मेरी किस्मत के पन्ने में जहाँ पर ‘प्यार’ लिक्खा था,
गुलाबी रात लिक्खी थी, जहाँ इज़हार लिक्खा था,
महकती चाँदनी में कुछ हंसी जज़्बात लिक्खे थे,
लरजते-कंपकपाते से कई अल्फाज़ लिक्खे थे,
दिया था खूबसूरत मोड़ किस्मत ने कहानी को,
वहां मुड़ना गवारा ही नही था जिंदगानी को,
थी करनी तर्जुमानी मुझको अपने दिल की धड़कन की,
किसी के प्यार मे भीगे हुये मदहोश सावन की,
मगर राहे सफर में ख़्वाब पूरा हो नही पाया
मैं बस चलती रही यूँ ही मगर वो दौर न आया,
जहाँ पर प्यार मिलने की बड़ी ही आस थी मुझको,
वहाँ पर सिर्फ तन्हाई बिठाये पास थी मुझको,
वो पन्ना जिंदगी की धूप में फीका लगा पड़ने,
थे जितने रंग उलफत के वो आंखों में लगे गड़ने,
मेरी हसरत के जितने फूल थे कुम्हला गये सारे,
हकीकत की तपिश को छू के वो मुरझा गये सारे,
मैं कब तक रेत के दरिया में पानी के निशां ढूँढू
जमीं मन की भिगो पाये, मैं वो बादल कहाँ ढूँढू
कि अब ख्वाबों में ही उस दौर का दीदार होता है,
मिला है इंतजार औ ग़म, यही क्या प्यार होता है?