व मिनी कामधेनु योजना चल रही थी जो भाई भतीजावाद व लूट के भंवर में फंस कर दम तोड़ गयी। पशुपालन की योजना संचालित कर इसके अंतर्गत लाखों बेरोजगारों को ऋण देकर उन्हें पशुपालन के क्षेत्र में रोजगार दिया जा सकता है। जहां एक ओर लाखों लोगों की बेरोज़गारी दूर होगी वहीं दूसरी ओर उत्पादन और मांग के अंतर को भी कम करने में सहायता मिलेगी। दुग्ध समितियों द्वारा पशुपालक से शत प्रतिशत दुग्ध खरीदना सुनिश्चित किया जाए। उनके भुगतान से कुछ अंश काटकर ऋण की वसूली की जा सकती है। अन्त में अजय प्रताप सिंह ने सूबे के मुखिया व कैबिनेट मंत्री पशुपालन एवं दुग्ध विकास मंत्री को अपने सुझाव पर विन्रमता पूर्वक विचार करने का आग्रह किया गया।
पत्र की प्रतिलिपि राज्य मंत्री पशुपालन एवं दुग्ध विकास मंत्री के अतिरिक्त विभागीय प्रमुख सचिव व सचिव/कार्यकारी अधिकारीगणों को भी प्रेषित कर सुझाव दिया गया है।

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कोरोना संकटकाल, प्रवसन और प्रवासी मजदूर एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण

‘‘जिन्दगी क्या किसी मुफलिस की कबा है, जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे जाते है’’ -फैज 

अपनी अस्मिता और पहचान के संकट, बेहतर आर्थिक दशाओं की उम्मीद और आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ करने के सपनों को लेकर जन्म स्थान से दूर किसी अन्य सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक क्षेत्र में सामूहिक रूप से स्थायी-अस्थायी रूप से बसने की स्थिति को सामान्यतया आप्रवास/प्रव्रजन/देशान्तरण कहते हैं। किसी एक भौगोलिक/राष्ट्रीय क्षेत्र से दूसरे भौगोलिक/राष्ट्रीय क्षेत्र में सापेक्षतः स्थाई गमन की प्रक्रिया प्रव्रजन/देशान्तरण के नाम से जानी जाती हैं। इसी से मिलती-जुलती दो अन्य अवधारणायें यथा उत्प्रवास और आव्रजन हैं। किसी व्यक्ति द्वारा अपने देश को छोड़कर दूसरे देश में जाने की प्रक्रिया ‘उत्प्रवास’ (एमिग्रेशन) कहलाती  हैं। इसके विपरीत, देश में आने की प्रक्रिया को ‘आव्रजन’ या आप्रवास (इमिग्रेशन) कहते हैं। इसके अतिरिक्त प्रव्रजन का एक दूसरा रूप भी है जिसे ‘आन्तरिक प्रव्रजन’ कहते हैं। इस प्रकार प्रव्रजन में एक ही देश में एक स्थान से दूसरे स्थान जैसे गाँव से शहर की ओर निष्क्रमण अथवा शहर के मध्य क्षेत्र से उपनगरों की ओर गमन की प्रक्रियायें भी सम्मिलित की जाती हैं। आप्रवास की प्रकृति के अनुसार भी इसके कई रूप है जैसे चयनित या मौसमी, स्थायी या अस्थायी। प्रवसन की प्रक्रिया प्रारम्भ में भले ही कम रही हो लेकिन सभी देशों और सभी समयों में रही हैं।

औद्योगिक क्रान्ति के पूर्व प्रवसन का मुख्य कारण राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक आप्रवास की स्थितियां ही दृष्टिगोचर होती है लेकिन 11वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रान्ति ने समस्त समाज को नयी परिस्थितियों से रूबरू कराया जिसमें आर्थिक आयाम के विभिन्न नये वर्ग का उदय हुआ जिसे माक्र्स ने ‘सर्वहारा’ कहा। औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् उद्योग एवं व्यापार आधारित आप्रवास क्रमशः तीव्र और प्रमुख हो गया।

कुछ बेहतर पाने की आस में या कृषि से बेदखली के पश्चात जीविकोपार्जन के अन्तिम विकल्प के रूप में मिलों, कारखानों में काम करने हेतु बढ़ी संख्या में गाँवों से लोगों ने शहरों की ओर पलायन करना प्रारम्भ किया तो कहीं-कहीं सस्ते श्रम की जुगाड़, आर्थिक शोषण की प्रवृत्ति और अपनी औद्योगिक श्रम की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु साम्राज्यवादी राष्ट्रों ने अपने अधीन रहे राष्ट्रों से बढ़ी संख्या में इस पलायन को स्वीकारोक्ति एवं संरक्षण प्रदान किया।विश्वव्यापीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की प्रक्रिया तथा सूचना संचार क्रान्ति के तालमेल से इसके अन्तर्राष्ट्रीय स्तर विभिन्न सकारात्मक एवं नकारात्मक आयाम एक साथ देखने को मिले। आज वैश्विक त्रासदी कोविड-19 महामारी के प्रभाव में नकारात्मक पहलू ज्यादा सामने आ रहा है क्योंकि बाजारवादी/उपभोगवादी समाज में चाहे बात श्रमिकों के पलायन की हो या प्रतिभाओं के निरन्तर पलायन की हो, प्रत्येक सन्दर्भ में हमें पक्ष एवं विपक्ष में अपने-अपने मत व्यक्त करने वालो के दो स्पष्ट समूह दिख जायेंगे। इन समस्याओं पर तटस्थ होकर एक भारतीय के रूप में विचार करना ही इस लेख का उद्देश्य है। उन तथ्यों पर भी विचार करना होगा जिनके कारण आज कुछ राज्यों में प्रवसन दर अधिक है तो उसके क्या कारण है। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और कुछ समय से गुजरात भी अब इस सूची में शामिल हुआ है जिनकी ैण्क्ण्च्ण् ;ैजंजम क्वउमेजपब च्तवकनबजपवदद्ध अर्थात राज्य के सकल घरेलू उत्पादन में प्रति व्यक्ति सूची में सबसे ऊपर है और वहाँ गरीबी का प्रतिशत कम होने के कारण अन्य राज्यों के प्रवासी आकर्षित होते हैं। उदाहरण के लिये बिहार जो उच्च जनसंख्या वृद्धि दर, अत्यधिक गरीबी और खराब एस.डी.पी. वाला प्रदेश है, वहा के लोग पलायन के प्रति अधिक आकर्षित होते है। इस कारण वहा प्रवसन 1000 व्यक्तियों पर 31 से अधिक है। पश्चिम बंगाल एक और ऐसा राज्य है जहाँ दूसरे राज्यों के प्रवासी जाते है परन्तु कुछ समय से यह दर कम हुई हैं। कुछ नये अध्ययनों में सामने आया है कि महाराष्ट्र पूरे देश से विशेषतः उत्तर प्रदेश एवं बिहार से प्रवासियों को आकर्षित करता है। यू.पी. और बिहार से निकलती प्रवासी धारा प्रायः पूरे भारतवर्ष में फैल चुकी है। अगर हम नीतियों की बात करें तो बिहार अब तक कई बार विभाजन की नीति से प्रभावित हुआ हैं। 1911 में तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेन्सी से उड़ीसा एवं बिहार को पृथक किया गया; 1136 में बिहार को एक पृथक प्रशासकीय प्रान्त के रूप में स्थापित किया गया। स्वतन्त्र भारत में 15 नवम्बर 2000 को खनिज एवं वन सम्पदा से समृद्ध छोटा नागपुर एवं संथाल परगना परिक्षेत्र को झारखण्ड के रूप में बिहार से अलग कर दिया गया। स्वतन्त्रतापूर्व से अब तक बिहार में उत्प्रवास (आउट माइग्रेशन) की प्रक्रिया सतत रूप से चलती रही। भारत के दुर्गम से दुर्गम स्थान पर बिहारी आप्रवासी दिख जाते है लेकिन चर्चा में तब आते है जब किसी प्राकृतिक आपदा या मानवीय संवेदनहीनता के शिकार बनते है या दुर्घटनाओं का शिकार होते है। उत्तर प्रदेश उभरता उत्तम प्रदेश हो या बिहार (घर) से बाहर काम की तलाश जिसमें रोटी हाथ में हो, इस उम्मीद से शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर कठोर एवं अमानवीय कार्य हेतु बाध्य है। कठिन परिस्थितियों में महज जीवनयापन के उद्देश्य से निकल पड़ते हैं। सामाजिक तथा आर्थिक स्तर पर प्रताड़क असुरक्षा का भाव लिये, जीवन को बनाये और बचाने रखने के क्रम में पेन्डुलम की तरह झूलते हुए व्यवस्थित जीवन की लय खो चुके होते है। इतना ही नहीं घर से दूर होकर प्रायः विभिन्न कारणों से ये अपनी पैतृक सम्पत्ति (घर-बार, जानवर, खेत-खलिहान) और सांस्कृतिक पूँजी के रूप में स्थानीय तीज-त्यौहारों से भी दूर हो जाते है, जो इनमें उत्साह और उमंग का संचार करते थे। घर-द्वार छूटते ही सब छूट जाता है और यन्त्रवत कार्यशैली जीवन का हिस्सा बन जाती है। शोषण या अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में रहने से, लगातार 10-12 घंटे काम करने साथ ही अपर्याप्त भोजन जैसी समस्याओं के कारण जल्दी ही रुग्ण, अक्षम और कमजोर हो जाते हैं। इन तमाम परिस्थितियों को फिर चाहे कोरोना संक्रमणकाल से जनित लाॅकडाउन (तालाबन्दी) हो, रोजगार का संकट, घर-वापसी हेतु कोई समुचित साधन न होना, जेब और पेट दोनों खाली इसी को नियति मानकर सबकुछ गवाँ देते हैं। प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों होता हैं? क्यों वे हजारों किमी दूर जाते है? क्यों आज जब हम बैठे है घरों में वे सड़कों पर सपरिवार, ससामान, चिलचिलाती धूप में, कई-कई दिनों तक घर वापसी का सफर तय करते है कि जो देहरी कई वर्षों से छूट गयी उसे अनिश्चितता के दौर में चूम तो सकें? इनके अनेक उत्तर हो सकते है। इन उत्तरों में सर्वाधिक जटिल यदि राजनीतिक बौद्धिकता के उत्तर है तो सर्वाधिक सरल रूप में सामाजिक परिस्थितियों का आंकलन करते हुए समाजशास्त्रीय उत्तर है। अपने पैतृक (मूल) स्थान में उपलब्ध संसाधनों, सेवाओं एवं आय के स्रोतों के प्रति सापेक्ष वंचना अर्थात दूसरे की तुलना में कमी का भाव। अपेक्षाकृत बेहतर संसाधनों, साधनों, सेवाओं एवं आय के नये-नये स्रोतों की प्राप्ति के अवसर उपलब्ध होने पर व्यक्ति अपना मूल स्थान छोड़कर परदेश या अन्य क्षेत्रों में जाता है। यह प्रत्येक कोण से सही हैं।

जब राज्यों में परिस्थितियाँ नागरिकों की जीवन-प्रत्याशा के अनुकूल नहीं रहती तब रोजगार का संकट उन्हें राज्य से पलायन हेतु विवश करता है। उनके पास वर्तमान परिस्थितियों में कोई अन्य उचित एवं सम्मानजनक विकल्प शेष नहीं बचता। वे राज्य जिनको सर्वोच्च बनाने में इन्हीं आप्रवासियों ने अहम भूमिका अदा की अपने सस्ते श्रम से, सहज उपलब्धता से। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में वही राज्य इनसे पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं। मजबूरन घर-वापसी हेतु मीलों चलते, दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे है। एक बात ये भी सच है कि किसी राज्य पर मंडरानेवाला कोई भी काला बादल देर-सबेर अन्यों को भी आच्छादित कर सकता हैं इसलिए आवश्यकता हैं इस सन्दर्भ में तार्किक, सहिष्णु, ईमानदार और वस्तुतः बौद्धिक दृष्टिकोण की। ‘‘श्रमेव जयते।’’

लेखिका डाॅ. नेहा जैन, पं. दीनदयाल उपाध्याय राज.म.स्ना. महाविद्यालय लखनऊ में समाजशास्त्र की विभागाध्यक्ष हैै

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कोरोना वायरस की कानपुर विकास प्राधिकरण में दस्तक

कानपुर विकास प्राधिकरण तक पहुंची ‘कोरोना वायरस’ की आंच

“केडीए सचिव के पीए परिवार समेत हुए होम क्वारन्टीन”

  • सचिव कार्यालय में तैनात लिपिक एवं पीए के करीबी रिश्तेदार और उनके तो पुत्रों की आई कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट
  • महकमे में मची खलबली
  • कर्मचारियों ने अफसरों समेत पूरे स्टाफ का कोरोना टेस्ट कराने और रिपोर्ट आने तक कार्यालय बंद रखने की मांग की
  • महकमे का एक कर्मचारी पहले से होम क्वारन्टीन
  • यूनियन नेता बचाऊ सिंह ने भी की थी टेस्ट की मांग

सरकारी रिपोर्ट में संक्रमितों का आंकड़ा 307


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नहीँ रहे शोभन सरकार बाबा

शोभन सरकार बाबा की अंतिम यात्रा शुरू , भक्त बाबा का पार्थिव शरीर लेकर आश्रम से निकले ।

हज़ारों टन खजाना होने का दावा कर चर्चा में आये साधु शोभन सरकार का आज हुआ था निधन।

साधु शोभन सरकार ने राजा राम बख्श सिंह के किले के एक हजार टन सोने का खजाना होने का किया था दावा।

साधू के दावे पर सरकार ने करायी थी उन्नाव के डौंडिया खेड़ा में खुदाई।

कानपुर देहात के शिवली में स्थित आश्रम में ली आखिरी सांस।

लंबी बीमारी के बाद हुआ निधन

आश्रम में भक्तो के पहुँचने का सिलसिला शुरू ।

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कानपुर मे कोरोना मामले में आज बड़ी राहत

कानपुर के लिए आज का दिन बड़ी राहत छोटी आफत लेकर आया ।

आज कोरोना संक्रमित 61 मरीज ठीक होने के बाद हुए डिस्चार्ज

अब तक कुल डिस्चार्ज हुए मरीज 161

कानपुर में आज कोरोना के 5 नए पॉजिटिव केस भी मिले।

कोरोना मरीजो आंकड़ा पहुंचा 307

कुल एक्टिव के 139

एक महिला की मौत कुल 7 मौत

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पत्रकारों को केंद्र सरकार का तोहफा

देश के सभी पत्रकारों के लिए केंद्र सरकार का तोहफा
‘पत्रकार वेलफेयर स्कीम’ में हुआ संशोधन
केंद्र सरकार ने लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को मजबूती प्रदान करने के लिए ‘पत्रकार वेलफेयर स्कीम’ में संशोधन कर दिया है। यह देशभर के सभी पत्रकारों के लिए लागू हो गया है। दरअसल केंद्र सरकार ने पत्रकारों के कल्याण के लिए इस स्कीम को फरवरी 2013 में लागू किया गया था। अब इसमें संशोधन किया गया है, जिसका फायदा सभी पत्रकार ले सकेंंगे
यदि किसी पत्रकार का निधन हो जाता तो सरकार 5 लाख की सहायता देगी। वहीं, इलाज के लिए भी पत्रकार को सरकार की ओर से 5 लाख रुपए की सहायता राशि दी जाएगी।
इस योजना की पात्रता के लिए एक समिति का गठन भी किया गया है, जिसके संरक्षक केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री होंगे। वहीं, विभाग के सचिव अध्यक्ष, प्रधान महानिदेशक, एएस एंड एएफ, संयुक्त सचिव समिति के सदस्य हैं। वहीं, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के उप सचिव अथवा निदेशक सदस्य संयोजक हैं।
इस समिति का काम होगा कि ये पीड़ित पत्रकार या फिर उनके परिजनों के आवेदन पर विचार करे तथा उसके मुताबिक आर्थिक सहायता देने का फैसला ले। इस योजना के तहत एक अच्छी बात यह है कि इसमें केंद्र या राज्य सरकार से अधिस्वीकृत पत्रकार होने का कोई बंधन नहीं है।
यह योजना पत्रकारों से संबंधित 1955 के एक अधिनियम “Working Journalists and other Newspaper Employes (Condition of service) And Miscellaneous Provision Act 1955” के तहत पत्रकार की श्रेणी में आने वाले देशभर के जर्नलिस्ट्स पर लागू किया गया है।
वेब और टीवी जर्नलिस्ट्स को भी होगा लाभ
वहीं, इस योजना का लाभ टेलीविजन और वेब जर्नलिस्ट्स भी ले सकेंगे। न्यूज पेपर्स के बाद टेलीविजन जगत में क्रांति आई और टीवी न्यूज चैनल्स की शुरुआत हुई, वहीं, अब वेब जर्नलिज्म का जमाना आ गया है और वेब पर भी पत्रकारिता की जा रही है।
इसके साथ ही सभी न्यूज पेपर्स के एडिटर, सब एडिटर, रिपोर्टर, फोटोग्राफर, कैमरामैन, फोटो जर्नलिस्ट, फ्रीलांस जर्नलिस्ट, अंशकालिक संवाददाता और उन पर आश्रित परिजनों को भी स्कीम के दायरे में रखा गया है। इसका लाभ लेने की शर्त यह है कि कम से कम 5 साल तक पत्रकार के रूप में सेवाएं दी गई हों। स्कीम के तहत यह जानकारी भी दी गई है कि एक से पांच लाख की सहायता किन परिस्थितियों में पीड़ित पत्रकार या उनके परिजनों को दी जाएगी!

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