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कुछ ख्याल अलग से

कुछ अलग से ख्याल…

कैद किया था आंखों के रास्ते से
मगर मसला रिहाई का था,
रिहा कर दिया आंखों के ही रास्ते से
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बड़े बेमुरव्वत से होते हैं ये दिल के रिश्ते
एहसासों की जमीं पर “नील की खेती” से रिश्ते
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चांद हौले से झांक गया मेरे झरोखे को
मैं मुद्दतों इंतजार करती रही उसकी रौशनी को
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इंतजार अब भी रहता है मेरी शिकायतों का
ये जुदा बात है कि अंदाज-ए-सलीका नहीं आता शिकायतों का

:: प्रियंका वर्मा