केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा है कि कृषि को जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन किया जाना चाहिए ताकि कृषक समुदाय इससे लाभान्वित हो सके। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत जैसा अत्यधिक आबादी वाला देश शमन व लक्षित मीथेन कटौती की आड़ में खाद्य सुरक्षा पर समझौता नहीं कर सकता है।
समीक्षा बैठक में, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण सचिवमनोज अहूजा ने मंत्री तोमर को सीओपी बैठक के महत्व, जलवायु परिवर्तन व भारतीय कृषि पर लिए गए निर्णयों के प्रभाव के बारे में जानकारी दी।
मंत्रालय के एनआरएम डिवीजन के संयुक्त सचिव श्री फ्रैंकलिन एल. खोबुंग ने खाद्य सुरक्षा पहलुओं तथा भारतीय कृषि की स्थिरता के संबंध में जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर ऐतिहासिक निर्णयों और भारत के रूख पर विवरण प्रस्तुत किया। बैठक में डेयर के सचिव एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने भी अधिकारियों के साथ भाग लिया।
संयुक्त सचिव (एनआरएम) ने कार्बन क्रेडिट के महत्व को भी प्रस्तुत किया, जो जलवायु अनुकूल टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने के माध्यम से कृषि में उत्पन्न किया जा सकता है। राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (एनएमएसए) के अंतर्गत कृषि वानिकी, सूक्ष्म सिंचाई, फसल विविधीकरण, राष्ट्रीय बांस मिशन, प्राकृतिक/जैविक खेती, एकीकृत कृषि प्रणाली आदि जैसे अनेक उपायों का आयोजन किया गया है। मिट्टी में कार्बन को अनुक्रमित करने की क्षमता है जिससे जीएचजी व ग्लोबल वार्मिंग में योगदान कम हो जाता है।
श्री तोमर ने सुझाव दिया कि कार्बन क्रेडिट का लाभ कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय बीज निगम के बीज फार्मों और आईसीएआर संस्थानों में मॉडल फार्मों की स्थापना के माध्यम से किसानों तक पहुंचना चाहिए। उन्होंने कहा कि केवीके को कृषक समुदाय के बीच जागरूकता पैदा करने में भी शामिल होना चाहिए, ताकि किसानों की आय बढ़ाई जा सकें। कार्बन क्रेडिट, किसानों को सतत् कृषि का अभ्यास करने में प्रोत्साहन के लिए एक महत्वपूर्ण पहल हो सकती है। श्री तोमर ने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए कार्बन क्रेडिट के ज्ञान वाले किसानों को साथ लिया जा सकता है।