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बाल विवाह मुक्त उत्तराखंड के लिए मशाल जुलूस निकाला व शपथ ली

किसी सामाजिक मुद्दे पर पहले शायद ही देखी गई इस तरह की एकजुटता और उसके साथ सरकार के मार्गदर्शन के नतीजे में उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों में आयोजित किए गए जागरूकता कार्यक्रमों को अभूतपूर्व समर्थन मिला। महिलाओं के नेतृत्व में नैनीताल और देहरादून जिलों के गांवों में मशाल जुलूस निकाले गए और स्त्रियों, पुरुषों व बच्चों ने जाति-धर्म भूल कर राज्य से बाल विवाह के पूरी तरह खात्मे के लिए शपथ ली। इससे पहले, उत्तराखंड सहित कई राज्य सरकारों ने विभिन्न विभागों और अन्य हितधारकों को पत्र लिख कर उनसे बाल विवाह के खिलाफ अभियान में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने और राज्य को बाल विवाह मुक्त बनाने के लिए लोगों को शपथ दिलाने का निर्देश दिया था। नतीजे में कचहरी से लेकर पुलिस थानों, शहरों के चौराहों से लेकर गांव की चौपालों, पूरे देश में बच्चों से लेकर बाल विवाह की पीड़ित महिलाओं तक करोड़ों लोग इस अभियान से जुड़े और बाल विवाह के खिलाफ शपथ ली। पूरे देश में बाल विवाह मुक्त भारत अभियान 2030 तक बाल विवाह के पूरी तरह खात्मे के उद्देश्य से महिलाओं की अगुआई में 160 गैर सरकारी संगठनों द्वारा 300 से ज्यादा जिलों में चलाया जा रहा है।

तमाम तरह के जागरूकता कार्यक्रमों की वजह से उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में पूरे दिन उत्सव और उल्लास का माहौल रहा और शाम ढलने के बाद महिलाओं के नेतृत्व में मशाल जुलूस निकाला गया जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोगों ने ‘बाल विवाह बंद करो-बंद करो, बाल विवाह करवाओगे तो जाओगे जेल, मेरी बेटी अभी पढ़ेगी-ब्याह की शूली नहीं चढ़ेगी’ के नारों के साथ यह संदेश दिया कि अब इस राज्य में बाल विवाह के लिए कोई जगह नहीं है।
यूनीसेफ का अनुमान है कि अगर बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में भारत की प्रगति की यही दर जारी रही तो 2050 तक देश में लाखों और बच्चियों को बाल विवाह के दलदल में फंसने से नहीं बचाया जा सकता। लेकिन प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता भुवन ऋभु की किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन- टिपिंग प्वाइंट टू एंड चाइल्ड मैरेज’ जिसका अभियान के हिस्से के रूप में पिछले सप्ताह लोकार्पण किया गया 2030 तक ही बाल विवाह के खात्मे के लिए जरूरी टिपिंग प्वाइंट यानी वह बिंदु जहां से छोटे बदलावों और घटनाओं की श्रृंखला इतनी बड़ी हो जाती है जो एक बड़ा और आमूल परिवर्तन कर सकें, तक पहुंचने का खाका पेश करती है। इस किताब ने बाल विवाह मुक्त भारत अभियान से जुड़े 160 सहयोगी संगठनों की इस साझा लड़ाई को एक रणनीतिक औजार मुहैया कराया है और अभियान में नई जान फूंकी है। बाल विवाह की त्रासद सच्चाइयों और इसके दुष्परिणामों पर बेबाकी से बात करते हुए किताब कहती है, “बाल विवाह बच्चों से बलात्कार है। इसका परिणाम बाल गर्भावस्था के रूप में आता है जिसके नतीजे में बच्चे की मौत हो सकती है।”
सरकार के मार्गदर्शन में बाल विवाह मुक्त भारत अभियान को मिले अपार जनसमर्थन पर खुशी जाहिर करते हुए कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) के कंट्री हेड रवि कांत ने कहा, “बाल विवाह सदियों से हमारे सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा रहा है और कानूनन अपराध होने के बावजूद इस पर विराम नहीं लग पा रहा है। लेकिन समाज के सभी वर्गों से मिले अप्रत्याशित और अभूतपूर्व समर्थन को देखते हुए मुझे लगता है कि हम नया इतिहास रचने की दहलीज पर हैं। आज यह अभियान जंगल की आग की तरह फैल रहा है और राज्य सरकारों ने इसके लिए जैसी प्रतिबद्धता दिखाई है, हमारे बच्चे अंतत: शायद एक ऐसे देश में पलें-बढ़ें जहां उनके अधिकार सुरक्षित और संरक्षित हों। यह प्रशंसनीय है कि सभी राज्य सरकारें बाल विवाह के खात्मे के लक्ष्य पर काम कर रही हैं जो इसे एक नई रफ्तार और विश्वास दे रहा है।”
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (एनएफएचएस 2019-21) के आंकड़े बताते हैं कि देश में 20 से 24 के आयु वर्ग की 23.3 प्रतिशत लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले ही हो गया था जबकि उत्तराखंड में यह आंकड़ा 9.8 प्रतिशत है।