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विविधा

‘‘आधुनिक शिक्षा एवं अनुशासित जीवन के मूल मंत्र

लखनऊ 10 अक्टूबर भारतीय स्वरूप संवाददाता, राम प्रसाद बिस्मिल मेमोरियल पब्लिक स्कूल, काकोरी, लखनऊ के तत्त्वावधान में नक्षत्र फाउण्डेशन द्वारा ‘‘आधुनिक शिक्षा एवं अनुशासित जीवन के मूल मंत्र ‘‘ विषयक शैक्षिक दक्षता वृद्धि व्याख्यानमाला की द्वितीय प्रस्तुति का आयोजन किया गया। उक्त व्याख्यानमाला में वक्ता के रूप में डा0 सतीश तिवारी, असिस्टेंट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ दर्शन एवं संस्कृति, श्री माता वैष्णो देवी विश्वविद्यालय, कटरा, जम्मू और कश्मीर, विद्यालय के प्रबंधक मो0 इरफान हुसैन, विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती विनीता अग्निहोत्री, नक्षत्र फाउण्डेशन से सुश्री सोनम सिंह उपस्थित रहे।

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एस ऍन सेन बी वी पी जी कॉलेज में “मेरी माटी मेरा देश अभियान’’ के अंतर्गत कार्यक्रम अयोजित

कानपुर 10 अक्टूबर भारतीय स्वरूप संवाददाता, भारत सरकार युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय, युवा कार्यक्रम विभाग रा.से.यो. क्षेत्रीय निदेशालय लखनऊ व एन.एस.एस. प्रभाग नई दिल्ली के पत्रानुसार ’’मेरी माटी मेरा देश अभियान’’ एस ऍन सेन बी वी पी जी कॉलेज में प्रारम्भ किया गया। जिसके अन्तर्गत महाविद्यालय की ऍन एस एस इकाई की स्वयंसेविकाओं से घर के प्रांगण से एक मुट्ठी मिट्टी व एक मुट्ठी चावल मंगाये गये। सर्वप्रथम महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. सुमन द्वारा पंच प्रण की शपथ समस्त प्राध्यापक, कर्मचारियों व छात्र-छात्राओं को दिलायी गई। महाविद्यालय की ऍन एस एस इकाई की कार्यक्रम अधिकारी प्रो चित्रा सिंह तोमर ने कहा हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत की मिट्टी के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी। आज भारत के प्रत्येक गाॅंव, शहर की मिट्टी व चावल एकत्र किये जा रहे है। जिसे जिला स्तर पर ससम्मान पहुंचाया जायेगा। इसके उपरान्त प्राचार्य समस्त शिक्षिकाओं एवं कर्मचारियों द्वारा एक कलश में मिट्टी व एक कलश में चावलों का संग्रह किया गया। एवम ऍन एस एस यूनिट की स्वयंसेविकाओं द्वारा महाविद्यालय में सफाई का कार्य भी किया गया। एस एन सेन बालिका विद्यालया पी जी कॉलेज, कानपुर में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के द्वारा “मेरी माटी मेरा देश – अमृत कलश यात्रा” का आयोजन किया गया जिसमें समस्त शिक्षिकाओं, कर्मचारियों ने भी भाग लिया तथा माटी को वंदन व वीरों को नमन करते हुए पंच प्रण की शपथ ली।

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दयानंद गर्ल्स पी जी कॉलेज में मेरी माटी मेरा देश – अमृत कलश यात्रा” के अंतर्गत अलग-अलग शहीद स्थलों एवम् स्मारकों की मिट्टियों को लाकर अमृत कलश में एकत्रित किया गया

कानपुर 10 अक्टूबर भारतीय स्वरूप संवाददाता, दयानंद गर्ल्स पी जी कॉलेज, कानपुर में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के द्वारा कार्यक्रम अधिकारी डॉ संगीता सिरोही के निर्देशन में “मेरी माटी मेरा देश – अमृत कलश यात्रा” के अंतर्गत एनएसएस वॉलिंटियर्स के द्वारा कानपुर के अलग-अलग शहीद स्थलों एवम् स्मारकों की मिट्टियों को लाकर अमृत कलश में एकत्रित किया गया तथा माटी को वंदन व वीरों को नमन करते हुए पंच प्रण की शपथ ली गई। प्राचार्य प्रोफेसर अर्चना वर्मा जी ने अपने उद्बोधन में छात्राओं को कहा कि उनके द्वारा मेरी माटी मेरा देश अभियान के अंतर्गत किए जा रहे कार्य अत्यधिक सराहनीय व प्रशंसनीय हैं इससे छात्राओं में देशभक्ति की भावना का संचार होता है जिससे उनके अंदर नैतिक मूल्य सर्जित होते हैं। कार्यक्रम में कार्यालय अधीक्षक कृष्णेंद्र श्रीवास्तव, दर्शनशास्त्र की प्रभारी डॉ सुचेता शुक्ला एनएसएस की समस्त वॉलिंटियर्स ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

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एंबुलेंस व फायर ब्रिगेड को रास्ता न दिया तो कारवाई

-पुलिस आयुक्त डॉ.आर. के. स्वर्णकार ने जारी किया आदेश*

*एंबुलेंस एवं अग्निशमन वाहन को प्राथमिकता के आधार पर कराना है पास*
*-ताकि जाम में फंसकर इलाज के अभाव में फिर न जाए किसी की जान*

कानपुर नगर जिला सू कार्यालय, एंबुलेंस एवं अग्निशमन वाहन को प्राथमिकता के आधार पर पास कराना है। यह जिम्मेदारी प्रत्येक जोन की यातायात व्यवस्था में लगे प्रत्येक पुलिसकर्मी की है। सभी जोन के डीसीपी और डीसीपी यातायात इसका गंभीरता से पालन कराना सुनिश्चित करें। यह आदेश पुलिस आयुक्त डॉ आर के स्वर्णकार ने जारी किया है ताकि फिर किसी जरूरतमंद की जान जाम में फंसने से इलाज के अभाव में न जाए।

*पुलिस आयुक्त डॉ आर के स्वर्णकार द्वारा जारी आदेश के अनुसार*-

1-एम्बुलेन्स एवं अग्निशमन वाहन को रास्ता न देने वाले वाहनों का नियमानुसार चालान करते हुए वाहन चालक के विरूद्ध आवश्यक वैधानिक कार्यवाही करें।
2-चेक किया जाये कि उक्त प्रकार के वाहनों को कौन रास्ता नहीं दे रहा है।
3-यह सुनिश्चित किया जाये कि ड्यूटीरत पुलिस कर्मी एम्बुलेन्स एवं अग्निशमन वाहन को प्राथमिकता के
आधार पर रास्ता दिलायें, किसी भी परिस्थिति में एम्बुलेन्स एवं अग्निशमन वाहन जाम में न फंसने पायें।

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दयानंद गर्ल्स पी जी कॉलेज में “भूगोल में भौगोलिक सूचना प्रणाली एवं सुदूर संवेदन तकनीक पर व्याख्यान आयोजित”

कानपुर 9 अक्टूबर भारतीय स्वरूप संवाददाता, दयानंद गर्ल्स पी जी कॉलेज, कानपुर में भूगोल विभाग द्वारा एकदिवसीय व्याख्यान आयोजित किया गया। व्याख्यान के मुख्य वक्ता डॉ मंजीव विश्वकर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर, डी बी एस कॉलेज, कानपुर ने भौगोलिक सूचना प्रणाली एवं सुदूर संवेदन तकनीक के उपयोग पर प्रकाश डालते हुए महत्वपूर्ण जानकारियां देते हुए कहा कि यह भौगोलिक शोध एवम् अन्वेषण की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि रिमोट सेंसिंग संवेदकों के माध्यम से पृथ्वी के सतह से डाटा जमा करने का काम करता है जबकि जी आई एस डाटा एकीकरण और क्षैतिज विश्लेषण के लिए एक उपकरण होता है। इसका प्रयोग जैव वातावरण की मॉनिटरिंग, आपदा प्रबंधन, रिसोर्स मैनेजमेंट, जलवायु परिवर्तन विश्लेषण, शहरी विकास योजना, यातायात, दूरसंचार, कानून व्यवस्था और स्वास्थ्य समेत अनेक क्षेत्रों में किया जाता है। महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर अर्चना वर्मा ने मुख्य वक्ता तथा सभी का स्वागत किया तथा व्याख्यान विषय की महत्ता को छात्राओं के भविष्य के लिए उपयोगी बताया। व्याख्यान की संयोजिका डॉ शशि बाला सिंह ने व्याख्यान विषय पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन डॉ अंजना श्रीवास्तव के द्वारा तथा धन्यवाद प्रस्ताव विभाग की इंचार्ज डॉक्टर संगीता सिरोही के द्वारा किया गया। व्याख्यान असि प्रो डॉ श्वेता गोंड का सक्रिय योगदान रहा। कार्यक्रम में शोध छात्र विवेक चौरसिया, सुभाष, विकास, अनिल, अतुल, विपुल, दिलीप, दीक्षा मालवीया, कल्पना, नेहा, जयललिता तथा विभाग पाई समस्त छात्राएं उपस्थित रही।

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जम्मू-कश्मीर में 82 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 395 मीटर (2-लेन) मारोग सुरंग के साथ 250 मीटर सेतु (2-लेन) का निर्माण सफलतापूर्वक पूरा हो गया है : गडकरी

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने एक पोस्ट में कहा कि जम्मू-कश्मीर में अनुमानित लागत पर 395 मीटर (2-लेन) मारोग सुरंग के साथ 250 मीटर सेतु (2-लेन) का 82 करोड़ रुपये का निर्माण कार्य सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है।

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गडकरी ने कहा कि यह अवसंरचना एनएच-44 के रामबन से बनिहाल खंड के साथ स्थित है। बड़ी परियोजना के हिस्से के रूप में यह 645 मीटर का खंड, न केवल यात्रा की दूरी को 200 मीटर तक कम कर देगा, खड़ी ढलानों को कम करेगा, बल्कि प्रसिद्ध सीता राम पासी स्लाइड क्षेत्र के लिए एक वैकल्पिक मार्ग की सुविधा भी प्रदान करेगा। उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्‍त, यह चुनौतीपूर्ण मार्गों क्षेत्र की ढलानों को दरकिनार करते हुए वाहनों के सुचारू प्रवाह की सुविधा प्रदान करता है।

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गडकरी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व के तहत हमने जम्मू और कश्मीर में अद्वितीय राजमार्ग बुनियादी ढांचा प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को दृढ़ता से बरकरार रखा है। उन्होंने कहा कि यह रूपांतरकारी विकास न केवल क्षेत्र की आर्थिक वृद्धि में योगदान देता है बल्कि एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में इसके आकर्षण को भी बढ़ाता है।

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एस. एन.सेन बालिका विद्यालय पी. जी. कॉलेज मे विश्व जंतु दिवस के उपलक्ष में माडल प्रतियोगिता आयोजित

कानपुर 4 अक्टूबर भारतीय स्वरूप संवाददाता एस. एन.सेन बालिका विद्यालय पी. जी. कॉलेज के जन्तु विज्ञान विभाग मे विश्व जंतु दिवस दिवस के उपलक्ष में माडल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर (डॉ.) सुमन तथा निर्णायक मंडल के सदस्य डॉ गार्गी यादव, डॉ प्रीति सिंह ने द्वीप प्रज्वलन करके किया। विषय की जानकारी देते हुए जन्तु विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. शिवांगी यादव ने बताया कि विश्व जंतु दिवस का महत्व और जंतु संरक्षक के महत्व को बताया।
इस प्रतियोगिता में बी.एससी. प्रथम वर्ष , बी.एससी. द्वितीय वर्ष तथा बी.एससी. तृतीय वर्ष की छात्राओ ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। प्राचार्या प्रोफेसर(डॉ) सुमन मुख्य अतिथि एवं जज डॉ. गार्गी यादव एवं डॉ प्रीति सिंह ने छात्राओं के माडल का अवलोकन एवं मूल्यांकन किया । इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार बी. एससी प्रथम वर्ष की तुलिका चटर्जी, द्वितीय पुरुस्कार बी. एससी प्रथम वर्ष की अंशिका चौरसिया तथा
तृतीय पुरुस्कार काव्या यादव तथा पूजा को मिला।

बी. एससी. तृतीय वर्ष से अनन्या, महक विश्वकर्मा को सांत्वना पुरस्कार दिया गया।

प्रतियोगिता के अवसर पर रसायन विज्ञान की विभाग अध्यक्ष डॉ गार्गी यादव एवं वनस्पति विभाग की विभागद्यक्ष डॉ प्रीति सिंह ने छात्राओं का उत्साहवर्धन किया।
कार्यक्रम का समापन डॉ शैल वाजपेयी ने सभी शिक्षक तथा शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का धन्यवाद ज्ञापन करके किया। इस मौके पर वनस्पति विज्ञान की डॉ समीक्षा सिंह, रसायन विज्ञान की अमिता सिंह, डॉ मीनाक्षी व्यास, डॉ ममता अग्रवाल समेत महाविद्यालय की अन्य सम्मानित शिक्षिकाएं उपस्थित रहीं।

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वजूद है तुम्हारा मेरी तलाश में

हाथो में जाम थामे विराज पूरी महफ़िल में झूमता सा दिख रहा था..,
कुंवर प्रताप सिंह का बेटा विराज जिसका व्यक्तित्व देखने में बिन्दास ,मन मौजी सा ,मगर अन्दर से गंभीर, शांत व्यक्तित्व का स्वामी था।
विराज की ख़ुशी की वजह सौम्या का पार्टी मे होना ही था ।
शांत स्वभाव वाली सौम्या,..सोने जैसा रंग और उस पर नीले रगं के लिबास में लिपटी पार्टी में सब से मिल रही थी।
कुंवर प्रताप सिंह के चरण स्पर्श कर उनको उनके जन्मदिन की हार्दिक बधाई देती है कुँवर प्रताप सिंह जाने माने शहर के लोगों में से एक है .. सौम्या उनके दोस्त की बेटी जो इंग्लैंड से डिग्री ले आई थी अभी।
विराज की नज़रें सौम्या पर ही थी।धड़कते दिल से सौम्या के पास आया और धीरे से अपने होंठ सौम्या के कान के पास ले जा पूछने लगा ! कब आई इंग्लैंड से ? मुझे बताया नहीं ,कि तुम आने वाली हो।सौम्या ने मुड़ कर देखा तो विराज को अपने बेहद क़रीब पाया।विराज कहता जा रहा था। सौम्या तुम पर तो इंग्लैंड का रंग बिलकुल नही चढा।
वही हीरे जैसी चमकती आँखे जो झील से भी गहरी है ..पार्टी में म्यूज़िक की आवाज़ ऊँची होने पर भी सौम्या विराज की हर बात को सुन पा रही थी। सौम्या ने इक नज़र विराज को देखा, और बिना कुछ कहे आगे निकल गई। विराज सौम्या के पास जा कर कहने लगा !
तुम से बात करनी है मुझे ..इतने सालों के बाद तुम्हें मिल रहा हूँ और तुम ….,
सौम्या बोली !
होश में तो आप आ जायें पहले,फिर बात भी कर लूँगी और फिर जल्दी से कुंवर प्रताप सिंह से इजाज़त ले कर पार्टी से निकल गई। विराज को लगा जैसे कोई हवा का झोंका आया और उसके दिल और दिमाग़ पर तूफ़ान सा छोड़ गया और उसके बाद पार्टी में क्या हुआ,सबसे बेख़बर सा ,लुटा लुटा सोच रहा था।पार्टी तो चल रही है लोग भी है यहाँ, पर मैं क्यों ख़ाली ख़ाली सा महसूस कर रहा हूँ।क्या हो गया मुझे इक दम अचानक से ? वजह भी जानता था विराज ….
ज़िन्दगी में कोई ख़ास ऐसा होता ही है .. जिस के होने,या न होने से बहुत फ़र्क़ पड़ता है ..ऐसा कोई ख़ास शख़्स ,रूह से जुड़ा होता है
जिस के बिना हर चीज़ बे-मायने हो जाती है।और उसकी जुदाई आप की रूह को जला डालती है ।
उसे याद आ रहा था कि कैसे सौम्या और वो इक दूजे को चाहते थे मगर विराज की शादी रोशनी से,जो शहर के जाने माने रईस की बेटी थी तय कर दी गई थी ।जब सौम्या को उसकी सगाई का पता चला तो बिना कुछ कहे लंदन चली गई थी .. .. सौम्या की नाराज़गी से वाक़िफ़ था विराज।
इक रोज़ विराज ने सौम्या को काफ़ी के लिए बुलाया।
सौम्या के लिए न करना आसान नही था।रेस्टोरेन्ट में सौम्या का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा विराज बार बार घड़ी देख रहा था तभी उसने सौम्या को देखा आते हुये देखा…
कच्चे पीले रंग का दुपट्टा ,जो बार बार लहरा कर उसके चेहरे को ढके जा रहा था ,उसपर आँखो पर काला चश्मा बेहद खूबसूरत लग रहा था।
सौम्या की गंभीर आँखों को देख कर विराज बोला! नाज़ है मुझे मेरी पसंद पर ..
तुम कुछ भी न कहो चाहे ,सौम्या मगर
मेरी मौजूदगी तुम्हारी आँखों में आज भी साफ़ दिख रही है…
. वजूद तो तुम्हारा है वहाँ …मगर मेरी ही तालाश में ..
अक्सर तुम्हारी तसवीर देखता हूँ तुम्हारे फ़ोन पर
होंठों पर मुस्कुराहट तो होती है वहाँ..मगर फीकी फीकी सी …. जैसे तुम्हारी आँखे देखती तो सबको है ,मगर ढूँढती मुझे ही है।
सौम्या बोली! इतना जानते हो मुझे ,तो ये भी जानते होंगे कि मैं नाराज़ हूँ आप से।मेरे लिए ,मेरी चाहत के लिए जरा सा भी लड़ नहीं पाये किसी से ..और मुझे नहीं पता था कि आप रोशनी से शादी कर लोगे ।मुझे लगा !आप और मैं …कहते कहते सौम्या का गला भर आया।सौम्या कहती जा रही थी..विराज आप भागते जा रहे हो दुनिया की चाहते ले कर ..और मैं …कुछ न चाह कर ..बस आप तक ही आ कर ठहर गई थी मगर आप वहाँ न ठहर सके।विराज बोला !
तुम ने ये कैसे सोचा कि मैं रोशनी से शादी करूँगा। मेरी मजबूरी थी वो ,शायद तुम्हें नहीं पता।जब मेरी सगाई की हुई ।तब पापा की तबियत इक दम से ख़राब हो गई थी और पापा दिल्ली अस्पताल में दाखिल थे।तब मैं पापा से कुछ नहीं कहना चाहता था ,मगर कुछ दिन बाद मैंने वो रिश्ता खुद ही तोड़ दिया था। रोशनी ने भी इस बात को समझा कि वो मेरे साथ कभी ख़ुश नहीं रह पायेगी।तब तक तुम जा चुकी थी। तुम ने मुझ से कोई सवाल नहीं किया ,न ही कभी कोई जवाब माँगा.. भरोसा नहीं था मुझ पर ,या मेरे प्यार पर ..कितना इन्तज़ार किया है मैंने तुम्हारा ।मैं तुम्हें चाहता था मगर खुद ही जान नहीं पाया मैं, कि तुम मेरे लिए कितनी ज़रूरी थी।तुम्हीं मेरा प्यार हो ,तुम मेरा बचपन हो ,.. तुम ही तो हो जिस ने मेरे दिल पर राज किया है।
सौम्या बोली! तो क्या आप रोशनी को चाहते नहीं थे।पागल हो तुम !
इतना भी पहचान नहीं पाई मुझे।विराज का यूँ सौम्या को पागल कहना ,सौम्या को इक अपनेपन का अहसास करवा रहा था
विराज बोला।रोशनी को बचपन से जानता ज़रूर हूँ मगर अपनी पत्नी के रूप में उसे कभी नहीं देखा था।
मेरी बेशुमार चाहतों की तुम ही अकेली वारिस रही हो।
सौम्या बोली !विराज
पिछले चार सालों में मैंने दर्द तो सहा ,मगर आप से नाराज़ नहीं हो पाई।विराज बोला ! सौम्या किसी से हँस कर बात करना ,प्यार नहीं होता .. ,जो दिल मे छिपा रहता है वही प्यार है,ज़ाहिर रिश्तों मे गहराई नही हुआ करती।रोशनी मेरी दोस्त से ज़्यादा कुछ भी नहीं ..याद है मुझे इक रोज़ तुम ने कहा !तुम मुझ से कभी बात नहीं करोगी ,न ही कभी मिलोगी।ये सोच कर मैं अक्सर बेचैन रहता था ,फिर तुम मुझे छोड़ कर इंग्लैंड पढ़ने चली गई और तुम्हें देखने की मेरी तमन्ना मुझे दिवाना बना दिया करती।कभी कभी तो जैसे पंजाबी में कहते हैं न,खो पढ़ जाना ऐसे तुम्हें देखने के लिए मुझे हुआ करती थी।तुम नहीं थी यहाँ , मैं खुद को काम मे बीज़ी रखने लगा, पार्टियों में जाने लगा,गाने सुनता मगर सकून मुझ से कोसों दूर ही रहा।
तुम्हारी याद मुझे बेचैन रखती।बहुत मिस करता था तुम्हें।
मिस करना जैसा लफ़्ज़ शायद बहुत छोटा है।सौम्या को, ये सब सुनना कहीं न कहीं सकून दे रहा था।अच्छा लग रहा था कि विराज को भी उसकी कमी का अहसास होता रहा है ..जैसे वो खुद महसूस किया करती थी।विराज कहता जा रहा था लोगों की नज़रों में जो मैं दिखता हूँ मैं वैसा बिलकुल भी नहीं .. सौम्या बोली !
विराज मेरी नाराज़गी अपनी जगह थी .. फ़िक्र अपनी जगह थी ..नही चाहती थी कि तुम से बात करूँ कभी ..मगर मुझे भी बार बार तलब उठती थी ..तुम्हें देखने की . ..तुम से बात करने की मगर मैं खुद को रोक लेती थी।
विराज कहने लगा जितनी ऊँची दिवारें तुम बनाती रही अपने इर्द गिर्द ,उतनी ही मेरी चाहत बढ़ती रही।विराज ने सौम्या का हाथ पकड़ कर धीरे से कहा !अगर तुम्हारी इजाज़त हो तो मैं अपने पापा से बात करूँ शादी की ?
और सौम्या ने भरी आँखों से अपना सर विराज के कंधे पर रख दिया जैसे हाँ की स्वीकृति दे रही हो ..
दोस्तों !
ग़लतफ़हमियाँ ही वजह बनती है दूरियों की … वक़्त रहते उन्हें सुलझा लेना चाहिए क्योंकि
कोई भरोसा नही ,कब ज़िन्दगी बेवफ़ाई कर हमारे अपनों को हम से दूर ले जाये और हमारे हाथ तरसने ..तड़पने और बेचैन होने के इलावा कोई रास्ता ही न बचे।
यही मेरी इल्तिजा है सब के लिए ..वक़्त रहते.. अपने दिल के क़रीब रिश्तों को संभाल लीजिए .. —स्मिता केंथ

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  श्राद्ध से तृप्त पितर देते हैं मनोवांछित फल ~डॉ.दीपकुमार शुक्ल (स्वतन्त्र पत्रकार)

भारतीय संस्कृति में मृत्यु के बाद भीअव्यक्त जीवन की अवधारणा है| जिसके अनुसार मृत्योपरान्त  सिर्फ शरीर नष्ट होता है, शरीर को सक्रिय रखने वाला तत्व आत्मा कभी भी समाप्त नहीं होता| बल्कि एक समय अन्तराल के बाद वह पुनः नया शरीर धारण कर लेता है| श्रीमद्भगवतगीता के अध्याय दो के श्लोक संख्या 13 और 22 के अनुसार ‘देहिनोSस्मिनयथा देहे कौमारं यौवनं जरा| तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र च मुह्यति|| अर्थात जैसे जीवात्मा की इस देह में बालकपन, जवानी और वृद्धावस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है; उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता|’, ‘वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोSपराणि| तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही| अर्थात जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्यागकर दूसरे नये शरीर को प्राप्त होता है|’ जीवात्मा की व्यक्त-अव्यक्त चक्रीय स्थिति का विस्तृत वर्णन गरुड़ महापुराण के उत्तर खण्ड में मिलता है| अन्य पुराणों, स्मृतियों तथा उपनिषद आदि में भी इस बारे में वृहद् ज्ञान दिया गया है| गरुड़ महापुराण के उत्तर खण्ड के अध्याय 10 के अनुसार मृत्यु के बाद मृतक को मृत्यु स्थान पर शव, वहां से उठाकर द्वार पर रखने के बाद पान्थ, श्मशान के अर्धमार्ग पर भूत, चिता में रखने के बाद साधक तदोपरान्त प्रेत की संज्ञा देते हुए पिण्ड प्रदान किया जाता है| अध्याय 13 के अनुसार बारहवें दिन सपिण्डीकरण अर्थात सपिण्डन क्रिया द्वारा मृत व्यक्ति का पिण्ड तीन भागों में विभक्त करके वसु, रूद्र और आदित्य स्वरुप उसके पिता, पितामह तथा प्रपितामह के पिण्ड के साथ मिला दिया जाता है| इसके बाद वह व्यक्ति प्रेत संज्ञा से मुक्त होकर पितरों की श्रेणी में प्रवेश पा जाता है: ‘प्रेतनाम परित्यज्य यया पितृगणे विशेत्|’  जिनका सपिण्डीकरण नहीं किया जाता है,  उनके पुत्रों द्वारा प्रदत्त अनेकविध दान आदि उन्हें प्राप्त नहीं होते और उनका पुत्र सदैव अशुद्ध बना रहता है| क्योंकि सपिण्डीकरण किये बिना सूतक समाप्त नहीं होता है| ‘न पिण्डो मिलितो येषां पितामहशिवादिषु| नोपतिष्ठन्ति दानानि पुत्रैर्दत्तान्यनेकधा|| अशुद्धः स्यात्सदा पुत्रो न शुद्धयति कदाचन| सूतकं न निवर्तेत सपिण्डीकरणं विना|| (ग.पु./उ.ख./13/3,4)’| गरुड़ महापुराण के उत्तर खण्ड के अध्याय 13 में सपिण्डीकरण की सम्पूर्ण विधि और उसके फल के बारे में विस्तार से बताया गया है| इसी अध्याय में यह भी कहा गया है कि सपिण्डीकरण के दिन से लेकर एक वर्ष तक मृत्यु की तिथि पर पाक्षिक, मासिक तथा वार्षिक श्राद्ध अर्थात पिण्ड, अन्न एवं जलपूर्ण घट आदि का दान जीवात्मा की अक्षय तृप्ति के लिए करना चाहिए| लेकिन वर्तमान समय में आपाधापी भरे जीवन के चलते किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह पाक्षिक और मासिक श्राद्ध कर सके| परन्तु पितृ पक्ष में वार्षिक श्राद्ध करने की परम्परा है|

भादों माह की पूर्णिमा से लेकर अश्विन माह की अमावस्या तक 16 दिन का समय पितृ पक्ष के नाम से जाना जाता है| इन दिनों में लोग अपने मृत परिजन की तृप्ति के निमित्त प्रतिदिन जलांजलि देते हैं तथा उनकी मृत्यु तिथि पर पिण्डदान, ब्राह्मण भोजन एवं क्षमतानुसार धन आदि का दान करते हैं| गरुड़ महापुराण के पूर्व खण्ड के अध्याय 212 के श्लोक संख्या एक और दो के अनुसार मृत्यु के एक वर्ष पर्यन्त पुनः सपिण्डीकरण की क्रिया सम्पन्न होनी चाहिए| जिसे सपिण्डीकरण श्राद्ध कहते हैं| यह यथा काल किये जाने पर प्रेत को पितृ लोक का लाभ प्राप्त होता है, इसे अपरान्ह में करना चाहिए: ‘सपिण्डीकरणं वक्ष्ये पूर्णेब्दे तत्क्षयेSहनि| कृतं सम्यगयथाकाले प्रेतादे: पितृलोकदम|| सपिण्डीकरणं कुर्य्यादपराह्ने तु पूर्ववत्|’ लेकिन जानकारी के अभाव में प्रायः लोग स्वजन की मृत्यु के प्रथम वर्ष के पितृपक्ष में इसे सम्पन्न करते हैं| वहीं कुछ लोग तीसरे वर्ष के पितृपक्ष में सपिण्डीकरण श्राद्ध करते हैं| इसे आम आदमी की भाषा में मृत परिजन को पितरों या पुरखों में मिलाना कहा जाता है| अध्याय 212 के श्लोक संख्या 10 में सपिण्डीकरण श्राद्ध, श्राद्धकर्ता तथा श्राद्धफल को विष्णुरूप बताया गया है| ‘श्राद्धं विष्णुः श्राद्धकर्ता फलं श्राद्धादिकं हरिः||’ इसी अध्याय में वार्षिक सपिण्डीकरण श्राद्ध की सम्पूर्ण विधि वर्णित है| उत्तर खण्ड के अध्याय 13 के श्लोक संख्या 129, 130 तथा 131 में बताया गया है कि जो मनुष्य श्राद्ध, दान आदि विधिपूर्वक करता है उसको पिता द्वारा सच्चरित्र पुत्र, पितामह द्वारा गोधन, प्रपितामह द्वारा विविध धन-सम्पत्ति और वृद्ध प्रपितामह द्वारा प्रचुर अन्न आदि प्राप्त होता है| श्राद्ध से तृप्त होकर सभी पितर पुत्र को मनोवांछित फल देकर धर्म मार्ग से धर्मराज के भवन में जाते हैं| वहाँ वे धर्म सभा में परम आदरणीय होकर विराजमान होते हैं: ‘पिता ददाति सत्पुत्रान् गोधनानि पितामह:| धनदाता भवेत्सोSपि यस्तस्य प्रपितामह:|| दद्याद् विपुलमन्नाद्यं वृद्धस्तु प्रपितामह:| तृप्ताः श्राद्धेन सर्वे दत्त्वा पुत्रस्य वांछितम्||’ वहीँ पूर्व खण्ड के अध्याय 99 के श्लोक संख्या 35 से 39 तक में बताया गया है कि जो लोग पितृपक्ष में नित्य पितरों का सविधि श्राद्ध करते हैं वे पुत्र श्रेष्ठ स्थिति, सौभाग्य, समृद्धि, राज्य, आरोग्य, अपने समाज में श्रेष्ठत्व, वाणिज्य में प्रभूतलाभ तथा अनेक शुभ फल पाते हैं| यशस्वी तथा शोकहीन होकर अन्ततः परम गति प्राप्त करते हैं| वे ऐश्वर्य, विद्या, वाक्सिद्धि, ताम्र आदि धातु, गौ, अश्व आदि सम्पदा पाते हैं तथा उनकी आयु बढ़ती है|

चौखम्भा कृष्णदास अकादमी वाराणसी द्वारा प्रकाशित गरुड़महापुराण के भूमिका लेखक डॉ.महेश चन्द्र जोशी ने अपने लेख में विभिन्न पुराणों, स्मृतियों तथा महाभारत आदि ग्रन्थों से उधृत श्लोकों के माध्यम से प्रेत योनि के बारे में विस्तार से बताया है| जिन मनुष्यों की मृत्यु होने पर दाह संस्कार आदि क्रियाएँ नहीं होतीं और जो पलंग आदि (अन्तरिक्ष) में देहत्याग करते हैं, वे निश्चयमेव प्रेत होते हैं| प्रायः वे मनुष्य भी प्रेत होते हैं, जिनकी अन्त्येष्टि सम्यक रूप से नहीं हो पाती, जिनके सपिण्डीकरण श्राद्ध तक के कृत्य नहीं हो पाते तथा जिन मनुष्यों का निधन अपमृत्यु के कारण होता है, जो मनुष्य स्वधर्म त्यागकर विभिन्न प्रकार के पाप करते हैं, अनैतिक और अन्यायी हैं, धर्म विरुद्ध आचरण करते हैं, स्वेच्छाचारी होकर लोभवश अपने कुलधर्म को त्यागकर अन्य देश का धर्म अपना लेते हैं, अपने हितैषी गुरु तथा धर्मोपदेश करने वाले आचार्य के बचनों का पालन नहीं करते, पाखण्ड करते हैं, परस्त्रीगमन तथा मांस भक्षण करते हैं, पतित व्यक्ति का अन्न खाते हैं, देवता, गुरु एवं ब्राह्मण के धन का अपहरण करने वाले, परनिन्दा से सन्तुष्ट होने वाले, देवपूजन एवं पितृ तर्पण किये बिना तथा अपने सेवकों को भोजन दिये बिना भोजन ग्रहण करते हैं, शास्त्रों एवं गुरुजनों के आदेश की अवहेलना करते हैं, ब्रह्महत्या और गोहत्या करने वाले, सुरापान करने वाले, चोरी करने वाले, दूसरों को विपत्ति-ग्रस्त देखकर सन्तुष्ट होने वाले, परनिन्दक, गुरुपत्नीगामी, भूमिहर्ता तथा कन्या का धन हरण करने वाले आदि सभी पातकी जन प्रेत योनि को प्राप्त करते हैं| ऐसे लोग मृत्यु के बाद प्रेत योनि में पहुँचकर स्वयं तो कष्ट भोगते ही हैं, अपने पारिवारिक जनों को भी अनेक तरह से पीड़ा देते हैं| जिन घरों में वंशवृद्धि न हो, अल्प आयु में लोगों की मृत्यु हो जाय, अकस्मात जीविका के साधन समाप्त हो जाएँ या उनमें बड़ी बाधा आ जाय, पारिवारिक सदस्यों की समाज में प्रतिष्ठा घटने लगे, अचानक घर में आग लग जाय, घर में नित्य कलह हो, पत्नी तथा घर के अन्य सदस्य प्रतिकूल आचरण करने लगें, पारिवारिक जनों पर मिथ्या कलंक लगे, घर के सदस्यों को असाध्य रोग लग जाय, प्रयत्न पूर्वक अर्जित धन व्यापार आदि में लगाने पर नष्ट हो जाय| तो यह मानना चाहिए कि वह परिवार प्रेत पीड़ा अथवा पितृ दोष से ग्रस्त है| जिस कुल में पितृ-दोष होता है, उस कुल में कोई भी व्यक्ति सुखी नहीं हो सकता| उस कुल में मनुष्यों की मति, प्रीति, रति, बुद्धि, और धन-सम्पदा आदि सब नष्ट हो जाता है और तीसरे से लेकर पांचवीं पीढ़ी आते-आते उनके वंश का ही नाश हो जाता है| प्रेत अपने पारिवारिक जनों के सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि और प्रगति के शोषक होते हैं| अतः प्रत्येक मनुष्य की मृत्यु के बाद शास्त्र-विहित अन्त्येष्टि क्रिया से लेकर सपिण्डीकरण पर्यन्त सभी कृत्य विधि-विधान के अनुसार अनिवार्य रूप से सम्पादित करना चाहिए| स्कन्द पुराण के अनुसार मृत व्यक्ति अपने जीवन काल में भले ही महान धर्मात्मा और तपस्वी क्यों न रहा हो, किन्तु सपिण्डीकरण के अभाव में वह भी प्रेतत्व से मुक्त नहीं हो सकता| यदि कोई मृतात्मा अपने पारिवारिक जनों, सम्बन्धियों या परिचितों को स्वप्न में दिखलाई दे तो यह समझना चाहिए कि वह प्रेत रूप में है| अग्नि पुराण के अनुसार मृत्यु के बारहवें दिन सपिण्डीकरण करने के बाद भी एक वर्ष तक प्रेतत्व बना रहता है| अतः वर्ष पर्यन्त सपिण्डीकरण श्राद्ध तथा प्रतिवर्ष पितृपक्ष में तर्पण एवं श्राद्ध आदि अनिवार्य रूप से करना  चाहिए| क्योंकि जीवन में सुख-शान्ति एवं समृद्धि हेतु पितरों की सन्तुष्टि परम आवश्यक है|

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डी जी कॉलेज में “स्वच्छता ही सेवा है” पखवाड़े में की गई सरसैया घाट की सफाई

कानपुर 2 अक्टूबर भारतीय स्वरूप संवाददाता “स्वच्छता ही सेवा” पखवाड़ा (15 सितंबर से 02 अक्टूबर) के अंतर्गत डी जी कॉलेज, कानपुर की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई द्वारा देश के दो अमर सपूत महापुरुषों महात्मा गांधी तथा लाल बहादुर शास्त्री को उनकी जयंती के अवसर पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। इस अवसर पर नागरिकों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने हेतु एक स्वच्छता रन का आयोजन भी किया गया। महाविद्यालय प्राचार्य ने अपने उद्बोधन में छात्राओं को गांधी जी एवम् शास्त्री जी के जीवन वृतांत को विस्तार पूर्वक बताते हुए कहा कि हमें उनके आदर्शों पर चलना चाहिए। सेल्फ फाइनेंस की डायरेक्टर प्रोफेसर वंदना निगम ने कहा कि गांधी जी अहिंसा के पुजारी तो लाल बहादुर शास्त्री जय जवान जय किसान के विचार को लेकर आगे बढ़े। चीफ प्रॉक्टर प्रोफेसर अर्चना श्रीवास्तव ने छात्राओं के द्वारा स्वच्छता पखवाड़े के अंतर्गत की गई गतिविधियों – जन जागरूकता रैली, शपथ, गंगा घाट की सफाई, नागरिकों को सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग न करने, कूड़े का सही निस्तारण करने, महाविद्यालय अपने घर में आसपास की साफ सफाई स्वच्छता बनाए रखने, बस्ती के बच्चों व महिलाओं को साफ सफाई स्वच्छता के प्रति जागरूक करने, हाथों को धोने का सही तरीका बताने संबंधी किए गए समस्त कार्यों की भूरी-भूरी प्रशंसा की। कार्यालय अधीक्षक श्री कृष्णेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि इस प्रकार पर्यावरण का ध्यान रख हम वर्तमान में उत्पन्न हो रहे भयावह वैश्विक जलवायु संकट से बचाव के प्रयास कर सकते हैं। स्वयंसेविकाओं, शिक्षिकाओं एवं कर्मचारियों ने सम्मिलित रूप से अपने घरों में जमा किए गए सिंगल यूज़ प्लास्टिक “कानपुर प्लॉगर्स” संस्था के सहयोग से रिसाइक्लिंग हेतु भेजने का निश्चय भी किया। स्वच्छता पखवाड़े का आयोजन डॉक्टर संगीता सिरोही कार्यक्रम अधिकारी राष्ट्रीय सेवा योजना तथा जिला नोडल अधिकारी कानपुर नगर के कुशल निर्देशन में डॉ अंजना श्रीवास्तव एवम् डॉ ज्योत्सना के सहयोग से किया गया।

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