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पूंछ रहा बचपन

नन्हें पांव राह पथरीली थामे है बस माँ की उंगली मुरझाए फूलों सा बचपन पूँछ रहा है बार बार माँ अभी गांव है कितनी दूर।

पांवों के तलवे है जलते गर्म हवा के झोंके खलते कुम्हलाये होंठोँ से बचपन पूँछ रहा है बार बार माँ अभी गाँव है कितनी दूर।
कुछ छूटा कुछ साथ बटोरा, थाली चम्मच और कटोरा, घर की याद में खोया बचपन पूँछ रहा है बार बार माँ अभी गाँव है कितनी दूर।
कल से रोटी मिली नहीं है पानी की बोतल टूट गई है पेट की आग समेटे बचपन पूँछ रहा है बार बार माँ अभी गाँव है कितनी दूर।
बाप के काँधे बोझ है भारी बहन बिमारी से है हारी, मैं किस ओर निहारूं बचपन पूँछ रहा है बार बार माँ अभी गाँव है कितनी दूर।

पहले दूरी इतनी ना थी गाँव की राहें मुश्किल ना थी, पोर पोर तक टूटा बचपन, पूँछ रहा है बार बार मां अभी गाँव है कितनी दूर।

गाँव में प्यारा घर है अपना देखा है ये सुन्दर सपना इसको सच मैं मानूँ?? बचपन पूँछ रहा है बारबार माँ अभी गांव है कितनी दूर?