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ज़िंदगी ही लिखती हूं * सुनीता कौल

#जिंदगी ही लिखती हूं

कोशिश बहुत करती हूं
कुछ भारी शब्दो को लिखूं
साहित्य की भाषा चुनूं
कुछ महादेवी सा,कुछ सरोजनी सा
कुछ कबीर सा, कुछ रहीम सा

कुछ दोहे,कुछ मुक्तक
कुछ गजलें,कुछ शायरी
पर कुछ लिखा ही नहीं जाता
दिल को बस दिल का
हाल समझ आता

हम तो बस जिंदगी लिख देतें है
लोग उसे कविता कह देते है
हां बहुत खामियां हैं मुझमें
पर जिंदगी कहां
परफेक्ट हुए करतीं हैं
कभी मात्रा ऊपर
तो कभी नीचे रहा करती हैं

हम बस दिल का हाल सुना देते हैं
कुछ मिलते जुलते जज्बात बता देते हैं
कुछ अपनी कहते हैं
कुछ तुम सब के हाल बता देते हैं

चाह नहीं कि

साहित्यकारों सा नाम कमाऊं
बस तुम सब के बीच रहकर
❤️ दिल में उतरती जाऊं