प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने गन्ना उत्पादक किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए, चीनी सीजन 2022-23 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए 10.25 प्रतिशत की मूल रिकवरी दर के लिए गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 305 रुपये प्रति क्विंटल को मंजूरी दे दी है। इससे 10.25 प्रतिशत से अधिक की रिकवरी में प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की वृद्धि के लिए 3.05 रुपये/ क्विंटल का प्रीमियम मिलेगा और रिकवरी में प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की कमी के लिए 3.05 रुपये प्रति/क्विंटल की दर से उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में कमी होगी। हालांकि, सरकार ने गन्ना उत्पादक किसानों के हितों की रक्षा के लिए यह भी निर्णय लिया है कि चीनी मिलों के मामले में कोई कटौती नहीं होगी, जहां रिकवरी 9.5 प्रतिशत से कम है। ऐसे किसानों को वर्तमान चीनी सीजन 2021-22 में 275.50 रुपये प्रति क्विंटल स्थान पर आगामी चीनी सीजन 2022-23 में गन्ने के लिए 282.125 रुपये/क्विंटल मिलेगा।
चीनी सीजन 2022-23 के लिए गन्ने के उत्पादन की A2 + FL लागत (यानी वास्तविक भुगतान की गई लागत के साथ पारिवारिक श्रम का मूल्य) 162 रुपये प्रति क्विंटल है। 10.25 प्रतिशत की भरपाई दर पर 305 रुपये प्रति क्विंटल का यह एफआरपी उत्पादन लागत से 88.3 प्रतिशत अधिक है। यह किसानों को उनकी लागत पर 50 प्रतिशत से अधिक का लाभ प्रदान करने का वादा सुनिश्चित करता है। चीनी सीजन 2022-23 के लिए एफआरपी मौजूदा चीनी सीजन 2021-22 की तुलना में 2.6 प्रतिशत अधिक है।
केंद्र सरकार की सक्रिय नीतियों के कारण, गन्ने की खेती और चीनी उद्योग पिछले 8 वर्षों में एक लंबा सफर तय कर चुके हैं और अब आत्मनिर्भरता के स्तर पर पहुंच गए हैं। यह समय पर सरकारी हस्तक्षेप और चीनी उद्योग, राज्य सरकारों, केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के साथ-साथ किसानों के साथ सहयोग का परिणाम है। हाल के वर्षों में चीनी क्षेत्र के लिए सरकार द्वारा किए गए मुख्य उपाय:
• गन्ने के एफआरपी को गन्ने के उत्पादकों के लिए एक गारंटीकृत मूल्य सुनिश्चित करने के लिए तय किया गया है।
• सरकार ने पिछले 8 वर्षों में एफआरपी में 34 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की है।
• सरकार ने चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) की संकल्पना को भी प्रस्तुत किया है ताकि चीनी की पूर्व-मिल कीमतों में गिरावट और गन्ना बकाया के संचय को रोकने के लिए (एमएसपी शुरुआत में 29 रुपये प्रति किलोग्राम 07 जून 2018 से प्रभावी रूप से लागू करने के लिए तय किया गया; संशोधित 31 रुपये प्रति किलोग्राम 14 फरवरी 2019 से प्रभावी।
• चीनी मिलों के निर्यात की सुविधा के लिए, बफर स्टॉक को बनाए रखने के लिए, इथेनॉल उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए और किसानों के बकाया भुगतान के लिए चीनी मिलों को 18,000 करोड़ रुपये से अधिक की वित्तीय सहायता।
• अधिशेष चीनी को इथेनॉल के उत्पादन में बदलकर चीनी मिलों की वित्तीय स्थितियों में सुधार किया। नतीजतन, वे गन्ने के बकायों का जल्दी से भुगतान करने में सक्षम हैं।
• चीनी के निर्यात और चीनी को इथेनॉल में बदलने के कारण, चीनी क्षेत्र आत्मनिर्भर हो गया है और मिलों की तरलता में सुधार हेतु निर्यात व बफर के लिए बजटीय समर्थन करने की आवश्यकता नहीं है
इसके अलावा, पिछले कुछ शुगर सीजनों के दौरान चीनी क्षेत्र के लिए किए गए विभिन्न अन्य उपायों के कारण, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ गन्ने की उच्च उपज देने वाली किस्मों के उपयोग की शुरुआत, ड्रिप सिंचाई प्रणाली को अपनाना, चीनी संयंत्र का आधुनिकीकरण और अन्य अनुसंधान एवं विकास गतिविधियां, गन्ने की खेती का क्षेत्र, गन्ने का उत्पादन, गन्ने की तराई, चीनी उत्पादन और इसका रिकवरी प्रतिशत व किसानों को भुगतान में काफी वृद्धि शामिल है।
किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध
इस निर्णय से 5 करोड़ गन्ना उत्पादक किसानों और उनके आश्रितों के साथ-साथ चीनी मिलों और संबंधित सहायक गतिविधियों में कार्यरत 5 लाख श्रमिकों को लाभ होगा। 9 साल पहले, 2013-14 चीनी सीजन में एफआरपी सिर्फ 210 रुपये प्रति क्विंटल था और सिर्फ 2397 एलएमटी गन्ना चीनी मिलों द्वारा खरीदा गया था। किसानों को केवल गन्ने की बिक्री से चीनी मिलों से सिर्फ 51,000 करोड़ मिलते थे। हालांकि, पिछले 8 वर्षों में सरकार ने एफआरपी में 34 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की है। वर्तमान चीनी सीज़न 2021-22 में, चीनी मिलों द्वारा लगभग 3,530 लाख टन गन्ना खरीदा गया जिसकी कीमत 1,15,196 करोड़ रुपये है, जो अब तक सबसे अधिक है।
आगामी चीनी सीजन 2022-23 में गन्ने के रकबे और अपेक्षित उत्पादन में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए, 3,600 लाख टन से अधिक गन्ने को चीनी मिलों द्वारा खरीदे जाने की संभावना है, जिसके लिए गन्ने के किसानों को भुगतान की जाने वाली कुल रकम 1,20,000 करोड़ रुपये से अधिक होने की उम्मीद है। सरकार किसान समर्थक उपायों के माध्यम से यह सुनिश्चित करेगी कि गन्ने के किसानों को समय पर उनका बकाया मिले।
पिछले चीनी सीजन 2020-21 में लगभग 92,938 करोड़ रुपये का गन्ना बकाया देय था, जिसमें से 92,710 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है और केवल 228 करोड़ रुपये बकाया हैं। वर्तमान चीनी सीजन 2021-22 में 1,15,196 करोड़ रुपये में से किसानों को 1,05,322 करोड़ रुपये गन्ने के बकाया का भुगतान किया गया, 01 अगस्त 2022 तक; इस प्रकार 91.42 प्रतिशत गन्ना बकाया का भुगतान कर दिया गया है जो कि पिछले चीनी सीजनों की तुलना में अधिक है।
भारत- दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक:
भारत ने वर्तमान चीनी सीजन के दौरान चीनी उत्पादन में ब्राजील को पीछे छोड़ दिया है। पिछले 8 वर्षों में चीनी के उत्पादन में वृद्धि के साथ, भारत घरेलू खपत के लिए अपनी आवश्यकता को पूरा करते हुए चीनी का निरंतर निर्यात भी कर रहा है, जिससे हमारे राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद मिली है। पिछले 4 चीनी सीजन; 2017-18, 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के दौरान क्रमशः 6 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी), 38 एलएमटी, 59.60 एलएमटी और 70 एलएमटी चीनी का निर्यात किया गया है। वर्तमान चीनी सीजन 2021-22 में 01 अगस्त 2022 तक लगभग 100 एलएमटी चीनी का निर्यात किया गया है और कुल निर्यात लगभग 112 एलएमटी तक होने की संभावना है।
गन्ना किसान और चीनी उद्योग अब ऊर्जा क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं:
भारत के कच्चे तेल की कुल आवश्यकता का 85 प्रतिशत आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है। लेकिन कच्चे तेल पर आयात बिल को कम करने, प्रदूषण को कम करने और देश को पेट्रोलियम क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए, सरकार पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रित कार्यक्रम के तहत इथेनॉल के उत्पादन और पेट्रोल के साथ इथेनॉल के मिश्रण को बढ़ाने के मार्ग पर सक्रिय रूप से आगे बढ़ रही है। सरकार चीनी मिलों को अतिरिक्त गन्ने को इथेनॉल में बदलने के लिए प्रोत्साहित कर रही है, ताकि इसे पेट्रोल के साथ मिश्रित किया जा सके, जो न केवल हरित ईंधन के रूप में कार्य करता है, बल्कि यह कच्चे तेल के आयात पर खर्च की जाने वाली विदेशी मुद्रा की भी बचत करेगा। चीनी सीजन 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के दौरान क्रमशः लगभग 3.37 एलएमटी, 9.26 एलएमटी और 22 एलएमटी चीनी को इथेनॉल में बदला गया। वर्तमान चीनी सीजन 2021-22 में, लगभग 35 एलएमटी चीनी को इथेनॉल में बदले जाने का अनुमान है और 2025-26 तक 60 एलएमटी से अधिक चीनी को इथेनॉल में बदलने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जो अतिरिक्त गन्ने की समस्या के साथ-साथ विलंब से होने वाले भुगतान का भी समाधान करेगा, क्योंकि गन्ना किसानों को समय पर भुगतान प्राप्त होगा।
सरकार ने 2022 तक पेट्रोल के साथ ईंधन ग्रेड इथेनॉल के 10 प्रतिशत मिश्रण का और 2025 तक 20 प्रतिशत मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया है ।
वर्ष 2014 तक, शीरा (मोलासेज) आधारित डिस्टिलरियों की इथेनॉल की आसवन (डिस्टिलेशन) क्षमता सिर्फ 215 करोड़ लीटर की थी। हालांकि, पिछले आठ वर्षों में सरकार द्वारा किए गए नीतिगत बदलावों के कारण, शीरा आधारित डिस्टिलरियों की यह क्षमता बढ़कर 595 करोड़ लीटर की हो गई है। अनाज आधारित डिस्टिलरियों की जो क्षमता 2014 में लगभग 206 करोड़ लीटर की थी, वो अब बढ़कर 298 करोड़ लीटर की हो गई है। इस प्रकार, पिछले आठ वर्षों में इथेनॉल उत्पादन की कुल क्षमता 2014 में 421 करोड़ लीटर से दोगुनी होकर जुलाई 2022 में 893 करोड़ लीटर की हो गई है। सरकार इथेनॉल उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी के उद्देश्य से चीनी मिलों/डिस्टिलरी को बैंकों से लिए गए ऋण के लिए ब्याज अनुदान भी दे रही है। इथेनॉल क्षेत्र में लगभग 41,000 करोड़ का निवेश किया जा रहा है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (ईएसवाई) 2013-14 में, तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को इथेनॉल की आपूर्ति महज 38 करोड़ लीटर की थी जिसमें मिश्रण का स्तर सिर्फ 1.53 प्रतिशत का था। ईंधन ग्रेड इथेनॉल का उत्पादन और तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को इसकी आपूर्ति 2013-14 की तुलना में आठ गुना बढ़ गई है। इथेनॉल आपूर्ति वर्ष 2020-21 (दिसंबर-नवंबर) में, 8.1 प्रतिशत के मिश्रण स्तर को हासिल करते हुए तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को लगभग 302.30 करोड़ लीटर इथेनॉल की आपूर्ति की गई है। वर्तमान इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (ईएसवाई) 2021-22 में, हम 10.17 प्रतिशत का मिश्रण स्तर हासिल करने में सक्षम हैं। वर्तमान इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (ईएसवाई) 2021-22 में पेट्रोल के साथ मिश्रण के लिए चीनी मिलों/डिस्टिलरीज द्वारा 400 करोड़ लीटर से अधिक इथेनॉल की आपूर्ति किए जाने की संभावना है, जोकि वर्ष 2013-14 में की गई आपूर्ति की तुलना में 10 गुना होगी।
चीनी उद्योग आत्मनिर्भर बना :
कुछ समय पहले तक, चीनी मिलों की आय मुख्य रूप से चीनी की बिक्री पर निर्भर थीं। किसी भी सीजन में अतिरिक्त उत्पादन का उनकी भुगतान क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे गन्ना उत्पादक किसानों की धनराशि बकाया हो जाती है। उनकी भुगतान क्षमता में सुधार के लिए समय-समय पर सरकारी हस्तक्षेप किए गए। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में अतिरिक्त चीनी के निर्यात को प्रोत्साहित करने और चीनी को इथेनॉल में बदलने सहित केंद्र सरकार की सक्रिय नीतियों के कारण, चीनी उद्योग अब आत्मनिर्भर हो गया है।
चीनी मिलों ने 2013-14 से तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को इथेनॉल की बिक्री से लगभग 49,000 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। वर्तमान चीनी सीजन 2021-22 में चीनी मिलों द्वारा ओएमसी को लगभग 20,000 करोड़ रुपये मूल्य के इथेनॉल की बिक्री की जा रही है, जिससे चीनी मिलों की भुगतान क्षमता में सुधार हुआ है और वे किसानों को गन्ना की बकाया धनराशि का भुगतान करने में सक्षम हैं। चीनी और उसके सह-उत्पादों की बिक्री, ओएमसी को इथेनॉल की आपूर्ति, बैगेस आधारित सह-उत्पादन संयंत्रों से बिजली उत्पादन और प्रेस मिट्टी से उत्पादित पोटाश की बिक्री से आय होने से चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति में अनेक माध्यम से सुधार हुआ है।
केंद्र सरकार द्वारा किए गए उपायों और एफआरपी में वृद्धि से किसानों को गन्ने की खेती के लिए प्रोत्साहित किया गया है और चीनी के घरेलू उत्पादन के लिए चीनी मिलों के निरंतर संचालन की सुविधा मिली है। चीनी उद्योग के लिए सरकार द्वारा बनाई गई सकारात्मक नीतियों के परिणामस्वरूप भारत भी अब ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनता जा रहा है।