Breaking News

अंतर्विरोध (लघु कथा)

सुबह से ही रसोई में नाना प्रकार के पकवान बनने की तैयारियां हो रही थी. कभी रसोई में न जाने वाली ‘कुसुम’ अपनी ‘मेड’ लक्ष्मी को समझा रही थी- “लक्ष्मी, कचौरियां खूब स्वादिष्ट होनी चाहिए… और दही बड़े रूई जैसे मुलायम मटर पनीर चटपटी, दादी को स्वादिष्ट खाना बहुत पसंद था, वो खुद भी बहुत अच्छा बनाती थीं, मैंने तो २५ साल उनके हाथ का खाना खाया है,और हाँ, भरवां बैगन और खीर ज़रूर बनाना.

(डॉ रानी वर्मा )

‘सोना’ को माँ की बातों में एक अजीब सा उत्साह व दादी के प्रति अपार लगाव, जुड़ाव, सेवा-भाव दिखाई दे रहा था. वह आश्चर्य चकित थी! ऐसा क्या हो गया? कैसे माँ के मन में दादी के प्रति इतना प्रेम उमड़ रहा है? आखिरकार उसने पूछ ही लिया, “ माँ, आज ऐसा क्या है? इतने पकवान बन रहे हैं और विशेष रूप से दादी की पसंद के?” कुसुम बड़े गर्व से सर उठा कर बोल पड़ी, अरे सोना, “आज मातृ-नवमी है, तेरी दादी का श्राद्, आज के दिन ब्राह्मणी को भोजन कराने से पुन्य मिलता है, पितृदोष दूर होता है, इसीलिए आज तेरी दादी की पसंद के पकवान बन रहे हैं, तेरी दादी खुश होकर आशीर्वाद देंगी और हमें पितृदोष नहीं लगेगा.”

सोना हतप्रभ थी. अतीत की धुंधली स्मृतियाँ उसके मानस-पटल पर अंकित होने लगीं. जब असहाय दादी बिस्तर पर पड़े-पड़े खाने के लिए मांगती, तो माँ अक्सर झिड़क दिया करती, “सारा दिन बिस्तर पर पड़े-पड़े खाओगी तो पचेगा कैसे?” बेस्वाद सब्जी, कड़े-कड़े दही बड़े, मोटी–मोटी रोटी, जो दादी अपने पोपले मुंह से खा भी नहीं पाती थी, माँ उन्हें खाने को देती. दादी ठीक से खा भी नहीं पाती, लेकिन माँ को कोई फर्क नहीं पड़ता, वह मुंह बिचका कर, सिर झटकते हुए, ‘उहं’ कह कर अपने बेड-रूम में चली जाती.

माँ की तीखी आवाज़ से सोना का ध्यान टूटा, “सोना, दादी के पलंग पर नई चादर, जो मैं कल लाई हूँ, पंडिताइन को देने के लिए, वो बिछा दे…, और वह साड़ी का पैकेट भी वहीँ रख दे”, कुसुम बोले जा रही थी और सोना को दादी की मैली-कुचैली, फटी धोती और पलंग पर महीनों से बिछी पुरानी चादर याद आ रही थी. दादी जब चादर बदलने को कहती, माँ फटकार देती –“ क्या करोगी चादर बदलवा कर? दिन भर ऐसे ही तो पड़े रहना है. कौन आ रहा है आपके कमरे में जो चादर देखेगा?” दादी आँखों में आंसू भरे, करवट लिए चुपचाप पड़ी रहती.

पंडिताइन के लिए ऐसी आवभगत, स्वागत-सत्कार की तैयारी देख कर सोना का मन स्वार्थ और आडम्बर के सामाजिक अंतर्विरोध की अतल गहराइयों में डूबने लगा, उसका मन चीख-चीख कर पूछ रहा था ‘माँ, ऐसी सेवा और सत्कार दादी को जीवित रहते क्यों नहीं मिला?’

(डॉ रानी वर्मा: 10 अक्टूबर 2020)