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सरकार 6.4 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे की पूर्ति के लिए बजट अनुमान को प्राप्त करने की राह पर

केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में ‘आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23’ पेश करते हुए बताया कि सरकार द्वारा परिकल्पित  राजकोषीय राह के अनुरूप केन्द्र सरकार के जीडीपी के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटे में क्रमिक गिरावट, पिछले दो वर्षों में राजस्व संग्रह में वृद्धि के माध्यम से सावधानीपूर्वक किए गए राजकोषीय प्रबंधन का परिणाम है।

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सर्वेक्षण के मुताबिक, राजकोषीय घाटे का वित्त वर्ष 2023 में जीडीपी के 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। परंपरागत बजट अनुमानों ने वैश्विक अनिश्चितताओं के दौरान एक बफर प्रदान किया। आर्थिक गतिविधियों में यह सुधार राजस्व में उछाल और बजट में व्यापक आर्थिक परिवर्तनों की परंपरागत धारणाओं के कारण राजकोषीय प्रदर्शन में यह लचीलापन आया है।

सकल कर राजस्व

सर्वेक्षण के अनुसार, अप्रैल से नवंबर 2022 तक सकल कर राजस्व में वर्ष दर वर्ष आधार पर 15.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है और राज्यों को निर्धारण करने के बाद केन्द्र के सकल कर राजस्व में वर्ष दर वर्ष आधार पर 7.9 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। जीएसटी की प्रस्तुति और आर्थिक लेन-देन के डिजिटलीकरण जैसे अवसंरचनागत सुधारों ने अर्थव्यवस्था को व्यापक स्तर पर ले जाने और इस प्रकार से सकल कर और कर अनुपालन को विस्तारित किया है। इस प्रकार से राजस्व में जीडीपी में वृद्धि की तुलना में अधिक गति के साथ वृद्धि हुई है।

आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक वित्त वर्ष 2022 में प्रत्यक्ष कर में कॉरपोरेट और व्यक्तिगत आय कर वृद्धि के कारण वर्ष दर वर्ष आधार पर 26 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। सर्वेक्षण के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2023 के पहले आठ महीनों के दौरान प्रमुख प्रत्यक्ष करों में देखी गई वृद्धि दर उनके दीर्घावधि औसत की तुलना में काफी अधिक थी।

सर्वेक्षण के अनुसार उच्च आयात के कारण अप्रैल से नवंबर 2022 तक सीमा शुल्क संग्रह में वर्ष दर वर्ष आधार पर 12.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष दर वर्ष आधार पर अप्रैल-नवंबर 2022 के दौरान उत्पाद शुल्क संग्रह में 20.9 प्रतिशत की गिरावट आई है।

जबरदस्त जीएसटी संग्रह

सर्वेक्षण के मुताबिक 2022 में जीएसटी करदाताओं की संख्या 70 लाख से दोगुना होकर 1.4 करोड़ पर पहुंच गई है। इस प्रकार से, इसमें 1.5 लाख करोड़ के औसत मासिक संग्रह के साथ वर्ष दर वर्ष आधार पर 24.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। समीक्षा के अनुसार तेजी से हुई यह आर्थिक रिकवरी हाल ही में किए गए कई प्रणालीगत परिवर्तनों जीएसटी चोरी करने वालों और फर्जी बिलों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान के साथ असंगत कर संरचना को सही करने के लिए किए गए विभिन्न तर्कसंगत उपायों के संयुक्त प्रभावों के कारण हुआ है।

विनिवेश

आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, पिछले तीन वर्षों के दौरान वैश्विक महामारी से उत्पन्न अनिश्चितता, भू-राजनीतिक संघर्ष और संबंधित जोखिमों ने सरकार की विनिवेश लेनदेन संबंधी योजनाओं और संभावनाओं के समक्ष चुनौतियां पेश की हैं फिर भी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023 में 65,000 करोड़ रुपये की बजट राशि में से 18 जनवरी, 2023 तक 48 प्रतिशत संग्रह किया गया है।

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार सरकार ने नई सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम नीति और आस्ति मुद्रीकरण रणनीति को लागू करके सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के निजीकरण और रणनीतिक विनिवेश के प्रति पुनः अपनी प्रतिबद्धता प्रकट की है।

पूंजीगत व्‍यय

सर्वेक्षण के अनुसार केन्‍द्र सरकार ने वित्‍त वर्ष 2022 पीए में पूंजीगत व्‍यय में जीडीपी के औसतन 2.5 प्रतिशत की निरंतर दीर्घकालिक वृद्धि की है। वित्‍त वर्ष 2023 में इसे सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी) के 2.9 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्‍य रखा गया है, जो पिछले वर्षों के दौरान राजकीय व्‍यय की गुणवत्‍ता में सुधार पर प्रकाश डालता है।

सर्वेक्षण में यह बताया गया है कि वित्‍त वर्ष 23 के लिए 7.5 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्‍यय का लक्ष्‍य रखा गया था, जिसमें अप्रैल से नवंबर 2022 के दौरान 59.6 प्रशितत से अधिक खर्च किया जा चुका है। इस अवधि के दौरान पूंजीगत व्‍यय में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 60 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है, जो वित्‍त वर्ष 2016 से वित्‍त वर्ष 2020 की इसी अवधि में दर्ज की गई 13.5 प्रतिशत की दीर्घकालिक औसत वृद्धि की तुलना में बहुत अधिक है। वित्‍त वर्ष 2022 में सड़क परिवहन और राजमार्गों को 1.5 लाख करोड़ रुपये, रेलवे को 1.2 लाख रुपये, रक्षा क्षेत्र को 0.7 लाख करोड़ रुपये और दूरसंचार क्षेत्र को 0.3 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए। इसे एक चक्रीय वित्‍तीय उपकरण के प्रतिस्‍थापन के रूप में लिया गया है, जो सकल मांग को बढ़ाने के साथ ही रोजगार सृजन करेगा और अन्‍य क्षेत्रों को बढ़ावा देगा।

सभी दिशाओं में कैपेक्‍स को बढ़ाने पर जोर देने के लिए केन्‍द्र ने लम्‍बी अवधि के ब्‍याज मुक्‍त ऋण और कैपेक्‍स से जुड़े अतिरिक्‍त उधार प्रावधानों के रूप में राज्‍यों के पूंजीगत व्‍यय को बढ़ावा देने के लिए कई प्रोत्‍साहनों की घोषणा की।

राजस्‍व व्‍यय

केन्‍द्र सरकार के राजस्‍व व्‍यय वित्‍त वर्ष 2021 में जीडीपी के 15.6 प्रतिशत से घटाकर वित्‍त वर्ष 2022 के अनुमानित वास्‍तविक (पीए) में जीडीपी का 13.5 प्रतिशत कर दिया गया था। अनुदान सहायता (सब्सिडी) व्‍यय में कमी के कारण इसे वित्‍त वर्ष 2021 में जीडीपी के 3.6 प्रतिशत से घटाकर वित्‍त वर्ष 2022 के अनुमानित वास्‍तविक में जीडीपी का 1.9 प्रतिशत कर दिया गया है। इसको आगे वित्‍त वर्ष 2023 में जीडीपी के 1.2 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्‍य रखा गया है। हालांकि, भू-राजनीतिक संघर्ष के आकस्मिक प्रकोप के परिणामस्‍वरूप खाद्य, उर्वरक और ईंधन के लिए उच्‍च अंतर्राष्‍ट्रीय कीमतें बढ़ी, जिसके चलते अप्रैल से नवम्‍बर 22 तक सब्सिडी पर बजटीय व्‍यय का लगभग 94.7 प्रतिशत उपयोग कर लिया गया है। परिणामस्‍वरूप अप्रैल से नवम्‍बर 2022 तक राजस्‍व व्‍यय में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान दर्ज की गई वृद्धि से अधिक है।

वैश्विक महामारी फैलने के बाद प्राप्तियों के अनुपात में ब्‍याज का भुगतान बढ़ गया, तथापि मध्‍यम अवधि में जैसे-जैसे हम राजकोषीय राह पर आगे बढ़ेंगे, राजस्‍व में वृद्धि, तीव्र आस्ति मुद्रीकरण, दक्षता लाभ और निजीकरण से सार्वजनिक ऋण का भुगतान करने में मदद मिलेगी। इस प्रकार ब्‍याज भुगतान में कमी आएगी और अन्‍य प्राथमिकताओं के लिए अधिक धन जारी होगा।

राज्य सरकारों के वित्त पर एक नजर

राज्यों का सकल वित्तीय घाटा (जीएफडी), जो वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी के 4.1 प्रतिशत तक बढ़ गया था, को वित्त वर्ष 2022 पीए में 2.8 तक नीचे लाया गया। भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं को देखते हुए, राज्यों के लिए कुल जीएफडी-जीडीपी अनुपात वित्त वर्ष 2023 के लिए 3.4 प्रतिशत बजट में प्रावधान किया गया। हालांकि अप्रैल-नवंबर 2022 से 27 बड़े राज्यों का कुल कर्ज, इस वर्ष के कुल बजट कर्ज के 33.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है। पिछले तीन वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि राज्यों ने कर्ज सीमा का उपयोग नहीं किया है।

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वित्त वर्ष 2022 पीए में राज्यों के लिए पूंजीगत आवंटन 31.7 प्रतिशत तक बढ़ गया। यह वृद्धि कुल राजस्व के बढ़ने तथा केंद्र द्वारा राज्यों को अग्रिम जारी भुगतान के द्वारा दिए गए समर्थन, जीएसटी क्षतिपूर्ति भुगतान और ब्याज रहित कर के कारण संभव हुआ।

केंद्र द्वारा राज्यों को धन अंतरण

केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी का अंतरण, वित्त आयोग अनुदान, केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाएं (सीएसएस) तथा अन्य धन अंतरण के साथ राज्यों को किया जाने वाला धन अंतरण वित्त वर्ष 2019 और वित्त वर्ष 2023 बीई के बीच बढ़ गया है। वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित आवंटन वित्त वर्ष 2023 के लिए 1.92 लाख करोड़ रुपये रहा है।

संकट के दौरान जीएसटी क्षतिपूर्ति भुगतान

राज्यों को दी जाने वाली जीएसटी क्षतिपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने नियमित जीएसटी क्षतिपूर्ति जारी करने के अलावा वित्त वर्ष 2021 और वित्त वर्ष 2022 के दौरान 2.69 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिया और इन्हें राज्यों को जारी किया। इसके अतिरिक्त, राज्यों को उपकर भुगतान और कर किस्त की अदायगी का अग्रिम भुगतान किया गया ताकि राज्यों को धनराशि तक पहुंच पहले प्राप्त हो सके। यद्यपि राज्यों को पूरे भुगतान के लिए नवंबर 2022 तक कुल उपकर संग्रह अपर्याप्त था। लेकिन केंद्र सरकार ने शेष धनराशि अपने स्त्रोतों से संग्रह करने के बाद जारी की।

राज्यों की कर्ज सीमा में वृद्धि और सुधारों के लिए प्रोत्साहन 

महामारी की शुरुआत के बाद, केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के कुल कर्ज सीमा को वित्तीय जवाबदेही कानून (एफआरएल) सीमा से ऊपर रखा है। वित्त वर्ष 2021 में जीएसडीपी के 5 प्रतिशत पर निर्धारित किया गया था, वित्त वर्ष 2022 के लिए 4 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2023 के लिए जीएसडीपी के 3.5 प्रतिशत पर निर्धारित किया गया था। इसका एक हिस्सा सुधारों से जुड़ा था जैसे एक राष्ट्र एक राशन कार्ड प्रणाली, कारोबार करने में आसानी में सुधार करना, शहरी स्थानीय निकाय/सेवा प्रदाता सुधार, बिजली क्षेत्र के सुधार आदि को लागू किया। इस सर्वेक्षण में विभिन्न राज्यों द्वारा इन सुधारों में हुई प्रगति का वर्णन किया गया है।

राज्यों के पूंजीगत व्यय के लिए केंद्र का समर्थन

वित्त 2021 और वित्त 2022 में राज्यों को क्रमशः 11,830 करोड़ रुपये और 14,186 करोड़ रुपये की धनराशि दी गई। यह धनराशि ‘राज्यों को पूंजीगत निवेश के लिए विशेष सहायता योजना’ के अंतर्गत राज्य सरकारों को 50 वर्ष के ब्याज रहित ऋण के रूप में जारी की गई थी। राज्यों की पूंजीगत व्यय योजनाओं को और समर्थन देने के लिए वित्त वर्ष 2023 के दौरान इस योजना के तहत आवंटन को बढ़ाकर 1.50 लाख करोड़ रुपये किया गया।

सरकार की कर्ज रूपरेखा

आईएमएफ ने वैश्विक सरकारी कर्ज 2022 में जीडीपी के 91 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया है जो महामारी पूर्व स्तर से 7.5 प्रतिशत अधिक है। इस वैश्विक पृष्ठभूमि में, केंद्र सरकार की कुल देयताएं वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी की 59.2 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2022 (पी) में 56.7 प्रतिशत रही।

आर्थिक सर्वेक्षण ने इस बात को रेखांकित किया है कि भारत की सार्वजनिक कर्ज रूपरेखा अपेक्षाकृत स्थिर रही है और इस संबंध में मौद्रिक तथा ब्याज दर को निम्न स्तर पर माना जा सकता है। मार्च 2021 के अंत तक, केंद्र सरकार की कुल देयताओं में से 95.1 प्रतिशत को घरेलू मुद्रा तथा शेष 4.9 प्रतिशत को सॉवरेन बाह्य कर्ज के रूप में परिणत किया गया, जिनसे मुद्रा जोखिम का स्तर निम्न रहा। इसके अतिरिक्त, सॉवेरन बाह्य कर्ज को पूरी तरह आधिकारिक स्त्रोतों से जुटाया गया है जो इसे अंतर्राष्ट्रीय पूंजी बाजार के उतार-चढ़ाव से बचाता है।

इसके अलावा, भारत का सार्वजनिक कर्ज प्राथमिक रूप से निश्चित ब्याज दरों के कारण घटा है, जिसमें मार्च 2021 के अंत तक आंतरिक कर्ज जीडीपी का केवल 1.7 प्रतिशत रहा है। इस प्रकार कर्ज धनराशि ब्याज दर के उतार-चढ़ाव के असर से बची रही।

सामान्य सरकारी वित्त का समेकन

महामारी के कारण केंद्र और राज्यों ने अतिरिक्त कर्ज लिये। जिसकी वजह से वित्त 2021 के दौरान जीडीपी के अनुपात में सामान्य सरकारी देयताओं में तेजी से वृद्धि हुई। हालांकि, यह अनुपात वित्त वर्ष 2022 (आरई) के उच्चतम स्तर से नीचे आया। जैसाकि आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है। जीडीपी के प्रतिशत के रूप में सामान्य सरकारी घाटे का वित्त वर्ष 2021 की उच्चतम सीमा के बाद समेकन हुआ है।

सरकारात्मक विकास-ब्याज दर अंतर

सर्वेक्षण कहता है कि पूंजीगत व्यय बढ़ाने पर जोर देने से जीडीपी विकास को प्रत्यक्ष तौर पर प्रोत्साहन मिलेगा और अप्रत्यक्ष तौर पर इसका गुणात्मक प्रभाव निजी खपत, व्यय और निजी निवेश पर पड़ेगा। जीडीपी की उच्च विकास दर मध्यम अवधि के दौरान अधिक राजस्व संग्रह को प्रोत्साहित करेगी। जिससे स्थायी राजकोषीय मार्ग सक्षम होगा। जीडीपी अनुपात के रूप में सामान्य सरकारी कर्ज मार्च 2020 के अंत के 75.7 प्रतिशत के मुकाबले महामारी वर्ष 2021 के अंत तक 89.6 प्रतिशत तक बढ़ गया। उम्मीद है कि मार्च 2022 के अंत तक यह कम होकर जीडीपी के 84.5 प्रतिशत तक रह जाएगा। पूंजीगत व्यय आधारित विकास पर जोर देने से विकास-ब्याज दर को सकारात्मक बनाये रखने में भारत को सक्षम बनायेगा। विकास-ब्याज दर सकारात्मक कर्ज स्तरों को सतत स्वरूप प्रदान करता है।

2005-2021 के दौरान विभिन्न देशों में सामान्य सरकारी कर्ज और जीडीपी के अनुपात में व्यापक बदलाव हुए हैं। भारत के लिए यह वृद्धि सामान्य रही है जो 2005 में जीडीपी के 81 प्रतिशत से 2021 में जीडीपी के 84 प्रतिशत तक रही। ऐसा पिछले 15 वर्षों में निरंतर आर्थिक विकास के कारण संभव हुआ है जिससे विकास-ब्याज दर सकारात्मक रही। जिसका प्रभाव जीडीपी स्तरों पर सरकारी कर्ज को सतत बनाये रखने पर पड़ा।

चित्र- विभिन्न देशों में 2005 से 2021 के दौरान सामान्य सरकारी ऋण और जीडीपी अनुपात की तुलनात्मक स्थिति

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